Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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गई हैं। वस्तुत: ये चारों प्रतिमाएं साध्वाचार की चार कड़ियां हैं। आचाराङ्ग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में इनसे सम्बद्ध चार अध्ययन हैं । वस्तुतः यह पाठ उन्हीं के आधार पर लिखा गया है। स्थानाङ्ग सूत्र में एक पाठ और आता है, उसमें आहार-पानी आदि की सात एषणाओं का वर्णन किया गया है। यह पाठ भी द्वितीय श्रुतस्कन्ध के आधार पर लिखा गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध भी गणधर कृत है। यदि वह गणधर कृत नहीं होता तो स्थानाङ्ग जैसे प्राञ्जल एवं गणधर कृत आगम में इतनी स्पष्टता से उसकी महत्ता को कभी भी स्वीकार नहीं किया जाता । इसके अतिरिक्त समवायाङ्ग, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, प्रश्नव्याकरण आदि सूत्रों के पाठ हम पहले ही बता चुके हैं। इससे यह स्पष्टतः प्रतीत होता है कि आचाराङ्ग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के भावों का आगमों में जाल बिछा हुआ है। यह एक सोचने-समझने की बात है कि एक साधारण स्थविर कृत आगम को इतना सम्मान कैसे प्राप्त हो सकता है और उसका उल्लेख गणधर कृत आगमों में कैसे आ सकता है ? इससे यह सूर्य के उजाले की तरह साफ हो जाता है कि द्वितीय श्रुतस्कन्ध गणधर कृत है।
स्थविर शब्द की व्याख्या- गणधर को भी स्थविर कहते हैं
स्थविर शब्द केवल अनुभवी एवं वृद्ध के लिए प्रयोग में नहीं आता है, प्रत्युत उसमें अनेक अर्थ एवं भाव सन्निहित रहते हैं। जैनागमों में स्थविर शब्द प्रमुख नायक के लिए भी प्रयुक्त हुआ है। स्थानाङ्ग सूत्र में ग्राम स्थविर, नगर. स्थविर, राष्ट्र स्थविर, पार्श्वस्थ स्थविर, कुल स्थविर, गण स्थविर, संघ स्थविर, वय स्थविर, श्रुत स्थविर और दीक्षा स्थविर, इन दस स्थविरों का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत प्रकरण में स्थविर प्रमुख नेता के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अपने-अपने विभाग का स्थविर- प्रमुख व्यक्ति हर दृष्टि से योग्य एवं अनुभवी होता है और वह स्व विभाग से सम्बद्ध सम्पूर्ण दायित्व अपने सबल कन्धों पर उठा लेता है। इसके अतिरिक्त तीन प्रकार के स्थविर और भी बताए गए हैं- १-वय स्थविर, २-श्रुत स्थविर
और ३-दीक्षा स्थविर । ६० वर्ष की आयु में कदम रखते ही साधु को वय स्थविर के पद से विभूषित कर दिया जाता है।
उपरोक्त संपूर्ण विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत आगम द्वितीय श्रुतस्कंध गणधर कृत ही है। शेषं केवलिगम्यमम्।
- आचार्य आत्माराम
१. चत्तारि सेज्जा पडिमाओ पं०, चत्तारि वत्थ पडिमाओ पं०, ... चत्तारि पाय पडिमाओ पं०, चत्तारि ठाण मडिमाओ पं०। -स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान ४ उ३। २. सत्त पिण्डेलणाओ पं०, सत्तपाणेसणाओ पं०,
सत्त उग्ग हंपडिमाओ पं०, सत्त सन्निक्कया पं०। -स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान ७। . ३. दस थेरा पण्णता तंजहा- गाम थेरा,णगर थेरा, रट्ट थेरा, पसत्थ थेरा, कुल थेरा, गण थेरा, संघ थेरा, जाई थेरा, सूय थेरा, परियाय थेरा। -स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान १० ।
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