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________________ वासावासं पजोसवियाणं० 'दावे भंते!पडिगाहे भंते!,' एवं से कप्पइ दावित्तएविपडिगाहित्तएवि। | विकृतीनां ॥१६॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हट्ठाणं तुट्ठाणं वर्जनादि आरोगाणं बलियसरीराणं इमाओ नव रसविगईओ अभिक्खणं २ आहारित्तए, तंजहा-खीरं १ दहिं २ नवणीयं ३ सप्पि ४ तिल्लं ५ गुडं ६ महुं ७ मजं ८ मंसं ९॥ १७॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगइआणं एवं वुत्तपुवं भवइ-अट्रो भंते! गिलाणस्स, से य वइजा-अट्टो, से य पुच्छियवे-केवइएणं अट्ठो ?, से वएज्जा-एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स, जं? से पमाणं वयइ से य पमाणओ पित्तवे, से य विन्नविजा, से य विन्नवेमाणे लभिजा, से य पमाणपत्ते होउ अलाहि, इय वत्तवं सिआ, से किमाहु भंते ! ?, एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स, सिया णं एवं वयंतं परो वइज्जा-पडिगाहेह अज्जो !, पच्छा तुमं भोक्खसि वा पाहिसि वा', एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाणनीसाए पडिगाहित्तए॥१८॥ वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थि णंथेराणं तहप्पगाराइं कुलाई कडाइंपत्तिआइंथिज्जाइंवेसासि १ नास्ति प्रत्यंतरे। २ अरोगाण आरुगाणं कि० । Jain Education in For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600077
Book TitleKalpasutram Barsasutram Sachitram
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMeghsuriji
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1933
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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