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निर्गुण मुनिको भक्तिसे उसे तथा भक्तको कुछ फल नहीं हो सकता हैं ४९९ निर्गुण मुनिको उलटा पापबंध होता है निर्गुणको होनेवाला ऋण तथा उसका परिणाम तेरे किस गुणके लिये तू ख्यातिकी अभिलाषा करता है. ? ५०५ निर्गुणी होनेपर स्तुतिकी अभिलाषा रक्खे उसका फल
५०८ गुण बिना स्तुतिकी इच्छा करनेवालाका ऋण
५०९ गुण बिना वन्दन पूजनका फल
५१० गुण बिना वंदनपूजन-हितनाशक
५११ स्तवनका रहस्य-गुणार्जन
५१२ भवान्तरका विचार-लोकरंजनपर प्रभाव परिग्रहत्याग
५१६ धर्मके निमित्तसे रखा हुआ परिप्रह
५१८ धर्मोपकरणपर मूर्छा रखना भी परिग्रह है धोंपकरणपर भूर्छा-उसके दोष धर्मोपकरणका भार वहन कराने के दोष संयम और उपकरणकी शोभाकी स्पर्धा परीषहसहन-संवर विनाशी देह-तप, जप करना
५२७ चारित्रके कष्ट-नारकी तिर्यचके कष्ट प्रमादजन्य सुख-मुक्तिका सुख
५३० चारित्र नियंत्रणाका दुःख-गर्भावास प्रादिका दुःख
५३० परिषह सहन करनेका उपदेश ( स्ववशतामें सुख ) परिषह सहन करनेके शुभ फल . . परिग्रहसे दूर भगनेके बुरे फल परिवह सहन करयेमें विशेष शुभ फल सुखसाध्य धर्मकर्तव्प-प्रकारान्तर भावना संयमस्थान-उसका आश्रय
५४० योगरुंधनकी आवश्यकता मनोयोगपर अंकुश-मनोगुप्ति
५४८ मत्सरत्याग निर्जरा निमित्त परिषह सहन
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