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आत्म-समीक्षण श्री आचारांग सूत्र में कहा गया है कि
'जे अण्णणदंसी, से अण्णणारामे,
जे अण्णणारामें, से अण्णणदंसी जो अनन्यदर्शी है, वह अनन्यारामी है और जो अनन्यारामी है वह अनन्यदर्शी है।
अन्तर्यात्रा का आनन्द अनादिकालीन संसार परिभ्रमण के कारण आत्मा अपने स्वभाव को छोड़कर अधिकांशतः अपने विभाव में स्थित हो रही है। फिर भी यह हर्ष का विषय है कि अब सामान्य जीवन एक नये वैचारिक मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है। वर्तमान विषम एवं विपरीत परिस्थितियों ने बुद्धिवादियों एवं विचारकों के हृदयों को आन्दोलित कर दिया है और वे इन ज्वलन्त परिस्थितियों के संदर्भ में सोचने लगे हैं कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मानसिक तनावों से मुक्त होकर स्थायी सुखानुभव किया जा सके ? यही अन्तरदर्शन या अन्तर्यात्रा की ओर गति करने का आशाजनक संकेत है।
यही नहीं, स्वयं वैज्ञानिक भी विज्ञान के तथाकथित विकास के प्रति सशंक और चिन्तामग्न हो गये हैं कि क्या विज्ञान का यह अतिशय विकास स्वयं मानव जीवन का ही घातक तो नहीं हो गया है ? छोटी-सी मशीन से लेकर कम्प्युटरी रोबोर्ट तक जो यह यांत्रिक विकास हुआ है, उससे एक ओर तो मनुष्य की मानसिक यंत्रणाएँ बढ़ गई हैं तो दूसरी ओर वायु प्रदूषण आदि दोषों से भांति-भांति के शारीरिक रोग फैल गये हैं।
यह स्थिति चौंकाने वाली बन गई है। सामान्य जन तक भी सोचने लगे हैं कि आज जिसे विकास कहा जा रहा है, क्या वह विकास भी है ? कहीं यह तो नहीं है कि यह विकास ही विनाश का रूप ले रहा है ? हम पूर्व वाले पश्चिम की दृश्यमान चमचमाती सभ्यता से आकर्षित हुए थे और उस दिशा में दौड़ने लगे थे किन्तु अब वह मोड़ आ गया है जहाँ हम अपनी विपथगामिता को महसूस करने लगे हैं। इस कारण ही अब यह समझ फैलने लगी है कि विकास की जो दिशा हमने पकड़ी थी, वह गलत थी। हम अपना सुख अब तक बाहर ही बाहर खोजते रहे हैं और यही हमारी भूल थी। जो सुख वास्तव में अपने ही भीतर में बसा हुआ है और जिसे हम अन्तर्यात्रा को सफल बनाकर प्राप्त कर सकते हैं, वह भला बाहर कहाँ और कैसे मिलता?
वैचारिक दृष्टि से सामान्यजन तक में यह जो नया मोड़ आया है, इसे ही स्वस्थ रूप देकर हम आध्यात्मिक दिशा की ओर ले जा सकते हैं। आज करीब करीब सभी वर्ग-पूर्व के ही नहीं बल्कि पश्चिम के भी सभी वर्ग वैज्ञानिक विकास के इस भयावह रूप से संत्रस्त हो रहे हैं और आकुल-व्याकुल होकर सुख के नये क्षेत्रों तथा नये स्रोतों की शोध कर रहे हैं। यह शोध की प्रवृत्ति ही हमें अन्तर्यात्रा की दिशा में आगे बढ़ा सकेगी।