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कल्प० वारसा०
॥ ४८ ॥
नेमनाथदीक्षा महोत्सवः.
वस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमलालंकारं ओमुयइ, सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवसमादाय एगेणं पुरिससहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए ॥ १७३॥ अरहा णं अरिट्ठनेमी चउपन्नं राइंदियाइं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे, तं चैव सव्वं जाव पणपन्नगस्स राईदियरस अंतरा वट्टमाणस्स जे से वासाणं
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नेमनाथ - चरि०
श्रीनेमिनो दीक्षा
॥ ४८ ॥
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