Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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दर्शनविनय चारित्र विनय मनोविनय वचन विनय काय विनय लोकोपचार विनय
विनय का महत्त्व वैयावृत्त्य तप (सेवा)
वैयावृत्य के प्रकार
वैयावृत्य का फल स्वाध्याय तप ............
स्वाध्याय का फल ध्यान
आर्तध्यान रौद्रध्यान धर्म-ध्यान शुक्लध्यान ध्यान के लक्षण ध्यान का अधिकारी
ध्यान का साफल्य व्युत्सर्ग ........
कायोत्सर्ग के भेद द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग कायोत्सर्ग करने की विधि कायोत्सर्ग का हेतु कायोत्सर्ग का प्रमाण कायोत्सर्ग के आगार
कायोत्सर्ग के 19 दोष तप के अन्य प्रकार ........ तप:समाधि के चार भेद ........... शुद्ध श्रमणाचार का फल .........
आचार प्रणिधि और उसका फल आचार-समाधि
आचार का सार ख. श्रावकपरक शब्दावली ..
महाश्रावक श्रावक के भेद अविरत श्रावक विरत/देशविरत (विरताविरत) श्रावक श्रावक चार प्रकार से श्रावक अन्य चार प्रकार से भावश्रावक के छ: क्रियागत गुण
भावश्रावक के भागवत 17 लक्षण (गुण) 1. मुनि एवं गृहस्थ के आचार में मौलिक अन्तर
सम्यक्त्व व्रत के पालन में अन्तर
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