Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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कुछ विचारक संज्ञा सूत्र का यह अर्थ करते हैं कि जिसमें किसी अर्थ का . सामान्य रूप से निर्देश किया जाए। वस्तुतः वस्तु के नाम - निर्देश को संज्ञा कहते हैं । अतः नाम-निर्देशक सूत्र ‘संज्ञा सूत्र' कहलाते हैं।
कारक सूत्र - जिस सूत्र में विचार- चर्चा या शंका-समाधान के द्वारा किसी विधान की परिपुष्टि की जाए, उसे ‘कारक सूत्र' कहते हैं । जैसे- भगवती सूत्र में यह उल्लेख किया गया है कि “आधाकर्मी आहार करने वाला साधु आयु कर्म के अतिरिक्त अन्य सात कर्मों की कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है ।" इसके बाद गौतम स्वामी इसके सम्बन्ध में विशेष जानकारी करने के लिए भगवान से प्रश्न पूछते हैं और शंका-समाधान के द्वारा वस्तु का निर्णय करते हैं । इस तरह विचार चर्चा के द्वारा किए गए निर्णय को 'कारक सूत्र' कहते हैं ।
प्रकरण सूत्र - जिन सूत्रों में स्व समय की अपेक्षा से ही आक्षेप और निर्णय का वर्णन किया गया हो, उसे 'प्रकरण सूत्र' कहते हैं । नमिपव्वज्जा, केसीगौतमीय, नालन्दी आदि उत्तराध्यय़न और सूत्रकृतांग आदि के अध्ययन 'प्रकरण सूत्र' की शैली में रचे गए हैं।
• उत्सर्ग और अपवाद
नियुक्तिकार ने सूत्र के उत्सर्ग और अपवाद दो भेद किए हैं तथा उत्सर्ग, अपवाद और उत्सर्ग-अपवाद ये तीन और उत्सर्ग, अपवाद, उत्सर्ग-अपवाद और अपवाद-उत्सर्ग ये चार भेद भी किए हैं। जो सूत्र निषेध प्रधान है, वह उत्सर्ग सूत्र है; जो विधि प्रधान है वह अपवाद सूत्र, जो निषेध और विधि प्रधान है वह उत्सर्ग- अपवाद सूत्र है और जो विधि और निषेध प्रधान है वह अपवाद - उत्सर्ग सूत्र है । जैसे - साधु-साध्वी को अपक्व ताल फल अभिन्न (बिना काटा हुआ ) लेना नहीं कल्पता, यह उत्सर्ग सूत्र है। साधु को पक्व ( पका हुआ) ताल फल भिन्न या अभिनन लेना कल्पता है, यह अपवाद सूत्र है। साधु-साध्वी को परस्पर एक-दूसरे के प्रस्रवण को देना-लेना या उसका उपयोग करना नहीं कल्पता, परन्तु असाध्य रोग एंव विशेष परिस्थिति में
1. आहाकम्मन्नं भुंजमाणे समणे निग्गंथे कइ कम्म - पगडीओ बंधति ? गोयमा !
आउ वज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ । से केणट्ठेणं भंते! एवं वच्चई ?
- भगवती सूत्र, 1/9