Book Title: Kalpasutram Barsasutram Sachitram
Author(s): Bhadrabahuswami, Meghsuriji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिदेवनन्द्र लाल भाइ-जनपुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाः ८२, श्रीरेन्द्र शाश्रतस्कन्धान्तर्गत श्रीपर्युषणाकल्पाख्य श्रीभद्रवाहस्वामिविरचितं श्रीकल्पसूत्रम् (बारसासूत्रम् ) सचित्रम् । GPS OVINCCVEAWous CJIA Jan Education International For PrivatesPersonal use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRAININARONIDANANDNIRAMOMINDAWNAYANAYANAYAN S EERVERSISTERIE Sher श्रेष्ठि-देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः ८२. श्रीदशाश्रुतस्कन्धान्तर्गतं श्रीपर्युषणाकल्पाख्यं श्रीभद्रबाहुखामिविरचितम् श्रीकल्पसूत्रम्, अनेकसुन्दरतरविविधवर्णकचित्रकलितं युगप्रधानकालिकाऽऽचार्यकथाद्वयसंयुक्तम्. संशोधकाः-शासनोन्नतिनिपुणा आचार्यवर्याः श्रीविजयमेघसूरिपादाः विख्यातिकारकः-श्रीराजनगरस्थजहांपनाहप्रतोलिकाजैनसमुदायकृतार्थसाहाय्येन श्रीआगमोदयसमितिविहित प्राक्प्रयलेन च शाह जीवनचन्द साकरचन्द जह्वेरी, अस्यका कार्यवाहकः । अस्य पुनर्मुद्रणाद्याः सर्वेऽधिकारा एतद्भाण्डागारकार्यवाहकैरायत्तीकृताः । प्रति २०... बीरसंवत् २४५९. विक्रमसंवत् १९४९. पण्यं पूर्व ८, पश्चात् १२ रुप्यकाः। काइष्टस्य सन् १९३३. मोहमयीपत्तने. PIYANANALYAAAAAAAAAAYAANAAR TANTONLILDAADITTTTTARA For Private Personal use only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Internati इदं पुस्तकं मुम्बय्यां शाह जीवनचन्द साकरचन्द जहेरी सुरत गोपीपुरा इत्यनेन 'निर्णयसागर' मुद्रणास्पदे कोलभाटवीथ्यां २६ । २८ तमे रामचंद्र येसू शेडगेद्वारा मुद्रापितं प्रकाशितं च । Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the "Nirnaya-Sagar" Press, No 26-28, Kolbhat Lane, Bombay. Published by Jivanchand Sakerchand Javeri, for Sheth Devehand Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund, at the Sheth Devehand Lalbhai Dharmashâlâ, Badekhân Chakla, Surat [All Rights Reserved by the Trustees of the Sheth D. L. J. P. Fund.] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sheth Devchand Lalbhāi Jain Pustakoddhār Fund Series. No. 82 ŚRİ KALPASUTRA BY ŚRĪMAD BHADRABAHU SVĀMIN WITH TWO VERSIONS OP SRI KĀLIKĀCHĀRYA-KATHA AND Coloured Illustrations. Price Rs. 12-0-0 (Rs. 8 for subscribers only) Copies 2000.) [A. D. 1933 For Private Personel Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SA********** The printing of all the picture blocks in different colours has been done in the Nirnaya-Sagar Press, Bombay. ** ** For Private & Personel Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Interne Sheth Devchand Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund Series. No. 18. PREFACE TO THE FIRST EDITION. VERIES WO This is the 18th Vol. of our series and comprises two books, one Kalpasūtra, and the other Yugapradhana Kalikacharya's Katha. The subject-matter of this volume was written by Shree Bhadrabhu Svāmin, sixth in descent from Lord Mahavira, as the eighth chapter of "Shree Dasha-Shruta-Skandha-Sutra". It is generally known as Kalpasutra. This being a well-known work, we do not think it necessary to say much about it, except that it was once customary with the Sadhus or the Jain monks to read it before an assembly of Sadhus only. Later on, this custom has been altered in the year 510 Vikrama Era, and it is now read by Sadhus before the laymen also. There are the following commentaries on this work :-- Name. Author. Kalpasutra-Subodhika Shree Vinayavijaya Mahopadhyaya Kalpakiranavali Dharmasagara Upadhyaya Number of Verses. 6000 4814 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Nanne. Number of Verses. Kalpalata Kalpamanjari Kalpadrumakalika Kalpadipika Kalpalaghutika Kalpantarváchya Author. Shree Samayasundara Upadhyaya Shree Ratnasāgara Shree Luxmivallabha Shree Jayavijaya (not known) Shree Kulamandana Shree Somasundara (not known) 7700 6000 (4500) 4109 3532 1000 2500 1800 1900 1500 1000 (not known) 3300 2085 700 2200 95 158 Kalpäntarashrita Vritti Kalpacharcha Pradipika Avachurirupa Vritti Avachurilesha Avachuri Niryukti Nirukta Shree Sanghavijaya Shree Udayasagara Shree Mahimeru (not known) Shree Bhadrabahu Svimin Shree Vinayachandra Jain Education inte For Private Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Name. Author. Number of Verses. Tippana Shree Prithivichandra 640 Sandehavishaushadhi (Vritti) Shree Jinaprabha Sori 3041 Out of these we have ere now published Kalpa-Subodhika of Shree Vinayavijaya Mahopadhyāya, as our seventh Volume. We are thankful to Pannyasa ( now Acharya) Shree Anandasagara Gani (Sûri ) for correcting the proof-sheets of this work, and to Pannyāsa (now Acharya) Shree Siddhivijaya Gani (Sūri), Pannyāsa (now Acharya) Shree Anandsagara Gani (Sori), Pannyasa Shree Riddhi Muni, and Shah Maganbhai Dharamchand Javeri, for supplying us with the manuscripts. 325, JAVERI BAJAR, BOMBAY, August, 1914. NAGINBHAI GHELABHI JAVERI, for the Trustees of The Sheth Devachand Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund. Jain Education Interational Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Interna चित्राङ्काः १ श्रीमहावीरस्वामी २ श्री गौतम गणधरः २ अष्ट मङ्गलानि ४ देवानन्दायाः स्वनाः ५ इन्द्रसभा ६ शक्रस्तवः ७ इन्द्रचिन्तनं ८ शक्राऽऽज्ञा ९ देवानन्दा गर्भहरणं १० त्रिशलागर्भसङ्क्रमणं श्रीकल्प ( वारसा ) सूत्रगतचित्राणामनुक्रमणिका । पत्राङ्काः चित्राङ्काः १२ लक्ष्मीः ११ त्रिशलास्माः १ २ २ १३ मल्लयुद्धं ३ ५ ६ ७ १४ स्वप्नपाठकाः १५ श्रीमहावीरजन्म १६ श्रीमहावीरजन्माभिषेकः १७ श्रीमहावीरजम्मवर्धापनिका ९ १८ आमलकीक्रीडा १० १९ पाठशालानयनं १० २० सांवत्सरिकं दानं पत्राङ्काः चित्राङ्काः २१ दीक्षामहोत्सवः २२ श्रीमहावीरदीक्षा २३ अर्धवस्त्रदानं २४ उपसर्गाः २५ श्री महावीर केवलज्ञानं १३ १९ २१ २१ २६ २६ | २६ समवसरणं २७ २९ २९ ३० २७ श्रीमहावीर निर्वाणं २८ श्री गौतम गणधरः २९ श्रीगणधरपर्षद् ३० समवसरणं पत्राक्षः ३१ ३२ ३३ ३३ ३५ ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ jainelibrary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inte चित्राङ्काः ३१ श्रीपार्श्वनाथः ३२ श्रीपार्श्वनाथस्य मातुः स्वनाः ३३ श्रीपार्श्वजन्म ३४ श्रीपार्श्वजन्माभिषेकः ३५ कमठस्य तपः नागस्य निष्काशनं नमस्कार श्रावणं च चित्रद्वयं ३६ श्रीपार्श्वस्य सांवत्सरिकं दानं ३७ श्रीपार्श्वदीक्षा महोत्सवः ३८ श्रीपार्श्वदीक्षा कल्याणकं ३९ कमठकृत उपसर्गः धरणे न्द्रागमश्च ४० श्रीपार्श्वसमवसरणं ४१ श्रीपार्श्वगणधरपर्षद् चित्राङ्काः पत्राङ्काः ४० ४४ श्रीनेमनाथः ४० ४५ श्रीनेमिमातुः स्वप्नाः ४२ श्रीपार्श्वनिर्वाणं ४३ श्रीपार्श्वसमवसरणं x 8 ४१ ४१ ४२ ४२ ४३ ४३ ४३ ४४ ४४ ४५ ४६ ४६ श्रीनेमनाथजन्म ४७ श्रीनेमनाथ जन्माभिषेकः ४८ श्रीनेमनाथ सांवत्सरिकं दानं ४९ श्रीनेमनाथ दीक्षामहोत्सवः ५० श्रीनेमिदीक्षा ५१ श्रीनेमिप्रभोः केवलं ५२ श्रीनेमिसमवसरणं ५३ श्रीनेमि (१८) गणधरपर्षद् ५४ श्रीनेमिनिर्वाणं ५५ अन्तरेषु २१ तः १२ यावत् जिनाः ५६ अन्तरेषु ११ तः २ यावत् जिनाः पत्राड़ाः ४६ ४७ ४७ ४७ ४८ ४८ ४९ ४९ ४९ ५० ५१ ५३ ५४ चित्राड्डाः ५७ श्री आदिनाथः ५८ श्रीआदिनाथमातुः स्वप्नाः ५९ श्री आदिनाथजन्म ६० शक्रकृता नमुत्थुर्णस्तुतिः ६१ श्री आदिनाथाभिषेकः ६२ श्रीआदीश्वरराज्याभिषेकः पत्राङ्काः ५५ ५५ ५६ ५६ ५६ ५७ ६३ श्री आदिनाथराज्यारोहणं ५७ ६४ श्री आदिनाथसांवत्सरिकं दानं ५८ ५८ ५८ ६५ श्री आदिनाथदीक्षामहोत्सवः ६६ श्री आदिनाथदीक्षा ६७ श्री आदिनाथसमवसरणं ५९ ६८ श्री आदिनाथस्य (८४) गणधराः ५९ ६९ श्री आदिनाथनिर्वाणं ६१ इति चरित्राणि - प्रथमं वाच्यं । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रा पत्रासाः चित्राकाः पत्रावाः । ७० श्रीगणधरपर्षद् ६२ ८० आचार्यश्रीगुणसुन्दरः७१ कूपसर्पसिंहवेश्यास्थानेषु कालिककुमारश्च चातुर्मासिकानि ७२ रथिककला कोशानृत्यं च ६४८१ गदाभलपर ७३ श्रीस्थूलिभद्रस्य सप्त भगिन्यः ६५ | ८२ आचार्यश्रीकालिकाचार्यः ७४ श्रीवज्रस्वामिनः पालनं ६८ शालिवाहनश्च | इति स्थविरावली-द्वितीयं वाच्यं ।। ८८ | ८३ श्रीकालिकसूरिपाचे प्रमादि७५ श्रीमहावीरप्रभुः शिष्यागमनं सागरचन्द्रसूरेः ७६ श्रीजम्बूस्वामी-(परिषद्) ७० ७७ वर्षासमये वसतिस्थाने साधुः ७४ क्षामणं च ८८ ७८ श्रीमहावीरप्रभुः ८४ विप्ररूपेण शक्रः श्रीकालिकसूरिश्च ८९ |७९ साधुश्रावको ८२८५ श्रीकालिकसूरिः शक्रश्च ८९ इति सामाचारी-तृतीयं वाच्यं । इतिकल्पसूत्रं (बारसासूत्रं)। इति श्रीकालिकाचार्यकथा। चित्राङ्काः पत्राकाः ग्रन्थारम्भे-अन्यचित्राणामनुक्रमणिका। १ इलादुर्गताडपत्रीयकल्पसूत्रप्रते राद्यान्तपत्रयोः प्रतिकृतिः २ इलादुर्गताडपत्रीया-अन्तरवाच नाद्यन्त्यपत्रप्रतिकृतिः ३ इलादुर्गीयताडपत्रीयः कमठोपसर्गः ४ इलादुर्गताडपत्रीयानि-अष्ट मंगलानि Jain Education Inteman For Private & Personel Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेठ घेलाभाई लालभाई जह्वेरी केशर बरास फंडना प्राणदाता, ख. शेठ घेलाभाई लालभाई जहेरी. निर्वाणम् वि. सं. १९५१. सुरत. Sheth Ghelabhai Lalbhai Javeri. Died 1951 Vikram year in Surat. Sam Educaron international For Pool En Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेठ नगीनभाई बेलाभाई जैन हाईस्कूल सुरखना प्राणदाता, लाभाई जहेरी. स्व. शेठ नगीन भाई जन्मतिथि सं. १९३२ चैत्र वद ५ गुरु. ता. १३ एप्रिल १८७६. सुरत. स्वर्गवास - सं. १९७८ कारतक बंद ५ रवि. ता. २० नवें. १९२१. मुंबई. The Late Sheth Naginbhai Ghelabhai Javeri. Born 13th April 1876 A. D., Surat. Died 20th Nov. 1921 A. D., Bombay. www.jainatorory.org Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेठ देवचन्द जैन पुस्तकोद्धार संस्थाना संस्थापक, ख. भाई गुलाबचन्द देवचन्द जह्वेरी. जन्मतिथि स्वर्गवाससं. १९४५ भादरवा शुद १४ सं. १९८३ फागण शुद ५ ता. ७ सप्हेंबर १८८९. ता. ८ मार्च १९२७. सुरत. The Late Gulabchand Devchand Javeri. Born 7th Sept. 1889 A.D., Surat, Died 8th March 1927 A.D., Bombay, SIA Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठी देवचन्द लालभाई जव्हेरी. जन्म १९०९ बैंक्रमाब्वे निर्याणम् १९६२ वैक्रमाब्द कार्तिकशुकादश्यां (देवदीपावली सोमवासरे) पौषकृष्णतृतीयायाम् (मकरसंक्रान्त मेदवासरे) सूर्यपूरे. मुम्बयाम्. The Late Sheth Devchand Lalbhai Javeri Born 22nd Nov. 1852 A. D. Surat Died 13th January 1906 A. D. Bombay. Lakshmi Art, Bombay, 5. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशमपीयूष पयोनिधि- परम तपस्वी पूज्यपादतपोगच्छ गगनाङ्गणदिनमणिसूरिपुरन्दर श्रीमद्विजयसिद्धिरीश्वर-पट्टपभावक- गाम्भीर्यगुणनिरधि देशना सुधावारिवाह-शासनरक्षक-सूरिप्रवर श्रीमद्विजयमेघसूरयः जन्म-विक्रम सं. १९३२ मागसर सुद ८ रांदेर (रानेर). दीक्षा-वि. सं. १९५८ कास्तक वद ९ मीयागाम (करजण). गणि पं. पद वि. सं. १९६९ कारतक बंद ४ छायापुरी (छाणी). सूरिपद- वि. सं. १९८१ मागसर सुद ५ राजनगर. Lakshmi Art, Hombay, b Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personal Use आगमोद्धारकाः आगमव्याख्याप्रज्ञाः तपोगच्छ गगन मार्तण्डाः सूरिपुङ्गवाः १००८ श्रीमन्त आनन्दसागरसूरीश्वरा : योऽदत्तागमवाचनां प्रशमिनां येोद्धृता आगमा ज्ञानं यस्य समशास्त्रविश्यं चारित्रमत्युज्ज्वलम् । यो राजप्रतिबोधकृन्मुनिवर: सिद्धान्तसंशोधक : श्री आनन्द पयोनिधिर्विजयते सोऽयं हिं सूरीश्वरः ॥ १ ॥ जन्म - विक्रम सं. १९३१ कर्पटवाणिज्ये. दीक्षा- वि. सं. १९४७लीमडी पुर्याम् पं. पद वि. सं. १९६० राजनगरे. आचार्यपद-सं. १९७४ सूर्यपुरे. A 814 Lakshmi Art, Bombay, s Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S नमः श्रीगणधरेन्द्राय. श्रीकल्पसूत्रस्य प्रथमसंस्करणस्योपोद्घातः । ACARRISHISHESANSACREDCROSSANSEX समादीयतां सज्जनमनश्चमत्कृतिकारकपवित्रचारित्रैः सुमनोभिः सुमनस्ततिनतचरणसरोजैनिर्णाशिताशेषसत्त्वसार्थतत्त्वविचारविलोपकदोषपोषोदयैः षष्ठपट्टपूर्वाचलार्यमभिः श्रुतकेवलिभिः श्रीमद्भिर्भगवद्भिर्भद्रबाहुस्वामिभिः प्रागपि प्रतिपर्युषणं कर्षणीयं ६ कृष्टकषायवीजैराजवंजवीभावविभावनभग्नसंसारवासनैमुनिमतल्लिकाभिः कल्पाय मङ्गलाय चोद्धृत्यात्मप्रवादनावाप्तयथार्थनाम्न आत्मप्रवादादैदंयुगीनाल्पमेधआयुर्धारणादिगुणात्मार्थिजनानूनकल्याणकोटिकल्पनालम्भविष्णु कल्पसूत्रणसूत्रधारायमाणं श्रीकल्प है सूत्रं दशाश्रुतस्कन्धलक्षणच्छेदसूत्राष्टमाध्ययनतया न्यासीकृतं, पुत्रमृतिजव्याधिविकर्त्तितशुभसङ्कल्पेन ध्रुवसेननृपेणानन्दपुरे समहं | सभासमक्षं वाचयितुमारब्धं, तदनु सङ्घसमक्षमनुसंवत्सरमर्वाक् साँवत्सरिकप्रतिक्रमणात् पञ्चभिरहोभिः कर्षणीयं कर्मततिकपगकल्पनातीतसामर्थ्यम् । तत्र प्रथमं वाच्यं जिनचरिताख्यं द्विशत्या साष्टाविंशया, द्वितीयं स्थविरावलीलक्षणं त्रयस्त्रिंशत आचार्याणां परम्पराप्रविष्टानां सूत्राणामेकषष्ट्या, सामाचारी तु चातुर्मासीकल्पानुशीलनीया निर्ग्रन्थानां निर्ग्रन्थीनां च तृतीयवाच्यत्वेनाभिमता सूत्रचतुःषष्ट्या सूत्रितेति देवगुरुधर्मविषयकशुभभावनाप्रकर्षोत्पादकतवर्णनास्वरूपोपलम्भाविगीतपुरुषपरम्परोद्गीतकल्पनातिगमोक्षफलसम्पादनक्षमा कल्पपादपोपमानताऽस्य नातिशयोक्तिमङ्गीकरोति । तदेवमवश्यप्रादुर्भावनीयस्यास्य प्रादुर्भावे यद्यपि दृष्टचरा Jain Education Intem For Private Personel Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Interni आहितयला अनेके तथापि प्रतिवाचंयमं अनुपुरग्रामं चावश्यकतामा कलय्यास्माभिरप्यत्रायतितमाप्तागमश्रवणश्रावणसाहाय्यवितरणजातभक्तिरागप्रबन्धैर्मुद्रापयितुं पोडशशतीयप्राचीन शुद्धतमसावचूरिकसवृत्तिकपुस्तकानुसारेण विशोध्य केवलं दृढतमपत्रेषु वर्यतममुद्रणास्पदीय श्रेष्ठतमसी सकाक्षरैर्मुद्रितत्वाद् भविष्यत्यादरो महनीयो महाशयानामत्र, इदमेव चात्र निबन्धनं सर्वेषां वाङ्मयानामेकजातीयेष्वेव श्रेष्ठतमेषु पत्रेषु मुद्रणे । वेतनं तु श्रेष्ठिवर्यदेवचन्द्रवितीर्णतदात्म जगुलाबचन्द्रव्यवस्थापिततदङ्गजाविद्युन्मती ( बीजकोर ) परिबृंहितलक्षद्रम्ममिततद्भाण्डागारीयवृद्धिव्ययादागतव्ययादर्धमेव सर्वेषु मुद्यमाणेषु पुस्तकेषु क्रियतेऽत्र, तथाऽस्मिन्नपि स्थापितं तदेवावलम्व्याणकाष्टकम् । चार्चिकं त्वन्यदस्यावृत्ती कस्याश्चिद् मुद्रयिष्यमाणायामाविर्भावयिष्यामः सज्जनानां पुरत इति विरम्यतेऽस्माभिरधुनेत इति निवेदयन्ति आनन्दसागराः पत्तने वीरसंवत् २४४० श्रावण शुक्लचतुर्थ्याम् ॥ w.jainelibrary.org Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ છે અT ॐ नमो समणस्स भगवओ महावीरस्स । કિંચિત્ નિવેદન. આ બારસાસૂત્ર ત્વરિત બહાર પડ્યું જોવાની ઘણા મહાશની પરમ ઉત્કંઠા હતી અને છે. સવિરતર વિગતો વિના મૂલમાત્ર પણ | S S 1 2 : સવર બહાર પાડવું, એવી, થાકાની અભિલાષા અને આગ્રહને અંગે પવિત્ર પર્વાધિરાજ શીપયુર્ષણપર્વ-પૂર્વી કોઈ પણ સંગેમાં પ્રાપાસે બરસાસુત્ર પહોંચતું કરવું એવી, પ્રબલ ભાવના મને પણ ઉભથી ! તે મુજબ આ વાંચે |સમક્ષ શ્રી બારસાસ્ત્ર પ્રગટ કરતાં હું આનન્દ અનુભવું છું ! એગ્ય ચિત્રો સહિત માત્ર મૂલસૂત્ર અને શ્રી કાલિકાચાર્યસૂરિની બે કથાઓજ પર્યુષણ-પૂર્વ બહાર પાડી શકે તેટલી જ શક્તિ, નાઅને સમય હાથમાં હોવાથી માત્રજ બહાર પાડવામાં સંતોષ માને રહ્યો! આ ગ્રન્થ શ્રીઆગમેદય સમિતિ તરફથી બહાર પાડવાને હતા, તેથી તેની સઘળી તૈયારી સમિતિએ કરી રાખેલી હતી, પરન્તુ તે અલભ્ય લાભ સમિતિએ અમને આપવાથી અન્તઃકરણપૂર્વક સમિતિના કાર્યવાહક મહાશયને ઉપકાર માનીએ છીએ. ચિત્રોના પ્લેકા બનાવવામાં રતલામની શેડ રીખવદેવજી કેશરીમલજીની પેઢી મારફતે અમદાવાદની (જહાંપનાહ)-ઝાંપડાની પોળના ચહેરાને મદદ કરી, તથા એજ પિળના ગૃહસ્થાએ બીજી પણ જે રકમની મદદ કરી તે માટે અન્તઃકરણથી ઉપકાર માનીએ છીએ. nan For Private Personal use only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ૬ - સમયના અભાવે પ્રતિ આપનાર, બ્લેકિન આપનાર અને અન્ય તમામ પ્રકારની મદદ કરનાર તેમજ સંશોધક મહાવ્યક્તિને | સર્વ-એકત્ર ઉપકાર માનવા સિવાય અન્ય કોઈ વિશેષ લખવું ઉચિત ધાર્યું નથી. પાના ૧૩ ઉપર આપેલું લક્ષ્મીદેવીનું ચિત્ર અને સૂત્રોનુસારે નવું આલેખાવીને, અને શ્રીગૌતમસ્વામીનું ચિત્ર અમદાવાડાદના શેર સારાભાઈ નવાબે નવું આલેખાવેલ તે મૂક્યાં છે. બાકીના ચિત્રો અને નમુનાએ પ્રાચીન તાડપત્રી તથા સેનેરી-રૂપેરી અને સાદી પ્રતો વિગેરે ઉપરથી લીધા છે. ઇડરના શેઠ આણંદજી મંગળની પેઢીએ પિતાના જ્ઞાનભંડારમાંથી અલભ્ય તાડપત્રીની (બારસાસૂત્રની) પ્રત અને લાંબા, વર્ષપર્યન્ત ધીરવા માટે પેઢીના કાર્યવાહક મહાશને અંતઃકરણથી ઉપકાર માનીએ છીએ. એ તાડપત્રી પ્રતિના આધારેજ આ મહાન કાર્ય કરવા ભાગ્યશાલી થયા, એટલું જ કહી અત્ર વિરમીએ છીએ. - - સેવકે. - સુરત ગોપીપુરા, વિ. સં. ૧૯૮૯ શ્રાવણ સુદ ૫. (શ્રીનેમિજન્મકલ્યાણક) તા ૨૭-૧૯૩૩ ગુરૂવારે. વણચંદ સાકરચંદ જવેરી, અને અન્ય માનદ સંચાલકે - - Jain Education Inter - C ainelibrary.org Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पणपत्रम्। अयि तपागच्छगगनमार्तण्डाः! सैद्धान्तिकतार्किकवैयाकरणचक्रवर्तिनः! सततं शास्त्रसंशोधनकर्मनिरताः! समस्तमुनिमण्डलाय-आगमवाचनादातारः! पुण्यस्मरणाः! सैलानाराज्यनरेशप्रतिबोधकाः ! आगमोद्धारका आचार्यवर्याः १००८ श्रीमदानन्दसागरसूरीश्वरपादाः! भवत्सदुपदेशादद्यावधि प्रकाशितप्राकृतसंस्कृतादिशास्त्रग्रन्थसमूहः 'श्रेष्ठी देवचन्द्र लालभाई' इत्यभिधानः 'जैनपुस्तकोद्धारभाण्डागार' आगमप्रकाशनकारिणी श्रीमती आगमोदयसमितिनाम्नी संस्था च प्रादुर्भूय महोपकारकं प्रकाशनकार्यं कुर्वातेतराम्, अत एव परोपकारप्रवणानां तत्रभवतां पवित्र करकमलेषु समर्प्यतेऽस्माभिरिदं सर्वश्रुतप्रधानं सूत्रं भवदभिलाषाहतेऽपि अस्मदपरि च सर्वदा भवन्तु कृपाकूपारा भवन्त इत्यभ्यर्थनापूर्वकं वयं विरमामः । सूर्यपूरे विक्रमसंवति १९८९ भवदीयचरणसेवासमुत्सुकाः तमे आषाढमासे पूर्णिमायां जह्वेरीत्युपाह्वः साकरचन्द्रात्मजो जीवनचन्द्रः शुक्रवासरे. अन्ये मानदसञ्चालकाश्च । ROCCARBORECASARGAOKESCORECASCC CARRESS 4 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मामामाया ग्णामामाङिमायानामामुपदताणान टाणानामानवझायाणानामालापस। हाशासamawणासायमिंगला। आलतणकारतातसमयसमा वहाबव्हावातिंडादादिबत्तरादिव मामिहाग विमाशा वसनसिक वावमा ੨ ॥ पढमरयास हावीरपंच श्वकाता Mबी बाजाम ofitwीसावयागोविज्ञसाविद्या मीणामझामवण्ठमारमानापलास पाकागानासमझटपासमादमय समलटासवागराणाखाकाजामदास बाकाणामाममहमझयासम्मन्नास बज्ञपीदवा एक सकारण इतिवमित यछाया छापकासका बाबाखाडाखा इडरना शेठ आणंदजी मंगळजीनी पेढीना ज्ञानभंडारनी बारसासूत्र-ताडपत्रीनी प्रतना पहेला अने छेल्ला पानानो नमूनो. ताडपत्री पानानुं माप-लंबाई ईंच १३३ थी १४३. पहोलाई इंच १५ थी २३. Jam Education international For privatpersonal only www.jainetorary.org Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Int સમર્પણપત્ર. શ્રીમત્તપાગચ્છગગનનભામણું સ્વપરસસિદ્ધાન્તચક્રવર્તી સકલવ્યાકરણસાહિત્યદર્શનાધાચાર્ય સતત શાસ્ત્રસંશોધનકાર્યતત્પર, સમસ્તસાધુસમૃદ્ગગમવાચનાદાતાર, પુણ્યસ્મરણુ, સૈલાનાનરેશપ્રતિબોધક, આગમાદ્વારક આચાયવચ્ચે ૧૦૦૮ શ્રીમાન આનન્દસાગરસૂરીશ્વરજી કે જેમના સદુપદેશથી રોડ દેવચંદ લાલભાઇ જૈનપુસ્તકેાદ્વાર ફંડ, તથા શ્રીમતી આગમેદય સમિતિ નામની બે અજોડ પુસ્તકપ્રકાશન-સંસ્થા અસ્તિત્વમાં આવીને, જેમના સતત્ શુભ પ્રયાસ તથા પરમ કૃપાથી અનેક પ્રાકૃત–સંસ્કૃત શાસ્રગયા આજ પર્યંત અવિરતપણે પ્રકાશિત કરતી આવી છે, તેમના પુનિત કરકમલમાં સર્વદ્યુત પ્રધાનસ્ત્ર શ્રીકલ્પસૂત્ર (બારસાસ્ત્ર) ભક્તિભર નગ્ન હૃદયે સમર્પણ કરી કિંચિત્ કૃતકૃત્ય થઇએ છીએ. પૂર્વ સુરીશ્વરજીની અનુજ્ઞા વિના આવી ધૃષ્ટતા દર્શાવવા માટે અત્યંત ભાવપૂર્વક ક્ષમા યાચીએ છીએ. સુરત, જુલાઈ ૧૯૩૩, વિ. સં. ૧૯૮૯, આષાઢીપૂર્ણિમા, શુક્રવાર, જીવણચંદ સાકરચંદ જવેરી, તથા અન્ય માનદ સંચાલકો, ority.org Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रणांनमामावीतरागाठायणमावीरमाखायीसमिविधिदार स्पडर्मिसाकिंचितामादपिखामायश्विानार्थमात्मनायताथ कारावाक्यालकाजीरावधश्याकालाक्षिकत्तावसचिमा लोकधागाणामधिमामानाबालासनिजतानमीडरिता समाचाराधिसवत्तीविकालावादिपिछामावलियाईसमय वशाधनविनाधिसखावशिचरुवाकालममाटगाईराइकालममा श्रावस्यपछडारखालावाहातरठातायतामा कालिलावातइतिधाममालीशासस्मितसमवानवाववादलासा वाधारकाततिातशिानयासालगवानावादावादरणवशामायण मनायायायविंशतिभावण्यामाचागंशाहाकालसबाटयविधिसमटा । यणकानमविणधिनमकालरूपसमयासवाईराकाणापिसवल्यालाय याासवशवरावकालाविनवतितावापरावधष्ठामाकानखातामा ३५ डिकनपटिशविटीमाबाटडयकाबाम्बाडामवासिरामितिमा माटांतिकाक्षिामासादकारनायटिकमाताहाशिम २१द्यासाधाकटसम्माकिटकहिममनाकहिातमिलिगद्यादि। जियाबसन्त्रावामागचागताविनहाधिद्यापवेमिझियमा555lE बालकहनियामानावयतावादाणाकालानिया पापाचारावितिकणमसामिलारनासम्मकारागार काहियामाचसाहमानि कालवणाय विद्यापसानिमियाकाशणागहमतिलगंगाराम ममतामयणादिवसर्थकाणाडामरामवाशुद्यातायात अधिासंबाध्यdिimuडियायशाकाहमिहाकश्यामडावसेना पटनायसनायामाझमायणटावालामलदाछणाधिवमध्याय इडरना शेठ आणंदजी मंगळजीनी पेढीना ज्ञानभंडारनी बारसासूत्र-अंतरवाचनानी ताडपत्रीना पहेला अने छेल्ला पानानो नमूनो. ताडपत्री पानानुं माप-लंबाई ईच १३, थी १३.. पहोलाई इंच २ थी २. FanFone Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठि-देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारे श्रीदशाश्रुतस्कन्धे श्रीपर्युषणाकल्पाख्यं स्वामिश्रीभद्रबाहुविरचितम् श्रीकल्पसूत्रम्. (श्रीवारसासूत्रम्-सचित्रम्.) RECASCARRIACALSCRECASCENCESSES LANASALUCANCSCOCCACANCERS डाएदबत्तरा शहिंधणाता विलवाना कालगात मासग्रहामा दिखाडसावा Erful दिशाणसखा समपणसम पारकासा कल्पसू For m ore Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- श्रीमहावीरस्वामी कल्प वारसा ॥१ ॥ ॐ श्रीवर्द्धमानाय नमः ॥ॐ॥ अहं ॥15 महावीर चरि० नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो || आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सवसाहूणं ॥ एसो पंचनमुक्कारो, सवपाव-18 प्पणासणो। मंगलाणं च सवेसिं, पढमं हवा] मंगलं॥१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे | भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे हुत्था, तंजहाहत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्भं वकंते१हत्थुत्तराहिं गब्भाओगब्भं साहरिए २हत्थुत्तराहिं जाए ३ हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ है। अणगारिअं पवइए ४ हत्थुत्तराहिं अणंते है सत्रद्वयमेतदीयं संख्यातम् । 40-56 SainEducationie For Free on non Cametormy.om Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11= difer Jam Education I अणुत्तरे निवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुने केवलवरनाणदंसणे समुपपन्ने ५ साइणा परिनिबुए भयवं ६ ॥ २ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्टमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्टीपक्खेणं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाओ महाविमाणाओ वीसंसागरोवमट्टिइयाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्डूभरहे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए For Private & P COMMASA Sineliorary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा RRC-4445C- चरि० ॥ २॥ AASCACANCC-ASCAM अष्ट मंगलानि विइक्कंताए १ सुसमाए समाए विइक्वंताए २ सुसमदूसमाए । महावीरसमाए विइक्कंताए ३ दूसमसुसमाए समाए बहुविइक्कंताएसागरोवमकोडाकोडीए बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिआए ? पंचहत्तरिवासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसेहि-इक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुलसमुप्पन्नेहिं कासवगुत्तेहिं, दोहि य हरिवंसकुलसमुप्पन्नेहि गोयमसगुत्तेहिं, तेवीसाए तित्थयरेहिं विइक्वंतेहिं, समणे भगवं महावीरे चरैमति-13 त्थयरे पुवतित्थयरनिद्दिढे माहणकुंडग्गामे नयरे उसभ-13 दत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए। माहणीए जालंधरसगुत्ताए पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं । आहारवकंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्रते ॥३॥ समणे भगवं है। १ (१-३) साए । २ चरिमे । DainEection Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवानंदा-खमा ITISGE महावीरे तिन्नाणोवगए आविहुत्था-चइस्सा६ मित्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, चुएमित्ति जाणइ ॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महा₹ वीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वकंते तं रयणिं च णं सा है देवाणंदा माहणी सयणिजंसि सुत्तजागरा ओहीहरमाणी २ इमेआरूवे उराले कल्लाणे सिवे धन्ने समगल्ल सस्सिरीए चउद्दस महामुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा-गर्य-वसह-सीह-अभिसेोंदाम-ससि-दिणयरं झयं कुंभ । पउमसर-सागरे-विमाणभवणे-रयणुच्चय-"सिहिं च॥१॥४॥ १ मे ए-कि० सु०। Sam-Enection For Frivanspesional ten Only blorary Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा चरि० SSACROSAROCALCA तए णं सा देवाणंदा माहणी इमे एयारूवे उराले कल्लाणे सिवे धण्णे मंगल्ले सस्सिरीए । महावीरहै चउद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्ठतुद्वचित्तमाणंदिआ पीइमणा परमसोहै मणस्सिआ हरिसवसविसप्पमाणहियया धाराहयकलंबुगंपिव समुस्ससिअरोमकूवा सुमि-* णुग्गहं करेइ, सुमिणुग्गहं करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुटेइ, अब्भुद्वित्ता अतुरिअमचवलम-हूँ| संभंताए अविलंबिआए रायहंससरिसीए गईए जेणेव उसभदत्ते माहणे तेणेव उवागच्छइ, । उवागच्छित्ता उसभदत्तं माहणं जएणं विजएणं वदावेइ, वद्धावित्ता सुहासणवरगया आसत्था । वीसत्था करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ठ एवं वयासी ॥५॥-एवं खलु अहं देवाणुप्पिआ! अज्ज सयणिजंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ इमेआरूवे उराले ? जाव सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा-गय जाव सिहिं च ॥६॥ एएसिं णं उरोलाणं जाव चउदसण्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे 8 ॥३॥ भविस्सइ ?, तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणंदाए माहणीए अंतिए एअमटुं सुच्चा नि-13 १ (१-२) कर्यबपुष्पगंपिव । २(१-२) भद्दासण। ३ (१-२) सुहासणवरगया क०। ४ मे ए-कि. सु.। ५ (१-२) देवाणुपिआ! उ०15 Jan Educatan Inteme jainelibrary.org Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intern सम्म हट्टतुट्ट जाव हिअर धाराहयकेलंबु अंपिव समुस्ससियरोमकूवे सुमिणुग्गहं करेइ, करित्ता ईहं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुवएणं बुद्धिविन्नाणेणं | तेसिं सुमिणाणं अत्थुग्गहं करेइ, करिता देवानंदं माहणिं एवं वयासी ॥ ७ ॥ उराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, कल्लाणां सिवा धन्ना मंगल्ला सस्सिरिआ आरोग्गतुट्टिदीहा| उकल्लाणमंगल्लकारगा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, तंजहा - अत्थलाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो देवाणुप्पिए ! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए ! सुक्खलाभो देवाणुप्पिए !, एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्टमाणं राइंदिआणं विइक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुन्नपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेअं माणुम्माणपमाणपडिपुन्नसुजायसवंग सुंदरंगं स सिसोमाकारं कंतं पिअदंसणं सुरूवं देवकुमौरोवमं दारयं पयाहिसि ॥ ८ ॥ | सेsविअ णं दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमित्ते जुवणगमणुपत्ते रिउअ - जउवेअ| सामवेअ- अथवणवेअ इतिहासपंचमाणं निग्धंटुछट्टाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चरण्हं वेआ१ कयंत्रपुष्फगं. कि. सु. २ णाणं-कि-सु० । ३ नास्ति प्र० । ४ ९ कि०सु० । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरि० कल्प बारसा० ॥४॥ णं सारए पारए धारए, सडंगवी, सद्वितंतविसारए, संखाणे सिक्खाणे सिक्खाकप्पे वागरणे : महावीरछंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु अ बहुसु बंभण्णएसु परिवायएसु नएसु सुपरिनिट्ठिए । आविभविस्सइ॥९॥तं उराला णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा, जाव आरुग्गतुट्ठिदीहाउयमंगल्लकल्लाणकारगा गं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठत्ति कट्ठ भुजो भुजो अणुवूहइ । है॥१०॥ तए णं सा देवाणंदा माहणी उसभदेत्तस्स अंतिए एअमटुं सुच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ जाव हियया जाव करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंकट उसभदत्तं माहणं एवं वयासी ॥ ११॥ एवमेयं देवाणुप्पिआ! तहमेयं देवाणुप्पिआ! अवितहमेयं देवाणुप्पि-| आ! असंदिद्धमेयं देवाणुप्पिआ! इच्छियमेअं देवाणुप्पिआ! पडिच्छिअमेअं देवाणुप्पिआ! इच्छियपडिच्छियमेअं देवाणुप्पिआ! सच्चे णं एसमटे से जहेयं तुब्भे वयहत्ति कट्ट ते सुमिणे । सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता उसभदत्तेणं माहणेणं सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई | १पारए वारए धारए-कि० वारए धारए-सु०। २परिनिहिए-सु०। ३१० कि० सु०। ४११ कि० सु०। ५ उसभदत्तस्स माहणस्स कि० सु०। ६ एस अट्टे । ४ ॥ Jain Education Intem For Private & Personel Use Only G aw.jainelibrary.org Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंद्रसभा. भुंजमाणी विहरइ ॥ १२ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वजपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्ड लोगाहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे बत्तीसविमामाणसयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे आलइअLE|मालमउडे नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलि| हिज्जमाणगल्ले महिड्डिए महर्जुइए महाबले महायसे महाणुभावे महासुक्खे भासुरबुंदी पलंबवणमालधरे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए विमाणे सुहम्माए सभाए सक्कंसि सीहासणंसि, से गं तत्थ बत्तीसाए विमाणवाससयसाहस्सीणं, चउ १ जु। २ बों। ३ वडंसए । JAHRESHAAAAAAAAAAA064% CAKACAKACEBCAMACHALGADCASCARSHA Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसा० चरि० ॥ ५ ॥ कल्परासीए सामाणिअसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्ग-2 महिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणीआणं, सत्तण्हं अणीआहिवईणं, चउण्हं । चउरासीएं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं वेमाणिआणं देवाणं । देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीयवाइअतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडपडहवाइयरवेणं दिवाइं भोगभोगाई। भुंजमाणे विहरइ ॥ १३॥ इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे २ विहरइ, तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे| माहणकुंडगामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गम्भत्ताए वक्वंतं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए । दिए परमानंदिए पीअमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुमचंचुमालइयऊससियरोमकूवे विकसियवरकमलनयणवयणे पयलियवरकडगतुडिय १ (१-२) एणं । २१४ कि. सु.। ३ (१-२) कयंव। ४ लाणणनयणे सु. । ॥ ५ ॥ Jain Education Inter For Private & Personel Use Only T ww.jainelibrary.org Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्रस्तव. केऊरमउडकुंडलहारविरायंतवच्छे पालंबपलंबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरिअं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुटेइ, अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेरुलिय वरिटुरिटुंजणनिउणोवि (वचि) अमिसिमि+सिंतमणिरयणमंडिआओपाउयाओओमुअइ, ओमुइत्ता एगसाडिअं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता अंजलिमउलिअग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, सत्तट्टे पयाई अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणिअलंसि साहहु तिक्खुत्तो १ नास्ति प्र.। SamEducation i nal FarPrvam Akemonalitimonly Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप बारसा ॥ ६॥ PRAKAASARAGACASSOCIAL मुराणं धरणियलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पचुन्नमइ, पञ्चुण्णमित्ता कडगतुडिअर्थ- महावीर चरि० भिआओ भुआओ साहरेइ, साहरित्ता करयलपरिग्गहिअं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए। |अंजलिं कट्ठ एवं वयासी ॥ १४॥ नमुत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं, आइगराणं तित्थय-है। राणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपजोअगराणं, अभयदयाणं चक्खु-17 दयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं, धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मना-2 यगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउंरतचक्कवट्टीणं, दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा अप्पडिहय-3 वरनाणदंसणधराणं विअट्टछउमाणं, जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं, सवण्णूणं सबदरिसीणं, सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमवाबाहमपुणरावि-15 त्तिसिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जियभयाणं ॥ नमुत्थु णं समणस्स भग-18 वओ महावीरस्स आइगरस्स चरमतित्थयरस्स पुवतित्थयरनिद्दिट्ठस्स जाव संपाविउकामस्स॥ १ १५ कि.। SainEnccnmonam Fonte Pennon D ainstormy.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसू. २ Jan Education वंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इह गए, पासई मे भगवं तत्थ गए इह गयंतिकट्टु समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने ॥ तए णं तस्स सक्कस्स | देविंदस्स देवरन्नो अयमेआरूवे अब्भत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थां ॥ १५ ॥ न खलु एयं भूअं, न एयं भवं, न एयं भविस्सं, जं णं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा किर्वणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा माहणकुलेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा १ उ । २ अङ्कोऽधिकोऽत्र । ३ वि । इंद्रचिंतनं. bate brary.org Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 कल्प वारसा० चरि० MARACHARANASANASANCHAR आयाइस्संति वा ॥ १६॥ एवं खलु अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा महावीरउग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्णकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरि-है। वंसकुलेसु वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइकुलवंसेसु आयाइंसु वा आयाइंति वा । आयाइस्संति वा ॥ १७॥ अत्थि पुण एसेऽवि भावे लोगच्छेरयभूए अणंताहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं विइकंताहिं समुप्पज्जइ, (ग्रं. १००) नामगुत्तस्स वा कम्मस्स अक्खी-12 णस्स अवेइअस्स अणिज्जिण्णस्स उदएणं जं णं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छ० दरिद्द० भिक्खाग० किवण. आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा, कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा वक्कमति वा वक्कमिस्संति वा, नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणेणं निक्खमिंसु वा निक्खमंति वा निक्खमिस्संति वा । ॥ १८ ॥ अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए ११७ कि. सु.। २१८ कि. सु.। ३ वि। ४१९ कि. सु. । Jain Education Inter For Private Personel Use Only Khw.jainelibrary.org Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inter कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते ॥ १९ ॥ तं जीअमेअं तीअपञ्चुप्पन्नमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवरायांणं अरहंते भगवंते तहप्पगारेहिंतो अंतकुलेहिंतो पंतकुलेहिंतो तुच्छ० दरिद्द ० भिक्खाग० किवैणकुलेहिंतो तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा रायन्नकुलेसु नायखत्तियहरिवंसकुलेसु वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइकुलवंसेसु वा साहरावित्तए, तं सेयं खलु ममवि समणं भगवं महावीरं चरमतित्थयरं पुवतित्थयरनिद्दिट्टं माहणकुंडग्गा| माओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगुत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तिआणीए वासिट्ठसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साह - वित्तए । जेऽविय णं से तिसलाए खत्तियाणीए गब्भे तंपिय णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गन्भत्ताए साहरावित्तएत्तिकट्टु एवं संपेहेइ, एवं संपेहित्ता हरिणेगमेसिं अग्गाणीयाहिवरं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ॥ २० ॥ एवं खलु देवाणुप्पिआ ! १ २० कि. सु. । २ ई । ३ वि । ४ जाव रञ्जसिरिं कारेमाणेसु पालेमाणेसु । ५ (१ - २) पायताणीया० । ६२१ कि. सु. । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा महावीरचरि० ॥ ८ ॥ AACARSACANCCSCAL न एअं भूअं, न एअं भवं, न एअं भविस्सं, जंणं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंत० किवण दरिद्द० तुच्छ० भिक्खाग०, आयाइंसु वा ३, एवं । खलु अरिहंता वा चक्क० बल० वासुदेवा वा उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्ण० नाय०11 खत्तिय० इक्खाग० हरिवंसकुलेसु वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइकुलवंसेसु आयाइंसु वा ३॥२१॥ अत्थि पुण एसेऽवि भावे लोगच्छेरयभूए अणंताहिं उस्सप्पिणीओस-* प्पिणीहिं विइकंताहिं समुप्पज्जति, नामगुत्तस्स वा कम्मरस अक्खीणस्स अवेइअस्स अणिजिण्णस्स उदएणं, जं णं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु । वा पंतकुलेसु वा तुच्छ० किर्वण दरिद्द० भिक्खागकुलेसु वा आयाइंसु वा ३, कुच्छिसि । गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा वक्कमति वा वक्कमिस्संति वा । नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणेणं निक्खमिंसु वा ३॥२२॥ अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे ॥८॥ माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए १ वि। २ २२ कि. सु.। ३ णीहिं कि.। ४ वि। ५२३ कि. सु. । Jain Education Interne For Private & Personel Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intera माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गव्भत्ताए वक्कते ॥ २३ ॥ तं जीअमेअं तीअपचुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवराईणं अरहंते भगवंते तहप्पगारेहिंतो अन्तकुलेहिंतो पंतकुलेहिंतो तुच्छ० किवण ० दरिद्द० वणीमग० जाव माहणकुलेहिंतो तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्ण० नाय० खत्तिय ० इक्खाग० हरिवं० अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुजाइकुलवंसेसु साहरावित्तए ॥ २४ ॥ तं गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिआ ! समणं भगवं महावीरं | माहण कुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए | माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स | खत्तियस्स कासवगुत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्टसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए । साहराहि, जेऽविअ णं से तिसलाए खत्तियाणीए गब्भे तंपिअ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहराहि, साहरित्ता ममेयमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पि णाहि ॥ २५ ॥ तए णं से हरिणेगमेसी अग्गाणीयाहिवई देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं १२४ कि. सु. । २२५ कि. सु. । ३२६ कि. सु. । ४ ( २३ ) पायत्ताणीया० । w.jainelibrary.org Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा शुक्राज्ञा. चरि. ॥ ९ ॥ SAARISTOSASSASSASSASSASS वुत्ते समाणे हटे जाव हयहियए करयल महावीरजावत्तिकडे एवं जं देवो आणवेइत्ति आणाएR विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउविअसमुग्घाएणं समोहणइ, वेउविअसमु-18 ग्घाएणं समोहणित्ता संखिज्जाइं जोअणाई दंडं निसिरइ, तंजहा-रयणाणं वइराणं वेरुलिआणं लोहिअक्खाणं मसारगल्लाणं हंसग-18 व्भाणं पुलयाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं : अंजणाणं अंजणपुलयाणं जायरूवाणं सुभ-14 गाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे १ नास्ति कि. सु.। H९॥ For at Ponto S anelorary.org Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुग्गले परिसाडेई, परिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदियई ॥ २६॥ परियाइत्ता दुच्चंपि वेउविअसमुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता उत्तरवेउवियरूवं विउवइ, विउवित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए उडुआए सिग्धोए दिवाए देवग-2 ईए वीईवयमाणे २ तिरिअमसंखिजाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमझेणं जेणेव जंबुद्दीवे| दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव उसभदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स पणामं करेइ, करित्ता देवाणंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवणिं ६ दलइ, ओसोवणिं दलित्ता असुभे पुग्गले अवहरइ, अवहरित्ता सुभे पुग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अणुजाणउ मे भयवंति कट्टु समणं भगवं महावीरं अघाबाहं अवाबाहेणं है। है दिवेणं पहावेणं करयलसंपुडेणं गिण्हई, समणं भगवं महावीरं० गिण्हित्ता जेणेव खत्ति कंडग्गामे नयरे जेणेव सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स गिहे जेणेव तिसला खत्तियाणी तेणेवा है|१ परिसाडिअ क० । २ एइ। ३ २७ कि. सु.। ४ जयणाए कि. सु.। ५ छ आए क०। ६ गिण्हइ गिण्हिता कि सु.। Jain Educationi tona For Private & Personel Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा० ॥ १० ॥ Jam Education Intern देवानंदागर्भ हरणं. Inld Kells 811 SERERAN __XXXXXXXXXX 18 Glald त्रिशलागर्भसंक्रमणं. महावीरचरि० ॥ १० ॥ janelibrary.org Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तिसलाए खत्तिआणीए सपरिजणाए ओसोअणिं दलइ,* ओसोअणिं दलित्ता असुभे पुग्गले अवहरइ, अवहरित्ता सुभे पुग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता है समणं भगवं महावीरं अबाबाहं अवाबाहेणं तिसलाए खत्तिआणीए कुच्छिसि गब्भत्ताए साह-| रई, जेऽविअ णं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तंपिअ णं देवाणंदाएमाहणीए जालंधरसगुताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ, साहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए हैं ॥२७॥उक्किट्ठाए तुरिआए चवलाए चंडाए जवणाए उडुआए सिग्घाए दिवाए देवगईए तिरि-12 अमसंखिजाणं दीवसमुदाणं मज्झंमज्झेणं जोअणसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं उप्पयमाणे २ जेणा मेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए विमाणे सक्कंसि सीहासणंसि सक्के देविंदे देवराया तेणामेव ६|उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ8 ||२८॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणेभगवं महावीरे जे से वासाणं तच्चेमासे पंचमे पक्खे। आसोअबहुले, तस्स णं अस्सोअबहुलस्स तेरसीपक्खेणं बासीइराइंदिएहिं विइक्कंतेहिं तेसी-18 १इ, साहरित्ता । २२८ कि. सु.। ३ ताए उक्कि० कि. सु. । ४ २९ कि. सु.। ५ आसो। Jan Education Intern For Private Personel Use Only Nainelibrary.org Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा चरि० ॥११॥ इमस्स राइंदिअस्स अंतरा वट्टमाणे हिआणुकंपएणं देवेणं हरिणेगमेसिणा सक्कवयणसंदिटेणं महावीरमाहणकुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स भारिआए तिसलाए खत्तिआणीए वासिट्रसगुत्ताए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अवाबाहं अवाबाहेणं कुच्छिसि गब्भत्ताए साहहै रिए॥२९॥तेणं कालेणं तेणंसमएणंसमणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए आवि हुत्था, तंजैहा&साहरिजिस्सामित्ति जाणइ, साहरिजमाणे न जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ॥३०॥ रयणिं | च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छीओ तिसलाए खत्तिआणीए वासिसगुत्ताए कुच्छिसिगबभत्ताए साहरिए तंरयणिं च णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ इमेयारूवे उराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चउ- ॥ ११ दसमहासुमिणे तिसलाए खत्तियाणीए हडेत्ति पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा-गय० गाहा॥३१॥ १ वट्टमाणस्स क. सु.। २३० कि. सु.। ३ नास्ति प्र०। ४ नास्त्यत्राङ्कः कि. सु. । Jain Education Intel For Private Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ #821 Jam Education Internat जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरेदेवाणंदाए | माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छीओ तिसलाए | खत्तिआणीए वासिद्धसगुत्ताए कुच्छिसि गव्भत्ताए साहरिए तं स्यणिं च णं सा तिसला खत्तिआणी तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अभितरओ सचित्तकम्मे बाहिरओ दूमिअघट्टमट्ठे विचित्तउल्लोअचिल्लियतले मणिरयणपणासिअंधयारे बहुसमसुविभत्तभूमिभागे पंचवन्नसरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडज्यंतधूवमघमघंतगंधुडुयाभिरामे सुगंधवरगंधिए गंधवट्टिभूए तंसि तारिसगंसि 2600 त्रिशलाखमाः 511 library.org Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा० ॥ १२ ॥ Jain Education Internal सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टिए उभओ बिब्बोअणे उभओ उन्नए मज्झे णयगंभीरे गंगापुलिणवालुअउद्दालसालिसए ओअविअखोमिअदुगुल्लपट्टपडिच्छन्ने सुविरइअरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणगरूयबूरनवणीअतूलतुल्लफासे सुगंधवरकुसुम चुन्नसयणोवयारकलिए, पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ इमेआरूवे उराले जाव चउद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा -गय-वसहं - सीहं - अभिसे - दाम - संसि - दिणयरं झयं कुंभं । | पउमसरें - सागर - विमाणभवणं - रयणुच्चयै- सिहिं चें ॥ १ ॥ ३२ ॥ तए णं सा तिसला खत्तिआणी तप्पढमयाए तओअचउद्दतमूसि अगलियविपुलजलहरहारनिकरखीरसागरससंककिरणद्गरयरययमहासेलपडुरतरं समागयमहुयरसुगंधदाणवासियकपोलमूलं देवरायकुंजरं (व) वरप्पमाणं पिच्छइ सजलघणविपुलजलहरगज्जियगंभीरचारु घोसं इभं सुभं सघलक्खणकयंबिअं वरोरुं १ ॥ ३३ ॥ १ नास्तीदं क० सु. २ पंडरं सु. महावीर चरि० ॥ १२ ॥ ainelibrary.org Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसू. ३ Jain Education तओ पुणो धवलकमलपत्तपयराइरेगरूवप्पभं पहासमुदओवहारेहिं सबओ चेव दीवयंतं अइसिरिभरपिल्लुणाविसप्पंतकंतसोहंतचारुककुहं तणुसुंइसुकुमाललोमनिच्छविं थिरसुब| इमंसलोवचिअलट्ठसुविभत्तसुंदरंगं पिच्छइ घणवट्टलट्ठउक्किट्ठविसितुप्पग्गतिक्खसिंगं दंतं सिवं समाणसोहंतसुद्धदंतं वसहं अमिअगुणमंगलमुहं २ ॥ ३४ ॥ तओ पुणो हारनिकरखीरसागरस संककिरणद्गरयरययमहासेलपंडुरंगं ( ग्रं० २०० ) रमणिञ्जपिच्छणिजं थिरलट्ठपट्टवट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिद्धतिक्खदाढा विडंबिअमुहं परिक|म्मिअजच्च कमलकोमलपमाणसोहंतलट्टउट्टं रत्तुप्पलपत्तम उअसुकुमालतालुनिल्लालियग्गजीहं | मूसागयपवरकणगता विअआवत्तायंतवट्टतडियविमलसरिसनयणं विसालपीवरवरोरुं पडिपुन्न| विमलखंधं मिउविसयसुहुमलक्खणपसत्थविच्छिन्नकेसराडो वसोहिअं ऊसिअसुनिम्मिअसुजायअप्फोडिअलंगूलं सोमं सोमाकारं लीलायंतं नहयलाओ ओवयमाणं नियगवयणमइवयंतं पिच्छइ सा गाढतिक्खग्गनहं सीहं वयण सिरीपल्लेवपत्तचारुजीहं ३ ॥ ३५॥ १ सुद्ध क०सु० । २ पंडुरतरं कि०सु० । ३पलं० ० कि० । स्वनेषु वृषभः सिंहश्च Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीः कल्प बारसा महावीरचरि० ॥ १३ ॥ स्वप्नेषु लक्ष्मी RSHRESERECRACANCSCORCAMERACCIDCRICA तओ पुणो पुन्नचंदवयणा, उच्चागयठाण-18 लट्ठसंठिअं पसत्थरूवं हूँ सुपइटिअकणगंकुम्म-हूँ सरिसोवमाणचलणं अचुन्नयपीणरइअमंसलउन्नयतणुतंबनिधनहं कमलपलाससुकुमालकरचरणकोमलवरंगुलिं कुरुविंदावत्तवट्टाणुपुवघं निगूढजाणुंग१उवचिय सु.२कणगमय.क.कि.। RECORRECRUGACANCCA ॥ १३ ॥ Sam Enication intor For Frivate spemonalinony w jainelorary.org Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वमेषु लक्ष्मीः यवरकरसरिसपीवरोरुं चामीकररइअमेहलाजुत्तकंतविच्छिन्नसोणिचक्कं जच्चंजणभमरजलयपनयरउज्जुअसमसंहिअतणुअआइजलडहसुकुमालमउअरमणिज्जरोमराइं नाभीमंडलसुंदरविसाल-है पसत्थजघणं करयलमाइअपसत्थतिवलियमज्झं नाणामणिकणगरयणविमलमहातवणिज्जाभरणभूसणविराइयेंगोवंगिं हारविरायंतकुंदमालपरिणइजलजलिंतथणजुअलविमलकलसं आइ यपत्तिअविभूसिएणं सुभगजालुजलेणं मुत्ताकलावएणं उरत्थदीणारमालियविरइएण कंठम-2 कणिसुत्तएण य कुंडलजुअलुल्लसंतअंसोवसत्तसोभंतसप्पभेणं सोभागुणसमुदएणं आणणकुडं-12 बिएणं कमलामलविसालरमणिजलोअणं कमलपज्जलंतकरगहिअमुक्कतोयं लीलावायकयप-8 क्खएणं सुविसदकसिणघणसण्हलंबंतकेसहत्थं पउमद्दहकमलवासिणिं सिरिं भगवई पिच्छइ | हिमवंतसेलसिहरे दिसागइंदोरुपीवरकराभिसिच्चमाणिं ४ ॥ ३६॥ | तओ पुणो सरसकुसुममंदारदामरमणिजभूअं चंपगासोगपुन्नागनागपिअंगुसिरीसमुग्गरगमल्लिआजाइजूहिअंकोल्लकोजकोरिंटपत्तदमणयनवमालिअबउलतिलयवासंतिअपउमुप्प १ रयणकणग कि० । २ मंगुवंगि क० कि० । ३ मालवि० कि० सु० । ४ णि प्र. । Jain Education in For Private Personal Use Only hainelibrary.org Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प जालपाडलकुंदाइमुत्तसहकारसुरभिगंधिं अणुवममणोहरेणं गंधेणं दस दिसाओवि वासयंतं महावीरबारसा || सबोउअसुरभिकुसुममल्लधवलविलसंतकंतबहुवन्नभत्तिचित्तं छप्पयमहुअरिभमरगणगुमगुमा-15 चरि० ॥ १४॥ यंतनिलिंतगुंजंतदेसभागं दामं पिच्छइ नहंगणतलाओ ओवयंतं ५॥ ३७॥ स्वमेषु । ससिं च गोखीरफेणदगरयरययकलसपंडुरं सुभं हिअयनयणकंतं पडिपुन्नं तिमिरनिक- दाम चन्द्रः रघणगहिरवितिमिरकरं पमाणपक्खंतरायलेहं कमअवणविबोहगं निसासोहगं सुपरिमद-15 सूर्यश्च दप्पणतलोवमं हंसपडुवन्नं जोइसमुहमंडगं तमरिपुं मयणसरापूरगं समुद्ददगपूरगं दुम्मणं है जणं दइअवजिअं पायएहिं सोसयंतं पुणो सोमचारुरूवं पिच्छइ सा गगणमंडलविसालसोम-* कम्ममाणतिलगं रोहिणिमणहिअयवल्लहं देवी पुन्नचंदं समुल्लसंतं ६॥३८॥ तओ पुणो तमपडलपरिप्फुडं चेव तेअसा पज्जलंतरूवं रत्तासोगपगासकिंसुअसुअमुहगुंजद्धरागसरिसं कमलवणालंकरणं अंकणं जोइसस्स अंबरतलपईवं हिमपडलगलग्गहं गह-12॥ १४ गणोरुनायगं रत्तिविणासं उदयत्थमणेसु मुहुत्तसुहदंसणं दुन्निरिक्खरूवं रत्तिसुद्धंतदुप्पयारप १ मंदारपारिजातियचंपगविउलमचकुंदपाडलजायजूहियसुगंधगंधपुष्फमालासहकार० । Jain Education Inter For Private & Personel Use Only wrainelibrary.org Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वमेषु ध्वजः कलशश्च मद्दणं सीअवेगमहणं पिच्छइ मेरुगिरि सयय परियट्टयं विसालं सूरं रस्सीसहस्सपयलियदित्तिसोहं ७॥ ३९॥ __ तओ पुणो जच्चकणगलट्ठिपइट्ठिअं समूहनीलरत्तपीयसुकिल्लसुकुमालुल्लसियमोरपिच्छकयमुद्दयं धयं अहियसस्सिरीयं फालिअसंखंककुंददगरयरययकलसपंडुरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेण रायमाणं भित्तुं गगणतलमंडलं चेव ववसिएणं पिच्छइ सिवमउयमारुयलयाह|यकंपमाणं अइप्पमाणं जणपिच्छणिज्जरूवं ८॥१०॥ __ तओ पुणो जच्चकंचणुजलंतरूवं निम्मलजलपुण्णमुत्तमं दिप्पमाणसोहं कमलकलावपरिरायमाणं पडिपुण्णसवमंगलभेयसमागमं पवररयणपरायंतकमलट्ठियं नयणभूसणकरं पभासमाणं सवओ चेव दीवयंतं सोमलच्छीनिभेलणं सवपावपरिवजिअं सुभं भासुरं सिरिवरं सबोउयसुरभिकुसुमआसत्तमल्लदामं पिच्छइ सा रययपुण्णकलसं ९॥४१॥ तओ पुणो पुणरवि रविकिरणतरुणबोहियसहस्सपत्तसुरभितरपिंजरजलं जलचरपहकरप१ परिरायंत सु०। Jan Education Inter For Private Personal Use Only Snelibrary.org Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा० ॥१५॥ समुद्रश्च CARRORAKARSANSARAKAR रिहत्थगमच्छपरिभुञ्जमाणजलसंचयं महंतं जलंतमिव कमलकुवलयउप्पलतामरसपुंडरीय-12 महावीर चरि० उरुसप्पमाणसिरिसमुदएणं रमणिज्जरूवसोहं पमुइयंतभमरगणमत्तमहुयरिगणुक्करोलि(ल्लि) जमाणकमलं २५० कायंबगबलाहयचक्ककलहंससारसगविअसउणगणमिहुणसेविजमाणस-10 स्वमेषु लिलं पउमिणिपत्तोवलग्गजलबिंदुनिचयचित्तं पिच्छइ सा हिययनयणकंतं पउमसरं नाम पद्मसरः सरं सररुहाभिरामं १०॥४२॥ & तओ पुणो चंदकिरणरासिसरिससिरिवच्छसोहं चउगमणपवड्डमाणजलसंचयं चवलचंचलु चायप्पमाणकल्लोललोलंततोयं पडुपवणाहयचलियचवलपागडतरंगरंगंतभंगखोखुब्भमाणसोभंतनिम्मलुक्कडउम्मीसहसंबंधधावाणोनियत्तभासुरतराभिरामं महामगरमच्छतिमितिभिंगि-18 हूँ लनिरुद्धतिलितिलियाभिघायकप्पूरफेणपसरं महानईतुरियवेगसमागयभमगंगावत्तगुप्पमाणु-है। चलंतपच्चोनियत्तभममाणलोलसलिलं पिच्छइ खीरोयसायरं सारयणिकरसोमवयणा ११॥४३॥ ॥ १५ ॥ तओ पुणो तरुणसूरमंडलसमप्पहं दिप्पमाणसोभं उत्तमकंचणमहामणिसमूहपवरतेयअ१ नेदम् क० सु। २ चउगुणः। ३ धावमाणावनि सु० । Jain Education in For Private Personal Use Only Kaw.jainelibrary.org Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MANERASAASAAN*AXAX46*XAS$389 द्वसहस्सदिप्पंतनहप्पईवं कणगपयरलंबमाणमुत्तासमुज्जलं जलंतदिवदामंईहावि(मि)गउसभ-18 |स्वमेषु वितुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररुरुसरभचमरसंसत्तकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं गंधवोप मानं रत राशिश्च वजमाणसंपुण्णघोसं निच्चं सजलघणविउलजलहरगज्जियसदाणुणाइणा देवदुंदुहिमहारवेणं सयलमवि जीवलोयं पूरयंतं, कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडझंतधूवैवासंगउत्तममघमघंतगंधुडुयाभिरामं निच्चालोयं सेयं सेयप्पभं सुरवराभिरामं पिच्छइ सा साओवभोगं वरैविमाणपुंडरीयं १२॥४४॥ तओ पुणो पुलगवेरिंदनीलसासगकक्केयणलोहियक्खमरगयमसारगल्लपवालफलिहसोगंधियहंसगब्भअंजणचंदप्पहवररयणेहिं महियलपइट्टि गगणमंडलंतं पभासयंतं तुंगं मेरु-18 गिरिसंनिकासं पिच्छइ सा रयणनिकररासिं १३ ॥४५॥ सिहिं च-सा विउलुजलपिंगलमहुघयपरिसिच्चमाणनिडूमधगधगाइयजलंतजालुजला१ धूवसारसंगयं (क० कि० वृत्तौ पाठान्तरम् )। २ विमाणवर सु० । Jain Education For Private Personal use only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प. बारसा० महावीरचरि० ॥१६॥ भिरामं तरतमजोगजुत्तेहिं जालपयरेहिं अण्णुण्णमिव अणुप्पइण्णं पिच्छइ जालुजलणगं अंबरं । व कत्थइ पयंतं अइवेगचंचलं सिहिं १४ ॥ ४६॥ | इमे एयारिसे सुभे सोमे पियदंसणे सुरूवे सुविणे दट्ठण सयणमझे पडिबुद्धा अरविंद स्वमेषु लोयणा हरिसपुलइअंगी ॥ एए चउदस सुमिणे, सवा पासेइ तित्थयरमाया । जं रयणिं । | शिखी स्व मनिवेदनं वक्कमई, कुच्छिसि महायसो अरहा ॥४७॥ तए णं सा तिसला खत्तियाणी इमे एयारूवे ? उराले चउद्दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुट्ठजावहियया धाराहयकयंबपुप्फगं पिव समूस्ससिअरोमकूवा सुविणुग्गहं करेइ, करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुटेइ, अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अतुरिअमचवलमसंभंताए अविलंबियाए ? रायहंससरिसीए गईए जेणेव सयणिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छइ उवाग-2 ॥ १६ ॥ च्छित्ता सिद्धत्थं खत्तिअं ताहिं इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणोरमाहिं उरालाहिं । कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणि Jain Education Inter For Private Personel Use Only D ainelibrary.org Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वमनिवे जाहिं मिउमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी २ पडिबोहेइ ॥४८॥ तए णं सा तिसला है। खत्तिआणी सिद्धत्थेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्तंसि भद्दा-1 सणंसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया सिद्धत्थं खत्तिअंताहिं । जाव संलवमाणी २ एवं वयासी ॥४९॥ एवं खलु अहं सामी ! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि वण्णओ जाव पडिबुद्धा, तंजहा-गयउँसभ० गाहा । तं एएसिं सामी ! उरालाणं चउदसण्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ?॥५०॥ तए णं से सिद्धत्थे । राया तिसलाए खत्तिआणीए अंतिए एयमटुं सुच्चा निसम्म हट्टतुटूचित्ते आणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुमचंचुमालइयरोमकूवे : ते सुमिणे ओगिण्हेइ, ते सुमिणे ओगिण्हित्ता ईहं अणुपविसइ, ईहं अणुपविसित्ता अप्पणो साहाविएणं मइपुचएणं बुद्धिविण्णाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थुग्गहं करेइ, करित्ता तिसलं खत्तिआणिं ताहिं इटाहिं जाव मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहिं वग्गूहिं संलवमाणे १व प्र०। २ हतुट्ठ जाव हियए कि० सु। ३ नास्ति प्रत्यंतरे । Jain Education Intense For Private & Personel Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा चरि० EXA*%AARAAAAAAAAAN २ एवं वयासी ॥ ५१ ॥ उराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, कल्लाणा णं तुमे | महावीरदेवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, एवं सिवा, धन्ना, मंगल्ला, सस्सिरीया, आरुग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-16 कल्लाण-(ग्रं. ३००) मंगल्लकारगा णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा, तंजहा-अत्थ- सदा लाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो० पुत्तलाभो० सुक्खलाभो० रजलाभो०-एवं खलु तुमे देवा-I | राजोक्तं स्वमफलं णुप्पिए! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्वंताणं अम्हं कुलकेलं, अम्हं कुलदीवं, कुलपवयं, कुलवडिंसयं, कुलतिलयं, कुलकित्तिकर, कुलवित्तिकर, कुलदिणयरं, कुलाधारं, कुलनंदिकरं, कुलजसकरं, कुलपायवं, कुलविवरणकर, सुकुमालपाणिपायं, अहीणसंपुग्णपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसवं-1 गसुंदरंग, ससिसोमाकारं, कंतं, पियदसणं, सुरूवं दारयं पयाहिसि ॥५२॥ सेविअ णं दारए । उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमित्तेजुवणगमणुपत्ते सूरे वीरे विकंते विच्छिन्नविउलबलवाहणे रजवई राया भविस्सइ॥५३॥ तं उराला णं तुमे देवाणुप्पिया! जाव दुच्चंपि तचंपि अणुवूहइ॥ १ पडिपुण्ण सु०। SASAAAAAARSEMANAN****** ॥१७॥ Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Pigainelibrary.org Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जागरणं च तएणं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रण्णो अंतिए एयमटुं सुच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा जाव- स्वमानां हियया करयलपरिग्गहिअं (यं) दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी ॥५४॥ प्रतीच्छा एवमेयं सामी! तहमेयं सामी! अवितहमेयं सामी! असंदिरमेयं सामी! इच्छिअमेअंसामी! पडिच्छिअमेयं सामी ! इच्छिअपडिच्छिअमेयं सामी ! सच्चे णं एसमटे-से जहेयं तुब्भे वयह-15 त्तिकट्ट ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नामामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुटेइ, अब्भुटेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए । अविलंबिआए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-18 च्छित्ता एवं वयासी ॥५५॥ मा मेते उत्तमा पहाणा मंगल्ला सुमिणा दिट्ठा अन्नेहिं पाव-18 है सुमिणेहिं पडिहम्मिस्संतित्तिकट्ट देवयगुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं। है लट्ठोहिं कहाहिं सुमिणजागरि जागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ ॥५६॥ तए णं सिहै हत्थे खत्तिए पञ्चूसकालसमयंसि कोडुबिअपुरिसे सदावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी ॥५७॥ १ मणिकणगरयण कि०। २ एएसु। ३ नास्ति सु० । Jain Education Inter For Private Personal Use Only M elibrary.org Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा ॥ १८॥ खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ! अन्ज सविसेसं बाहिरिअं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्तं सुइअ-15 महावीर18|संमजिओवलित्तं सुगंधवरपंचवण्णपुप्फोवयारकलिअं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडझंतधूव-18 चरि० मघमघंतगंधुहुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूअं करेह कारवेह, करित्ता कारवित्ता य होवासीहासणं रयावेह, रयावित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिणह ॥ ५८ ॥ तए णं ते | देशः कोडुंबिअपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ जाव हियया करयल जाव कहु । एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स। अंतिआओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदगसितं । जाव-सीहासणं रयाविंति, रयावित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवाग-| च्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कह सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स तमाणत्ति पञ्चप्पिणंति ॥५९॥ तए णं सिद्धत्थे खत्तिए कलं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लु१ नास्ति सु० कि०। २ तं सुई सु० सित्तसुइअ कि० । ॥ १८॥ Jain Education Interne For Private & Personel Use Only ainelibrary.org Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसू. ४ Jain Education inter प्पलकमलकोमलुम्मीलियंमि अहापंडुरे पभाए, रत्तासोगप्पगासकिंसुअसुअमुहगुंजद्धरागबंधुजीवगपारावयचलणनयणपरहुअसुरत्तलोअणजासुअणकुसुमरासिहिंगुलनिअरातिरेअरेहंतसरिसे कमलायरसंडबोहर उट्ठिअंमि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेअसा जलंते, तस्स य करपहरापरइंमि अंधयारे वालायवकुंकुमेणं खचिअद्य जीवलोए, सयणिज्जाओ अब्भुट्टे ॥ ६० ॥ अब्भुट्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसह, अणुपविसित्ता अणेग मल्लयुद्धं • शय्याया अभ्युत्थानं 221 jainelibrary.org Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56-1995%-5 कल्प बारसा महाबीरचरि० ॥१९॥ मल्लयुद्धं संवाहनं स्नानं च PRESCORRESERSECURISAGE है वायामजोगवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं संते परिसंते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधवरतिल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं सविंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे तिल्लचम्मंसि निउणेहिं पडिपुण्णपाणिपायसुकुमालकोमलतलेहिं अभंगणपरिमहणुवलणकरणगुणनिम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पटेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जिअपरिस्समेहिं पुरिसेहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए है चउबिहाए सुहपरिकम्मणाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगयपेरिस्समे अट्टणसा-2 लाओ पडिनिक्खमइ ॥६१॥ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ,8 उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तम-16 णिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि नाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुह-3 निसण्णे पुप्फोदएहि अ गंधोदएहि अ उण्होदएहि अ सुहोदएहि अ सुद्धोदएहि कल्लाणकरणपवरमजणविहीए मजिए, तत्थ कोउअसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरम-15 १ खेयपरिस्समे । ॥ १९॥ । Jain Education inten For Private Personel Use Only Thinelibrary.org Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Interna रादि जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइअलहिअंगे अर्हयसुमहग्धदूसरयणसुसंकुडे सरससुर- अलंकाभिगोसीस चंदणाणु लित्तगत्ते सुइमालावण्णगविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारन्द्धहारतिसरयपालंबपलंबमाणकडिसुत्तसुकयसोभे पिणदगेविजे अंगुलिज्जगललियकयाभरणे वरकडगतुडिअर्थभिअभुए अहिअरूवसस्सिरीए कुंडल उज्जोइआणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थय - सुकयरइअवच्छे मुद्दिआपिंगलंगुलीए पालंबलंबमाणसुकयपडउत्तरिजे नाणामणिकर्णगरय|णविमलम हरिहनिउणोवचिअमिसिमिसिंतविरइअसुसिलिट्ठविसिठ्ठलट्ट आविद्धवीरवलए, किं बहुणा ?, कप्परुक्खए विव अलंकि अविभूसिए नरिंदे, सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं | सेअवरचामराहिं उच्वमाणीहिं मंगल्लजयँसद्दकयालोए अणेगगणनायगदंडनायगराईसरतलवरमाडंबिअकोडुंबिअमंतिमहामंतिगणगदोवारियअमच्चचेडपीढमद्दनगरनिगम सिट्ठिसेणावइ| सत्थवाहदूअसंधिवाल सद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेह निग्गए इव गहगणदिप्पंतरिक्खताराग १ नासानीसासवायवोज्झचक्खुहरवण्णफरिसजु तहयलालापेलवाइ रेगधवल कणगख चि अंतकम्मदूसरयणसुसंए ( क० कि० ) । २ रयणकणग कि० । ३ एगावलिपिणद्वे इत्यादि क० कि० । ४ जयजय कि० सु० । finelibrary.org Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प ० बारसा० ॥ २० ॥ Jain Education Intern णाण मज्झे ससिव पिअदंसणे नरवई नरिंदे नरवसहे नरसीहे अब्भहिअरायते अलच्छीए दिप्पमाणे मजणघराओ पडिनिक्खमइ ॥ ६२ ॥ मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहि-रिआ उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीअइ, निसीइत्ता अप्पणो उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेअवत्थपच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थयकयमंगलोवयाराई रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणिरयणमंडिअं अहि| अपिच्छणिजं महग्घवरपट्टणुग्गयं सण्हपट्टभत्तिसयचित्तताणं ईहामिअउसभतुरगनरमगरवि| हगवालग किन्नररुरुसरभचमरकुंजरवणलय पउमलयभत्तिचित्तं अभितरिअं जवणिअं अंछावेइ, अंछावेत्ता नाणामणिरयणभत्तिचित्तं अत्थरयमिउमसूरगुत्थयं से अवत्थपच्चुत्थुअं सुमउअं अंगसुहफरिस विसिद्धुं तिसलाए खत्तिआणीए भद्दासणं रयावेइ ॥ ६३ ॥ रयावित्ता कोटुंबिअपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ॥ ६४ ॥ - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! अट्टंगमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह ॥ तए णं ते १ पुरन्धिमे ( क० कि० ) । २ सगं कि०सु० । महावीर - चरि० भद्रासन रचना ॥ २० ॥ ainelibrary.org Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खमपाठकाः स्वमपाठकामन +SSSSSSSSSSSSSS कोडुबिअपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटु जाव-हियया करयल जाव पडिसुणंति ॥६५॥ पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्ति यस्स अंतिआओ पडिनिक्खमंति, पडि निक्ख६ मित्ता कुंडपुरं नगरं मझमज्झेणं जेणेव सुविहाणलक्खणपाढगाणं गेहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुविणलक्खणपाढए सद्दाविंति k॥६६॥ तए णं ते सुविणलक्खणपाढया सिद्ध त्थस्स खत्तिअस्स कोडुबिअपुरिसेहिं सद्दाविआ है समाणा हट्ठतुट्ठ जाव हयहियया व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउअमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावे १ कुंडग्गामं (क० कि० क० सु०)। Samsnamonic Fant aloni merjainatomy.cm Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा चरि० ॥२१॥ कागमनं साइं मंगल्लाइं वत्थाई पवराइं परिहिआ अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सिद्धत्थयहरि-18|महावीरआलिआकयमंगलमुद्धाणा सरहिं २ गेहेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झमज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रण्णो भवणवरवडिंसगपडिदुवारे तेणेव उवा- स्वप्नपाठगच्छंति, उवागच्छित्ता भवणवरवडिंसगपडिदुवारे एगयओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कर६ यलपरिग्गहिरं जाव कट्ट सिद्धत्थं खत्तिअं जएणं विजएणं वराविति ॥ ६७ ॥ तए णं ते । ६ सुविणलक्खणपाढगा सिद्धत्थेणं रण्णा वंदियपूईअसक्कारिअसम्माणिआ समाणा पत्ते २ पुवन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ॥ ६८॥ तए णं सिद्धत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणि । जवणिअंतरियं ठावेइ, ठावित्ता पुप्फफलपडिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं ते सुविणलक्खण-* है पाढए एवं वयासी ॥ ६९॥-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज तिसला खत्तियाणी तंसि हूँ है तारिसगंसि जाव सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ इमे एयारूवे उराले चउद्दस महासुमिणे __ १ अच्चिअवंदिअमाणिअपूइआ (क० कि०)। ॥२१॥ in Eduentan 04 For Private & Personel Use Only O ww.jainelibrary.org Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वमफलं पासित्ता णं पडिबुद्धा॥७०॥ तंजहा-गयवसह गाहा, तं एएसिं चउद्दसण्हं महासुमिणाणं | देवाणुप्पिया ! उरालाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? ॥ ७१ ॥ तए णं ते । सुमिणलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव। हयहियया ते सुमिणे ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता ईहं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अन्न-18| ||मन्नेणं सद्धिं संचालेंति', संचालित्ता तेसिं सुमिणाणं लट्ठा गहिअट्ठा पुच्छिअट्ठा विणिच्छि-181 ६ायदा अभिगयदा सिद्धत्थस्स रण्णो पुरओ सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा २ सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी ॥ ७२॥-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं सुमिणसत्थे बायालीसं सुमिणा तीसं । महासुमिणा बावत्तरि सवसुमिणा दिट्ठा, तत्थ णं देवाणुप्पिया ! अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा अरहंतंसि (ग्रं०४००) वा चक्कहरंसि वा गन्भं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए है महासुमिणाणं इमे चउद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुझंति ॥ ७३॥ तंजहा-गयवहै सह० गाहा, ॥७४॥ वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गभं वक्कममाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं है १ सम्म ओगि सु०। २ संलावेंति (क० कि०)। SUSAN*M*XXX****** Jain Education in For Private & Personel Use Only * .jainelibrary.org Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प• महावीर बारसा० चरि० ॥२२॥ स्वप्नफलं महासुमिणाणं अन्नयरे सत्त महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुझंति ॥ ७५॥ बलदेवमायरो । वा बलदेवंसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुझंति ॥ ७६ ॥ मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गम्भं वक्कममागंसि एएसिं चउद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरं एगं महासुमिणं पासित्ताणं पडिबुझंति है ॥ ७७॥ इमे य णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तिआणीए चोदस महासुमिणा दिट्ठा, तं, उराला णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा, जाव मंगलकारगा णं , देवाणुप्पिआ ! तिसलाए खत्तिआणीए सुमिणा दिट्ठा, तंजहा-अत्थलाभो देवाणुप्पिया !, भोगलाभो०, पुत्तलाभो०, सुक्खलाभो देवाणुप्पिया!, रजलाभो देवाणु०, एवं खलु देवाणुप्पिया ! तिसला खत्तियाणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदिआणं वइक् ॥ ताणं तुम्हें कुलकेउं कुलदीवं कुलपवयं कुलवडिंसगं कुलतिलयं कुलकित्तिकरं कुलवित्तिकर कुलदिणयरं कुलाहारं कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलपायवं कुलतन्तुसंताणविवद्धणकरं है ACAKACK Jain Education For Private Personel Use Only jainelibrary.org Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेअं माणुम्माणपमाण-18 पडिपुण्णसुजायसवंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पयाहिसि ॥७८॥ सेऽविय णं दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमित्ते जुवणगमणुपत्ते सूरे वीरे विकंते है। |विच्छिन्नविपुलबलवाहणे चाउरंतचक्कवट्टी रज्जवई राया भविस्सइ, जिणे वा तिलोगनायगे है। धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी ॥ ७९ ॥ तं उराला णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा, जाव आरुग्गतुद्विदीहाऊकल्लाणमंगल्लकारगाणं देवाणुप्पिआ! तिसलाए खत्ति-1 याणीए सुमिणा दिट्ठा ॥८॥ तएणं सिद्धत्थे राया तेसिं सुमिणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म हटे तुटे चित्तमाणंदिते पीयमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहि-I अए करयल जाव ते सुमिणलक्खणपाढगे एवं वयासी ॥ ८१॥ एवमेयं देवाणुप्पिया !, तहमेयं देवाणुप्पिया!, अवितहमेयं देवाणुप्पिया!, इच्छियमयं०, पडिच्छियमेयं०, इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया !, सच्चे णं एसमटे से जहेयं तुम्भे वयहत्तिकडे ते सुमिणे १ तेलुक सु० कि। ASAASAHARASHOK*** Jain Educati o nal . Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा ॥ २३ ॥ RANSAC सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए विउलेणं असणेणं पुप्फवत्थगंधमल्ला-हा महावीरलंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ८२॥ तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए सीहासणाओ अब्भुटेइ, अब्भु-18| स्वमफलं द्वित्ता जेणेव तिसला खत्तियाणी जवणिअंतरिया तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता तिसलं खत्तियाणिं एवं वयासी ॥ ८३ ॥-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सुमिणसत्थंसि बायालीसं I सुमिणा तीसं महासुमिणा जाव एगं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुझंति ॥ ८४॥ इमे । अ णं तुमे देवाणुप्पिए ! चउद्दस महासुमिणा दिट्ठा, तं उराला णं तुमे जाव जिणे वा 8 तेलुक्कनायगे धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी॥ ८५॥ तएणं सा तिसला खत्तिआणी एअमटुं सुच्चा 5 |निसम्म हट्ठतुट्ठ जाव हयहिअया करयल जाव ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ ॥ ८६ ॥ पडि-15 च्छित्ता सिद्धत्थेणं रण्णा अब्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ8 अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता अतुरिअं अचवलं असंभंताए अविलंबिआए रायहंससरिसीए गईए % % Jain Education For Private Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणं अणुपविट्ठा ॥ ८७॥ जप्प-1 निधान संहरणं भिइं च णं समणे भगवं महावीरे तंसि नायकुलंसि साहरिए तप्पभिई च णं बहवे वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा सक्कवयणेणं से जाइं इमाइं पुरापोराणाई महानि-II हाणाई भवंति, तंजहा-पहीणसामिआई पहीणसेउआइं पहीणगुत्तागाराइं, उच्छिन्नसामि-11 आई उच्छिन्नसेउआई उच्छिन्नगुत्तागाराई, गामागरनगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासम-15 संवाहसन्निवेसेसु सिंघाडएसु वा तिएसु वा चउक्केसु वा चच्चरेसु वा चउम्मुहेसु वा महा-ई पहेसु वा गामट्ठाणेसु वा नगरट्ठाणेसु वा गामणिमणेसु वा नगरनिङमणेसु वा आवणेसु वा देवकुलेसु वा सभासु वा पवासु वा आरामेसु वा उजाणेसु वा वणेसु वा वणसंडेसु, वा सुसाणसुन्नागारगिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणभवणगिहेसु वा सन्निक्खित्ताई चिटुंति ताई सिद्धत्थरायभवणंसि साहरंति ॥८८॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे नायकु-18 लंसि साहरिए तं रयणिं च णं नायकुलं हिरण्णेणं वड्ढित्था सुवण्णेणं वड्डित्था धणेणं १ राय० कि० सु। Jan Education For Private Personel Use Only gaw.jainelibrary.org Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा महावीरचरि० ॥२४॥ नामकरणसंकल्पः 54--X धन्नेणं रज्जेणं रटेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं जणवएणं जस-12 वाएणं वड्डित्था, विपुलधणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमाइएणं संतसार-18 सावइज्जेणं पीइसक्कारसमुदएणं अईव २ अभिववित्था, तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापिऊणं अयमेयारूवे अब्भत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था ॥ ८९॥-जप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि गब्भत्ताए वकंते तप्पभिई च णं है। अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो सुवण्णेणं धणेणं धन्नेणं रज्जेणं रटेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कुट्ठा-1 गारेणं पुरेणं अंतेउरेणं जणवएणं जसवाएणं वड्डामो, विपुलधणकणगरयणमणिमुत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमाइएणं संतसारसावइज्जेणं पीइसक्कारेणं अईव २ अभिवड्डामो, तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स एयाणुरूवं गुण्णं । गुणनिप्फन्नं नामधिकं करिस्सामो-वद्धमाणुत्ति ॥९०॥ तएणं समणे भगवं महावीरे माउ-1 अणुकंपणट्ठाए निच्चले निष्फंदे निरयणे अल्लीणपलीणगुत्ते आवि होत्था ॥९१॥ तए णं -564 --56 ॥ २४ ॥ 2-56-4- - 5 456450 JainEducation For Private Personal Use Only ww.jainelibrary.org Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ X404CAUSASSASSASSANAXHUX*EASTA तीसे तिसलाए खत्तियाणीए अयमेयारूवे जाव संकप्पे समुप्पजित्था-हडे मे से गब्भे, गर्भहरमडे मे से गन्भे, चुए मे से गब्भे, गलिए मे से गब्भे, एस मे गम्भे पुविं एयइ, णादिचि ६ इयाणिं नो एयइत्तिकडे ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरसंपविट्ठा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमीगयदिट्ठिया झियायइ, तंपि य सिद्धत्थरायवरभवणं उवरयमुइंगतंतीहै तलतालनाडइज्जजणमणुजं दीणविमणं विहरइ ॥ ९२ ॥ तए णं से समणे भगवं महावीरे है माऊए अयमेयारूवं अब्भत्थि पत्थिअंमणोगयं संकप्पं समुप्पन्नं वियाणित्ता एगदेसेणं एयइ, तए णं सा तिसला खत्तियाणी हट्ठतुट्ठा जाव हयहिअया एवं वयासी ॥९३ ॥-नो खलु मे गब्भे हडे जाव नो गलिए, मे गब्भे पुविं नो एयइ, इयाणिं एयइत्तिकटु हट्ट ।। जाव एवं विहरइ, तए णं समणे भगवं महावीरे गब्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभि-11 गिण्हइ-नो खलु मे कप्पइ अम्मापिऊहिं जीवंतेहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारि पवइत्तए ॥ ९४ ॥ तए णं सा तिसला खत्तियाणी ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल १नं सु०। कल्पसू.५ Jan Education For Private Personel Use Only T elibrary.org Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा० महावीरचरि० ॥२५॥ पायच्छित्ता सवालंकारविभूसिया तं गब्भं नाइसीएहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहि । नाइकसाइएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं नाइनिहिं नाइलुक्खेहिं नाइउल्लेहिं नाइसुक्केहिं है। सव्वत्तुगभयमाणसुहेहिं भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं ववगयरोगसोगमोहभयपरिस्समा जं तस्स गर्भपोषण गब्भस्स हिअं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे अ काले अ आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं ? सयणासणेहिं पइरिक्कसुहाए मणोऽणुकूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला संमा-2 णियदोहला अविमाणिअदोहला वुच्छिन्नदोहला ववणीअदोहला सुहंसुहेणं आसइ सयइ ! चिट्ठइ निसीअइ तुयट्टइ विहरइ सुहंसुहेणं तं गब्भं परिवहइ ॥९५॥ तेणं कालेणं तेणं | समएणं समणे भगवं महावीरे जेसे गिम्हाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे चित्तसुद्धे तस्स णं चित्त-18 सुद्धस्स तेरसीदिवसे णं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं | उच्चट्ठाणगएसु गहेसु पढमे चंदजोगे सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु जइएसु सब-३॥ २५ ॥ सउणेसु पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसप्पंसि मारुयंसि पवायंसि निप्फन्नमेइणीयंसि कालंसि | १ जाब (क० कि०)। Jan Education Inter For Private Personel Use Only W w.jainelibrary.org Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीरजन्म. जन्मक ल्याणके देवागमः -ASSACROSSESSMSANCHARACHAR पमुइयपक्कीलिएसु जणवएसु पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं चंदेणं जोगमुवागएणं आरुग्गा आरुग्गं दारयं पयाया ॥९६॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जाए सा णं रयणी बहूहिं देवेहिं देवीहि य ओवयंतेहिं उप्पयंतेहि य उप्पिजलमणिभूआ कहकहगभूआ आविहुत्था॥९७॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जाए तं रयणिं च णं बहवे वेसमणकुंडधारी तिरियजंभगा देवा सिद्धत्थरायभवणंसि हिरण्णवासं च सुवण्णवासं च वयरवासं च वत्थवासं च १रोग्गारोग्ग (कि. सु.)। २ लमाला० (क० कि०)। ३ देवुओए एगालोए देवसन्निवाए उप्पिजल०(क० कि०)। NO0000 आ. श्रीकलारसागरसरि ज्ञानगन्दिर श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र कोवा (गांधीनगर) पि ३८०००९ SSES Fan Fano a melorary.org Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीरजन्माभिषेक कल्प बारसा. ॥२६॥ जन्ममहे AAAAAAAAAAAAAAAAA***** आभरणवासं च पत्तवासं च पुप्फवासं च फल महावीरवासं च बीअवासं च मल्लवासं च गंधवासं च ६ चरि० चुण्णवासं च वण्णवासं च वसुहारवासं चे वासिंसु॥९८॥ तैए णं से सिद्धत्थे खत्तिए । वृष्टिः अभवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिएहिं देवेहिं है। भिषेकश्च तित्थयरजम्मणाभिसेयमहिमाए कयाए समा-1 णीए पञ्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ है। सद्दावित्ता एवं वयासी ॥ ९९ ॥-खिप्पामेव है। भो देवाणुप्पिया ! कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं है १धण्णवासं च (क० कि०)। २ पिअट्ठयाए पिअं निवेएमो, पिअंभे भवउ, मउडवजं जहामालिअं ओमयं मत्थर घोअइ (क० कि०)। ३ खत्तियकुंडग्गामे (सु०) कुंडग्गामे (कि०)। [॥ २६ ॥ Education internet For Private APomonalO RE A ntrary.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन्ममहा करेह, करित्ता माणुम्माणवद्धणं करेह, माणुम्माणवद्धणं करित्ता कुंडपुर नगरं सभितरवा- राजकृतो 8हिरियं आसियसम्मजिओवलित्तं संघाडगतिगचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु सित्तसुइसं-|| |मट्ठरत्यंतरावणवीहियं मंचाइमंचकलिअं नाणाविहरागभूसिअज्झयपडागमंडिअं लाउल्लोइयमहिअं गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिन्नपंचंगुलितलं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतो-18 रणपडिदुवारदेसभागं आसत्तोसत्तविपुलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमु-15 है कपुप्फपुंजोवयारकलिअं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडझंतधूवमघमघंतगंधुडूआभिरामं सुगं-15 धवरगंधिअं गंधवट्टिभूअं नडनट्टगजल्लमल्लमुट्ठियवेलंबगकहगपाढर्गलासगआरक्खगलंख-161 है मंखतूणइल्लतुंबवीणियअणेगतालायराणुचरिअं करेह कारवेह, करित्ता कारवेत्ता य जूअ-2 सहस्सं मुसलसहस्सं च उस्सवेह, उस्सवित्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणेह ॥१००॥ तए । हणं ते कोडुंबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठा जाव हिअया करयलजावपडिसुणित्ता खिप्पामेव कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं जाव उस्सवित्ता जेणेव सिद्धत्थे राया , १ पचग० (क० कि०)। २ आइक्खग० (क० कि०)। in Education in For Private & Personel Use Only W w.jainelibrary.org Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा महावीरजन्मवर्धापनिका. ॥२७॥ करणं SEARSAACHAAES (खत्तिए) तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता है। महावीर चरि० करयल जाव कट्टु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स। रण्णो एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥१०॥ स्थितिपतएणं से सिद्धत्थे राया जेणेव अट्टणसाला तितकार्यतेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव सखोरोहेणं सवपुप्फगंधवत्थमल्लालंकारविभूसाए सवतुडिअसद्दनिनाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं महया वाहणेणं । महया समुदएणं महया वरतुडिअजमगसमगपवाइएणं संखपणवभेरिझलरिखरमहि-IN हुडुक्कमुरजमुइंगदुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं SONAGACACANARACT Ma0 T २७॥ Fan Pesona Lola Odiyanetorary.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intern उस्सुक्कं उक्करं उक्तिटुं अदिजं अमिजं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणिआवरना| डइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरिअं अणुडुअमुइंगं ( ग्रं. ५०० ) अमिलायमल्लदामं पमुइअपक्कीलियसपुरजणैजाणवयं दसदिवसं ठिइवडियं करेइ ॥ १०२ ॥ तए णं से सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीए सइए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए अ दलमाणे अ दवावेमाणे अ, सइए अ साहस्सिए अ सयसाहस्सिए य लंभे पडिच्छमाणे य पडिच्छावेमाणे य एवं विहरइ ॥ १०३ ॥ तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करिंति, तइए दिवसे चंदसूरदंसणिअं करिंति, छट्टे दिवसे धम्मजागरियं करिंति, इक्कारसमे दिवसे विइक्कंते निवत्तिए असुइजम्मकम्मकरणे, संपत्ते बारसाहे दिवसे, विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडाविंति उवक्खडावित्ता मित्तनाइनिययसयणसंबंधिपरिजणं नाए य खत्तिए अ आमंतेइ, आमंतित्ता तओ पच्छा पहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंग१ अहरिमं (क० कि० ) । २ अगणिअवरनाडइञ्जकलिअं (क० कि० ) । ३ जणाभिरामं (क० कि० ) । ४ जागरिंति (क० कि० क०सु० ) । जन्मनि दानला भौ ज्ञातिभोजनं ainelibrary.org Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा महावीरचरि० ॥२८॥ संकल्प कथनं SHAHIGANAISHISHISHUSHUSHUSHAHAHAAN ल्लाइं पवराई वत्थाई परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा भोअणवेलाए भोअणमंडवंसि । सुहासणवरगया तेणं मित्तनाइनिययसंबंधिपरिजणेणं नायएहिं खत्तिएहिं सद्धिं तं विउलं असणपाणखाइमसाइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुजेमाणा परिभाएमाणा एवं वा । विहरंति ॥१०४॥ जिमिअभुत्तुत्तरागयाऽवि अणं समाणा आयंता चोक्खा परमसुईभूआ। तं मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं नायए खत्तिए य विउलेणं पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं । सक्कारिंति संमाणिति सक्कारित्ता संमाणित्ता तस्सेव मित्तनाइनिययसयणसंबंधिपरियणस्स नायाणं खत्तिआण य पुरओ एवं वयासी ॥१०५॥-पुविंपि णं देवाणुप्पिया ! अम्हं एयंसि । दारगंसि गम्भं वकंतंसि समाणंसि इमे एयारूवे अब्भत्थिए चिंतिए जाव समुप्पज्जित्थाजप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्ते तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो सुवण्णेणं धणेणं धन्नेणं रज्जेणं जाव सावइज्जेणं पीइसक्कारेणं अईव २ अभिवड्डामो, सामंतरायाणो वसमागया य॥१०६॥ तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं ॥२८॥ Jain Education Inter jainelibrary.org Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमलकीक्रीडा. वर्धमान नाम महावीरनामच अम्हे एयस्स दारगस्स इमं एयाणुरूवं गुण्णं गुणनिप्फन्नं नामधिजं करिस्सामो वडमाणुत्ति, ता अन्ज अम्ह मणोरहसंपत्ती जाया, तं होउणं अम्हं कुमारे वद्धमाणे नामेणं ॥१०७॥ समणे भगवं महावीरे कासवगुत्ते णं, तस्स णं तओ नामधिज्जा एवमाहिजंति, तंजहा-अम्मापिउसंतिए वडमाणे, सहसंमुइआए समणे, अयले भयभेरवाणं परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे पडिमाण पालगे धीमं अरइरइसहे दविए वीरिअसंपन्ने देवेहिं से नाम कयं 'समणे भगवं महावीरे' ॥१०८॥ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासवगुत्ते णं, तस्स णं तओ For one Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठशालानयनं. कल्प बारसा चरि० ॥ २९ ॥ AKAKKAASARASWARARAA%* नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा-सिद्धत्थे इ वा, महावीरसिज्जंसे इ वा, जसंसे इ वा ॥ समणस्स णं भग-1 वओ महावीरस्स माया वासिट्ठी गुत्तेणं, तीसे तओ श्रीवीरस्य नामधिज्जा एवमाहिजंति, तंजहा-तिसला इ वा, कुलवंशः विदेहदिन्ना इ वा, पीइकारिणी इ वा ॥ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पितिज्जे सुपासे, जिद्वे भाया नंदिवरणे, भगिणी सुदंसणा, भारिया : जसोआ कोडिन्ना गुत्तेणं ॥ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स धूआ कासवी गुत्तेणं, तीसे दो नाम-1॥ धिज्जा एवमाहिजंति, तंजहा-अणोजा इ वा, पियदंसणा इवा ॥ समणस्स णं भगवओ महावी ॥ २९ ॥ 45-4-594 SamEducation intony arrivate Anmoml LO 4- Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % 4 KARNAKA रस्स नत्तुई कोसिअ (कासव) गुत्तेणं, तीसे णं दुवे नामधिज्जा एवमाहिजंति, तंजहा-सेस-लोकान्ति कागमः वई इ वा, जसवई इ वा ॥ १०९॥ समणे भगवं महावीरे दक्खे दक्खपइन्ने पडिरूवे है। प्रोत्साहन आलीणे भद्दए विणीए नाए नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसू-11 माले तीसं वासाई विदेहंसि कड अम्मापिऊहिं देवत्तगएहिं गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुन्नाए है। समत्तपइन्ने पुणरवि लोगंतिएहिं जीअकप्पिएहिं देवेहिं ताहिं इटाहिं कंताहिं पिआहिं मणुनाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मिअमहुरसस्सिरीआहिं| हिययगमणिजाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं गंभीराहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गूहि अणवरयं अभिनंदमाणा य अभिथुवमाणा य एवं वयासी ॥ ११०॥-"जय २ नंदा!, जय २ भद्दा ! भदं ते, जय २ खत्तिअवरवसहा !, बुज्झाहि भगवं लोगनाहा !, सयलजगजीवहियं पवइत्तेहि धम्मतित्थं, हियसुहनिस्सेयसकरं सबलोए सवजीवाणं भविस्सइत्तिकद्दु जयजयसदं पउंजंति ॥१११॥ पुविपि णं समणस्स भगवओ महावीरस्स माणुस्सगाओ गिहत्थधम्माओ ***** Jain Education in Www.jainelibrary.org Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23 सांवत्सरिक दानं. कल्प बारसा चरि० ॥३०॥ ACCCASCUSSCRCHAKKOS त्यागश्च अणुत्तरे आभोइए अप्पडिवाई नाणदंसणे महावीरहत्था. तए णं समणे भगवं महावीरे तेणं अणुत्तरेणंआभोइएणं नाणदंसणेणं अप्पणो || दीक्षाकानिक्खमणकालं आभोएइ, आभोइत्ता 51 लाभोगो हिरण्यादिचिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा धणं, चिच्चा रज्जं, चिच्चा रटुं, एवं बलं वाहणं | कोसं कुट्ठागारं, चिच्चा पुरं, चिच्चा अंतेउरं,15 चिच्चा जणवयं, चिच्चा विपुलधणकणगर-15 यणमणिमुत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमा-18 इयं संतसारसावइज्जं, विच्छड्डइत्ता, विगो-12 वइत्ता, दाणं दायारेहिं परिभाइत्ता, दाणं ॥ ३० ॥ Sam Entention intime For Privam Permional timonly Aditorary.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीक्षामहोत्सवः श्रीवीरदीक्षातिथ्यादि दाइयाणं परिभाइत्ता ॥११२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिर*बहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्वेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिवट्टाए पमाणपत्ताए सुब्बएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं चंदप्पभाए सीआए सदेवमणुआसुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे, संखियचक्कियनंगलिअमुहमंगलियवद्धमाणपूसमाणघंटियगणेहिं ताहिं इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्ला 44444444MAGARMASCk कल्पसू.६ Lam Enication india Fron t onalno Www.jaindian. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा० ३१॥ णाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मिअमहुरसस्सिरीआहिं वग्गूहिं अभिनंदमाणा अभिथुवमाणा महावीरय एवं वयासी ॥११३॥-"जय २ नंदा!, जय २ भद्दा !, भदं ते खत्तियवरवसहा! अभग्गेहिं चरि० नाणदंसणचरित्तेहिं, अजियाइं जिणाहि इंदियाइं, जिअं च पालेहि समणधम्मं, जियवि-दीक्षायां ग्योऽवि य वसाहि तं देव! सिद्धिमज्झे, निहणाहि रागद्दोसमल्ले तवेणं धिइधणिअबद्धकच्छे, पौरकृताकामदाहि अट्ट कम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च वीर !न्याशीषि तेलुक्करंगमज्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलवरनाणं, गच्छ य मुक्खं परं पयं जिणवरो-15 वइटेणं मग्गेणं अकुडिलेणं हंता परीसहचमू, जय २ खत्तिअवरवसहा ! बहूई दिवसाई बहूई पक्खाई बहूई मासाइं बहूई उऊई बहूई अयणाई बहूई संवच्छराई, अभीए परीसहो-18 वसग्गाणं, खंतिखमे भयभेरवाणं', धम्मे ते अविग्धं भवउ" त्तिकट्ठ जयजयसदं पउंजंति ॥ ११४ ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे नयणमालासहस्सेहिं पिच्छिञ्जमाणे २, वयणमा-18 ॥ ३१ ॥ लासहस्सेहिं अभिथुवमाणे २, हिययमालासहस्सेहिं उन्नंदिजमाणे २, मणोरहमालासह १ अभिभविअ गामकंटए (क० कि०)। Jain Education Intel For Private & Personel Use Only X w .jainelibrary.org Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीरदीक्षा. दीक्षायै निष्क्रमः हस्सेहिं विच्छिप्पमाणे २, कंतिरूवगुणेहिं पत्थि जमाणे २, अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे २, दाहिणहत्थेणं बहूणं नरनारीसहस्साणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे २, भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे २, तंतीतलतालतुडियगीयवाइअरवेणं महुरेण य मणहरेणं जयजयसद्दघोसमीसिएणं मंजुमंजुणा घोसेण य पडिबुज्झमाणे २, सविड्डीए सवजुईए सवबलेणं सबवाहणेणं सबसमुदएणं सवायरेणं सबविभूईए सबविभूसाए सवसंभमेणं सवसंगमेणं सवपगई हिं सवनाडएहिं सवतालाय १ क सु०। २ आपूच्छिज्जमाणे (क० कि०)। Forno Mainiorary.orm Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कस्स० महावीरचरि० बारसा रित्वं च रेहिं सबोरोहेणं सवपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सबतुडियसहसन्निनाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं महया वाहणेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमग-2 प्पवाइएणं संखपणवपडहभेरिझल्लरिखरमुहिहुडुक्कदुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं कुंडपुरं नगरं | दीक्षाग्रहमझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव नायसंडवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे वनधातेणेव उवागच्छह॥ ११५॥ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ताद सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुअइ, ओमुइत्ता सयमेव । पंचमुट्ठियं लोअं करेइ, करित्ता छटेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगे अबीए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिअं पवइए ॥११६॥ समणे भगवं महावीरे संवच्छरं साहियं मासं जाव चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए है पाणिपडिग्गहिए ॥ समणे भगवं महावीरे साइरेगाई दुवालस वासाइं निच्चं वोसट्टकाए ॥ ३२ ॥ चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पजंति, तंजहा-दिवा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिआ वा, १ सहावरोहेणं कि० सु०। २ वत्थमल्ला । Jain Education Inter For Private & Personel Use Only ainelibrary.org Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्धवखदानं. उपसर्गाः श्रीवीरसाधुता च SPAANO MAHARISHICHA अणुलोमा वा पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ है॥११७॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए, ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चारपासवणखेलजल्लसंघा पारिद्रावणियासमिए मणसमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी अकोहे अमाणे अमाए अलोहे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे अणासवे अममे अकिंचणे छि Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसर्गाः कल्प बारसा ॥३३॥ SAMACASSESSMALLASSES नगंथे निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोए१, संखे इव महावीर चरि० निरंजणे२, जीवे इव अप्पडिहयगई३, गगणमिवर निरालंबणे४, वाऊ इव अप्पडिबद्दे५, सारयसलिलं | श्रीवीरख व सुद्धहियए६, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे७, कुम्मे इव | श्रामण्ये २१उपमा गुत्तिदिए८, खग्गिविसाणं व एगजाए९, विहग इव विप्पमुक्के१०, भारंडपक्खी इव अप्पमत्ते११, कुंजरे | इव सोंडीरे१२, वसहो इव जायथामे१३, सीहो इव 81 दुद्दरिसे१४, मंदरे इव निक्कंपे१५, सागरो इव गं-181 भीरे १६, चंदो इव सोमलेसे१७, सूरो इव दित्ततेए । १८, जच्चकणगं व जायरूवे१९, वसुंधरा इव सवफा-1 सविसहे२०,सुहुयहुयासणो इव तेयसा जलंते२१॥ १ छिण्णसोए (क०कि०)। २ (२) वाउच प्र.। ३ (१-२) अप्पकंपे LCALCULACK Ham Education.in Fan va sezona Lion Ahmjamotorary.or Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिवन्धाभाव: इमेसि पयाणं दुन्नि संगहणिगाहाओ-"कंसे संखे जीवे, गगणे वाऊ य सरयसलिले अ।पुक्ख-II श्रामण्ये रपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे॥१॥ कुंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे।चंदे । सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥" नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे, से अ पडिबंधे चउविहे पन्नत्ते, तंजहा-दवओ खित्तओ कालओ भावओ, दवओणं सचित्ताचित्तमी-|| सेसु दवेसु, खित्तओ णं गामे वा नगरे वा अरण्णे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा नहे | वा, कालओ णं समए वा आवलिआए वा आणपाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहुत्ते वाहा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उउएं वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकालसं-181 जोए, भावओ णं कोहे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा भए वा हासे वा पिज्जे वा दोसे ।। दवा कलहे वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरइरई(ए) वा मायामोसे वा मिच्छाहै दसणसल्ले वा, (ग्रं०६००) तस्स णं भगवंतस्स नो एवं भवइ ॥ ११८॥ से णं भगवं + वासावासवजं अट्ठ गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराइए नगरे पंचराइए वासीचंदणसमाण-* १ (१) नेमे तत्र गाथे। २ उऊ वा (क० कि०, क० सु०)। Jain Education Intel For Private & Personel Use Only Sil Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा चरि० ॥३४॥ ण्ये उत्कृष्टता AAAAAAAAAAAAAAAAAAISHAHAR समनिणमणिलेटकंचणे समक्खसहे इहलोगपरलोगअप्पडिबद्धे जीवियमरणे अमहावी कप्पे समतिण निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसत्तुनिग्घायणढाए अब्भुट्ठिए एवं च णं विहरइ ॥ ११९॥ तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं श्रीवीरविआलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुत्तरेणं वीरिएणं अणुत्तरेणं अजवेणं अणुत्तरेणं मद्दवेणं हारश्रामअणुत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणुत्तराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए । तुट्ठीए अणुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरिअसोवचिअफलनिवाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स। दुवालस संवच्छराई विइक्वंताई, तेरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दुच्चे मासे चउत्थे पक्खे वइसाहसुद्धे, तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्वेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिविट्टाए पमाणपत्ताए सुवएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं 5 जंभियगामस्स नगरस्स बहिआ उज्जुवालियाए नईए तीरे वेयावत्तस्स चेइअस्स अदूरसामंते सामागस्स गाहावईस्स कट्ठकरणंसि सालपायवस्स अहे गोदोहिआए उक्कडुअनिसि १ सममुहदुक्खे (क० कि०, क० सु०)। २ मरणा नि० (क० कि०, क० सु०)। BACLICATICAUCARROCCACHE ॥ ३४॥ Jan Education le For Private Personel Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीरकेवलज्ञानं. केवलज्ञानोत्पाद: -SERICMAMBAKAMMARBLOCAL जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छडेणं ₹ भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरिआए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ॥ १२० ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अरहा जाए, जिणे केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परिआयं जाणइ पासइ, सबलोए सवजीवाणं आगई गई ठिहं चवणं उववायं तकं मणो माणसिअंभुत्तं १ तए णं समणे भगवं महावीरे (क० कि०, क० सु०)। San Education ingaled Fan P alin Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा समवसरणं. कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं, अरहामह महावीर चरि० अरहस्सभागी, तं तं कालं मणवयकाय-18 जोगे वट्टमाणाणं सबलोए सवजीवाणं सव्व-18 श्रीवीरस्य श्रामण्ये भावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥१२१॥||चतुर्मास्यः तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अट्ठियगामं नीसाए पढमं अंतरा-18 वासं वासावासं उवागए१, चंपं च पिट्ठचंपं च नीसाए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए४, वेसालिं नगरिं वाणियगामं च ॥ ३५ ॥ नीसाए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवा-13 गए१६, रायगिहं नगरं नालंदं च बाहिरियं 3 C+C4ONG EMEducation in For Private Pessoal Leone Malaindicrary.org Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 + दिन **** ASX496AAOSAS**** नीसाए चउद्दस अंतरावासे वासावासं उवागए३०,छ मिहिलाए३६दो भद्दिआए३८ एगं आलं- निर्वाणभियाए३९ एगंसावत्थीए४० एगं पणिअभूमीए४१ एगं पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए४२ ॥ १२२॥ तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए ॥१२३॥ तस्स णं अंतरावासस्स जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तिअबहुले, तस्स णं : कत्तियबहुलस्स पन्नरसीपक्खेणं जा सा चरमा रयणी, तं रयणिं च णं समणे भगवं महा-13 वीरे कालगए विइकंते समुजाए छिन्नजाइजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिबुडे सबदुक्खप्पहीणे, चंदे नाम से दुच्चे संवच्छरे, पीइवद्धणे मासे, नंदिवद्धणे पक्खे, अग्गिवेसे 3 नाम से दिवसे, उवसमित्ति पवुच्चइ, देवाणंदा नाम सा रयणी, निरतित्ति पवुच्चइ, अच्चे 8 लवे मुहुत्ते पाणू थोवे सिद्धे नागे करणे सबसिद्धे मुहुत्ते साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागए-16 णं कालगए विइक्वंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ १२४ ॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं 8 १-२ मिहिलियाए । * Jain Education Intel For Private & Personel Use Only Al Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प. महावीरनिर्वाण. बारसा महावीरचरि० keBOACMCAMERCAMERASACADDA महावीरे कालगए जाव सवदुक्खप्पहीणे सा णं रयणी बहूहिं देवेहिं देवीहि य ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उज्जो-1 निर्वाणे देवमहोविया आविहुत्था ॥ १२५॥ जं रयणिं च त्सवः णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव है सव्वदुक्खप्पहीणे, साणं रयणी बहूहिं देवेहि | य देवीहि य ओवयमाणेहिं उप्पयमाणेहि ? य उप्पिंजलगमाणभूआ कहकहगभूआ 2 आविहुत्था ॥ १२६ ॥ जं रयणिं च णं ॥३६॥ समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च णं जिट्ठस्स 969CCCCCk 159 San Education indesh Fansonalo Swamlorary.om Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गातमगणधरः A श्रीगौतम केवलं गणराजपौषधश्च गोअमस्स इंदभूइस्स अणगारस्स अंतेवा६ सिस्स नायए पिज्जबंधणे वुच्छिन्ने, अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ॥ १२७॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं |महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च णं नव मल्लई नव लेच्छई कासीको|सलगा अट्ठारसवि गणरायाणो अमावासाए पाराभोयं पोसहोववासं पट्टविंसु, गए से |भावुज्जोए, दबुजो करिस्सामो ॥ १२८॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च णं खुदाए १ बाराभोए (क० कि०)। NKARACA%ESCAMASCARS. कल्पसू.७ Fantonio Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसा कल्प० भासरासी नाम महग्गहे दोवाससहस्सठिई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं ? महावीरसंकंते ॥ १२९ ॥ जप्पभिई च णं से खुदाए भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सठिई सम-2 चरि० ॥३७॥ णस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकंते तप्पभिई च णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गं भस्मराशिथीण य नो उदिए २ पूआसक्कारे पवत्तइ ॥१३०॥ जया णं से खुदाए जाव जम्मनक्खत्ताओ संक्रमः कुविइकंते भविस्सइ तया णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य उदिए २ पूआसक्कारे भविस्सइ । न्थुरनशनं १३१॥जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च णं कुंथू अणुधरी नामं समुप्पन्ना, जा ठिया अचलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो चक्खुफासं हव्वमागच्छति, जा अठिआ चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य चक्खुफासं हव्वमागच्छइ ॥ १३२॥जं पासित्ता बहूहिं निग्गंथेहिं निग्गंथीहि । ६य भत्ताई पच्चक्खायाइं, से किमाहु भंते! ?, अज्जप्पभिई संजमे दुराराहे भविस्सइ ॥१३३॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स इंदभूइपामुक्खाओ चउद्दस १ दुराराहए (क० सु०, क० कि०)। Jain Education Intex For Private & Personel Use Only xlww.jainelibrary.org Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधरपर्षद्, श्रीवीरपरिवारः PAASAASAASAASAASAASAASAANPAXARO समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ समणसंपया हुत्था ॥ १३४॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स अज्जचंदणापामुक्खाओ छत्तीसं अजियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया का हुत्था ॥ १३५ ॥ समणस्स भगवओ० संखसयगपामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउणष्टुिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था॥१३६॥ समणस्स भगवओ० सुलसारेवईपामुक्खाणं समणोवासिआणं तिन्नि सयसाहस्सीओ अट्ठारस सहस्सा उक्कोसिआ सम १ साहस्सीओ (क० कि०)। सयसाहस्सी अउणहिँ च सहस्सा उक्को-मारक SamEducation. it Far.PrivaDAFermonalisnOnly Rainiorary.org Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० ॥ ३८॥ रिवार: णोवासियाणं संपया हुत्था ॥ १३७॥ समणस्स णं भगवओ० तिन्नि सया चउद्दसपुवीणं 8 महावीर चरि० अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसन्निवाईणं जिणोविव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिआ चउद्दसपुवीणं संपया हुत्था ॥ १३८॥ समणस्स० तेरस सया ओहिनाणीणं अइ-श्रीवीरपसेसपत्ताणं उक्कोसिया ओहिनाणिसंपया हुत्था ॥ १३९ ॥ समणस्स णं भगवओ० सत्त सया केवलनाणीणं संभिण्णवरनाणदंसणधराणं उक्कोसिया केवलनाणिसंपया हुत्था ॥१४॥ समणस्स णं भ० सत्त सया वेउवीणं अदेवाणं देविडिपत्ताणं उक्कोसिया वेउब्वियसंपया : हुत्था ॥ १४१ ॥ समणस्स णं भ० पंच सया विउलमईणं अड्डाइजेसु दीवेसु दोसु अ समु। हेसु सन्नीणं पंचिंदियाणं पजत्तगाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं उक्कोसिआ विउलमईणं , संपया हुत्था ॥ १४२ ॥ समणस्स णं भ० चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुआसुराए परिसाए वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया हुत्था ॥ १४३॥ समणस्स णं भगवओ० सत्त अंतेवासिसयाइं सिद्धाइं जाव सबदुक्खप्पहीणाई, चउद्दस अज्जियासयाइं सिद्धाइं ॥ ३८ ॥ Jain Education Inted.221 For Private & Personel Use Only W ww.jainelibrary.org Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवसरणं. श्रीवीरस्यान्तकृभूमिः I॥ १४४ ॥ समणस्स णं भग० अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभदाणं उक्कोसिआ अणुत्तरोववाइयाणं संपया हुत्था ॥ १४५॥ समणस्स भ० दुविहा अंतगडभूमी हुत्था, तंजहा-जुगंतगडभूमी य परियायंतगडभूमी य, जाव तचाओ पुरिसजुगाओ जुगंतगडभूमी, चउवासपरियाए अंतमकासी॥१४६॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता साइरेगाई दुवालस वासाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता am Enesamanna FarPrivacPersonal use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा ॥ ३९॥ देसूणाइं तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउ- महावीर चरि० णित्ता बावत्तरि वासाइं सवाउयं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दसमससमाए समाए बहविइक्वंताए तीहिं वासेहिं अनवमेहि य मासेहिं सेसेहिं पावाए | श्रीवीरवृ. मज्झिमाए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जुयसभाए एगे अबीए छटेणं भत्तेणं अपाणएणं साइणा इत्तोपसंहारः नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पञ्चूसकालसमयंसि संपलिअंकनिसण्णे पणपन्नं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाइं पणपन्नं अज्झयणाई पावफलविवागाइं छत्तीसं च अपुट्ठवागरणाइं वागरित्ता है पहाणं नाम अज्झयणं विभावेमाणे २ कालगए विइकंते समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधणे ६ सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिबुडे सवदुक्खप्पहीणे ॥ १४७॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सवदुक्खप्पहीणस्स नव वाससयाई विइक्वंताई दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ, वायणंतरे पुण अयं तेणउए संवच्छरे काले गच्छइ इइ दीसइ ॥ १४८॥ २४ ॥ इति श्रीमहावीरचरित्रम् ॥ Jain Education inte For Private Personal use only X w w.jainelibrary.org Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वनाथः श्रीपार्श्वत्ते जघन्यमध्यमवा तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए पंचविसाहे हुत्था, तंजहाविसाहाहिं चुए चइत्ता गम्भं वकंते १, विसाहाहिं जाए२, विसाहाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिअंपवइए३, विसाहाहिं अणंते अणुत्तरे निवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने४, विसाहाहिं परिनियुए५॥१४९॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थीपक्खे णं पाण 44CLAL-CA-145464NESCANC+C+CSCRESC4 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वनाथख मातुः स्वप्नाः कल्प बारसा० ॥४०॥ TETSHALA SROVIDEDIC च्यवनकल्याणकं याओ कप्पाओ वीसंसागरोवमद्रिइयाओ पार्श्वनाथ चरि० अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे ? भारहे वासे वाणारसीए नयरीए आससेणस्स रण्णो वामाए देवीए पुनरत्तावरत्तकालसम-21 यंसि विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं । आहारवक्कंतीए (ग्रं. ७०० ) भववक्कंतीए 2 सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्रते. ॥ १५०॥ पासे णं अरहा पुरिसादाणीए । तिन्नाणोवगए आविहुत्था, तंजहा-चइस्सा-1॥ ४० ॥ मित्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, चुएमित्तिजाणइ, तेणं चेव अभिलावेणं सुविणदसण Too000 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वजन्म. जन्मकल्याणकं SSUBCROSMUSAHASCALARSA विहाणेणं सवं जाव निअगं गिहं अणुपविट्ठा, जाव सुहंसुहेणं तं गभं परिवहइ ॥ १५१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे से हेमंताणं दुच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले, तस्स णं पोसबहुलस्स दसमीपक्खे णं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदिआणं विइक्कंताणं पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया॥१५२॥ जं द्वारयणिं च णं पासे० जाए सा रयणी बहूहिं देवेहिं देवीहि य जाव उप्पिजलगभूया कहक १ तं स्यणिं च णं (क० कि०, क० सु०)। Iaa8000 Sam Educational Fonolo Mahatainmetry.org Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा० ॥ ४१ ॥ Jain Education & श्रीपार्श्व जन्माभिषेकः हगभूया याविहुत्था ॥ १५३ ॥ सेसं तहेव, नवरं जम्मणं पासाभिलावेणं भाणिअवं, जावतं होउ णं कुमारे पासे नामेणं ॥ १५४ ॥ पासे अरहा पुरिसादाणीए दक्खे दक्खपन्ने पडरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए तीसं वासाइं अगारवासमझे वसित्ता पुणरवि लोगंतिएहिं जीअकप्पेहिं देवेहिं ताहिं इट्ठाहिं जाव एवं वयासी ॥ १५५ ॥ - " जय जय नंदा !, जय जय भद्दा !, भदं ते " जाव जयजयसद्दं परंजंति ॥ १५६ ॥ पुधिंपि णं पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स माणुस्सगाओ For Private & Personal Lise Only पार्श्वनाथचरि० नामकरणं लोकान्ति कागमश्च ॥ ४१ ॥ niretibrary.org Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1185 de Jain Education inte कमठस्य तपः नागस्य निष्काशनं नमस्कारश्रावणं च व BAS D Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा० ॥ ४२ ॥ Jan Education श्री पार्श्वस्य सांवत्सरिदानं. द गिहत्थधम्माओ अणुत्तरे आभोइए तं चैव सवं जाव दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता जे से हेमंताणं दुच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले, तस्स णं पोसबहुलस्स इक्कारसीदिवसे णं पुवण्हकालसमयंसि विसालाए सिबिआए सदेवमणुआसुराए परिसाए, तं चैव सवं नवरं वाणारसिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव आसमपए उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता पार्श्वनाथचरि० दीक्षामहो रसवः ॥ ४२ ॥ wjainelibrary.org Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वदीक्षामहोत्सवः. श्रीपार्श्वनाथदीक्षा सीयाओ पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुअइ, सय० ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोअं करेइ, करित्ता अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय तीहिं पुरिससएहिं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पचइए ॥ १५७ ॥ पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तेसीइं राइंदियाइं निच्चं वोसढकाए चियत्तदेहे जे केई उवसग्गा उप्प जंति, तंजहा-दिवा वा माणुस्सा वा तिरिकल्पसक्ख जोणिआ वा अणुलोमा वा पडिलोमा SUOSISAASAARISES 845454RORS-CRACROSARNAMSARDAR NCESS For Privam spamonalinone Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० ॥ ४३ ॥ Jain Education Innal श्रीपार्थदीक्षा कल्याण. कमठकृत उपसर्गः धरणेन्द्रागमथ. Y पार्श्वनाथचरि० ॥ ४३ ॥ www.janetbrary.org Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAR ALECIO Medita Jain Education I वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥ १५८ ॥ तए णं से पासे भगवं अणगारे जाए ईरियासमिए भासा - समिए जाव अप्पाणं भावेमाणस्स तेसीइं राइंदियाई विइकंताई, चउंरासीइमे राईदिए अंतरा वट्टमाणे जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्स णं | चित्तबहुलस्स चउत्थीपक्खे णं पुवण्हकालसमयंसि धायईपायवस्स अहे छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्वत्तेणं १ चउरासीइमस्स राईदिअस्स अंतरा वट्टमाणस्स (क० कि०, क०सु० ) । श्री पार्श्वसमवसरणं. श्रीपार्श्व स्थानगा रिता AR 11 janetorory.org Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा श्रीपार्श्वगणधरपर्षद, चरि० ॥४४॥ जोगमुवागएणं झाणंतरिआए वट्टमाणस्स पार्श्वनाथअणंते अणुत्तरे निवाघाए निरावरणे जाव। केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने जाव जाण-1 श्रीपार्श्वमाणे पासमाणे विहरइ ॥१५९॥ पासस्स नाथस्य के वलं पर्षच णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा हुत्था, तंजहा-सुभे य १३ अजघोसे य २, वसिढे ३ बंभयारि य४॥ सोमे ५ सिरिहरे ६ चेव, वीरभद्दे ७ जसे-13 विय ८॥ १६० ॥ पासस्स णं अरहओ ॥४४॥ पुरिसादाणीयस्स अन्जदिण्णपामुक्खाओ सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ सम mementioned Fan F ont Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARCRACKERALACE णसंपया हुत्था ॥ १६१ ॥ पासस्स णं अ० पुप्फचूलापामुक्खाओ अट्ठत्तीसं अज्जियासाह- श्रीपार्श्व ||स्य पर्षत् स्सीओ उक्कोसिआ अजियासंपया हुत्था ॥ १६२॥ पासस्स. सुब्बयपामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सीओ चउसद्धिं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासगाणं संपया हुत्था । ॥ १६३॥ पासस्स० सुनंदापामुक्खाणं समणोवासियाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासियाणं संपया हुत्था ॥ १६४॥ पासस्स० अडुट्ठसया । चउद्दसपुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सबक्खर जाव चउद्दसपुवीणं संपया हुत्था । ॥ १६५॥ पासस्स णं० चउद्दस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवलनाणीणं, इक्कारस सया । वेउवियाणं, छस्सया रिउमईणं, दस समणसया सिद्धा, वीसं अज्जियासया सिद्धा, अट्ठशमसया विउलमईणं, छ सया वाईणं, बारस सया अणुत्तरोववाइयाणं ॥ १६६ ॥ पासस्स है णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतगडभूमी हुत्था, तंजहा-जुगंतगडभूमी परियायंतगडभूमी य, जाव चउत्थाओ पुरिसजुगाओ जुगंतगडभूमी, तिवासपरिआए Jain Education Intern For Private & Personel Use Only S ww.jainelibrary.org Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्थनिर्वाणं. कल्प० बारसा० ॥४५॥ वासादि RASAARLASHIRIKIANA अंतमकासी ॥ १६७॥ तेणं कालेणं तेणं पार्श्वनाथ चरि० समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए तीसं| वासाई अगारवासमझे वसित्ता तेसीइं| श्रीपार्थराइंदिआई छउमत्थपरिआयं पाउणित्ता | त्यागारदेसूणाई सत्तरि वासाई केवलिपरिआयं । पाउणित्ता पडिपुण्णाई सत्तरि वासाई सामण्णपरिआय पाउणित्ता एकं वास-| सयं सवाउयं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जा-12 उयनामगुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसम-II सुसमाए समाए बहुविइकंताए जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावण-II ॥४५॥ FarrDAPRIL Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वसमवसरणं. श्रीपार्थस्य मोक्षः GRATISHAAAAAA*** सुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स अट्ठमीपक्खे णं उप्पि संमेअसेलसिहरंसि अप्पचउत्तीसइमे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वण्हकालसमयंसि वग्घारियपाणी कालगए विइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ १६८॥ पासस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स दुवालस वाससयाई विइक्वंताई, तेरसमस्स य अयं तीसइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १६९॥ २३॥ ॥ इति श्रीपार्श्वचरित्रम् ॥ १ पुत्वरत्तावरच० (क० कि०, क० सु०)। an Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमनाथः, कल्प० बारसा नेमनाथचरि० ॥४६॥ कानि SCLESCANCLICANCELCOMC+CACANCECA तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी पंचचित्ते हुत्था, तंजहा-चित्ताहिं चुए चइत्ता । गब्भं वक्तंते, तहेव उक्खेवो जाव चित्ताहिं परि-श्रीनेमिनः निवुए॥७०॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा, कल्याणअरिटुनेमी जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे | पक्खे कत्तिअबहुले, तस्स णं कत्तियबहुल-15 स्स बारसीपक्खे णं अपराजिआओ महाविमा-18 णाओ बत्तीससागरोवमठिइआओ अणंतरं चयं । चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोरिय-15 पुरे नयरे समुद्दविजयस्स रण्णो भारिआए। सिवाए देवीए पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव है १ सिवादेवीए (क० कि०, क० सु०)। ॥४६॥ 154 Sannication Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jam Education inter चित्ताहिं गव्भत्ताए वक्कंते, सवं तहेव सुमिणदंसणदविणसंहरणाइअं इत्थ भाणियवं ॥ १७१ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स पंचमीपक्खे णं नवहं मासाणं जाव चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जाव आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया ॥ जम्मणं समुद्दविजयाभिलावेणं नेयवं, जाव तं होउ णं कुमारे अरिट्ठनेमी नामेणं ॥ अरहा अरिट्ठनेमी दक्खे जाव तिण्णि वाससयाई कुमारे अगा १ तमेव । नेमिमातुः स्वमाः श्रीनेमि जन्म Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमनाथजन्म. नेमनाथजन्माभिषेकः, नेमनाथचरि० कल्प वारसा ॥४७॥ 8007 2000 50.00 ॥४७॥ Do0 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमनाथसांवत्सरिकदानं. श्रीनेमिनो दीक्षोत्सवः दरवासमज्झे वसित्ता णं पुणरवि लोगंतिद एहिं जीअकप्पिएहिं देवेहिं तं चेव सव्वं भाणियचं, जाव दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता |॥ १७२॥ जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स छट्ठीपक्खे णं पुखण्हकालसमयंसि उत्तरकुराए सीयाए सदेवमणुआसुराए परि साए अणुगम्ममाणमग्गे जाव बारवईए नियरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्ग च्छित्ता जेणेव रेवयए उजाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपाय Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा० ॥ ४८ ॥ नेमनाथदीक्षा महोत्सवः. वस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमलालंकारं ओमुयइ, सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवसमादाय एगेणं पुरिससहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए ॥ १७३॥ अरहा णं अरिट्ठनेमी चउपन्नं राइंदियाइं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे, तं चैव सव्वं जाव पणपन्नगस्स राईदियरस अंतरा वट्टमाणस्स जे से वासाणं नेमनाथ - चरि० श्रीनेमिनो दीक्षा ॥ ४८ ॥ Torren Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SS श्रीनेमिदीक्षा. श्रीनेमिप्रभोः केवलं. CSASACSCARSCARRORSCIENCE कल्पसू. ९ Cam Ehemion For F Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिसमवसरणं. कल्प बारसा० ॥४९॥ REASONSCALCASCAMERAMONSOOCAUSACHCHA तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले, तस्स शनेमनाथणं आसोयबहुलस्स पन्नरसीपक्खे णं दिव-12 चरि० सस्स पच्छिमे भाए उजिंतसेलसिहरे वेड-2 श्रीनेमिप्रसपायवस्स अहे छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं | भोः केवलं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरि-18 याए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे जाव सव-13 लोए सबजीवाणं सबभावे जाणमाणे पास-1 माणे विहरइ ॥ १७४॥ अरहओ णं अरि-181 द्वनेमिस्स अट्ठारस गणा अट्ठारस गणहरा हुत्था ॥१७५॥अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स ॥४९॥ -१ अट्टमेणं (क० कि०, क० सु०)। २ चित्ताहिं नक्खतेणं (क० कि०, क० सु०)। FarmsPmonalisa Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमि १८ गणधरपर्षद् Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा चरि० ॥५०॥ वार: वरदत्तपामुक्खाओ अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया हुत्था ॥ १७६॥ नेमनाथअरहओ णं अरिट्टनेमिस्स अज्जजक्खिणीपामुक्खाओ चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया हुत्था ॥ १७७॥ अरहओ णं अरिदुनेमिस्स नंदपामुक्खाणं समणो-श्रीनेमि प्रभोः परिवासगाणं एगा सयसाहस्सीओ अउणत्तरं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था है। ॥ १७८ ॥ अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स महासुवयापामुक्खाणं समणोवासिगाणं तिण्णि सयहूँ साहस्सीओ छत्तीसं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासिआणं संपया हुत्था ॥ १७९॥ अरहओ णं अरिद्वनेमिस्स चत्तारि सया चउद्दसपुषीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सबक्खर-| सन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिआ चउद्दसपुवीणं संपया 8 ॥ ५० ॥ हुत्था ॥ १८० ॥ पन्नरस सया ओहिनाणीणं, पन्नरस सया केवलनाणीणं, पन्नरस सया वेउधिआणं, दस सया विउलमईणं, अट्ठ सया वाईणं, सोलस सया अणुत्तरोववाइआणं, पन्न Jan Education in For Private Personel Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inter रस समणसया सिद्धा, तीसं अज्जियासयाइं सिद्धाई ॥ १८१ ' ॥ अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स दुविहा अंतगडभूमी हुत्था, तंजहा - जुगंतगडभूमी परियायंतगडभूमी य जाव अट्टमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतगडभूमी, दुवासंपरिआए अंतमकासी ॥ १८२ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी तिण्णि वाससयाई कुमारवासमझे वसित्ता चउपन्नं राइंदियाईं छउमत्थपरिआयं पाउ णित्ता देसूणाई सत्त वाससयाई केवलिपरिआयं पाउ णित्ता पडिपु - ण्णाई सत्त वाससयाई सामण्णपरिआयं पाउणित्ता एगं वाससहस्सं सवाउअं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसमसुसमाए समाए बहुविइक्कताए जे से गिम्हाणं उत्थे मासे अट्टमे पक्खे आसाढमुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स अट्टमीपक्खे णं उपि उञ्जितसेलसिहरंसि पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं १ १८० सु० । किरणावल्यां यदेकाशीत्यधिकशततमं सूत्रं तत्रैकाशीत्यधिकशततमत्वेन व्यशीत्यधिकशततमत्वेन चोपन्यस्तम् । सुवोधिकायां त्वशीत्यधिकशततमं यत्तत् सूत्रमत्राशीत्यधिकशततमत्वेनै काशीत्यधिकशततमत्वेन च विभक्तम्, अत एवेतः प्रारभ्य किरणावलिसुबोधिकातोऽत्र चतुरधिकशतद्वयसूत्रपर्यन्तमेकाङ्काधिक्यम् । २ दुवालस० (क० कि० क०सु० ) । श्रीनेमिनोऽन्तकृद्भूम्यादि Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनिर्वाणं. कल्प० बारसा ॥५१॥ वाचनयो रन्तरं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुवर-18 नेमनाथ चरि० त्तावरत्तकालसमयंसि नेसज्जिए कालगए। (I.८००)जाव सबदुक्खप्पहीणे॥१८३॥ श्रीनेमि अरहओ णं अरिदुनेमिस्स कालग-181 यस्स जाव सबदुक्खप्पहीणस्स चउरासीइं वाससहस्साई विइकंताई, पंचा-18 सीइमरस वाससहस्सस्स नव वाससयाई विइक्वंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥१८४॥२२॥ इति श्रीनेमिनाथचरित्रम्॥ MASASHOGARIAN ॥५१॥ १ चित्ताहिं नक्खत्तेणं (क०सु०)। FO Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सबदुक्खप्पहीणस्स पंच वाससयसहस्साइंश्रीजिना नामन्तचउरासीइं च वाससहस्साई नव य वाससयाई विइक्वंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं ।। राणि असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८५॥२१॥ | मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ कालगयस्स इक्कारस वाससयसहस्साई चउरासीइं च वास. सहस्साइं नव वाससयाई विक्कंताई. दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८६॥२०॥ RI मल्लिस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स पन्नढिं वाससयसहस्साई चउरासीइं| च वाससहस्साइं नव वाससयाई विइक्वंताई, दसमस्स य वाससयस अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८७॥ १९॥ | अरस्स णं अरहओ जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे वासकोडिसहस्से विइकंते, सेसं जहा मल्लिस्स, तं च एयं-पंचसटुिं लक्खा चउरासीइं सहस्सा विइकंता, तंमि समए महा Jan Education Inter For Private Personel Use Only ww.jainelibrary.org Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा ॥ ५२ ॥ Jain Education Inter वीरो निबुओ, तओ पर नव वाससया विइक्कंता दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे | संवच्छरे काले गच्छइ । एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दट्ठवं ॥ १८८ ॥ १८ ॥ कुंथुस्स णं अरहओ जाव सबदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभागपलिओवमे विइकंते पंचसट्ठि वाससयसहस्सा, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १८९ ॥ १७॥ संतिस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभागूणे पलिओवमे विइकंते पन्नट्ठि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १९० ॥ १६ ॥ धम्मस्स णं अरहओ जाव सबदुक्खप्पहीणस्स तिष्णि सागरोवमाई विइक्ताई पन्नट्ठि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १९१ ॥ १५ ॥ अणंतस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स सत्त सागरोवमाई विइक्कंताईं पन्नट्ठि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १९२ ॥ १४ ॥ विमलस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स सोलस सागरोवमाइं विइक्कताई पन्नट्ठि च, श्रीजिना नामन्त राणि ॥ ५२ ॥ ww.jainelibrary.org Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० जिनाः अंतरेषु (२१ तः १२ यावत् ) श्रीजिनानामन्तराणि + सेसं जहामल्लिस्स॥१९३॥१३॥ वासुपुजस्स णं अरहओ हूँ जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स छाया लीसं सागरोवमाई विइकंताई पन्नटुिं च, सेसं जहा मल्लिस्स हूँ॥ १९४ ॥ १२॥ सिजंसस्स णं अरहओ जाव सबदुक्खप्पहीणस्स एगे साग* रोवमसए विइक्कंते पन्नटुिं च, हूँ सेसंजहा मल्लिस्स॥१९५॥११॥ सीअलस्स णं अरहओ जाव । faadla यसमावस्या शमसंबच हन्ना SCALCANOROCRACANCIESCRESOMNCREC San E mion.inter For Pool on Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प ॥ ५३॥ सबदुक्खप्पहीणस्स एगा सागरोवमकोडी तिवासअनवमासाहिअबायालीसवाससहस्सेहिं श्रीजिनाधारसा ऊणिआ विइक्वंता, एयंमि समए वीरो निवुओ, तओऽविय णं परं नव वाससयाई विइक्वंताई, नामन्त राणि 15 दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १९६॥ १०॥ सुविहिस्स णं अरहओ पुप्फदंतस्स जाव सवदुक्खप्पहीणस्स दस सागरोवमकोडीओ है विइक्वंताओ, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवासअनवमासाहिअबायालीसवाससहकस्सेहिं ऊणिआ विइक्कंता इच्चाइ ॥ १९७॥९॥ - चंदप्पहस्सणं अरहओ जाव पहीणस्स एगं सागरोवमकोडिसयं विइक्वंतं, सेसं जहा सीअ-12 लस्स, तं च इमं-तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवाससहस्सेहिं ऊणगमिच्चाइ॥१९८॥८॥ सुपासस्स णं अरहओ जाव पहीणस्स एगे सागरोवमकोडिसहस्से विइक्कंते सेसं ॥१३॥ जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवासअघनवमासाहिअबायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिआ है इच्चाइ ॥ १९९॥७॥ १ऊणिआई विइकंताई इच्चाइअं (क० सु०) Jan Education Inter For Private Personal Use Only G w .jainelibrary.org Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० जिनाः अंतरेषु (११ तः २ यावत् ) श्रीजिनानामन्तराणि पउमप्पहस्स णं अरहओ जाव पहीणस्स दस सागरोवमकोडिसहस्सा विइकंता, तिवासअद्धनवमासाहियबायालीसवासहस्सेहिं इच्चाइयं, सेसं जहा सीअलस्स ॥२०० ॥६॥ सुमइस्स णं अरहओ जाव पहीणस्स एगे सागरोवमकोडिसयसहस्से विइक्कंते, सेसं जहा सीअलस्स, तिवासअनवमासा६ हियबायालीसवाससहस्सेहिं इ६च्चाइयं ॥ २०१ ॥ ५॥ एलिवमेव संजदामल्लिा पदाणसावर तमहिंघास रदडावा HIRO Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा० ॥ ५४ ॥ Jain Education Inte अभिनंदणस्स णं अरहओ जाव पहीणस्स दस सागरोवमकोडिसयसहस्सा विइकंता, सेसं जहा सीअलस्स तिवासअहनवमासा हियबायालीसवाससहस्सेहिं इच्चाइयं ॥ २०२ ॥ ४ ॥ संभवस्स णं अरहओ जाव पहीणस्स वीसं सागरोवमकोडिसयसहस्सा विइकंता, सेसं जहा सीअलस्स, तिवास अद्धनवमासा हियबायालीसवाससहस्सेहिं इच्चा इयं ॥ २०३ ॥ ३ ॥ अजियस्स णं अरहओ जाव पहीणस्स पन्नासं सागरोवमकोडिसयसहस्सा विइक्कंता, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इमं - तिवास अद्धनवमासाहियबायालीसवाससहस्सेहिं इच्चाइयं ॥ २०४ ॥२॥ ॥ इति अन्तराणि ॥ श्रीजिनानामन्त राणि ॥ ५४ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसू. १० Jam Education Inter तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे णं अरहा कोसलिए चउउत्तरासाढे अभीइपंचमे हुत्था, तंजहा- उत्तरासादाहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते जाव अभीइणा परिनिए ॥ २०५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे आसाढबहुले, तस्स णं आसाढबहुलस्स चउत्थीपक्खे णं सङ्घट्टसिद्धाओ महावि १२०४ कि०सु० । एतत्सूत्रं किरणावल्यां सुबोधिकायां च चतुरधिकद्विशततमत्वेन पश्चाधिकद्विशततमत्वेन च द्विधा विभक्तम् । For Private & Pormonal Use Only श्री आदिनाथः श्रीऋषभ देवस्य च्यवनादि noforary.org Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथमातुः स्वप्नाः कल्प बारसा ॥५५॥ **CUSTAQIRMASALAHARICARE SRL माणाओ तित्तीसं सागरोवमट्रिइआओ अणं-आदिनाथ चरि० तरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भार-12 हे वासे इक्खागभूमीए नाभिस्स कुलगरस्स श्रीऋषभमरुदेवीए भारिआए पुवरत्तावरत्तकालसम- देवस्य च्यवनादि यंसि आहारवक्कंतीए जाव गव्भत्ताए वकंते ४ ॥ २०६ ॥ उसमे णं अरहा कोसलिए तिन्नाणोवगए आविहुत्था, तंजहा-चइस्सामित्ति जाणइ जाव सुमिणे पासइ, तंजहागयवसह० गाहा । सवं तहेव, नवरं पढम डा उसमें मुहेणं अइंतं पासइ, सेसाओ गयं ॥ ५५ ॥ नाभिकुलगरस्स साहई, सुविणपाढगा नत्थि,18 १ मरुदेचाए (क०कि०,००)। २ साहेइ (क० कि०,००)। reOO09060 HEARSA mEducation intold For Privars spemommon aimeriorary.org Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथजन्म. श्रीऋषभस्य जन्म भामाशालामायाजाणाडाचावाय नाभिकुलगरो सयमेव वागरेइ ॥ २०७॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स अट्ठमीपक्खे णं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुदणाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं जाव आसा ढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जाव आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया ॥२०८॥ तं चेव सवं, जाव देवा देवीओ य वसुहारवासं वासिंसु, सेसं तहेव चारगसोहणमाणुम्माणवड्डणउस्सुक्कमाइयट्ठिइवडियजूयवज्जं ttttttttttt 89oOO 22000 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्रकृता नमुत्थुणंस्तुतिः श्रीआदिनाथाभिषेक कल्प वारसा आदिनाथचरि० WHA HOSHOCOCCCEBOHOROSAGACASSACROSAROKAR ।। ५६ ॥ Sam Eduman indnist Fonamento Mainion.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदीश्वरराज्याभिषेक श्रीऋषमास्य नामादि सव्वं भाणिअवं ॥ २०९॥ उसमे णं अरहा कोसलिए कासवगुत्ते णं, तस्स णं पंच नाम धिज्जा एवमाहिजंति, तंजहा-उसमे इ वा, 18पढमराया इ वा, पढमभिक्खायरे इ वा, पढ मजिणे इ वा, पढमतित्थयरे इ वा ॥२१०॥ उसमे णं अरहा कोसलिए दक्खे दक्खपइण्णे |पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए वीसं पुवसयसहस्साई कुमारवासमझे वसइ, वसित्ता तेवढेि पुत्वसयसहस्साइं रज्जवासमझे वसइ, तेवढेि च पुत्वसयसहस्साइं रज्जवासमझे वसमाणे लेहाइआओ गणियप्पहाणाओ सउणरु ASSESSES Jain Enacation intari For Pool Only Mainatorry.org Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथराज्यारोहणं. कल्प० बारसा ॥ ५७॥ लोकान्ति HANSASSASSANOSAIIANSHORAIRAASA यपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ चउ-आदिनाथसष्टुिं महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं, चरि० तिनिऽवि पयाहिआए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभि-कागमादि सिंचित्ता पुणरवि लोअंतिएहिं जीअकप्पिएहिं देवेहिं ताहिं इटाहिं जाव वग्गूहिं, सेसं तं चेव सवं भाणिअवं, जाव दाणं दाइआणं परिभाइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्सा णं चित्तबहुलस्स अट्ठमीपक्खे णं दिवसस्स पच्छिमे भागे सुदंसणाए सीयाए सदेवम RIPARISHICHIRRATIA OCH ॥ ५७॥ Sam Education in Marator Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथसांवत्सरिकदानं. श्रीऋषभस्य दीक्षा ADSAMACEBCASSACSCAMSANCHAR णुआसुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे जाव विणीयं रायहाणिं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव सिद्धत्थवणे उजाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे जाव सयमेव चउमुट्ठिअं लोअं करेइ, करित्ता छटेणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं खत्तियाणं च चउहिं पुरिससहस्सेहिं सद्धिं एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए॥२११॥ SCSCCCCESCENCEBOOSCOSCARSCIENCSC 12 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथदीक्षामहोत्सवः.. श्रीआदिनाथदीक्षा. कल्प बारसा आदिनाथचरि० ॥५८ ॥ +%AASANASAKARANG ॥ ५८॥ AREnication in Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथसमवसरणं. श्रीऋषभस्य केवलं -SCARRORESCORRORSCO CAREERSONSCNOCESS उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा जाव अप्पाणं भावेमाणस्स इक्कं वाससहस्सं विइकंतं, तओ णं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे फग्गुणबहुले, तस्स णं फग्गुणबहुलस्स इक्कारसीपक्खेणं पुवण्हकालसमयंसि पुरिमतालस्स नयरस्स बहिआ सगडमुहंसि उजाणंसि नग्गोहवरपायवस्स अहे अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरिआए वट्टमाणस्स अणंते जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥२१२॥ +%A5 % Sam Education imrikn For Ponton Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० ॥ ५९ ॥ Jam Education Into c श्री आदिनाथस्य ८४ एतादृशा गणधराः आदिनाथपरि० ॥ ५९ ॥ Janorary or Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A वार: AASASAASAASAASAASAASAASA उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स चउरासीई गणा, चउरासीई गणहरा हुत्था॥२१३॥ श्रीऋषभ स्य परिउसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स उसभसेणपामुक्खाणं चउरासीइओ समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया हुत्था ॥ २१४ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बंभीसुंदरी-1* पामुक्खाणं अज्जियाणं तिणि सयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया हुत्था ॥२१५॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स सिजंसपामुक्खाणं समणोवासगाणं तिण्णि सयसाह-18 स्सीओ पंच सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगसंपया हुत्था ॥ २१६ ॥ उसभस्स णं अर-10 हओ कोसलिअस्स सुभद्दापामुक्खाणं समणोवासियाणं पंच सयसाहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था ॥ २१७॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स चत्तारि सहस्सा सत्त सया पण्णासा चउद्दसपुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं जाव उक्कोसिया चउद्दसपुविसंपया हुत्था ॥ २१८॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स नव सहस्सा ओहिनाणीणं० उक्कोसिया समणसंपया हुत्था॥२१९॥उसभस्स णं अरहओ CCOCCASNESCANCHORCHECK Jain Education in For Private & Personel Use Only | Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० ॥ ६० ॥ Jain Education In कोसलिअस्स वीस सहस्सा केवलनाणीणं० उक्कोसिया केवलनाणि संपया हुत्था ॥ २२० ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीस सहस्सा छच्च सया वेउबियाणं० उक्कोसिया समणसंपया हुत्था ॥ २२१ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बारस सहस्सा छच्च |सया पण्णासा विउलमईणं अड्डाइजेसु दीवसमुद्देसु सन्नीणं पंचिंदियाणं पञ्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं पासमाणाणं उक्कोसिआ विउलमइसंपया हुत्था ॥ २२२ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बारस सहस्सा छच्च सया पण्णासा वाईणं० संपया हुत्था ॥ २२३ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीसं अंतेवासिसहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अजियासाहसीओ सिद्धाओ ॥ २२४ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बावीस सहस्सा नव सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं जाव भद्दाणं उक्कोसिआ० संपया हुथा ॥ २२५ ॥ उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स दुविहा अंतगडभूमी हुत्था, तंजहा - जुगंतगडभूमी य परियायंतगडभूमी य, जाव असंखिजाओ पुरिसजुगाओ १ दीवेसु दोसु अ समृद्देसु (क० कि, क०सु० ) । २ सदस्साओ ( क०सु०, क० कि० ) । आदिनाथचरि श्रीऋषभ स्य परि वारः ॥ ६० ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र्वाण जुगंतगडभूमी, अंतोमुहुत्तपरिआए अंतमकासी ॥ २२६ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं | श्रीआदिउसमे णं अरहा कोसलिए वीसं पुवसयसहस्साई कुमारवासमझे वसित्ताणं तेवढेि ।। नाथनिपुवसयसहस्साइं रज्जवासमझे वसित्ताणं तेसीइं पुवसयसहस्साई अगारवासमझे व त्तिाणं एगं वाससहस्सं छउमत्थपरिआयं पाउणित्ता एगं पुवसयसहस्सं वाससहस्सूणं 51 केवलिपरिआयं पाउणित्ता पडिपुण्णं पुश्वसयसहस्सं सामण्णपरियागं पाउणित्ता चउरासीई पुवसयसहस्साइं सवाउयं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए सुस-|| मदूसमाए समाए बहुविइक्कंताए तीहिं वासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसेहिं जे से हेम-18 ताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स (ग्रं०९००) तेरसीपक्खे णं हूँ। उप्पि अट्ठावयसेलसिहरंसि दसहिं अणगारसहस्सेहिं सद्धिं चोद्दसमेणं भत्तेणं अपाणएणं| अभीइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पवण्हकालसमयंसि संपलियंकनिसण्णे कालगए |विइकंते जाव सवदुक्खप्पहीणे ॥ २२७॥ १ संपुण्णं (क० कि.)। AMACAKACAUCARECSCARRORSCRCREAK कल्पसू.११ Jain Education Intem For Private & Personel Use Only K inelibrary.org Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआदिनाथनिर्वाणं. कल्प 65%-26 बारसा ॥६१ ॥ नाथवाच ACCECACALCALCOLORCACADERSACS उसभरस णं अरहओ कोसलियस्स आदिनाथ चरि० कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स तिणि वासा अद्धनवमा यमासा विइक्ता, त-श्रीआदिओऽवि परंएगासागरोवमकोडाकोडी तिवा नयोरन्तरं सअद्धनवमासाहियबायालीसाए वाससह-18 स्सेहिं ऊणिया विइक्वंता,एयंमि समए समणे 2 भगवं महावीरे परिनिबुडे, तओऽवि परं नव वाससया विइक्कंता, दसमस्सय वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥२२८ ॥ इति श्रीऋषभचरित्रं. प्रथमं वाच्यं च। CSCAM- ॥६१॥ SamEnesmon intermil FarPrivate Pemonalismonik Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jam Education Inter तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा हुत्था ॥ १ ॥ से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा हुत्था ? ॥ २ ॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स जिट्ठे इंदभूई अणगारे गोयमगुंत्ते णं पंच समणसयाई वाएइ, मज्झिमए अग्गिभूई अणगारे गोयमगुत्ते णं पंच समणसयाई वाएइ, कणीअसे अणगारे वाउभूई गोयमगुत्ते णं पंच समणसयाई १ गोयमसगोत्तेणं (क० कि० क०सु०)। २ नामे (क० कि०)। गणधरपर्षद् श्रीवीरस्य गणगणधरसंख्या janelibrary.org Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा स्वरूप वाएइ, थेरे अजवियत्ते भारद्दाए गुत्तेणं पंच समणसयाइं वाएइ, थेरे अजसुहम्मे । स्थविराव० अग्गिवेसायणे गुत्तेणं पंच समणसयाइं वाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिटे गुत्तेणं अडुट्ठाई । ११ गणसमणसयाइं वाएइ, थेरे मोरिअपुत्ते कासवे गुत्तेणं अछुट्टाइं समसयाई वाएइ, थेरे अकं धराणां |पिए गोयमे गुत्तेणं-थेरे अयलभाया हारिआयणे गुत्तेणं, पत्तेयं एते दुण्णिवि थेरा तिण्णि 5 तिण्णि समणसयाई वाएंति, थेरे अज्जमेइज्जे-थेरे अज्जपभासे, एए दुण्णिवि थेरा कोडिन्ना-18 गुत्तेणं तिण्णि तिण्णि समणसयाई वाएंति । से तेणटेणं अज्जो ! एवं वुच्चइ-समणस्स: भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा हुत्था ॥ ३॥ सवेऽवि णं एते समणस्स है भगवओ महावीरस्स एक्कारसवि गणहरा दुवालसंगिणो चउदसपुविणो समत्तगणिपिडगधारगा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं कालगया जाव सवदुक्खप्पहीणा ॥ थेरे इंदभई थेरे अजसहम्मे य सिद्धिगए महावीरे पच्छा दुण्णिवि थेरा परिनिया, जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति एए णं सवे अजसुहम्मस्स अणगारस्स आव १ गोयमसगुत्तेणं (क० कि०, क० सु०)। २ इक्कारस (क० कि०, क० सु०)। Jain Education Intern For Private & Personel Use Only W ww.jainelibrary.org Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ACCASSASAREASSACRICS च्चिजा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वुच्छिन्ना ॥४॥ समणे भगवं महावीरे कासवगुत्ते णं। श्रीसुधर्मसमणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगुत्तस्स अजसुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसाय णः आर्य महागिरयः णगुत्ते १, थेरस्स णं अजसुहम्मस्स अग्गिवेसायणगृत्तस्स अजजंवनामे थेरे अंतेवासी कासवगुत्तेणं २, थेरस्स णं अजजंबूणामस्स कासवगुत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणसगुत्ते ३, थेरस्स णं अजप्पभवस्स कच्चायणसगुत्तस्स अजसिजंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगुत्ते ४, थेरस्स णं अजसिजंभवस्स मणगपिउणो वच्छसगुत्तस्स अजजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायणसगुत्ते ५॥५॥ संखित्तवायणाए अजजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तंजहा-थेरस्स णं अजजसभहस्स तुंगियायणसगुत्तरस अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अजसंभूअविजए माढरसगुत्ते, थेरे अजभद्दबाहू पाईणसगुत्ते ६, थेरस्स णं : अजसंभूअविजयस्स माढरसगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजथूलभद्दे गोयमसगुत्ते ७, थेरस्स णं है। अजथूलभद्दस्स गोयमसगुत्तरस अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अजमहागिरी एलावच्चसगुत्ते, १ इकि RAMMAKEMAKERALACANCY Jain Education intilal For Private & Personel Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा सी शाखा थेरे अजसुहत्थी वासिट्ठसगुत्ते ८, थेरस्स णं अजसुहत्थिस्स वासिट्ठसगुत्तस्स अंतेवासी दुवे स्थवि थेरा-मुट्ठियमुप्पडिबुद्धा कोडियकाकंदगा वग्यावच्चसगुत्ता ९, थेराणं सुट्ठियसुप्पडिबुद्धाणं कोडियकाकंदगाणं वग्घावच्चसगुत्ताणं अंतेवासी थेरे अजइंददिन्ने कोसियगुत्ते१०, थेरस्स णं तः तापअजइंददिन्नस्स कोसियगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजदिन्ने गोयमसगुत्ते११, थेरस्सणं अजदि-18 नस्स गोयमसगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगुत्ते१२, थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जाइस्सरस्स कोसियगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजवइरे गोयमसगुत्ते१३, थेरस्स णं अजवइरस्स गोयमसगुत्तस्स अंतेवासी थेरे अजवइरसेणे उक्कोसियगुत्ते१४, थेरस्स णं अजवइरसेणस्स उक्कोसिअगुत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अजनाइले १ थेरे अजपोमिले २ थेरे अजजयंते ३ थेरे अज्जतावसे ४, १५, थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला . साहा निग्गया, थेराओ अजपोमिलाओ अजपोमिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताओ, अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया ४ इति For Private & Personel Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्या गणा ताबलि शाखा ॥६॥ वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभद्दाओ पुरओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तंजहा-थेरस्स गोदासाणं अजजसभहस्स तुंगियायणसगुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया । हुत्था, तंजहा-थेरे अजभद्दवाहू पाईणसगुत्ते, थेरे अजसंभूअविजए माढरसगुत्ते, थेरस्स प्याद्याः णं अजभद्दबाहुस्स पाईणसगुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया। हुत्था, तंजहा-थेरे गोदासे १ थेरे अग्गिदत्ते २ थेरे जण्णदत्ते ३ थेरे सोमदत्ते ४ कासवगुत्तेणं, थेरेहिंतो गोदासेहिंतो कासवगुत्तेहिंतो इत्थ णं गोदासंगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तंजहा-तामलित्तिया १, कोडीवरिसिया । ६२, पंडुवद्धणिया ३, दासीखब्बडिया ४, थेरस्स णं अजसंभूर्यविजयस्स माढरसगुत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-नंदणभहु १ वनंदणभद्दे २ तह तीसभद्द ३ जसभद्दे ४ । थेरे य सुमणभद्दे ५, मणिभद्दे ६ पुण्णभद्दे ७ य १ विलोइजइ (क.कि०)। २ से कि०। ३ पोंडवद्धणिआ (क०कि०)। ४ इ कि० । ५ सुमिणभद्दे (क०कि०, क०म०)। है६ गणिभद्दे (क० कि० क० सु०)। Jain Education in For Private & Personel Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रथिककला कोशानृत्यं च. कूपसर्पसिंहवेश्यास्थानेषु चातुर्मासिकानि. स्थविराव० कल्प० बारसा ॥६४ ॥ ॥६४॥ Sam Enemian internet M aimatorry.org Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थूलिभद्रस्य सप्त भगिन्यः यक्षाद्याः सप्त ॥ १॥ थेरे अ थूलभद्दे ८, उज्जुमई ९ जंबुनाम|धिज्जे १० य । थेरे अ दीहभद्दे ११, थेरे तह पंडुभद्दे १२ य॥२॥थेरस्स णं अजसंभूअवि जयस्स माढरसगुत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिदणीओ अहावच्चाओ अभिण्णायाओ हुत्था, तंजहा जक्खा १ य जक्खदिण्णा २, भूया ३ तह चेव है भूयदिण्णा य ४ । सेणा ५ वेणा ६ रेणा ७, भइणीओ थूलभद्दस्स ॥ १॥ थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे अज्जमहागिरी एलावच्चसगुत्ते १, थेरे अजसुहत्थी DEGREECCANCEBCAMSARDASCAMSACSCARICA + 84 9494 Sain Eucation For Privam spermional timony Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4%25 बारसा राशिका कल्पवासिट्ठसगुत्ते २, थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्चसगुत्तस्स इमे अट्ट थेरा अंतेवासी स्थविराव. अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे उत्तरे १, थेरे बलिस्सहे २, थेरे धणड्डे ३, थेरे सिरिड्डे ४, थेरे कोडिन्ने ५, थेरे नागे ६, थेरे नागमित्ते ७, थेरे छल्लूए रोहगुत्ते कोसिय- राशिक गुत्तेणं ८, थेरेहिंतो णं छलूएहिंतो रोहगुत्तेहिंतो कोसियगुत्तेहिंतो तत्थ णं तेरासिया म्बीकाद्याः निग्गया। थेरेहितो णं उत्तरबलिस्सहेहिंतो तत्थ णं उत्तरबलिस्सहे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिजंति, तंजहा-कोसंबिया १, सोइत्तिया २, कोडं-* बाणी ३, चंदनागरी ४, थेरस्स णं अजसुहत्थिस्स वासिट्ठसगुत्तस्स इमे दुवालस थेरा हूँ है अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे अ अन्जरोहण १, जसैभद्दे २ मेहगणी है है ३ य कामिड्ढी ४ । सुट्ठिय ५ सुप्पडिबुद्धे ६, रक्खिय ७ तह रोहगुत्ते ८ अ ॥ १ ॥ इसि-* है गुत्ते ९ सिरिगुत्ते १०, गणी अ बंभे ११ गणी य तह सोमे १२। दस दो य गणहरा खलु, एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ थेरेहितो णं अज्जरोहणेहिंतो णं कासवगुत्तेहिंतो णं १ सुत्तिवत्तिआ (क० कि०, क० सु०)। २ भद्दजसे. कि० सु० । Jan Education in For Private Personel Use Only ww.jainelibrary.org Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देहा शाखा: तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए, तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ, छच्च कुलाई एवमाहिति । से किं तं साहाओ ?, साहाओ एवमाहिज्जंति, तंजहा-उदुंबरिजिया१, धागणा औदुम्बमासपूरिआ २, मइपत्तिया ३, पुण्णपत्तिया ४, से तं साहाओ, से किं तं कुलाई ?, कुलाइंकाया एवमाहिज्जंति, तंजहा-पढमं च नागभूयं, विइयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ| तइअं ३, चउत्थयं हत्थलिजं तु ॥ १॥ पंचमगं नंदिजं ५, छटुं पुण पारिहासयं ६ होइ। उद्देहगणस्सेए, छच्च कुला हुंति नायवा ॥२॥ थेरेहितो णं सिरिगुत्तेहिंतो हारियसगुत्ते-18 हिंतो इत्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, सत्त य । कुलाई एवमाहिजंति, से किं तं साहाओ ?, साहाओ एवमाहिजंति, तंजहा-हारियमालागारी १, संकासीआ २, गवेधुया ३, वजनागरी ४, से तं साहाओ, से किं तं कुलाइं ?,5 कुलाइं एवमाहिज्जंति, तंजहा-पढमित्थ वत्थलिजं १, बीयं पुण पीइधम्मिअं २ होइ । तइ पुण हालिज्जं ३, चउत्थयं पूसमित्तिज्जं ॥ १॥ पंचमगं मालिज्जं ५, छटुं पुण अज-18 १ पण्णपत्तिा (क० कि, क० सु०)। JainEducation intern For Private Personal use only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा ॥६६॥ काद्या ग श्व शाखा: वेडयं ६ होइ । सत्तमयं कण्हसहं ७, सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥ थेरेहिंतो भद्दज-स्थविराव सेहिंतो भारद्दायसगुत्तेहिंतो इत्थ णं उडुवाडियगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिण्णि कुलाइं एवमाहिजंति, से किं तं साहाओ ?, साहाओ एवमाहि-15 ऋतुपालिजंति, तंजहा-चंपिजिया १ भद्दिजिया २ काकंदिया ३ मेहलिज्जिया ४, से तं साहाओ, सेणाःचांपाकिं तं कुलाइं ?, कुलाई एवमाहिजंति, तंजहा-भद्दजसियं १ तह भद्दगुत्तियं २ तइयं च होइर्यिकाद्याजसभई ३ । एयाइं उडुवाडियगणस्स तिण्णेव य कुलाइं॥ १॥ थेरेहिंतो णं कामिड्डीहिंतो हूँ कोडालसगुत्तेहिंतो इत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि है साहाओ चत्तारि कुलाई एवमाहिजंति । से किं तं साहाओ ?, साहाओ एवमाहिजति तंजहा-सावत्थिया १, रज्जपालिआ २, अंतरिजिया ३, खेमलिज्जिया ४, से तं साहाओ, से किं तं कुलाई ?, कुलाई एवमाहिजंति, तंजहा-गणियं १ मेहिये २ कामिड्डिअं ३ |च तह होइ इंदपुरगं ४ च । एयाइं वेसवाडियगणस्स चत्तारि उ कुलाइं ॥१॥ १ लि कि०। २ हलि कि०। Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसू. १२ Jain Education Inter थेरेहिंतो णं इसिगुत्तेहिंतो काकंद हिंतो वासिट्टसगुत्तेहिंतो इत्थ णं माणवगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिण्णि य कुलाई एवमाहिज्जंति से किं तं साहाओ ?, साहाओ एवमाहिजंति, तंजहा - कासवजिया १ गोयमज्जिया २ वासिट्टिया ३ सोरट्टिया ४ । से तं साहाओ, से किं तं कुलाई ?, कुलाई एवमाहिअंति, तंजहा - इसिगुत्ति इत्थ पढमं १, बीयं इसिदत्तिअं मुणेयवं २ । तइयं च अभिजयंतं ३, तिण्णि कुला माणवगणस्स ॥ ॥ १ ॥ थेरेहिंतो सुट्टिय - सुप्पडिबुद्धेहिंतो कोडियकाकंद हिंतो वग्धावच्चस - गुत्तेहिंतो इत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, चत्तारि कुलाई एवमाहिति । से किं तं साहाओ ?, साहाओ एवमाहिजंति, तंजहा - उच्चानागरि १ विजाहरी य २ वइरी य ३ मज्झमिल्ला ४ य । कोडियगणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाओ ॥ १ ॥ से तं साहाओ, से किं तं कुलाई ?, कुलाई एवमाहिजंति, तंजहा - पढ़मित्थ बंभलिजं १, बिइयं नामेण वत्थलिजं तु २ । तइयं पुण वाणिज्जं ३, चउत्थयं पण्ह I माणवाद्या गणाः का श्यपार्थि काद्याश्च शाखा Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० ॥ ६७ ॥ Jain Education Inter वाहणयं ४ ॥ १ ॥ थेराणं सुट्टियसुप्पडिबुद्धाणं कोडियकाकंदयाणं वग्धावच्चसगुत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिष्णाया हुत्था, तंजहा - थेरे अजइंददिने १ थेरे पियगंथे २ थेरे विजाहरगोवाले कासवगत्ते णं ३ थेरे इसिदिन्ने ४ थेरे अरिहत्ते ५ । धेरेहिंतो णं पियगंथेहिंतो एत्थ णं मज्झिमा साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं विज्जाहरगोवाले हिंतो कासवगत्तेहिंतो एत्थ णं विजाहरी साहा निग्गया । थेरस्स णं अजइंद दिन्नस्स कासवगुतस्स अजदिने थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते । थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे अजसंतिसेणिए माढरसगुत्ते १, थेरे अजसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगुत्ते २ | थेरेहिंतो णं अजसंतिसेणिएहिंतो माढरसगुत्तेहिंतो एत्थ णं उच्चानागरी साहा निग्गया । थेरस्स णं अञ्जसंतिसेणियस्स माढरसगुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा - ( ग्रं० १००० ) थेरे अजसे णिए १ थेरे अज्जतावसेर थेरे अजकुबेरे३ थेरे अज्जइसिपालिए ४। थेरेहिंतो णं अजसे१ इसिद (क०सु०, क० कि० ) । स्थविराय० सुस्थिताद्याः सूरयः मध्यमाद्या श्च शाखाः ॥ ६७ ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jam Education Int णिएहिंतो एत्थ णं अज्जसेणिया साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अज्जतावसेहिंतो एत्थ णं अज्जतावसी साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अजकुबेरेहिंतो एत्थ णं अजकुबेरा साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अजइसिपालिएहिंतो एत्थ णं अज्जइसिपालिया साहा निग्गया । थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जाइस्सरस्स कोसियगुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे धणगिरी १ थेरे अजवइरे २ थेरे अज्जसमिए ३ थेरे अरिहदिन्ने |४ | थेरेहिंतो णं अज्जसमिएहिंतो गोयमसगुत्तेहिंतो इत्थ णं बंभदीविया साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं १ अजकुबेरी ( क० कि० ) । वज्रखामिनः पालनं. आर्यश्रेणि काद्याः शाखाः マル Jainetorary.org Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ** कल्प वारसा स्थविराव ॥६८॥ आर्यवैः योद्याः शाखाः HARXHAUSSANAISA PANARO अजवइरेहिंतो गोयमसगुत्तेहिंतो इत्थ णं अजवइरी साहा निग्गया । थेरस्स णं अजवइरस्स गोयमसगुत्तस्स इमे तिण्णि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहाथेरे अजवइरसेणे १ थेरे अजपउमे २ थेरे अजरहे ३ । थेरेहितो णं अजवइरसेणेहितो इत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अजपउमेहिंतो इत्थ णं अजपउमा साहा निग्गया, थेरेहितो णं अजरहेहिंतो इत्थ णं अजजयंतीसाहा निग्गया । थेरस्स णं अज्जरBहस्स वच्छसगुत्तस्स अजपूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगुत्ते१६।थेरस्स णं अज्जपूसगिरिस्स कोसियगुत्तस्स अज्जफग्गुमित्ते थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते १७। थेरस्स णं अजफग्गुमित्तस्स गोयमसगुत्तस्स अजधणगिरी थेरे अंतेवासी वासिट्ठसगुत्ते १८। थेरस्स णं अजधणगिरिस्स वासिट्ठसगुत्तस्स अजसिवभूई थेरे अंतेवासी कुच्छसगुत्ते १९। थेरस्स णं अजसिवभूइस्स कुच्छसगुत्तस्स अज्जभद्दे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते २०।थेरस्स णं अज्जभद्दस्स कासवगुत्तस्स अजनक्खत्ते थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते २१॥थेरस्सणं अजनक्खत्तस्स कासवगुत्तस्स अजरक्खे ॥६८॥ in Education in For Private Personel Use Only srww.jainelibrary.org Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरयः ARKONKAKKARANASASAKARANASA थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते २२॥थेरस्सणं अजरक्खस्स कासवगुत्तस्स अन्जनागे थेरे अंतेवासी, आर्यसुगोअमसगुत्ते २३ ।थेरस्स णं अज्जनागस्स गोअमसगुत्तस्स अज्जजेहिल्ले थेरे अंतेवासी वासि स्थिताद्या ट्ठसगुत्ते २४ । थेरस्स णं अज्जजेहिल्लस्स वासिट्ठसगुत्तस्स अजविण्हू थेरे अंतेवासी माढरसगुत्ते २५। थेरस्स णं अजविण्हुस्स माढरसगुत्तस्स अन्जकालए थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते २६|| थेरस्स णं अज्जकालयस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी गोयमसगुत्ता-थेरे अज्जसंपलिए १, थेरे अजभद्दे २,२७ । एएसि णं दुण्हवि थेराणं गोयमसगुत्ताणं अज्जबुड्ढे थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते २८। थेरस्स णं अजवुड्डस्स गोयमसगुत्तस्स अजसंघपालिए थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते २९। थेरस्स णं अजसंघपालिअस्स गोयमसगुत्तस्स अब्जहत्थी थेरे अंते वासी कासवगुत्ते ३०।थेरस्स णं अजहत्थिस्स कासवगुत्तस्स अजधम्मे थेरे अंतेवासी सावय-18 है गुत्ते ३१॥थेरस्सणं अजधम्मस्स सावयगुत्तस्स अजसिंहे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ३२।थेरस्स। हैणं अजसिंहस्स कासवगुत्तस्स अजधम्मे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ३३॥थेरस्सणं अजधम्मस्स। १ दुवे (क० कि०, क० सु०)। २ सुव्वय सु०।। in Education in For Private Personel Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा ॥६९॥ कासवगुत्तस्स अजसंडिल्ले थेरे अंतेवासी ३४॥ वंदामि फग्गुमित्तं च गोयमं १७धणगिरिं च स्थविराव० वासिटुं १८।कुच्छं सिवभूइंपिय १९, कोसिय दुजंतकण्हे अ(?)॥१॥'ते वंदिऊण सिरसा, भदं पद्यैः फल्गुवंदामि कासवसगुत्तं२०॥ नक्खं कासवगुत्तं२१,रक्खंपिय कासवं वंदे २२॥२॥वंदामि अज्जनागंमादिद२३च गोयमंजेहिलं च वासिटुं२४॥ विण्डं माढरगुत्तं२५,कालगमवि गोयमं वंदे२६॥३॥गोयम-वर्धन्तानां नतिः गुत्तकुमारं, संपलियं तहय भद्दयं वंदे २७।थेरं च अजवुढ्, गोयमगुत्तं नमसामि २८॥४॥ तं । वंदिऊण सिरसा, थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्नं । थेरं च संघवालिय, गोयमगुत्तं पणिवयामि २९ । ६॥५॥ वंदामि अजहत्थि च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेव । सुद्धस्स ३०॥६॥वंदामि अजधम्मं च सुव्वयं सीललदिसंपन्नं । जस निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ३१॥७॥ हत्थं कासवगुत्तं, धम्मं सिवसाहगं पणिवयामि। सीहं कासव-16 १२,धम्मंपिय कासवं वंदे ३३॥८॥ तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्नं। थेरंच अजजंबु, गोयमगुत्तं नमसामि (३४)॥९॥ मिउमद्दवसंपन्नं, उवउत्तं नाणदंसणचरित्ते। थेरं च १ तं कि० सु०। २ कासवं गोत्तं । ३ कासव० (क० कि०)। Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GAUASSASASSANASAASTASHAHADARAK नंदियंपिय, कासवगुत्तं पणिवयामि (३५)॥१०॥तत्तो य थिरचरितं, उत्तमसम्मत्तसत्तसंजुत्तं। पर्युषणादेसिगणिखमासमणं, माढरगुत्तं नमसामि(३६)॥११॥तत्तो अणुओगधरं,धीरं मइसागरं महा-2 सत्तं । थिरगुत्तखमासमणं, वच्छसगुत्तं पणिवयामि (३७)॥१२॥ तत्तोय नाणदंसण-चरित्तत-2 वसुट्टियं गुणमहंतं । थेरं कुमारधम्म, वंदामि गणिं गुणोवेयं (३८)॥१३॥ सुत्तत्थरयणभरिए, खमदममद्दवगुणेहिं संपन्ने। देविड्डिखमासमणे, कासवगुत्ते पणिवयामि (३९)॥ १४॥ इति स्थविरावली संपूर्णा, द्वितीयं वाच्यं च समाप्तम् ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसहराए मासे विडते Pावासावासं पजोसवेइ॥१॥से केणट्रेणं भंते! एवं वुच्चइ-'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पजोसवेइ ?', जओ णं पाएणं अगारीणं अगाराई कडियाई उक्कंपियाई छन्नाई लित्ताइं गुत्ताइं घट्ठाई मट्ठाइं संपधूमियाई खाओदगाइं खायनिद्धमणाइं अप्पणो अट्टाए कडाइं परिभुत्ताइं परिणामियाइं भवंति, से तेणटेणं एवं वुच्चइ Jain Education inte For Private Personel Use Only ATLww.jainelibrary.org Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० वारसा ० ॥ ७० ॥ Jain Education Inter श्रीमहावीरप्रभुः श्रीजंबूस्वामी - परिषद् 201 स्थविराव० ॥ ७० ॥ Meat jainelibrary.org Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्युषणा करणं CORRECARRERAKASARGAONG समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पजोसवेइ' ॥२॥ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ तहा गं गणहरावि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्वंते वासावासं पजोसविंति ॥ ३॥ हूँ जहा णं गणहरा वासाणं सवीसइराए जाव पजोसविंति तहा गं गणहरसीसावि वासाणं है जाव पजोसविंति ॥४॥ जहा णं गणहरसीसा वासाणं जाव पजोसविंति तहा णं थेरावि हूँ वासावासं पजोसविंति ॥५॥ जहा णं थेरा वासाणं जाव पजोसविंति तहा णं जे इमे है अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति तेऽविअ णं वासाणं जाव पजोसविंति ॥६॥जहा णं है जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्वंते वासावासं पज्जोसविति तहा णं अम्हंपि आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव पज्जोसविंति ॥ ७॥ जहा णं है अम्हंपि आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव पजोसविंति तहा णं अम्हेऽवि वासाणं सवीस इराए मासे विइक्कंते वासावासं पजोसवेमो, अंतराऽवि य से कप्पइ, नो से कप्पइ तं रयणिं ARCANCIEXERCAROLC4540 Jan Education Inte Viww.jainelibrary.org Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा ॥ ७१॥ वाच्ये उवाइणावित्तए ॥ ८॥ वासावासं पजोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सवओस्थविराव० समंता सक्कोसं जोयणं उग्गहं ओगिण्हित्ता णं चिट्ठिउं अहालंदमवि उग्गहे ॥९॥ वासा-3 श्रीदशावासं पजोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा सवओ समंता सक्कोसं जोयणं | शु० भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए ॥१०॥ जत्थ नई निच्चोयगा निच्चसंदणा, नो से कप्पइ2 कल्पे ३ सवओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए ॥ ११॥ एरावई कुणा-12 लाए, जत्थ चक्किया सिया एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा, एवं चक्किया एवं अवग्रहमा नं दानार्थ णं कप्पइ सवओ समंता सक्कोसं जोयणं गंतुं पडिनियत्तए ॥ १२॥ एवं च नो चक्किया, ग्रहणादि एवं से नो कप्पइ सवओ समंता सक्कोसं जोयणं गंतुं पडिनियत्तए ॥ १३॥ वासावासं, पज्जोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वृत्तपुवं भवइ-'दावे भंते!', एवं से कप्पइ दावित्तए, नो | से कप्पइ पडिगाहित्तए ॥ १४॥ वासावासं पजोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वृत्तपुवं| भवइ-पडिगाहेहि भंते !', एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ दावित्तए ॥ १५॥ ॥ ७१॥ Jain Education Intex For Private & Personel Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासावासं पजोसवियाणं० 'दावे भंते!पडिगाहे भंते!,' एवं से कप्पइ दावित्तएविपडिगाहित्तएवि। | विकृतीनां ॥१६॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हट्ठाणं तुट्ठाणं वर्जनादि आरोगाणं बलियसरीराणं इमाओ नव रसविगईओ अभिक्खणं २ आहारित्तए, तंजहा-खीरं १ दहिं २ नवणीयं ३ सप्पि ४ तिल्लं ५ गुडं ६ महुं ७ मजं ८ मंसं ९॥ १७॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगइआणं एवं वुत्तपुवं भवइ-अट्रो भंते! गिलाणस्स, से य वइजा-अट्टो, से य पुच्छियवे-केवइएणं अट्ठो ?, से वएज्जा-एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स, जं? से पमाणं वयइ से य पमाणओ पित्तवे, से य विन्नविजा, से य विन्नवेमाणे लभिजा, से य पमाणपत्ते होउ अलाहि, इय वत्तवं सिआ, से किमाहु भंते ! ?, एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स, सिया णं एवं वयंतं परो वइज्जा-पडिगाहेह अज्जो !, पच्छा तुमं भोक्खसि वा पाहिसि वा', एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाणनीसाए पडिगाहित्तए॥१८॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थि णंथेराणं तहप्पगाराइं कुलाई कडाइंपत्तिआइंथिज्जाइंवेसासि १ नास्ति प्रत्यंतरे। २ अरोगाण आरुगाणं कि० । Jain Education in For Private & Personel Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1259 कल्प. वारसा ॥७२॥ श्रीदशाश्रु०८ कल्पे ३ याई संमयाइं बहुमयाई अणुमयाइं भवंति, तत्थ से नो कप्पइ अदक्खु वइत्तए-'अत्थि ते आउसो ! इमं वा २ ?' से किमाहु भंते ! ?, सड्ढी गिही गिण्हइ वा, तेणियंपि कुजा ॥१९॥ ६ वासावासं पज्जोस वियरस निच्चभत्तियरस भिवखुरस कप्पइ एगंगोअरकालं गाहावइकुलं भत्ताए। वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नन्नत्थाऽऽयरियवेयावच्चेण वा एवं उवज्झायवे-21 वाच्ये यावच्चेण वा तवस्सिवेयावच्चेण वा गिलाणवेयावच्चेण वा खुड्डएण वा खुड्डियाए वा अवंजणजा-2 यएण वा ॥२०॥वासावासं पजोसवियस्स चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स अयं एवइए विसेसे-ज से पाओ निक्खम्म पुवामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संपमन्जिय से य संथरिजा कप्पइ से तदिवसं तेणेव भत्तद्वेणं पज्जोसवित्तए, से य नो संथरिजा एवं से कप्पइ । दुच्चपि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥२१॥ वासा-12 वासं पजोसवियस्स छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति दो गोअरकाला गाहावइकुलं भत्ताए। वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा॥२२॥ वासावासं पजोसवियस्स अट्ठमभत्तियस्स याचनानिषेधः गोचरकालाश्च ॥७२॥ Jan Education in 1 For Private Personel Use Only . Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CAREOGRESARGACANCERNER भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोअरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पवि | पानकसित्तए वा ॥२३॥ वासावासं पज्जोसवियस्स विगिट्ठभत्तिअस्स भिक्खुस्स कप्पंति सवेऽवि || विधिः गोअरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ २४ ॥ वासावासं पजोसवियरस निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सवाइं पाणगाइं पडिगाहित्तए। वासावासं पजोसवियस्स चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहि-13 त्तए, तंजहा-ओसेइमं संसेइमं चाउलोदगं । वासावासं पज्जोसवियस्स छट्ठभत्तियस्स। भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तंजहा-तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवो-18| दगं वा । वासावासं पजोसवियस्स अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई। पडिगाहित्तए, तंजहा-आयामे वा सोवीरे वा सुद्धवियडे वा । वासावासं पजोसवियस्स। विगिट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहित्तए, सेऽविय णं असित्थे, नोऽविय णं ससित्थे।वासावासं पजोसवियस्स भत्तपडियाइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे १ चेव कि०। पस्.१३ Jan Education Inter For Private Personel Use Only jainelibrary.org Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा० ॥७३॥ उसिणवियडे पडिगाहित्तए, सेऽविय णं असित्थे, नो चेव णं ससित्थे, सेऽविय णं परिपूए, स्थविराव० नो चेव णं अपरिपूर, सेऽवियणं परिमिए, नो चेवणं अपरिमिए, सेऽविअ णं बहुसंपन्ने, नो, दत्तिमानं चेव णं अबहुसंपन्ने ॥ २५॥ वासावासं पजोसविअस्स संखादत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति संखडीपपंच दत्तीओ भोअणस्स पडिगाहित्तए पंच पाणगस्स, अहवा चत्तारि भोअणस्स पंच पाण रिहारश्च गस्स, अहवा पंच भोअणस्स चत्तारि पाणगस्स, तत्थ णंएगा दत्ती लोणासायणमित्तमावि पडिगाहिआ सिया कप्पइ से तदिवसं तेणेव भत्तटेणं पजोसवित्तए, नो से कप्पइ दुचंपि । गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥२६॥ वासावासं पजोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीणं वा जाव उवस्सयाओ सत्तघरंतरं संखडिं संनियट्टचारिस्स इत्तए, एंगे एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेण सत्तघरंतरं संखडिं संनियट्टचारिस्स इत्तए, एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परंपरेणं संखडिं संनियट्टचारिस्स इत्तए॥ २७॥ वासावासं पजोसवियस्स नो कप्पइ पााणपडिग्ग १ एगे पुण कि० सु. CONCASSENCODSAURUSORRECORROSAROKAR Jain Education Inter For Private & Personel Use Only R ww.jainelibrary.org Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षासमये वसतिस्थाने साधुः वृष्टौ करपात्रिणां विधिः है हियस्स भिक्खुस्स कणगफुसियमित्तमवि ६ वुट्टिकायंसि निवयमाणंसिजाव गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पवि|सित्तए वा ॥२८॥ वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ हा अगिहंसि पिंडवायं पडिगाहित्ता पज्जोसविहात्तए, पज्जोसवेमाणस्स सहसा वुट्टिकाए निव| इजा देसं भुच्चा देसमादाय से पाणिणा पाणिं परिपिहित्ता उरंसि वा णं निलिजिज्जा, कक्खं| सि वा णं समाहडिजा, अहाछन्ना णि वा लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा ॥ ७४॥ उवागच्छिजा, जहा से पाणिंसि दए वा दगरए वा दगफुसिआ वा नो परिआवजइ ॥२९॥ स्थविराव हवासावासं पजोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणगफुसियमित्तंपि निव |वृष्टौ सपाडति, नो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३०॥ त्रापात्रहै वासावासं पजोसवियस्स पडिग्गहधारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्घारियवुट्रिकायंसि गाहा-: विधिः है वइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्पबुट्ठिकायंसि से संतरुत्तरंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३१॥ (ग्रं० ११००) वासावासं पजोसविअस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडि-है याए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय २ वुट्ठिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवहै स्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥३२॥तत्थ से पुवाग-है। मणेणं पुवाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए ॥ ३३॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंग ARNARGATUR KURIAIS ॥७४॥ Jain Education Interne For Private Personel Use Only A w.jainelibrary.org Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमः MARAHARANASAMAC सूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ चाउलो- पूर्वायुक्तपदणे पडिगाहित्तए ॥३४॥ तत्थ से पुवागमणेणं दोऽवि पुवाउत्ताई कप्पंति से दोऽवि पडिगाहित्तए, तत्थ से पुवागमणेणं दोऽवि पच्छाउत्ताई, एवं नो से कप्पंति दोऽवि पडिगाहि- ये वसत्यात्तिए, जे से तत्थ पुवागमणेणं पुवाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुवागमणेणं | पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए ॥ ३५ ॥ वासावासं पजोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिन्झिय २ वुट्टिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ पुवगहिएणं भत्तपाणेणं वेलं उवायणावित्तए, कप्पइ से पुवामेव वियडगं भुच्चा (पिच्चा) पडिग्गहगं संलिहिय २ संपमन्जिय २ एगाययं । भंडगं कटु सावसेसे सूरे जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ तं रयणिं । तत्थेव उवायणावित्तए ॥ ३६॥ वासावासं पजोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहा CRECAMERAMANEX Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Poww.jainelibrary.org Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प बारसा० ॥७५॥ SARKASSROORSARKARA वइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिझिय २ वुट्ठिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे स्थवि आरामंसि वा अहे उवरसयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छि-18| वृष्टौ गृहात्तए ॥३७॥ तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिद्वित्तए १,18 दिषु निम्र न्यादीनां तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स दुण्हं निग्गंथीणं एगयओ चिद्वित्तए २, तत्थ नो कप्पइ8दुण्हं निग्गंथाणं एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिद्वित्तए ३, तत्थ नो कप्पइ दुण्हं निग्गं-18/ विधिः थाणं दुण्हं निग्गंथीण य एगयओ चिट्ठित्तए ४, अत्थि य इत्थ केइ पंचमे खुड्डए वा खुड्डियाइ वा अन्नेसिं वा संलोए सपडिदुवारे एव ण्हं कप्पइ एगयओ चिट्टित्तए ॥ ३८॥ वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगि-15 झिय २ वुट्टिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे विय-15॥ ७५ ॥ डगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिट्ठित्तए, एवं चउभंगी, अत्थि णं इत्थ केइ पंचमए थेरे Jan Education Intemanoma For Private Personel Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा थेरियाइ वा अन्नेसिं वा संलोए सपडिदुवारे, एवं कप्पइ एगयओ चिट्ठित्तए । एवं अपरिज्ञा तभोजनाचेव निग्गंथीए अगारस्स य भाणियचं ॥ ३९॥ वासावासं पजोसवियाणं नो कप्पइ निग्गं-18| नानयन थाण वा निग्गंथीण वा अपरिण्णएणं अपरिण्णयस्स अट्टाए असणं वा १ पाणं वा २ स्नेहायत नानि च खाइमं वा ३ साइमं वा ४ जाव पडिगाहित्तए॥४०॥से किमाहु भंते !?, इच्छा परो अप-15 रिण्णए भुंजिजा, इच्छा परो न जिज्जा ॥४१॥ वासावासं पजोसवियाणं नो कप्पइ । निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा उदउल्लेण वा ससिणिद्वेण वा काएणं असणं वा १ पाणं वा २ खाइमं वा ३ साइमंवा ४ आहारित्तए॥४२॥ से किमाहु भंते!?, सत्त सिणेहाययणा पण्णत्ता, तंजहा-पाणी १ पाणिलेहा २ नहा ३ नहसिहा ४ भमुहा ५ अहरोठ्ठा ६ उत्तरोट्ठा ७। अह । पुण एवं जाणिज्जा-विगओदगे मे काए छिन्नसिणेहे, एवं से कप्पइ असणं वा १ पाणं वा २४ खाइमं वा ३ साइमं वा ४ आहारित्तए ॥४३॥ वासावासं पज्जोसवियाणं इह खलु । निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाइं अट्ठ मुहुमाइं जाइं छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए । Jain Education Intel For Private & Personel Use Only IMi Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प चारसा० वा अभिक्खणं २ जाणियवाइं पासिअवाइं पडिलेहियवाइं भवंति, तंजहा-पाणसुहुमं १ स्थविराष० पणगमुहुमं २ बीअसुहुमं ३ हरियसुहुमं ४ पुप्फसुहुमं ५ अंडसुहुमं ६ लेणसुहुमं ७ | स्नेहायतसिणेहसुहुमं ८॥४४॥ से किं तं पाणसुहुमे ?, पाणसुहुमे पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-किण्हे नसतक ₹१, नीले २, लोहिए ३, हालिद्दे ४, सुकिल्ले ५। अत्थि कुंथु अणुधरी नाम, जा ठिया , सूक्ष्माष्टकं आणा छउमत्थाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो चक्खुफासं हवमागच्छइ, जा मा चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चक्खुफासं हवमागच्छइ, जा छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं २ जाणियवा पासियवा पडिलेहियत्वा । हवइ, से तं पाणसुहुमे १॥से किं तं पणगसुहुमे ?, पणगसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहाकिण्हे, नीले, लोहिए, हालिद्दे, सुकिल्ले । अत्थि पणगसुहुमे तद्दवसमाणवण्णे नामं पण्णत्ते, x ॥७६॥ जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाणियवे पासियवे पडिलेहिअन्वे भवइ । से तं पणगसुहुमे २॥ से किं तं बीअसुहुमे ?, बीयसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-किण्हे, नीले, १ नाम समुप्पन्ना कि०। CRECECACAREECCANAX Jain Education Interior For Private & Personel Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहिए, हालिद्दे, सुकिल्ले । अत्थि बीअसुहुमे कण्णियासमाणवण्णए नामं पन्नत्ते, जे छउ- सूक्ष्माष्टकं ६मत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाणियत्वे पासियत्वे पडिलेहियवे भवइ । से तं बीअसु हुमे ३ ॥ से किं तं हरियसुहुमे ?, हरियसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-किण्हे नीले लोहिए। हालिद्दे सुकिल्ले । अस्थि हरिअसुहुमे पुढवीसमाणवण्णए नामं पण्णत्ते, जे निग्गंथेण वा। निग्गंथीए वा अभिक्खणं २ जाणियवे पासियवे पडिलेहियवे भवइ । से तं हरियसुहमे ४॥ से किं तं पुप्फसुहुमे ?, पुप्फसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-किण्हे नीले लोहिए हालिद्दे || सुकिल्ले । अत्थि पुप्फसुहुमे रुक्खसमाणवण्णे नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाणियवे पासियत्वे पडिलेहियवे भवइ । से तं पुप्फसुहुमे ५॥ से किं तं । अंडसुहुमे ?, अंडसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-उइंसंडे, उक्कलियंडे, पिपीलिअंडे, हलिअंडे, हल्लोहलिअंडे, जे निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाणियत्वे पासियत्वे पडिलेहियत्वे भवइ। से तं अंडसुहुमे ६॥ से किं तं लेणसुहुमे ?, लेणसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-उत्तिंग Jain Education Inter For Private & Personel Use Only alww.jainelibrary.org Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसा ॥ ७७॥ पृच्छा कल्प० लेणे, भिंगुलेणे, उजुए, तालमूलए, संबुक्कावट्टे नामं पंचमे, जे छउमत्थेण निग्गंथेण वा * स्थविराव निग्गंथीए वा जाणियवे पासियचे पडिलेहियत्वे भवइ । से तं लेणसुहुमे ७॥ से किं तं हूँ | गोचरीसिणेहसुहुमे ?, सिणेहसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-उस्सा, हिमए, महिया, करए, हर विधिः तणुए । जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं २ जाणियव्वे पासियवे पडिले-18 दहियत्वे भवइ । से तं सिणेहसुहुमे ८॥४५॥ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेअयं जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छिउं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं| गणावच्छेअयं जं वा पुरओ काउं विहरइ-'इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा', ते य से वियरिजा एवं से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, ते य ॥ ७७॥ Jain Education Interna For Private Personel Use Only Marww.jainelibrary.org Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से नो वियरिजा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा|| विहारभूपविसित्तए वा । से किमाहु भंते ! ?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥४६॥ एवं विहारभूमि वा म्यादिवि तिचवियारभूमि वा अन्नं वा जंकिंचि पओअणं, एवं गामाणुगामं दूइजित्तए ॥४७॥वासावासं | कित्साजापजोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अण्णयरिं विगइं आहारित्तए, नो से कप्पइ से अणापुच्छित्ता 81 पृच्छा विधिः आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरंगणावच्छेययं वाजं वा पुरओ कटु विहरइ,81 कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं । वा जं वा पुरओ काउं विहरइ आहारित्तए-'इच्छामि णं भंते ! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे | अन्नयरिं विगइं आहारित्तए, तं एवइयं वा एवइखुत्तोवा, ते य से वियरिजा एवं से कप्पइ अण्णयरिं विगइं आहारित्तए, ते य से नो वियरिजा एवं से नो कप्पइ अण्णयरिं विगई। आहारित्तए, से किमाहु भंते! ?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥४८॥ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए, नो से कप्पइ से अणापुच्छित्ता १ काउं कि० सु०। FRERASACARASARSARARIA Jain Education inte For Private & Personel Use Only T Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० ॥ ७८ ॥ Jain Education Intern आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, - 'इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो वा, ते य से वियरिजा एवं से कप्पइ अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए, ते य से नो वियरिजा एवं से नो कप्पइ अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए । से किमाहु भंते ! ?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥ ४९ ॥ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिजा अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, - 'इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अण्ण स्थविराय० चिकित्सा तपः पृच्छा ।। ७८ ।। ww.jainelibrary.org Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसू. १४ Jain Education Interna यरं ओरालं कल्लाणं सिवं घण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो वा, ते य से वियरिजा एवं से कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए, ते य से नो वियरिजा एवं से नो कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए । से किमाहु भंते ! ?, आय| रिया पच्चवायं जाणंति ॥ ५० ॥ वासावासं पजोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अपच्छिममारणंतियसंलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए वा, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्मजागरियं वा जागरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उव तपोऽनशनपृच्छे gainelibrary.org Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प वारसा ॥७९॥ अनशनपृच्छा उपधितापन XHAUSA**HIGHSGLICKROSOGARIA ज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ,-'इच्छामि । स्थविराव० णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अपच्छिममारणंतियसंलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए वा, उच्चारं वा पासवणं वा । विधिश्च परिट्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्मजागरियं वा जागरित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो । वा, ते य से वियरिजा एवं से कप्पइ, तेय से नो वियरिजा नो से कप्पइ, से किमाहु भंते ! ?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥५१॥ वासावासं पजोसविए भिक्खू इच्छिज्जा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपंछणं वा अण्णयरिं वा उवहिं आयावित्तए वा पयावित्तए वा, नो से कप्पइ एगं वा अणेगं वा अपां निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए। KOREAKRECORRECRECORRESPECALCARKAX Jan Educat an inte Xllww.jainelibrary.org Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्थि य इत्थ केइ अभिसमण्णागएं अहासण्णिहिए एगे वा अणेगे वा, कप्पइ से एवं उपधिता8/वइत्तए-'इमं ता अजो! तुम मुहुत्तगं जाणेहि जाव ताव अहं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाएपनविधिः वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहारभूमिं वियारभूमि सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए' से | जय से पडिसुणिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहारभूमि वियारभूमि सज्झायं करित्तए वा । से य से नो पडिसुणिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए। वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहारभूमिं वियारभूमि सज्झायं करित्तए वा, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइ-18 त्तए ॥५२॥ वासावासं पजोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा अण-12 भिग्गहियसिज्जासणियाणं हुत्तए, आयाणमेयं, अणभिग्गहियसिज्जासणियस्स अणुचाकू OSAUGAUSAK Jan Education Inter For Private Personel Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प० बारसा० आदाना ॥ ८ ॥ HORAGARRIAGRAM इयस्स अणट्ठावंधियस्स अमियासणियस्स अणातावियस्स असमियरस अभिक्खणं २ स्थविराव० अपडिलेहणासीलस्स अपमजणासीलस्स तहा तहा संजमे दुराराहए भवइ ॥५३॥ अणादाणमेयं, अभिग्गहियसिजासणियस्स उच्चाकूइयस्स अट्ठाबंधियस्स मियासणियस्स आया- नादाने मावियस्स समियस्स अभिक्खणं २ पडिलेहणासीलस्स पमजणासीलस्स तहा २ संजमेकत्रिक सुआराहए भवइ ॥ ५४॥ वासावासं पजोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ उच्चारपासवणभूमीओ पडिलेहित्तए, न तहा हेमंतगिम्हासु जहाणं वासासु, से किमाहु भंते !?, वासासु णं उस्सणं पाणा य तणा य बीया य पणगा य हरियाणि य भवंति॥५५॥ वासावासं पजोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ मत्तगाइं गिण्हित्तए,तंजहा-| उच्चारमत्तए, पासवणमत्तए, खेलमत्तए॥५६॥वासावासं पजोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पजोसवणाओ गोलोमप्पमाणमित्तेऽवि केसे तं रयणिं उवायणावित्तए। अजेणं खुरमुंडेण वा लुक्कसिरएण वा होइयत्वं सिया । पक्खिया आरोवणा, मासिए खुर CACKSORRE-RECOLOGROUN ॥ ८ ॥ Jain Education Intern For Private & Personel Use Only Howw.jainelibrary.org Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षामणा उपाश्रय त्रिक है मुंडे, अद्धमासिए कत्तरिमुंडे, छम्मासिए लोए, संवच्छरिए वा थेरकप्पे ॥ ५७ ॥ वासा- अधिकरण वासं पजोसविआणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वइ-14 दत्तए, जे णं निग्गंथो वा निग्गंथी वा परं पजोसवणाओ अहिगरणं वयइ से णं 'अकप्पेणं । है अजो ! वयसीति' वत्तवे सिया, जे णं निग्गंथो वा निग्गंथी वा परं पजोसवणाओ अहि-14 गरणं वयइ से णं निजूहियत्वे सिया ॥ ५८ ॥ वासावासं पजोसवियाणं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अन्जेव कक्खडे कडुए वुग्गहे समुप्पजिज्जा, सेहे राइणियं खामिजा, राइणिएऽवि सेहं खामिजा, (ग्रं० १२००) खमियवं खमावियत्वं उवसमियवं उवसमावियचं है। सुमइसंपुच्छणाबहुलेणं होयवं । जो उवसमइ तस्स अत्थि आराहणा, जो न उवसमइ तस्स है नत्थि आराहणा, तम्हा अप्पणा चेव उवसमियवं, से किमाहु भंते ! ?, उवसमसारं खु. सामण्णं॥५९॥वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वातओ उवस्सया गिण्हित्तए, तंजहा-वेउविया पडिलेहा साइजिया पमन्जणा ३॥६०॥ वासावासं पजोस NROERTER Jain Education Intem For Private & Personel Use Only T ww.jainelibrary.org Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 642 कल्प बारसा ॥८१॥ | वियाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कप्पइ अण्णयरिं दिसिं वा अणुदिसिं वा अवगि-1 स्थविराव. झिय भत्तपाणं गवेसित्तए । से किमाहु भंते ! ?, उस्सण्णं समणा भगवंतो वासासु तवसं-18 पउत्ता भवंति, तवस्सी दुब्बले किलंते मुच्छिज्ज वा पवडिज वा, तमेव दिसं वा अणुदिसंह गोचरः वा समणा भगवंतो पडिजागरंति ॥६१ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा|8| ग्लानाय है निग्गंथीण वा गिलाणहेउं जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडिनियत्तए, अंतराऽवि से कप्पइ विकल्प वत्थए, नो से कप्पइ तं रयणिं तत्थेव उवायणावित्तए ॥६२॥ इच्चेइयं संवच्छरिअं थेरकप्पं ।। अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं कारण फासित्ता पालित्ता सोभित्ता तीरित्ता । किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणुपालित्ता अत्थेगइआ समणा निग्गंथा तेणेव भवग्गहणेणं । सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवाइंति सव्वदुक्खाणमंतं करिंति, अत्थेगइया दुच्चेणं ॥८१ ॥ भवग्गहणेणं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवाइंति सवदुक्खाणमंतं करिंति, अत्थेगइया । तच्चेणं भवग्गहणेणं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवाइंति सवदुक्खाणमंतं करिंति, सत्तट्ठ WERESAKAL Jain Education Intema For Private & Personel Use Only Miww.jainelibrary.org Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमहावीरप्रभुः साधुश्रावको, AMAKAILANMASCASAS Sam Enisman intuk Whamroraryana Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REGA कल्प० बारसा ॥८२॥ SARKARSANSAR भवग्गहणाई पुण नाइक्कमति ॥ ६३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे स्थविराव. रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं । उपसंहारः सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं मझगए चेव एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ, पजोसवणाकप्पो नाम अज्झयणं सअटुं सहेउअं सकारणं ससुत्तं सअटुं। सउभयं सवागरणं भुजो भुजो उवदंसेइत्ति बेमि ॥ ६४॥ (ग्रं० १२१५') इति सामाचारी समाप्ता, तृतीयं वाच्यं च समाप्तम् ॥ इति श्रीदशाश्रुतस्कन्धे श्रीपर्युषणाकल्पाख्यं स्वामिश्रीभद्रबाहुविरचितं श्रीकल्पसूत्रं (बारसासूत्रं ) सचित्रं समाप्तम् । KASHAKAKARAKASARAKA इति श्रेष्ठि देवचन्द लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाङ्कः ८२ १ यद्यपि प्राचीनपुस्तकानुसारेण प्रत्यक्षरं संख्यायैतन्मानमुक्तं परमस्मिन्नादर्श पुनरुक्तापूर्णपाठानां पूरणात् किंचिदाधिक्यं । Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० OBRANASANCCCCRANASASACARAK श्रेष्टि देवचन्द लालभाइ जैनपुस्तकोद्धारे आगमोदयसमितौ लभ्या मुद्यमानाश्च ग्रन्थाः लभ्या मुद्यमानाश्च ग्रन्थाः नाम. अंक. मूल्य. प्रतिसङ्ख्या. नाम. अंक. मूल्य. प्रतिसङ्ख्या. भक्तामरकल्याणमंदिरनमिऊण आवश्यकसूत्र-मलयगिरिस्तोत्रत्रयम् ७९ ५-०-० १२५० टीकासमेतम् प्रियंकरनृपकथा. प्रथमविभागः अनेकार्थरसमञ्जषा इदं बारसासूत्रं द्वितीयविभागः धनपालकवीश्वरविरचिता तृतीयविभागः (मुद्रणमन्दिरे) ऋषभपश्चाशिका १२५० जैनधर्मवरस्तोत्रम् लोकप्रकाश गूजरातीभाषांतर १२५० लोकप्रकाशः चतुर्थविभागः प्रथमविभागः ३-८-० १२५ भरतेश्वरबाहुबलिवृत्तिः द्वितीयविभागः १००० द्वितीयविभागः ३-८-० १२५० अभिधानचिन्तामणिकोशः १२५० 2005 ००० ०० ० KASAKAKARKARINAKAROKASAX १००० Jain Education Intel For Private & Personel Use Only Kuww.jainelibrary.org Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ להתקרררררררררררררררררררקקקקקקקקקקקקקקקקקקק YAKKXKXLXLXLXLXKXLXLXKXKXKXKXKNEXUS CCCCCCCCCCC ו ה ו aid silenceTag-Wi-ag LCCCCdddddddddd इति श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाङ्कः ८२. . . ללללללללללללללללללללללללללללללללללללללללל CCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCddddddd For Private & Personel Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******** श्रेष्ठि देवचन्द लालभाई-जैनपुस्तकोद्धार-ग्रन्थाङ्के-ग्रन्थाङ्कः ८२. | धारादिअथ श्रीकालिकाचार्यकथा. वर्णनं श्रीगुणसु न्दरागमः ॥ऍ०॥ श्रीवीरवाक्यानुमतं सुपर्व, कृतं यथा पर्युषणाख्यमेतत् । श्रीकालिकाचार्यवरेण सङ्घ, तथा चतुर्थ्यां शृणु पञ्चमीतः॥ १॥ समग्रदेशागतवस्तुसारं, पुरं धरावासमिहास्ति तारम् । तत्रारिभूपालकरीन्द्रसिंहो, भूवल्लभोऽभूद्भुवि वज्रसिंहः ॥२॥ लावण्यपीयूषपवित्रगात्रा, सद्धर्मपात्रानुगतिः सदैव । तस्याजनिष्टातिविशिष्टरूपा, राज्ञी च नाम्ना सुरसुन्दरीति ॥३॥तत्कुक्षिभूः कालकनामधेयः, कामानुरूपोऽजनि भूपसूनुः। सरस्वती रूपवती सुशील-18 वती स्वसा तस्य नरेन्द्रसूनोः॥४॥अथोऽ(था)न्यदोद्यानवने कुमारो,गतो यतः पञ्चशतैश्च पुम्भिः (गतः पुरुषैः सह पञ्चशत्या)। दृष्ट्वा मुनीन्द्रं गुणसुन्दराख्यं, नत्वोपविष्टो गुरुसन्निधाने ॥५॥ विद्युल्लतानेकपकर्णताल-लीलायितं वीक्ष्य नरेन्द्रलक्ष्म्याः । युष्मादृशाः किं प्रपतन्ति कूपे, हूँ भवस्वरूपे सुविवेकिनोऽपि ॥६॥ एवं परिज्ञाय कुमार! शुद्ध-बुद्धिं कुरुष्वाशु सुधर्ममार्गे। *AKATATA Jain Education interdNA For Private Personal Use Only ww.jainelibrary.org Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्रीगुणसुन्दर:-कालिककुमारच. श्रीकालिकाचार्यकथायां ॥८४॥ अपहारः ACANCIDCOACACROCCASICROCODCBSE+ आकर्ण्य कर्णामृतवृष्टिकल्पं, गुरोर्वचः शीघ्र-R कालिक कुमारादिमिति प्रबुद्धः ॥ ७॥ आदात्तदा पञ्चशती-12 दीक्षा पदाति-युक्तो व्रतं सूरिपदं स लेभे । सर-2 सरस्वत्या स्वती तद्भगिनी च पश्चा-जग्राह दीक्षां निज-12 बन्धुवोधात् ॥ ८॥ श्रीकालिकाचार्यवरा धरायां, कुर्वन्ति भव्यावनिधर्मवृष्टिम्। अथा-12 न्यदाऽवन्तिपुरीमगुस्ते, सरस्वती चापि जगा-1 म तत्र॥९॥ साध्वीसमेतापि गताऽथ बाह्यभूमौ नरेन्द्रेण निरीक्षिता सा। ईदृक्सुरूपा यदियं सुशीला, नूनं वराको मृत एव कामः | ॥ १०॥ श्रीकालिकाचार्यसहोदरत्वं, पूत्कु ROCK SAECSCROREOCOCी ॥८४ m Enication internet ONARY.C Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गई भिल्लनृपः सरस्वत्यपहारः ती ही जिनशासनेश!। यद्गर्दभिल्लेन नृपाधमेन, मां नीयमानां निजवेश्म रक्ष ॥११॥ इति ब्रुवाणा कुनृपेण पुम्भि-नीता निजं धाम महासती सा। ज्ञात्वा च वृत्तान्तमथैनमुच्चै-शुकोप सूरिर्गुणलब्धिभूमिः॥१२॥ श्रीकालिकाचार्यगुरुर्नुपान्ते, जगाम कामं नयवाक्यपूर्वम् । नृपं जगादेति नरेन्द्र ! मुञ्च, स्वसारमेतां मम यद्रतस्थाम् ॥१३॥ अन्योऽपि यो दुष्टमतिः कुशीलो, भवेत्त्वया स प्रतिषेध्य एव । अन्यायमार्ग स्वयमेव गच्छ-न्न लज्जसे सत्यमिदं हि जातम् ॥१४॥ DEVART HASIRONORERA कल्पसू-१५ Sain Educmon ins For Privam AParmonalinonly Mainaliorary.orm Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नृपायोपरोध: ॥८५॥ श्रीकालि-यत्रास्ति राजा स्वयमेव चौरो, भाण्डीवहो यत्र पुरोहितश्च । वनं भजध्वं ननु नागरा ! भो, काचार्यकथायां यतः शरण्याद्भयमत्र जातम् ॥ १५॥ नरेन्द्रकन्याः किल रूपवत्य-स्तवावरोधे ननु सन्ि बह्वयः । तपःकृशां जल्लभरातिजीर्ण-वस्त्रां विमुञ्चाशु मम स्वसारम् ॥ १६॥ निशम्य , सूरीश्वरवाक्यमेत-न्न भाषते किञ्चिदिह क्षितीशः । श्रीकालिकाचार्यवरोऽथ सङ्घ-स्याग्रे । स्ववृत्तान्तमवेदयत्तत् ॥ १७ ॥ सङ्घोऽपि भूपस्य सभासमक्षं, दक्षं वचोऽभाषत यन्न-1 हरेन्द्र !। न युज्यते ते यदिदं कुकर्म, कर्तुं प्रभो ! पासि पितेव लोकम् ॥१८॥ इति ब्रुवा णेऽपि यथार्थमुच्चैः, सके न चामुञ्चदसौ महीशः । महासती तामिति तन्निशम्य, कोपेन। सन्धां कुरुते मुनीशः ॥ १९॥ ये प्रत्यनीका जिनशासनस्य, सङ्घस्य ये चाशुभवर्णवाचः। उपेक्षकोड्डाहकरा धरायां, तेषामहं यामि गतिं सदैव ॥ २० ॥ यद्येनमुर्वीपतिगईभिल्लं, कोशेन पुत्रैः प्रबलं च राज्यात् । नोन्मूलयामीति कृतप्रतिज्ञो , विधाय वेषं ग्रहिलानुरूपम् । ॥२१॥ भ्रमत्यदः कर्दमलिप्तगात्रः, सर्वत्र जल्पन्नगरी विशालाम् । श्रीगईभिल्लो नृपतिस्ततः । KARACCORRRRRRECRACACANCHAM ॥ ५ ॥ For Private & Personel Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमन किं ?, भो ! रम्यमन्तःपुरमस्य किं वा ?॥२२॥ त्रिभिर्विशेषकम् । इत्यादि जल्पन्तमसत्प्र- शाहिदेशलापं, मुनीश्वरं वीक्ष्य व्यजिज्ञपंस्तम् । नृपं कुलामात्यवरा वरेण्यं, जाते (तं)न राजनिति । मुञ्च साध्वीम् ॥ २३ ॥ शिक्षां ददध्वं निजपितृबन्धु-पुत्रेषु गच्छन्तु ममाग्रदृष्टेः । श्रुत्वेति २ रिर्गत एव सिन्धोर्नद्यास्तटं पश्चिमपार्श्वकूलम् ॥ २४ ॥ ये तेषु देशेषु भवन्ति भूपा-स्ते साहयः प्रौढतमस्य तेषु । एकस्य साहेः स गृहेऽवसच्च, सदा सुदैवज्ञनिमित्तविज्ञः ॥२५॥ अनागतातीतनिमित्तभावैर्वशीकृतः सूरिवरैः स साहिः। भक्तिं विधत्ते विविधां गुरूणां, सर्वत्र पूज्यो लभते हि पूजाम् ॥ २६ ॥ तमन्यदा कृष्णमुखं विलोक्य, पप्रच्छ साहिं मुनिपः । किमेतत् ? । तेनाचचक्षे (तेनोक्तमस्मिन्) मम योऽस्ति राजा, साहानसाहिः स च भण्यतेऽत्र ॥ २७ ॥ तेनात्र लेखः प्रहितो ममेति, स्वमस्तकं शीघ्रतरं प्रहेयम् । पञ्चाधिकाया है नवतेन॒पाणां, ममानुरूपश्छल एष भर्तुः ॥ २८॥ एकत्र सर्वे सबलं मिलित्वा, हिन्दूकदेशं ? चलताशु यूयम् । गुरोर्निदेशादिति तैः प्रहृष्ट-भूपैः प्रयाणं झटिति प्रदत्तम् ॥२९॥ उत्तीर्य ***KAMARUSSANASSAUCA * Jain Education Intel For Private & Personel Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकालि गर्दभिल्ल काचार्यकथायां युद्धं ॥८६॥ सिन्धुं कटकं सुराष्ट्रा-देशे समागत्य सुखेन तस्थौ । सर्वेऽपि भूपाः सुगुरोश्च सेवां, कुर्वन्ति बद्धाञ्जलयो विनीताः ॥ ३०॥ वर्षावसाने गुरुणा बभाषे, अवन्तिदेशं चलतेति यूयम् । नृपं निगृह्णीत च गईभिल्लं, गृह्णीत राज्यं प्रविभज्य शीघ्रम् ॥ ३१ ॥ अभाषि तैः शम्बलमस्ति नो नः, किं कुर्महे ? कालिकसूरिरेवम् । ज्ञात्वा च तेभ्यः शुभचूर्णयोगैः, कृत्वेटिकाः स्वर्णमयीर्ददौ सः॥ ३२॥ ढक्कानिनादेन कृतप्रयाणा, नृपाः प्रचेलुगुरुलाटदेशम् । तद्देशनाथौ बलमित्रभानु-मित्रौ गृहीत्वाऽगुरवन्तिसीमाम् ॥३३॥ श्रुत्वाऽऽगतांस्तानभितः स्वदेश-सीमां समागच्छदवन्तिनाथः। परस्परं कुन्तधनुर्लताभि-युद्धं द्वयोः सैनिकयोर्बभूव । ॥ ३४ ॥ स्वसैन्यमालोक्य हतप्रतापं, नंष्ट्वा गतो भूपतिगईभिल्लः । पुरीं विशालां स यदा है प्रविष्ट-स्तदैव साऽवेष्टि बलै रिपूणाम् ॥३५॥ अथान्यदा साहिभटैरपृच्छि, युद्धं प्रभो! नैव भवेत्किमद्य ? । अद्याष्टमी सूरिभिरुक्तमेवं, स गईभी साधयतीह विद्याम् ॥ ३६॥ विलो-हूँ कयद्भिः सुभटैरजस्र-मट्टालवे (ये) कापि गता खरी सा। दृष्टा तदा सा कथिता गुरूणां, तैरे ॥ ८६ en Education Inter For Private Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पराजयः -AASAASAASA मोक्षश्च वमुक्तं ध्वनिनाऽपि तस्याः ॥ ३७॥ सैन्यं समग्रं लभते विनाशं, धनुर्द्धराणां शतमष्टयुक्तम् ।। गर्दभिल्लहै लात्वा गतः सूरिवरो निषङ्गी, खर्याः समीपं लघु शीघ्रवेधी ॥ ३८॥ युग्मम् ॥ यदेवमास्यं । साध्व्या है विवृतं करोति, तदेव शस्त्रैः परिपूरणीयम् । श्रीसूरिणाऽऽदिष्टममीभिरेवं, कृते खरी मूर्द्धनि । मूत्रविष्टे ॥ ३९ ॥ सा गर्दभिल्लस्य विधाय नष्टा, भ्रष्टानुभावः स च साहिभूपैः । बद्ध्वा | है गृहीतः सुगुरोः पदान्ते, निरीक्षते भूमितलं स मूढः ॥४०॥ युग्मम् ॥ रे दुष्ट पापिष्ट । निकृष्टबुद्धे !, किं ते कुकर्माचरितं दुरात्मन् । महासतीशीलचरित्रभङ्ग-पापद्रुमस्येदमिहास्ति । पुष्पम् ॥ ४१ ॥ विमुद्रसंसारसमुद्रपातः, फलं भविष्यत्यपरं सदैव । अद्यापि चेन्मोक्षपरं । सुधर्म-मार्ग श्रयेथा न विनष्टमत्र ॥४२॥ न रोचते तस्य मुनीन्द्रवाक्यं, विमोचितो बन्ध-15 ६ नतो गतोऽथ । सरस्वती शीलपदेकपात्रं, चारित्रमत्युज्वलमावभार ॥४३॥ यस्यावसद्धेश्मनि कालिकार्यो, राजाधिराजः स बभूव साहिः । देशस्य खण्डेषु च तस्थिवांसः, शेषा नरेन्द्राः सगवंश एषः॥४४॥ श्रीकालिकार्यो निजगच्छमध्ये, गत्वा प्रतिक्रम्य समग्रमेतत् । श्रीस ****** ******** Jan Educh an intematona ___ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च्छान्नि ॥८७॥ श्रीकालि- मध्ये वितरत्प्रमोदं, गणस्य भारं स बभार सूरिः॥४५॥ भृगोः पुरे यो बलमित्रभानु-15 भृगुककाचार्य मित्रौ गुरूणामथ भागिनेयौ । विज्ञापनां प्रेक्ष्य तयोः प्रगल्भां, गताश्चतुर्मासकहेतवे ते | कथायां ॥४६॥ श्रुत्वा गुरूणां सुविशुद्धधा , विशुद्धवाक्यानि नृपः सभायाम् । अहो !! सुधर्मो | जिननायकस्य, शिरो विधुन्वन्निति तान्बभाषे ॥४७॥ निशम्य भूपस्य सुधर्मवाक्यं, पुरो-18 धसो मस्तकशूलमेति । जीवादिवादे गुरुभिः कृतोऽपि, निरुत्तरस्तेषु वहत्यसूयाम् ॥४८॥ है कौटिल्यभावेन यतीन् प्रशंसन् , नरेन्द्रचित्तं विपरीतवृत्तम् । चक्रे पुरोधा गुरुभिः स्वरूपं,8 ज्ञातं यतिभ्यो यदनेषणीयम् ॥४९॥ ते दक्षिणस्यां मरहट्ठदेशे, पृथ्वीप्रतिष्ठानपुरेऽथ जग्मुः। यत्रास्ति राजा किल सातयानः, प्रौढप्रतापी परमाहतश्च ॥५०॥ राज्ञाऽन्यदाऽपृच्छि सभा|समक्षं, प्रभो ! कदा पर्युषणा विधेया !। या पञ्चमी भाद्रपदस्य शुक्ले, पक्षे च तस्यां भविता है। सुपर्व ॥ ५१॥ नृपोऽवदत्तत्र महेन्द्रपूजामहो भवत्यत्र मुनीन्द्र ! घस्रे । मयाऽनुगम्यः स च है लोकनीत्या, स्नानादिपूजा हि कथं भवित्री ? ॥५२॥ तत्पञ्चमीतः प्रभुणा विधेयं, षष्ट्यां १ चित्ते प्र०। SANSARSANSACROGRAMSARACK ॥८७॥ IRAARS Jain Education Internet For Private & Personel Use Only Colbrjainelibrary.org Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्रीकालिकार्यः-शालिवाहनश्च. चतुर्थी पर्युषणा यथा मे जिननाथपूजा। प्रभावनापौषधपालनादि, पुण्यं भवेन्नाथ! तव प्रसादात् ॥५३॥ राजन्निदं नैव भवेत्कदाचित् , यत्पश्चमीरात्रि| विपर्ययेण । ततश्चतुर्थ्यां क्रियतां नृपेण, | विज्ञप्तमेवं गुरुणाऽनुमेने ॥५४॥ स्मृत्वेति चित्ते जिनवीरवाक्यं, यत्सातयानो नृपतिश्च हाभावी । श्रीकालिकार्यो मुनिपश्च तेन, नृपा ग्रहेणापि कृतं सुपर्व ॥५५॥ यथा चतुर्थ्यां |जिनवीरवाक्यात् , सङ्घन मन्तव्यमहो तदेव। प्रवर्तितं पर्यषणाख्यपर्व, यथेयमाज्ञा महती सदैव ॥५६॥ अथान्यदा कालवशेन सर्वान्, १ यतो जिनाज्ञा प्र०। Dnyanatomyom Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - CA श्रीकालिकाचार्यकथायां श्रीकालकररिपार्श्वे प्रमादिशिष्यगमनं सागरचन्द्रमरेः क्षामणं च. ॥८८॥ RDASSOCACROCODACOCA प्रमादिनः सूरिवराश्च साधून् । त्यक्त्वा गताः शिष्यमीस्वर्णमहीपुरस्था-नेकाकिनः सागरचन्द्रसूरीन लनं निगो दप्रश्नश्च ॥५७॥ तेषां समीपे मुनयः (निवत् ) स तस्थौ, ज्ञातो न केनापि तपोधनेन । शय्यातरात् ज्ञातय-15 थार्थवृत्ताः, प्रमादिनस्ते मुनयस्तमीयुः ॥ ५८ ॥3 जिनेश्वरः पूर्वविदेहवर्ती, सीमन्धरो बन्धुरवाग्वि-13 लासः । निगोदजीवानतिसूक्ष्मकायान् , सभासमक्षं 3 स समादिदेश॥५९॥सौधर्मनाथेन सविस्मयेन, पृष्टं जगन्नाथ ! निगोदजीवान् । कोऽप्यस्ति वर्षेऽ-181॥८॥ स्मिन् भारतेपि (वर्षेऽपि च भारतेऽस्मिन् ), यो I वेत्ति व्याख्यातुमलं य एवम् ?॥ ६० ॥ समादि am Enication inmayD Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विप्ररूपेण शक्रः-श्रीकालिकसूरिश्च. निगोदस्वरूपं दिव्यं च 609 देश प्रभुरस्ति शक!, श्रीकालिकार्यः श्रुतरत्नराशिः । श्रुत्वेति शक्रः प्रविधाय रूपं, वृद्धस्य विप्रस्य समाययो सः॥६१॥ विप्रोऽथ पप्रच्छ निगोदजीवान् , |सूरीश्वरोऽभाषत ताननन्तान् । असङ्खयगोलाश्च भव|न्ति तेषु, निगोदसङ्ख्या गतसङ्ख्यरूपाः ॥६२॥ श्रुत्वेति विप्रो निजमायुरेवं, पप्रच्छ मे शंस कियत्प्रमाणम् । अस्तीति ? सिद्धान्तविलोकनेन, शक्रो है भवान् कालिकसूरिराह ॥६३॥ कृत्वा स्वरूपं प्रणि पत्य सूरिं, निवेद्य सीमन्धरसत्प्रशंसाम् । उपाश्रयद्वारविपर्ययं च, शक्रो निजं धाम जगाम हृष्टः ॥६४॥ श्रीमत्कालिकसूरयश्चिरतरं चारित्रमत्युज्वलं, सम्पाल्य RECHANICANORAMSANCHAR RISANKRAN Fannaro Nangipranior Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकालिकसरिः शक्रश्च श्रीकालिकाचार्यकथायां प्रतिपद्य चान्त्यसमये भक्तप्रतिज्ञां मुदा । शुद्ध-181 ध्यानविधानलीनमनसः स्वर्गालयं ये गता-स्ते 8 कल्याणपरम्परां श्रुतधरा यच्छन्तु सोऽनघे॥६५॥ ॥इति श्रीकालिकाचार्यकथा श्रीतपागच्छ वृद्धशालायां लिखिता ॥ AGARRAPANISHRIRAMO ॥८९॥ SamEnumon intere FarPIVED APomonal LSRO Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवनसम्राट्पीरोजशाह-प्रतिबोधकश्रीखरतरगच्छाचार्यश्रीमजिनप्रभसूरिविनेयवर श्रीजिनदेवसूरिनिर्मिता श्रीकालकसूरिकथा ॥ KADCASCR कालिकाचार्यस्य प्रतिज्ञा %ALESALESASARORSCREEG ॥ ऐ०॥ मोहान्धकारप्रागभारा-पहाररविमण्डलम् । अमानबहुमानेन, वर्द्धमानं नमाम्यहम् ॥१॥ पञ्चमीतश्चतुझं यै-श्चक्रे | पर्युषणामहः । तेषां कालकसूरीणां, चरितं किञ्चिदुच्यते ॥२॥ धरावासमिति ख्यातं, पुरं सुरपुरोपमम् । तत्राभूभूपतिर्वैरि-सिंहः सिंहपराक्रमः॥३॥ देव्यस्य सुन्दरी रूप-सम्पदा सुरसुन्दरी। तयोः कालकनामाभूत् , सूनुरन्यूनविक्रमः॥४॥ सोऽन्यदा बहिरुद्याने, हयान् रमयितुं ययौ । सूरिं गुणाकरं तत्र, धर्ममाख्यान्तमैक्षत ॥ ५॥ तस्यान्तिकमथो गत्वा, धर्म शुश्राव शुद्धधीः । | सद्यः संसारवासाच्च, परं वैराग्यमासदत् ॥६॥ पितरौ समनुज्ञाप्य, भटपञ्चशतीयुतः। सरस्वत्याख्यया स्वस्रा, सार्द्ध व्रतम-12 | शिश्रियत् ॥७॥ शिक्षा द्विधाऽभ्यस्तवन्तं, श्रुताकृपारपारगम् । निवेश्य तं निजे पट्टे, स्वग्गातिधिरभूद्गुरुः ॥८॥ क्रमेण कालका-18 चायेंः, साधुपञ्चशतान्वितः । क्ष्मां पुनानः पदन्यासः, पुरीमुज्जयिनी ययौ ॥९॥ आरामे समवासापर्षीद्, भगवान् सपरिच्छदः । तच्चरित्रैः पवित्रैश्च, चित्रीयन्ते स्म नागराः॥१०॥ गई भिल्लो नृपोऽद्राक्षीत् , समायान्ती बहिर्भुवः। अन्यदाऽऽर्या कृताश्चर्यरूपां सूरेः सहोदरीम् ॥ ११॥ कामग्रहगृहीतस्तां, हठादानाय्य पूरुषः । न्यधादधन्यः शुद्धान्ते, सूरिर्विज्ञातवांश्च तत् ॥ १२॥ आस्थानं द्र स्वयमागत्य, गुरुः शान्तमनास्ततः । तं दुष्टनृपमाचष्ट सुधामधुरया गिरा ॥ १३ ॥ त्वय्यन्यायरते राजन् !, सबै स्यादसमञ्जसम् । मुञ्चैतां व्रतिनी तस्मात् , परत्रेह च शर्मणे ॥१४॥ कोमलैर्वचनैरेवं, गुरुणा भणितोऽपि सः । प्रधानार्यमाणोऽपि,मुमोच न तपोधनाम् ॥ १५॥ तेजः क्षात्रमिवारूढो, भ्रकुटीविकटाननः । सभायां कालकाचार्यः, प्रतिज्ञामकरोदिमाम् ॥ १६॥ A CREASAGARCANC in Education Internationa For Private & Personel Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिन श्रीसङ्घप्रत्यनीकानां, महापातकिनामपि । माघवत्यतिथीनां च, नूनं लिप्येय पाप्मभिः॥ १७॥ यद्येनमेनसां धामो-न्मूलयामि न सारवीनादेवीयका-IN मूलतः । इत्युक्त्वा वचनं गत्वा, गच्छेनालोच्य किञ्चन ॥ १८ ॥ उन्मत्तवेषो नगरी, हिण्डमानो जजल्प सः । राज्यं भुले गर्दभिः मानयनं लिकाचार्य-8 शाल-श्चेत्ततः किमतः परम् ? ॥ १९ ॥ त्रिभिर्विशेषकं । एतस्य कान्तः शुद्धान्त-श्चेत्ततः किमतः परम् ? । इति दृष्ट्वा जनः सर्वोट कथायां हाहारवमुखोऽब्रवीत् ॥२०॥ धिगेनं नृपतिं यस्य, चेष्टितैः कष्टिताशयः । रटन् पिशाचकीवेत्थ-माचार्यः पर्यटत्ययम् ॥२॥ भूयः। ॥ ९ ॥ |सम्भूय सचिवप्रमुखर्बोधितोऽपि सः । विररामन कामाों, व्रतिनीसङ्ग्रहाग्रहात्॥२२॥गईभीविद्ययाऽजयं, तं ज्ञात्वा मेदिनीपतिम् । उपायेनोन्मूलयिष्यन्, शकलं ययौ गुरुः ॥२३॥ ये स्युस्तत्र च सामन्ता-स्ते साखय इति स्मृताः । तेषां तु नृपतिः साखा-नुसा-16 खिरिति विश्रुतः ॥ २४ ॥ आचार्यस्तस्थिवांस्तत्र, साखेरेकस्य सन्निधौ । मन्त्रयन्त्रप्रयोगाद्य-स्तं चात्यन्तमरञ्जयत् ॥ २५ ॥ अथान्यदा सुखासीने, साखौ तत्र स्वपर्षदि । दूतः साखानुसाखीयः, समागत्यार्पयच्छुरीम् ॥ २६ ॥ छुरिकां तां समालोक्य, साखिः श्याममुखोऽजनि । सूरिणा भणितश्चार्य, केयं भो! विपरीतता॥२७॥ अनुग्रहे विभोर्यस्मा-दायाते हृष्यतेतराम् । तवेक्ष्यते |तु वैलक्ष्य, ततः साखिरदोऽवदत् ॥ २८॥ नानुग्रहोऽयं भगव-निग्रहः पुनरेष मे । यस्मै क्रुध्यति नः स्वामी, तस्मै प्रेषयति च्छुरीम् ॥२९॥ तां क्षिप्त्वा क्षुरिकां कुक्षौ, मर्तव्यं तेन निश्चितम् । सोऽन्यथा सकलस्यापि, कुटुम्बस्य क्षयं सृजेत् ॥३०॥ स्वार्थाऽभिमुख्यमालोक्य, सूरिरुच्छसिताशयः । शाखिमाचष्ट तं रुष्टः, किं तवैवोपरि प्रभुः ॥ ३१॥ कुपितोऽयमुतान्यस्माद्यपि कस्मैचिदुच्यताम् । स पुनः षण्णवत्यत, दृष्ट्वा च्छुर्यामुवाच गाम् ॥३२॥ मद्विधानां षण्णवते-रुपरि क्रुद्धवानयम् । ततस्तैरपि मर्त्तव्यं, 13 मच्छरणवर्जितः ॥३३॥ जगी सगौरवं सूरि-न मर्त्तव्यं मुधैव भो!। नीत्वा हिन्दुकदेशं वः, प्राज्यराज्यं ददाम्यहम् ॥ ३४ ॥ दूतानामानि विज्ञाय, तान् सर्वानपि सत्वरम् । समाकारय युष्माकं, सिन्धुतीरेऽस्तु सङ्गमः॥३५॥ प्रमाणमादेश इति, व्याहृत्य शकपुङ्गवः । व्यधत्त तत्तथैवाशु, जीविताशा हि दुस्त्यजा ॥३६॥ विज्ञातपरमार्थास्ते, सर्वे सबलवाहनाः । सम्भूय साखयः सद्यः, | सिन्धुतीरे समागमन् ॥ ३७॥ आचार्यदर्शितपथः, साखीशः सोऽपि सत्वरम् । प्रयाणैरनवच्छिन्न-रुपसिन्धु समासदत् ।। ३८ ॥ BESTURLASHAUREAU SA -3121 Jan Education Inter For Private Personel Use Only hw.jainelibrary.org Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लादिया पानाMall called सवासा यणाभाणalo एकवासस भीमसपि ETTO M IELL हमीपारकएंगेज इडरना शेठ आणंदजी मंगळजीनी पेढीना ज्ञानभंडारनी वारसासत्र-ताडपत्री प्रतना श्रीपार्श्वनाथचरित्रमांना एक पानाना अडधा भागनो असल कदनो नमूनो. पार्श्वनाथजीना चित्रसहित. ताडपत्री पानानु माप-चित्र समचौरस इंच २६४२३. लंबाई इंच १४३. पहोलाई इंच २३. जुओ:- सूत्र पाना ४५-४६ चित्र पाने ४३. Farms For Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personel Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेऽथ सिन्धुं समुत्तीर्य, साधयन्तोऽखिलानृपान् । सुराष्ट्राविषयं प्रापु-स्तत्र प्रावृडुपेयुषी ॥ ३९ ॥ विभज्य नवधा राष्ट्र, सुराष्ट्रां गर्दभिल्लस्य तेऽवतस्थिरे । वर्षारात्रे व्यतिक्रान्ते, सूरिणा भणितास्ततः ॥ ४० ॥ हहो ! निरुद्यमा यूयं, किमु तिष्ठथ सम्प्रति । अवन्तिदेश पराजयः गृहीध्वं, पर्याप्तं तत्र भावि वः॥४१॥ तेऽवोचन् द्रव्यरहिता, वयं वामहे प्रभो!। निद्रव्याणां हि जायन्ते, न काश्चित्कार्यसिद्धयः ॥ ४२ ॥ हेमीकृत्येष्टकापाकं, युक्त्या तेभ्यो ददौ गुरुः । तेऽपि सम्भृत्य सामग्री, प्रचेलालवान् प्रति ॥४३॥ तान्निशम्यायतो दर्पाद्, गभिल्लोऽपि सम्मुखम् । आडुढौकेऽथ सम्फेटो-ऽभूवयोरपि सैन्ययोः॥४४॥ शस्त्राशस्त्रि चिरं युद्धा, शकसैन्येन निर्जितम् । अनीकं गई भिल्लस्य, यतो धर्मस्ततो जयः!॥४५॥ अवन्तीशः प्रणश्याशु, व्यावृत्य स्वपुरीमगात् । कृत्वा रोधक-* सज्जां तां, तस्थिवानन्तरेव सः ॥४६॥ अथाज्ञया मुनीन्द्रस्य, शकयोधाश्चतुर्दिशम् । नगरी बेष्टयामासु-श्वन्द्रलेखां घना इव ॥४७॥15 अट्टालकेषु युद्धानि, समभूवन्निरन्तरम् । तेऽन्यदाऽऽलोक्य शून्यांस्तान्, गुरवेऽकथयन्नथ ॥४८॥वप्रस्याट्टालकाः शून्याः, कुतोऽय भगवन्निति । पृष्टस्तैः स्पष्टमाचष्ट, गुरुर्विज्ञातकारणः ॥ ४९ ॥ अयं भो! गईभीविद्या, पापास्मा युक्तिपूर्वकम् । कृष्णाष्टमीचतुर्दश्यो-राराधयति सर्वदा ॥५०॥ सिद्धविद्यश्च भवता-मजय्योऽयं भविष्यति । तद् गवेषयत क्वापि, वास्योपरि गईभीम् ॥५॥ ते समालोक्य तां प्रोचुः, गुरवे सोऽप्यचीकथत् । द्विकोश्याः परतः सर्व, सैन्यमेतद्विधीयताम् ॥५२॥ इयं हि रासभी शब्द, कुरुते देव्यधिष्ठिता । तमाकर्ण्य द्विषत्सैन्यं, वान्तासृम्रियते ध्रुवम् ॥५३॥ अष्टोत्तरं शतं शब्द-वेधिनामिह तिष्ठतु । तैः पूरणीयमिषुभिस्तस्या दिध्वनिषोर्मुखम् ॥ ५४॥ शकाः सूरिसमादिष्ट-मेतत्सर्वं वितेनिरे । तथैव शब्दावसरे, तस्या आस्यमपूरयन् ॥ ५५ ॥ सा तु विद्यासमाविष्टा, दुर्धियस्तस्य भूपतेः । मूर्ध्नि विण्मूत्रमाधाय, पलायामास रासभी ॥५६॥ सूरेरादेशतो वप्रं, भकृत्वा मध्ये प्रविश्य च । जीवग्राहं गृहीत्वा त-मुपनिन्युर्गुरोः पुरः ॥५७॥ गुरुणा बोध्यमानोऽपि, यदा न प्रत्यबोधि सः । प्रदाप्य कपरं हस्ते, देशान्निष्कासितस्ततः॥ ५८ ॥ व्रतान्यारोपयत्सूरि-रार्यायाः शुद्धये पुनः । प्रायश्चित्तं चरित्वा च, स्वं गणं प्रत्यपालयत् ॥ ५९॥ मौलिक्यशाखिनृपति-रपरे तस्य सेवकाः । इति व्यवस्थया तत्र, राज्यमन्वशिषन् शकाः ॥६०॥ ते श्रीमत्कालकाचार्य-पर्यु RSSCIRBAAG कल्पसू.१६ Jain Education Inter For Private Personal use only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिन- पासनतत्पराः । चिरं राज्यानि बुभुजु-र्जिनधर्मप्रभावकाः ॥ ६१॥ इतश्चाभूद् भृगुकच्छे, जामेयः कालकप्रभोः । बलमित्र भृगुपुरादेवीयका- नृपो भानु-मित्रस्तस्यानुजः पुनः ॥ ६२ ॥ तौ च प्रहित्य स्वामात्य-मत्युत्कण्ठावशंवदौ । शकराजाननुज्ञाप्य, नयतां स्वपुरे निर्गमः लिकाचार्य- गुरुन् ॥ ६३ ॥ बलभानुं स्वजामेयं, भानुश्रीकुक्षिसम्भवम् । प्रत्राज्य प्रावृष सूरिं, तत्रैवास्थापयन्नृपः ॥ ६४ ॥ प्रभावनां विभा पर्वपराकथायां व्योच्चः, पुरोधाः कृतमत्सरः । पुराऽपि निर्जितो वादे, रहो राजानमब्रवीत् ॥ ६५ ।। अमी तपोधना यत्र, सचरन्ति महाशयाः। वत्तिःप्र. तत्र देव ! पदन्यासो, युष्माकं नैव युज्यते ॥६६॥अभक्तिर्जायते ह्येवं, सा च श्रेयःप्रमाथिनी । प्रेप्यन्तेऽमी तदन्यत्र, विधाप्या-ट्र ॥९१॥ मादिशिनेषणां पुरे ।। ६७ ॥ एवमस्त्विति राज्ञोक्ते, कारिताऽनेषणा पुरे । विलोक्य तां समन्ताच्च, गुरुभ्यः साधवोऽवदन ॥ ६८ ॥ पुरो- प्यत्यागः हितस्य तत्सर्वं, ते विमृश्य विजृम्भितम् । अपर्युष्यापि चलिताः, प्रतिष्ठानपुरं प्रति॥६९॥ शातवाहनराजेन, कृताभिगमनोत्सवाः । हातस्थुः सुखं पर्युषणा-पर्व तत्रान्यदाऽऽगमत् ॥ ७० ॥ तान् राजोवाच पञ्चम्यां, देशेऽनेन्द्रमहो भवेत् । जनानुवृत्त्या गन्तव्य मस्माभिरपि तत्र च ॥७१॥एवं च चैत्यपूजादे-ाघातः सम्भवेद्विधेः । षष्ट्यां पर्युषणापर्व, तदिदं क्रियतां प्रभोः!॥७२॥ स्वाम्याह राजन ! पर्वेद, पञ्चमी नातिवर्तते । कारणापेक्षया त्वर्या-गपि स्यादिति हि श्रुतम् ॥ ७३ ॥ चतुर्थ्यामस्तु तीत-दित्युक्त भूभुजा18 प्रभुः । मेने तथेति भूपस्तु, मुदितो गृहमागमत् ॥७४॥ तदाद्यभूद् भाद्रशुद्ध-चतुर्थी किल पर्व तत् । चतुर्दशीदिने चातु-आसिकानि च जज्ञिरे ॥ ७५ ॥ अन्यदा कर्मदोषेण, शिष्याः श्रीकालकप्रभोः । दुविनीता अजायन्त, शिक्षाया अप्यगोचराः ॥ ७६ ॥ रात्रौ शय्यातरस्योक्त्वा, परमार्थ विमुच्य तान् । निद्रागतान् प्रचलिताः, स्वयं कनखलं प्रति॥७७।। स्वशिष्यरत्नाकराख्य-सूरिशिष्यस्य सन्निधौ । सूरेः सागरचन्द्रस्य, प्रतिबोधितभूपतेः॥ ७८ ॥ युग्मं । क्रमेण तत्र सम्प्राप्ता, न केनाप्युपलक्षिताः। उपाश्रयस्यैककोणं, है समाश्रित्यावतस्थिरे ॥७९॥ प्रतिक्रम्यर्यापथिकी-मुपविश्य क्षणं स्थिताः । अत्रान्तरे सागरेन्दु-रनुयुज्य प्रपारितः॥ ८॥ असहि-1 ॥९१॥ काष्णुज्ञानगर्व, सूरीन् प्रति बभाण सः। आर्य ! कीम् च्याचचक्षे ?, मया साध्विति तेऽवदन् ।।८।। ततः पुनर्मदाध्मातः, सागरेन्दु-18 भाण तम् । आर्य ! किश्चिद्विपमार्थ, परिपृच्छ वदामि ते ॥८२॥ न किञ्चिद्विपमं जाने, धर्म तद्वार्द्धकोचितम् । व्याचक्ष्व मत्पुर इति, CASARASRASRANAMOKARX *HARACASSACROCCASIACAS Jan Education Inter For Private 3 Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ **** *** * प्रोचुः पौत्रं मुनीश्वराः ॥ ८३ ॥ अनित्यताभावनाद्यं, धर्ममत्यूर्जितं ततः । व्याचक्षाणे सागरेन्दौ, साक्षेपं प्रभुरब्रवीत् ॥८४॥ इन्द्रकृताः |प्रत्यक्षाद्यगोचरत्वा-नास्ति धर्मः खपुष्पवत्। मुधा तद्विषयं क्लेशं, मूढा अनुभवन्त्यमी॥८५|| अन्तःक्षुब्धोऽप्यवष्टम्भ-मालम्ब्योवाच निगोदायु | सागरः। अस्त्येव धर्मस्तत्कार्य-सुखादेरुपलम्भतः॥८६॥ युक्तिभिः साधिते धर्मे, मौनं कृत्वा स्थितो विभुः। तथा शिष्या दुर्विनीताः, प्रश्नो सुप्ताः प्रातरजागरुः ॥ ८७॥ गुरूनप्रेक्ष्य तेऽपृच्छन् , शय्यातरमसौ पुनः। निर्भयं वचनैस्तीक्ष्णैः, प्राहिणोत्सूरिसन्निधौ ॥८८॥ क्रमात्ते तत्र सम्प्राप्ताः, वाती विज्ञाय तन्मुखात् । सागरः क्षमयामास, गुरूंस्तैमुनिभिस्सह ।। ८९॥षालुकापूरितप्रस्थ-भृतिरेचन-15 दापूर्वकम् । पौत्रं तेऽबोधयन् ज्ञान-तारतम्यप्ररूपणात् ॥ ९॥ अथ व्याख्यां निगोदानां, श्रुत्वा सीमन्धरप्रभोः । शक्रोऽपृच्छद्भ रतेऽपि, किमेवं वेत्ति ? कोऽप्यमून् ॥९॥ व्याचाष्ट्र भारते मद्ध-निगोदानार्यकालकः । इति भाषितवान् वज्र-धरं सीमन्धरप्रभुः |॥९२॥ तं वृद्धद्विजरूपेण, गतः शक्रः परीक्षितुम् । पृष्ट्वा निगोदानायुश्च, मुदितः स्तुतवानिति ॥१३॥ दुष्षमारात्रिदीपाय, प्रतीपाय कुतीर्थिनाम् । अनर्थ्यगुणरत्नौध-रोहणाय नमोऽस्तु ते॥१४॥श्रीकालकार्य प्रणिपत्य शक्रः, स्वस्यागर्म ज्ञापयितुं मुनीनाम् । कृत्वाऽन्यथा द्वारमुपाश्रयस्य, सम्पूर्णकामस्त्रिदिवं जगाम ॥९५॥ मत्वाऽऽयुरन्तं भगवानपि स्वं, श्रीकाल कार्योऽनशनं विधाय । विहाय कायं विधिव द्विधिज्ञ-स्त्रिविष्टपस्याभरणं बभूव ॥९६॥ श्रीजिनप्रभसूरीन्द्रः, स्वाङ्कपर्यङ्कलालितः। जग्रन्थैतां कथां श्रीम-जिन|देवमुनीश्वरः॥९७ ॥ इति श्रीकालिकसूरिकथानकं समाप्तम् ॥ श्रीः ॥ ॥ ५ ॥ ***** CESSA G E Jain Education For Private & Personel Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDIADRIDDDARIDDINDO RIAADIMIND LCLLLLLLLLLLLCCCCCA CCCCCCCCCCCCCCCCORN इति श्रीकालिकाऽऽचार्यकथानकद्वयसमेतम् श्रीदशाश्रुतस्कन्धान्तर्गतं श्रीपर्युषणाकल्पाख्यं स्वामिश्रीभद्रबाहु-विरचितम् श्रीकल्पसूत्रम्-सचित्रम् समाप्तम् // इति श्रेष्ठि देवचन्द लालभाई-जैनपुस्तकोद्धार ग्रन्थाङ्के-ग्रन्थाङ्कः 82. LLLLLLLLLLLLLL ALLLLLLLLLLLLLLLLLLS ANDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD COCOCCOLLLLLLLLLOCOLLECCCCCCCCCCCCCCCCCOUECENT