Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003991/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणीका. 2000 ग्रंथोना नाम. पृष्ठ. ग्रंथोना नाम. पृष्ठ. प्रसस्ति १२० मुनीसुव्रत जिनस्तवन. १५१ १ षब जिनस्तवन... २ ११ नमिजिन स्तवन. १ अजीत जिन स्तवन.. ६ | २२ नेमिजिनस्तवन. ३ संभव जिनस्तवन...१६ २३ पार्श्वजिनस्तवन. | ४ अभिनंदन जिनस्तवन. २३ ३० ५ सुमतिजिनस्तवन. ६ पद्मप्रनजिनस्तवन. ७ सुपार्श्व जनस्तवन. छ चंद्रप्रन जिन स्तवन. ए सुबुद्दिजिनस्तवन. १० सीतल जिनस्तवन. 21 श्रेयांस जिनस्तवन. १४ अनंत जिन स्तवन. १५ धर्मजिनस्तवन. १६ सांतिजिनस्तवन. ९८ ******** १० कुंथुजिनस्तवन. १६ अरजिनस्तवन. १० मल्लि जिनस्तवन. १२ वासपूज्य जिनस्तवन. १३ विमल जिन स्तवन. 2. ४२ ४७ ५६ ६० ७६ ज्य ए ३ 200 a १. ५८ १६३ १६७ २४ माहावीर जिन स्तवन. १७४ २५ कलसनोस्तवन. १७६ २६ साधुन पाचनावनानो. १६२ २७ प्रनंजनानिसिज्जा. १६५ १२ १. ए ३ १९३ १७४ २६ सीखामनीसज्जा. २० बीजनोस्तवन. ३० ममोवरापार्श्वजिन० ३१ पुण्यनीसज्जादा. ३२ रुषब जिनस्तवनप्रभा तिरागमा. १९४ ३३ जिनदासकृतबुटापद. १० श १०५ १.०८ ११७ ३४ पजुसनोस्तवन. १२४ ३५ चैतन्यकर्मचरित्र. १३३ ३६ अध्यातमगीतामुल १४२ / ३७ पार्श्वजिनस्तोत्र. For Personal & Private Use Only g २१९ २२४ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहेरखबर. - -- नीचे ल खेला ग्रंथो श्रीमुंबईमां मांमवी बंदरऊपर ग्रंथसागर प्रेस मध्य तथा पांजरापोल अंदर लालबाग नामे 10 मां नंबरनी पौषध शालामध्ये संवेगी श्री चारित्रप्रधान स्वामीपासेथी तथा श्री अमवादमध्ये शेत दलपत नाइ नगुनाश्नी पेहेमीए वेचता मल से. ग्रंथोना नाम. कीमत रु० आर १ पीन पधारा टीकासहित महूर्त चिंतामणी ... ... ... ४ ७ २ परिक्रमणासूत्र अर्थसहित ... ... ... ... ...३ ० ३ देवचंधजीनी चोवीसीनो बालाबोध तथा बीजा प्रकरणो ... ... ... ... ... ... ...२ ४ मागधि व्याकर्ण ... ५ जैनप्रबोध पुस्तक ... ६ चंदराजानो रास... .... ७ सिद्धांतधर्मसार ... ... छ समकेतमूल बारव्रतनाटीप ... ए नूवन नानु केवलिनो राम ... १० मानतुंग मानव तीनो रास ११ नवतत्व बाल बोध... ... ... ० १२ जैनल घुसार संग्रह १३ स्तवन संग्रह ... ... ... ४ १४ गुहला संग्रह ... ... ... .... ४ १५ धूर्ताख्यान ... ... ... ... ४ २६ संस्कृतप्रबोध ... ... ... 0 ४ 5 » 0 0 0 0 0 V Bur www For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवर्धमानाटानमः ॥ श्रीगौतमाटानमः ॥ अथ श्रीदेवचंजीकृत श्रीआदिनाथप्रमुख चोवीश तीर्थकरनी स्तवनागीत चोवीसनो बालाबोध लिख्यते swx& एसंसारीजीव देवतत्व गुरुतत्व धर्मतत्वनीनूले अनादिनो संसारच क्रमां नमीरलोडे शरिर इंज्यिसुखपरिग्रहने हितकारीमान्याने अने पो ता-आत्मस्वरूप अनंतानंदमय वीसारीमुक्युंजे तेसंनारतोजनथी प संझीपंचेंख्यिपणुंपामीने जोपोतानाशुधधर्म तथा शुधधर्मनाकारणसे वेनहीतो आत्मास्यात्वसंपदा केमपामे तेमाटे उपकारी जगत हितका री श्रीवीतरागपरमात्मा परमपुरषोत्तम अरिहंतनीस्तवना तथा सेवना करवी पणरागविना अनुनीसेवनाथायनही तेकारणथी प्रथम श्रीशष नदेवनीस्तवनकरतां श्रीवीतरागऊपरप्रीतीकरवी तेरीतकहेले प्रथम धर्मनाचारआचरणकह्याने । प्रीती २ नक्ति ३ वचन ४ असंग ते मांप्रथमप्रीतिनुलक्षण षोमशकटीकाथी जाणवु ॥ यत्रानुष्ठातुःआद रप्रयत्नातिशयोस्तिषीतिश्चअनिरुचिरूपाहितनदयोदयस्याःसातथानवति कर्तुःअनुष्ठातुःशेषाणांत्यागेनचतत्काले यच्चकरोति तदेकमात्रनिष्ठतया तत्पीत्यनुष्ठानं झेयमिति ॥ जिहांआचरणकरवावालानो अतिआद रसहित न धमनुं अतिशयपणुंहोय तेप्रीतिजाणवी तेप्रीतिनाविलास विना चालेनही माटतेहनारुचिअभिलाषीजीवे बीजासर्वकार्यतजीने तेहजकर तथा तिहांजएकनिष्ठाप्रतीतकरवी तेनेप्रीतिआनुष्ठानजा णवू इतिनावार्थः ॥ तेषीतिसंसारीनावथीसर्वजीवोने के पणतेपलटावी ने गुणीथीकरवी तेकहे ॥ For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा ॥अथषनजिनस्तवन॥ ॥ निषडीवेरण हुश्र ॥ एदेशी ॥ झषनजिणंदसुप्रीतडी ॥ किमकीजेहोकहो चतुरविचार ॥ अनुजीजश्अलगावस्या॥ तिहांकिणेनविदोकोश्वचननचार । झ० ॥१॥ अर्थ ॥ श्रीनानीकुलघरनीनार्या श्रीमरुदेवीस्वामिणीनी कुदीनेवि उत्पनर्थईने जेणेअढारकोमाकोमी सागरोपमसुधा निर्वाण मार्गनो विधहतो तेनिवारयो एवाश्रीषनदेवप्रथमतीर्थकर रागक्षेषरहितताथी जिनकहिटो तथाउपकारसंपदा अनेअतिशयसंपदाएंकरि विराजमान साथ जिणंदकहिये तेनाथीप्रीतिविलासकरवानोअर्थी नव्यजीव मो दाभिलाषी विचारे जे निरागीझषनपुरषोत्तमसाथे शारीतेषीतिकीजे वीतरागथीप्रीति माहराआत्माएं पहेलाकेवारे अनुनवीनथी तेपरमेश्व रथी पोतिनोअर्थीप्रीतिनीचाल अजाणतोपुले जेहेचतुरमाह्या झा नीषाचार्यादिकपुरषो अथवा पोता-आत्मातेजातेचतुर तेहनपुने के तेप्रीतिनोविचारकहो जेनजीकहोय तेथीप्रीति बने पण अनुजीतोसर्व रीते अलगारला ॥ प्रथमव्यथी हूंअशुभ्रपरिणतिविनावकर्मानुजा यी पुजल नावनोगी तेथीभशुरुषव्यबु अनेश्रीनगवानतो शुभपरिणामी निरावर्णवनाव) निकर्मी अनंत अहटाझानादि स्वगुणनोगी तेथी शुधषव्यचे बीजुंदेकरी हूंसंसारक्षेत्री शरीरावगाही अनेत्रीषनष नुतो लोकांतदेवेरला अशरीरी स्वपदेशावगाही तेथी देवेकरीनि नये तेमजत्रीचं कालेपणनिन्नये अनेनावथी हूंरागीक्षेषी तथाअ द्वार पापस्थानकेनरयोQ अनेश्रीदेवाधीदेवतोनिरागी सर्वपापस्थानरहि नरे माटेश्रीअनुजी हमणातोसर्वरीते मुझथीवेगलावसेने वलीअलगा नेपणवचनादिकेमलिये पणश्रीऋषनदेव सिधथया तिहांसिघअवस्था For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभस्तवन मां को ईवचननुच्चानथ त्यारे प्रीतिकेमकराय ॥ इतिगाथार्थः ॥ १ ॥ ॥ कागलपए पहोचे नहीं || नवी पहोचेदो तिहांकोपरधान ॥ जेपहोचेतेतुमसमो॥ नविनाषेदोकोईनोविवधान ॥ ० ॥ २ ॥ ॥ प्रीत करते रागीया ॥ जिनवरजीहोतुमे तोवीतराग ॥ प्रीतडीजे रागयी || ने लवीतेहोलोकोत्तरमाग ॥ ० ॥ ३ ॥ अर्थ || तथाएकबीजोपण प्रीतिनोपायते जेकागलवमे श्रीतिथा पण सिनेविषेकागल पए पहोचे नहीं तथाकागल नहीं पहोचेतो को ईमाणसमुकी पएतिहांसि छावस्थाने विषे कोई प्रधानप एप होचे नहीं जेनीसाथेविनंती कहाविटों इहांको जीवने संसयउपजेके रत्नत्रयीच्या राजीव मोजाय तोकोईनपहोचे एमके मकहोबो : तेऊ परकवे तिहांसिधावस्थानेविषे पहोचेते तुमसमोतुमजेवो प्रभुतामयी वीतराग अयोगीप्रसंगी सकल ज्ञायक पण्वचनरहित एटले अर्थात् ते पण परमपूज्यते कोइनो व्यवधानकहेतां यांतरोनेदकहेनहीं माटेश्रीती नात्र पाय माहेला कोईउपायदीसतोनथी तेमाटे श्री जुगादिदेव साथे श्रीतिकेमकरियों ॥ इतिद्दितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ MY ३ अर्थ || हवेली कहने संसारीजीवमुकस रिखा तथासम्यक् ऽष्टि प्रमुखपण जे श्री सर्वत्रैलोक तिलकथी श्रीतिकरवाचाहे तोरागीरागसहितले नेहे जिनवरजी तुमेतोवीतरागबो रागरहित बोरागी ने ने कररीतेरीजवीयें पण जे पोतेरागी नहीं ते केमरीऊपामे इहांकोईजीवकहेसे जेतेवारेवीत रागथी प्रितिनकरवी तिहांकहेबे जेरागीरागरहित तेहथीजे जितिने लव तोलोकोत्तरमार्गबे एटलेइमजा एवं जेरागीथीरागीथाय ते मि For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो० बा० ले पmकोई रागांशजेमध्येनथी तेहथीप्रीतिकरवी तेलोकोत्तरमार्गजा बोटले रागीथीरागकरवो तेच्या तिच्याश्चर्यजावो ॥ ३ ॥ ॥ प्रीतिनादिनीविषनरी ॥ तेरीते होक वामुळ नाव ॥ करवीनिरविषप्रीतडी । किए जाते होकहोब नेबनाव ॥ ० ॥ ४ ॥ अर्थ॥हवेसंसारीजीवमध्ये प्रीतिनिपरतिच्यनादिनीबे ते पुजलनावरण गंध रस फरस मनोइसंयोगऊपर इष्टतावे ते प्रीतिच्य प्रशस्त बे नवाकर्मनुं बंध कारवे तेथानादिनीप्रीतिविषेनरी जेमऐश्वर्यादिकदेखीने पु मला शुद्दताकपर जेइष्टताते रागविषमयीवे तेरागखजनकुटंब परिग्रह ऊपरवे तेरीतेप्रभुजीतुमऊपर रागकरवानोमारोनावडे पतेरागकाम नोनहीं ममकारकुलाचारेजे अरिहंतकपरराग ते मोक्षमार्ग मांनहीं स्या माटेजेममकारेको राग करतोनथी एसंसारहेतुबे || वक्तंच जोपस छोरागो बढइसंसार नमपरवामी विषयाइसुसया इस इवत्तं पुग्गलाई सु || १ | अनेश्रीच्छरिहंतथी जेरागकरवो तेप्रशस्त करवो तेनुंलक ॥ नालाईसुगुणेसु रिहंताईसुधम्मरूवेसु धम्मोवगरण साहम्मी ए सु ॥ धम्मथ्थंजोयगुणरागो ॥ २ ॥ सोसुपसोरागो धम्मसंयोगकारलोगु दो पढमंका बोसो पत्तगुणेषवतंस || ३ || तेमाटेच्अरिहंत ऊपररा गकरवो ते निर्विषकरवो जेमांविषयाभिलाषपानही वर्णादिकनीरीक नही तथा इहलोक परलोक इंडिटयसुखाभिलाषनही प्रभुनाज्ञानादिक गुबेतमनेच्छा एवी निलाषानही एका रूपीच्य जच्ाविनाशी छक त्रिम शु६ज्ञानादिकगुण सकलव्यक्तथया खरूपभोगीस्वरूपम ख रूपाश्रित एवागुणनोराग एकलो गुण प्रगट करवावास्ते तेरागनिर्विषजा वो तेनिर्विषप्रीतिकरवानी मुकमेंतोशक्तिनथी तेमाटे हवे एब नाव के मब ने कार पुरुषोतमेकहो इतिचतुर्थ गाथार्थ ॥ ४॥ 50 ५ For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झषनस्तवन ॥प्रीतिअनंतीपरथकी॥जेतोडेहोतेजो डेएह ॥ परमपुरुषथीरागता॥ एकत्वता होदाखीगुणगेह ।। २० ॥५॥ अर्थ॥ हवेचतुरपुरुष उपाटाकह प्रीतिकेहतांराग अनंतोपरथकी एटले पुजलनावी अथवाशरीरीजीवथी तेसर्वजेजीवतोमेकहेताटाले तेएग णी अरिहंतादिकथा जीतिजोमे एटलेसर्व परनावीरागतजे तेगुणीराग करीशके तिहांकोईपूजसे जेगुणीअरिहंतादिकथी गुणेमले पणरागतो पापस्थानको तेस्यामाटेकरिये तिहांक हेजे जेपरमपुरुष वीतरागथी रागताकहेतांरागीपणु तेपणगुणनुघरकलुजे अनेश्रीअरिहंतादिकथा गु एकत्वध्यानेमलq तेपणगुणतुंगेहकडं तेमाटेप्रथमश्रीअरिहंतकपर रागकरवोतहीज वीतरागतार्नु कारणजे ॥ ५॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ॥अनजीनेअवलंबतां ॥ निजनताहो प्रगटेगुणरोस ॥ देवचंनीसेवना॥आ पेमुजहोअविचलसुखवास॥॥६॥ अर्थ॥ एतेषभुजीनेअवलंबतां कहेतां आश्रयतां निजकहेतांपोतानी अनुताअनंतगुणपर्याटारूप प्रगटे निरावरणथाए गुणनीरासीसमूह व्य तथाटा तेमाटेदेवजे चारनिकाटानादेवता अथवानरदेवादिकमांहे चं मासमान श्रीअरिहंतदेव तेहनीसेवनानक्ति व्यथीतथानावथीकरवी तेपेकहेतांदे मुनेअविचल सुखअव्याबाधसुख तेहनोवासकहेतार हेवूएटलेनावार्थएजेश्रीपरमात्मा परमपुरुषोत्तम अरिहंतनीसेवना असं यामआश्रवत्याग संटामसंवररूपपरिणमन तेसेवनाकहिट ॥उक्तंच ॥ आणाकारीनत्तो ॥ आणाईन सोअनत्तोती ॥ इति ॥तथाअरिहंतनु पोतेतो पोतानीसेवनानाअर्थीनथी पणसर्वजीवोने स्वहितकरवावास्ते, For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा एहीजकरबुंदेबनेगरिहंत आझातेकोईनो हुकममनाववानथी पणश्री अरिहंतदेवे केवलझानेदी जेसर्वजीवोनेपोतानो झानदर्शनचारित्र ते परमानंदहेतुने तेमाटेजेरीते ज्ञान दर्शन चारित्र नीपजे तेमार्गनपदेस्यो ते प्रमाणेवर्त्तव॑तेअरिहंतनीसेवनाकरतां निश्चटमोक्षपदसर्वउत्तमजीवपामे माटेअनुजीनीसेवाते अविचल सुखापे तेकारणेसर्वनव्यजीवें सकल संसारकार्यतजी सर्वपरनावथानिस्पृहीथईने एकपरमोपगारी तत्वोपदेशी धर्मनायकश्रीअरिहंतदेवनीसेवनाकरवी इतिश्रीशष नजिनस्तवनसमाप्तं ॥ अथअजितजिनस्तवन ॥ देखोगतिदेवनारे ॥ एदेशी ॥ ॥झानादिकगुणसंपदारे॥ तुमअनंतअपार ॥ तेसांनल तांऊपनीरे॥ रुचितेणेपारनतार ॥ अजितजिनतारजो रे॥ तारजोदीनदयाल ॥ अजितजिनतारजोरे॥१॥ अर्थ।हवेश्रीअजितनाथस्वामीनी स्तवनाकरे कारणकार्यनावनी साध नतादेखा जकारणमिलेते कार्यनीपजे ते कारणनाबेनेदबे एकनिमित्त कारण बीजुन पादानकारण पणनपादानकारणनीकारणतानिमित्तमिल्या प्रगटे तेनिमित्तकारणनीपुष्टताटोथाय अनेमोक्नु निमित्तकारण श्रीदे वतत्व तेकारणेकार्यनीपजे तेपरपाटीदेखामे सकलपंचास्तिकाटा गुणपर्यायादि विशेषधर्म प्रत्यदनासन त्रिकालावबोध तेकेवलझान तथासकल सामान्यग्राहकते केवल दर्शन अनेखरूपएकत्वतेपरमचारित्र वलिअरूपीअव्याबाधप्रमुख गुणनीसंपदा हेअनुजीतुऊकहेतांतुमारे अ नंत अपार जेथकीसर्वव्यथी सर्वव्यनाप्रदेशअनंतगुणा सर्वपदे शथी एकव्यनागुणअनंतगुणा सर्वगुणथी अस्तिनास्तिरूप वपरपर्या यअनंतगुणा अस्तिपर्याटातेपणवस्तुनोस्वधर्म नास्तिपायतेपणवस्तु नोखधर्मजे श्रीविशेषावश्यकमाहे श्रुतज्ञानाधिकारेकझुंबे ॥ एवंउक्तेस For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजितस्तवन तिपरप्राह ॥ जश्तेपरपसाटा नतस्सअहतस्सनपरपशाया ॥ जंतंमि यसंबछा तोपरपसाटाववएसो ॥ ॥ इहखपाटाणांमेवतत्पर्यादाता युक्तायेचामीपरपर्यायास्तेटादि घटादीनांतहिनादरस्यतथादरस्यतेत हिनवटादीनांततश्चयदिपरस्यपर्यायास्तहितस्यकथं तस्यचेत्परस्यकथ मिति विरोधस्तदयुक्तमभिप्रायापरिझानाद्यस्मात्कारणाततस्मिनकारे काराद्यदरे घटादिपर्यायाअस्तित्वेनासंबधास्ततस्तेषांपरपर्यायव्यपदे शोअन्यथाव्याटतेनरूपेणतेपिसंबंधा एवेत्यतस्तेषामपिव्याहत्तरूपतया पारमार्थीकस्वपर्यायत्वंनविरुच्यते अस्तित्वेनतुघटादिपर्यायाघटादिष्वे वप्रतिबधाश्त्यदरस्यतेपरपर्यायाव्यपदेश्यतेतिनावः विविधंहिवस्तुन खरूपंअस्तित्वंनास्तित्वंच ततोयेयत्रास्तित्वेनप्रतिबधास्तेतस्यखपर्या यानच्यते टोतुयत्रनास्तित्वेनसंबधास्तेतस्यपरपर्यायाःप्रतिपाद्यते ॥ ३ तिनिमित्तनेदख्यापनपरावेवस्खपरशब्दौनत्वेकेषांतत्रसर्वथासंबंधनिराकर पपरौ वथ्थुसहावपश्तं पिसपरपर्यायनेटान निलं ॥ तंजेणजीवनावो नि नाश्तनग्घमायायावस्तुख नावंप्रतियथावस्थितं वस्तुस्वरूपंमाश्रित्यतद पिकेवलझानंथकाराघदरवत् स्वपरपर्यायानेदतोनिनमेवननुयथोक्त नीत्यास्वपर्यायान्वितमेवेतिनावः कुतःइत्याह टोनकारणेनतत्केवल झा नंजीवभावप्रतिनियतोजीवपर्यायोनघटादिस्वरूपतत्रापिघटाददास्तत्व भावाः किंतुततोनिनाइति तेझाटामानाअपितेकथंतस्यस्वपर्यायानवेयु सर्वसंकरेकत्वादिषसंगात्तस्मादमुर्त्तत्वचेतनत्वसर्ववेतृत्वाप्रतिपातीच नि रावर्णत्वादटाकेवलझानस्यस्वपर्याटाघटादिपर्यादास्तुव्यात्तिर्माश्रित्य परपर्यायाः अन्येतुव्याचदते सर्वव्यगतानसर्वानपिपर्याटात् केवल झानंजानातियेंनचस्वभावेनैकं पर्याटांजानातिनतेनैवापरमपिकिंतुख वनावनेदेनान्यथासर्वव्यपर्यायैकत्वप्रसंगात्तस्मात् सर्वव्यपर्यायरा शतुल्यास्वनावनेदलदणकेवल ज्ञानस्यस्वपर्याया सर्वषव्यपर्यायास्तुप For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा रपर्यायाः इत्येवंस्वपर्यायापरपर्यायाश्चोनयेपि परस्परंतुल्याकेवलस्ये ति ॥ इत्यादिअधिकारसर्व माहानाष्यथाजाणजो तेअस्तिनास्तिपर्या याते जीवषव्यनासर्वथा अनंतगुणाने तेसर्वपनुजी तुमारानिरावरणथ या तेअनंतगुणमयीपरमानंदसंपदा तुमारीआगममाथी सांभलतांमुऊ नेपिणएरूचिउपनी जेएहवा सिघतामाहरेप्रगटे एहवोअभिलाषकपनो तेथीकडंबुके हेपरमपुरुष मुजानाथदीनकर्मवसेंनवनमताने नवसमुख थी पारन तार संसारथीपारन तरखानी वीनती तुमविनाबीजाकोणाग लकहुं जेनवपारपाम्यातेचागल भवपारपामवानीवानतीकरूं तेनणी स्वामिमुऊने संसार नीस्तारकरो एवीनतीजेजीवनवथीन दिन मोदानि लाषीथयो तेआतुरथश्नेकहेबेके हेअजितजिनमोनेतारजो संसारथी पारन तारजो तारजोहेषभुजीतुमेदीनदयालबो परमनावकरुणाना करणहारोस्वामी ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥१॥ जेजेकारणजेदनोरे॥सामग्रीसंयोग ॥ मिलता कारजनीपजेरे ॥ करतातणेप्रयोग ॥ अ॥२॥ अर्थ॥ हवेजेकार्टानोजेकारण तेकारणतथासामग्रीएबेनोसंटोगमि लतां कार्यनीपजे जेमघटरूपकार्य तेहनेदमचक्रचीवरनिमित्तकारणे तथामतिकाउपादानकारण अनेकुंनकारकर्ता जेकार्यअनेद ते हनो तेहवो कर्तापणअनेद जेकार्यकर्ताथी निन्न तेनोकर्तापण निन्न एटलेघट कार्यतेपरवस्तुबे तेहनोकर्ताकुंनकारपणनिल अनेसिघतारूपकार्ट आत्माथीभनिन तोतेहनोकर्ता आत्मापणअभिनजे हवेआत्माकर ताने सकल स्वधर्मव्यक्तरूपजेसिकता कार्य तेहनेदेवश्रीअरिहंतदेवाधि देवतथागुरू निग्रंथादिक तेनिमितकारणमिल्या अनेसामग्रीकर्मनुमीसा धर्मिकादिक संटोग मिल्या मोदरूपकार्टानीपजे माटेमाहरोमोदरूप कार्यतेनानिमित्तकारणश्रीवीतरागतुमेगे तेथी तुमनेाश्रयता मोदरू For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजितस्तवन पकार्यनीपजे पणकारणसर्व मिल्या अनेकर्ता जे आत्मातेजो तेमप योगसाधननु व्यापारनकरेतो कार्यनीपजेनही केमकेअरिहंतादिकना निमित्तपामीनेपणअनेकजीव आत्मासाध्यावलंबी तथासाधनपरणति थयांविना मोद कार्यनिपजाव्याविनां हजीसंसारमानमतादीसेजे तेमाटे कर्ताजेआत्मा तेजो मादसाधनरूप पटोगकहतांव्यापारकरे. तोसिछता रूपकार्यनिपजे ॥ इतिक्तिीयगाथार्थः ॥ २ ॥ कार्यसिद्धिकरतावसुरे॥ लहिकारण संयोग ॥ निजपदकारकपनमल्या रे॥ होएनिमित्तहनोग॥१०॥३॥ अर्थ।माटेकार्यसिघतानीनिष्पति तेक नहाथ जेमदंमरूपकारणतेने जोकर्ताघटरूपकार्य करवानेश्वर्तावेतो घटरूपकार्यकरे अनेतेजदंम जो घटध्वंसनेप्रवर्तीवेतो घटध्वंसकरे तेमाटेनिमित्तनीप्रतिते कर्ताजो कार्यकरवाने प्रवर्तीवेतोकार्यकरे माटेकार्यनीसिझी तेकर्तानेहाथडे पणकारणनिमित्तादिक तेनोसंटोगभिल्यांकार्यनीपजे एपछति माटे कोईसंसारीआत्मा निजकहेतांपोतानो आत्मीकपद परमानंदमहोदटारूप तेहनोकारक कहेतां करवावंत तेनेमोदनापुष्टकारण अनुजी श्रीअरिहंत मिल्यांथकां अवस्यनि मत्तनोभोगथाय एटलेजेजीवसंसारथी उनग्यो मोहाभिलाषीथयो तेमोदनानिमित्त श्रीतिर्थकरदेवपामीने हर्षनोनो गभवादनपामे वणुविलासनपजेकार्याअर्थी कारणनी पूष्टतावां एनी ति ॥ ३ ॥ इतित्रितीयगाथार्थ ॥ अजकुलगतकेशरीलहेरे ॥ निजपदसिं दनिहाल ॥ तिमप्रनुनक्तं नविलहेरे ॥ आतमसक्तिसंनाल ॥०॥४॥ For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा अर्थ ॥ तेनोषष्टांतकहे जेमकोइकेसरीसिंह जन्मकालथीबकरानाटो लांमावध्यो तोतेएमजाणे जे बकरानोटोलोतेजमाहेरो कुटंब त्यां किवारेबाजोसिंहावे तेवारे बकरासर्वनासे अनेपोतेपणनासे एमकर तांकिवारे सिंहनोआकारदेखीने पोतासामोजोए त्यारेते पोतानोसमान आकारजोईने विचारेजेएहनोंने माहरोतो तुल्यपणेदीसेजे नेहुंपण सिंह पनि यथाटा अजके. बकरानाकुलके टोलामांहें गत के रह्योजेसिंह तेसिंहपणोनूलीगटो तेबीजासिंहनदेखीने पोतानोसिंह पणोसनारे तिमकेहतांतरीतेषनुनीनक्तिकरतांनव्यजीवल हे कहेतांपामे पोतानाशात्मसक्तिनी संभाल कहेतांनलखाण जेवीतरागदेवदेखीनेतेनी भक्तिकरतां तथासेवतांथकांउपजे जे वस्तुखरूपसत्ताधर्मेहुपणवीतराग निकर्मासुचवरूपी एपिणपहेलांसंसारीजीवषव्यहता पनगसिपथटा ते महुंपणप्रथमथीसंसारी पिणजोसा तो सिवरूपथाकं एसर्वचलखां ए अनूसेवनाकरतांनिपजे ॥ ४ ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ कारणपदकर्तापणेरे॥ करीआरोपअनेद ॥ निजपदअ पनयकीरे॥ करेअनेकनमेदाअा ।। अर्थ ॥ तिवारेकोईकेहेसेजे अरिहंतदेवतो अन्यजीवना मोदक निथी तोसावास्ते अरिहंतदेवपासे मोदमांगोगे तेनेनुत्तरकहे केका रणपदजे अरिहंतादिकते अतिपुष्टालंबन माटेजेकारणतनेज अने दकर्तापणे आरोपीकरीने निजकहेतांपोतानोपदजे सुधसिघता तेहनो अर्थीजे नव्यजीवतेषनु श्रीतीर्थंकरदेवथी अनेकसम्यक्तत्वादिक गुण नी उमेदकहेतां आस्याकरे जेहेषनुजीमुझने मोदनाकारण तथामोद तुमेापो एटलेनिमित्तकारणने कर्तापणेआरोपकर। स्तुतिकरी।। ।।इति For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजितस्तवन एहवापरमातमपनुरे ॥ परमानंदस्वरुप॥ स्याशदसत्तारसीरे ॥ अमलअखंमअनूपाणि॥६॥ अर्थ ॥ हवेजेनिमित्तपामीने उपादानसमरे पलटणपामे तेरीतकहे ने अथवाउनुपरमात्मा तेहनोस्वरूपक आत्मासर्वत्रणप्रकारना ए क बहिरात्मा बीजोअंतरात्मा बीजोपरमात्मा तिहांजेशरीरादिक उदैक भावकर्मजनित ने आत्मपणेगणे तेबहिरात्माकहिए अनेजेशरीरादिक न दैकनावथी आत्माअसंख्यात प्रदेशी चेतनालदण झानादिअनंतगुण पर्याटासहित अरूपानिन एटलेआत्माअरूपी शरीररूपी आत्मासह जयकृतिम शरीरसंटोगीकृतिम तेमाटेकर्मजोगे शरीरादिमध्येरझो पण भिन्नजे एहवूनेदझानवंत समकितगुणवाणाथी मामीवीणमोहचर्मसम टापर्यंत अंतरात्माजाणवो तथाज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोहनी अंतराय एचारकर्मदयगयां केवलझानीसंयोगी तथाअयोगीकेवली तथाअष्ट कर्ममुक्त सिछात्मा तेपरमात्माजाणवो एटलेश्रीअजितनाथ अरिहंतएवं नूतनये परमात्मा अनुबे सर्वसिझवस्तुगते पोतानागुणपर्यायरूप संपदा ना पनु कोईअव्यअन्यव्यनोस्वामीहोएजनही ज्यांसुधिजेषव्यना चिं तनमांहें परपव्यनो स्वामीपणोडे त्यांसुहितेषव्यसुधनहिं तेमाटे श्रीय जितअरिहंत पोतानास्वनावनाउनु अनेन त्तमजीवपोताने कर्मवसप मया मोहमुग्याजाणी पोतानेरंकसमानगणे अनेअमोही स्वाधीनथ दातेहने अनुकहे अनेअमोहीनेअवलंब्या पोतेखसंपदानाधणथाय माटे जेहनाकारणपणाथ पोतानुप्रनुत्वपणोपांमाएं तेहनेअनुकहीटोंस्तव दो जगत्रमांपुजलनांसंयोगे जेसुखकहेवाटा तेतोआरोपमात्र एटले जातेसुखनथा।उक्तंच विशेषावश्यक॥जतोच्चियापच्चखं सोम्मसुहनकि उःखमेवेदं तपमियारविनत्तंतो पुन फलतिरूखंति॥॥हेसोम्यप्रनासज्ञा For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा नावलोकनेन एसर्वदस्यमानतेसुखनथी जेकांइएसंसारमांहे स्त्रकचंदन गनासंयोगथानपना जेसुखतेसर्वदुःखजने विषयनाउछकताथी उपनीजे अति तेहनोएप्रतिकार एटलेदुःखतेनेज तत्वनाअजाणपणाथी सुखदुः खरूपदेवेहेच्या पणजातेएकजदुःखरूपोंगाटाथाकत्सुक्यमात्रमवसाद यतिप्रतिष्ठा क्लिनातिलब्धपरिपालनरत्तिरेवानातिश्रमापगमनाययथाश्र माटयाराज्यंखहस्तधृतदंममिवातपत्र।।१।जेपुण्यफल तसर्व तत्वोःखरू पनक्तंच॥ विशटासुहंउःखं॥चियदुःखपमिआर तिगच्च॥तंसुहमुवया रान ॥ नउयारोविणातचं ॥१॥विषयसुखतेतत्वथीःखजबे जिमरोगीने काथ पानबेदन दंननादि चिकित्शानीपरें हितनास पणःखपणोतो मात्रउपचारेसुखनासे अनेजेउपचारतेतथ्थपरमार्थिकसुखनहीसुखते मुक्तात्माने निरूपचरितखानाविक निःप्रतीकाररूप आत्मीकानंद तेजसुख तथासातानोनदटो तेपणःख असातानोउदटो तेपणःख का रणसातातेकर्म अनेकर्मनोविपाकतेगुणरोधक खगुणनोरोधतेहने सु खकोणकहे नक्तंच॥सायासायंरूखं सबिरहंम्मियसुहंजन तेणं देहंदि टासुःखं सुख्खंदेहेंदीटानावो ॥ इति॥१॥ तेमाटेसंसारसर्वखरूप ने अनेसर्वपरनावनासंगथी रहित वनाविकजेआनंद तेनेपरमानंदक होटो तेपरमानंद श्रीअजितनाथनोस्वरूप जिवादीषमपव्य तेमध्येपं चास्तिकायते परमार्थेषव्य तथाबवोकालते नपचारपव्य एचर्चावि शेषावश्यक तथाधर्मसंग्रहणी मध्येथीजोवी तेमध्येएकएकपच्यनेविषे अनंतागुण अनंतापाटाने तेअनेकताजाणवी अनेएकवव्यनेविषे एकसमये स्यान्नित्यं स्यात्मन्नित्यं स्यात्एकं स्यात्यनेकं स्यात्या स्ति स्यात्नास्ति स्यात् निलं स्यात्अभिन्न स्यात्वक्तव्यं स्यात्मवक्तव्यं एसर्वनावसमकाले वर्ततापामीर एटलाधर्मसमकालेजेमाहवरते ते धर्मनाअनंत अत्तिनेस्याशावादकहिथें ॥ स्यातइतिपदंअनेकांतोद्योत For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ जितस्तवन १३ के एहवीस्यादवादमयीजे च्यात्मानी गुणपर्यायरूपसत्तावे तेनारसी कहे तारसीयाबो एटलेस्यादवादमा आत्मसत्ताते हेनानोगीवो तथाच्यम लकहेतांकर्ममलरहितो अखंम के हतां किवारेखमनपामो अनुपक हेतां जेहन मानथ एवोप्रनुदेखी नेमाहरेलानथयो ॥ ६ ॥ आरोपितसुखभ्रमटल्यारे ॥ नास्यो व्याबाध ॥ समरयोअनिलाषीपणोरे ॥ करतासाधनसाध ॥ अ० ॥ ७ ॥ अर्थ || एहवानुजी यात्मानंदनोगी आत्मस्वरूपरम तत्वविला सी जोने माहरेानादिकालनो इंडियमुखनेविषे जेसुखनोनासन ते आरोपित सुखञ्चमहतों तेटल्यो अनेअव्याबाध आत्मीकच्यानंदसुख तेनास्यो जिहां विषयसुखउपर सुखबुद्धिहती तिहां सुद्दिविषयसुख नो अभिलाषहतो ते हवेतो सर्व विषटयरहीत अव्याबाधसुखी श्रीअनु जीदीठा तेथतेनव्यजीव नेपण सुखतेाव्याबाध एहवो निरधारथयो ति वारेच्अभिलाषपण अव्याबाधसुखनोथयो माटेच्या निलाषी पण समरयो स्वरुपानुयायीथयो एटला सुदिविषयसुखने अभिलाषे आत्माविषय सुखनोकर्ताहतो ते जिवारेएहने अव्याबाधसुखनो अभिलाषथयो ते वारे कर्तापण अव्याबाध सुखनोथयो एटले कर्तापोसमस्यो जे जेहवा कार्टानोकर्ताथाय तेसाधनपण तेहवाजमेल वे असाध्यप हिजो एटले आज सुधि साध्य विषयसुखनोहतो तेथ साधनपण वि षयसुखनामेलवतोहतो हवेनुश्री अजितनाथ निर्विकारीदीता तिवारे तेच्यव्याबाधसुखसाध्यथयो एटले साध्यसाधनसमरयो ॥ इति० ॥ ७ ॥ ग्राहकता स्वामीत्वतारे || व्यापक नोक्ता नाव || कारणताकारज दिशारे ॥ सक लग्रहयुं निजनाव ॥ ० ॥ ८ ॥ For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ देचोम्बा अर्थ ॥ एटलाकाल सुधि एजीवविषयसुखनो ग्राहकहतो हवेमुछ अव्याबाध सुखीपरमेस्वरदेखीने एजीवअव्याबाधसुखनो ग्राहकथ यो एटलाकाल सुधि नुल नोवाटो विषयसुखनाहेतुजे धन स्त्रीवस्त्र आ हारादिक परनावतेनो स्वामीत्वपणो करतोहतो हवेझानादिक अनंतगु संपदानो स्वामीश्रीदेवाधिदेव देखीनेएजीवनेपण अनंतझानादिक व संपदानोखामीपणोथयो एटलेग्राहकनाव तथास्वामीत्वनाव समरयो ए टलासुछि एआत्माविषयादिक परनावमध्ये व्यापकहतो तेहोशात्मानंद मध्ये तथातेनासाधनमध्ये व्यापकथयो तथाअनादिकाल सुधि परनाव नोनोक्ताहतो हवेपरमपनु वनावनोगीदेखीने एपणस्वभावनोनोक्ताथ यो एटलेव्यापक्ता तथानोक्तापणोसमरयो एटलाकालसुधि नुलेप मयो एआत्मासंसारमा आकर्मरूपउपाधीनो उपादानकारणहतो हवे शुपवरूपी निकर्मा तत्व देवदेखीने पोताना शुबखरूपनो उपादानका रणथटो एटलासुधि एअात्माआवकर्म रुप कार्यनोकर्ताहतो हवेपरमदे वनी छापांमाने संवरनिर्जरारुप कार्यनोकाथयो माटेहेपरमेखर हे जगत्राधार हेदिनबंधुं तुमारेअनुयायी मारीचेतनाप्रवर्ती तेथीकारण तथाकार्ट इत्यादिबीजीपण अनंतीआत्मशक्ति तेसर्व समरवालागी एट लेसर्व आत्मानीशक्ते आत्मनावग्रडं अनेपरनाव तजवामामधुं॥॥इति श्रज्ञानासनरमणतारे॥ दानादिक परिणाम ॥ सकलययासत्तारसी रे॥जिनवरदरिसणपाम॥०॥५॥ अर्थ ॥ एटलाकालसुधिनदैक पुण्यप्रकृति तेनोविपाक जे सातावेद नी प्रमुख गुणरोधक तत्वविमुख तेनास्वादजीवने मागलागताहता तेथीतेपुण्यनाउदयने सुखमानतोहतो तेहवेएवीप्रधाथश्जे अव्याबाध निकर्मपद तेहिजमाहरोसाध्य तथाजेवस्तुनी यथार्थतानु ज्ञानथटो For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजितस्तवन १५ तेनासनकेतां जाणपणोसमरयो अनेरमणजे पुजलनावर्णादिक मां हतो तेसर्वस्वरुपनो रमणथयो तथा दानश्लानश्नोगउपभोग एवीर्य एपां चेनुहटानपसम तेएटलाकाल सुचि दानपुजलनोहतो लानपणपुजन नो मानतोहतो तथानोगपणपुजलनो उपभोगपण संसारमा पुजलनोहतो अने वीर्यपण बालवीर्य तेपुजलग्रहण बंधन प्रमुख आठकरणपणे व ततोहतो तेसर्वसत्तापणे पोतानाजीवषव्यना मुलधर्म ग्यानादिअनंतगुण पर्यायरूप तेनारसीटाथया एटले पुजलानुयाइतातजीने सुघस्वरुपा नुटाटीथटा एटले वसत्तात माहरोधर्म एहवीश्रधाथ अने स्वगुण ते पोतानो भावनिदेपोसारले एहवोनासनथयुं तथारमणतेआत्मधर्म दमा दिकमाथटो अने सहकाररुप तेदानगुण गुणप्रागनावरुपते लान भो मस्वगुणनोथयो उपभोगखपर्यायनो वीर्यते पंमीतवीर्यथश्ने संवरहे तुनिर्जरारुपथयो तेसर्वहेवीतरागदेव तुमारोदरसणपामीने एटले अनुदी माहरा एटलागुणसमस्या ॥ इतिनवमगाथार्थ ॥ ५ ॥ तेणेनिर्यामकमावणारे॥ वैद्यगोपआधार॥ देवचंउसखसागरुरे॥ नावधर्मदातार ॥॥१॥ अर्थ॥तेमाटेहेनु तुमेसंसारसमुघनो पारपमामनारएवोजे चारीवध मरूपजिहाज तेनेचलाववाने निर्यामकसमानो तथातत्वधर्मपणे पोते परणम्या तेथीव्यहिंसा तथानावहिंसाथीरहीतो अनेपरमअहिंसक ध मनानपदेशको माटेमाहणगे तथा आत्मअशुचतारुप भावरोगतेनीस म्यकझान दरसनचारित्ररूप नावचिकित्सातेनेदेखामवाना वैद्यगे तथा भावी झानादिगुण अनेषव्यथी बकाटारुप जीवनीरदाकरवाने पर मगोपगे वलानवअटवीमाहें नमतापाणीटोने तुमेआधारबो सर्वदेव माहें चंक्षमासमांन पोतानासुखनासागर एहवाश्रीअजितनाथ परमेश्व For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ दे०चोम्बा र भावधर्मे जीवषव्यनेविषे व्यापकपणेरलागे सम्यक्झान सम्यकदर्सन सम्यक्चारित्ररूप भावधर्मतेनादातारगे एटलेहेषनु तुमदीठांनावधर्मसां नरे तुमेनावधर्मना उपदेशकगे॥१०॥इतिश्रजितजिनस्तवनसमाप्त - अथसंनवजिनस्तवन धणराढोलाएदेशी श्रीसं नवजिनराजजीरे ॥तारोअकलस्वरूप ॥ जिनवरपजो ॥स्वप्रकासकदिनमणीरे ॥समता रसनोनूप ॥ जि० ॥१॥ पूजोपूजारेनविक ॥ पू जोपूजोहारेप्रनुपूज्यापरमानंद ॥ जि० ॥ अर्थ ॥ हवेत्रीसंभवनाथ जिनकहेतां श्रुतकेवली अवधिज्ञानीमनप वज्ञानी प्रमुखमाहेराजासमान एवाहेअनुताहरूकहेतांतुमारूं अकलक हेतां कोस्था कलायनहीं एहबोखरुपले एहवाजिनवरनेपूजो अहोन व्योतुमेएहवापरमपूज्य परमेश्वरनेपुजो वलीअनुकेवाजे जे व के० पो तानोधर्म अने पर के० धर्मास्तिकायादिकनोधर्म प्रकासवाने दिनम पी के ० सूर्यजेहवो तथा समताजेसर्वनेविषे रागषरहीतपणो तेहना नूप के राजाबो एहवातत्वप्रकासक अरिहंतनेपूजो वारंवारपूजो न विक के० मोटोग मोक्षाचीजीवतुंमेपूजो एवरुपनोगी निर्म लानंदमयी अजयविनासी अदटा अणाहारी असरिरी अनंत ज्ञानमयी अनंतदर्शनमयी सुखरुपीदेवतत्वने पूज्यांपरमानंदथाट जे पुजल टोगथी सुखउपजे तेनपचारसुख माटेतेपरमाणंदनही अनेजे आत्मानासहजयविनासी अपयासी स्वरुपनुसुख अव्याबाधरुपतेने परमाणंदकहीए तेसुख अरिहंतदेवने पूज्यांपामीजे यद्यपि अरिहंतदे वको अन्यजीवना अव्याबाधादिगुणना कर्तानथी. पणजे नव्यजी For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संनवजिनस्तवन व पोतानु सुझपरणामीक परमसीता स्वरुप साध्यकरीने वितरागपर मात्माने सेवाविलंबे ते निश्चेपोतानु तत्वप्रगटकरे निटामाकारणमाटे एहथी स्वरुपप्रगटथाय इमजधारवो इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १ ॥ अविसंवादनिमित्तगेरे॥ जगतजंतुस खकाज ॥ जि० ॥ हेतुसत्यबहुमानयी रे॥ जिनसेव्यासीवराज ॥ जि ॥२॥ अर्थ॥वलाहेअनुजीतुमे अविसंवादिके विसंवादजेनिरधारनही ते अ ने तमें निश्चटानिरधार कार्यनेकरो माटेअविसंवादि निमित्तकारणलो नि मित्तलक्षण।कार्यानिन्नवसति कत्त्वाव्यापारवत्वेसति हेतुर्निमित्तंति॥ माटहेअनुतुमेजगत्रना जीवतेना आत्मीकसुखरूपकार्ट निपजाववाने प्रधाननिमित्तबोजी माटेहेतुके कारण तेसत्यके साचो तेनोबहुमान ए टले माहामोटमपणेसेवतां जेमुजसरिखो मोहवसपमयो प्लाएंयस्यो पुज जनोरागी असंयममयी मिथ्यात्वेनुल्योभाव ते निराधारअसरण एह वोडं तेनेत्रीतीर्थकरदेव परमतत्वमात्रैलोक्यसपगारी जेनानामथीपरम कल्याणथाटा एवापरमेखरनो योगमल्यो माटेमारेएवेला एनमीधन्य एमअसंख्यातपदेसें निकर्मानिस्संगी स्वरुपनोगी देवतत्वनो बहुमानक रतोथको जे जिनकेण्वीतरागनेसेवे तेजीवपरम कल्याणमटीपोतेथा या इहांसत्यपद बेनेजोमवो हेतुसत्यते अरिहंतदेवआपणा मोक्षरूपका खनाहेतुले तेनोसत्यके साचोबहुमानकरवो एटले इहलोक परलोक इंवीटासुखनी आसंसाटालीने अद्भुत वर्ण गंध संस्थान अतिशयवच नातिसट पातिहा प्रमुख सर्वशुछ बहुमानकारणमाटे बहुमानकरवा योग्य तेषव्य बहुमान पण जे अरिहंतना सुझग्यानादिगुण अनंता नो सकल पुजलातितपणानो परमअरूपी अतिबीयपणानो बहुमान For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोबा ते सत्यबहुमानकहिएं एटले । नाम ३ थापना ३ अव्य एत्रण निदे पातेकारण अने चोथोनाव निदेपोतेकार्यवस्तुले माटे अतिसयादि क योग विकल्प तिहांसुध) अव्यबहुमान अने जेदरसनगुणे अनुता नोनासनथयाथी तत्व प्रागनावनो जेबहुमानते नावबहुमानकहिएं अने नामादिकत्रण निदेपाते भावनाकर्ता अथवा भावाभिलाषी तो तेपण सत्यबहुमान जाणवो तेसत्यबहुमानथी जे जिनसेवना ते जपनुनी आझाये परनावत्याग स्वनावग्रहण करतां शिवनिरूपव्य जे सिपणो तेराजपामीटों एटले संसारिक शिवते उपचारी अल्पका ली अने मान्यतारूप माटेजे निकापणे सर्वखरूप पागनाव तेनि रुपचरित अविनासी शिवकाहिए इतिवितियगाथार्थ ॥ २ ॥ नपादानतमसहीरे ॥ पुष्टालंबनदेव ।। जि० ॥ उपादानकारणपणेरे।। प्रगटक रेअनुसेव ॥ जि ॥३॥ अर्थ ॥ हवे आत्मनिष्पतिविषे उपादानकारणतो मुल तोपण नि भित्त कारण विशेष तेदेखाम जेकारणतेज कार्यपणे अनेदेपरण में तेनपादान कारणजाणवो अने जेकर्तानाव्यापारेकार्यने निपजाववा नुसहकारीथाये तेनेनिमित्तकारणकहियें एनिमित्तकारण ते कार्यथीनि लहोटो इहांको पुजे नपादानकारणमां तथानिमित्तकारणमां जेका रणधर्म तेवस्तुमां बतोपर्याय के अबतोउपजे तेनेउत्तरकहे जे कारणपर्यायवस्तुधर्महोयेतो सिघनगवानमांपण अपादानकारण पाम्यो जोश्ये तेतोनथीदेखातु केमजेसिधमां कारणपणोहोयेतो कांस्कार्यप एनिपजाव्यो जोश्य तेकाटतोसंपूर्णनीपनु वलि निगोदावस्थाविषेपण उपादानकारण मानवोपमे तेपण संभवतोनथी केमजेनिगोदावस्थामा उपादानकारणमानियें तो आत्मसिधिरूपकार्य पणथवोजोश्ये तेकेम For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए संनवजिनस्तवन जेकारण तेनिटामाकार्यकरे अने कारण काल कार्यकाल ते निटामा अनेदले तेविसेषावस्यकमां मतिज्ञानाधिकारथी जोश्लेजो तेमाटेकार पर्यायते उत्पन तेकार्य संपूर्णथटो कारणतानोआनाव बने जे नी सादिहोटो तेनोजअंतथाय माटेकारणपर्याटा ते सादिसांत इहां कोईकहेसेजे उत्पन्नपर्याय ते किवारेकपनो तेकहे केजेवोरेकर्ताकार्य रुचीथाय तिवारेकारणतानपजे एटलेनव्यतथाअनव्य सर्वजीवसंपूर्ण सिघतानानपादान पणसर्वेसिघता निपजावतानथी स्यामाटे जे कार रणपणोनथी जोकारणपणोप्रगटे तो कार्यनिपजे माटेसर्वात्मा पोतपो ताना गुणपागनावरुप सिछताकार्यना उपादानअवस्य पणश्रीजिनवर देव सुचतत्वने अवलंबने कारण तानिपजावे माटेपुष्टकहेतांनियामकी मोटोआलंबन अरिहंतदेव सालंबनविना आत्माअनादिदोषथी निट तिसकेनहिं माटेअरिहंतदेवनो तीर्थकरनामकर्मनोविपाक तेहथीनप ना समवसरणादिजेआश्चर्य तेनेआलंब्या संसारीजीव पोतानुआत्मध म नजीककरे तोयगत्रजीवनाआधार श्रीतीर्थकरनी स्वरूपसंपदाने आ लंब्याथकां आत्मधर्म अवस्यनीपजे माटेअरिहंतदेव तेनव्यजीवने पोतानीसुधसत्ता प्रागनावेकर्ता मुख्यथालंबन हवेश्रीवीतरागदेव पु टयालंबन केवीरीते तेनोकारणकहे जे आत्मानेविषे न पादानपणो अनादिनो पणतेयात्मसितारूप कार्यनेकरतोनथी स्यामाटेजे पां दानकारणपणो थयोनथी तेश्री जिनवरवीतरागनी जे सेवना ते उपादा नकारणपणो प्रगटकरे एटलेअरिहंतदेवनी व्यनावथा नक्तिकरतां संसारीआत्मा मोदनोसाधकथाय तेमाटे श्रीजगद्दयाल कर्मरोगनानाव वैद्य मथ्यात्वरूप अंधकारटालवाने सूर्यसमान ममकाररहीत एवागु की अनुनसेवतां आत्मामोदरूप कार्य निपजाववानु कारणपणोषण टकरे तेथीप्रमुजी पुष्टालंबनजाणवा ॥ इतिवृनियगाथार्थ ॥ ३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा कार्यगुणकारणपणेरे ॥ कारणकार्य नूप ॥ जि० ॥ सकलसिचताताहरीरे॥ माहेरेसाघनरूप ॥ जि० ॥४॥ अर्थ ॥ हवे अनादिनो मिथ्यादृष्टिजीवने सरीर इंघिय विषटा क पाया रूपकार्यकरतां अनंतो काल गयो तेजेवारे सम्यक्दृष्टिगुण प्रग ट्यो तिवाररत्नत्रयो तेसम्यकदर्शन सम्यक्झान सम्यक्चारित्र तेपोतानो कार्य जाएयो पजे श्रीअरिहंतसेवना आगमश्रवणादिकारण सवीने रत्न त्रयीनो टोपसम प्रगटकस्यो एटलेयथार्थ तत्वप्रधान तत्वरमण प रनावतत्व त्यागरूप नेदरत्नत्रयी जेटलीप्रगटी तेपहेलाकार्यगुणेथइप बेतेदायकअनेद रत्नत्रयीरूप खकार्यकरवाने कारणपणेथाय एटलेजे कार्यहतो तेकारणरूपथाय पतेहिजकारणरूप नेदरत्नत्रया तेदायक भावरूप कार्यरूपेपरणमे माटेजेकारण तेहिजकार्यथाय एकपादानका रण कार्यरूपपतिकही हवेनिमित्तपणेकहेजे हेअनुजी तुमारो सुखरू प तेहिजतुमारो कार्यगुण पणतेनव्य मोदरुचीजीवने कारणपणे अ वलंबी तमाराजेवी सत्ता प्रगटकरवी तेकार्य एटलेकरवाने संकल्पे जे कारणतेहिजकार्टने माटेहेनुजीतुमारी सर्वसंपूर्णसिघता सकल प्रदेशे निरावरणता सर्वखधर्म प्रागनावता ते माहरेसाधनरूपडे एटलेतुमारी सु छतानोजे साधन तेनेजेवारे माहरोआत्मापनुजीनी परमप्रनुतांरूप संपदानेअवलंबे तेवारेपरनावत्यागीथयाने स्वरूपावलंबीथाटातेवारेमा हरीसिघतानीपजे माटेतुमारीसिता ते माहरेसाधनरुप तेथी हुंजेमाह रो स्वरूप प्रगटकरूं तेउपकार तुमारोडे तेथीमाहरेतो आधारत्राणसरण सर्वहेदेव तुमेजबो ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संनवजिनस्तवन एकवारपनवंदनारे ॥ आगमरीतेया य॥ जिा कारणसत्कार्यनीरे॥सि विप्रतितकराय॥ जि ॥५॥ अर्थ ॥ माटेश्रीअरिहंतदेव अनंतज्ञांनी अनंतदर्शनी सुपचारित्र। अविकारी अकषार स्वरूपभोगी स्वरूपरमणी वरूपविलासी त्रैलोक्य पुज्य त्रैलोक्यनपगारी चालतानावसूट कर्मरोगनामाहावैद्य परमेश्व र परमोपगारी तेनेएकवार जो आगमकहेतां सिधांतमांकझुळे तेरीते जोवंदनाथाटा एटलेअनुष्ठानवर्जीने गुणबहुमाने अद्भुत आश्चर्यता तविरहकांतारतायें जोथाय तोमाहरो मोक्षरूपकार्टनीपजे एहवीप तीतथाटा स्यामाटे जेकारणसतेंकहेता बतेकारणे अथवाकारणसत्ये कार्यनीसिधि एटले निष्पतिनीप्रतितकराय अनेकार्यपणनीपजे एटले श्रीप्रनुपरमात्माने विधिएवंदनाकरतां उपादानजेयात्मा तेगुणानु यायीथटो तो निमित्त तथांउपादान बेहुकारण साचामल्याथका का र्यपणसाचोनीपजे जेमस्त्री धन विषयादिक असुघनिमित्त मिलेतिवारे आत्माअसुछ उपादानीथाटा तेथीसंसारअसुचतारूप कार्यानिपजे तो श्रीवीतराग सुचनिमित्तमिलेथी उपादानजेात्मा ते सुचपरिणाम) थाटा तेथीसुझसितारूप कार्यनीपजे अनादिकालसंसारमा नमतां नाव्यो एहबोअरिहंतबहुमान तेजोएकवारावेतो कार्यनीपजवानी प्रतितथाटा ॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ प्रनपणेनुनलखीरे॥अमलविमलगण गेह ॥ जि० ॥ साध्यष्टिसाधकपणेरे॥ वंदेधननरतेह ॥ जि० ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ हवसुझसत्तापरणामीपणे संसार तथापरजीवनी सधि नाथ कायनेसेव्यांसि विषगटे वलि अमल कहेतां रागवेषादि आवरणादि For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ देचोम्बा मलथीसुन्य विमल कहेता भावनज्वल तावत् गुणगेहकहेतां ज्ञानादि गुणनाघर एवीरीतेपनुनोजेरुप तेन लखीने साध्यदृष्टीएटले पोतानो आत्मा परमानंदरुपले तेनीसर्वसंपदा प्रगटाववारूप साध्य नजरमांराखी ने एटलेतत्वकार्य बालंबनीथ नेसाधकपणेकहेतां पोतेसाधकथइने जेपोतानाज्ञानादिकगुण क्योपसमी तेसर्वगुणनिरमल करवारूपका र्य करवापणे प्रवर्त्तावता जे सुधानंदी परमझानी निरमाहीदेवनेवांदे न मस्कारकरे तेनरधन्य कृतपुण्यजाणवा ॥उक्तंच जेपुणतिलोयनाहो। नत्तिभरपूरिएणहीयेण॥वंदति नमसंति॥तेधनातेकाबाय॥॥इति॥६॥ जनमस्तारथतेहनोरे ॥ दिवससफलप . गतास ॥ जि० ॥ जगतसरणजिनचरण नरे॥ वंदेघरीयनन्लास ॥ जि० ॥७॥ अर्थ ॥ तेजीवनोजन्मकतार्थजाणवो वलितेदिवसपण तेहवोजस फलजाणवो यगत्रनाजीव मोहेंमुग्याने नवअटवीमध्येपमयाने मथ्या वेलुटाताने परमसरण त्राणाधारभूत एहवाश्रीजिनकहेतां वितराग नाचरणने जेवल्लासहरषधरीने वंदेकहेतांवांदे॥ तेनोजन्मकृतार्थ॥ ७॥ निजसत्तानिजनावथीरे॥ गणअनंतनो गण ॥ जि० ॥ देवचंजिनराजजीरे॥ सझसिझसुखखाए ॥ जि० ॥ ७॥ अर्थ ॥ तेषभुनिजकहेतां पोतानीसत्ता अनंतगुणपर्यायरूप तेनि जनावथी कहेतां पोतानेनावस्व नावेथीथीने एहवागुणझानादिकअनं तनोगण कहेताकाणां सर्वदेवमांचंघमासमान जिनराजतेकहेवाले सुझसिकहतां निपनगुणनोखाण ॥ इति संभव जिनअतिवास्तवमसंपूर्ण For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिनंदनजिनस्तवन २३ ॥ अयश्रीअनिनंदनजिनस्तवन॥ ब्रह्मचर्यपदपूजी ॥ एदेशी ॥ क्युंजक्युबनीआवसे ॥ अभिनंदनरस रीतहोमित्त । पुद्गल अनुनवत्यागथी। करवीजसुपरतीतहोमित्त ॥ क्युंग ॥१॥ अर्थ ॥ हवे श्रीअभिनंदनप्रनुनी स्तुतिकहे कोईनव्यजीवने श्री वितरागदेवथी एकत्वपणेमलवानु मनथयो पणअनुजानेमलवानि सक्ति पोतामांअणदेखतो विचारेजे एहवापरमोत्कृष्ट देवतत्वथीकेममिलाय तेनाविरहवंतथकोबोले जे एप्रनुजीथीसुजाणीटो केमबनीवसे तेप रमवल्लनथामिलवानोमन पणमिलवोउर्लनदेखीने बोले जेहेनु श्रीअनिनंदनदेव तुमीमाहरेसुंजाणीटो केमबनीआवसे अभिनंदन हेतां संवर राजानापुत्र सिद्धार्थराणीनी कुझिएनत्पन्न गर्नेआव्याथी जिहांसुधिगर्नेरह्या तिहांसुधिनित्य आवीनेसुखपृगपूरी तेथीअनि नंदन एवोनामथटो अथवा अतिसमस्त पणे आनंदम तेथी अ भिनंदन नामथाप्यो तेषनुथी रसकहेतारसीली एकत्वता केमबने पु जलनावर्णगंधरश फरशनो अनुभवकहेतां मोगववो तेहनात्यागथी करवीजेहनीप्रतीत एटलेसर्वपुजलनो अनादिनो असुनोगतजीने जेवारेवरते तेवारेषनुथी मलिसकवानीप्रतीतथाट पण पुजलनोगाने ते सुझतत्विथी एकत्वतानथाटा जेखरूपनोगीथयो तेहने एरसरीतब नी एवीप्रतीतथाटा माटेपोताना आत्मानेकहे जे हेमित्रएकार्य केम बनसे तेतुं विचारीजो ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १ ॥ For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देण्चोबा परमातमपरमसरू ॥ वस्तुगतेतेअलिप्त होमित्त ॥ व्यव्य मिलेनहि ।। नाते अन्यव्याप्तहोमित्त ॥ क्युं ॥२॥ अर्थ ॥ अनुतोनिकर्मा केवलीपरमात्मा तथापरमकहेतां तक शाश्वर एटलेषसंख्यातपदेसे परिणामीकपणेरडा जे अनंतागुणप र्यादा तेहमाइश्वर अथवासर्वप्रकारे स्वाधीन निर्दोषि तेथीपरमेश्वर वलि वस्तुगते कहेतां मुलवस्तुधर्मेअलिप्त एटलेसर्वजीवषव्य सुघसंग्रहन येअलिप्त पणकोश्अन्यव्य तथारागादिअसुच परणतीथी लेपायन ही अनेअभिनंदनअनुतो सर्वनयेविसुरथयाने टंकोकिरणन्याये प्रा गभावधर्मीथया तेसर्वरीतेपरथीचलित एटलेजलेपायेतेमिले पण जेलेपाटोनही ते केममिले हवेषव्य तेनानाम १ असंख्यातप्रदसी लोकप्रमाण अरूपी अक्रीय अचल अचेतन तथाजीवअनेपुजल एबे अव्यगतिपरणामि तेनेगतिनोसहायीथाय तेधारितकाय व्यजाण वो २ असंख्यातपदेसी लोकप्रमाण अरूपीअचेतन अकिटा स्थतिप रणामी एटलेजेजीवपुजल नेस्थिररहेवानो सहाटाआपे तेअधर्मास्ति काट ३ अनंतपदेसीलोकालोकप्रमाण अरूपीअचेतन अक्रिटा अ नेसर्व व्यपोते अवगाहकपरणामी तेने अवगाहनानोहेतु ते आका सास्तिकायव्य ४ पुजलपरमाणुं अनंतारूपी अचेतन सक्रियपूर्णगल नधर्ममय) १ वर्ण २ गंध ३ रस ४ स्पर्सयुक्त एकएकपरमाणु एहवाल नंतपरमाणु तेसर्वलोकमाहे जाणवा पण लोकथीबाहेरनही तेपुजला स्तिकायव्य ५ चेतनाल कण । ज्ञान २ दर्शन ३ चारित्र ४ तप ५ वीर्य ६ उपयोग एलक्षण तथाअरूपी वनावनोकर्ता असंख्यातपदे गसी एहवोकजीवषव्य तेहवाअनंताजीव ते जीवास्तिकाय अव्यकहि टो एपांचषव्यनेपदेसनोसबंधबे मादेशस्तिकायकहिये ६ तथा वाय For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ अभिनंदवजिनस्तवन प्रदेसी अरूपी वर्तनालदण निश्चयनयथी पंचास्तिकादानीवर्तना व्य बहारे उपचारथी जोतिश्चकनेचारेयोलखाय तेकालषव्य एउपव्यना नामकह्यां तेमां धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्तिकाय ३ आकासास्ति काट ४ काल एचारषव्य अपरिणामी कोश्था मिलेनही अने रजीव २ पुजल एवेषव्यपरिणामी एटलेष न्यषव्यथीमिले तेमांहे पुजल व्यमाहोमाहे खंधपणेपामे अनेपरानुजायी हेतुपणे परणम्योजेजीव तेने प्रदेसेंकर्मपणेवलगे पणएकजीवथी बीजोजीवमिलेनही अनेपुजलतो संसारीजीवथीमले पणमाहारा अभिनंदनपरमेश्वरतो सिपथया मि थ्यात्वादिकहेतुथी मुक्तथयाने तेने पुजललागीसकेनही एखरूपडे मा टेषव्यथा व्यमिले नही एटलेसुरजीव ते असुरजीवी मिलेनही बी जोपणमलनटो कोश्वव्यकोश्वव्यथी मिलेनही तेषव्यतोमिलवोनथी क दाचित् भावें मिले तोपणनावकहेतां वस्तुनीमलपरणति प्रतिरूपतेथा अन्यजीव तथाअन्यपुजल नो अव्याप्तपणे एटले व्यापेनही जे परव्यापकता ते उपाधीयाने अने अनुश्रीअभिनंदनदेवनो नावधर्म ते प मनिमलथयोडे सर्वखनावने अनुटाटीथयो एटले कर्ता भोक्ता ग्राहकता व्यापकता आधारता रमण ता अवस्थानता इत्यादिकसर्व व रूपपणेनीपना तेकेमअन्यव्यनेव्यापे तेथीप्रभुजीनो १ व्य २ खेत्र ३ काल प्रभाव सर्वसुझधर्मी एव्यादिचारनो स्वरूपलि खेडे॥गाथा॥ दवंगुणसमुदाउ ॥ खित्तंन ग्गाहवट्टणाकालो ॥ गुणपम्जाटापवत्ती ॥ भावोनिअवत्थुधम्मस्सो ॥ १ ॥ इतिआगमवचनात् ॥ गुणपर्यायनो समुदायतेषव्य तथाषदेसावगाहनातेदे। अने उत्पाद व्ययनीवर्तनाते काल तथा व्यना पोतपातानागुणपर्यायनी प्रवर्तितेनाव एमषव्यादि चारनी परणतिते वस्तुधर्म माटेतेप्रनुकेममिले।तिक्षितीटागाथार्थ । For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा सूचसरूपसनातनो ॥ निर्मलजेनिस्सं गहोमित्त ॥ आत्मविभूतिपरणम्यो । नकरेतेपरसंगहोमित्त ॥ क्युं ॥३॥ अर्थ॥ वलिश्रीवीतरागदेवकेहेवा सुकेतां सर्वदोसरहित एहवो खरूपजेहनो सनातनोकहेतांनित्यने यद्यपिपर्यायेंअनित्य पणयहां कूटस्थ नित्यताटनित्य निर्मलझानावरणादिमलरहित वलि निस्संग केहेतां सर्वसंगरहित जेहनो असंख्यातपदेसमध्ये व्यथीकोई परमाणु मात्ररसोनथी अनेनावथीजेहनीपरणतिमाहे रागीदेषीपणे कांईअन्य भावनथी एहवोनिस्संग तेपरमेश्वर वलिआत्मविभूतिकहेतां पोतानीसंप दा सुवस्यावादरूप अनंत अज अविनासी अखंझ स्वधर्मे परणम्यो एहवाजेपरमेश्वर ते परकेहेतां बीजापव्यनोसंग एटलेसंबंधकरेनही ए टलेसत्तायें जीवषव्यपरसंगीनथी विनावेंपरसंगीथयोडे पणजेसम्यक् र लत्रयीरूप साधनपणेपरणमीने सुचसिकरूपथया तेकोईरीते परनोसंग करेनही तोएहवापनुथीकेममिलासे माटेहेषनुतुमने मल्याविनामुऊने सुखकेमथासे ॥ इतिवृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ पणजाएंआगमबले ॥ मिलवोतुमपन साथहोमित्त ॥ अनुतोवसंपतिमयी। सुचस्वरूपनोनायहोमित्त ॥ क्युं ॥४॥ अर्थ॥एमविचारतां उपयोगाव्यो तेकहेबे के पणजाणूआगमब लेकेहेतां जेआगममाहेंकयुं गुरुमुखेसांनव्युं तेनाबलथकोजाणूचं जे हे भव्यजीव अनुश्रीवीतरागसाथे थापणनेनिलवो जेहनेगरजहोये ते मिले एटलेपोतानीसंपदा प्रगट करवानो रुचीवंतमिले अनुतोखकहतां For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिनंदन जिनस्तवन २७ पोतानी संपत्ति जे खक्षेत्र संख्यात्तस्त्र प्रदेशविषे व्यापकपणेरह्या जेा नंतज्ञानादिकगुए तेसंपदामयी सुधस्वरूपनोनाथ के तांबे माटे निष्पन्नपरमानंदनोगी सुधस्वरूपीते को इथ | मिले नही || इति चतुर्थ गाथार्थ परपरणामिकता बे ॥ जेतुकपुजलयो गहोमित्त ॥ जमचल जगनिएवनो ॥ नघटेतुऊने नोग होमित्त ॥ क्युं ॥ ५ ॥ अर्थ || हवेको पुल से जे सर्वव्यमांहें परथी मिलवानी सक्तिनथी तो साधकनोजीवज्व्यपण वस्तुधर्मेसुबे तेनेप्रनुथी मिलवो तेपलतेनी सत्तामांतोनी तोकेवीरीते मिले तेकहेबे जेानादीअतीतकाल एस सारीजीवनोच्यात्मीक सुख सर्व अवराणो अनेभोगधर्म कव्योपसम]बे ते कांईकभोगव्योजोइटों तेस्वरूपनेअपामधे पुजलनावर्ण गंध रस फर स तेच्नोग्यबे तेनेभागवतोथको परनोगीथयो परपरणामीथयो एप रपरामिकतानी चालते अनादिनीटेवबे एटले कर्तापरनो नोक्तापर नो मरने विषे ग्राहकपरनो एमसर्व परभावमईथयोबे इहां कोई पू बसे जेसुइज्व्यधर्मी तेपरपरणामी के मथाय ते नेकहेबे जे पुजन नायोगे पुलालंबी चेतनाथइ तेनादिनी असुकता बिजातियपणे परपरा मीता दोषरूपयात्माने सर्व घटित केमजेपुल तेजमबे तथा चलकहेतांविनासोबे जगत्रनवबे तेपुजलव्यबे तेऽव्येध्रुव नेप र्यायेवढे वर्णादिक खंधादिकपर्यासर्व पलटेबे ने सर्वसंसारी एकेकाजीवें एकेकोपुजलपरमाणु तेनसरीरपणे भाषापले मनपणे हा रपणे अनंतीवार लश्लइने क्योबे माटे पुल तेसर्व जीवोनी एम्बे नेजीवऽव्यते स्वरूपभोग]वे मा चेतनतुने ए पुजलनो नोगट तोनथी केमजेहंस किवारे कचरासाचांचघाले नही ॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे० चो० बा० सुधनिमित्तप्रनुग्रहो || करीच्छा सुपरहे यहोमित्त ॥ आत्मानंबी गुएालही ॥ सदुसाधकनोध्येयहोमित्त ॥ क्युं ॥ ६ ॥ अर्थ | माटे परनोगीपण सुधनिमित्त जे पुजनादिक तेनेती ने सुनिःकर्मा पूर्णानंदरूप प्रभुने अवलंबो एटले एच्ात्माने विषे परा नुयायीतापलो ते टालवानेमाटे प्रथम असुवालंबनतजीने अरिहं तालंबनीथवं तेथी सुनिमित्ति जेनियामकी कारण वे तेप्रनुनेनजो सेवो पण सर्व परवस्तु सुते हे कहेतां तजवारूपकरीने एटले सर्वपरभा व त्यागकरीने प्रभुने जो तेप्रनुकेहेवावे जे यामालंबी केहेतां सर्व पपोतानी च्यात्माने अवलंब्याने घामाने विषेज तन्मटापऐथयावे व लिश्रीवीतरागतत्व केवोबे सर्वमोहने नीपजावनारा जे साधक रह वा सम्यक्षष्टी देशविरति सर्वविरति श्रेणीनावासी ध्यानारूढ जीवोने ध्येयवे एटले सर्वच्यात्माने सि६परमात्माध्येयवे तेध्यानबे प्रकार नोबे एक सालंबन बीजो निरालंबन तेमांजे अरिहंत सिनो तत्वस्वरूप आलंबने ध्यानकरवो तेसालंबनध्याने श्रीच्या निनंदन प्रभु सर्वने ध्यायवायोगले ॥६ जिम जिनवरच्यालंबने ॥ वधेसधे एकता नहोमित्त ॥ तिमतिमच्ात्मालंबनी ॥ ग्रहेस्वरूपनिदान होमित्त ॥ क्युं० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ इमकरतां जिम जिम साधकजेच्यापणोजीव ते श्रीवीतरागदेव न तत्वताने आलंबनेवधे केहेतां सर्वक्षयोपसमी चेतना वीर्यरम ए अरिहंतनी सुतामांतन्मयपऐथाटय एकतांन केहेतां एकत्वपऐ स धनपजे एटले सकलपरभावथ टलीने एक निष्पन्न परमात्मानेवरू पे चेतना व्यापकथाय तिमतिमएसाधकजीव पोतानो च्यात्माकार्यरूप ते २० For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए अभिनंदनजिनस्तवन हेनाखरूपने बालंबे नपादानसमरण चिंतनध्यानरूपथाय तिवारएक खरूपनो निदान कहेतां मूलकारणग्रहे अंगीकारकरे ॥ इति ॥ ७ ॥ स्वसरूपएकत्वता ॥ साधेपुर्णानंदहो मित्त ॥ रमेनोगवेआतमा ॥ रत्नत्र यीगुणवृंदहोमित्त ॥ क्युंग ॥ ७॥ अर्थ॥तेजिवारेखवरूपएकाग्रता शानदर्शनचारित्ररूप ग्रहे तिवारेप रिणामिक परमतत्वनेविषे एकत्वता सुचवलपरमण सुखरूपनोगीथाय तेथी सधेकहेतांनीपजे पूर्णानंदकहतां संपूर्ण आत्यंतिक एकांतिक अ नंतातिसय अबाधक केवल निराबाध स्वाधीनआत्मसुखनीपजे पए यात्मापोतानी रत्नत्रटीआदिक गुणवंदनेविषेरमे तेहनेज नोगवे तन्म तद्विलासी खनावआनंदिथकोरहे सादिअनंतोकाल खपरणामि कप्रगटपणे वरते ॥ इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७॥ अनिनंदनअविलंबनें ॥ परमानंदविला सहोमित्त ॥ देवचंप्रनुसेवना ॥ करी अनुनवअभ्यासहोमित्त ॥ क्युंग ॥ ए॥ अर्थ ॥ एरीतेश्री अभिनंदनपनुने आलंबने परमानंदनोविलास थाय सर्वदेवमाहें चंघमासमान जे अरिहंतदेवतेहनीसेवना अथवा स्तुतिकर्तानो नामपणदेवचं तेमाटेपोतानेसंबोधने हेदेवचंचप्रनु तमा रीसेवनाकरे पणअनुभवनाअन्यासथी एटले अनुनवयुक्तकरे एहि ज आत्मानिपजाववानु परमकारण माटेएहनेसेवो आदरो इतिष भिनंदनजिनस्तवन संपूर्ण ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोबा अयश्रीसमतिजिनस्तवनलिख्यते कमखानीदेशी अहोश्रीसुमतिजिनसुद्धताताहेरी ॥ स्वगुणपर्या यपरिणामरामी ॥ नित्यताएकताअस्तिताश्तर युत॥ नोग्य नोगीयकोप्रनुअकामी॥ ॥१॥ अर्थ ॥ अहोइतिआश्चर्ये हे सुमतिजिनपांचमांपरमेश्वर ताहेरीसुछ ता अचरिजरूपले तेसुछताकेहेवी व के. पोतानागुण ज्ञानादिकत थापर्यायते । व्यपर्याय २ गुणपर्याटा ३ व्यव्यंजनपाट ४ गुण व्यंजनपर्याय एव नावपर्याटा तिहांस्ख नाविकधर्मते गुण कहिये अनेक मनावितेपर्यायकहिये तथाश्रीउत्तराध्ययानसूत्रे गाथा॥गुणाणमासद धं ॥ एगदईसिटागुणा ॥ लश्कणंपज्जवाणंतु ॥ ननन निस्सियानवे ॥ ॥ १ ॥ एहवि स्वगुणपर्यायरूपसंपदामध्ये रमीरह्याबो परनावानिव र्ती ने पोतानेधर्मेरम्याडगे वलितेसुछताकेवी जे नित्यता तद्नावाव्यं नित्यं तेनित्यता तथाएकता तथाआस्तिता इतरकहेतांबीजानेद अनि त्यता अनेकता नास्तिता एटलाधर्ममयो जेनित्यतेहिजअनित्य जे एकतेहिजअनेक जेअस्ति तेहिज नास्ति माटेअचरिजरूप वलिक हेवो नोग्यजेपोतानागुणपर्याय तेहनोनोगी तोपणकामी एटले खरूपनाभोगीथकोपण कामनावांबनाविनानोगवे माटेअकामीने एट लेखखेत्रथी वेगलोजेपुजलनावर्ण गंध रस फरसनोनोग ते वांबवोपमे तेकामनाकहिये पण तेनोनोगीयात्मानथी आत्मातोशानादिकगुण जे स्वखेत्रव्यापकपणे प्रगटनोगतेहनोनोगी तेनोगवतांकामनानजोश्ये माटेकांमनाविनानोगो एअचरिजजाणवो इतिप्रथमगाथार्थ ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमतिजिनस्तवन ३८' ऊपजेव्ययल देतदवितेदवारहे ॥ गुण प्रमुख बढु लतात हविपिंमी ॥ामनावेंरहे अपरतानवीय दे || लोकपरदेश मित पिखमी ॥ ० ॥ २ ॥ अर्थ || हवेनित्यतादिकधर्म कहिसमजावे सर्वऽव्य ६ बे तेमध्ये कालते उपचारव्य तथाधर्मास्तिकायादिपांच अस्तिकाय तेमां २ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्तिकाय ३ या कासास्तिकाय एव एके कव्यबे जीवानंताव्यवे पुल अनंताऽव्यवे ऽव्यनोच्य गुरुलघुपर्या 11 नोट गुहा वृद्धि रूप चक्र एकगेजलावर्त्तनी परेवर्ते तेएकव्य जेनोचक भिन्नपम्यो ते निन्नषव्य सर्वऽव्यव त्यादव्ययश्र्वयुक्तवे तेमाटे नि त्यानित्यबे नक्तंच विसेषावस्यक भाग्ये ॥ तंज जीवोनासो ॥ तंनासो हो उसव सोनचि॥ जंसोनप्पा यवनभूव ॥ धम्मात पक्का ॥ १ ॥ पुनः स वंचियपश्समयं ॥ उपज्जश्नासएयनिञ्चंच ॥ एवंच वेयं सुहरुख || बं धमोख्खाईसन्नावो ॥ २ ॥ इहांयुक्तिनोसमुह || माहानाग्यथ जाणजो एमजीवनो नित्यानित्य स्वभावले तेकहेबे अभिनवपर्यासनपजे पूर्व पर्यायव्ययथा यथा एक प्रदेसे अगुरुलघु पर्यायानंतगुणाबे बीजे प्रदेसे तेथीच्अनंतनागहीनबे वीजेप्रदेसे असंख्यात गुणवधताबे चोथे देसे संख्यात गुट एमा संख्यात विभागले प्रतिसमय परावर्तरू ते जहां नंतगुणतिहां असंख्यातगुण्थाय तेथीजेप्रदेसे अनंतगु एपोल्यो ते व्ययथयो अने असंख्यातपणानो उपजवोथयो तेज पादथयो तथा गुरुल घुसत्परह्यो तेधुवजाएको तथा टानोजा वो ज्ञाननोधर्मबे ते मने पलटवे जो ज्ञाननित्य होय तोजणासनही जेमाटे विवक्षितसमयने विषे केवलज्ञांनच्यनंता अतीत्धर्मथया ए मजाणे वर्तमानेच्अनंताधर्मवेतेने जाणे तथाच्अनागत अनंताथासे तेप एजाले यद्यपि यावेधसे एधर्मज्ञेयनावे पण ते सर्वजाण्वानोधर्म ज्ञान For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ माहें परज्ञेयने जाएंगपले ज्ञानपरानुयायीधातोनथी || विषय दात्विषयिलोपिभेदः ज्ञेय ने दात्ज्ञानभेदः पुनः ज्ञानः यावंतो हिज्ञेयस्य पर्यायास्तावंतस्तदवना सकत्वेनस्याप्पेष्टव्याइति वृहद्नाषे ॥ तथाजेज्ञा नवर्तमानपणेजांणतो तेहनेच्छतितपणेजाणे अनेजेयानागत तेहेनेव र्तमानपणेजाणे एज्ञाननापर्याय नासनवेत्तादिक सर्व एव पलटे ते थी पूर्वपर्यानोव्यय उतरपर्यायनो उत्पाद अनेज्ञानपणेभूवएमदर्शन चा रित्रसर्वगुणजालवा माटे हे श्री सुमतिनाथप्रभु तमारीसुछता केहेवीवे जेस मयउपजे तेसमयेजव्ययपामेबे तहविकता तोपण ते हवो रहेके मूल ध्रुवधर्मनमुके एटले उपजेविएसे ते अनित्यता अनेश्वर हेते नित्य ता एबेखनावकला तथाएक च्यात्माने विषे ज्ञानगुण दर्शनगुण चारित्र गुण वीर्य्यगुए दानगुण लानगुण भोगगुण रूप गुण अगरूल घुगु अव्याबाधगुण इत्यादिक अनंतागुणडे ते सर्वगुए निन्ननिनबे तेथीअने कताबे तथा सर्वसमुदायरूपले पए किवारे निन्न क्षेत्रीनथाय तेच्ानंत गुणपर्यायो एकपिं एवोच्ात्माने माटेएकरूपो वलिप्रभुजीत में के हे वाबो जेव्य वदेत्र खकाल स्वभावपणे स्तिो तेथ्य स्तिनाव कि वारेपलटतोनथी तेले हे प्रभुतुमे च्यात्मभावेरहोबो पए किवारे अपर के बी जाव्यनो नाव के धर्मले तानथी माटेस्यात्यस्तिपलेबो पोतानाधर्मेर होबो पणपरज्व्यनोधर्म स्यात्नास्तिपणे ते किवारेतुभे तेपले परमता नथी माटेस्यात स्तिनास्तिरूपो हवेइहांसप्तभंगी उपजे तेकहेते. दे०ची०ब० १ स्वव्यतेपोताना गुणाने पायनोसमुदाय तथावखेत्र ते पो तानोच्ागरूलघुख नाव विभागिकृत असंख्यात प्रदेस खकाल उत्पादव्ययरूप प्रवर्तना खभावते अनंताज्ञाननापर्यायानं तादर्शननापर्याय अनंताचारित्रनापाय अनंताच्य गरुलघु पर्याय ते स्यात् स्तिए पहेलो नांगोथयो . For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुमतिजिनस्तवन ३३ २ परव्य परक्षेत्र परकाल परभावपऐस्यात् नास्तिएबी जोनांगो ३ च्यास्ति नास्ति बेवस्तुधर्मेरझावे माटेस्यात्थ्यास्ति स्यात् नास्ति ए बीजोनांगोथयो. ४ एवाधर्म एकवस्तुमांएकसमयेंबे अथवावस्तुमध्ये अनंताधर्म व चनेगोचरनही एहवाच्यवक्तव्यबे तेथी स्यात् कथंचित् पऐव क्तव्यं एचोथोनांगोथयो. ५ तेअवक्तव्यपणे आस्तिधर्मनोपल बे माटेस्यात् च्या स्तिच्वक्त व्यं एपांचमोनांगोथयो. ६ तेच्यवक्तव्यपणोनास्तिधर्मनोपलले तेस्यात् नास्तिच्प्रवक्तव्यं उठो! ७ एहवोवस्तुधर्मसमुदाय पर्यायपले स्यात्च्या स्ति नास्तियुगपत्याव व्यं पदार्थधर्म एसातमोनांगोथयो. एसामान्येसप्तनंगीकहीतेमज नित्यतथाच्य नित्यनी सप्तभंगी तथा एकाने कनीसप्तभंगी वक्तव्यतथा अवक्तव्यनी सप्तनंगी तथागुणपर्याटानी सप्तनं गीतथाऽव्यास्तिक पर्य्यायास्ति कनीसप्तनंगी एमच्यनंति सप्तभंगी वस्तुधर्मे वे तेसप्तनंगीटों सर्वपदार्थपोतानाच भावने पलटतानथी तेकारणेहेअनु जी तुमेच्छा स्तिनास्तिपणेढो स्वधर्मपरहोबो परधर्मग्रहण करतानथी व लिहे प्रभुतुमके वाबो चन्दराजलोकना जेटलाच्या कास प्रदेसवे तेटला तुमारापण आत्मप्रदेस पलतेच्या संख्यातप्रदेसनोजेखरूप षटगुल्हा रूप अगरुलघुपर्यायनो तरतमयोग विभागपणे रेहेवो श्रृंखला वयवनीपरे ज्ञानादिगुल्नो अवस्थानक्षेत्र दव्योपसमकाले कार्या न्यासे तरतमता तेहनोस्वरूप कम्मपयडीविषे योगस्थानच्यधिकारे त थावृहत्कल्पनाष्यमध्ये संयमश्रेाधिकारथी जाएजो तथाकालीक भावे सर्वगुणनीसामान्यता परं गरुलघुपटायनोतरतमसदावे तेप्रदे सधर्म अथवा सर्वगुणपर्याय तुल्यविभागे असंख्यात प्रदेस पलेवे हेच For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ देचोम्बा दा पणकिवारेजुदाखमातानथी माटेअखमरूपगे एटलेअसंख्यातापदे सरूप अवयवताने पणनिन्नथाटानही तेआश्चर्यजाणवो ॥ इति ॥२॥ कार्यकारणपणेपणमेतहवीध्रुव ॥ कार्यनेदेकरे पिणअनेदी॥ कर्ततापरणमेनव्यतानविरमे ॥ सकलवेत्ताथकोपिणअवेदी॥ अ० ॥ ३ ॥ अर्थ ॥ वलिउत्पादव्यटारूप धर्मकेहेले जीवश्व्यनेविषे जेटलागु णजे तेसर्वपोतपोतानुकार्यकरे अने उपादानरूपकारण तेहिजकार्ट थाय इहांकोश्केसे जे पूर्वकालकारण पश्चातकालेकार्ट एतोज मालानोमत जोकारणकाल कार्यकालनिलहोटा तो कारणकाल विनासें तदनंतरकार्यकाले कारणविनाकार्योत्पतिथाय अनेकारणवि नाकार्यमानतां अनेकदोषथाटो तिवारे टेपटकार्यथाट पटेघटका र्यथाट माटेकारणविनाकार्यनथी कारणभाव तथा कार्यनाव ए बे एकसमठोडे एजैननीअक्षा श्रीविसेषावस्यकमध्ये घणुवखाण्युबे जो बाह्यनत्पन्न कारणकार्यविषे एककाल ताले तोसेहेजकतिम कारण कार्यता एकसमयेजहोय तेमाटेजीवनो केवल ज्ञानगुण तेविसेषभावस जाणे तिहांसर्वनोजाणवोतेका अने ग्यानगुण जाणवारीतेश्व ततेकारण तेहजसमये कारणकार्यपणेपरणमे ग्यानगुणपणे सदा ध्रुव तेमकेवल दर्शनादि गुणअनंताजे तेसर्वएरीतेपरणम कारणता व्यटा तिहांजकार्यतानत्पाद कार्यताव्यय तिहांकारणतानत्पाद इमस र्वव्यनेविषे उत्पादव्ययधर्म इहांकोकजे नत्पादव्ययस्वतःनथी परप्रत्ययथी एमकहे तेनीनूलबे जेपरप्रत्ययोधर्म तेल हणनथाय लहणते खधर्मनोजथाय तिहांश्रीस्वेतांबरगणी तत्वार्थ टीकाकारनी सांखलखी॥अथटोव्याचदते व्ययोत्पादौ नवतोव्योम्नः किंतुपरप्रत्य For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ सुमतिजिनस्तवन याज्जायतेऽवगाहकसन्निधानायत्तावुत्पादव्ययाविति तेषांकथमअलो काकाशेवगाहकानावाअवैशसंचसतोलदणलदणस्यसाध्याऽव्या पिताचेष्यतेस्थित्युत्पादव्ययत्रयामितिअत्रोच्यतेयएवंमहात्मानस्तर्कयंति खबुधिबलेन पदार्थस्वरूपंतेऽत्रनिपुणतरमनुयोक्तव्याःकथमेतत्वांतुवि स्रंसापरिणामेन सर्ववस्तूनामुत्पादादिवटामिगमःप्रयोगपरिणत्याजीवपु जलानामचंतावदस्मदर्शनमविरुषसिद्धांतसद्भावं अस्मक्तानुगुणमे वचनाष्यकारेणाप्युच्यते॥ एवचनजोधायथार्थकरवीमाटे हेअनुजी तुमारा गुणकार्यपणेपरणमे तेथीउत्पादव्यय अने गुणनो अना वथतोनथी ते भुवधर्म तेथीस्यानित्यं स्यात्म नित्यं एवरूप तेअच रिजजेहेवो वलिजीवधव्यमध्ये जेटलागुण तेसर्वभिन्नपणे पोतानो कार्यकरे तेमांझानते जाणवारूपकार्य करेले दर्शनतेदेखवारूप का मकर समकेतते निरधारकार्यकरेने चारित्रते थिरतारूपकार्यकरेले अ मूर्तगुण अरूपीपणेकार्यकरे एमसर्वगुणपोतानाकार्यनाकर्ता एवो कार्यभेदेकेहेतां जुदाजुदापणेकरे ते वस्तुमांअनेकतास्वभाव तेथी भेदखनाव पणतेकार्यधर्मनो कारणकोई व्येतथादेत्रेजुदोथतोनथी तेथीअनेदरूपले जेमसूवर्णमध्ये पित्तता गुरुता सनिग्धता एकार्यनेदे त्रणधर्मपामीयबैये परंकिवारे भिन्नथातानथी तिमजीवना अनंतगुण निलनिनकार्यकरेचे परवस्तुधर्मेनिन्ननथी कार्यसर्वभेदे कहेतां निन्नप णेकरे पणअनेदि कहेतां नेदरहित वलिपतिसमय कर्ततापणे पर में एटले पंचास्तिकायमध्ये चारशस्तिकाटा तेषकर्ता अने ए कजीवास्तिकाटा खतंत्रकर्ता तेखाधिनपणे कारणावलंबीथयो कार्ट ने नापजावे तेकर्ता तथाजेमपरकार्यघट तेनोकर्ता कूनकार तेमझानादी कार्यनोकर्ता जीव माटे कर्ततापणे परणमे पणकांइनव्यपणे नथीरमतो एटलेजेजतिसमयेपर्सायनेकरे पणकांनवोनथी अस्तिध For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा म तिमजरहे वलिसकल कहेतां सर्वव्य ६ तेहनागुणपर्याय स्वना व तेनानत्पादरूप व्ययारूप ध्रुवरूप अतीतअनागत वर्तमानकाल सर्व चणेकालना वत्ता कहेतांजाणगे एसर्वनेजाणोगे पणअवेदी कहेतां पु रुषस्त्रिनपुंसकरूप वेदरहितगे माटेवेत्ताथकांपण वचनधर्मेअवेदोनो एअचरिजजाणवो इतिवृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ सुद्धताबुद्धतादेवपरमात्मता॥ सेहेजनिजना वनोगीअजोगी ॥ स्वपरनुपयोगीतादात्मस त्तारसी ॥ शक्ति प्रयुंजतोनपयोगी ॥ अ॥४॥ अर्थ ॥ वलिसुचताते सकल पुजलरूपसंपदारहित बुझताकहेतां के वलझानदर्शनरूप संपूर्णबोधरूपलो देवकहेता पोतानोवरूप तेणेदिव्य तिकहेतां रमणशील ते देवकहिये परमात्मता कहेतां पोतानोआत्मा झानावर्णादिकमारहित माटेपरमात्मापणे संपूर्ण भोगवोगे परमात्म निपन्नात्मा ते भावपाम्यागे वलिसहेज कहेतां वनावनाअकृतिम निजकेहेतांपोताना भावतेझानादिकअनंतधर्मतेहनानोगी केहेतां नोग आस्वादनवंतबो वलिकेहेवाबो अयोगीकहेतां मनवचनकायारूपयो ग तेथीरहीतगे अने हटोपसमिवीर्य तेहनेचलनपणेवरते ते योगक हिट तिहांनाषावरगणा तथा सरीरवरगणा मनोवरगणा तेजिहांधव टनहेतु तेषव्ययोग अनेजेअवष्टंन ग्राहक वीर्यपरणामते पेहेलो प रणमन बीजो अवलंबन त्रीजो ग्रहणरूप एत्रणसक्तिनेनावयोगकहि दो एहवोयोगपरणमन तेथीरहितगे कारणकेयोगते आश्रवडे अनेसि यात्मातोसंपूर्ण संवरमयीने वलिषनुजीतुमेकेहेवागे जे वकहेतां पोतानो आत्मतत्वपणो तेहनाउपयोगीकहेतां जाण तथापरयात्माते बीमाअनंतानीव तथा सर्वपुजल तथाधर्म अधर्मआकास तेसर्वना For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमतिजिनस्तवन ३७ जाए एटले व तथापरएबेनोजाए पएतदात्मटा कहेतां तन्मय्यपणे रसो जे पोतानो सत्ताधर्म तेहनारसी कहेतारसीयाबो खाखादीबो एटलेजा गखपरबेनाबो पणभोगीच्यात्मधर्मनाको इहांको केहेसे जे जाएंगबे नोबे तो भोगीबेनोकेमनथी तेनेकहेवो जे परभावमध्ये भोगधर्मनथी माटेच्यात्मापरभावनोनोगी नथ खभोगीजबे परदे रोजे धर्मते भोग वायनही स्वक्षेत्रीधर्मभोगवाय बलिप्रभुतुमारी अनंतिसक्तिबे तेसकर्मा जीवन सर्वसक्किदबाबे तुमेसाध्यसाधक नावकरीने सर्वकर्मपमलनेद लवेकरीने सर्वसक्तिप्रगट करी बेच्ने ते सर्वसक्तिनी भिन्नभिन्नप्रवर्तिने ते सर्वसक्तिनेप्रयुंयताबो एटले सर्वकर्तृत्व भोगतृत्व ग्यायकत्व परिणामी कत्व ग्राहकत्व आधारत्वादिसक्तिप्रवर्त्तेबे पणकोईस क्तिच्चणप्रवर्तीरहे तीनथी पणनप्रयोगीकहेतां सक्तिपवर्तावता को जातिनोप्रयोग कहेतां प्रयास उद्यम विकल्प करवोनथी एटले सर्वसक्ति सहेजे प्रवतें वे ॥ इति ॥ ४ ॥ वस्तु निजपरिएते सर्वपरणामकी ।।तेतले कोइ प्रभुतानपामे ॥ करेजाणेरमेच्छानुनवतेप्रनु ॥ तत्व सामित्व सुचितत्वधामे ॥ अ० ॥ ५ ॥ अर्थ || हवेवस्तु के जीवादिपदार्थते निजपरिणते के० पोतानी स्यादपरिणति सर्व के समस्तव्य परिणामकी के परिणामी बेटले नित्यानित्यादिकधर्मपले सर्वव्य परिणामबे पण तेथीको परमेश्वरपणोनपाने सर्वव्य साधारणधर्मी माटेएमसी अधिकार तेट 0 ० . ले के एथी कोइ के० हरेकव्यते प्रभुता के० मोटाइप नपामे के० पानही तोकेमपामे तेकहबे करे के पोतानाधर्म नेकर्तापले करे एटले बीज अजीवादिपांचव्य तेसर्व उत्पादव्ययभुवपणे परमे कर्तानथ अनेजीवsव्यकर्ता तेस्यामाटेजे बीजासर्वऽव्यना For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ दे०चो० बा० धर्म प्रतिप्रदेसेंवे ने प्रदेसें प्रदेसें प्रवर्तेले पण एक प्रदेस ने बीजाप्रदेसनो सहा एमएको प्रवर्तननथी ने जीवव्यने प्रदेसें प्रदेसें धर्मानंताने अने तेतेप्रदेसेरह्मा प्रतिकरे पते सर्व प्रदेसें समुदायमलीने कवी प्रवृत्तिबे माजीवकर्ता तेथील धर्मनेकरेले एकतलो तेश्वरताबे तथा च्अजीवश्व्यमध्येपण अनंतागुण अनंतापर्याय बे पलते व्यपोतानागु ने जाणतानथी अने आत्माज्ञानादिक अनंताच्यात्मगुण् तथाच्अनं तापरव्य तेथी अनंतगुणापरगुरु ते सर्वनेजाबे माटे जापलो ते च्यसाधारण धर्मत्वे तथाच चारित्रगुणे आत्मापोताना गुए विषेर मेले अने जीवव्यते खधर्मे रमीसकतानथ तथाच्यत्मा स्वभावधर्मने भोगवेबे तेथीस्वरूपानुभवी माटेजेकर्ताहोय तेनोक्ता होय पण जेक तनथ। तेनोक्तानथ। तेथ अनुभवधर्म तेयात्माने विषेजवे माटे जेकर्ता जेग्याता जेचारित्री जेनोक्ता तेनु के ० तेनेपरमेश्वरजालको एटले दर्शनांतर परमेश्वरने कर्ताकडे तेपण मिथ्याने केमजे परमेश्वर निःकर्मातेस्वनावनाकर्ता स्वनावनाभोक्ताबे हवेएम के हेतां संसारीतथासि ६ सर्वजीव परमेश्वरपलोपामे ते ऊपर के हेबे तत्व के ० वस्तूनोमूलधर्मस्वा भित्व केहेतां तेनास्वामीपणो ते परमेश्वरपणो सुचिके देतां पवित्रकर्मरहित निर्मल तत्व सितानो धामकहेतां घरते निष्पन्न सिधावस्था तेजपरमेश्वर पणोबे बाकी सर्वसंसारीजीव सत्तायें परमगुली पण जेनागुण प्रगटथ या तेपूज्य जाणवा माटेश्री जसो विजय उपाध्यायेंक घुंबे जे ॥ गाथा ॥ जे जे से रे निरुपाधिकप । ते ते कही में रेधर्म ॥ सम्यक अटी रे गुणवालाथ की ॥ जावल हे शिवशर्म ॥ १ ॥ इति माटेजेपरमपूज्यते सिबे ॥ ५ ॥ इति ॥ जीवनवी पुग्गली नैव पुग्गल कदा ॥ पुग्गलाधार नहीताससंगी ॥ परत पोशन ही अपरऐश्व यता ॥ वस्तुधर्मेकदानपरसंगी ॥ ० ॥ ६ ॥ For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमतिजिनस्तवन ३ अर्थ || हवेज वनोजे मूलधर्म तेश्री सुमतिनाथ अरिहंतनेनीपनो बे हे जे जीवनवी पुल कहेतां जीवते किवारेपुलीनथी अनं तोकाल संसारावस्थायें पुजलथी एकठोरह्यो पए किवारे पुजल रूपथयो नही तथाजीवतेपुजलनो आधारनथी कारणजे क्षेत्रीव्यच्चाकास धर्म अधर्म जीव पुजल सर्वच्या कासव्य मध्येरलाबे पणजीवना प्रदेसें पुजलनोरहेवो ते जीवनी नावच्प्रसुताथी थयोबे के मजे सर्व सं सारीजीवोने नोग तथा पनोगगुणनो सदाकाल कयोपसम प्रामीयें प एभोगनीप्रगटतानथ तेथीपर नोगीथयोबे वीर्यांतरादानो कोपस म सदापामीयें तेवीर्यपणपरानुयायीथयो तथाकर्ता ग्राहकता व्यापक ता नोक्ता पण सदा निरावणबे अनेकार्य ग्राह्य व्याप्प नोग प्रवरणो वे तेथीला पुजलानुयायी प्रवृत्तितेकार्य पुजल नोगपले तेहना वर्णादिकमांव्यापकथयो पुल नेग्रहेबे पबेजेनेभोगव्यो तेनीज होंसन प जे एटले पुल नोरुची तेफरी पुजल नेग्रहे तथाभोगवे तेथी च्यात्मप्रदेसें पुरांबे आत्मप्रदेसते स्वगुणपर्यायनो खेत्रले पण परपुजल व्य नोखे नथी तथामूलवस्तुध में पुजलनोरंगीनथी स्वधर्मनाच्याखादन विना पुजल नोरंगथयोबे पणवस्तुरीते विचारतां एनेपुजलथी स्यो संबंधबे बलियात्मापरनावनो स्वामीनथी परनावेएनी ऐश्वर्यता केहेतां ठकुराइनथी एटले वस्तुधर्मे कदाकेहेतां कोश्वेला परवस्तुनो संगीन थी जीवव्यनोसत्ताधर्म एवोबे माटेमाहारो सुमतिनाथ परमेश्वर सु चदेवते पुजलनोच्याधार तथारागी के महोटये सर्वपुजलाती तबे ॥ इति ॥ ६ ॥ संग्रहेन हीच्यापे नदी पर नएगी || नविकरेच्यादरे नपरराखे || सुधस्याद्वादनिज नाव नोगी जि के || तेह पर नावनकेम चाखे ॥ ० ॥ ७ ॥ For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० दे०चोम्बा अर्थ ॥ वलिसुमतिनाथपरमात्मा केहेवाने जे परभणीकेहतां पर वस्तुनणीमाहारापणेसंग्रहेनही तेपरवस्तु कोश्बीजाने छापेनही परवस्तु नेकरेनही आदरेनही परवस्तुने परिग्रहधनपणे राखेनही एसुषव्य नोधर्म तथा सुचकेहेतां निरदोष स्याहादकेहतां अनंतधर्मात्मक नि जकेहेतांपोतानो नावकेहेतांधर्म अनंतज्ञानदर्शनादिक तेहेनाजेनोगी आस्वादी एटले वनोग्यनाजे भोगीथटाते परभाव जेरागषादिक अथवा पुजलवर्णादिक तेहेने निष्पनपरमात्मा केमचाखे केहेतां आवा दे माटेपरमात्मा तेपरनावनेचाखेनही स्वरूपनोगीजहोटये ॥इति॥७॥ तादेरीसुचतानासआश्चर्ययी॥ऊपजेरुचिते तत्व ॥ तत्वरंगीययोदोषयीऊ नग्यो॥ दोषत्यागीटलेतत्वलीहें। अ० ॥ ७॥ अर्थ ॥ हवे साधनधर्मकेने तिहांश्रीसुमतिनाथ पोतेमुक्तकरी क तकृत्यथया तेपरजीवन) मुक्तिकर्तानही तो सावास्ते स्तवोगे नमोगे तेके जेताहेरीकेहेतां हेअनुतुमारी सुचता निःकर्मता अनंतगुण अग टता तेहेनोजिवारे नासनकहेतां जाणपणोथाय ते जेमजेमगुणनी घोषणाकरे तेमतेमगुणनोभासनथाय तेथीआश्चर्यताउपजे जेहोष नुनोझान त्रणलोकगत षटव्यतिनकाल परावत्तिसहीत एकसमेजा णे तेमजबहोपनुनोदर्शन अहोपनुनोचारित्र सकलपुजलअनोगी अ होपरमानंद इत्यादिकआश्चर्यथा आश्चर्यन पजे तेथीपोताने ते हेवीपरमा त्मदिसा नापजाववानी रूचीपजे पतेविचारे जे किवारेमाहारो सुध परिणामीक भावगटे किवारेमाहरागुण हुं नोगq अनंताजीवोनीएव एवापुजल नेतजी पोतानोधर्म हुँ किवारेनोगवीस एहवीरुचीपजे पडे तेरुचीवंतजीवतत्वनाईहा करतांकाल गमांमे तेजिमजिमतत्वनाईहाकरे For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमति जिनस्तवन ४१ तिमतिम तत्वनो रंगप्रगटे जिमजिम तत्वनो रंगीथाय तिमतिम राग क्षेष अढारपापस्थानादि दोषथी जनगे केहेतां निहते तिमढले केहेतां तेपणे परणमे तत्वलोहे केहेतां तत्वमार्गे खनावपरिणामीथाटा एसर्वका र्यप्रभुने अवलंब्याथाय ॥ ॥ इतिअष्टमगाथार्थ ॥ सुधमार्गेवध्योसाध्यसाधनसध्यो ॥ स्वामिप्र तिबंदेसत्ताआराधे ॥ आत्मनिस्पत्तितिहांसाध नानविटकावस्तुनुत्सर्गआतमसमाधा ॥ अर्थ ॥ एरीतेपरिणामीकपणे समरयो एआत्मा सुबमोदसाधनमा गेंवध्यो साध्यजे पोतानोपरमात्मभाव तेहनासाधननो उपायसध्याथ को खामीजे सुमतिजिन तेहनेतिदेकेहेतां तेहनाजेवीपोतानी सत्ता तेनेआराधे अनुजीजेवोसत्ताप्रगटकरे निःकर्मानिर्मल सुधानंदपदनोग वेपडेआत्माजेमनिष्पत्तिकेहेतांनीपजे तेमतेमसाधनाके कारणपणोटके नही कार्यान्वयीकारण कारणकांश वस्तुधर्मनथी जेवस्तुकार्यनेसन्मु खथाटो तेकारणपणेपरणकार्यनीपजे तेमतेनीकारण ताध्वंसपामे एम आत्मसिधे साधनतानविटके जिवारेवस्तुकेहेतां जीवपदार्थ उत्सर्गरीते संपूर्ण आत्मापोतानी समाधि परमानंदपांमे तेवारे कारण तारहेनही सिधपणेवस्तुनो मूलधर्मप्रगटे तिवारेसाधनपणोरहेनही ॥ इति ॥५॥ माहरीसद्धसत्तातणीपूर्णता ॥ तेहनहेतुपनु । तुंहीसाचो । देवचं स्तव्योमुनिगणेअनुन व्यो॥ तत्व नक्तं नविकसकलराच्यो।अ॥१०॥ अर्थ ॥ माटेहेपनुजीमाहारी सुचनिर्मल आत्मसत्ता तेहेनीपूर्णता केहेतांसंपूर्णता तेहेनोहेतु केहेतांनिमित्तकारण हेअनुतुहीजसाचोडे तमा राजेवा सुझदेवनोनिमित्तपाम्याविना माहारोनिर्मल मोद केमनीपजे स For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोबा जीवनी हिजपरण ती निमित्तावलंबीयर उपादानावलंबीथाय देव जेचारनिकायना तेहमांचंघमासमांन वमेरा तेणेस्तव्यो मुनीनिग्रंथमो वाभिलाषी तेणेअनुनव्यो तेहेनागुणनोआस्वादनकस्यो एहवोपरि हंतदेव तेनीतत्वरूपजेनक्ति एटलेवस्तुगतगुणनीबहुमानता तेनाऊपरस आत्माअर्थीजीवोतमेराचो मग्नथाटयो ।। इतिदशमीगाथार्थ ॥ १० ॥ ॥ अयश्रीपद्मपनजिनस्तवन ॥ हुंतुजागलसीकहुंकेसरियालाल एदेशी श्रीपदमपनगणनिधिरेलाल ॥ जगतारक जगदीसरे वालेसर॥ जिनपगारयकील हेरेलाल ॥ नविजनसिजगीसरे॥ वा ॥१॥ तुझदरसणमुझवालहोरेलाल ॥दरसणसुध पवित्तरे॥ वा० ॥ दरसणशब्दनयेकरेरेला ल॥ संग्रहएवं नूतरे॥ वा० ॥ तु०॥२॥ अर्थ ॥ हवेपद्माननानिमित्तकारणनीकारणतायथार्थपेस्तवेजे श्री पापनगुणनानिधान जगतारककहेतां जगत्रनेविषेमोक्षार्थीजीवते हना तारकडे गुणाधिक तेमाटेयगवना ईसकहेतां स्वामीवमेरा जिन उपगारथीलहे के पामे नव्यजीवसिदितेमोदरूप जगीसकहेतांसंप दापांमे हेअनुताहरादर्शनमां कारणरूप ताहारीमुखानोजेदेखg तेन त्कृष्ट कारणरूपे ताहारोदर्शण के० सासनउपादान कारणपणे दर्शन के.स म्यक्त तेमुजनवेल्लन के इष्टले हेअनुताहरोदर्शनजेसम्यक्तत्वरुचीरू पतेसुको पवित्र जोआत्मानेस्वरूपनिरधार रुचीरूपप्रगट्यो तोआत्मा मोह मल्लथी रहीतथाय माटे परम पवित्र नक्तंच॥ सम्मत्तेणं सुशो। सच्चसुकिच्चोहवशसिवहेक । संवरवुढीत हानिज्जराय || धम्ममूलं चसम्म For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपद्मपनजिनस्तवन ४३ तं ॥ १ ॥ मलंदारंपश्गणं ॥ थाहारोभायणनिहि ॥ दुसुक्कंसाविधम्म स्स ॥ समत्तंपरिकित्तियं ॥ २ ॥ वलि दर्शनकेहेतां हेअनुजी ताहरोदे खवो अथवासुछअक्षा ते जेजीव सदनटोकरे तेजीवनोज़ेसंग्रहनये ते एवंभूतथा एटलेनावार्थ ए जे सर्वजीवसंग्रहनये सिआसमान ते जवारे पोतानासर्वावर्णदयकरी संपूर्णसिपथाट तिवारेएवंनतनये सि कहिटो तेमाटेसंग्रहतेएवंनूतथाटे इहांनटानोस्वरूप संदेपेकहिएचए सत्तायाहीसंग्रहः वस्तुनीसत्तानेरहे तेसंग्रहनटाकहिटो अने वस्तुनाना मपदनो जे अर्थतेपणेपरणम्यो वेद्यसंवेद्यपदेनावनिदेपे तेशब्दनयकहि ये वलि सकलपर्याटापरणामिकतारूप प्रगटपणेसंपूर्णवस्तुते एवंनतन कहियें एटलेताहरोदर्शन जे देखबातेअंतरंग अरिहंतनास्वरूपनासन आस्वादनसहितपनुतानोअवलोकनतेशब्दनटोअनुनोदेखवोथयोः १ योगनी चपलता तथाउपटोगअन्यकार्यनो मात्रएकलोचतई यिकरीअनुमुनोजोबुंते नैगमनयनु दीवा. __ ३ वंदन नमन आसातनावर्जनपणे जे अनुमुपातथाप्रभुनासरीर नोदेखवोते व्यवहारनदाअनुदीग. ४ अनुनागुणनोयोग विकल्परूपनपयोग अनेसर्वशीटों अनुने जोवे स्तवे एकागकरे चपल तामिटावे तथाहरषसहित प्रसस्तरागनीमु ख्यताहोटो तेशजुसूत्रनयेपनुदीना ५ अंतरंगपरिणामपरिणति चेतनानोआकर्षण तथाश्रीवीतरागनी वीतरागतांयें योगसर्वपनुमुखा तथाअनुनासरीरतिहांवल गा अंतरंग आ त्मसत्तापगटकरवारूप साध्यरुचीथयोथको अनुतानीतत्वसंपदारपत्र वलोकन तेसब्दनयेषनुजीदाग एरीतेश्रीप्रनुजीने देखे ते नियमाखस त्ताप्रगटकरे माटेएनिमित्तकारणरूप अनुदर्शनजाणवू एमसम्यानाप For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ देचोम्बा एनयकरीने सब्दनयेजेसुध सिघतारूप समकिततेसंसारी जीवनीसत्ता प्रागनावनोकारणले. इहांबेगाथानुअर्थपूरोथटो ॥ २ ॥ बीजेंवृदअनंततारेलाल ॥ पसरे नूजल योगरे॥ वा० ॥ तिमममआतमसंपदा रेलाल ॥प्रगटेअनुसंयोगरे॥ वा ॥ तु०॥३॥ अर्थ ॥ हवेकारणकार्यभावकहेजे जेमबीजमांअनंतारद उपज वानीबतोडेपणमाटीमांनाखे तथापाणीसींचेतिवारेकगे एटलेमाटीतथापा जोनासंयोगेवधेएरीत तेमउपादानधर्म तेनिमित्तकारणविनापगटेनही माटे माहारीआत्मसंपदा यद्यपीसत्तारूपेनतीजेपण जिवारेअनुश्रीवीतरागदे वनोयोगमिले तेवारतेबालंबीतत्वने आलंबनेवरते तोनीपजे॥इति॥३ जगतजंतुकारजरुचिरेलाल ॥साधेनदये नांगरे । वा०॥ चिदानंदसविलासतारेला ल॥ वाधेजिनवरमागरे॥ वा० ॥तु ॥४॥ अर्थ ॥ सर्व यगत्रवासीजीवाहार विषटापरिग्रहमेलववारूपका र्यनारुची कहेतां अभिलाषीने पोतपोतानाकार्य करवारूप परिणाम सर्वजीवोनजे. पणसूर्यनयोतरूप निमितपाम्याविना कार्यकरीसकेनही सूर्यनद्योतरूप निमित्तकारणपामे सर्वलोककार्य करवालागे एरीतेषग टदेखायजे तेममाहारीआत्मा चिदकहेतांझान आनंदकहेतां अव्या बाथसुख अथवासकल झेटाज्ञायकतारूप जेझानतेहेनोजेआनंद ते चिदानंद तेनी सुविलासता के० सुझपणेभोगववो तेआत्मानंद भोगी पणो दाद्यपि सत्ताने विषे बतो पणजिवारे जिनराजनो वरके प्रधा न अनुष्ठानदोष तथा एकांतदोष तथाअर्थापत्तिदोष रहित ध्यानक रिये तिवारे आत्मानंद प्रगटे उपादान पण हेअनुतुमारो निमित्त म For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पयनजिनस्तवन लेप्रगटथाये माटेमाहारे अनुसमान उपगारी कोहिनही तेकारणे हेपर मेश्वर ताहरोदर्शन मनेवाल्होजे जेअनंतानव नमतां नपाम्यो तेजो मिले तो माहरो अंतरंगनो अनंतो अनंतो अनंता कालनो दलि. जाटो उत्कंच नूनं न मोहतिमिरारतलोचनेन॥ पूर्व विनो सकदापि प्रवि लोकितोसि॥मर्माविधो विधुरयंति हि मामनार्थाः ॥षोद्यत्प्रबंधगतयः कथमन्यथैते ॥ १ ॥ एटलेषभुनो दर्शन उर्लन ते तेहनीप्राप्ति ना अर्थी जे जीव तेनेश्ष्टहोटो इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ लब्धिसिद्धमंत्रादरेंरेलाल ॥ उपजेसाधक संगरे॥ वा॥ सहेजअध्यातमतत्वतारेला ल॥प्रगटेतत्वीरंगरे॥वा॥ तु०॥५॥ अर्थ ॥ षष्टांतजेम आकासगमन प्रमुख लब्धियो तेनीजे सिद्धि ते मंत्रादरमांचे पणते तेहवो उत्तर साधक मिले तिवारे नीपजे तेमस हेज स्वभाव रूप जे अध्यात्म कहेतां आत्माथी तन्मटा पणेरही जे स्यावादरूप ज्ञानदर्शनादिक आत्मीकपरणति रूप तत्वता ते यद्यपि वस्तुधर्मे आत्मानेविषेबतीने पणजिवारे निष्पन तत्वी सुक्षनिर्मल निरा वर्ण आत्म स्वरूप भोगी आत्मरमणी आत्माश्रयी असंख्यात् प्रदेस पुजल संष्लेषरहित सुखदेवने घाखंबने एकरंगकरे तिवारे ज्ञाना वर्णादि कर्मथी रहित निरावर्णरूप प्रगट नावनो बतापणोपामे इति॥५॥ लोदधातुकांचनवेरेलाल ॥ पारसपरस नपामिरे ॥ वा ॥ प्रगटेअध्यातमदसारे लाल ॥ व्यक्तगणीगुणांमरे॥ वा०॥तु० ॥६॥ अर्थ ॥ लोहधातुमध्ये कांचन के ० सुवर्ण थवानी सत्ताले पण पा रस पाषाण प्रमुख बाह्यनिमित्त पामीने पोतानो सोनापणोल हे तेम For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०ची०बा० ४६ ० भव्यजीवनीपण सु६ च्यात्मिकदसा यद्यपि सत्तारूपवे पणव्यक्त के प्रगट कर्मावर्ण रहित जे गुणी खरिहंत तेहना गुणग्रामकरतां स्मर ए करतां छापणे आत्मा गुणानुयायीथई संपूर्ण गुणी पोपामे इहां कोई उसे जे निमित्तविना सिपल केमनपामे तेनेत्तर जे आत्मा छानादिनो पुजलरूप परनिमितपामीने बंधपतिकरेबे तेजोपुजल रूप परनिमित्त मुके तो मुक्तथा तेपुजलरूप परनिमित्त ते अरिहंत रूप सुधनिमित्तने अवलंब्याविना टलेनही माटे वीतरागदेवरूप सुध निमित्त पामे आपण तत्वप्रगटे इतिषष्टगाथार्थ ॥ ६ ॥ आत्मसिद्धिकारज नीरेलाल || सहेजनिया मकहेतुरे ॥ वा० ॥ नामादिकजिनराजनारे लाल ॥ नवसागरमहेि सेतुरे ॥ वा०॥० ॥ ७ ॥ तेवास्ते च्यात्म सिद्दिरूपकार्य करवाने सहेज अकृतम नियामक के ० निरधार हेतु के कारण जे श्रीवीतरागदेव ते पामीने निश्चे नव्यजीवने मोहनी जे नामादि के अरिहंत एहवोनामते श्रवणे उच्चरणे स्मरणे करी पण अनेकजीव गुणावलंबी थइ समकित प्रमुख गुलामीने सि था तथाश्रीच्ारिहंतनी स्थापना जेमुवा समतानोसमुद्ध विषयवि काररहित प्रतिसयसंपन्न जिनथापनादेखी योगथं ने गुलीने अवलंबे स्वगुणावलंबीटी अनेकजीवसिक्षिपाम्या तथा श्री परमप्रभुनो व्यनि देपो तेविचरता सरीरधारी जिनराज तेहना विहार उपदेस समवस रणदेखी च्अद्भुतताने च्ावलंबी अनेकजीव गुणवलंबीथइ स्वधर्मसं पदावर सिधिपाम्या तथानावनिक्षेपोते अरिहंतऽव्यना केवलज्ञाना दिगुणतथा अगुरु लघुतादि पर्याय तेहनी अनंत परणतीनो नासन अधान तथा रमण के० पोताना तत्वने अवलंबता अनेकजीव मोह ס For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुपार्श्वजिनस्तवन ४७ रूप लक्ष्मीपाम्या माटे अरिहंतना नामादि चारनिदेपा ते नवरूप माहासमुपमध्ये सेतु के० मोटीपाजसमान एटलेपनुना नामादिचार निदेपाने अवलंबीनेआत्मसिधिकरव। ॥ इतिसप्तमगाथार्थ ॥ ७ ॥ धननइंडिययोगनोरेलाल ॥ रक्तवरणगु गरायरे॥ वा ॥ देवचंदेस्तव्यारेला ल॥ आपअवर्णअकायरे॥ वा तु० ॥ ७ अर्थ ॥ वलि श्रीपद्मपन स्वामीनो रक्तवर्ण सरीर ते सामाजीव नाइजी तथायोगनो थंनन एटले इंशीयो वरणादिकने अवलंबीने रहे माटेषनुजी रातेवणे गुणगंनी दिक ते हनाराजाबे देव जे धर्म देव तेसाधु नरदेवतेचक्रवर्ति नावदेव ते नवनपति प्रमुख तेहमां चंड मासमान वलिइंध गणधरादिक तेहनावंद के. समुह तेणेस्तव्या पण अनुकेवा अवर्ण अगंध अरस अफरस एहवाअकाटाबे सरीर रहित एटले नावकर्म व्यकर्म नोकर्मरहित सकल पुजलातीत. एहवा श्रीपद्मपनदेवते मने आधारभूत परमसरणजे एनानिमित्ते परम पदनीपजे इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७ ॥ इतिपयनजिनस्तवनंसंपूर्ण । अयश्रीसुपार्श्वजिनस्तवन । हवे श्रीसुपार्श्व अनुने सहेजधर्मरूप तत्व संपदापणे स्तवे बे जगबना जीवपुजला नदीने तेनवापुजल नेलवे आनंदपामे पणते पुजल सटोग जन्य सुख तथाउःख तेआत्महितनही विनाब माटे अ ने जे आत्मानो सहेजसुख तेआत्मधर्म आत्माना अनंतागुण तेगु णगुणनो सुख जुदोजुदोडे अनेएक अव्याबाध सुखरूप आत्मधर्मजु दो एम आगममा व्याख्याने तथा आत्माना ज्ञानदर्शनरूप गुण ते मूलगुण अनेवीर्यादिक सर्वते गुणनीर्तिरूपधर्म एक एवीपण For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ दे०चो०वा० व्याख्याने अने १ ज्ञान २ दर्शन ३ चारित्र ४ दान ५ लान ६ नोग ७ उपभोग इत्यादिक अनंत गुण आत्माने विषेवे तथा विसेषावश्यक मांहेकह्योबे क्षायिकसम्यक्त्व केवलज्ञान केवल दर्शन सिद्धत्वानि पुनः सि यावस्थायामपि नवंति । अन्येतुदाना दिल ब्धिपञ्चकं चारित्रं सिधस्या पीति । तदावरणस्य तत्राप्यनावात् च्यवरणाऽनावेपि च तदसत्वे की मोहादिष्वपि तदसत्वप्रसंगात् ततस्तन्मते चारित्रादीनां सिध्ययवस्थाया मपि सद्भावः। पुनस्तत्वार्थे । पुनरप्यादिग्रहणं कुर्वन् ज्ञापयति । अत्रान न्तधर्मात्मकतयाऽशक्याः प्रस्तारयितुं सर्वे धर्माः प्रतिपदम् । प्रवचनशे न तु पुंसा यथासंभवमायोजनीयाः । क्रियावच्वं पयोपयोगिता प्रदे शाटकनिश्चलता एवंप्रकाराः सन्ति भूयांसः । च्छयपिःसमुच्चये । एवंप्रकारा अनादिपरिणामिका नवन्ति जीवस्य नावाः । इहांजीवने विषे अनंताधर्म जुदाजुदाकला तथारत्नाकरावतारिकामध्ये सप्तनंग्यधिकारे नन्वेक स्मिन् जीवादौप्रतिवस्तुन्यनंतधर्मात्मिकत्वेनानंतधर्मवत्त्वमेव स्यादादरत्ना करे एकत्रवस्तुन्येकैकधर्मपर्यायानुयोगवशादविरोधेन व्यस्तयोः सम स्तयोश्व विधिनिषेधयोः स्यात्कारांकितः सप्तधावाक्प्रयोगः सप्तनंगी तिनन्वेकस्मिन् जीवादिवस्तुन्यनंता विधीयमान निषिध्यमानानानाधर्माः स्यादादिनांनवेयुः वाच्येयत्तायत्तत्वाघाचकेयत्तायाः ततो विरुधैवस तभंगी तिब्रुवाणं निरस्यति एकत्रवस्तुनि विधीयमान निषिध्यमानानं तधर्म्माऽन्युपगमेनानंतनंगी प्रशांतैवसप्तनंग) तिनचेतसि निधेयमिति हेतुमाह विधिनिषेधप्रकारापेक्षया प्रतिपर्यायवस्तुन्यनतानामपि सप्त नगीनामेव संभवादिति तथाप्येकैकपायमाश्रित्य विधिनिषेधविक ल्पान्यां न्यस्तसमस्ताभ्यां सप्तैव नंग्यः संभवं तिनपुनरनं तास्तत्कथमनंतनं गीप्रसंगादिसंगतत्वं सप्तभंग्याः समुद्भाव्यते कुतस्तस्तथैव नंगा : संभवतीत्य त्राहुः प्रतिपर्यायं प्रतिपद्य तु पर्यनुयोगानां सप्तानामेव संभवादिति For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुपार्श्वजिनस्तवन ४ए नंतधर्मापेदवासप्तभंगीनामानंत्यंयदाटयातितदभिमतमेवाएटलेवस्तुविषे धर्मअनंताजे शहांकोश्कहेजे धर्म तथागुण वस्तुजुदीने तेषजाण नाम नेद अंशनेदपोतो शब्दादिक नयर्सर्वमाने घटकुंभादिकोनेविष एक वस्तुनास्वमटीपर्यायमांपण नाम देनेदकहे एरीतेगुणसब्द॥ तथाधर्मस ब्दनोभेदार्थडे पणविसेषरीतेगुणधर्मएकज श्रीविशेषावश्यके जहसोविसे सधम्मो॥चेयाणतहमदाकिरिया।इहांचेतनागुणने धर्मकहीबोलाव्यो व लिनाष्यनेविषे चाह ननु गुणस्वनावटोर्नेदएवत।दनिबंधनधर्मभेदा नावात्।।इत्यादिवोनेिदगुणनानापोजोतिहांस्तिकतालहियेजाएषव्य गुणपर्यायनारासमां जसोविजटाजी उपाध्याटोपण अस्तिकता धर्मनेगु एकहीबोलाव्यो वलिसिधांतमांपण पटोगादिक अव्यावाध तथा अवनेआदिक अनेक गुण कह्याने तथातत्वार्थमा मुक्तयात्मानिष्क्रियः तथादायिकसम्यक्त्ववीर्यसिम्त्वदर्शनज्ञानरात्यंतिकैः संयुक्तोनिईना पिसुखेन तथाऽस्तिकायत्वगुणवत्त्वानादित्वासंख्येयप्रदेशवत्त्व नित्यत्वाद यःसंत्येवजीवस्य यद्यपि नगवतिसूत्रमासिघनेअवारिया तथाषचारित्रि याकह्या तेतोकरणरूपचलबार्यनीअपेदायें पणतेहिज श्रीअनुयोग धारमा दायिकलब्धिअधिकारे तथापनवणासूत्रमा वीर्यतेजीवल द बने एमकडंडे तथा चारित्ररूपषटत्तिनीना पण थिरतारूपचारित्रतेतो जीवनोखलदणजे तेउत्तराध्ययनना अव्यावीसमां अध्ययनथीजोवो तथा वसुदेव हिंममध्ये वलिश्री पाल चरित्रमध्ये सिमस्तुतिअधिकारेक यो गाथा॥जेणंतगुणागुणा ॥ ईगतीसगुणायब हवअवगुणा ॥ सिधा यंतचकक्का ॥ तेसिघादितुमेसिधिं ॥ १ ॥ तथारहाकल्पनाष्ये ॥दवे जीवदा ॥ संखातीतपदेसमोगाढं ॥ कालेअाईणिहणो ॥ नावे जाणाईयाणंताः॥२॥श्मय्यार्णव तथाआप्तमीमांसादिकअनेकग्रंथोमां कझुंडे माटेात्मानीजेवारे नेदव्याख्याकरिये तेवारेगुणअनंता एकएक For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा गुणनेविषेअविभागधनंता एकएकअविनागनेविषेअनंतापर्याट एक म्मपयमानेविषेव्याख्यादेखाय अनेतेजअविनागतथापर्यायनोएकप णो श्रीनगवतिनीटीकामांदेखायडे अनेसंदेपव्याख्याट गुणपर्याय बेहुनेएकपर्यायास्तिककहाँबोलाव्याने एममतिविचमटालानेश्रधाराख वी इहांश्रीअरिहंतषष्यनेविसेषे ओलखाववानिमित्तेगुणगुणनी जुदीजु दीव्याख्याजणाववामाटे तथापोतानीसत्तानी रुची प्रगटकरवामाटे गुण गुणमोजुदोजुदोधर्मकहीस्तवनाकरिटो एप्रसस्तिथई हवेगाथानोअर्थ ॥ होसुंदरतपसरिषोजगकोश्नही एदेशी ॥ श्रीसुपासानंदमें ॥ गुणअनंतनोकंदहो ॥जिनज।। झानानंदेपूरणो ॥ पवित्रचारित्रनानंदहो ॥जि॥१॥ __ अर्थ ॥ श्रीसुपार्श्वप्रनुधानंदमईले सुच्यानंदते एनेविषेले जेमांहे परनो नेलनथी स्वरूपसुख वलि सुपार्श्वप्रनुके हेवा जे सहनावीगुण अथवा व्याश्रितानिर्गुणागुणा एटलेषव्य जे समुदाय तेहनामाश्रिर या तेगुणमा गुणपणोनही गुणमध्येतोपाटाने सबेसपज्जवागुणा इति कल्पनाष्यवचनात् ॥ तथा अपज्जवेजाणणानस्थि ॥ इतिआवश्यक नियुक्ति वचनात् माटेगुणनेविषे पर्यायाने पण गुणनेविषे अन्य गुणनथी श्रीनयचक्रमाकह्यो जे गुणनेविषे अन्यगुणपणोहोटा तो गुणतेषव्यपणोपामे तेमाटेगुणते निर्गुणजे एटलेसुपास अनुरूपजव्य ते ग्यानादिक अनंतगुणनोकंदबे ग्यान जे आत्मानो बिसेषावबोधरूप सकल विसेषधर्म गुणपर्याय तेहनीअनंति परणति तेहनोझायक नि त्यानित्यादिक अनंतधर्मनोझायकत्व वेतृत्व अगुरुलघुत्व अनंतपर्या टानोपिक ते ग्यानगुण ते लोकालोक सकल प्रत्यदरूप सर्वप्रदेस नि रावर्ण रूप तेहने आनंदेकरी पावनो कहेतापवित्र पूर्ण वलिकषाय For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुपार्श्वजिनस्तवन तथा पुजल फल आस्यास्पदोष रहित वरूप थिरतारूप जे चारित्र अनंतपर्यायात्मक अकषाटाता अवेदता असंगता परमदमा परममार्द वपरमार्यव परमनिर्लोनता रूप वरूपएकत्व रूपचारित्रधर्म असं ख्यातप्रदेसे व्यापकपणे रह्यो तेहनोआनंद हेत्रीसुपासपनु ताहारे वि षे एटले चारित्रानंद मटीबो तेमाटे पवित्रनिर्मलगे इति ॥ १ ॥ संरक्षणविणनायगे॥ व्यविनाधनवं तहो ॥ जि॥ करतापदकिरियाविना॥ संतअजेयअनंतहो ॥ जि० ॥॥ अर्थ ॥ वलि हेपनुतुमे संरक्षण विनानाथ कहेतां धणीबो एटलेको ई अन्यजीवनी तथाअन्यव्यनी रखवालीकरतानथी केमजे संरक्षण पणो करवो एतमारो धर्मनथी माटेकोईना तमेरक कनथी पण सरण त्राण आधाररूपो मोक्षनाहेतु तेथीनाथबगे: __ वलिषव्य जे धन कंचन परिजन गण मंदिरादिसर्व परिग्रह रहित बो तोपण झानादि खगुण पर्यायरूप अनंतो धन श्रीषनुनेपासेले माटेधं नवंतगे वलि हे अनु तुमाराविषे करतापद कहेतां करतापणो पण ग मन परिसर्पणादिक किटाविना करताबो एटले बीजाने करतापणो ते कियाथकोहोटो अनेतमे अक्रियतां करताबो मुक्तआत्मानिःक्रिटा. एमतत्वार्थटीकामांकझोडे ___ वलि प्रनुजीतुमे संतबो उत्तमगे तप्तपरिणाम रहीतो अजेटा कहे तां रागशेष परीसह वेरीएकरी अजेयो वलिकोईकाले विणसोनही माटे अनंतनो अथवा अनंतपर्याटा माटे अनंतनो ॥ इति ॥ २ ॥ अगमअगोचरअमरतुं ॥ अन्वयझवि समूहहो॥जि० ॥ वरणगंधरसफरसवि णु ॥ निज नोक्तागुणव्यूहहो ॥ जि०॥ श्री॥३॥ For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ देचोम्बा ___ अर्थ ॥ वलि हे अनु तुमारोस्वरूप तुबग्यानी जाणिसकेनही माटे अगमगे. वलि हेपनु तमेष्टिगोचरनथी माटे अगोचरो. वलि आयुकर्मना वयथकी प्राणवियोगथाये तेने मरणकहिटो ते तमेप्राण तथा मरणरहितो माटे हेअनुतमे अमरतो. वलिनुतुमे अन्वटर क हेतां जे सहेजनाव्यापक पोताना ग्यायकादिकगुण नी पतिसहित जे ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्यादिकगुणते अन्वयीगुणकहिटो तेहिजज्ञधि कहेतां संपदा तेहनासमुहबो अने दोषने टलवेकरी जे अकषाटादिक गुणकपना ते व्यतिरेकगुणकहिये तथा सतिसद्भावो अटलेजेनतेजे पा मियेते अन्वयीगुणकहीयेतेनासमूहबो वलिवर्ण गंध रस फरस तेपुजल धर्मने तेथीतुमे रहितो अनेनिज कहेतां पोतानो जे स्वरूपधर्म तेह नानोक्तानो गुणनाव्यूह कहेतां समूहो ॥ इतिबृतीयगाथार्थ॥ ३॥ अक्षयदानअचिंतना ॥ लानअयत्नेनो गहो ॥ जि० ॥ वीर्यसक्तिअप्रयासता।। सुवस्वगुणनुपनोगहो ॥जि०॥श्री० ॥४॥ अर्थ ॥ वलिहेअनुजी तुमारा अनंतागुणनी षटत्तिनीरीत कहे वीर्यगुण ते सर्वगुणने सहकारदिये तेम ग्यानगुणना उपयोग विना वीर्यफुरीसकेनही तेथीवीर्यने सहाय ग्यानगुणनो तथाग्यानमा रम णते चारित्रनो सहाटाने अने पररमण नकरे ते चारित्रने ग्याननो सहायडे एम एकगुणने अनंतगुण नो सहाटाजे हवे जेगुणसहाटादिये ने तेतोयात्मानागुणमां दानधर्म एमअनुजीतुमे पतिसमटा अनंत स्व गुणसहाटारूप दान तेअनंतोद्योगे पण किवारे दयपामोनही बीजा ज गत्रमा दानना आपनार केटलेकाले यथश्जाटा अने तुमे सादि . अनंतकाल स्वाधीनपणे वगुणरूप पात्रने अनंतोदान अदयपणेद्यो For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुपार्श्वजिनस्तवन बो एहवोदानगुण तुमराविषे अनेजेगुण ने जे गुणनीसहाटारूप स तिनीप्राप्ति ते लान बीजाने जे चिंतवे ते लानथाय तेपण निर्धार नही अने अनुजीतुमारे चित्तनाविकल्प रूप जे लानार्थीपणे तेनथ) तोपण लानअनंतोडे माटेअचिंत्यालाननाधणीगे एहवोलानगुण वलि हेअनुजी तुमे पोताना पर्याय ने पतिसमट जोगवोगे पण प यासविना भोगवोबो माटेतुमे टात्नविना प्रयत्नविना नोगमटीबो जीवना सर्वगुणनी पत्ति नोसहायाने वीर्य ते अनंतो अन्यसहाटाविना फुरीर योडे पणते विनापटासे एटले उद्यमविना वीर्यफुरे वलिसुचस्वगुणके. खनावी जे खगुण तेहनोनपभोग एपांच अंतरायनी प्रकृतिनाक्ष्य थी पांचगुणपगट्याने एटले स्वरूपनोदान स्वरूपनोलान खपर्याटोनो मोग स्वगुणनोनपभोग व सर्वपरिणति सहकार सक्ति ते वीर्य एरीतेध मप्रगटथया ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ एकांतिकात्यंतको॥ सहजअकृतवा धीनहो ॥ जि० ॥निरुपचरितनिरबंद सख ॥ अन्यअहेतुकपीनहो॥जि० ॥श्री० ॥५॥ अर्थ ॥ वलि तुमने सुखप्रगट्याले तेकेहवाले जे एकांतिक के०ए कलोसुख जे पाोउखपामेनही वलि अत्यंतको के जेथीबीजो व धारेसुख कोश्नथी एटले सर्वथाअधिक तेपण सहेज के वनावनो अकृत के अणकीधो पण कोइनोकरेलोनही ते पोतानेस्वाधीन पण पराधीननही. वलि निरूप चरिक्त के जेनपचाररूपनही अबता आ रोपने उपचारे कहिटो तेएमुखमांकाइ उपचारपणोनथी संसारमा सा तावेदनीनोमुख ते उपचरितसुख केमजे सातामध्ये सुखधर्मनी प अज्ञान नुले संसारी आत्मा सुख माने अनेवमेरा एने सुखकहेता नथी जेसंसारानिनंदी मोहमूढ परमार्थनेअजाणता विषयगृप इंघिय For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ दे०चो० बा० देहजनित सुखसुखमानेबे तेसुखनही यतः विसय सुहदुःखंचिय ॥ दुःखमियान तिबन्ध || तंसुमुवयारा ॥ ननुवटयारोविलातश्च ॥ १ ॥ इतिविसेषावस्यके तथा सातानो उदये ते पण स्वधर्म रोधक अनेषु जल कर्मविपाकबे तेसुखनही सायासायंडःखं ॥ तविरह मिय सुहं जनत्तेणं ॥ देहिंदियेसु दुःखं ॥ सुखंदेहिंदियाभावो इति ॥ १ ॥ म सदैकसुखते सुखनही अने जे सिद्दनिरूपम अनंत आत्मखनाव प्रा गभाव नोक्तापणे तेसुखजावो वलिनिरद्वंद के ० जेमाहे अन्यजी व तथा जीवश्व्यनो संयोगनही एटले परवस्तुनोनेल नथी अन्य के बीजा व्यनो हेतुपलोजेमांनथी वलिपीन के ० पुष्टले प्रबल बे मा टेश्री सुपार्श्व जननो आत्मिक सुख ते माहानंदबे इति ॥ ५ ॥ एकप्रदेसेताहरे ॥ अव्याबाधसमायहो ॥ जि० ॥ तपर्याय विभागता ॥ सर्वा कासनमायो || जि० ॥ श्री०॥६॥ 0 ॥ वलिनु तुमारा आत्माना एक प्रदेसने विषे अनंतगुण अनंतप र्याय मांहे एकप्रदेसे जे अब्याबाध गुण समाही रह्यो अनंतोबे व्याबाध सुखना पर्याय तेना केवलिनीबुद्धिये जेहना एक खंमना बेखमनथाय तेवा विभाग करिये तेलोकतथा लोकाकासना एके काप्रदेसे एकेको विभागराखिये तो पणसमायन ही एटले आकासना प्रदेसथीपण अनंतगुणावे ॥ यतः खित्तानं नावधम्मात गुणइति ॥ सदाखेत्रधर्मथी नावधर्म अनंतगुलाबे || इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ इम अनंत गुणनोधी ॥ गुणगुणनो नंदहो ॥ जि० ॥ नोगरमाच्या स्वादयु त ॥ प्रनुतुं परमानंदहो || जि० ॥ श्री० ॥ ७ ॥ For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुपार्श्वजिनस्तवन ५५ अर्थ ॥ इमके० एरोते हेपनतमे अनंतगुण ना धणीबो ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य अव्याबाध अमूर्तता अगुरुलघु दान लान भोग नपनो ग कर्ता मोक्ता परिणामीकता अचल अविनासी अनंत अज अना श्रयी असरीरी अलाहारी अटोगी अलेशी अवेदी अकषादी असंख प्रदेसी अचल अक्रिय सुझसत्ता प्रागनावरूप नित्य अनित्य एक अ नेक सत् असत् नेद अनेद नव्यत्व अनव्यत्व सामान्य विसेष इत्यादि अनंतगुण पर्यायरूप धर्मनाधणीगे तेगुणगुणनो जुदोजुदो आनंद जेम संसारीजीवने धननो सुखभिन्न रूपनोसुखभिन्न नोजननोसुखनि न देखबानोसुखभिन्न थानकनोसुखभिल तेमसिपात्मा ने पण गुण गुण नो सुख भिन्न भिन्न तेथीअनंतो अनंतरीते यानंद एटला सर्व गुणनोआनंद सर्वनोनोगपण केमके भोगव्याविना आनंदथतोनथी एटले अनंतागुणना आनंदनो भोगअनंतो तेमज तेसर्वगुण ने विषे अनंतोरमणपण तेम अनंतागुणने आस्वादीने नोगीथयोथको आनंदनेविलसे माटेअनंतो आस्वादपण तेथीहेषनु तुमे परमानंदबगे गुणगुणीनो अनेद उपचार बोलाव्यो जेपरमानंदमटी तेहिज परमानंद एहवापरमदेव ॥ इतिसप्तमगाथार्थ ॥ ७ ॥ अव्यावाधरुचिथई ॥ साधेअव्याबाध हो ॥ जि० ॥ देवचंपदतेलहे॥ परमा नंदसमाधहो । जि० ॥ श्री० ॥ ७॥ अर्थ॥ एहवापरमानंद रूप अव्याबाघ सुख श्रीपरमात्म पनुनेविषेले तेनि रधारकरयो तिवारेजाएयुंजे एहवोज सुखमाहारेविषेपण एहवोजाणप गोषगट्यो तेथी नव्यजीवने उपयोग आव्योजे हुंपण ग्यानादिअनंतगु णी हवेमाहरो सुझानंदनोग किवारेषगटे एहबान पटोगे जेजीव जे टमहिनामां जेमबपैयो वृषातुर थश्ने वरसादना अनिलाषेवरते तेनी परे अव्याबाध सुखनो रुचीअनिलाषी थश्ने पुजलसंयोग जन्यसुख For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ देचोम्बा तोविष नक्षण समांन आत्मस्वरूपना घातकजाणीने तेथीन नग्योथ को एक आत्मानंद किवारेप्रगटे पतेहना साधक जे मुनी राजना च रणसेवतां उदासीनथश्ने साधे के निपजावे आत्मिक अव्याबाध सुखप्रते एटले उत्तम जीव स्याछाद आगमश्रवणकरी पांचाश्र वथाविरमी सुषसंटामीथ देहनिस्पहिथको मोदनेसाधे यतःपंचासवे विरत्ता ॥ विसयविजुत्तासमाहिसंपत्ता॥ रागद्दोसविमुत्ता | मुणिणोसाहं तिपरमत्थं ॥१॥ आनस्सखीणमाएं ॥ सपाणविटोगेविजेसमाहिपटा। ॥ सावटाढ़गटाविहु ॥ मुणियोसाहंतिपरमवं ॥ २ ॥ एहवा मुनी राजत्रिकाल विषटाना अवांजक तत्वगवेषी तत्वरसिया तत्वानंदरुची पोतानो तत्व अनादिनो कर्मसंगे दबाणो ते प्रगट करवामाटे सकल पुन ल भावथा विरक्तथईने जे आत्मानिपजावेजे ते जीव निमित्तालंबनीथ खरूपालंबनकरतां स्वरूपमध्ये एकत्वपामीने दपक श्रेणी अरोहण करी घनघातिकर्म खपावीने सयोगी केवली थ पडे सैलेशीकरण करी निःकथिईन देवजेधर्मदेव मुनीराज तेमांहे चंदमासमान एहवो अरिहंतपद तेजीवपामे जेमां परमानंदनी समाधी अने सकर्मारूप अवस्था ते माहाव्याधि तथानिरावर्णनिः कर्मावस्था ते परमसमाधी रूप ते अवस्था श्रीसुपार्श्व परमात्माने अवलंबता जीवपामे माटे श्रीसुपार्श्व अनुनी सदासेवनाकरवी एहिज आधार त्राण सरणजे इति सुपार्श्वजिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ७॥ अयश्रीचंपनजिनस्तवन ॥ श्रीश्रेयांसजिनअंतरजामी एदेशी ॥ श्रीचंपनजिनपदसेवा ॥ देवायेजेहि लियाजी॥ आतमगुणअनुनवधीमलि या॥ तेनवनयधीटलियाजी॥श्री ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचंप्रनजिनस्तवन अर्थ ॥ हवे श्रीचंधन भगवान नी स्तवनाकहे अने सेवनापण लखावे ते श्रीचंतननामा आठमांप्रनुनी पद के चरणनीसेवा अथवा अरिहंतपद नी सेवना तेहनीजे हेवा के चाल रीत तेहमां जे हिलिया के तेवोटेपमधा तेहने अनुसेवन विना कालजाटोनही जे हने असंख्यात प्रदेसे श्रीप्रनुपरमात्म परमपूज्य नो आराध्य पणोडे ते जीवात्मा चेतनालदण असंख्यात प्रदेसें खधर्मकर्ता स्वधर्मना नो क्ता पोताना गुण ग्यानदर्शनादिक तेहनो अनुभव के भोगववो तेहेथी मिल्या एटले आत्मगुणनोगीथया तेज जीवनव के० चारगति रूप संसार तेहनोजेनया जन्ममरण स्वरूपरोधक कर्माधीनतारूप ते हथीटल्याने एटले यथार्थरीते जे परमात्मानसेवे ते अवस्य असंसारी थाटा तेमाटे टलवा योगथटा तेटल्या एन्याटा हरषनोवचन जे कारणमिले तोकार्यनीपजे तेम उत्तमजीव अरिहंत सेवनपरणम्या अनु मिल्यानाहरषे संसारसमुष नेगोपदसमानमाने. इतिप्रथमगाथार्थ॥१॥ अव्यसेववंदननमनादिक ॥ अर्चनवलि गुणग्रामोजी॥ नावअनेदयावानीईहा॥ परनावेनिक्कामोजी॥ श्री० ॥२॥ अर्थ ॥ ते सेवना चारपकारना । नामसेवना २ थापनासेवना ३ व्यसेवना ४ नावसेवना तेमांनाम तथा थापना ए बे सेवना सुग मजे अनेषव्य निदेपाना बेनेदले तिहां जे सेवनापदनो अर्थविधि जाणे पणतेकाले तेअर्थनो उपटोगनथी तेयागमथी व्यनिदेपो क हिटो ॥ अणुवन गोदवं ॥ इतिअनुयोगधारवचनात् ॥ हवे बीजो नो आगमथी व्यनिदेपो तेहना वलि त्रण नेदरे । तिहां जेजे सेवना नावरूपे परणम्याहता पणप्राणमुक्तथटा तेहना सरीर ते ज्ञ सरीर ६ For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक देचोम्बा व्यनिदेपेजे एपेहेलोनेद तथा जे जीवहमणातो सेवनापणे परणम्यान थी पण अनागत काले नावसेवनापणे परणमसे ते नव्यसरीर व्यनि देपो कहिटो एसर्वव्यनिदेपोते नैगमनका निमित्तेचे तेबीजोभेद अने जे सेवनानीप्रति अंतरंग नावसेवना ने कारणपणे वरते ते तद्व्यतिरि क्त व्यसेवना कहिटो एत्रीजोनेद तेमांहे जे टोगन। वंदन नमनादि कपत्ति ते व्यवहारनये अव्यसेवना अनेजे अंतरंगविकल्पे बहुमाना दिक ते झजुसूत्रनये व्यसेवना. एराते व्यसेवनानो खरूपको एट ले जे अरिहंतना चारनिदेष रूपकारण षष्टीगोचर श्रवणगोचर स्म रणगोचर पणे पामीने जेजीव वंदन करजोमन नमन मस्तकनमाव वो इत्यादिक अन्युथान अंजनी आधीनतादिकरण आचरन चंदन पुष्पादिके करीने बलिगुणग्राममुखथी मधुर ध्वनिट कहेवा ते व्यसे वा जाणवी अने जे आत्मा संसार पराङ्मुख अरिहंतनागुणनो अत्यं त बहुमान असंख्यात् प्रदेसे अरिहंतनी अरिहंततानो आश्चर्य अद्नू तता तथा अरिहंतनिमित्तना विरहें अक्षमता अने अरिहंत ईहा रूप परिणाम तेथीअभेदपणे थवानी भावपणे निपजाववानी ईहा तेषव्यसेवा लेखे नावरुची पणाविना व्यपत्ति ते बाललीला समान तेमाटे हांकह्यो जे नावथी अनेदथवानीईहा सहीत ते व्यसेवा जाणवी व्य पत्तिविना एकलोनावधर्म पण तत्वार्थटीकामां आचार्य साधनक सोडे तथासम्मतिग्रंथे ॥ चरणकरणप्यहाणा ॥ ससमयपरसमयमुक्क वावारा ॥ चरणकरणस्ससारं। नचियसुचनयाणंति ॥५॥ नाणाहीवर तरंहीणो ॥ विहुपवयणंपनावंतो ॥ नटाउक्करंकरंतो ! सुविधप्पाग मोपुरिसो ॥१॥ इत्यादिक वचने नावधर्म ते मुख्य व्यविना भावते गुणकारी पणनाव साध्यरुचीविना एकलोच्यते कामनोनथी एपरंप राजे वलिपरनाव जे आत्मधर्मथी अन्य पुन्यबंध सुनकर्मनाविपाक ते For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचंपनजिनस्तवन યુપ हनीकांमना अनिलाषाविना जे व्यसेवना ते कामनीजाणव॥इति॥२॥ भावसेवअपवादेनैगम ॥ अनुगुणनेसंक ल्जी॥ संग्रहसत्तातुल्यारोपे॥ नेदानेद विकल्पंजी॥श्री० ॥३॥ अर्थ ॥ हवेभावनिदेपाना बेभेद । आगम नावनिक्षेपो २ नो आगम भावनिदेपो तिहां नावसेवना ना पदनाअर्थ ने जाणतो थ को ते उपयोगे पटते तेपुरुषने आगमथी भावसेवना कहिए आधारा धेयनो अनेदग्रही निदेपोकरयो तथाजे जीव भावसेवनायें परणम्या तेहनी नक्ति साधना परिणतिते नो आगमथ भाव सेवना कहिटो इं हावस्तुधर्मे विचारतां आत्मव्यनेविषे सेव्य सेवक नावनथी सत्ताये सर्वषव्य समान अने कोश्वव्य कोईनोधर्म लेतोदेतोनथी पण जे सं सारीजीव ते अनादिनो अढारपापस्थानके परिणम्यो विनाव नावीतथ को कर्ममटीथईने संसारी पुजलनो नीखारी तत्वनोचूक्यो मोहनेबंदी खाने उखमयीथयो ते जिवारे स्वरूपनेपामे तिवारे सिछपरमेश्वरथाय तेतो श्री अरिहंत निःकर्म तत्वनोगीने पुज्यपणे अविलंबतां नीपजे मा टे स्वकार्य करवाने जे परमात्मा निष्पन्नसिक तेहनेनिमित्त कारणपणे अविलंबीने अंतरंगपरिणतिथी सेवे ते जिहांसुधीएनी सुझसत्ता संपूर्ण पदेनथायतिहांसुधीएसेवकअनेसंपूर्णसुधानंद मयोथया ते सेव्यजाणवा एनिमित्तावलंबीसेवा तेअपवादसेवा अने तेसेवाकरतां पोतानो साध्यनि पजाववो ते उत्सर्ग सेवाकहिटों ऊक्तंच कक्कोसोन स्सग्गो॥जस्ससंपूणम मल सद्भावो ॥ अववान तस्साहण॥तवुढिकरोगणेगविहो ॥इति॥१॥ जेहनो नत्कृष्टो संपूर्ण निर्मल निर्दोषवनावथयो जेथाआगल बी जीअवस्था कांइनही तेतत्सर्ग कहिटों अने ए उत्सर्ग ने निपजाववा For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोबा. माटे कारणरूप जे मारग अंगीकार करवो तेअपपाद कहिट इहां से वामध्ये जे आत्मसाधन थयो तेत्कृष्ट अने तेआत्म साधन निपजा ववाने जेकारण अविलंब्या जोइए ते सर्वअपवादे जाणवो तेमां अ रिहंतनी सेवना ते आत्मसाधननो कारण तेथी एअपवाद सेवनाने ते सातनयेकरी सातनेदे तेसातनटानोसंदेपे स्वरूप बतावे. १ अनेकेगमाः संकल्पारोपांशाश्रयाया यत्रसनैगमः जिहां अनेक नामादिक गमा ग्रहवाये तथा संकल्पे आरोपे अने अंसे पण वस्तुनेमाने तेनैगमनय कहिये. र संगृहाति वस्तुसत्तात्मकं सामान्यं ससंग्रहः जे सर्व ने संग्रहे स र्वनोग्रहणकरे वस्तुनीति सामान्यपणेग्रहे तेसंग्रहनय कहिटों. ३ संग्रहगृहीतं अर्थ विशेषेण विनजतीतिव्यवहारः संग्रहनटो ग्रहो जे सामान्य तेहने अंसशंसनेदे जुदोजुदोवेहेचे तेव्यवहारनयकहिये ४ झजुअतीतानागतवक्रत्वपरिहारेण शजुसरलं वर्तमान सूत्र यतीतिझजुसूत्रः जे सरल वर्तमान अवस्थानेग्रहे अतीतअनागतनी वक्तव्यता ने लेखनही तेझजुसूत्रनटाकहिये. ५ शब्दार्थ रूप तत्धर्मरूपपरिणतिः इतिशब्दः प्रकृतिपत्यादिकव्या करण व्युतत्पत्ति ए सिघ थयेलोशब्द तेहमा जे पर्यायार्थ बोले तेप णे परणमे वस्तुने वस्तुमाने तत्वार्थटतौ शब्दवसादर्थ प्रतिपत्तिरितिशब्द नयश्च शब्दानुरूपं अर्थमिच्छति ॥ तेशदनाकहिये. ६ सम्यक्षकारेणार्थ पर्याटावचनपर्यायतो सकल निल वचन निन भिन्नार्थत्वेनतत्समुदाटयुक्ते ग्राहकः इतिसमनिरूढनयः॥जेवस्तु नाविद्यमान पर्याय तथाजेनामनायावत् वचनपर्याय ते सर्व शदे नि न यथाघटकुंन इत्यादि जे शब्देनिन तेहनोअर्थ पण तनावरूपनि न ते सर्व वचनपर्यादा रूपपरणमति वस्तुने वस्तुपणे आहे ते समनि रूढनयकहिये For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचंपनजिनस्तवन ६१ ७ सर्वअर्थपर्याये स्वक्रियाकार्यपूर्णत्वेन एवंटयथार्थतयाभूतः एवं भूतः सर्वअर्थपर्याय अनंता ते स्वधर्मे संपूर्ण पोतानी क्रियाकार्यपूर्ण जे वस्तुनोधर्म तेतिम संपूर्ण पणेथयो ते एवंनूतनय कहिये. इहाश्रीजिननगणीदमाश्रमणे १ नैगम २ संग्रह ३ व्यवहार ४ झजुसूत्र ए चारने च्यार्थिक पणे व्यनिदेपे मान्या अने शब्दा दिक त्रण नयने पर्यार्थिकपणे नावनिदेपें मान्याने अने सिरसेनदिवा करे आदना वणनटाने व्यपणे कह्याने तथाझजुसूत्रादिक चारन यने नावपणे करावे तेनोथासय कहे वस्तुनी अवस्था त्रण १ प्र त्ति र संकल्प ३ परणति एत्रणनेद तेमां जे योगव्यापार संकल्प ते चेतनाना योगसहित मननाविकल्प तेनेश्रीजिननगणीक्षमाश्रमण प वृत्तिधर्म कहेले तथा संकल्पधर्म ने उदेक मिश्रपणामाटे व्यनिदेपे कहे मात्रएक परणति धर्म ने भावनिदेपोकडं. ___ अनेसिझसेनदिवाकरें विकल्प ते चेतना माटे भावनय गवेष्यो बे अनेषत्ति नी सीम व्यवहारनयने अने संकल्पते झजुसूत्रनये बे तथा एकवचनपर्याय रूप परिणति ते शब्दनय अनेसकल वचन प र्यावरूप ते समनिरूढनय तथा वचन पर्याय अर्थ पर्याय रूप संपूर्ण ते एवंभूत नय माटे ए शब्दादिकत्रणते विसुझनय भावधर्म मध्ये मुख्य नाव ने उत्तर उत्तर सुदमता ना ग्राहक एरीते नयनो अधि कार संदेपेकसो हवेएसातेनयेकरीअपवादनावसेवनानासातभेदकले. १ श्रीअरिहंतस्प स्वजाति अन्यषव्य तेहना स्वरूपनेचिंतवे जे चेतना नो अंस अनुनागुण ने अनुजाया संकल्प पहेलाकिवारे नथ योहतो ते संकल्प विषयादिकथी वारीने अनुगुणेजोमयो ए निमित्ता वलंबी पणामाटे अपवाद अंतरंग परिणाम नावसेवना संकल्प रुपए कगमे माटे नैगमना जाणवी एआत्मसिपि नीपजाववानु कारणले. For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो०वा० श्री अरिहंतदेवी निष्पन्न असंख्यात प्रदेशे निरावरण सर्व व सक्तिने चिंतववे पोतानी सत्तापण तेहवी विचारे उभयनो तुल्यारोपकरे अणनीपनानो पश्चातापकरे नीपनानो परमात्मधर्मनो बहुमानकरे त था व्यथी क्षेत्रथी कालथी नावथी श्रीप्रभुजी तथा माहरो व्यनि नबे अने सत्तासाधर्मे अनेदबे एहवा सापेक्षपणे जे बहुमान युक्त स त्ताप्रगट करवानी रुचिवंत एहवो विकल्प ते संग्रहना अपवाद नाव से वनाकहिये. इतिवृतीयगाथार्थ || ३ || ६२ व्यवहारेंबदुमानज्ञाननिज ॥ चरणें जिनगु एरमणाजी || प्रनुगुएाच्या लंबी परणामे ॥ रुजुपदध्यानस्मरणाजी ॥ श्री० ॥ ४ ॥ ३ अर्थ पोताना कट्योपसमनावि ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य तेम ये प्रतिसमये सासन श्रीअरिहंतनी सुखरूप संपदा केवलज्ञानादि क उपगारसंपदा देसनाधर्म कथन ते सुधनपगारीपणो चोत्रीस प्रति सयपत्रीस वचनातिसय आप्रातिहार्य रूप संपदा तिहांज उपयो गराखे ने किवारे श्री प्रभुजीनी प्रभुता विसारेनही बहुमान मध्ये श्री वीतराग ते सर्वथ] अधिक मोटापले सरदहे वीर्यते जननक्किने वि बेफोरवे चारित्र ते श्री अरिहंतनागुणने विषेरमण एकत्व तन्मयतापलो पामीने रहे इहांजे कयोपसमी आत्मगुणनीप्रवृत्ति नासनादिक ते सर्वश्री अरिहंत अनुजानीथयो एव्यवहार नयेनावसेवनाकहियें ४ प्रनुश्री परमात्मा अयोग। तेनागुणने घालंबीने च्यादरीने परिणा मजे अंतरंग आत्मश्व्यनी क्षयोपसमी परणति सामान्य चक्रनाव रूपे तेमध्ये तन्मयपणे जेनहींची सरे एवास्मरणपणे तदुपयोगेर हे ते जि हांसुध) धर्मध्यानरूपे घालंबीसाधे तिहांसुधी जुमूत्रनय अपवाद For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचंप्रनजिनस्तवन ६३ भाव सेवनाकहिये एपण आत्मसाधनरूप उत्सर्गनावसेवा नो कारणप णोडे तेथीएअपवादसेवाकही ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ सब्दसुक्लध्यानारोहणासमनिरूढगुण दसमेजी।बीयसक्लअविकल्पएकत्वे ॥ एवंनततेअममेजी ।। श्री ॥५॥ ___अर्थ ॥ हवेश्रीअनुरूप सुचव्यनेबालंबीने जे जीव नावमुनी तत्वरुचीथ दर्शन ज्ञान चारित्र ए रत्नत्रया मटी परणमाने जे प्रथक् वितर्क सप्रविचाररूप सुक्ल ध्यानपणे परणम्यो एटले शजुमूत्रमा प्र सस्तउदैक सहित अरिहंतगुणनो इष्टतादिक परिणामने सहकारेहतो अ नेजिहांशब्दनाथयो तिहां प्रसस्थालंबनीनो कार्यपमेनही साधकजे नव्यजीव तेहनागुणते सर्वप्रनुगुणथ। एकत्वथ टी स्वरूप एकत्वतापांम्या सुक्कुध्याननी सुछताने परणम्या तिवारे शब्दनय अपवाद भाव सेवनां कहिये इहांपणनिमित्तपूर्वकममाणाजे तेमाटे अपवादे नावसेवनाकहि अथवा साधनपणामाटे अपवादकहिबोलाव्यो. ६ जेवारे साधकजीव दसमे सुहमसंपराटा गुणवाणेचमयो सुक्ल ध्यानना प्रथमपाश्यानेअंतेआव्यो पर्मनिर्मल नाव वरयो तेवेलाएं जे टली आत्मगुणनी साधनकरतां योगवीटनेसहायें साधकताथाय ते अपवादे अने नत्सर्गमार्गे टोगधर्मपण आत्माने तजवादोगजे ते पण तेकाले साधनारूप तेमाटे इहांकारणीकरह्यो पणस्वरूपमध्येनही अनेजेटलो कारणरूपलहिये तेसर्वअपवाद माटेदसमेगुणवाणे सम निरूढ नटो नावसेवनाने एपणसाधकनाआसन. ____जिवारे सुक्लध्याननेबीजेपाश्टो एकत्व वितर्क अपविचाररूपे चल्यो भावमुनीनी निरविकल्पसमाधीवरयो स्वरूपएकत्वे परणम्यो तिवा For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ दे चोबा० रे साधनानोपूर्णपणोथयो तेमाटे एवंभूतनटा सेवनाथटी तोकोऽपूजे अटोगीगुणताणासुधी साधना तोश्हां दाणमोहगुणगणे सेवनानोए वंभूत किमकह्यो तेनेउत्तर जे अयोगीसुधीतो उत्सर्गसाधना अनेर हांतो अपवादसाधनानो अधिकार तेथी अपवादसाधनाश्हापूरीथ टी वलिकोइपुजे अमम निरमोह अवस्थामा स्योअपवादपण तेह नेउत्तरजे सुक्लध्याननो बीजोपायोपण हजीसेवननोएकात्मधर्मेरा खवो तेप्रयोग हजीसंयोगवीर्य तदैकानुगतनो सहाय तथाश्रुतझा ननो आलंबन अनेकटयोपस मिश्रुतते उत्कृष्टत त्सर्गे मूलआत्मिकव स्तुधर्मेनथी अनेतेहनो आलंबन तिहांसुधीअपवाद तेमाटे निर्मोही बारमेगुणस्थानके एवंनूतनये अपवादे नावसेवाजाणवी एअपवाद ना वसेवनाना सातनटोकरी सातभेदकह्या इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ उत्सर्गेसमकितगुणप्रगट्यो ॥ नैगमष जुताअंसेंजी ॥ संग्रहातमसत्तालंबी॥ मनिपदनावप्रसंसेंजी॥ श्री० ॥६॥ अर्थ ॥ हवेउत्सर्गमार्गे भावसेवनाना सातनयेक सातनेदकहे। जेटलो आत्मधर्मरूप खकार्यनीपजे तेउत्सर्गसेवाकहिटो एटले क रवाटोग जेकार्य तेउत्कृष्टकरवो पणतेमांजेटली कणताहोये तेमाटेन यफलाववाजोश्ये तेकहे. १ जेवारेआत्मानो संकादिपांचअतिचाररहित दायकआत्मिक तत्व निरधाररूप सुघसमकितरूपप्रगट्यो तिबारे एसाधकथात्मानो एक अंसेपनुतानोगुणप्रगट्यो ते आत्मानो एकअंसेकार्यथयो तेमाटे नैग मनटानसर्गनावसेवाथटी इहांकोइपुबसेजे गुणनीपनोतेने सेवाकेमक होतो तेनेउत्तर जेतन्मयपणेथश्रेहवो एसेवनानोअर्थ तेहांतन्मयपणो For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचंप्रनजिनस्तवन थयो अथवा जोपणगुणतोप्रगट्यो पणहजीआत्माना अनंतगुणनो साधक जेटलो उपादानकारणपणो तेटलो नत्सर्गसाधन तेमाटे एने उत्सर्गभावसेवागवेषोडे नक्तंच ॥ आप्तमीमांसायां ॥नवयानस्सगो।। निमित्तमववस्यसुचदेवोत्ति॥ एटीकामध्ये तेथी नपादान निष्पत्ति तेन त्सर्ग सेवाजाणवी आत्माना अनंतगुण तेमाथीएकसमकितगुणप्रगट्यो तेआत्मानोएकअंसपगट्यो तेहिज नत्सर्गआत्मगुणप्रभुतापगटी. २ जेवारे तेनावमुनी यद्यपि पोतानी आत्मसत्ता आवरी पण जेबतीहती तेनिरधारकरीनेनासन गत करी तेहवे खसत्तालंबी सुध ममयीथयो तेहिज आत्मसत्तानासनरमण एकत्वसत्तासन्मुखथको संय हनय उत्सर्गनावसेवनाथ एटले एजीवाजसुधी स्वसत्तालंबीथयो हतोनही तेथमो एटलोउपादानसमरयो माटेसंग्रहनयसेवाकहियें. ३ जेवारे तेसाधकजीव अप्रमत्तमुनीराज अवस्थापामीने नपा दानकारणतासर्व वरूपालंबीकरी ते अवस्थाात्मानी परिणाम वृत्ति ग्राहकता व्यापक्ता नोक्तता कर्तता आदिक सर्व वरूपेवल गीते वारे अतरंग वस्तुगतजेव्यवहार ते वस्तुखरूपेथयो तेव्यवहारनय उ त्सर्गनावसेवना कहिटो एमुनीपदनोजेनाव तेहने प्रसंसे के वखाणे इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ रुजुसूत्रेजेश्रेणीपदस्थ॥ आत्मसक्तिष कासेजी॥ यथाख्यातपदसब्दस्वरुपे । सुधधर्मनल्लासेजी ॥श्री० ॥ ७ ॥ ४ अर्थ ॥ जिवारेआत्मा दायक श्रेणीपदेरह्यो थको पोतानीआ स्मिकशक्ति प्रगटकरे ते झजुसूत्रनटा नत्सर्गभाव सेवाजाणवी. ५ जिवारे आत्माने टाथाख्यात हाटाक चारित्रप्रगटथयो तिवा For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ दे०चो० बा० रे जे चारित्र सहकारी आत्मसक्ति प्रगटे सुधा कषायी असंगी नि स्पृहरूप सुधधर्म नासपामे चारित्रसहकारी जे वीर्यादिक तेपजेक षायानुजायी फिरताहृता ते सर्व च्यात्म रमलीथव्या ए धर्मजेय्लोवल्ला सपाने ते सर्व सदनये उत्सर्गे नावसेवनाजालवी इहांखरूपर मणी असहा मीथयो ते जेटलो अन्यच्छा सहायीपणोनीपनो तेटलोत्सर्ग सेवन जाबो इति सप्तमगाथार्थ ॥ ७ ॥ नावसयोगीच्छा योगी सैलेशी ॥ अंतमदु गतेजागोजी ॥ साधनताएं निजगुव्य क्ति ॥ तेदसेवनावखागोजी ॥ श्री० ॥ ८ ॥ ६ अर्थ || जेवा एयात्मा सर्वघनघातिकर्मक्षयकरीने अनंतज्ञा न अनंतदर्शन अनंतचारित्र अनंतवीर्य एचारमोटा अनंतकप्रगटक रथाएचारगुणने शंकर तथा सहकारे जे बीजावक्तव्य तथांच्यवक्तव्य अनंता धर्मी गुण प्रगटथया ने यात्मिक च्यानंदीधया तेवारे स मनिरूढनये उत्सर्गभावसेवाथयी. ७ जेकाले सैले सीकरण करे आत्मप्रदेसनोधनकरे योगी केव लिपलो तिवारे एवंभूतनये उत्सर्ग भावसवनाजालवी कोइपुल से जेए वंभूत मोहविषे केमकहेतानथी तेनेत्तर जे मुक्त आत्मा तो सिबे तेने नवोकांनी जाववोनथी अनेअयोगीने तोसित्तानीपजाववीबे माटे जेटलो कार्य अधुरो तेटलो साधनकहीये खनेजे साधना ते सेवावे माटे साधनानोअंत अयोगीकेवलि गुलाबे तेथी उत्सर्गना वसाधना तेच्अयोग केवल गुणवाकही अनेसिनो एवं भूतते मुक्तच्या त्मावे एरीते साधना लखावी एवत्सर्ग सेवनानासात टाकलां. हवे एनोरूप बतावेवे जे साधनाकरतां निज के० आत्मासेव For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वंधनजिनस्तवन ना वखाण के कहो एटले जेटली साधना तेटली अपवादसेवा भने तेसाधना करताथका जेटली नवीआत्मसक्ति प्रगटवानी कार णतासहित जे आत्मसक्तिप्रगटे ते उत्सर्ग नावसेवा जाणवी अने सचनिष्पन्न सिपअवस्था तेसाध्य अने जे प्रगटसुछ आत्मधर्म पण आत्मसंपूर्णताने कारणपणे थतीसेवा तेनार्गनाव साधना जाणवी अने नत्शनावसाधना तेकाी अने निमित्तालंबी अपवाद नाव सेवा तेकारणने सेषव्यसेवनानोकारण एरीते कारणकार्यनाव जोमवो ॥ इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७ ॥ कारण नावतेहअपवादे॥ कार्यरूपनुत्स गैजी॥ आत्मनावतेनावव्यपद ॥ बायप्रवत्तिनिसर्गेजी ॥ श्री०॥॥ . अर्थ ॥ इहां जेटलोकारणभावते अपवादेजाणवो अने जेटलो कार्य स्वगुणनिष्पत्ति तेटलो उत्सर्गजाणवो एनत्सर्ग तथाअपवाद नालक्षण तथा फलावणी सर्वहकल्पनाष्यमां तथातेनीटीकाथी विस्तारपणे जोश्लेजो अने जेटलो आत्मिकनावप्रगट्यो तेभावनि देषोजाणवो एपथ्य नावनो निसर्ग सहेजजाणवो एहवीश्रीचंप्रनस्वामि नी सेवाटो जेहलिया ते आत्मधर्म संपूर्णवरे इतिनवमगाथार्थ ॥ए। कारण नावपरंपरसेवन ॥ प्रगटेकारज भावोजी ॥ कार्यसिद्धीकारणताव्यय ॥ सुचिपरणामिक नावोजी॥ श्री० ॥१०॥ हवे कारण नाव जे श्रीअरिहंत तेहनी परंपरायें अव्यसेवनाकरतां नावसेवाप्रगटे अने नावसेवाथी उत्सर्गधर्मप्रगटे अने नत्शर्गधर्मप्रग ट्यो तिबारे पोतानोकार्य सुस्वरूप अनुनवरूप प्रगटे अने कार्यजे For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ दे०चो०वा० सुध सितारूप ते सधे के० नीपने कारण ताजेहती तेहनो व्यय के० नासथा कार्यनी पूर्णतायें कार कार्टानीपने कारण धर्म रहे नही तिवारेसुंरहे ते जेसुची के० पवित्र भावकर्म sव्यकर्म नो कर्म रूप हेतु सद्भावरूप मलरहित जे आत्मानो परिणामिक नावबे जेपणेएनोंमूल लक्षण्बे खव्य स्वक्षेत्र खकाज खनाव रूप तेपणो रहे परमानंद विनासी अवस्थावरें ॥ इतिदसमीगाथार्थ ॥ १० ॥ परमगुणी सेवनतन्मयता || निश्चयध्या नेच्यावेजी ॥ सुधातमा नुनवच्या श्वा दि || देवचं रूपदपावेजी ॥ श्री० ॥ ११ ॥ अर्थ || एरीते परम के ० उत्कृष्टगुण जे श्रीअरिहंत सुचदेव तेहनी सेवा च्यतिदुर्लभबे तेपामीने तेहमांहे तन्मयथनीने जे जीव निश्वय के० निरधारे अथवा निश्चय के० पोतानेस्वरूपध्याने एकत्वतारूपे जे ध्यावे तेजीव सुखनिकलंकजे आत्माचिदानंदवन तेहनोजे अनुभव के० यथार्थज्ञान वेद्यसंवेद्यपद सहित तेहने असवादिने देवजे निबंध च्अथवाभवनपति प्रमुख चारनिकायना तेहमांचंद्रमासमान नावउद्यो त समता सितल तानाकारण जे अरिहंत रूप पदस्थानक ते प्रतेपामे एटले अहो नव्यजीवो जोतमेपोताना आत्मसुखना ईबकथयाबो अनेसुद्दा नंदनेविलसो एवीच्यनिलाषावे तो श्रीचंदनस्वामी सुदेव असरना सरण यगत्राधार यगत्रजीवनापरमोपगारी मोहतिमिरनो ध्वंसकरवाने नाव सुजेहवा कर्मरोगना परमवैद्य माहामाहए माहागोप माहानिय मक माहासार्थवाह सम्यक् षष्टी जीवनांप्राए देस विरतिने तो माहामंत्रनी परेयपवायोग्य साधुनिग्रंथ जेहनी आज्ञायें चालेबे उपाध्यानाक दय रूपसरोवरनाहंस आचार्यजीनानाथ गएधरना साक्षत् मोक्ष हेतु For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥ श्रीसुबुद्धिजिनस्तवन स्याघादधर्मनान पदेशक एहवा श्री अरिहंतदेवनी सेवाकरो एहजया धार एश्रीचंघननीसेवा जिहांसुधि अनारीसंपूर्ण सिझता नथाटा ति हां सीमअखमरेहेजो एहिजसारखे ॥ ११ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथश्रीसबुद्धिनाथ जिनस्तवन थारामहेलाकपरमेहजरुखेवीजलाहोलान ॥ जरुखे० एदेशी ॥ दीगेसबुद्धिजिणंदसमाधीरसे नरयोहोलाल ॥ स० ॥ नास्योआत्मस्वरूपानादिनोवीसरयो होलाल ॥ ॥ सकलविनावनपाधीयकीमन नसस्योहोलाल ॥या सत्तासाधनमार्गनणीए संचरयोहोलाल ॥ न ॥१॥ अर्थ ॥ कोश्कनव्यजीव अनादिकाल नो मिथ्यात्व असंयम क पायटोगरूप व्यनाव हेतुपणे परणम्यो एकेंजीटा सुदमबादर तथा बेंजी तेजी चौरें िपचेंडी पणे अनंतानवसुधी भवचक्रमांफरतो अने क कुदेवने देवबुदिएमानतो अथवासुदेव श्रीवीतराग तेहने कर्तृत्वा पणो प्रमुखदोघेमानतोथको कोइकाले श्रीप्रनुनी अनुतादीनीनही ते किवारेक नवस्थतिनो परिपाककरी कोश्कपुण्यनाउ दये श्रीसुबुधिना थ परमेश्वरनी मुशादीती तेअरूपी अनंतगुणअनुतापणे प्रधान नासन गोचरथटी तश्रीअरिहंतनी अन्तादेखीने उलसीतचिते ते नव्यजीव श्रीवीतरागनी उपगारतापाम्या ते प्रीतेहरषाबोले जे दोनो के नास नपणे प्रतितसहित सुबुधिनाथअनुजीदीतो पणते केवोदीतो जे समा धी के आत्मगुणनो विपरीतप्रवर्त्तन ते उपाधी अथवा विषटा कषा य ने अनुयायीपवर्त्तन तेपण नपाधी तथाजे तप्तनत वक्रता परिणा मादिक सर्व विनाव तेनानिवृते सकलगुण वरूपपरिणामीथये जे आ For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०ची०वा० त्मगुणनी वस्तुगतेथीरता तेसमाधी तेहनोरस तेणेकरी नरयो के ० संपु एटले परमसमाधीमा) श्री सुबुद्धिनाथदीवो दीवाथी एकमोटोला भथयो जे नास्यो के० जालपणामां आव्यो पोतानाच्यात्मानो स्वरू पते सु६चिदानंदल चल जाएयो जेानादिव्यतितकालनो वीसरयो मुली गयोहतो तेश्रो प्रदीगंनास्यो तेथी सकल के० सर्व विभावदोष आत्मिक सुतारूप जे उपाधी तेहथक) मन के ० चित उसरयो के ० पाबोहट्यो जे एविनावपरिणति हुंनही तथा विभाव परिणतिनो हुं कर्ता पणनही एमुने करवो नोगववो परणमवो घटेपनही ते जेटली क योपसम) आत्मपरिणति तेसर्व रागद्वेष असंयमथी निवृर्त्तबालागी अ ने सत्ता के जे अनंतगुणरूप च्यात्मानीसत्ता तेहनासाधननी रीतके ० चालमार्ग ते सम्यक्ज्ञान सम्यक्दर्शन सम्यक्चारित्र रूप जे खात्मि ककार्य तेनल एनव्यजीव परणम्यो जेथी सत्ताप्रगटथाये तेमार्गे ए आत्मासंचरयों के ० प्रवत्य ॥ १ ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥ ० ७० तम प्रनुजा एांगरीत सर्वजगदेखता हो लाल || स ० ॥ निजसत्तायें सु६ सदुने लेखता हो लाज ॥ स ० ॥ प रपरतिच्छेषपणेन वेखता होलाल ॥ प० ॥ नो ग्यपणे निजसक्तित्र्अनंत गवेषता होलाल ॥ ० ॥ २ ॥ अर्थ || वलिप्रभुजीतुमे टागषटच्यात्मक ते केवलज्ञान तथा केवल दर्शक देखोबो पांगरीते एटले रागदेषरहीत जे एक आत्मानो जाएंगगुणवे तेथे सर्व नाव जालो तेमांसुनपरिणामी वस्तुनाया हकनथी अने असुनपरिणामी वस्तुनाध्वेषीनथी यथार्थरीते यगत्रनाजा बो कर्त्तापलो नोक्तापलो ग्राहकपणो स्वामीत्वपलो एटलावानाटाली बुधिरहित सर्व भावना जाएंंगबो वलिप्रभुजी तुमे केहवाबो जे सर्व For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुबुद्दिजिन स्तवन व्यने पोतानीसत्ताधर्मे सुध निरदोष निसंगले खोबो एटले पंचास्तिकाय मां त्रणच्छस्तिकाटयतो परसंग विनाबे अने पुजलनो संयोगीपणो नेदसं घातधर्मकर्तापनथ। जातेख सत्तानेलोपतोनथी ने जीवनेटाद्य पिछानादिविभावले परंतु सत्तारूपेमूलधर्मेजबे तेप्रभुजीतु मे जीवत्वप लो मूल सत्तायें जले खबोबो तेमांपरपरिणति नावच्छासुधता ज्ञानावरणा दिकर्म कामक्रोधादिक सर्वने अध्येषपणे आत्मधर्मथ भिन्न माटेनवेषो बो तेनोच्यादरकरतानथी ध्वेषीपणाजेतजे तेनेत्यागकहिये समतामाटे त्यागवर्णव्यो ध्वेषीपलोतोपरपरिणतिबे वलि हेप्रभुतुमे भोगपले पोता नो भोग भोगवाढो निजसक्ति अनंतगुणपर्यायरूप परमचैतन्यरूप परमानंदरूप सहेज सुखरूप एवीजे अनंति तत्वविलासता तेनेोग्यप गणोबो स्वधर्मनोज भोग्यजालोबो माटेतुमे परमात्मतारूप परमध नानोगी बोजी ॥ इतिछतिगाथार्थ ॥ २ ॥ दानादिकनिजनावहताजे परवसादोलाल ॥ ६० ॥ ते निजसन्मुख नाव ग्रहील ही तु मदसा होला ल ॥ ० ॥ प्रभुनोच्अद्भुतयोग सरूपत एपीरसाहोजाज ॥ स ० ॥वा सेनासेतासजासगु एतुऊजिसाहोलाल || जा० ॥३॥ अर्थ || दानादिक आत्मधर्म जे कयोपसमीले तेसर्वपरानुजायी बे पुलानुजायबे ते अनादिपरवशथईरह्मावे ते सर्व हे प्रभुताहरी सुरू वी तरागदसा लही के० पामीने तेक्कयोपसमीनाव सर्व यात्म सत्ताने स मुखपग्रहे लावलंबनीथाटा एटले अरिहंतावलंबनीथयापले ए हज सर्वगुण स्वस्वरूपावलंबनीथाय ने हेप्रभुजीताहरी योग के ० र त्नत्रयीनास्वरूपनीरसा के ० भूमीका ते निर्विकार निःसहाय निःप्रयत्न नि मेल निरंतर कलावबोधक जाए पलो तेज्ञान ने यथार्थ सर्वसापेक् ܐܓ For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . दे. चोम्बा अदूषीतपणे सकलपदार्थने निरधारकरतोदर्शन निराग निश्चल निरामय तत्वैकथिरतापरिणामरूप चारित्रधर्म एरत्नत्रयी ते अनंतख नाव अनंतप र्यायनत्पाद् व्ययपूर्व नेदाभेद अस्तिनास्तिरूप स्वरूपनेलीधेवतेंडे एहवी रत्नत्रया हेपरमेश्वर ताहरेविषेपरणमि तेहनीप्रतित ते वासना तथा न लखाण ते नासन ते तेहनेथाटा जेहने तुजके तुमाराजेवागुणप्रगट्या होटो एटले हेनाथ हेसर्वा हेत्रैलोक्यदीपक ताहरीरत्नत्रया ते तुजस मानगुण होवे तेहनाजनासनमांआवे इतित्रतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ मोहादिकनीमिअनादिनीऊतरेहोलाल॥॥ मलअखंमअलिप्तस्वनावजसांनरेदोलाल ॥स्व०॥ तेतत्वरमणसुचिध्यान नगीजेआदरेदोलाल ॥न॥ तेसमतारसधामस्वामीमुशावरेहोलालास्व०॥४॥ अर्थ ॥ हेअनुताहरीमुखाते परमसमतानोधाम एहवी सकलपर भाव रहितपरिणति तेबीजानेनहोटो पणजे मोहेमुज्या परिणाम तेहनीधूमि स्वरूपथग्राहकता परनावग्राहकता परनावरमणतारूप विनावताते अनादिकालनी आत्मानेविषेचे इहापश्नजे विना वताअनादिनीने तेात्मानो स्वपरिणाम किंवापरपरिणाम जोस्वप रिणामतो विनावसावास्तेकहोगे अने परपरिणाम तो अनादिकेम कहिये तेहनेउत्तर जे आदि के ० पहेलोजीव अनेपकर्मकहिटोतो पहला सिझपकर्मलागे अथवा पेहलाकर्म अनेपजीव एमकहिये तोक विनाकर्म केमसंभवे एपदनपजे माटे अनादिसहजातसंयोग ने तिहांकोइपुजे ननयसंयोगएकठोकहोतो कारण कार्यनो संबंध कि मरहे तेहनेउत्तर जे उपादानधर्मे एकसमयमाएकनीजकार्यकारणताजे. जिमसम्यदर्शनसम्यक्झानने तिमाहांश्री बिसेषावस्यकथोजाणवो For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुबुद्धिजिनस्तवन ७३ गाथा॥नयकम्मस्सयपुत्वं ।। कत्तुरनावसमुद्भवोयुत्तो॥निकारण सोविय॥ तहजुगुप्पुत्तिभावेय॥॥ श्त्यादिगाथाथीजाणवो कोइपुबसेजे अना दिनोमललोतेनोवियोगकेमथाट तेहनेकहिटो गाथा॥जहचेहकंचणो वल्ल ॥ संयोगोणाईसंतईग्गन वि ॥ वुईसोवायं ॥ तहटोगोजीव कम्माणं ॥ ॥ इतिपूज्यवाक्यात् एटले विनावपरिणामयद्यपिअना दिनो पणप्रकृतिको स्वरूपनथी माटे एनोविटोगतेकीधोथाये तिवा रेकोश्केहेसेजे एविनावनोकापणोकेमतेनेकेहे जे आत्मास्वरूपक र्ता तेहने स्वरूपावणे परभावसंयोगे परकर्तापणोथयो तेविनाव मोहनीघूमिउतरे मिथ्यात्वनीनूखटले तेवारेअमल के ० रागधेषरहित अखंम के किवारे खंमायनही अलिप्त के० परसंगनालेपर हित ए हवोपोतानो सहजखभावसांनरे भासनगोचरमांधावे यद्यपिकर्मलेपा जो तोपणखभावेअलिप्त निरामय कर्मसंबंध पणकर्मथान्यारो ने निःसंग एहवो आत्मा जिवारे उलखाणमांथावे पोतेहजसाधक शात्मा पोतानोतत्वजे सुचनिश्चयनयथावस्तुस्वभाव तेहमारमे अनादि पुजलीक असुवर्णदिरमणतजीने पोतानाझानादि अनंतगुणमारमे एहज तत्वचारित्रताप्रगटे पडे सुची के पवित्र निर्मलध्यानते प्रथम रिहंतादिकगुणीनागुण स्वरूपमा तन्मयतारूप धर्मध्यानध्यायीने पोता नाअनंतापयार्यनी परिणति पागनावअनुनवैकत्व सत्तागत तिरोनावी नोनासन एकत्व सुक्लध्याननणी जे पुरुषादरे के अंगीकारकरे ते पुरुषसर्व विनावश्यकरीने परमसमतारसनाधाम एहवाखामिश्रीजिनें देव तेहनीमुखापामे एटले वीतरागावस्थापामे निर्मलपूर्णानंदीयाटो । अनुगेत्रिनुवननायदासढुंताहरोहोलाल ॥ दा० ॥ करुणानिधिअनिलाषअमुजएखरादोलाला०॥ आतमवस्तुस्वनावसदामुऊसां नरोदोलाल ॥ स० ॥ वासननासनएहचरणव्यानेघरोदोलाल॥ च० ॥५॥ For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ देचो बा0 अर्थ ॥ हवे अनुथी वीनतोकरी पोतानोमनोरथके हेअनुतमेत्रि नुबननानाथबो सम्यक्दर्शनादिगुण पमामवाना तथा रखवालवाना परमकारणबोअने हुँतमारोदासबुं श्रीवीतरागनोदासपपोतो समकेतिदे सविरति तथासर्वविरतिनेविषेपणहातो नषकपणानोउपचारवचन माटेहेकरुणानिधि हेकरूणानासमुख मुजनेएखरोअभिलाष तेकहुंकू जेमाहरोआत्मानो वस्तुस्ख नाव ॥ (सेण दोहण हस्सेण वट्टेण तंसेन च उरसेण परिमंमलेण किएहेण नीलेण लोहीएण हालिदेव सुकिलेन सु रहेन उरहेन तित्तेण कडुएण कसारण अंबिले महुरेण कूक्कमेण म हुएण गरुएण लहुएण सीएण एहेण जिन्हेण लुख्खेण काकण रू हेण संघेण इवीण पुरसेण अनहापरिणेसणेबमाणविशती अरूबीस त्ता अपयस्सपयं नबसेण सद्देणं रवेणं गंधेणंफासणंइतिषाचारांगो तं ॥ तथा सुचव सत्तास्वरूपी अनंतग्यानदर्शनचारित्र बीर्यअनंत खरूपका स्वरूपभोक्ता स्वरूपपरिणामी असंखषदेसी पतिपदेसें अ नंतपर्यायथा नित्यानित्यादि अनंतखनावी वकीटाकारकचक्रपरणा मीरूप माहारोस्वभाव ते सदानिरंतर मनेसांनरों भासनमारहो वासना प्रतीत भासन झान चरण ते माहे रमण ध्यान तेहजखनावमां तन्मय ताधरो एमनोर्थ सदामाहारो साधकनावे साध्यकरीने सिझावस्थाये सिघरीते सदारेहेजो एअभिलाष इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ अनमजानेयोगप्रनुप्रनतालखेदोलाल ॥ प्र॥ भव्यतणेसाधर्म्यस्वसंपतिनलखेहोलान । स्व०॥ चलखतांबदुमानसहितरुचिपणवधेदोलाल ॥स० ॥ रुचिअनुयायीवीर्यचरणधारासधेदोलालाच॥६॥ अर्थ ॥ इहांकोइपुजे तुंताहराआत्मधर्मनो रुचीथयोतिवारे प्रभु For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जए श्रीसुबुद्धिजिनस्तवन जीनोस्योकामले तेनेउत्तर जे आत्मस्वभावविसारी परनावरंगीथ यी ए माहारोआत्मा सरीरसंगी व्यासंगी अनंगी तथा लिंगीपणे ममतालिंगी थश्रह्मोजे स्वसत्ताधर्मविसरीगयोडे ते अनंतग्यानी परमअमोही अनु नीमुखा थापनानिदेपरूप तेहनोयोगमिले तेवारेअनंतगुणरूप सकल झायक सुझातमरूप एवीश्रीपनुनीप्रभुता तेनेलिखे के चलखे तेल ख्यापळे जीववव्यपणानासाधर्मे के सरखापणे जे सिपथयातेपणजी व अनेहुंपणजीव माटेसत्ताएसरिखाबु गुणपाटावनावेतुल्यबु तो जेवीसंपदा श्रीसुबुधिनाथपरमेश्वरने प्रगटथयो तेटलीजसंपदा माह रीसत्तामांपण हुपरमेश्वरजेटलीसंपदानोधणीचं एमलख्यापले तेसंपदा ऊपरबहुमानावे तेथीतेसंपदानीरुचीप्रगटे जेएवीसंपदा माहारेकिवा रेनोपजसे अनेजेनीरुचीहोटो तेहनोनद्यमथाटा तेवारे वीर्यगुणनोफु रण तेपणरुचीनेअनुयायी अनेजेदिसिवीर्यफुरे तेहमांजरमाथाला ए टलेतेहतोजनीपजवानो आचरणथाय एटले अनुदी अनुनीअनुताना से तेषनुतापोतामांजाणे पतेप्रगट करवानी रुचीन पजे तेथीरुचीनोवा र्य तथाचारिबजेरमण तेपणतेदिसेसधे तिवारेतेसिछतापगटे तेथी जिन मुजानो योगतेबछोसाधनले एमार्गकलो इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ दयोपसमिकगुणसर्वथयातुझगुणरसीहोलालाय॥ सत्तासाधनसक्तिव्यक्तितानलसीदोलाल ॥ व्य० ॥ हवेसंपूरणसिचतपीसीवारदोलाल ॥ त० ॥ देवचंजिनराजजगतआधार होलाल ॥ ज०॥७॥ अर्थप द टोपसमीगुण चेतनावीर्य दानादिसर्व तुज के तारामुणना रसीथया तिवारेते निष्पनगुणरसीचेतनाथवाथी अनंतगुणरूपसत्ता ते हनो साधननीपजाववानी आत्मसक्ति ढंकाणीहती ते व्यक्त के For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ दे०चो०वा० गटपणे उलसी के० उल्लासपामी हवेनिमित्तकारण मिले उपादानका रणप्रगट्यो च्यात्मिकरुची तात्विक तत्वालंबीथाटे तो संपूर्ण अविनासी सिद्धतानीपजता सीवारले एटले पुष्टकारणे नियमाकार्यनीपजे तेमाटेदेव चंप्रस्तुतिकर्ता अथवा सर्वदेवमांहेचं प्रमासमानतेजिनराज श्रीवीतराग सर्वजीवनाच्या धार एटले जिनमुाने आलंबने अनंतजीवसि विरया तेथी अरिहंतालंबने सिद्धतानीपजे एनीग्रामकडे वास्ते अरि हंतस्मरण वंदन नमन स्तवन ध्यानकरो हे भव्यजीवोतुमने एहिजच्या धारले इतिश्री सुबुद्दिजिन स्तवनंसंपूर्ण ॥ ७ ॥ अथशीतलनाथ जिनस्तवन लिख्यते यादरजीवक मागुलच्या दरदेश शीतल जिनपतिप्रनुताप्रनुनी ॥ मुजश्री कहीयनजायजी ॥ अनंतता निर्मलता पू राता ॥ ज्ञानविनानजायजी ॥ शी० ॥ १ ॥ अर्थ || श्रीशीतलनाथनी अनंत अविनिश्वर यात्मिकप्रभुता ते अ त्यतोकेवल नेगम्य अने सम्यक् षष्टीतत्वरुचीनेतो श्रधामांबे तेकहे बे शीतल जिनपति तुमने कषाय वृष्ता नोकषाय्यताप रहित परम वीतरागता निस्पृहता परमपरभावच्या नोग्यतारूप सीतलता अगटीबे घने पति के कीमाही प्रमुखनापति तेनीप्रभुता ठकुराइअनंत सहे जसंपदा ते मुजाल्पग्यानीथी कहिनजाये केमजे सिचना मिला प्य नमिलाप्य सर्व पर्याय निरावर्ण प्रगटथयावे तेान निलाप्य प र्यायश्री केवलिजाले पण वचनेा गोचरले माटेक हिसकेनही अने मिलाप्य पर्याय अनंताने तेपण मित च्याउ षेक हेवायनही वचननो क्रमप्रवर्त्तनबेमाटे तिहां अनंताजीवऽव्य तेएकेकाऽव्यनाप्रदेस सं ० For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशीतलजिनस्तवन ១១ ख्याता तेवलिएकेकापदेसे झानादिगुणअनंताने एकेकगुणनापर्याय अनंताजे तेमध्ये खनावअनंताजे नक्तंच ॥ जीवपुग्गल समया ॥ दब पएसायपज्जवाचेव ॥ थोवाणंताणंता ॥ विसेसमहियाउवेणंता ॥ ५॥ इति तथानिर्मलताते एसर्वपर्यादानिरावरण निःसंगनिःस्सहाय अने पूर्णता के० तेनीसर्वशक्तिप्रगटनावपूर्ण तेसर्वकेवल ज्ञानविना जणा यनहीं ॥ १ ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥ चरमजलधीजलमिणेअंजली॥गतिजि पेअतीवायजी ॥ सर्वआकासनलंघेचर एणे॥ पण नुतानगणायजी॥शी ॥२॥ अर्थ॥ षष्टांतजेम चर्म के लेलो जलधि के जेनीसाधिकतीन रज्जू बाह्यपरिधिजे एहवो स्वयंभूरमण समुष तेहनो प्रबलजलतेनेको अंजलीटों मापीसके अथवाकोइ एहवोपणहोये जे अत्यंतपलटा कालनामोटावादारानीगतेचाले तथाअनंतोलोकालोकमली सर्वथा कासने पगेकरीनलंगे एहवोतोकोहोयनही पणषष्टांतदीधुजे जे एहवा सक्तिवंतथीपण निष्पन्नश्रीसिझपरमेश्वरनी अनुता ते दयोपसम सक्ति वालाथी गणीजायेनही छनेसंपूर्ण ज्ञानीजाणे परतुंतेपण वचनयोगेक हिसकेनही तेमाटेअनंत इतिछातिटागाथार्थ ॥ २ ॥ सर्वव्यपरदेसअनंता ।तेहथीगुणपर्यायज॥ तासर्वगयीअनंतगुणोपनु ॥ केवलझानक हायजी॥शी ॥३॥ अर्थहवेतेअनंतताकहेले सर्व जीवषव्य तथा अजीवषव्य अनंता बे तेथीसर्वव्यना प्रदेसअनंताजे तेमां आकासषदेसनीअनंतता अ तिमोटीने तेहथीवलिगुणनीअनंतता घणीजमाटीने तेहथीपर्यायअनं For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा तगुणा एअधीकार अल्पबहुत्वपदथी जोश्लेजो यद्यपि पर्यायजे ते गुणथीमूलधर्मेनिन्ननथी वस्तुमांपर्याटापरपाटी तेपर्यायानोसमूहम लिएककार्यकरे तेप्रत्तिनेगुणकेहेजे परंपर्यायनीजप्रवत्ति अनेषव्य तेआधार परंतु संझा संख्या लक्षणकार्टानेदे पर्याटाथीगुणनिल तेमाटेगुणनीनिनव्याख्या उत्तराध्ययनादिसूत्र उक्तंच ॥ दवाणयगु पाणय ॥ पज्जवाणनाणेणं ॥ नाणंनाणीहिंदसीटांति पुनःगुणाणामास उदवं ॥ एणदत्वंस्सियागुणा ॥ लख्खणंपज्जवाणंतु ॥ अनननिस्सीया भवे ॥ ६॥ इत्यादिकथाभिनव्याख्याने तिहां पनवणासूत्रेकडं एसि एंनंते जिवाणं पुग्गलाणं सबदवाणंसबपरसाणं सवपज्जवाणटा कयरे कयरे हितोअप्पावा बहुयावा तुलावा विसेसाहीटावा सबथोवाजीवा पुग्गलाअनंतगुण अक्षासमयाअनंतगुणा सबदवा विसेसाहिया सबप एसाअनंतगुणा सवपज्जवाअणंतगुणा ॥ इतिगणधरवाक्यात् ॥ एटले बव्यनागुणपर्याटासर्व अस्तिपणेरवाजे तथातेनीपरस्परनीअपेक्षायें नास्तिपणोअनंतोरह्यो ते सर्वनेत्रीअनुनोकेवल झानगुणजाणे एमअनं तिसक्तिले तेमदर्शननीपणतेटलीजसक्ति तेमाटे व्यनाप्रदेसपर्याय ते नावर्गकरिये तेहने वलिअनंतगुणोगुणाकारकरिट एटलोहेनु हेपरमे श्वरजी तमारोकेवलझानकहेवाट श्रीभगवतिसूत्रे॥अमिटयंनाणंकेव लिस्स ॥ इतिवृतीटागाथार्थ ॥ ३ ॥ केवलदरशनएमअनंतोयसामान्यस्व भावजी॥ स्वपरअनंतथीचरणअनंतो॥ समरणसंवरनावजी ॥ शी० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ एटलासर्व विसेषनावतेसर्वसामान्ययुक्त तेसर्वकेवलज्ञा नगम्य अथवासामान्याश्रयी जेविसेषते सामान्यविनानही अनेसा For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवन श्रीशीतलजिनस्तवन मान्यतेविसेषविनानही सर्वपदार्थसामान्यविसेष रूपले॥ निसामन्नतनन विविसेसोखपुप्फंवातथाचसमत्तौः॥ दवंपज्जवविनयं ॥दव विउत्तायपज्ज वानजि ॥ उप्पटातिभंगा॥हवहिदविटाल रुखणंएवं ॥ १॥ इति तेमाटे सर्वपच्यनेविषे सामान्यधर्मअनंताने तेसर्वकेवल दर्शनगुणेदेखे ॥ उक्तं चविसेषावस्यके ॥ यावंतोहि झेटास्य पर्याया स्तावंतस्तदवनासकवे नझानस्याप्येष्टव्याः तथानगवतिअंगे अनंतादंशणपज्जवाइति ॥ वा स्तेकेवल दर्शनपणअनंतोडे सर्वपदार्थनाअस्तित्व वस्तुत्व प्रमेयत्वादि स मान्यव्यास्तिकनेदेखे एमचारित्रगुणतेपण अनंतपर्यायी पोताना आत्मानासर्वपर्यायते सर्वखधर्म तथापोताथीनिल अनंताजीवषव्य तथासर्वअजीवधव्य तेहनाधर्मतेपरधर्म एटलेसर्वस्वधर्ममारमण पर धर्ममांअरमण एसर्वपर्यायचारित्रनाचे स्वरूपरमण परभावनिरत्ति एचा स्विनीपरिणति अने अनादिनोमूलथीजे पररमणीयथयोहतो तेनिवा रीने खसक्ति चेतनावीर्यादिकनीपरणतिते परनावथारोकीने खरूपवि षेगवेषी एसंवरनावते चारित्रनीअनंतता तेसंयमश्रेणी श्रीव्यवहार भाष्येकहीजे जेसर्वजीवथाअनंतगुणा चारित्रनाउघामाविनागनीएक वर्गणाकरिटो तेवीअसंख्यातिवर्गणायें एकसपर्षकथाय तेहवाअसं ख्याते सपईके एकसंयमस्थानकथाटा तेसर्वजघन्य एरीते असंख्य घटगुणरीतेअसंखषटगुणकरतां सर्वोत्कृष्ट असंख्यातमोसंटामस्थानथा टा एचारित्रनीअविनागी अनंततादेखामातेसर्वचारित्रगुण हेअनुतमारो निरावर्णने तमाटेचारित्रअनंतोडे ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ व्यदेवअनेकालनावगुण ॥ राजनीत एचारज॥ त्रासविनाजमचेतनप्रनुनी।। कोश्नलोंपेकारजी ॥शी० ॥ ५॥ For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० देचोम्बा __ अर्थ ॥ एमवीर्यादिकगुणनीखधर्मे अनंतताजाणवी एवीअनंतस्त्र गुणेसंपदामयीबो वलि हेनाथहेपरमेश्वर तमेयगत्रमांजीव तथाअजीव तेहनाजेगुणस्वभावपर्याय तेसर्व । व्य २ खेत्र ३ काल ४ नाव ए रीतेचारपरिणमनपणे अनेतमाराज्ञानादिकगुण तेपणषव्या दिकचार परिणमने परणमे अनेसर्व स्वपररूपधर्मनोजाणपणेकरेले तेपणचार प्रकारेपरीदनकरे। व्यधर्मतेसमुदाय अधारतातेत्रिधर्मजाणवो ३ वर्त्तनाउत्पादव्ययरूपनावतेकाजधर्मजाणवो निश्चेविचारतांकाल व्यनिलनी पंचास्तिकायनीवर्तनातकालधर्म एतत्वार्थ तथाधर्मसंय हणी अनेविसेषावस्यकमध्येघणीचरचा अनअपेदितव्यास्तिकनये एहनेषव्यकझोडे परंतुजातेषव्यास्तिकपणोएमांनी तेथीव्यनीवर्तना तेकाल तथाव्यनोमलधर्मतेनावएरीतेसर्वपरिणमन एबीवीतराग नि पनतत्वि अनुनीराजनितिचारप्रकारनी वलिश्रीप्रनुनीयाज्ञासर्व व्य माने एटलेस्तवनापदेयारोपमाटेकहे जेअन्यराजानीयाणा कोईक मानेकोईनमाने पण हेअनुजेरीतेतमारोझानपरिणमे तेरीतेसर्वव्यपरणमे बे जेरीतेतमेपरुपपणाकरोगे तेजरीतेसर्वव्यनीपरणति माटेतुमेकोश्ने केहेतानथी तथाकोरनेत्रासकरतानथी भयपमामतानथी परंतुते तुमारा झाननी परणतिलोपीचालतानथी आझालोपतानथी एहवीसहजाणा सम्यकदृष्टी देसविरता सर्वविरतीनेषष्ट निप्रयासअखंमाणाति ५॥ सुधासययीरप्रनुनपयोगे ॥ जेसमरेतुऊ नामजी ॥ अव्याबाधअनंतोपामे ॥ पर मछमृतरसधामजी ।। शी० ॥६॥ अर्थ ॥ हवेअनुसेवानोफल केहेडे जेसाधकजीव सुघनिर्दूषणमा स्याकरीने कुषादिकाग्दोषनेटालिने एटले ढादिकदोषसहितजे For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशीतल जिनस्तवन करे ते कार्यनोसाधकथाटानही श्रीहरिनपसूरिटकलो॥ दुखोलोन रतिर्दीनो ॥ मत्वरीनयवान्शतः ॥ अझोनवाभिनंदीच ॥ निष्फलारं भसाधकः ॥ ॥ तथादग्धादिकदोषरहित तथाविषयानुष्ठानजेश्हलो कफलनीआस्या अनेगर्जानुष्ठानजे परनवेषियसुखनीवांग अन्यो न्यअनुष्ठानते साध्यसुन्यसापेक्षताविनाजेकरवू इत्यादि दोषटाली जिन आज्ञाप्रमाणे विधिसहित प्रीति नक्तिवचन असंगरीते तद्हेतु तथाअमृत अनुष्ठाने तद्हेतु तेजेएकतेहिज साचोकरवानेअर्थे मोदनिपजाववामा टे अमृततेत्रिकरणयोगनीएकता हरषसहित तन्मयपणे निरामदासाध न एरोते थिर संकादिचपलतारहित श्रीप्रभुजीतेहनावजाति वनावि कगुणेकरी उपयोगपनुगुणेजोमानेजे नव्यजीवात्मार्थीथश्ने श्रीशी तलनाथ परमसमतामयी पनुनोध्यानकरवाने तेहनोनाम समरे के. संभारे तेजीवअनुक्रमेगणीनेआलंबने आत्मोपादानीथईने निष्कर्माथा य तिवारेतेअनंतोषाव्याबाघसुख परसंगरहित अध्यात्मिकसुखपामे तेसुखकेहवो परमउत्कृष्ट अमृत अविनासी सहेजज्ञानानंदादिकअनं तसुखनोधाम उक्तंच शिवमयल मरुव मणंत मख्खटा मवाबाह मप्पु णरावेत्ति शिछग नामधेयं वगणं संपत्ताणं तथासमतिथे अहसुश्टासय लजग सिहरमरुवनिरुवमसहावसिदिसुहं ॥ अनिहणमवाबाहं ॥ तिरि यणुसारंअणुहवंति ॥ १ ॥ एहवासुखपामे ॥ इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ आगाश्वरतानियता॥निकिता रूपजी॥ नावस्वाधीनतेअव्ययरीते ॥ एमअनंतगुणनूपजी ॥ शी० ॥ ७ ॥ अर्थ॥तथा अनुतानालिंग आणादिक तेकहेले बीजानीआझा तो स्वार्थे तथा नयाथी कोश्माने अने अनु श्रीअरिहंतनी आज्ञातो For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा सहेजे कोश्वव्यलोपतोनथी तथा जे लौकीक अनुतानाधणी तेतो पुजलिकमानोपेतसंपदानाधणीने अने श्रीतिर्थकरतो जगऽपगारी अनंतसहेजसंपदाना इश्वर तेथी इश्वरता अद्भूत बीजाराजादिक पोताना सेवकोथी नटापामेनही परंतुपरचक तथा मरणादिनासहित अने माहारो परमेश्वर निर्मलानंदकारण सुधदेवतो सर्वकाल सर्वनय रहित स्वअखंम अविनासीसंपदापरमनिर्मल तावंत तथा यगत्रमां इं चं चक्रवर्ति ते तषणानेनदटो श्बादोषमयी इबाथीसंपदाअपूर्ण ने अने श्रीवीतरागतोखसंपदापूर्णप्रागभावनानोगोले समस्तपरसंपदाने अवांने तेथी निरवंबकतामयी वलिश्रीप्रनुपरमात्मा तेहनाजे नावध मसुचिदानंदादिक ते सर्वखाधान पराधीननथी वलितेशव्यटा के अविनासीपणे ध्वंसरहित एरीतेअनंतगुणनाराजा तिसप्तमगाथार्थ अव्याबाधसुखनिर्मलतेतो॥करणाने नग्रहायजी ॥ जेहजतेहनेजाणंगनोक्ता।। जेतुमसमगुणरायजी ।। शी० ॥ ७॥ अर्थ॥हेअनुजीजेअव्याबाध अतेंजियसुखतेअनंतो खभोगीपणेतमे भोगवोगे तेअव्याबाधसुखनोज्ञानके जाणपणोते करण के इंस्टिोने आधीनजे मतीझानतथा श्रुतझानतेणेकरीजणाटानही तथा अवधि म नपर्यवज्ञान तेटाद्यपिइंजियोनेआधीननथी तोपणते रूपानावनाजाणंग ने पण जीवस्वरूपने जाणीसकेनही जेमाटे छटोपसमझाने अव्याबाध नो खरूपजाण्योनजाय पणजे जीवतुजसमानगुणनाराय के ० स्वामी थया तेहजपरमात्मा एअव्याबाधगुणनो स्वरूपजाणे तथा नोगवे बी जानेप्रगटनथी आत्मधर्म अतिषियने माटे तेहनानोगीसिघ भगवंत बीजाथीएनोगवायनही इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७ ॥ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशीतलजिनस्तवन एमअनंतदानादिकनिजगुण ॥ वचनाती तपंडेरजी॥ वासननासननावेदुर्लन ॥ प्रापतितोअतिदूरजी ।। शी० ॥ ए । अर्थ ॥ एम अनंता दान लान नोग उपनोग वार्य सिघत्व प्रमुख गुणहे अनुजी ताहरेषगट तेवचनने गम्यन) पंडूर के मोटा एह वाआत्मगुणनीवासना श्रधा नासन के • जाणपणो ते पामवो उर्लन तोषगटपणे एहवी सितापामवी तेतो घणीज वेगली इति ॥ ए || सकलप्रत्यक्षपणेत्रिनुवनगुरु ॥ जाणतुऊ गुणग्रामजी ॥ बीजोकाईनमांगुस्वामी॥ एहिजडेमुकामजी ॥ शी० ॥१०॥ अर्थ ॥ हेत्रिभुवनगुरु ताहरीगुणसंपदाअनंति तेसर्वहुप्रत्यक्षपणे जाणु एहिजमागुडं एश्चाबे माहेरेएहिजकाम जेताहरीसंपदाते केव लिनेप्रत्यदाडे माटेकेवल ज्ञानमांगुबु इतिदसमीगाथार्थ ॥ १० ॥ एमअनंतप्रनुतासरदहता ॥अरचेजपनु रूपजी॥ देवचंप्रनुतातेपामे ॥ परमा नंदस्वरूपजी॥शी० ॥११॥ अर्थ ॥ एमअनंतिषनुनी परमात्मता सर्वप्रदेसनिरावर्णता अनंतप र्याय निरावरणता सकलज्ञानादिगुण निरावरणता तेनेसरदहतां सम कितगुणप्रगटे तेषभुनागुणनी बहुमानसहितप्रतीतकरतां जे जीव श्री सीतलनाथनागुणनेयोगे अनुनेअर्चे तेषनुनेअर्चवानो अधिकार श्री राठापसेणी सूत्रमध्ये कह्यो ॥ अथ्थेगश्या वंदणवत्तियाए पूटाणवत्तियाए सकारवत्तियाए सम्मा For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोबा ८४ एवत्तियाए सुधंसु लिस्सामो वागरणंपुछिस्सामो गया जिल नत्ति धम्मोति बेगइयावायमेटांति ॥ एच्यालावानीटीकामांच्यर्थकरयोबे तथाप्रभुजीनो योगन मिले तो भुनीथापनातेपणप्रभुसमानबे जे श्री अरिहंत ने वांदवानोफल सूत्रे कोबे ॥ हियाए सुहाए निस्सेसार अनुगामीत्ताए || अने जिनप्रतिमाने वांदवानो फलप एहिज चालावेकलो तथा साधूनेच्यधिकारे माहाव्रतपाल वानो फलप एहिजकयुं एमसूत्रे ने कच्अधिकारकोवे तेमाटे प्रभुना रूपनेपूजवानो मोटोलानबे कोइ व्यहिंसादेखीने नव्यपामे ते उपयोग देवोजे सूत्रेपरजीवनीयानोफ सातावेदनी हिने आपणो आत्माज्ञानादिकगुरोजोमीये तो नावदाते मोक्षहेतुबे नेनावहिंसाते हिंसाबे व्यहिंसाते नावहिंसानो कारण परंतु हिंसा नही इहां श्रीभाग्यकारनोवचन लिखे ॥ एवमहिंसा नावो ॥ जीवघ ं तिनयतं जिन निहियं ॥ सथोवहव्यमजीवं ॥ नयजीवघं तिनोहिंसा ॥ १ ॥ नन्वेवंसतिलोकस्यातीवपृथिव्यादिजीव स्यासनत्वादहिंसानावसंयतेर पिच्छ हिंसावृत मिति निर्वाहयितुमशक्यमिति माटे पांचथावरबादरनी बहुलताये साधूनेपलच्याहार विहार वंदन विनयवेयावच्चादिककरतां अहिंसाव्रत केमरहे ॥ यह जीवाकुले लोके अवश्यमेवजीवघातः संभाव्यतेजीवश्वघ्नन् कथं हिंसकोनस्यादिति न त्तरं नयत्रायवत्तिहिंसो घायंतोत्तिनिचियमहिंसो नविरल जीवमहिंसो ॥ नयजीवघणंतितोहिंसो ॥ १ ॥ अहांतो विहहिंसो ॥ वृतएव मनुच्छा हिम रोध ॥ वाहिंतोन विहिंसो सुछतणाव जहा विज्जो ॥ २ ॥ नहिघातकइत्येता वताहिंस्त्रः नवानन्नपि निश्वयमतेनहिंस्रः नापिविरल जीवमित्येतावन्मा त्रेणाहिंस्रपुनः असुनोजोपरिणामो साहिंसासोनबादरनिमित्तं को विच्छ वेखिज्जनवा ज्जलाले गिती यावज्जं ॥ १ ॥ सुनपरिणामहेक | जीवा For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रेयांस जिनस्तवन ए वाहित्ततोमयाहिंसा ॥ जस्सउनसोनिमित्तं ॥ संतोविनतस्ससाहिंसा ॥२॥ जीवबछोअशुनपरिणामहेतुः तदाहिंसा यदिअशुनपरिणामहेतु. नतदाहिंसानइति ॥ सहादतरफलान ॥ वीटामोहस्सनावसुधात ॥ जहतहजीवानावो ॥ नसुघमणसोविहिंसाए ॥ इति ॥ एमागमप्रमाणे व्यहिंसातेकारणरूप तेविषयकपाटानाअर्थी ने हिंसाबे परंतुजिन गुणनोबहुमान करनारने जिनपूजाकाले पुष्पा दिकनीहिंसा तेहिंसानो कारणनथी श्रीनगवतिसूत्रेपण क्रियानेअधि कारे एमजकडं वनस्पतिहणवाना पच्चखाणाने पृथ्विखोदताथका व नस्पतिहणायतो पच्चखाणनागेनही तोजिनपूजाएं जिनस्वरूपथविलं बनकरतां आत्मगुणनिर्मल करे गुणीनेस्मरणे अनेकगुणीथवा तेमाटे मुनीनेअनुमोदवायोग्य जिननक्ति रायपश्रेणीसूत्रे सूर्याने नाटिकक रयो परंतु गौतमादिक श्रमणगणेदातु ते सिज्जायजेटलोलानहतो तो तेथानकेबेगरह्मा तेथी जिननक्ति तेमोदसाधन एमजेपाणी जिनना रूपने अर्चे पूजेतेसर्वदेवमां चंघमासमान श्रीअरिहंतदेव तेहनीषनुता पूर्णानंदमय संपदापामे एहवो श्रीशीतलनाथपनुनो सेवन ते सर्वजी वकरो अने स्तुतिकर्तापण देवचं तेणेपोतानो नामपण सुचव्यु ए अनुअनंतगुणीने परंतुनकपणा जेजेगुणजाएया तेतेगुणनीस्तवना करवा तिशीतल जिनस्तवनसंपूर्ण ॥ ११ ॥ ॥ अथश्रेयांसजिनस्तवनलिख्यते॥ - पांझवपांचेवांदतांमनमोहेरे एदेशा॥ श्रीश्रेयांसप्रनुतणे।। अतिअद्भूतसहजा नंदरे॥ गुणकविधत्रिकपरणम्यो॥ एम गुणअनंतनोवृंदरे ॥ मुनिचंदजिएंदअमं ददिणंदपरे॥ नित्यदीपतोसुखकंदरे ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा __अर्थ ॥ श्रीश्रेयांसपनुपरमेश्वर निष्पन्न निरावर्ण स्वखरूपनोगीनो अति के अत्यंत उत्कृष्टअदभूत के आश्चर्यकारी सहेजानंद के अ कतिम वनावनो आनंद श्रीश्रेयांसपनुजीतेजीवषव्य साधनरत्नत्र यीपरणमीने सिस्थया तेसिधपणेअसंख्यातपदेसी अनंतगुणी अ नंतपर्यायाने तेषनुनोएकगुणते त्रणपरिणतिरूपले सर्वव्यनोआर्थकि याकारीपणो तेगुणपरिणतिथीने तेमध्ये असाधारण विसेषगुणनामु ख्यताटोंडे अने साधारणगुणनीपरिणतिपण कर्तापव्यनीकर्तानेहाथ करताकरतोपत्ते करतानकरेतोनपत्ते पांचअकर्तापव्यनीगुणपरि णतिसदापरणमेजेएरीत अनेजीवषव्यनीगुणपरिणति सिपअवस्थाट कारक चक्रनावर्त्तनथी प्रवर्तेने तेमाटे आत्मज्व्यनाज्ञानादिक जे गुण बेते त्रिविधेपरणमे एरीतेत्रिविधताते करण कार्य किटा तेगुणनीतेजगु मांबे एत्रणपरिणामनोक तात्मा तिहांउपादानपणे षकष्टकारणते करण अने तेकरणनोफल साध्यतेकार्य तथातेकरवारूपत्तितेक्रिया कर्त्तानो व्यापारते सिपअवस्थायेंअनेदरूपले ज्ञानगुणतेकरणजाणवोते कार्यजाणवानेज्ञाननीफुरणाक्रिया एत्रणेअभेदले एत्रिविधपरिणामे परि तम्या एमअनंतगुणनोरंद अनुनासर्वगुण व्यक्तपणे स्वकार्यतानेकरे उक्तंच विसेषावस्यके॥जंकज्जकारणाई ॥पशायावत्रणोजन तेण ॥ लेणनेणमटा ॥ तेकारणकशनयणेशं ॥१॥ इतिवचनात्॥ एमकारण कार्यक्रियानीअनेदतापण नेनेदतापण कालेधनेदताले सत्व प्रमेय खेअनेदताले अने संज्ञा संख्या लक्षणेनेदता माटेएवीव्याख्या ॥ मुनीजेत्रिकालाविषयी तत्वरमण तेमाहेबमासमान अथवामुनीचं दजिणंदते जिनसामान्यकेवलिमां चंबमासमांन वलिअमंद के देदीप्य मानदिणंद के० सूर्यतेनीपरेदीपतो सुखकंदजेहनो एहवाश्रेयांसपनु तेहनासर्वगुणव्यक्तपणे खकार्यनेकरेले हवेधात्माना अनंतागुणजे तेमां For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B श्रीअंटांसजिनस्तवन हेमुख्यगुणतेनपियोग ॥सबाउलनिसागरोवउत्तस्सनववज्जस्तोअण गारोवनतस्सइति ॥ तेन पियोगमांप्रथमझानगुणने माटेप्रथम ज्ञानगुण नी त्रविधता कहे इतिप्रथभगाथार्थ ॥ १ ॥ निजझानेकरीझेयनो ॥ ज्ञायकझाताप दशरे ॥ देखेनीजदरशणकरी ॥निज स्यसामान्यजगीसरे ॥मु० ॥२॥ अर्थ लोकालोकमांजेवर्तमान तथाअतीतकालेहतु अनेआगमी ककालेथासे तेसर्वपोतानातथा परनानाव प्रमेयत्वपणामाटे तेझेया जा णवायोग्य तेहनोजाणवोते आत्मानाअसंख्यात् प्रदेस निष्ठितझानगुण बे तेज्ञानआत्मानोखधर्म सर्व विसेषनोजाणंगले तेथीनिजके पोताना ज्ञान गुणेकरीने ज्ञानतेजाणवारूप कार्यनोकारणथयो उपादानकारण कार्यताएकसमयअनेतेजाणवारूपकार्यनीप्रत्तिते वीर्यनेसहकारेकि याथाय.जोगुणनीप्रतिविना जाणवारूपकार्यमानीटोतो दर्शनोपयो ग काले ज्ञानगुणनोनिरावर्णपणोतो पणक्रियाविनान पियोगनथी ते माटे कारणभूतझानेकरीसर्वझेयनेजाजोगे पोतानाझानेकरीसर्वज्ञेयना ज्ञायक के ० जाणनारगे तेथीहेपनुतमे जाएंगपणामाटे झातापदनाइ सो खामीगे ज्ञानमयीबो सर्वजाणो. ___ हवे दर्शनगुणनी त्रविधताकहे हेपनुजी तमेपोताना दर्शनगुणेक रीने निज के ० पोताना अस्य के देखवायोग्यजे सर्वशस्तिकाटानी सामान्यता अस्तित्वं वस्तुत्वं व्यत्वं प्रमेयत्वादि नित्यत्वाऽनित्यत्वादि सामान्यपणेजे जगीस के ० संपदा एटले आत्मानेविषे अनंति सत्व ६ व्यत्वादि सामान्यसंपदा तेनेदर्शनगुणेदेखते दर्शनेनश्यनावानां दर्शन करोतीतिआत्मा इहांथात्मादेखणहारो दर्शनगुणेकरणभूते देखवायोग्य For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा जेपदार्थतेसर्वनेदेखेडे एटलेदेखवो कार्यदर्शनगुणतेकारण दर्शनगुण नीप्रतिकिटा देषणहारोआत्मातेकर्ताएदर्शनगुणनी त्रिविधपरणमन जाणवी ॥ इतिहीतीयगाथार्थ ॥ २ ॥ निजरम्येरमणकरो ॥प्रनुचारित्ररमता रामरे ॥नोग्यअनंतने नौगवो ॥ नोगेते एणेनोक्तास्वामरे ।मु० ॥३॥ अर्थ ॥ हवेचारित्रगुणनीतिविधिपरणतीकहे हेअनुजी हेपरमेश्वर हे परमानंदपूर्णानंदीताहरोयनंतआत्मधर्मते तुमनेरम्य रमवायोग्य सुधात्मपरणतिरूप निजरम्यविषेतुमेरमणकरोगे चारित्रगुणेकरीने ९ टलेचारित्रगुणकरणे स्वरम्यनेविषेजे रमणतेरूपकार्य अने चरणगुणप सत्तिरूप किटानेकरोगे तेमाटे हेअनुजीतुमेरमतारामगे पोतानास्त्र रूपमारमताने तेथीस्वरूपरमणी स्वरूपानुनवी वरूपविश्रामीबोजी ॥ होनोगगुणनी विविधता कहे भोग्यकहतांनोगवायोग्यजे पग ध्यात्मस्वरूपअनंतझानादिगुण तेहनेतुमेनोगगुणेकरी नोगवोोतेकेम जे नोगांतरायकर्मनोदटो तमनेषगटथयोतेनोगगुणतेथीकरीनेतुमे पो सानानोग्यअनंतात्म संपदातेहनेभोगवोगे माटे हेखामीतुमेनोक्तागे जेबीजाजीवदयोपसमनोगी पुजलादिअसुपरणतिनेनोगवे तेतो अमुछभोक्ता अने तुमेसुछ भोक्तागे एटले भोगगुणकरणेकरीने नि जनोक्तापणारूप कार्यनेकरोबो नोगगुणनीपत्तितेकिटाने करवेकरी ने॥अत्तासहावनोईते असहावा-अत्तपरिणामाइतिवाक्यात् ॥ माटे भोक्तागुणनास्वामीगे इतिवृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ देयदाननीतदीजते ॥ अतिदाताअनुस्व यमेवरे ॥ पात्रतुमेनिजसक्तिना ॥ ग्राहकव्यापकमयदेवरे।मु० ॥४॥ For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रेयांस जिनस्तवन जए अर्थ ॥ हवेदानगुण तथा लानगुणनी त्रविधताकहे जेदानांत राटाकर्मना दयीप्रगटयो तेहनी परणतिकडे इहांदानतेसिकता मांश्वगुण नाटतनने वकीयदायक वीर्शनी सहकारतानोदेवोते दान अने सहकारतानी प्राप्तिजगुणनेथयोते लाभएरीतें दांनतथा लानगु णपटत्तेजे देयकहतांदेवायोग्यजेगण तेहनेसहकारतेदान नितसदादीजे तेथीहेपरमेश्वरतुमेअतिदातागो अनंतगुणने सहकाररूपदानअनंतो दे योगेस्खयमेषकहतांपोताथीज पोतानेआपोगे एटले दानगुण ते कर ण अने दानगुणनी षटत्तितेकिया तथा सहकार रूपदानदीधोतेकार्य एसर्वनोखामिातमातेदाता आत्मानेएसुचदान तथालान अने जे परनावनोदेवो तथालेवोतेतोविनावडे आत्मानेघटतोनथी वलिदे खामातुमे निजकहतांपोतानी शक्तिअनंतगुणपर्याटारूपतेहना पात्र के आधारो तथा तेआत्मशक्तिनाग्राहकगे अने एआत्मशक्तिनाव्या पकतन्मटता रूपअवस्थावंतपण तुमेजो इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ परणामिकार्यतणो॥ करतागुणकरणे नायरे॥ अक्रीयअदयस्थितिमयी॥ निकलंकअनंतीआयरे ॥ मु० ॥५॥ अर्थ ॥ वलि हेदेव हेपरमेश्वर तुमारा अनेक अभिलाप्य तथा अनभिलाप्य गुणसर्व प्राग्नावथा तेहनी त्रएयपरणति कहे पर णामिकपणे आव्याबाधादिक अनंतोकाटतेहना करतागे गुणरूपक रणे करीने एटले गुणतेकरण अने तेकरण नो जे फलतेकार्ट तथा गुणनीप्रवृत्ति ते किटाएकारण कार्य क्रियानाकरता हेनाथ तुमेबो जे तुमारो सर्वपरिणामिकपणो तेहना तुजकको -- नथी वलिहेअनुजी तुमेअक्रियागेक्रियाते जमीन पर २१ ।। ૧૨ For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो०वा० अचलबे तेथीच्अक्रीटयो वलि हेप्रभुजी तुमेच्य स्थितिमीबो जे ने श्री सिनगवंत तेतो सहे वलि निकलंक के ० सर्व क खानपानी स्थितितेतो संयोगीनावनी जगुलीने तेथ] अविनासीस्थिति तुमारी र्मकलंकरहितो तथा निरावरणी अनंती याथ के ० संपदा तेना तुम || इतिपंचमगाथार्थ || ५ || ए परणामिकसत्तातलो | आविर्भावविलास निवासरे || सहजातिमपराश्रयी ॥ निर्विकल्पने निप्रयासरे ॥ मु ॥७ ॥ अर्थ हवे कदाचित् कोईके हसेजेको गुच्अधुरोहसे नाटे ते पू ताकही देखावे परणामिकपणो तेसत्ताकहतांबति तेहनोच्या विर्भाव कहतां प्रगटपणो एटले प्रागभाव ते अनंतगुणपर्याय निरावरण सक Q पुलसंग रहितथवे संपूर्ण सत्ता तिरोभावीहती ते गटथइबे तेप्राग् नावीसत्ताना विलासना अनुभवनो हेप्रभुजीतूं निवास के घरो स्वगुनोगीबो वस्वनावना अनुभवीडो वलि हेप्रनु तुम सहज के० ख नावनो मूलधर्म तेना यऋतिम ते पापराश्रयी के परवस्तुना आधा रविना वलि निर्विकल्प के मनोचिंतनाविना वलिनिप्रयास के प्रया सन्द्यमबिना जे आत्मधर्म तेहनो अनुभव ते तुमेभोगवोबो || ६ || प्रनुप्रभुतासं भारतां ॥ गातांकरतांगु ग्रामरे || सेवकसाधनतावरे॥ संव ॥ रपरतिपामरे ॥ मु० ७ ॥ अर्थ | एह्वाप्रभुनी सेवनानोजे फलथाये ते कहे प्रभुजे श्री श्रेयांस नाथ निम्पन्नत्वी निरामयी निरावरणी तेहनी प्रभुता अनंतग्यान मयी सर्व संवरी अनंतानंदरूप परमेश्वरता सहायता सर्वशक्ति निरा For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रेयांस जिनस्तवन एर वरणता अनंतपर्याय स्वकीय कार्यपणारूप निकर्मता निसंगता प्रभु त्ववित्व ग्राहकत्व व्यापकत्व घ्याधारत्व कारकत्व कारणत्व कार्यत्व इत्यादि प्रभुता एकएक प्रदेशे अनंतगुणपर्याय प्रागभावपरणमन रूप खरूपसंपदा भारतां चित्तमांस्मरण करतां तथा गातां के० श्वर योगेगावतां गुणनो ग्रामसमुह करतां थका सेवकत्व रूचीच्यात्म सिध तानोच्ार्थी ते निष्पन्न परमेश्वरनाबहुमानथी जीव च्प्रनादिनो बाधक स्वरूप पराङ्मुखथरावे तेजीवसाधनता च्यात्मखरूप निरावरणकरवारूप साधनव्यवस्था उत्सर्गच्अपवादसमकितथी मांमीययोगी चर्म समयरू पगुणस्थानारोहणदोषत्यागगुण प्राग्नावच्यधिकगुणनी रुचिपूर्णतत्व नीहारूपसाधनापलोपामे ते निजकहतां पोतानी संवरपर तिनेपामी करीने एटले अनुगु उपयोगेवर्ततोथको चेतना गुलीनागुणने अनुजा यथाय तिवारेवरूप इहारूपदर्शन गुणपरमे पोतानी संवरपर तिने पामे ते जीवतत्वताने साधे अने साध्यरसीनीजे साधकताते परमानंदनो कारण इतिसप्तमगाथार्थ ॥ ७ ॥ प्रगटतत्वताच्यावतां ॥ निजतत्वनो ध्याताथायरे ॥ तत्वरम एकाग्रता ॥ पूरातत्वें एहसमायरे ॥ मु० ॥ ८ ॥ अर्थ || तेहजभावनाकहेबे जेमात्मानेपोतानी संपदातेतो कमें च्यवृतबे तेनासनमांच्याववी दुर्लभ अने निष्पन्नपरमेश्वरनी तत्वतातोश्र गटवे तेश्रुतोपयोगें भासनमांच्यावे तेमाटे प्रगटतत्वीजे श्री रिहंत सि नीनिरावरण च्यात्मसंपदानेध्यावताथकां जीवपोतानी सत्तागतव्या र्थिक पaर्थिक तत्वतानो ध्याताथायवे व्यत्वतुल्यतामाटे इति ॥ एमस तत्वनेध्यावतो तत्वरमण तथा तत्वनी अनुभूति करेतत्व जेव गुणपर्या For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा यरूपतेमध्ये एकाग्रतातन्मयताथायतिवारे एसेवकजेश्रेयांसपनुनोगुणा वलंबी तेहजपूर्णतत्वरूपतत्विर्थई पूर्णानंदनिरावरण स्वखनावनीपूर्ण तानेपामे पोतानीपूर्णपाग्नावी तत्वतामांसिपबुझ्थाय एहजमोदनो उपाय इहानावनाअनादिमिथ्यात्व असंयमकषाययोग हेतुपरणत गृहीतकर्मविपाक कथ्यमांन विसंस्थुलात्मशक्तिवंतने अनेकांतसुधात्म स्वरूपश्रवणपण उर्जन तेजीवनेश्रीजिनसेवनथी जिननुस्वरूपलखे थीस्वरूपरूचिऊपजेवधर्मपणामाटे सूचिवंतजीवतेन्द्यमे वरततोआत्मध मनीपजावे अनुक्रमेनिर्विकल्प समाधिनजी सुशात्मपुर्णतापामे हिज मोदमार्गले ॥ इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७ ॥ प्रनदीमुझसांनरे।परमातम परणा नंदरे ॥ देवचंजिनराजना॥ नित वंदोपयअरविंदरे।मु० ॥ ए॥ अर्थ ॥ तेमाटे अनुदीते एटलेपनुनो स्थापनानिदेपोदीवेमाने सांन रेके स्मरणमांगावे परमात्मासिघनगवांन अचल असंगीअनोगी ते हनोपूर्णअनंतपर्याटा त्रिकाल अविनासी घानंदगुणानंदादिकसांनरे अनेजेअनुखरूपाश्रित चेतनाकरवी तेहजपोतानीमात्मासाधवानोपरम उपाय तेमाटे देवजेनिग्रंथादिकतेमां चंमासमान जेजिनराजवीतराग श्रीश्रेयांसपरमेश्वरना पदरूपअरविंदके कमल तेनेनित्यवंदोसदाषण मो तथास्तुतिकरतानो नामपणदेवचं तेपोतानेपणकहे जेश्रीअरि हंतनाचरण नित्यसेवो अरिहंतसेवनतेहज संसारमाहासमुष मोहात अाग्यानांधकार मिथ्यात्वकईममग्नजीवने निस्तारपारकरवानो पुष्टन पाय अरिहंतालं बने अरिहंतप्रतिमांने आलं बनेअनंतजीव पूर्ण नंदीथया वनाजे यथार्यनलखाणे पुजलासंसारहितपणेत्री रिहानु For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवासपूज्यजिनस्तवन ए३ सेवनकरसे तेपरमसुखपामसे एहजसरणत्राणाधार || ए ॥इतिश्री श्रेयांस जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥अयश्रीवासपज्य जिनस्तवनलिख्यते॥ हवे अनुसेवनपूजनातेहनो व्यभावनलखाववारूप बारमांनुश्री वासपूज्यनीस्तुतिकरे ॥ तिहांनिदेपाचार लिखीयो । नाम श्स्था पना ३ ५व्य ४ नाव तिहांनामनिदेपानोल दणगाथा पशायाणनिधेट : वियमणलेताबनिरविरुखं ॥जाइनियंचनामं॥जी वदत्वंचपायेणं ॥१॥ तथाथापनालदणं ॥गाथा॥ जंपुणतटस्थसुन्न। तटनिप्पाएणंतारिसागारं ॥ कीरश्वनिरागारं ॥ इत्तरमियरंचसाठवणा ॥ २ ॥ अव्यलक्षणं ॥गाथा ॥ दवएउवएदोरवयवो ॥ विगारोगुणाणं संदावो ॥ दवंनवंभावस्स ॥ नुयनावंचज्जोगं ॥३॥ अथवाटाच्चका रणंतत्धव्यं भूतस्यनाविनोवा भावस्य हिकारणंतुटाल्लोकतत्वव्यं त्यादि नावलक्षणहरिनपूज्ये नावोविवदितक्रियानुभूतियुक्तोहिविधि समाख्यातः सर्वौरिंशादिवदिंदनादिकिटानुनवात् इति ___ एरीते चारतथाकोश्क नामादिनिदेपानपचारेमानं तेहनेकहिजे जिन्न वस्तुने नामादिककरिएते निल परंतुपोतापोतानी वस्तुनानामादि चारे तेवस्तुमांजने तेमाटेकझोडे श्रीजिननपूज्यैः इहनावोच्चियबबू तयनसुनेहिंकिंचसेसोहि ॥ नामादन विनावा ॥ जंतेविहुवचुपज्जाया॥ इति यद्यस्मात्तेपि नामादयोवस्तुनः पाटाधर्माहिथापविशिष्टईश्व स्तुन्युच्चरिते नामादटोपिनाव विशेषाः एवंवलिक होने भावनिदेपाने ते तदेवं निलवस्तुषविशेषतश्चित्यमानानां नामादीनांषधानेतरनावो दर्शित; सामान्यतःपुनश्चित्यमानानांसर्ववस्तुषुप्रत्येकंचतुर्णामप्यमीषांस द्भावः पाप्यतएवेतिदर्शयन्नाह अहवावनिहाणां ॥ नामंतवणायजो तयागारो॥कारणटासेदछ । कज्जयावनंत टांनावो॥ १ ॥ एगाथाट चा For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ देचोम्बा रनिदेपाएकवस्तुमांकया तथावली नामादिनटानेपरस्यरविवादेमिथ्या त्वीपणेकह्यो पूज्ये॥ एवं विवटांतिनटा | मिन्नानिनिवेसन परोप्पर । इतिवचनात् वलिपूज्यनोजवचन जेनामाश्नेटांसद बुधिपरणामना वननिययंबिअलीलोए॥चउपज्जायंनटांसवं ॥१॥ इतिएरीतेनामा दिक चारेनिदेपवस्तुनावपर्याटाने श्मश्रधाकरवीएनीदेपानोवरूपवि स्तारें श्रीविशेषावश्यकमांकरयो तेहाथाएगाथालिखी. इतिप्रसस्ति । पंथिमोनेहालुरेबीजाजिनतणोरे एदेशी ।। पूजनातोकीजेरेबारमांजिनतणीरे॥ जसुप्रगट्योपूज्यस्वभाव ॥ परकृत पूजारेजेश्नहीरे॥ साधककारजदाव।।पू०॥१॥ अर्थ ॥ हेनव्यजीवो जोआत्माने सुखीकरवानोमन तोबारमा जिन वीतराग श्रीवासपूज्यपुरुषोत्तमनीपूजनाकीजे एटले सकलगु निरावरण परमचारित्री परमझाना अयोगी अनोगी अलेसी अस हायी अकषायी अरूपी सुचवरूपोजेसि सकलपरनावचनोगी पु जलोपचाररहित एहवो पूज्यस्वनावजेहनोप्रगट्यो तेहनीपूजाकीजे जेनक्तिनारागीनही अनक्तिनाध्वेषीनही एहवासर्वज्ञ तेहजपूजवायो ग्य नक्तंच आप्तमीमांसायां: देवागमनमोटान् ॥ चामरादिविनूतयः ॥ मालाविष्वपिदृश्यते ॥ अतरुवमसिनोमाहान् ॥ १॥ सूक्ष्मांततिरतदूराथ॥ प्रत्यदाकस्यचि त्यथा ॥ अनुमेतत्वतोझान ॥ मितिसर्वज्ञसंसितं ॥ २ ॥ अइसयपा मिहेरा ॥ सबकम्मन दटासंनूआ ॥ तेणंनवीनतमे ॥ वीडनविटारागत्ते ॥ ५ ॥ इत्यादि वलि धनुनोपूज्यपणोकहेले जेपरकृत देवतामनुष्य गुणरागीयकाय For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवासपूज्य जिनस्तवन ए५ नेकप्रकारनीनक्तिपूजाकरे परंतुपरमेश्वर कोश्नीपूजाश्चता वांबतान थाश्चादोषरहित माटेपरभावनासंग तथा परकृतपूजानेवांबतानथी तेपूज्यजाणवा अनेसाधकजे मोदनाअर्थी मार्गानुसारी समकेति दे सविरति संवेगपदि मुनीराजतेहनोकार्य जेसंपूर्णसिछता तेहनादावके । उपाय तेहिज निमित्तयोगे अनंतसिहनीपना माटे पोतेपूजानाअवां बक अनेपूजे तेहने परमानंदपूर्णतानीपजे ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥१॥ जव्ययीपजारेकारणनावनोरे॥ नाव प्रसस्तनेसुद्ध ॥ परमश्ष्टवल्लनत्रिनुव नधणीरे ॥ वासपूज्यस्वयंबुद्ध ॥ पू० ॥२॥ अर्थ ॥ तेपूजानाबेनेदबे एकलव्यपूजा बीजीनावपूजा न्हवण विलेपनादिक जेबासनपचार योगसमारवानकरिये तेथढारपापस्थान को आत्मानेउःखहेतुने तेसर्वपलटाववाने पूजामा प्रशस्तरागकरिये तेआत्मानेतजवायोग कर्मनिर्जरवानी नीतिले माटेजिनपूजातेसंबर ते अवस्यकरवायोग्यजे तेमांबायथी फूल केसरप्रमुखनीपूजाते षव्यरूपले तेनावपूजाजे गुणगुणी एकत्वतारूपतेहनोकारण माटेषव्यनिदेपोते तेहनेजकहिये जेनावनाकारणहोये हवेनावनिक्षेपेपूजातेबेषकारनाले प्रथमप्रशस्तनावनिदेपेपूजन बीजोसुचनावनिदेपेपूजन तेहमां भाव ते आत्मानीपरिणति अनेगुणीऊपररागते प्रसस्तजाणवो गाथा ॥ अ रिहंतेसुटारागो ॥ रागोसु मुणीसुपवाणेसुय ॥ एसुपसत्थोरागो इतिव चनात् तथा चन सरणपय नामांकझुंडे सुकमाणुरायसमहु ॥ चपुन पुलियंकुरुकरालो इतिवचनात् हवेप्रसस्तनो स्वरूपलि खे तेमाजेवि घटापरिग्रह परराग तेथीकर्मबंधनपजे अनेअनुकंपातेसातावेदनीनाहेतु बेतेतोसर्व निर्गुणीजीवऊपरपण तथागुण ऊपरअनकंपाकरवी तेनिंदा For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६ दे०चो बा० मारहेवाटयोग्य नक्तंचआवस्यके ॥सुहिएसुअऽहिएसुअ॥ जोमेज संजएसुअणुकंपा ॥ रागणवादोसेणवा ॥ तदेतंचगिरिहामी ॥ १ ॥ इतिवाक्यात् ॥तथा अरिहंतादिपंचपरमेष्टी अने आगमसाधर्मिक न परपक्षपातबिना गुणीपणामाटेजेराग तेप्रसस्तराग तेयद्यपिपुण्यबंध नोहेतु पणबताआत्मगुणनेथीरथवानो तथानवाप्रगट करवानोहेतुबे. पुण्यानुबंधी पुण्यनोहेतुबे एश्रीहरीनपुज्ये पंचवस्तुग्रंथमांकह्यो । गा था ॥ नाणाईगुणरुईबलु ॥ तारसीयगुणसंपयंसंपत्तो छनोगुणसंपतो।। पसत्थरागंतिहंकुणई ॥ १॥ गुणरूइमूलं एट ॥ तेणंगुणवुद्दिनअंन पिटं ॥ जहएलाइपुत्तो ॥ पसस्थरागेणगुणपत्तो ॥ २ ॥ इतिवचनात् इंहाकोइपुजे श्रीगौतमस्वामीने विनुवनदयाल त्रिसलानंदन श्रीवार परमात्माऊपररागहतो तेकेवलझाननेरोधककेमथयो तेहनेनत्तरजे श्री गौतमनोप्रसस्तराग दयोपसम रत्नत्रयीनोतोदीपकहतो पणश्रीवीरविद्य मानबतां रागनीमंदताथश्नही बतेकारणेरागटलवो करने जिवारे कारणमट्यो तेथी रागनीअवस्थाअटकी तिवारेश्रेणीथई तेम प्रसस्त रागसर्वजीवोने टोपसमी रत्नत्रयीनोवीरोधीनथी दाटाकतानाहायु क्त दायेकतानेनजीककरे परंतुदायकरत्नत्रटीयवादियेनही नक्तंच॥ श्रीसंविग्नमुखैत्रीजिनेवरसूरीपूज्यै ॥ संवेगरंगसालायां ॥ सिरित्तोत गुणईहा॥ एलन्नएगुणेसचेतेणंअरिहंताई। सुकुणसुरागं समाहित ॥ १ ॥ ते माटेप्रसस्तनावपूजातेपण साधकतामांबे हवेसुचनावपूजाते जेआत्मानो सामान्यचक विसेषचक्र क्योपसमीचेतनावी तेसर्व श्रीअरिहंतपर मात्माना दायक सिचत्वादिगुणानुयायीप्रटत्ते तेसुछनावपूजाजाणवी एटले गुणरागीथया ने गुणब हुमानीथवु पडे स्वखरूपमांतन्मटाथयेथ के स्वरूपपूर्णतानोपजे एमोदनोमार्ग हवेश्रीअरिहंतवासपूज्यस्वामी स्वयं के ० पोताथी बुद्धथया एहरात्रिनुवननाथ ते परम के अत्यंत For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवासपूज्य जिनस्तवन ए इष्ट के रलियामा बल्लन के बाल्हा लागे तेप्रसस्त रागरूपपूजा जाणवी इति द्वितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ अतिसयम हिमारे तिन पगारतारे ॥ निर्मल प्रनुगुराग ॥ सुरमणी सुरघटसुरतरुतुंबतेरे ॥ जिनरागीमहानाग ॥ पू० ॥ ३ ॥ ० अर्थ || तथाश्री अरिहंतनाचा तिसटानीमहीमा उपरच्यद्भुतता या वर्टाता देखीने अथवासांनलिने जेरागनपजे ते सर्वप्रसस्त रागजावो तथाजगत्रनाजीवोने माहामोहांधकार निवारवारूप धर्मदेसनादेईने वीस एलोयात्मधर्मदेखामे सर्वसंदेहटाले एउपगार नावच्या जीविकाना दातार तत्वथ भूलेपमयाजीवने तत्वनादेखामनार एहवोनपगारीपण श्री अरिहंतनाचे ते पगारीपणा ऊपर जेइष्टता तथा निर्मल कर्मच्यावर हि त केवलज्ञान केवल दर्शन वीतरागताच्य संगतास्वरूप भोगी प्रमुख गुएऊप ररागतेपणप्रसस्तरागकहिटो वलि सुरमली के चिंतामणीरत्न च्ानेसुरब टके० कामकुंन तथासुरतरुके कल्पवृते सर्व इहलोक सुखनाहेतु त थानावच्यशुद्दतानावधारवावालावे तेहने प्रसारजालीने तुछगले छाने श्रीच्अरिहंतनोरागते परंपरांये च्यात्मसुखनो हेतुवे आत्मानागुएनीवृधिक रवानोनिभित्तवे तेमाटे श्रीजिनराज परमदयाल गुल नोगी माहागोप परमोपगारी माहारीतत्वसंपदानाऊपदेसक तेजपरजेजीवने साचीवल खाले रागप्रगटे तेजीवमाहाभाग्यवान तथापवित्रजालवा जेजीवकाम राग दृष्टीराग स्नेह रागनीनी मटालीने श्रीपुरषोतम परमानंद श्रीवासपु ज्यप्रनुकपररागीथको तेनेधन्यवे तेमहंतजीव मोटानाग्यनोधली जा एवो एसर्वप्रसस्त रागभावपूजाकही ॥ इतिवृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ ० ૧૩ For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो० बा० सर्व दर्शनज्ञानादिकगुएाच्यात्मनारे ॥ प्रनुप्र नुतालयलीन || सुधस्वरूपी रूपें तन्मयी रे ॥ तच्छास्वादनपीन ॥ पू०॥४॥ अर्थ || जेयात्मानादयोपसमनावी दर्शनगुण तथा ज्ञानगुण तेस नुनी अनुताथालयलीनथयाचे बहुमानश्री रिहंतनोवे नासनपण छा रिहंतगुनीच्ानंततानोबे रमण श्री अरिहंत गुणनाव नासनीनोबे अनु नवपण अरिहंतगुणनानासननोबे एमजेटली यात्मस क्तिप्रगट अरिहंत गुणनेच्ानुजायीकरीने तन्मयतारूपकरे अनुतानो निरधारना सननोच्यास्वादन तेच्यानंदतायें मग्न रहेतुं सुधस्वरूपी परमात्माते हनोवरू प जेवस्तुधर्म तेमध्ये तन्मयीथईने तेनाच्याखादने अनुनवे पीन के ० पुष्टर हे नावथी भक्तिजाएवी तथाहुंसहुथी मोटो माहरेच्या रिहंतपरमे श्वरजेवोधणीबे हुंमोक्षनामार्गने पाम्यो नेपोतानाच्यात्मगुणनेप्रभुनीप्र भुताने अनुयायीपणेवर्तावे एहवोखी नथ कोर हे ते हने तत्वन क्तिवंत कहिए एहवासमकेति देसविरति सर्वविरति जे ऐपोतानी मूल परिणति अनुताथी मे लवीने आत्मपरिणतिरूपकचंगे प्रभुनी प्रभुताने रमावीरलाले माहानुभाव वे ते सुचनावपूजाजावी ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ सुचतत्वरसरंगीचेतनारे ॥ पामेछा मख नाव ॥ आत्मालंबी निजगुणसा धतोरे ॥ प्रगटे पूज्यस्वभाव ॥ पू० ५ ॥ अर्थ | एमसु निर्मल तत्वी श्री अरिहंतदेव सिधनगवान तेहनारसेरंगा लीथकी तेहनागुणनीनोगी जिवारेचेतनाथसी अन्य विकल्पटाली अ नुनवनावनासहित प्रनुखरूपेरसीलीययी तेचेतना पोताना आत्मनाव नेपा छात्मखनावची यात्मख नावोपयोगी आत्मखनावरमणी खा ए 1 For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवासपूज्य जिनस्तवन ए त्मानुभवीथयो एटले उपादानावलंबी अवस्थापाने अनेजेवारे नव्य जीवच्यात्मावलंबीघाटय तिवारेपोतानागुलनेसाधतो निपजवतो सम्य कदर्शनादिकगुलने प्रगट करतो गुणस्थानक्रमे दोषनीहाली गुणप्रागभा व स्परूपएकत्वस्वरूपानुनवथतोथको तनिताने निपजाववे पोतानोच्ा नादिकालनो सत्तागत पुज्यस्वनावनेकरे एटले पहेला हुंपरमपूज्य नंतगुणी बुं एनिरधाररूप सम्यक्दर्शनप्रगटे स्यावादसत्तानोनासनथाये पबेजे सत्ताप्रगटी तेहनोरमल अनुभवरूप चारित्रगुण प्रगटे पबे सुक्लध्यान अगटे पढे निरावरण केवल ज्ञाननी पजे एपरमपूज्य श्री अरिहंत ने पूजवाथी पोतानो पूज्यस्वभाव प्रगटे || इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ च्यापञ्चकर्त्तीसेवाथीढुवेरे ॥ सेवकपू रए सिद्धि || निजधननदिएपच्चाश्रि तल हेरे॥ यदररुवि ॥ ५० ॥६॥ अर्थ॥ श्रीवीतरागपोते परजीवनामोक्षनायकर्त्ता केमजे कर्त्तीप लो जीवऽव्यनोधर्मनथ] पणश्रीप्रभुजीन सेवाथी सेवकजे नक्तते हने सं पूर्ण सितानीपजे निज के० पोतानोधन जे अनंतज्ञानादिकगुणते प्र भुकाईबीजानेच्छापतानथी एटले कोइ पोतानो गुलबीजानेच्यापेनही अ नेते पोतानी यमुी बीजामांवतेंपनही कोषव्यको व्यनो गु हेपलनही सर्वव्यपोते पोतान) सत्तानाखामीवे तेमाटेअरिहंत पोते काइघ्यापताजनथी परंतु जेा रिहंतने श्रीतसेवे ते निश्चेच्या के० जेहनोकयनथाय तथाविनासनपामे तथाय कर के ० खरखो जरवो जेहमांनथी एवीच्यविनासी अनंतयात्मसंपदा पूर्णानंदादिकश चिल दे के० पामे माटेजिननक्तितेहिज सिद्धतानोपूर्ण उपाय इति ॥ ६ ॥ For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो० बा० जिनवर पुजारेते निज पूजनारे ॥ प्रगटे अन्यसति ॥ परमानंदविलाशीच्य नुनवेरे ॥ देवचं पदव्यक्ति ॥ पू०॥७॥ अर्थ ॥ जेजिनराजनीपूजानक्तिकरवी तेपोतानी आत्मानी पूज नाकरवी प्रात्मगुणवधारवावे च्यात्मसंपदानी पुष्टीकरवी केमजे जिन सेवनाथकी पोतानाच्यन्वीगुणजे सहजज्ञानानंदादिक अनंतसक्तिते पोषे वधे प्रगटे निरावण्थाय तेजीवपरमानंदनो विलासीय अनुनवे के॰ भोगवे सर्वदेवमांचंश्मासमानजेपद परमात्मता पूर्णता निरावर्ण ता निरामयता तत्वनोगता स्वरूपानंदतारूप तेहनीव्यक्ति के प्रगट ता जेकर्मावर्णे अनादिनी आवृतबे ते सर्वकर्मक्षयेथये अक्रिटा अन वनिता सक्तिप्रगटे सुध्धाये तेमाटे निम्पनजिननी भक्तितेपरमात्मता रूप आत्मसिद्दतानोकारले माटे हेमोकार्थीजीवोतमे श्रीवीतराग अ रिहानीपूजनाते विधि सहित निरभिलाषेतत्वसाध्यतायेकरो एहज उत्तम उपाय इतिश्रीवासपूज्य जिनस्तवनं संपूर्ण ॥ ७ ॥ 0 ॥ अथश्रीविमल जिन स्तवन लिख्यते ॥ २०० दासच्चरदास सी परेकरेजी देशी ॥ विमल जिनविमलतातादरीजी ॥ अवर बीजेनहाय ॥ लघुनदी जिमतिम लंघी एजी || स्वयंभूरमानतराय ॥वि० ॥ २ ॥ 0 अर्थ || हे विमल जिन हेपरमेश्वर साहरी विमलता के निर्मलता के dia जे समस्तव्य कर्म भावकर्मपरानुजायीतादिदोषरहित एहवीनि मलता तेवर के बीजाको बदमस्थजीवनेन कहा के कहिसका यनही सिद्धस्वरूपस्यच्यनंतत्वात् वाचक्रमपरिखितत्वात् चायुष्यच्यल्प 0 0 For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीविमल जिनस्तवन १०१ त्वात् तेनवक्तुंनसक्यतेकेन इतिनाष्यवचनात् लघुनदी के० नान्ही नदी जिमतिमलंघीयें के उतरिये पणअसंख्याताकोमोजोजननो व यंनूरमणनामासमुफ तेकोपामरजनथीतरयोजाटयनही अने अनुना गुणतो खटांनूरमण समुत्थीपण अनंतगुणा तेसर्ववचनेकह्याजाटानही इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १ ॥ सयलपुढवीगिरिजलतरुजी। कोतोले एकदाथ ॥ तेहपणतुझगुणगणनणीज। भाषवानदीसमरथ ॥ वि० ॥ ३ ॥ अर्थ ॥ सयल के ० सर्वपृथ्वि गिरितेपर्बत जलतेपाणी तहतेवनस्प ति एसर्वनेकोइएकहाथे तोले के उपामे एहवोबलवंत पणबालवीर्य वंतते हेअनुजी ताहरागुणनागण के० समुह तेकेहवानेसमर्थनही कार णतेहमां बालवीर्यनीसक्तिने अनेतमारो निर्मलस्वरूपते केवलज्ञानी दायकवीर्यवंतनेगम्य तेनेपणसर्ववचनेगोचरथायजनही तोबालवी र्यवंतथाकेमकेहेवाय ॥ इतिपितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ सर्वपुजलननधरमनाजी ॥ तेमअध मप्रदेश ॥ तासगुणधर्मपज्जवसद्ध जी ॥ तुझगुणएकतणोलेश । वि० ॥ ३ ।। अर्थ॥सर्वपुजजभव्य तथानन के अकासव्य धर्म के धर्मास्ति कायव्य तेमजअधर्मास्तिकायनापदेस एटले एपंचास्तिकायनापदे सअनंता तेहनागुणअनंता तेगुणधर्मनित्यत्वादि तेपणानंता तेहनाप र्याय तेहथाअनंतगुणाले तेसर्वहेपनुजी ताहरोएकगुणकेवलज्ञानरूप ते हनोलेसमात्र केमजे एसर्वपंचास्तिकाटनानाव वर्तमानकाले अ नेकेवलितो एसर्वनाअतीत अनागत अनेवर्तमान एत्रणेकालनापर्या For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ देचोम्बा य पादव्ययध्रुवरूप तेहनेएकसमयमांजाणे तथा एथाअनंतगुणाबी जाधर्मनेपणजाणे तेमाटकेवल ज्ञाननी सक्तिअनंतगुणी उक्तंच वि सेषावस्यके येहि केवलस्यनिःशेषज्ञेयगताविषयता पर्यादास्तेझाना बैतवादिनयमतेन ज्ञानरूपत्वादपित्यैवस्वपर्याया प्रोक्ता नतुपरपर्या यापेक्षया श्त्यविशेषकेवल त्वविरोधोनासंकनीयइति ॥ इति ॥३॥ एमनिजनावअनंतनीजी ॥ अस्तिताके तलीयाय ।। नास्तितास्वपरपदअस्ति ताजी॥ तुझसमकालसमाय ॥वि० ॥४॥ अर्थ ॥ एरीते जेम केवलज्ञानगुण अनंतपर्यायीने तेमकेवलद र्शनादि पोतानानावगुणपर्यादा अनंताजे तेहनी अनंतता केटलीथा दो खव्यखेत्र कालनावरूप अस्तिपणो ते अनंतोडे तेमपरपर्यादा जे बीजाजीवधव्य तथा अजीवषय्य तेहनाप्रदेश तेहनावनाव तेहनाग पर्याटानी जे अनंतता तेसर्वनो नास्तिपणे तमारामांचे तेपणअनंतो बे तेतस्ससपज्जाया ॥ सेसापरपज्जवासवे ॥ इतिश्रीपूज्यपादां तथाच हेमस रिटो टास्यसमवेता तेतस्यवपर्यायानोच्यते अस्तित्वेनसंबंधाते च अनंतायेच घटादिगताःश्वास्यपर्यायास्तेन्योव्यारत्तित्वेननास्तित्वे ससंबंधा रति एनास्तिपर्याय तेपण अव्यनिष्टित तेषामपिव्यारत्तिरूपत यापरामार्थिक वपर्यायवनविरुध्यते एटले नास्तिपणो तेपणवस्तुनाप र्यायवे एमनास्तितानीपण अनंतताले तेवपदेके पोतानेपदे झानगुणना अमूर्तत्व चेतनत्व सर्ववेतृत्वा प्रतिपातित्वनिरावर्णत्वादय केवल ज्ञान स्यवपर्याय एमकेवल ज्ञानना वपर्याटो अस्तिरूप अनंताजे हवे के वल दर्शनादि अनंत गुणना जेपर्याटले ते सर्व केवलज्ञानमांनास्तिपणे रह्याने ते जेमकेवल ज्ञानअस्तिनास्तिपणे तेमज केवल दर्शनचारित्र For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री विमल जिनस्तवन १०३ सुख अरूपता अगरुलघुता परमदानादि अनंतगुण ते सर्वपोतानी ए कव्यनिश्रित अनंतगुणनी नास्तिताने लीधाथकारझावे तेमजबीजा जीवश्व्य तथा पुजलादिक जीवव्य ते सर्वनागुपर्याटनीपण ना स्तितालीधाथकारावे एमखपदे नास्तिता तथा परपदेपण नास्तिता ते सर्व नास्तिताप तेष्व्यमांहेज स्तितापले रोवे नास्तिधर्मनी घ्यास्तिताते ऽव्यमांजळे तिहांभावना जे जीवनेविषे ज्ञानादिकगुण नी च्यास्तिता तेमवर्णादिकनी नास्तिताबे तेवर्णादिकपणो जीवमांनथीप एतेन नास्तिता जीवमांरहीबे एमतत्वार्थ मांकोबे || यदिपरनास्तित्वा जीवादिपुनस्यात् तदाजीबा दिनांपरत्वप रिएतिस्यातइति माटेजीवमांच्या स्तिपलो तथा नास्तिपणो तेबेहु प्रस्तिपरह्याबे वक्तंचविसेषावस्य के. विविधं हिवस्तुनःस्वरूपच्छास्तित्वंच नास्तित्वंच ततोयेयत्रास्तित्वेन प्रतिबधा तेतस्यस्वपर्य्यायाः येतुनास्तित्वेन संबंधा स्वेतस्यपरपर्यायाः प्र तिपाद्यते इतिनिमित्तभेदख्यानपरावेव खपरसब्दौ नत्वेकेषांतत्रः सर्व या संबंध निराकरणपरौ तो स्तित्वेन संबंधाइतिपरपर्यायावच्यते न पुनःसर्वथा तेतत्रनसंबंधाः नास्तित्वेन तत्रसंबंधा इतिवचनात् . माटे नास्तिपणानो वस्तुथी संबंधजवे तेखपद के ० खजव्य नागुणांतरनीविवचितगुणमां नास्तिता तथा परपद के० परव्यनागु एनी नास्तिता एनास्तितासर्व वस्तुधर्मेपरिणामीक नावेरहावे ते सर्वनि रावर्णपणे हे श्रीविमलप्रभु तमार) परिणामिकतामध्ये तथा कर्तताम ध्ये भोग्यतामध्ये समकाले के० प्रतिसमयेसमाबे एटली अनंतता तमाराविषेवे तमारी निर्मल ताते समकेतिजीवने श्रागोचरले पूर्वधर नेपरोकनासनगोचरखे छाने केव लिने प्रत्यक्ष एरा अभिलाप्य तथा अनभिलाप्यनीच्अनंतताबे तेबीजाको थी कहायनही माटे हेनाथताह रोग्यानदर्शन सुखधर्मनीच्यनंतता तेजेनव्यजीवने स्याधादोपेत नासन For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो० बा० प्रतीतगोचरथइ तेजीवनेपलधन्यबे तो हे प्रभुजी तमारी सीवातकहुं त मेतो माहापूज्यढो मोहोटाबो इतिचतुर्थ गाथार्थ || ४ || १०४ ताहरासुद्दस्वनावनेजी || आदरेधरी बहुमान ॥ तेहनेते दिजनीपजेजी || एकोई अद्भुततान ॥ वि० ॥ ५ ॥ 0 ार्थ ॥ प्रभुजीताहरोजे सुधनिरदोषस्वभाव अनंतानंदादिरूप अक्रिय का तेहने जे आदरे के अंगीकारकरे वंदन सेवन स्म र ध्यानादिकपणेच्यादरे बलिबहुमान के अत्यादरपणे जे हे तेसा ध्यार्थी सेवकनो तेहवोज पोतानो स्वभावसुध्थाय निःकर्मतानीपजे अनुनाजेवो स्वभाव निर्मलथाय माटेहेप्रनो एकोई अद्भुततांन के० तंत जे रिहंत प्रभुनो सुखरूप चिंतवतां ध्यानकरतां पोतानो स्वरू पनीपजे एहिजा श्वर्यबे इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ तुमप्रभुतुमतारकविभूजी ॥ तुमसमा वरनकोय ॥ तुमदरसाथ की हुतरयोजी ॥ सुधआलंबन होय || वि० ॥ ६ ॥ अर्थ || माटे हे श्रीविमलनाथ माहरानु अधिपतितुमेजबो वलि मुजने संसारमांथी तारवावाला परम निर्यामक परमसामर्थ्यवंत तुमेवो देव नाथ हे पासिंधू हेज्ञाननानु तुंमसमानमाहरे बीजो कोईनथ | त्रीभुवनमांहेत मेज दयाल बगे हेजगतवत्बल ताहरोदर्शन के देखवो ध्यथवादर्शनते समकेतपामेथके हुंतरयो संसारसमुज्ने उलंगीपारथ यो हांकार पामेथके नक्किनाहरषे उपचारखचनको एमसुध निर्मल स्वरूपनोच्यालंबी थयाथका हेनाथ ताहरावरूपने अवलंबे मेमाहारो खरूपन लख्यो तेन लख्याथी खरूपरुचीन पनी पखरूपविश्रामी अनु For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअंनत जिनस्तवन १०५ नवध्यानीथवेतरयो एनावीकार्यनो वर्तमानारोपनैगमनयनोवचन इतिषष्ठ गाथार्थ ॥ ६ ॥ प्रनुतणीविमलतानलखीजी ॥जेकरे थिरमनसेव ॥ देवचंपदतलजी॥ विमलानंदस्वयमेव॥ वि० ॥७॥ अर्थ॥ एरीते अनुजीनीविमलता नलखीनेजेषाणी थिरमन के० ढमनेसेवानक्तिकरे तेसमकेति देसविरति जीव सर्वदेवमांचंघमासमान पद परमात्मपदलहे के पामे अनादिसंततिसंयोगी नावकर्मन पाधीने दयकरीने निर्मल सिबुछ आत्मतत्वनीपूर्णतातेपामे हांस्तुतिकर्तानो नामपण देवचंब तेसुचव्यो वलिजेमध्ये विमल के निर्मलआनं दते खमेव के पोतेज तेपोतानोआनंदपोतेभोगवे एहवाअनंतधर्म पागनावरूप श्रीविमलनाथनीसेवनाकरो मोदा जीवने श्रीअरिहंत सेवन तेहजमोटोकारण अनादिनीत्रांतोटालवानो पुष्टनिमित्त ॥ ॥ ७ ॥ इतिविमल जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ॥ अयश्रीअनंतजिनस्तवनलिख्यते॥ ___ दोवाहोपनुदीवीजगगुरुतुज एदेशी ॥ मूरतिहोपनमूरतिअनंतजिणंद ॥ ताहरीहोज्नुता हरीमुझनयणेवसीजी ॥समताहोपनसमतारसनो कंद ।। सहेजेहोअनुसहेजेअनुनबरसलसीजी॥१॥ अर्थ | हेअनंतनाथजिणंद ताहरी के तुमारीमूरती के मुघा तेमाहारा नेत्रनेविषेवशाचे ते मुजाकेहबी जे समताजरागध्वेषरहितपणो तेरूपरसनोकंद वलिसहेजे प्रयासविना अनुनवस्व भोगीपणो तेहना रसथीलीन तन्मदा ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोबा नवदवहोपनु नवदवतापितजीव ॥ तेह नेहोप्रनुतेदनअमृतघनसमीजी ॥ मिथ्या विषहोपनुमिथ्याविषनीटेव ॥ दरवाहोप अहरवाजांगुलमनरमीजी ॥२॥ अर्थ ॥ वलिनवजे चारगतिरूपसंसार तेरूपदावानल नातापेकरी ने बलीरहेलाजीवोनेपरम सीतलताकरवाने ताहारीमूरती ते अमृतना मेहसमान एटले संसारनोताप तमारा दर्शनीमटेडे वलिमिथ्यात्वरू पविष तेहनी खीम के ० मुर्ग तेहनेहरवाने जांगुली के गारुमानामंत्र समान ताहरीमति ॥ इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ भावदोषनुनावचिंतामणीएद ॥ आतमहोपनुआ तमसंपतापवाजी॥ एहिजहोप्रनुएहिजसिवसुख गेह ॥ तत्वहोनुतत्वालंबनथापवाजी॥३॥ अर्थ ॥ वलिहेपनु तुमारी मुशा नाव चिंतामणिरत्नसमान एटले चिंतामणिरत्नते इंजियसुखनोहेतु अने श्रीवीतरागनीमुक्षते मोदसुख नोहेतु माटे आत्मानीअनंतज्ञानादिक संपतिापवाने चिंतामणीरत्न समान माटे एहिजसीवसुखनोघरचे तत्वजे वस्तुनोमूलधर्म तेआ लंबवाने तुमारीमूर्तिश्रेष्टकारणजे ॥ इतिबृतीयगाथार्थ ॥ ३॥ जाएदोषनुजाएआश्रवचाल॥दीदोपदीसं वरवधेजी ॥ रत्नदोषनरत्नत्रयीगुणमाल ॥ अ ध्यातमहोपनूअध्यातमसाधनसधेजी ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ चलि जाटा के नासपामे थानव के नवाकर्मलेवानी चाल एटले प्रनुजीनीमूर्तिदोवे संवरनरहिथा आत्मधर्मरमणरूपव For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनंत अनस्तवन १०७ धे वलि सम्यक्रशन ज्ञान चारित्ररूप रत्नत्रटीगुणनीमाला के श्रेणी जेहमांजे एहवीअध्यात्मात्मरूप तेहनासाधन के नीपजाववानो व पाय ते सधे के ० नापजे ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ मोहोनूमीगसूरततुझ॥ दीगहोप्रनूदीगरु चिबदुमानथीजी॥ तुझगुणदोषनूतगणनास नयुक्त ॥ सेवेहोषनूसेवेतन नवनयनयीजी ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ हेअनुजीताहरी सुरत के थापना तेयाकाररूप सुंदरम जादीनी तेघणोज मीनके मिष्टलागी पणकेवीदीतीजे रुची मोदानिला षयुक्त तथा बहुमानसंयुक्त अत्यतंहरषेदीठी जे आजहुंधन्य कृत्यपु एय जेमवसुदेव हिममध्येकह्यो कोविहुपुनविन ॥ वविन पुत्वंचनव सहस्सेहिं ॥ तेणंजिणवरदसण || लंनोमयंजेलको ॥ १ ॥ तेथा छ हो वीतरागता अहोग्यानता अहोउपगारता अद्भुतता आश्चर्यताजे हुँ रंक दीन मोहेमन असंटामीने एमुखानोटोगबन्यो ते घणीजमोटी वात एहसाबहुमानेदीवी एहवी अरिहंतमुशते अरिहंत ना केवलझाना दिकगुण अनंतचतुष्टय तेहनानासन उपयोगयुक्त जेजीवसेवे पर्युपास नाव्य तथा नावथीकरे तेहने भवके । संसारनो भानथी उक्तंच ३ कोविनमुक्कारो ॥ जिनवरवसहस्सवचमाणस्स ॥ संसारसागराज ॥ ता रेश्नरंवनारंवा ॥१॥ इतिवचनात् ॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ नामहोपन्नामेअदभूतरंग ॥ वगाहोपनत्व गादीनुल्लसेजी ॥ गुणआस्वादहोषनगुणअस्वा दअनंग ।। तन्मयहोनुतन्मयतायेजधसेजी॥६॥ अर्थ वलि हे अनुतमारोनामसानल वाथी अद्भुत के विस्मटानूत For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ देचोम्बा रंगनपजे वलिहेदेव ताहरीपरमोपगारीथापनादीवाथी उल्लासथायडे व लिथापनानेनिमित्तेगुणजे चतुष्टयादिक परमनिर्मल यथार्थोपदेसादिक वचनातिसय असोकरद इंध्वजादिकदेखीने अनंगगुणनोसावादन थाय ते जेजीव तन्मयतापणे श्रीअनुनागुणीधसे तेहने इत्यादिकवा तोनोआंनदथाय इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ गुणअनंतहोपनुगुणअनंतनोवृंद ।। नायहोप्रनू नायअनंतनेआदरेजी॥देवचंदोषनुदेवचंज्ने आणंद ।। परमदोषनुपरममहोदयतेवरेजी ॥७॥ अर्थ॥ एवाग्यानादिक अनंतगुणनाद के ० समूह एहवाश्रीअनं तनाथस्वामी ने जेआदरे उपादेयकरे ते देवचं जेस्तुतिकर्ता अथवा चोसवइंध तेहने आनंदपरमानंदमटी जेपरममहोदयावंत मोक्षरूपस्था नक ते नक्तिवंत जीव वरे के ० पामे इतिश्रीअनंतजिनस्तवनंसंपूर्ण ॥७॥ अयश्रीधर्मनाथजिनस्तवनलिख्यते सफल संसारअवताररहुंगणुएदेसी धर्मजगनायनोधर्मसुचिगाईये ॥ आपणोआत मातेहवोनाविये॥जातिजसुएकतातेहपलटेनह।। सधगूणपज्जवावस्तूसत्तामयी ॥१॥ अर्थ ॥ एमांआत्मवव्यन साधनताना बाधकतानो उपयोगाणे तिहांधमरहवेनामे पनरमांतीर्थकर जगत्रनपगारी परमतत्वी जगत्रना नाथ तहने परमहितकारीधर्मप्रगट्यो तेआत्मस्वभावीधर्मबे. उक्तंच धर्मसंगृहण्या जोपुणआयसहावो धम्मोपगिरसश्त्यादि अ थवा जनयख्खरहेकश्यादि पुनःनावधर्माधिकारे जीया नावधम्मो॥ For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीधर्मनाथ जिनस्तवन १०॥ कम्मानावेणजोस्खलुसहावो इत्यादि ॥ कम्मविम्मुक्कसरूवो ॥ अणिं दियत्ताअबिझनेशान ॥ स्वादिविरहतोवा॥अणादिपरिणामनावा ॥ ॥ १ ॥ इत्यादिधर्मस्यस्वरूपंक्तंते ॥ ___ एहवोश्रोधर्मनाथस्वामीनोधर्म सुचीके ० पवित्रनिरावरण परानुजा यीपणारहित तेनगाश्ये वारंवारसं नारीये तत्वप्रगटस्पतेस्तविये अने पोतानोआत्मापणतेहवोजभावीटों के विचारीटों एटलेजे हवो धर्मना थस्वामीनोधर्म तेहबोज अमारोआत्मानोधम तथाच सिघप्रानतटी कायां जारिससिघसहावो।तारिसनाबोहुसन्धजीवाणं ॥ तेणंसिछतरू॥ काट्यवानवजीवहिं।। ।। तथाचतत्वार्थटीकायां। जिवोजीवत्वावस्थोसि छः इतितेमाटे सिधपणोते जीवनीपोतानी अवस्थाले तोकोपुबजे सि तथासंसारी सकर्मा समोही मिथ्यात्वि असंटामीने तुल्यकेमकहोबो तेहनेकहे जेवस्तुनी जातीएकतापणे तेकिवारेपलटेनही माटेजीव अव्य अनादिनोकर्मावर्त्तथयोतो पणपलटेनही स्वजातीमुकेनही तोमा रीतथाश्रीधर्मनाथस्वामीनीजीवजातीएकडे श्रीताणांगमांकझोडे एगेआ याश्त्यादि तेमाटेयद्यपि अत्यंत मोहतिव्रबोधमांपमयो तोपणजीव त्वपणोसंग्रहनटोतेवोज सुचनिर्मलपर्याटामटी वस्तुनीसत्ताडे पदार्थ गुणपर्यायसंयुक्त उक्तंचतत्वार्थे गुणपर्यायंचव्यं॥इति॥दवंपज्जववि कादव विउत्तायपशवानथ्यो।उ प्यायविश्नंगाहै ॥ दवीटालख्खणं एय॥१॥इतिसंमतितः गाथानप्पज्जतिचटति॥परिणमंतिगुणाणदबाएं। दवंप्यसवाटागुणा॥नगुणप्यज्जावाएंदवाएं। ॥अपज्जयजाणणानथीत थाआवस्यकनियुक्तौ गुणाणामासदत्वं ॥ एगदबसियागुणालख्खणं पशवाणंतु ॥ ननन निस्सिटानवेति उत्तराध्ययने तेमाटेजीवादिकवस्तुनीसत्ता सुधगुणपर्याटामयीने यद्यपिजीव अ सुपरिणामी अनेझानादिकगुणसर्व कर्मावर्त तोपणसत्तासुको For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० दे०चोबा. निरामय माटेपणाात्मानोवरूप तेश्रीधर्मनाथस्वामी समानवि चारवो एहजतत्वालं बनीथवानोमार्ग इतिप्रथमगाथार्थ ॥ ५ ॥ नित्यनिरवयववलिएकअक्रियपणे ॥ सर्वगतते हसामान्य नावेनणे ॥ तेहथीश्तरसावयव विसे षता ॥ व्यक्ति नेदेपमेजेहनीनेदता ॥॥ अर्थ॥हवेसामान्यविना वस्तुनीबतिआधारतानही अने विसेषविना कार्टानही पर्यायप्रत्तिनही तेमाटेपंचास्तिकाटाते सामान्यस्वभाव विसे पवनावमयोबतिहांसामान्यखनावनोलदणकहे जेनित्ययविनासीप आकासनीपरे सावटावहोटो अनेजे निरअवटाव जेहनेविभागअंसन थी तेथील किटातेपणएकज पणजे खजातिमांविधानावनही ते एकप णेजाणवारूप अथवापरस्पदरूप क्रियाकरेनही तेथीअक्रिदातेपणको इपर्यायमांव्यापे कोश्मांनव्यापे तेहवानहीपणसर्वपर्यामांव्यापे एलक्षणजे हमांजे तेहनेसर्वझदेवे सामान्यस्वनावकडंडे एसामान्यल दणश्रीविसे षावस्यकेकडं एगंनिच्चंनिरवटाव। मक्कियंसव्वग्गंचसामनं ॥ एगाथा नाव्याख्यानथीजाणवो तिहांनावनाजेनित्यपणोसामान्यधर्मबतेपदार्थ मांनित्यपणोसदा तेनित्यपणानेपर्यायषदेसरूप अवयवनथी तेनित्य पणोसर्वएकजबे अने जाणवादिकको क्रियाकरतोनथी तेथीअक्रिय बेतेनित्यपणेप्रदेसमां गुणमां पर्यायमां सर्वमांव्यापक तेथीसर्वगतलेएट लालवणने पहोचतेमाटेनित्यपणतेसामान्य हवेविसेषवनावनोलद कहे तसामान्यथा इतर के बीजाजेसावटयवसषदेसी अविभागपर्या यसंयुक्त अनेकअनित्यसावयव सक्रिटा तेविसेषस्व नावजाणवो पणव्य क्तिजेपदार्थ तथागुणांतरतहनानेदे जेहनीनेदताके जुदापणोपमे एटले सर्वव्यक्तिनविषे विसेषपणोजुदोजुदा विसे पनीसर्वत्रजुदायाने तेविसेष For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीधर्मनाथ जिनस्तवन १११ खनावमां ज्ञानादिकगुणनानेदजाणवा एसामान्यविसेषनोलवणकलो सामान्यविसेषसत्तामयाव्य ॥ इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ एकतापिनेनित्यअविनासता ॥ अस्तिनिजक शिथीकार्यगतनेदता॥नावश्रतगम्यअनिलाप्य अनंतता॥ नव्यपर्यायनीजेपरावर्तिता॥३॥ अर्थ ॥ एसर्वधर्मनाथप्रभुनोधर्मले हवेसामान्यस्व नावनालदणकहे। १. प्रथमषव्यनासर्वप्रदेस गुण पर्यादा तेहनोसमुदायातेएक पिमरू पडे पणभिन्न रूपवर्त्ततोनथी तेनेएकखनावकहिये. २ बीजो नित्य अविनासता अनंगुरतापणो धूवपणो तद्रावाव्ययं नित्यं इतित्वार्थवचनात् तेनित्यखनावकहिये. ३ श्रीजो सर्वव्यपोताने स्वभावे ताजे पण कोक्काले पोनानीक चिनेमुकतानथी तेथास्तिवनावकहिटो. ४ चोथो नेदखनावतेकार्यगत एटले जे ज्ञानादिकगुणतेसर्वपो तापोतानाकार्यनेकरेले परंतुएकगुणते बोजागुणनाकार्यनेकरतोनथी झानतेजाणवारूपकार्यनेकरे दर्शन तेदेखवारूपकार्यनेकरेने तथा चारित्रतेरमण तारूपकार्यनेकरे नोग्यगुणतेनोग्यनेकरे इत्यादिक कार्यनानेदे उव्यमांनेदस्वभावपणो. ५ पाचमुं अनिलाप्य स्वभाव तेवचनथाकहिसकाय तेहवाप णात्मव्यमांअनंताधर्म जेनावश्रुतज्ञानेजणाठा माटेश्रुतझाननीस क्तिपणअनिलाप्यनावसीम तेअनिलाप्यखनावडे ६ बडो सर्वषव्यमांपर्यायनीपरावर्तिता के पलटणताजे तेभव्यत्र भावकहिटोएबव नाय अध्यमा गुणमा पर्यामां माटे सामान्यखनावक हिटो ॥ इतिवृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૨ दे० चोबा देवगणनावअविनागअनेकता ॥ नासनत्पाद अनित्यपरनास्तिता ॥देवव्याप्पत्वअनेदअव्य क्तता॥ वस्तुतेरूपथीनियतअ नव्यता ॥४॥ अर्थ ॥ हवेविसषस्वभावकहे. १ पेहेलो अनेकखनाव तेजेदेवनाअधिनागप्रदेस तेथीपदार्थ नेकख नावाने तथागुणाविनाग जे एकएकनाअनंताय विभागले जेम चारित्रनाअविभाग संयमश्रेणीमांकया वीर्यनाअविभाग योगस्थान अधिकारे कम्मपयमीमांकया तेमाटेगुणाविनागपणेपणअनेकखनाव एकएकषव्यमांअनंतागुणजे तेवलि एककागुणमांअनंतागुण विभागले तेअनेकखनावता तथा भावाविनागेजेपर्यायधर्म तेझानादिकगुणना अनंतापर्याटानी सुदमतागहन तेपणअनेकखनाव एटले क्षेत्रे त थागुणे अनेपाटये सर्वरीतेषव्यमांचनेकताः । शबीजोनासके व्ययतथानत्पादएपरिणतितेषव्यमांथनित्यखनावडे ३ त्रीजोपर के० आपणथीबीजाजेषव्यतेहनाधर्मतेअन्यव्यमांन थोएटले एकपव्यनाजेधर्मते बीजीव्यमांनपामीटों तेनास्तिवनावले. ४ चोथोआत्मानासर्वगुणपर्यायते निन्ननिम्नकाकरे परंतु क्षेत्र भाजनते सर्वनोआत्माले माटे गुणपर्यानीअनंतता पण कोइमूलषव्यने तजीवसकतोनथीएकत्रेएकाधारपणेअवगाहीरयातेअनेदस्वभाव __५ पांचमो वलि वस्तुनेखरूपे केवलझानगम्यपणे वचनेअगोचर अनंतधर्मात्मकपणे बव्यनोअननिताप्यपणोतेअबक्तव्यखनावले उक्तं च श्रीविसेषावस्यके अनिलाप्येनावेन्यःअनभिलाप्याअनंतगुणाति ६ बडो अनेकपर्यानोपरावर्त्तने पण वस्तुनामूलरूपीपलटेन ही ते रूपेजरहेजे एनिटातपणामादे वस्तुमा अनव्यवनावडे. For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीधर्मनाथ जिनस्तवन हिसर्वस्वनावसमतितर्कतथाधर्मसंग्रहणीनाव्याख्यानथीजोवा एसामा न्यस्वभावते पदार्थनोषव्यास्तिकमूलधर्म एहवापरिणमनपणाथंकी सर्व पदार्थ स्याहादादिकहेवायने जेकालेएक तेसमये अनेक जेसमय नित्य तेसमये अनित्य जेसमयअस्ति तेसमयनास्ति जेसमयनिन्न ते समयअभिन जेसमटोवक्तव्य तेसमयेअवक्तव्य जेसमयेनव्य तेसमये धनव्य इत्यादिक एमवलि नित्यानित्यादिक एकएकवनावनी सप्तनं गीथाटो तेवाअनंतावनावे अनंतिसप्तनंगीयो व्यनेविषेथाय तेस्या चादरत्नाकरावतारिकामांकडो जेनित्यानित्याद्यनंतखनावनेदतौ प तिधर्मे भिन्नाभिन्नासप्तनंगीएवमनंताः सप्तनंग्योनवंतितिातथाचश्रीजिन वनसू रिवाक्यं॥बहुविहनयनंग॥वनिच्चंगणचं ॥ सदसदननिला प्यालाप्यमगंअगइति ॥ एवनाव महोपाध्यादाश्रीयसोविजयाजी खकतवव्यगुणपर्यायना रासमध्येसमर्थ्याने तेथीजोवा ॥ इति ॥४॥ धर्मप्रागनावतासकलगुणसुचता ॥ नो ग्यताकर्तृत्तारमणपरिणामता ॥ शुचस्व प्रदेशतातत्वचैतन्यता ॥ व्याप्यव्यापक तथाग्रात्यग्राहकगता ॥५॥ अर्थ। हवे बिसेषवनावकहे अव्यनोधर्मजे ज्ञानादिक तेहनी प्रागना वता के प्रगटपणो ते आविर नावधर्म बीजोझानदर्शन चारित्रादि सर्व गुणनीसुछतायें सर्वस्वगुणनो भोगीपणो तेनोग्यताधर्म तथा कर्त्तताके कापणो सर्वप्रदेसकार्यानुगत समुदायप्रति कार्योत्पादकंकर्तृत्वं तेध र्मास्तिकायादि व्यनेषदेसें चलनादिसहायरूप कार्यनोथावो ते भिन्न निलप्रदेसने आश्रये अने जीवषव्यनोजाणवा देखवारूपकार्य ते सर्व असंख्यप्रदेसना मलवाथीने तेमाटे जीवनेविषेक पणो तेवि For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ दे ० चो० बा ० सेवनावले वलिरमणजे कोईकने विषेरमवो तथा परामिकताजे परणामीकपलो तेसुचस्व प्रदेस पलो तेपण विसेषख नावडे तत्व के ० वस्तु मां मूलधर्मे चैतन्यता तेपण विसेषस्वनावळे व्याप्य व्यापकपणो तथा पाल पाहकपणो तथा आधाराध्येयपलो संरक्षणपलो खवामीनावादि क एसर्व विसेषस्वभाबजाएवा एरीतेसामान्य स्वभाव विसेषस्वभाव ते सर्वश्रीधर्मनाथ परमेश्वरना निरदोषथमा तेहमांपण सामान्यस्वभाव तो निरदोषसदाहता परंतु संयोगे विसेषस्वभावनो विधानाव थयो हतो ते श्रीधर्मनाथप्रभुजी तुमेव रूपालंबनी थयी करणगुलेजे ज्ञानदर्शनचा रित्र छाने वीर्य तेहने स्वरूपथी एकत्वकरी स्वरूप प्रागभावकरी खरू पेवस्यानो माटे निरामयथथागे इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ संगपरिहारथीस्वामिनिजपदल ह्युं ॥ सु६ आत्मिक आनंदपदसंग्रयुं ॥ जद विपरना वीकुंनवोदधिषस्यो | परतलोसंगसंसा रतायेंस्यो ॥ ६ ॥ 0 अर्थ || हवी अनंतगुण निर्मलता प्रभुजी ने जेरीतेनीपनी तेरीत कहे देवपरमेश्वर तुमे पुनलादिकनो सर्वथापरिहार के० त्यागकरयो तेही निज के० पोतानो परमपदाव्याबाधानंदरूप चिदरूपावस्या नरूपलो के पाम्यो घने हेप्रभुजी जहवी के० जोपणहुं पर नि मित्तपामीने परभावरूप परलमीने वर्तमानपरानुयायी नवोदधी समु =ने विषेयस्योतुं नव निवासीथयोढुं तेथी पुलादिकनेसंगे संसारताना वथी नवानवा अध्यवसायीपणांपामीने व्यथ। चारगतीरूप संसारमां ममवापले कराने एमाहारोथालामस्योबे एटले एसंसारे मुऊने ग्रासकरी जो माटे हेदेव तुमे संगी हुंसंगी तुमे मुक्त हुं तमेा कर्मा हुं For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीधर्मनाथ जिनस्तवन २१५ कर्माश्रित तुमेखरूपनोगी हुपूजल नोगी तुमेस्वगुणपरिणामी हुंपुजलाश्रि त रागक्षेषपरिणामी तेथी हेअनुमाहरेतो माहरी भूलथी कोश्कन जे सत्तामाकपिणामां परिणामिकतामां नहतो तेनीपनो एअसुचकर्त्ताप गोमेकरयो तेहथी स्वगुणयावरीने पुजलनो पाहेकथयो पुजल नेलवे थीमाहरो यात्मापुजल भोगीथयो एटलो ताहरे माहरे अंतरपीगयो नेथीहुं संसारीमने तमे सिमध्ययबो इतिषष्टमगायार्थ ॥६॥ तहविसत्तागणेजीवएनिरमलो ॥ अन्य संश्लेषजिमफिटकनविसामलो॥जेपरो पाधिथीदुष्टपरिणतिग्रही ॥ नावतादात्म मामाहेरूंतेनही ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ तोपण सत्तागुणेषव्यास्तिकसंपहनये एमाहरोजीवनिर्मल निष्कलंक असंगी अपीजे कोणदृष्टांते जेमस्यामादिकपुटसंटोने फटिकरत्ननोदलस्यामदोगमांगावे परंतु फटिककांस्यामथटोनथी ५ अपरिक्षकलोक स्यामजाणे पणजातेजेहवोहतोतेहवोज तेमक मसंगे आत्माचसुधरूपदेखाटाले परंतु तत्वज्ञानीएनेजाते निर्मलजाणे ने तेमनघावंतपणनिर्मलजाणे जेपरउपाधियी पुष्टपरिणति कर्मकाप णारूपयहीने तदात्मकभावमांतदात्मसंबंधेकरी तेसर्वउपाधीकनावमा हरुनथी संयोगेसंबंधमल्यो परंतुसमवायसंबंधेनथी जेविभावतेत त्पत्तिसंबंध परंतुतदात्मसंबंधेनथी एमनावq इतिसप्तमगाथार्थः ॥ ७॥ तिणेपरमात्मप्रनुनक्तिरंगीययी॥ सुचका रणरसेतत्व परिणतिमयी ।। आत्मग्राहक थयेतजेपरग्रहणता ॥ तत्व नोगीययेट लेपरनोग्यता॥ ॥ For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ दे०चो० बा० अर्थ || माटे एविभावरिए तितेमाहरु मूल धर्मनथी माटेएने निवारी ये तोजाये तो माहरो च्यात्मास्वरूपावस्थितथाटा एमविचारीतेनोउपा व्यचिंतवेबे जेएसंसारीच्यात्मापरानुगतथइरह्मोवे तेहने जो हमणास्वरूपथी जो मितो टिकीस के नही अनेपरविजातीथी जोमयोबंधनेवधारे माटे परखजात जीवजेच्प्रमोही सुधज्ञानीथी जो मिये तोख जातीखरूपरंगी थाले ने अरिहंतनोखरूप तथाच्या पायात्मानो खरूपतुल्यये ते थीतेनास्वरूपेरसिकथाये तोपवे कर्मेच्यावरचोपण आत्मस्वरूपनी रूची उपजे तेरुचीथी पोतानाख रूपनेसर दहे जाणे रमे बद्यमकरे परनावतजेए अनुक्रमथी संपूर्णस्वरूपपामे तेमाटे परमात्मा श्रीधर्मनाथजीनी नक्तिनोरं गीथीने सुइकारण नेरसे यात्मातत्वपरिणतिमांमग्नथाय पोतानो च्यात्म स्वरूपजोवे ध्यावे संभारेतथा तेहने जप्रगट करवानायलकरे एवीरीते जेवा रे च्यात्मानोग्राहकथाम तेवारेानादिनी परग्राहकतात जे केमजे छात्म स्वरूपनो ग्राहकथयो तेपर भावनेग्रहेन ही जेटली च्यात्मपरिणतिच्यात्मधर्मे ग्राहकथय तेकर्मादिकनेटाले तेनेवर परिणतिकहियें वलितत्वभोगीथ यो रोग पोटले नेवारे आत्मानेनागवे इति ष्टमगाथार्थ ॥ ८ ॥ सुनिप्रयास निज नाव नोगीयदा ॥ या त्मक्षेत्रेन ही अन्यरक्षणतदा ॥ एकासदा यनिस्संग निरद्वंदता । सक्तिनत्सर्गनीदो यसदुव्यक्तिता ॥ एए ॥ अर्थ | जेवारेसु६ पुल संगरहित निप्रयासच्या मनावनोनोगी थ यो वारेच्यात्मप्रदेसे अन्य के ० पुजलकर्म तथारागादिकनोरक्षण के ० राखवोनथ एटले खरूपग्राहक चेतनानोवीर्यथाये तेवारेपुजलकर्म च्प्रात्मप्रदेससंबंध]पणेरहेनही सर्वपुजल खरीने घ्मात्मा निःकर्मथाय प For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशांतिजिनस्तवन ११७ बे सर्वसंगरहित असहायी नरदनुत्सर्गनीसक्तिसहित व्यक्तता प्रगट ता निरावलोपा || इतिनवमीगाथार्थ ॥५॥ तमुच्यात्मातुऊथ कीनीपजे ॥ माह संपदास कलमुऊसंपजे॥ तिरोमनमंदिरेधर्म प्रनुध्याइये ॥ परम देवचंऽनिज सिद्धसुखपाये ॥ १० ॥ अर्थ तथी देवश्री वीतराग तुमारेनिमित्तेमाहारो तत्वनीपजे बीजो कोइन पायदेखातानथी माहरीयात्मानो सि६पलो तेताहारास्वरूपने प वलंबेनीपजे माहरोच्यनंतगुणपर्यायरूप खकर्त्तापलो स्वरूपऐश्वर्यता सर्व कर्मावर्तले तेमाने संपजे एटले हुंमाहारीरूपी सत्तागत तत्वसंपदानोध लीतथानोगी च्यबिनासीपणेथाकं एप्रभुजीनोपरमन पगार जाएं तेकार पो मनमंदिरने विषेश्रीधर्मनाथप्रभुने ध्याइए पएबीजीवपाधिचित विएन अनुनागुण तथा पगारनोबहुमानेध्यानकरिये नवासाधकनेए हिज वाधारबे तेवारेपरमनुत्कृष्टदेव जे स्वरूप रमणीमुनी तेहमांचंद्रमासमान जे परमात्मपदरूप निजके पोताना सि६ निष्पन्नसुख अव्याबाधादिक पामिये ९हिजमोनो पालवे तेमाटे श्री रिहंतनोसेवन निरनुष्ठान पले करवो ॥ १० ॥ इतिश्रीधर्म जिन स्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ श्रीशांति जिनस्तवन लिख्यते ॥ माला कहांबरे अथवा घ्याखमीोंने आजसेतुंजो दीवारे प्रदेश | जगत दिवाकरजगत कृपानिधि | वाहालामारा समवसरणमांबेवारे ॥ चौमुखचौविदधर्मप्रका से || तेमेनयदीवारे ॥ नविक जिनदरषोरे ॥ नि रखीसांतिजिद || 70 || उपसमरसनोकंद ॥ नहीएणेसरखोरे ॥ १ ॥ For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ दे० चोबा. अर्थ॥हवे सोलमांजिनश्रीशांतिनाथअनुनी स्तवनाकहे तेअनुकेह वाडे जगत्रनेविषे दिवाकर के सूर्यनीपरे ज्ञानोद्योतना करनार तथा क्रपाना समुष एहवा मुझने परमवल्लन समोसरणमां बीराजमानथ का चारमुखे चारप्रकारनाधर्मनो प्रकासकरताथका श्रीतिर्थंकरदेव तेमेनटाणे के० आगमश्रवणरूपचकुएंदीता माटे हेनविकजीवो तुमे जिणंद के० सामान्यकेवलीमांईवसमान एहया शांतिपनुनेनिरखीने ह रषवंतथायो उपसमजे परमदमा तदरूपरसतेपण एनातुल्यमथी एवा सांतरसमयी इतिप्रथमगाथार्थ ॥१॥ प्रातिहार्यअतिसयसोना ॥ वा० तेताक हीनजावेरे॥ घुकबालकथीरविकर नरनो॥ वरणनकेणीपरेयावेरे । न० ॥२॥ अर्थ ॥ वलिपनुनी जे धावपातिहार्यनी तथा चोत्रीस अतिस यानी सोना ते मुऊसरिषाव्यामोहिजीवथा वरणविजाटनही षष्टांतजे म घूकबाल कथी के • घुवरनाबालकथी रवीकर के० सूर्यनाकिरण नोनर के ० समूह तेहनोवर्णव केवारीतेथाये अर्थातनहीजथाय तेम मुजसरखाथीपण पातिहार्यादिकनी सोनाकहीजायेनही इति ॥ २ ॥ वाणीगुणपत्रिीसअनोपम ॥ वा० अविसं वादस्वरूपेरे ॥ नवदुखवारणसीवसुखका रण ॥ सुधोधर्मपरूपेरे ॥ १० ॥ ३ ॥ - बलिप्रभुनीवाणी जेदेसना तेहनेविषे उपमा रहित पात्रीसगुणरमाने जेविसंवादपणाथी रहित अविसंवादस्वरूपमटीने तेवाणीयेकरीने न व्यजीवोना भवके. संसारना उखनीवारखाने अर्थे अने शिवकेमो For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशांतिजिनस्तवन ११ वसुखना प्रबल कारणने अर्थे सुधो के यथार्थ धर्मनीपरूपणाश्री प्रभूजीसमोसरणमां करेले इतिवृतीटागाथार्थ ॥ ३ ॥ दक्षिणपश्चिमनुत्तरदिसमुख ॥ वा० उवणा जिननपगारी।तसुशालबनलहियअनके॥ तिहाथयासमकितधारीरे ॥३०॥४॥ अर्थ ॥ तेसमवसरणमा पूर्वदिशिसन्मुखनाबारणेतो श्रीतिर्थकरपो तेमूलगेरूपेबेसे घने दक्षण पश्चिम तथा उत्तरदिशिनेबारणे श्रीधर हंतना पतिबिंबबेसे तेप्रतिमारूप उवणाजिन केन्थापना जिन तेजपगा राजे तेहनोपण आलंबनपामीने अनेकजन तिहांसमवसरणनेविषे सम केतधारीथया एटले व्रतनालेनारते पूर्वदिशिनाबारणेबेसे बीजीपरष दामध्ये जिनसेवनथी समकितनोलान तेथापनानिक्षेपानोउपगारचे इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ षटनयकारजरूपेठवणा ॥ वा० सगनय कारणगणीरे॥ निमित्तसमानथापनाजि नजी॥ एआगमनीवाणीरे॥१०॥५॥ अर्थ ॥ हवेवलिविसेषथापनानो अपगारीपणो सत्यपोकहे तेम ध्ये श्रीअरिहंत तथासिघजीपण आपणा आत्मानानिमित्तकारण अ ने श्रीजिनप्रतिमांतेपण आपणा तत्वसाधननो निमित कारण तेहमां थापना जिननेविषे अरिहंतपणोनये इहांकोपूजेजे अरिहंतथ या अथवा सिस्थया तेहनीथापना तोसातनयमकीने नयकेमक होगे तेहने उत्तरजे भूल तोथापनानिदेपामध्ये थापनाते वणनये. नामस्थापनाव्यनिदेपत्रयं नैगमादिनयवर्ति इति।अतःच्यते॥हवेना मादिएकेकनिदेपानाचारभेदथायले उक्तंचनाष्ये ॥ भामादिप्रत्ये For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० दे०चोबा. कंचतुरूपं इलितेथीएथापनाएहवो नामथापनामा २ एथापनाम हणहेतुथाटाने तेथापनानीथापना ३ समुदायता अनुपयोगताते व्य ४ तथा आगारोनिप्पान एधर्मनेकारणीकथाटो तेथापनानोनावडे ए मथापना चारनिदेपेने अथवा नविहिंविहुणं ॥ सुत्तोअबोयजि णमएकिंचि ॥ आसम्फन सोसारं || नटानटाविसारवूआ ॥ १ ॥ इति तेथी श्रीअरिहंततथासिघजीनीथापना तेमाटे तेहना नयको १ जेथापनादी अरिहंत सिझनोसंकल्पथापनामां अथवा असं गादितदाकारतारूप अंसएथापनामांबे तेनैगमनदाथापना. २ अरिहंत तथासिघनासर्वगुणनो संग्रहकल्पनाबुधिधरीनेथापना करीने तेमाटेएसंग्रहन यथरिहंत सिघरूपथापना. ३ अरिहंतनाआकारने वंदननमनादिसर्वव्यवहार श्रीअरिहंतनो थाय ते हनोकारणपणोएथापनामांबतेव्यवहारनयथापना. ४ प्रतिमारूपथापनादेखी सर्वनव्यनेबुधिनोविकल्प श्रीअरिहंत एहवोपजे तेविकल्पेजथापनाकरी तेजुसूत्रनयथापना. ५ अरिहंत सिहाहवोशब्द इदंप्रकृतिप्रत्यासिघश्हांप्रवर्त्तने तेशब्द नाथापनाजाणवी. ६ अरिहंतनापर्याय वीतरागसर्वज्ञ तिर्थंकर जिनपारगत इत्यादि कसर्वपर्यायनी प्रत्तिपणथापनामध्ये परंतु केवलझान केवल दर्शनादि गुणन पदेसकता तेधर्मनथीमाटेएवंभूतनयनोधर्म तेथापनामांनथी तेथी समभिरूढथापनाथयी माटे एउवणाके छ थापना ते काटके निष्पन्नता अरिहंतता सितारूप ते षट्के बनये एकएवंनतनयनथी इहांथाप नानिदेपमा श्रीविशेषावस्यके आदिनात्रणनयकह्याने अनेश्हांब कहां तेउपचारनावनायकलाने समनिरूढनोलक्षण वचनपर्यायवर्ति तेल कणपोहचेले तेमाटे (६) कह्या हवे एजिनप्रतिमारूपथापनाते समकि For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशांतिनाथ जिनस्तवन २२१ ति देस विरति सर्वविरतिने मोदसाधननो निमित्तकारण ते कारणनोधर्म कर्त्तानेवस तेनिमित्तकारणपणो जिनप्रतिमामांसातनदो तेकह। पहेलो संसारानुजायीजीवने जिनप्रतिमादी अरिहंतनोस्मरण थायडे अथवा जिनवंदनने जीवनी सन्मुखताथाटाने तेवारेसन्मुखता नो जे निमित्तेतनैगमनानिमित्तकारणपणो . २ जिन प्रतिमादीचे सर्वगुणनासंग्रहथायेने साधकतानीचेतनादि सर्वनोसंग्रहते तत्वनाअनुतताने सन्मुखथायजे तेसंग्रहनदाः ३ वंदननमनादिक साधकव्यवहारनोनिमित्तते व्यवहारनय. ४ तत्वहारूप उपयोगसमारवानोनिमित्तते झजूसूत्रनटाः ५ संपूर्णअरिहंतपणाना उपयोगेजेनपादान एनिमित्ते तत्वसाधन नेपरिणम्यो तेसदनय थापनानोनिमित्तले समकितिप्रमुखनेएहबोले ६ अनेकरातेचेतनानावीर्यनी परिणति सर्वसाधनतानेसन्मुखथदी तेसमनिरूढनयथापनानोनिमित्तकारणजाणवो, ७ एथापनानोकारणपामी तत्वरुची तत्वरमणीयटीनेजे सुघसुक्क ध्यानमांपरणमेतेसंपूर्ण निमित्तकारणतापामीने उपादाननीपूरणकारण तानीपनीतेएवंभूत एटले निमित्तकारणनोएधर्मजे उपादाननेकारण पणेपमामे अने उपादानकारणते कार्यपणेनीपजे एरीत. तेथी जिनप तिमाते मोदनो निमित्तकारण तेसातनय तहमां सज्यं नवादिकने सब्दनय सीमकारणथयो. अने पूण्यरूचीने व्यवहारनय सीम निमि त्तकारणथाय, मार्गानुसारीसमकेतिनी आवषष्टीने योगपष्टीसमुचय मांकहीने तेमांनीआदिनीचारषष्टीवालाने झजुसूत्रनटासीम निमित्तका रणपणोथाटा पुनाट्यादिकने एजिनप्रतिमां संपूर्ण एवंनतनयेकारणरू पथटोदेखायले. तेवारे इहांनाबनायें एथयुजे थापनानेविषेतो संपूर्ण सा तनयरूप निमित्तकारणताले पकार्टानोक जिहांसुधा रहनेनीपजावे १६ For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे० चो० बा० ८२२ तटलोनीरजे तेथी एथापनाते सगनटाके ० सातेन येकरी कारवालीके ० निमित्तकारणपणानो स्थानकडे तेथापनाश्री अरिहंतपदनामूल तोबे निदे पावतले परंतु निमित्तकारणनाचारनिदेपा सातनव्यसंयुक्तबे वक्तंच नि मित्तस्यापि सप्तप्रकारत्वनयप्रकारेण निमित्तस्य द्वैविधऽव्यभावात् ॥ तथोपदानस्यापि सप्तप्रकारत्वं नयोपदेसात् नोच्य निहाल मल्यं इतिवच नात् ॥ नचिह्निविहुं सुत्तंा होय जिएमए किंचि घासज्जन सोयारं न येनय विसारवच्छा ॥ १ ॥ इतिमाटे निमित्तपणे थापना के जिनप्र तिमा ने जिनजी के ० श्रीअरिहंत एबेहुसमानके ० तुल्यबे एटले विचरता अरिहंत तथा तेमनीथापना जेमूर्ति तेबे हुसमानके बरोबर बे तेथी विचरताच्यरिहंत तथाते हनीथापनाएबे साधकजीवने निमित्तकार लंबे उपादाननथी सर्वमांनिमित्तताबे एका गम के सिद्धांतनीवाली बे अरिहंतनेवाद्यानोतथा अरिहंतनी प्रतिमानेवादवानो फल सिद्धांतमां स रखाको माटेसमान इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ साधकतिन निदेपामुख्य ॥ वा० ॥ जेवि नावनलहियेरे || उपगारीदुगनाष्येना ष्या । नाववंदकनोग्रहियेरे ॥ न० ॥ ६ ॥ अर्थ | अने १ नाम श् थापना ३ व्य एत्रए निपातेनावनाका रवे वक्तंचनाप्ये ॥ अहवानामववरण || दवाएं नाव मंगलंगाएं || पा एनावमंगलं || परिणाम निमित्त नावा ॥ १ ॥ माटेएत्रनिकेपा सा धकके कारण एत्र निदे पाविना नाव निदे पोथाोजनही अनेनाम तथाथापना एबे निदे पानपगारीकलाले नान्यनेविषे ते कहते जेव्य निदे पाढे पिंरूपले माटे हवायनही अने नाव निदेपोतो रूपडे तेनाम तथाथापनाविनाग्रह्वाये सेवायेनही तेमाटेच्यादिनावे निदे पाते उपगारी 0 For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशांनिनाथ जिनस्तवन १२३ डे उक्तंच॥ बघुसनामं ॥ तप्यच्चाहेनन सधम्मच ॥ बबुनाणाविहा पाहो ॥ जानाकोव विजसो ॥१॥ वचुम्सलरुखणंसं॥ववहारोविरोहस धान । घनिहाणा हिणान ॥ बुधिसबोअकिरीयादा ॥ २ ॥ इतिवा क्यात् नामप्रधानत्वं॥गाथा आगारोनिप्याज। बुधी किरीटाफलंचपा एणं ॥ जहदीसश्ववणाए ॥ नतहानामेनदविंदो || || आगारोच्चिय म ॥ सहवबुकिरियानिहाणाएं ॥ आगारमटांसवं ॥ जमणागारातया नहि॥॥श्त्यादि तेमाटेनामतथाथापना एबेनिपाउपगारी अनेमो दसाधवामांसंवरनिर्जराकरवानेतो वंदकनोनावतेयहयो केमजेत्रोथरि हंतनोभावनिक्षेपोतो अरिहंतनेविषेने तेजोपरजीवनेतारे तोकोश्जीवने संसारमारहेवुपमेनही तेतोथातोनथी परंतु आपणोनाव परिहंतालंबनी थाए तोमोक्षमार्गलहियो तेमाटे थापना तथानामनानिमित्तथीपणसाध कनोनावसमरे तेथीथापनाजउपगारी वलि समवसरणामां बीराजमा न श्रीअरिहंत तेहनोपण नामतथाआकार सर्वजीवनेउपगारीथाये तेहिजब्यस्थनेग्राह्य निमित्तालंबीरूपीग्राहकने श्रीजिनथापनातेपुष्ट निमित्त ॥ इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ उवणासमोसरणेजिनसेति ॥ वाणाजोल नेदतावाघिरे ॥एआमनास्वस्वभावगुण॥ व्यक्तयोग्यतासाधिरे। न० ॥७॥ __ अर्थ ॥ तेमाटे उवणासमोसरणे एटले मूलगोसमोसरणतो श्रीज नराजविचरताहतातेकाले तोएमाहराजीव कोइगत्यांतरमाहतो तेहम णाधानवमां समोसरणनीथापनाकरी तिहांजिनमुनादखीने जिनराजना गुणावलंबीवेतनाकरीप तेसेवनाकरतां अनुजीसिधावस्थारूप परमा नंतगुणी नाखरूपथीजे माहराचेतनानीअनेदता एकत्वपरिणामता वा For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ दे० चोबा थिके वधी तेवारेएआत्माने एहबोअनुमानसध्यो जेतत्वीदेवथा अनेदप एणोबहुमानपणेनल्यो तोएमजाणुझुंजे एमाहरोआत्मास्वखनाव अनंतझा नादिपूर्णनंदगुणमी व्यक्तितेप्रगटतानोथवो तेहनीयोग्यतीसाधि एमथ नुमानेनिरधारी एटले एजीवसदासर्वदा विषयरंगीहतो तेतत्वी अनुनिरवि षयीनेरंगेरम्यो तोकोश्कअबसरे स्वरूपरमणीथासे एहबोअनुमानथयो जो कारणथानेदथयो तो कारजनीपजावसे एपलटवापणो अनंते कालेनथयोहतोतेथयो तोएषव्यमांपलटवानीयोग्यता अनादिनीचा लथापलटवो एनव्यतापणानालिंगनो अनुमानतोथीय एटले नव्य पणोजणायने एनक्तिनीबहुलतायें हरषनोवचन इतिसप्तमगाथार्थ॥ ७ . नल्ययोमेप्रनुगुणगाया॥वाारसना नोफलली रे ॥ देवचंकहेमाहारामन नो॥ सकलमनोरयसीधरे ॥ न० ॥G|| अर्थ ॥ आजमुजने नलु के. अत्यंतरुमोधयो जेमे अनुश्रीसो समांशांतिनाथपरमात्मा परमसांतरसमयी तेनागुणनीस्तवनाकरीतेथी मेमाहर। रसना के रसेंपिजेजिव्हातेनोरुमोफजजोधो एटलेरसना नोसार्थकपणोथयो एहवाहरषसहित देवचनामा मुनीकहे जे माहा रामननो जेमनार्थहतो तेसकल के संपूर्णपणे सीधुंके (सपथमो. इतिशांतिजिनस्तवनंसंपूर्ण अयश्रीकुंथुजिनस्तवनलिख्यते चरमजिणेसाएदेशी समवसरणबेसीकरीरे ॥ बारहपरषदमा हे॥ वस्तुस्वरूपप्रकासतारे ॥ करुणा करजगनाहोरे ।। कुंथुजिनेसरू॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकुंथुजिनस्तवन २२५ निरमलतुझमुखवाणीरे ॥ जेश्रवणेसुणे ॥ तेहिजगुणमणिखाणीकुं॥॥ अर्थ ॥ जेनीकुंथुनाथजी समवसरणमांत्रिगमेबेसीने बारहपरखदा मध्ये वस्तुजेबषव्यतेहनामूलखरूपनेप्रकासता एटले जीवस्वरूपजीव पणे अजीबखरूपने अजीवपणे उपादानकारणने उपादानपणे निमि त्तकारणने निमित्तपणे सुझकार्यने सुक्षपणे उपदेसदेता तथा व्यथीसु नपरिणति तेकारणरूप भावथा सुनपरिणतितेकार्यरूप नपादेयतेहिजक रवो तेहनीरुचीररेहेवो एहजसाधनले एहबोएउपदेसकरता तथाकरुणक रके कपानाकरणहार टागबनानार्थ एहवाश्रीकुंथुनाथस्वामी तेहनामु खनी निर्मलवाणी उपदेसध्वनि तेजेप्राणीश्रवणेसुणे ते हजाण) गुण रूप मणी रमनीखाण एहवाकुंथुनाथस्वामीनेनमो.॥इतिघटागाथार्थ ॥२॥ गणपर्यायअनंततारे ॥ वलियस्व नावअगा ह॥ नयगमनंगनिदेपनारे ॥ हेयादेयष वाहोरे॥ कुं० ॥३॥ अर्थ॥ गुणतेजे वस्तुनासहनाविधर्मते तथा]मनावितेपाय अने पव्य गुण पर्याय एसर्वमांबते तेख नाव एटले गुणनाअनंतता तथाप र्यायनीअनंतता अने खनावनाअनंतता एसर्वचगाहके अगाधने जे अवगाबवानेदोहेली वलिनटाके अनेकधर्मात्मकवस्तुनेविषे ए कधर्मावलंबनतेनयाहिटो उक्तंच तत्वार्थे अनेकधर्मकदंबकोपेतस्य वस्तुनः एकेनधर्मेणवलयनं अवधारणात्मकं नित्यएव अनित्य एव एवं बिधनयव्यपदेशमारकंदेति एहेवामूल नव्यसात अनेन तरनयसातसय प बेविस्तारबहुलते तथागमागम्यते इतिगमा अंसनेदेन अन्यधर्मथनेदे न वस्तुनिरुपणात्मकं वाक्यंगमात्मकं उच्यते नंगाः स्याहादोपरेशा For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ देचोम्बा स्तित्वाददाः भंगास्याबादसापेदस्यात् अस्तिषमुख तथानिदेपानामा दिकतनीअनेक प्रवाह अनेकांतिना वस्तुधर्मे उपचारधर्मे कारण धर्मे वरूपेन पदेसे तेवलि हेटाधर्मना नय निदेपा नांगाते हेयरूपकहेता अने उपादेटा धर्मना नट निदेपा तेउपादेटारूप परूपे एहवीदेसनाले वलिएकषव्यमांगुणअनंता पर्यायधनंता स्वभावअनंता उपदेसे इहां भावनाजे गुणपर्यायाने आवर्णने स्वभावनावर्णनथी अस्तित्व नित्य वादिकजे तेमध्यविसंघवनाब बिग; पणसामान्यस्वभावबीगमेनही त थासर्वधर्म नयतथानंगानिदपासहितउपदेसे एहवीदेस ना ।इति॥३॥ कुंथनाथप्रनुदेसनारे ।। साधनसाधक सिहागौण मुख्यतावचनमा।ग्यानतेसकलसमृधोरे।।कु ॥४॥ अर्थ ॥ वलिश्रीकुंथुनाथप्रनुनीदेशनाकेबीचे जेमध्ये साधनके. रत्नत्रया पूर्णअनेदतारूप नीपजवानानपाटा तेजिनमुखासेवन मुनी वंदन अनुकंपादिकाजही सुक्लथ्यानपीत तथा मार्गनुसारीथील ही क्षिणमोहीपटीत अपवादे भने उत्सर्गे अयोगीलगे साधकजीवजाण वा तेहनोतरतमक पहेलोमार्गानुसारीते समकेतिनेसाधे अनेसमकेति विरतिनेसाधे विरतिसुक्लध्याननेसाधेतथा सुक्लथ्यांनी हायकगुणनेसाधे दायकगुणासिझनेसाधेएसाधकनोक्रमतेसर्वअनुदेसनामांकहेतथासिम पणोसंपूर्णनिष्पननिरावर्णतापणोकहे वलि कुंथुनाथजीनीदेसनामांवचन जेबोलाटोतअनंतागौणधर्मराखीने जेवचनमायाह्यतेधर्मनेमुख्यकरीक हे एटले एकवस्तुमां अनंताधर्मएकसमयमांबे तेसर्वएकसमयमांजाणे परं तुजेधर्ममुख्टाकरीकहेवाय तेने मुख्यकरीकहेबीजासर्वज्ञानमांगोणपणे जाणे एमवचनमां गौणपणोतथामुख्यपणोडे पण श्रीकुंथुनाथखामीनो केवल झानते सकल कयनेजाणवेकरी समृध्विान एटलेज्ञानमाएक For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकुंथुजिनस्तवन १२७ हमणाजाणे बीजापजे जाणसेएमनथी सर्वनावतेसमयेजजाणे तेथीज्ञान मां गौणता मुख्यतानथी अने वचननोधर्मक्रमप्रतर्त्तन तेएककला पडे बीजोकहेवाय माटे वचनमांगीणता मुख्यता ॥ इति ॥ ४ ॥ वस्तुअनंतस्वनावरे ।।अनंतकयकतसु नाम॥ग्राहकअवसरबोधयीरे ॥ कहेवे अर्पितकामोरे॥ कुं ॥५॥ अर्थ ॥ वस्तुजेजीवादिषव्यते अनंतखनावमयाने सर्ववस्तुअनंतता युक्त तथावस्तुनोजीव अथवापुजल एहवोजेनाम तेपणअनंतता नेकतो एटलेजीवएवोशब्दउच्चारकरता जीवनाचनंताधर्मतेसर्वबोला पा एमसर्वसमजवा माटेजेवस्तुनोनाम ते वस्तुनासर्वधर्मनोग्राहक ते थीज नामनिदेपामांसंग्रह तथाव्यवहार एबेहुनयमुख्य अनेनैगमका रणजे एरीत परंतुग्राहकजे श्रोतातेहनोजेबोअवसरहोटो तथाश्रोतानो जेहबोबोधकेजाणपणहोयतेहबोवचनमांअर्पितकरीनेउपदेसे एटलेझा नतोसर्वनेएकसमटामांजाणे परंतुनपदेसकाले केवलि नंगवान जेहवा श्रोताहोये तेटलोकहे तेथी केहेवामांबर्पितनय बागल करवानोकां मपमे तेअर्पित तथा अनर्पितनोस्वरूप तत्वार्थमांकह्यो। अनेकधर्मा चधर्मि तत्रप्रयोजनवसाकदाचितकाश्वधर्मोवचननार्पितेविवक्षितेतत् अर्पिते संन्नपिवचनविवढ़ते प्रयोजनानावात् तत् अनर्पितइति जेधर्मि पदार्थ तेहना अनेकधर्म तेहने विषजेधर्म केहबानो पोजन उपजे तेअवसरे तेधर्मने वचननेविषेचर्पितकरीए विवदाकरीनेग्रहिट तेज पितजाणवो अनेसत् के ० ब तो पणधर्मप्रयोजन विनागवेषेनही अशा मांअपेदामांबे तेथनर्पित कहिटो बयस्थनोज्ञान तथाबोलवो तेथर्षि त अनर्पितबेमल्याजसुपथाये अनेकेवलिनोझानतोसर्वएकसमये प रंतुवचनतेअर्पितमल्यासुफले इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोबा सेषअनम्पितधर्मनेरे॥ सापेदवाबोध ॥ ननय रहित नासनहोवरे ॥प्रगटेकेवलबोधोरे ॥कुं०॥६॥ अर्थ ॥ जेवचनबोजवाथी सेघरया तेअनर्पित धर्मरला तेहनेसा पेदश्रधा सम्यकसरदक्षणाराखवी बोधझानपणराखवो एउदमस्थ सम केति देसविरति मर्वविरति विमोहिपर्यंतएमजाणवो अनेननयकै एअर्पितअनापत बेहुथीरहितजे नासन होवे ते बोरके केवलिनोझान तेसर्वनो झायकसमकाले तेथीतहमां अर्पित छानर्पितपणोनथी वच नमां अर्पितानर्पितजे परंतुजाणवामांनथी इतिषष्ठगाथार्थ ॥६॥ अतिपरिणतिगणवर्त्तनारे ॥ नासननोग आणंद ।। समकालेपनुताहरेरे ॥ रम्य रमणगुणवंदोरे॥ कुं० ॥७॥ अर्थ॥वलि हेअनुजीतमारामां ज्ञाननी दर्शननी चारित्रनी वीर्शनी सुखनी अरूपतानी इत्यादिक अनंतातमारागुणरूपधर्म तेहनीति ते मज अनंतपर्यादानीपण तिने तेवव्यादिकपणे सदासर्वदानतिजे तेम खनाविगुणपर्यायनीपरिणति परिणामीकता व्यनेविषेपरिणम, उत्पाद व्यय धूवपणेतथाषट्गुणहाणीवधिपणे तेपरिणमेने तथातेहिज़झानादि गुणपर्सायनीवर्तना तेझानेजाणे दर्शनेदेखे चारित्रेरमे कापणाथीक रे नोक्तापणाथीनोगवे एमसर्वगुणपोतपोतानी वर्त्तनाएंवर्त्तता पोतपोता नाकार्यनेकरेले तेवनाजाणवी एसर्वप्रमुजी तमारामांचे अनेतेसर्वगुण पर्यादानो नासन के जालावो ते तमारामांने तेसर्वगुणनेनोगवोगे ते अनंतागुणनानोगनो आनंदहेअनुजीतमारामांसमकाले के एकसम ट्रामाएसर्वपरिणमन माटेएहवापरमानंदनानोगी माहासुनीडो वलिहेष नुहेसर्वज्ञ हेसर्वानंदमयी हेनाथ हेसुधोपगारी तुमेकेहेवाबो जेरम्यके " For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ए श्रीकुंथुजिनस्तवन रमवा योग्यजे अनंतात्मखरूप तेहमारमण के ० रमवो तेगुणनातुम दकेसमुहबो इतिसप्तमगाथार्थ ॥ ७ ॥ निजनावेंशीआस्तितारे॥ परनास्तित्व स्वभाव ॥ अस्तिपणेतेनास्तितारे ॥ शीयतेननयस्व नावोरे ॥ कुं० ॥ ७ ॥ अर्थ॥हवे सप्तनंगीरूपे अनुताकहे तिहांकोश्कतोसप्तनंगी एकलाप र्याटास्तिकनटानीजकहे तेतोघटेनही अव्यास्तिक पर्यायास्तिकनय वटामात्रवस्तुबे तिहांस्यात्अस्ति स्यात्नास्ति स्यात्मवक्तव्यं एत्रणनां गासकलादेशी तेषव्यास्तिकनयोजे एवंएतेत्रयः सकलादेशाचाष्यानु सारी एवंसंयहव्यवहारानुसारिण: आत्मव्ये विकलादेशा चत्वारिपर्या यनयाश्रयाशतितत्वार्थे शेपचारतेविकलादेशी तेहनोपरमार्थ एमजे स्यात्मस्तिएनांगामां अस्तिपणोबधो अर्पित बीजोनास्तिधर्म अव कव्यधर्म तेस्यात्पणामांआव्यो एटलेस्यात्यस्तिकह्याथी बघोषव्यग्रह वायने तेमजस्यात्नास्तितथा स्यात्मवक्तव्यं एनांगामांपणबछो भव्य यहवाय अने । स्यात्या स्तिनास्ति २ स्यात्अस्तिअवक्तव्यं ३ स्या तनास्तिअवक्तव्यं ४ स्यात्यस्ति नास्तियुगपत्यवक्तव्यं एचारनंगा तेवस्तुनाअंसने एटलेपायनेग्रहणकरेले तेहनोभावार्थ एजे प्रथमस्या त्यस्ति स्यात्नास्तिएचोथोनंग तेमां अवक्तव्यधर्मनाव्यो तोकोश्क हेसेजे स्यात्पदेयवक्तव्यं धर्मल हीस तेनेउत्तरजे स्यात्पढ़ते अस्तित थानास्तिएवेधर्मनी अनेकांततानोग्राहकले परंतुअवक्तव्यनोग्राहकन थाथने स्यात्मस्तिअवक्तव्यं पांचमोनंगो तेहमांवस्तुनोअस्तिधर्म एकसमटी तेवचनमांकसाथका तथाउपयोगमालावता असंख्याता समयलाग तेमाटेएअस्तिपणोअनेकांतपणे परंतुवचनेगोचरनथए १७ For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३० दे०चो०वा० मस्यात् नास्तिच्यवक्तव्यं एवमंगोनविवों तथास्यात्या स्तिनास्तियुगप तूंत्र्यवक्तव्यं एनंगामां स्यात् के० अनेकांत स्ति केहेता असंख्या तासमालागे नास्तिके हेताप असंख्यात समयलागे तेमाटे यवक्तव्यबे भेलावे पणजे तेवस्तु मां परिणमेवें तेरीते के हवातानथी तेथीएचा नंगा सर्वधर्मग्रहणनथयो तेमाटे चारभंगा विकलादेस वे पण सकला देसी नथी हवे एसाते नंगानाचं रूप कहे. १ च्यात्मावर्त्तमानसमये ज्ञानदर्शनादिखपटानी परिणतिपले तिबेटले प्रतीतपर्यायतोविनिष्ट अनागतपर्यायामुत्पन्न माटे वर्त्तमानपर्यायग्रहणकरयो इहांस्यात् तेनास्तिच्वक्तव्यं धर्मनो अर्पि ततानोद्योतकडे रीतस्यात्थ्य स्तिएपहेलोक मंगोथयो. २ तथास्यात्ते कथंचित्पले गतिस्थितिअवगाहोपकारी वर्णादि घ् चेतनादि परव्यधर्म तथापोताना अनागतंपर्यायते संप्रतिवर्त्तवापले नथ। एनास्तिनंगो व्यने व्यपणे राखवारूपले नहीतोकोइकाले जी वाजवतानेपामे एस्यात्नास्तिबीजोनंगोथयो. ३ तथा अस्तिधर्मप्रणवचने अगोचरते अनेनास्तिधर्म एवचने अगोचरवे तेवचनगोचरधर्मथी वचन गोचरधर्म अनंतगुणाबे माटे स्यात्कथंचितपणेऽव्यमां अवक्तव्यपोबे एटले उनटानययुगपत्य करतां सर्वपदार्थ अवक्तव्यपलेले माटे एत्र एनंगासकलादेसी तेऽव्या स्तिकनटयपणे जाणवा एत्रणेनंगामां संग्रह तथाव्यवहार नयनी प्रवृत्तिवे एस्यात्च्यवक्तव्यनामात्र जोनांगोथयौं. ४ अने चोथोनंग स्यातच्य स्तिना स्तिवे तेंसमुच्चयश्री खंडव्यार्थ पर्यायार्थना अस्तितापबे तथा तेहिज निनोपयोगपणे तेतीतच्य नागर्त परिणामीकपणे नास्तिताबे बेधर्म पोतानागवेष्यावे ५ तथा जेविवदितवचनगोचर व्यार्थ मुख्य आत्मधर्मने अपेक्षा अस्ति तेहिजयात्माऽव्य सामान्य विशेष छपनी भिन्न प्रवृत्ति धर्म स For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकुंथुजिनस्तवन "१३॥ मकाले अंगीकारकरतां स्यातअस्तिअवक्तव्यं एपांचमौनंगोथयो ६ बोस्यात्नास्तिअव्यक्तव्यं एएमजपांचमांनी परेंनाववो एफ र्यायनीसुदमता अनंतताग्रहीनकरयो. . ___७ सातमोस्यात्अस्ति स्यात्नास्तियुगपत्अवक्तव्यं नामेनंगोडे ते कोश्वव्यार्थविसेपाश्री अस्तिपर्यायविसेषाश्री नास्तितेहिजखदेसे निन्नपणेअवक्तव्यं एसर्वपर्यायते नानीपत्तिजे. एसप्तभंगीते नित्य अनित्य लेद अनेदादिकधर्मनी तथाज्ञानदर्शना दिकगुणनी सप्तनंगीथाटातेनावेदे ज्ञानहायकपरिवेदकादिस्वपर्याय अस्तिने दर्शनचारित्रादिवपर्याये तथाजमतादिपर्याय नास्ति एम अनंतिसप्तनंगीसं नवे तेबुवितेनाववी तथातत्वार्थ इत्तिनेविषे वलि समत्तितिनेविषे विस्तारथीकहोने स्याहादरत्नाकरे एहनोस्वरूप तथा उपपत्ति पत्ति परिणति नय सर्ववख़ास्याने तेहथीजोश्लेजो हवेगा थानो अर्थलखि निज के० पोतानेनाव वषव्य स्वदेत्र वकाल स्वभाव पणे सीटके: स्यात् कंथचित्पणे अस्ति अने तेहिजपव्य परव्य परदेव परकाल परनाव पणेनास्ति तेनास्तिपणो अव्यमां अस्तितापणे रह्योने वलिसीयके। स्यात् कथंचित्नु भयके अव क्तव्यखभाव एटलैयादिनांगो बथाअंतनोनांगो संनारतांसातेभंगाकेहे वाणा एहवीस्याछादपरिणतिते हेपरमेश्वरतुमेप्रत्यदाने सर्वव्यनीजा जाने उपदेसकरयो एहवीताहरीवाणीने एरीतेसुधअनंतता एकताअनेक ता सत्वता साधकतायुक्तणीअरिहंतनोउपदेस॥इतिअष्टमगाथार्थ॥७॥ अस्तिस्व नावजेआपणोरे॥रुचिवैराग्य समैत । अनुसनमुखवंदनकरीरे ॥ मां गीसआत्मदेतोरे ॥ कुं० ॥ ए॥ For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो० बा० १३२ ॥ अर्थ || एहवोजे अस्तिस्वभाव अनंत ज्ञानदर्शन चारित्र अव्या बाघ पूर्णानंदतारूप जेमाहारोसत्तागत स्याहादतपयोगेपो तेहनीरु चीपपासाकरीने वेरागजे संसारथीनदासीपल एसंसारीभाव विभावो पाधी माहरेच्टतीबे तेहने केवारे सर्वथीतजु एमविषभक्षण तथातप्त लोह पदधृति समानउदासीनथयो मोक्षानिलाष) केवल ज्ञानानंदने भिलाषे देवनुजीताहरे सन्मुखऩनोर हिने वंदना करीने मांगुनुं जेहे तारक मुजने तार तार नवचमाथीउगार एसंसारजनित दु:ख मुऊथी वेखमातोनथी जेमाहरोच्यनंतोखाधीनयानंद तेपराधीनथयो अनेहुं पुजलग्राहीथयोथी तत्वभोगी बुं पलतत्वनेजाणी सकतोनथी व दैकभाव रूपच्छा सुद्दपर्यायन] श्रेणीमांपमी रह्योढुं अनेहवे हे नाथता हरेस रणेच्याव्यो बुंमाटे मुज माहरो अस्तिस्वभावप्रगटे एहवोद्यात्मानो हितसम के दर्शन युक्त चारित्रनोप्रसादकरो एहवो हुंजेवारे मांगीस तेहि दिनधन्यमानी सहवो मनोरथकरवो इतिनवमगाथार्थ ॥ ए ॥ अस्तिस्वभावरुचिथयारे ॥ ध्यातोय स्तिस्वभाव ॥ देवचंद्रपदतेल हेरे ॥ पर मानंदजमावोरे ॥ कुं० ॥ १० ॥ ० अर्थ || माटे होनव्यजीवो तुमेजोसर्व जीव सुखनार्थीबोतोजे सत्तागत अस्तिधर्म तेहनारूची अभिलाषीथीने अस्तित्वनावनी छ नंतता तेहनेजध्यातां ध्यानकरतां थकां सर्वदेवमांचंयमासमान जेसिव परमात्मपदते ल हेके पामे सरीरता निर्मलानंदता निःसंगतारूप परमा नंदस्वाधीन च्यात्यंतिक अव्याबाधसुखतेहनोजजेहमां जमावबे सघन के • एकीप लोने एवोपद श्रीप्रनुनी सेवाथीपामे तेमाटे तत्व पीरूपी ज्ञानस्वरूप] एहवाश्री कुंथुनाथना चरणनोसेवनकरो हे नव्यजीवो हि जपरमसुखनोहेतुबे ॥ १० ॥ इतिकुंथुनाथ जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअरनाथ जिनस्तवन १३३ ॥अथश्रीअरनाथ जिनस्तवनलिख्यते॥ रामचंदकेबागचांपोमोरीरह्योरी एदेशी ॥ प्रणमोश्रीअरनाथ ॥ शीवपूरसाथखरोरी॥ त्रिनुवनजनआधार ।। नवनिस्तारकरोरी ॥१॥ अर्थ ॥ प्रणमाके० वारंवारनमस्कारकरो श्रीअरनाथस्वामीने एहि ज अमोहीपरमेश्वरवांदवायोग्य शीव के० निरुपब्व जेसिघता ते हिजउपमांटो पुरनगरतिहांपोहोचामवानेखरोसाथ सार्थवाहनीनपमा श्रीअरिहंतनेज जेनिखार्थे भवअटवीमांथीपारकरीने मोदनगरनेवि षेपरमानंदपदेपहोचामे एहवाकारणपणे श्रीअरिहंतजी वलित्रणनुव नना जननेआधार मिथ्यात्व असंटामव्यथाये पीमितनेआधार न भारूप वलिचारगतिरूपनवके० संसार तेहमांथी व्यतथानावे नि स्तारनाकरणहार ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १ ॥ करताकराणयोग ॥ कारजसिझलरी॥ कारणचारअनुप ॥ कार्यार्थीतेहयदेरी ॥२॥ अर्थ हवे मोदकार्यनीपजाबवामाटे कारणकार्यनीनीतिक स कार्यकर्तानाकीधाथाये तेमांभिन्नकार्यनोकापणभिन्न जमघ टनोकर्ताकुंभकारनिन अनेअभिनकार्यनोक पणअभिन्न जेम झाननोकर्ताआत्माले तेमसंपूर्णसिम्खनोकापणमात्माजले तेकर्ता जेवारे कारणनीयोगवायीपामे तेबारेकार्यनी सिधिनीपजवापोल हे एटले एकलोका कारणसामग्रीविना कार्यकरीसकेनही कारण साम ग्रीमलेज कार्यनीरजावे तेकारणनाचारनेद जेकानीपजाववानो अर्थीथाटा तेचारकारणनेयहे इहांत्रणासास्त्रोमातो कारण नाबे नेदक ह्याने एकउपादानकारण बीजोनिमित्तकारणअनेविशेषावश्यकनेविषे For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो०वा० समवायकारणएनामकला बे तथा च्याप्तमीमांसामांकारण एकलावे स मवाय समवायि निमित्तनेदात तेमांसमवायकारणते उपादानकारण अ नेसमवायकारणते नामांतरच्यसाधारणकारण कहेवायवे तथानिमि त्तकारणनाबेनेदकर ये तेमांएकतोनिमित्तकारण बीजोअपेक्षाकारण ते तत्वार्थट] कांमांवखाएयोबे तथाच पेकाकारणंचेह पूर्वमित्यनेनवच्य ते यथा घटस्योत्पत्तावपेक्षाकार एंव्योमा दिनपेतेइतिनपेक्षा तेमाटेय द्यपिकारणबेमांचारेच्अंतरभूतबे तोप विस्ताररुचीने निन्नोपयोगी करवा ने चारकारका एकऩपादान बीजो असाधारण बीजोनिमित्त चो थोअपेक्षा एचारेकारण जे वारेकार्यरुची कर्त्ताग्रहे खनेजे वारे एचारका रणनेकार्यरुचीकर्त्तीप्रवर्त्तावे तेवारेते कारणसमजवा पलकर्तानाप्रयुंज नविनाकारणतानही एमनावनाकरवी इतिद्दितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ जेकार कार्य ॥ थायेपूर्ण पदेरी ॥ उपादानतेदेतु || माटीघटतेव देरी ॥ ३ ॥ अर्थ || हवेप्रथम उपादानकारणनो स्वरूपक हेबे जेकर्त्तानाका र्टाने सन्मुखथायजे कारण ते हिजकार्यरूपथाये ते पूर्ण पदे पूर्णतानाच्च बसरे तेनुपादान हेतु के० कारणकही ये उक्तंच महाभाष्ये तद्दवको तं तवोपमस्सेहजे एतंम्मश्या विवरीयमनकारण मितंव्योमादन त स्स || १ || गाथानेव्याख्याने यदात्मकंकादृश्यते तदिहतव्यका रणं उपादानकारणं यथाततवः पटस्यइति एटलेजेम तंतुहतात कर्त्ताने प्रयोगेपटथया तेनुपादानकारण जेमघटरूपकार्य तेहनेमाटी तेनुपादा नकारणले बेमाटी ते हज घटपलोपामी एटले कारण्ते हिजकार्यपलोपा म्यो इहांकारणकार्यनी एकसमयरूप जेव्याख्यानबे तेनुपादानकारण नोबे एममहानाष्ये मतिज्ञानाधिकारे जमालिन्हनवनाच्यधिकारेक लोहांकोपुढे जे कारण ते कार्यथाये एमकहोबोतो कारणकार्यनोए १३४ For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअरजिनस्तवन १३५ कपणोथासे तेहनेनत्तर जे अनिधान फल लक्षण संख्या संस्थाना दिकनोनेदबे तेथा भिन्नजाणवो जेमप्रथममाटीएहवोनामहतो पघट नामथयोमाटोते मृउताव्यताधर्मवंतहत घटतेजनाहरणधर्मवंत मा टे निन्नता एनपादानकारणबताव्यो इतितृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ उपादानथीनिन्न ॥ जेविणुकार्यनथाये॥ नदुएकारजरूप ॥ कर्तानेव्यवसाये ॥४॥ कारणतेदेनिमित्त ॥ चक्रादिकाघटनावे॥ कार्यतयासमवाय॥कारणनियतनदावे॥५॥ अर्थ ॥ हवेनिमित्तकारणनोलह एकहे जेकारण उपादानकार पथी जिनके जुदो अने तेनामल्याविना कार्टथायनही अनेतेह नेविषे कारणपणोते कर्त्तानेव्यवसाटोंके० कर्त्तानेन्यमे तेनिमित्तका रणकहिये जेमघटनावे बटकार्य तेहने चक्रचीवरदमादिक तेनिमि त्तकारण अनेमाटी उपादानकारण तेथी तेनपादानकारणथी निमित्त कारण निन्न अने एनिमित्तमज्याविना माटीनोवटथायनही तेमज तेचकादिक कदापिकोकाले कार्यपोपामेनही अने एचक्रादिकने जेवारे कर्त्ताजेकुंनकार ते घटकरवारूप व्यापारेषत्तावे तेवारे एने कारणकहीटो नहीतोकारण तापणेकहेवायनही तेपण समवायकारण के उपादानकारण तेहने नियत निदावे के कर्ताजेवारे नपादानका रणने कार्यरूपेकतॊहोटो तेबारे जेन पगरणकामेल गमवा तेसर्वनिमि त्तकारणकहिटों अने तेजनपगरण जेवारे कर्ताकार्यने करतोनहो ये तेवारे तेहनेकारणकहिटोनही कारणनोस्वरूपएहवोज जे कार्यने करे ते कार्यानंतर अथवाप्रथम अप्रयुक्तकाले जेदमादिकने कार एकहे तेआरोपमांत्र नैगमनयमतेजाणवो परंतुखरूपैनथी ते माडे For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ दे० चोबा कार्यनोजेकर्ता ते उपादानकारणने कार्यरूपकरतां तेहमांजेजेउपग रण प्रवर्त्ताचे तेतेनिमित्तकारणजाणवो जेमघटकार्यनेचक्रादिक अ ने पटकार्यने तुरीव्योमादिक एमसर्वत्रजाणवु एनिमित्तकारणकयो । इतिचतुर्थ पंचमगाथार्थ ॥ ४ ॥ ॥ ५ ॥ वस्तुअनेदस्वरूपाकार्यपणोनग्रहेरी॥ तेअसाधारणहेतु ॥ कुंनेयासलहेरी॥ ६ ॥ अर्थ ॥ हवे असाधारण कारणनो स्वरूप कहे तेवस्तु जे उपा दानकारण तेहथी अनेदस्वरूपेने अने कार्यपणो पामतोनथी एटले कार्यनीपने तेरहेतोनथी जेमघटकार्टानीपनो तोपण तेमाहेमाटीपणो रह्यो तेनीपरेतेरहेतोनथी ते असाधारण हेतुके ० कारणकहीटो जेम घटरूपकार्यकरतां स्थास कोस कुसलाकार थाये ते मुप्तपिमरूप कारणथी अनेद परंतु घटरूपकार्यनीपने तेरहेतानथी तेमाटे एसर्व असाधारण कारणजाणवा नक्तंच प्रमाणनिश्चयेन नपादानस्य कार्य वाप्राप्तस्य अवांतरावस्था असाधारणंइति ॥ इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ जेहनोनविव्यापार॥निन्ननियतबदनावी॥ नमीकालआकास ॥ घटकारणसदनावी॥७॥ छार्थ ॥ हवे अपेदाकारण कह जेकारणनो व्यापार प्रवर्तनन थी तथा कर्ताने पणते मेलववानो प्रयासकरबो पमतोनथी अनेका र्यानिलके जुदोडे तथा नियतके नीयमां निश्चेतेजोश्ये अने बहुनावीके. अनेकबीजासर्व कार्यमांनावी एरीते कारणीकडे तेअपेदाकारणकहीटों जेम भुमी तथा आकास एविनाकोई घटादि कार्यथतोनथी अने नुमाप्रमुखजेमघटनो कारणलेतेम अन्यबीजा का योनो पणकारण अने घटनोकारणपणो पण तो वलिकर्ताजेम For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअरनाथ जिनस्तवम १३७ उपादान तथा निमित्तकारणनो व्यापारकरेवे तेम नो प्रसृर्त्तन करतोन थी ते अपेक्षाकारण आगममां तथा तत्वार्थादिक ग्रंथोमांकोबे य थाघटस्योत्पत्तौ अपेक्षा कारं व्योमादि अपेक्षते तेनविनातद्भावा भावात् ॥ निर्व्यापारमपेक्षा कारणइतितत्वार्थवृत्तौ ॥ तथाविसेषावस्थ के अवधिज्ञानाधिकारे इहांधारभूत सिलातलादि व्यात्पद्यमानस्या वधिः सहकारकारणानि भवति यत्र सहकारकारणगवेष्यो इतिसप्तम गाथार्थ || ७ || प्रचारकारणनो स्वरूपको एहअपेक्षा हेतु ॥ आगममांदेकह्योरी ॥ कारणपदनुत्पन्न ॥ कार्यथयेनलयोरी ॥ ८ ॥ ० अर्थ || कारणपदके जेहमांहेकारपणो तेबतो मूल गोधर्मनथी पण उत्पन्नवे नेते जेवारे कर्त्ता तेकार्यनो अर्थीयमाने जे उपगरण त था मूल पिंतेरूपे कार्यपणे प्रवर्त्तावे तेवारे ते तेहनोकारण करण कहीये एटले काष्टमां दमादिक अनेक पदार्थना बतापलानी योग्य तावे पलको दंमनो कार उत्पन्न करे कोइपुतलीनो कारण उत्पन्न करे तेमज दमादिकने को घटध्वंसपणेप्रवृर्त्तावेतोघटध्वंसकरे तथाकर्त्ता जोदमादिकनेटकरवापलेप्रवृत्तोवे तोतेहनोकारथाय माटेजेकार पलोते कर्त्तानो करयोथायबे श्री विसेषावस्य के कलावे जेकारकाः कर्भु राधीना इतिकार्योत्पादकं तेनकार्योत्पत्तौ कारणत्वंनचकाकरणे ते माटे कारणपलोते उत्पन्नवे हवे कोई केसे जे वस्तुमा कोई कार्य ना तो कारण ताबे तोउत्पन्नवे एमसावास्ते कहोबो तेहने उत्तरजे विवचितकार्बनी कारणता उत्पन्नवे अथवा जेकार्यताजेकाले ते कार्टाता कर्त्तानाप्रयोगनीबे तेमाटे उत्पन्नजबे पएकार्सनीपनापबे तेमध्ये कारणपलो नपामीये जेमच्यनादि मिथ्यात्विजीव यद्यपिस ܐ For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा . सावंतने तेमज अनव्यजीवसत्तावत परंतु तेहनो उपादानसिक तानाकार्यनो करणहारनथी तेथीकार्यनीपजतोनथी जेबारे को ईकजीवनो उपादान अरिहंतादिकनो निमित्तपामीने कारणतापणे पर णमे तेकार्यकरे माटे तेन त्पन्न अने तेकार्ट सिस्थयापले तेकारण रहेनही जोसिघतामा साधकतानी बतिमानीयेतो सिधावस्थादोपण साधकपणो रह्योमानवोपझे तेसिधावस्थामां साधकपणोतोनथी माटेका र्यनीपने कारणतारहेनही तथानिमित्तजेदंमादिक तेपण कर्ताभिन्न का →नाव्यवसाटो कारणताकरे तोतेभिन्नकार्यथाये परंतु तेजकार्यनी ते कारणतारहेनही एमधार इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७ ॥ कर्ताआतमव्य ॥ कार्यसिदिपणोरी॥ निजसत्तागतधर्म ॥ तेनुपादानगणोरी॥ए ।। अर्थ ॥ हवेसिकतालपकार्यना चारकारण देखामेने सितारूप काते अात्मानोअनेदस्वरूपजे माटे एहनोक आत्माषव्यपोतेज अनेसिधपोते आत्मानोकाट जेषात्मासिघताने परमानंदपणेजाणे तथाएहिजमाहरो हमणाकरवानोकार्य एकार्यकरवानीरुचीविना थ नंतोकाल संसारमांनम्योस्वरूपचष्टथयो माहामोहग्रह्यो हवेमेमाहरो मू जधर्म श्रधा भासन गोचर करयो तेथी कार्यकरबो एमनिरधारकरी सानुगत चेतनावी करीने स्वखरूपकरवानो कर्त्ताथयो तो सिझताना कार्यने नीपजावे तेवीरीतेजे प्रथमतोअंसकर्ताथाय पडेगुणदि थवे संपूर्णकर्त्तापणापामीने कार्यनीपजावे हवेएसित्तारूपकार्यनो उ पादानकारणकहेजे जेपोतानासत्तागत ग्यांन दर्शन चारित्र वीर्या दिक धनंतगुण तेहिजनपादानकारणजाणवो उपादानते वस्तुनोमू लधर्म धरूपीसत्ता तेहिज सिस्थाय इतिनवमगाथार्थ ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअरजिनस्तवन १३५ योगसमाधिविधांन॥असाधारणतहवदेरी॥ विधिआचरणानती। जिणेनिजकार्यसधेरी॥१०॥ अथ ॥ हवे सिघतारूपकार्यनो असाधारण कारणकेहेबे मन वचन कायानायोग तेहनेव्यथी तथानावथस्वगुणरमणमा छ राग) अषाचणे अविवो तेआत्मसमाधि चोथागुण ठाणथी मामीने सिझपर्यंतजे गुणनोरधिकरवी एटले अभिनवगुणनो का रणपणो ते सर्व ज्ञान दर्शन चारित्र श्रेणीगतध्यान परिणामत योप समीनाव विधिसहितआचरणा तथानक्ति अने गुणीनोबहुमान जेथा पोतानाकार्टानीसिचिनीपजे तेझानक्रिटारूप साधकअवस्थानी तरतम तातेसर्वसाधारणकारणकहेवो एअसाधारणकारणते आत्मगुण रूपदा ननी भिन्न भिन्न मणताथकानीअवस्थाले सदापूर्वपर्याटा नत्तरपर्यायनो कारण तेसमयेज क्रियाकाल निष्टाकाल नोअनेदबे इतिगाथार्थ॥१०॥ नरगतिपढमसंघयण ॥तेहअपेदाजाणो॥ निमित्ताश्रितनपादान ॥ तेहनेलेखेाणो॥११॥ अर्थ ॥ हवेअदाकारण तथा निमित्तएबेकहे नरके मनुष्य नीगति पढ़मके० पहेलोसंबेदाणवजशषननाराच पंचेपिणे इत्या दि सिधिरूपकार्यनो अपेक्षा कारणजाणो ईहांकानो व्यापारनथी पण एनिश्चे जोइटो एपाम्याविना मोदरूपकार्यनी साधना थायनही तेमाटे अपेदाकारण कहीटों पण एमनुष्यनीगल्या दिकसर्वजेजी वनो उपादानपरणमन धर्मार्थीथयीने निमित्तजे देवगुरु सिमांत तेहनेजेणे आसरयो तोतेहनी मनुष्यगति लेखेके कारणपणे आण जो अने जेणेनिमित्तनेासस्योनथी तेहनीमनग्यगति कारण प णामांगणसोनही तेहजीअनादिनीचालमांचे पलटणकरतानपी लेटे इतिएकादसगाथार्थ ॥ ११ ॥ For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चो०बा० निमित्त हेतु जिनराज ॥ समता मृतखां ॥ प्रनुच्अवलंबन सि६ ॥ नियमादवखांसी ॥ १२ ॥ अर्थ || हवेधात्माने सितारूपकार्यकरतां निमित्तकारण श्रीजि राजवीतरागले तेवीतराग सर्वज्ञकहेवायले समतारूपच्प्रमृतनी खाएबे इष्टानिष्टतारहित समतानाथलीले सुधचारित्रपरिणाम तेहिजअमृतवे तेहनखाबे एवाप्रनुपरमेश्वर परमदयाल परमात्मा सुछतत्वरूपभोगी पूर्णानंदी चिदानंदजेश्रीच्ारनाथप्रभु तेहनेच्या लंबंचे पोतानो भासनप्रनुना तेगु जालवाने जोमी मच्ानंतागुए तेसर्वगुणना नासननीरीऊ तथा तेन परबहुमान एवेच्छालंबने रेहवं एहिजमोनुउपाय बे एनिमित्तका रको || इतिवादस गाथार्थ ॥ १२ ॥ १४० पुष्टहेतुरनाथ ॥ ते हनेगुणश्री हलीये ॥ कनक्तीबदुमांन ॥ नोगध्यांनथीमलीये ॥ १३ ॥ अर्थ || माटे पुष्टनिनामक हेतु कारण तेजिनराज श्रीअरनाथप्रभु ते हनागुणजे केवलज्ञान अनंतानंदरूप तेहथी हिली टोके ० छापलो यात्माते दिसेजोमये प्रगटगुलीनागुणथी आपलीचेतनाजोमवी रीक के ० रागनीमग्नता नक्तिसेवना बहुमान च्यादर मोटाइ आस्वादन घ्या न चितनी एकाग्रताते श्रीच्ारनाथ प्रभुनागुनी करीने श्री प्रभुथी एकत्वपणे तन्मत्रपणे मलिये साधकने सुखदेवतत्वने अवलंबवो तेप्रधान || इतित्रयोदसगाथार्थ ॥ १३ ॥ मोटाने संग || बेगनेसी चिंता ॥ तिमप्रनुचरण पसाय ॥ सेवकायानिचिंता ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ तथालोकीकदृष्टांतक हेबे जेममोटाने नत्संगे खोलामांबेतो ते कोचिंतानही तेनिचितथयो तेमसेवकपण प्रनुनिरामयदेव तेह For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअरजिनस्तवन १४१ नाचरणनेसेववे चिंतारहितथयो जेपरमोत्तम सर्वगुणभोगी निरा लंबी चिन्मयी अनंत दान लाभ भोग उपभोग वीर्यमयी श्री जिने श्वर निकर्म देवतत्व परभावनायकर्ता परभावाभोगी परानुयायीतार हित एहवोदेवजीच्यादरयोबे तोमोहनोस्योजोरवे संसारकोहने क नकोनेवे जोपरमोत्तमधीमे माहरेमाथेकरथोबे जेहनाध्यान थी माहारोमोनीपजे ते देवनोयोग मिल्योबे तेमाटे चिंतानथ। उक्तंच श्री जिनवल्लनपुज्यैः ॥ पसरेश्वीयोए || तावमोहंधयारनमश्जइ ॥ मसिन्नंतावमिवत ॥ सिन्नंफर फनफरतां || तनांंसपूरो पयममज यसंती कालसूरोनजाव ते जेमनरंगेबेठाने सिचिताबे तेमप्रनुचर एपसा ये सेवकथया तेपनिचितजावा ॥ इतिचतुर्दसगाथार्थ ॥ १४ ॥ च्अरप्रनुप्रनुतारंग ॥ अंतरशक्ति विकासी ॥ देवचंदनेच्खाणंद || अक्षयनोगविलासी ॥ १५॥ अर्थ || माटेश्रीअरनाथप्रभु अढारमांपरमेश्वर जे ऐतत्वरुचीथया ने तत्वाभिलाषी तत्वसाधक तत्वध्यानीथयीने तत्त्वप्रगट करयोतेनु नीप्रभुता सुखज्ञायकता सुधरमणता सुधानुभवता अपुलीकता अ संगता अयोगीता सकल प्रदेस निरावरणता प्रागभावी सुवसत्ताभोग्यता तेहने रंगेजेरंगणाबे ते साधक सम्यकदृष्टी देसविरति सर्वविरतिनी अंत रंगसक्ति तत्वप्राग् नावकरवानी साधककारकता साधककर्त्तापलो प रमसंवरपूर्वक परमसकामनिर्जरारूप सक्तिवकवरथवे प्रगटथवे तेस तिथी सर्वकर्मविगमथवे सर्वच्यात्मिकधर्मना प्रगटवेकरी परमात्मा देव मांहेचंऽमासमान श्रीनिष्पन्नपरमेश्वर तेहनजेच्छानंद अव्याबाध सी व अचल अरूज अविनासी तेहनोजे अवयवरूप तेहनानाग अनुनवनो विलासी आत्माथाये एटलेखसंपदा तत्वताआत्मसुखपरि For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ देचोम्बा पति तेहनेसादि अनंतोकाल नोगये अथवा देवचंबजेस्तुतिकर्ता तेअदाआनंद नानोगनो विलासीथाटा माटेवरूपसिङ्घ अरूपी चि दूप श्रीपरमेश्वर तेहने सेवो ध्यावो नमो गावो तेहनागुण सं भारो एहिज मोद साधननो पुष्टनिमित्त निमित्ते नृपदानकारणरूपथ यीने असाधारणकारणताएंचमतो मनुष्यादिक अपेदाकारणपणेकरी तत्वानंदरूपकार्यनेकरसे तेमाटे नपादानादिक त्रणेनीकारणता निमि त्तनेअवलंबेप्रगटे तेथी निरदोषपणे आसंसादिवर्जिने सुचनिमित्तनेसे वे तेसेवनथी कर्त्तापणोसमरे अने कर्त्तापणोसमरेथी खकार्यकरे माटे श्रीअरनाथजीनी भक्ति तेपरमाधार॥१५॥इतिश्रीअरजिनस्तवनंसंपूर्ण अयश्रीमल्लिनायजिनस्तवनलिख्यते॥ देखीकामनीदाश्केकामेव्यापिटोरे ॥ केका ॥ एदेशी ॥ मल्लिनाथजगनाथचरणयुगध्याईयेरे। च ॥ सुधातमप्राग्नावपरमपदपाईयेरे॥ प० ॥ साधककारकषटककरेगुणसाधनारे॥ क० ॥ तेहिजसुधसरूपयायेनिराबाधनारे या॥१॥ अर्थ ॥ हवेकारकसक्तिपलटवाथ सिछतानीपजे तेपलटवानोज पाय श्रीअरिहंतनीसेवनाने तेस्पस्तुतिकरे श्रीमल्लिनाथ परमेश्वर प रमझानी तेजगके० लोकनानाथ मोहनानटा अंतरंगनाव रिपुथी बो माववानापरमकारण तेहनाचरणयुगके पदकमल नोजोमो तेहनध्या थीए वारंवारसं नारियें एहवापनुने ध्यायवाथी ध्यातानेसुंनीपजे तेक हे सुझजे आत्मानोपरमात्मभाव अनंतगुणनिर्मल तारूप तेहनोजे पाग नावके अगटपणे निर्मलसुतारूप परमपद निर्मलपदनीपजे एटलेपो तानीआत्मता निर्मलपणोनजे तेआत्मसिकरूपकार्यकरवाने बकारक For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमल्लिजिनस्तवन १४३ ने तिहांसर्वकार्यमां कारकप्रत्तिनीकारणता कारकचक्रविना का र्यनीनिष्पपत्तिनथी जेम । कुंनकारकर्ता २ घटते कार्य ३ मृतपिक बकादिककारण ४ माटीनामिने नवापर्यायनीप्राप्तितेसंपदान ५ पिं मस्थासादिपर्यायनोचयते अपादान ६ घटादिपर्यायनो अधारपणोते आधार एमघटरूपकार्यमां षटकारक तेमजआत्माने अनादिकाल नाएकारक बाधकरूपेपरणम्याजे तेदेखा. १ आत्मापरविनाव रागादि झानावर्णादि व्यकर्मनोकथियो. २ भावकर्मव्यकर्मने जेआत्माकरेतेकार्य. ३ असुचविनाव परिणतिरूप नावाश्रव अने पाणातिपातादिषव्या श्रव ए बेकारणथीकर्मबंधाये माटे ए करण. ४ असुचतानो तथा अव्यकर्मनोलान ते संप्रदान. ५ खरूपरोधक दयोपसमनीहाणी तथापरानुजाटातातेआपादान. ६ अनंतिमसुचविनावता तथा झानावणादि कर्मनेराखवारूप स तितेआधार. एरीते एकारकनोचक अमादिनो असुईपणे बाधकतापणे आत्माने परणमिरलोडे ते जेवारे साधकआत्मा पोतानोस्वधर्म नीपजाववापणे पर णमावे तेवारेए बोकारक साधकपणेप्रा गुणनी आत्मधर्मनीसाध नाकरे एरीते एनकारक साधकपणे परणम्यां कार्यनीपने सुबवरूपथाय एखरूपपरिणामिकतारूप स्वकार्यकारणपणो कोनेपरणमे तेकडे जे निराबाध श्रीसिघनगवंत तेहनाबकारक तेसुक्षपणे अने बाधक जीवोना बाधकपणे परणमे तथा समकेतगुणवाणाथी मामीने अ योगीगुणवाणापर्यंत साधकपणेपरणमे तथा सिघनगवंतना सुखस्वरू पपणे परणमे कारकते आत्माषव्य जेक रूप तेहनी एपरणति में क्तंचश्रीविसेषावस्यके For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ दे०चोबा. कारणवाख्यानावसरे गाथा ॥ बविहकत्ताश्करणकम्मंच तत्तोटा संपयाणा वटाणतहनासंनिहाणयति ॥ १ ॥ गाथार्थ ॥ तथाचका रणषोढाटाथा कारणमहवाबधा तबसंतंतोत्तिकारणंकत्ता वऊपसाहग तमं करणंम्मिमिदं ॥ १ ॥ कम्मकिरीयकारण इत्यादिगाथाथी जाणवो होइपसंमोख्खस्सकारणां उहयन्मोदस्यकारणहेतुतत् पस स्तनावकारणंनच्यते इतिवचनात्. माटेसाधकपणे कारणपरणम्यातो सिधतारूपकार्यनेकरे तेमांहेनि राबाधजे सिझनिरावर्ण आव्याबाधसुखमां तेहनेक दिक सुधपरिणा मिकनाव सुधपणेथाये खवरूपकर्तृत्वपणेपरणमे ॥ प्रथमगाथार्थ ॥॥ कर्ताआतमव्यकार्यनिजसिचतारे। का० ॥ नपादानपरणामप्रयुक्ततेकरणतारे ॥ ॥ आतमसंपददानतेहसंप्रदांनतारे ॥ ते॥ दातापात्रनेदेयत्र नावअनेदतारे ॥ त्रि० ॥३॥ १. अर्थ ॥ पहेलो कर्ता नामा कारक कहे ते आत्माषव्य अात्मसुझता नीपजावबारूप कार्ये प्रवर्त्तनपाम्यो पोतानोक जे. २. जेआत्मापोतानीसिछता सर्वगुणपूर्णता सर्वस्वनावस्वरूपाव स्थानताते काटनामाबीजो कारकजाणवो तेकार्टजे परिणतिचक्रने अवर्त्तवारूपे क्रियाटोनीपजे ते क्रियानोप्रवर्त्ताववो ते कार्य ते कार्यने कारकतानीपजाववाकाले नीपनापने कार्यमांकारकतानथी उक्तंच भाष्टो तस्मातबुध्यध्यावसितंकाय अप्यात्मकारणमेष्टव्यति. ३. उपादानपरिणाम आत्मावगुणनीपरिणति सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्ररूप रत्नत्रयीनीजेपरिणति तत्वनिरधार तत्वरुची तत्वज्ञान त त्वरमणादिकरूपस्वगुण अहिंसकता बंघहेतुअपरिणमनरूप खरूपयाथा For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमल्लिजिनस्तवन १४५ L - A र्थनासनरूप परनाव अग्रहणरूप परनावअनोक्तारूप वरूपग्रहण व रूपनोगी परनावअरदणरूपस्वरूपएकत्वरूप तत्वाराधन चेतनास्वरूप प्रगटतानुयायीवीर्य तेन पादानकारणअनेषव्ययोगसमारवारूप अरिहं तालंबनादि टयथार्थआगमश्रवणादितेनिमित्तकारण तेहनोपयुंजवोआ त्मकार्यकरवापणे आत्मानोप्रयोगकरवो एन (कृष्टकारणमाटे करणना मात्रीजोकारकजाणवो साधकातमंकारणं करणंइतिवाक्यातआत्मसि विरूपकानो उत्कृष्टकारण अनेआत्मसक्तिस्वरूपानुटायी तथासुछ देवप्रमुखते करणकारक कहिटोः ४. आत्मानीसंपदा ज्ञानपाटो दर्शनपर्याटो चारित्रपर्याये तेह नोदानात्माने आत्मगुणप्रगट करवारूपदेवो तेहथीजेजे आत्मधर्मनी पजताजाटो ते संप्रदानकहिटो उक्तंच गाथा ॥ देनसजस्सतंसं ॥ प याणमिहतंपिकारणंतस्स ॥ होईतद्दचित्तान ॥ नकीरइतविणाजसो ॥ इतिमाटेजेआत्माना अस्तिधर्मनोथवो ते संपदानकारक दाता तथा आत्मापात्र अनेआत्मानेदटाके. देवायोग्यतेआत्मधर्म एत्रणेनावनी अनेदता एटले गुणनोषगटकरवातेदेटा आत्माकारकदाताआत्मगुण नेप्रगट करतेदातापणो अनेगुणनोपात्रपणआत्मा एटलेदान दाता अ ने ग्राहकवणेअनेद इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ स्वपरविवेचनकरणतहअपादानीरे॥ ते॥ सकलपर्यायआधारसंबंधास्थानथीरे ॥ सं॥ बाधककारकनावअनादिनिवारवारे ।। अ० ॥ साधकताअवलंबितेहसमारवारे॥ ते॥ ३ ॥ ५. अर्थ। जेयात्माथी समबाटो रहातेहनेवधर्म कहिटों अनेतेह थाविपरीत जे मोहादिक कर्मअसुझप्रवत्ति तेपरनाव कहिये तेहनोविये For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोबा चनकरवो निन्नकरवो असुधतानोकञ्छेदकरवो दोषनोत्यागकरवो ए टलेजे दोषविष्लेषकरवो तेअनादिसंसारक पणो तथानोक्तापणो तेतजीने जेआत्मस्वरूप कापणो नोक्तापणे तेहिजप्रगट करवो ते पाचमोअपादानकारककहिटोः ६. सकल के सर्वपर्याय तहनो आधारते आत्माने आत्मा त था आत्मपर्यायथी स्वस्वामीत्वसंबंध व्यापव्यापक संबंध ग्राग्राहक संबंध आधाराध्येटासंबंध एसर्वनो आस्थानके ठेकाणारूपदेवते आत्माले तेआस्थानतामाटे आत्माआधार तेआधारनामाटोकारक एनकारक साधकपणनाकला हवेएसाधकपणो केमपामतेकडे बाधकजेपरनाव तेहनेअनुजामी असुधकादिकारकपणो मिथ्यात्व असंयम कघाटा रूप नावअसुधतारूप सामान्यचक्र असुधसाध्यानुग त असुधकर्त्तापणो तेहने निवारवो तेचकरोकीने स्वरूपानुगत करवो तेमाटे एअनादिनीनूलटालवी जिहांसुधीकर्ता परभावकारको तिहां सुधीकांसाधकतानथी जिहांसुधीकर्ता असुधकार्यानुजायी सामा न्यचक्रले तिहांसुधीसुधसाधकतानो अंसपणनपनोनथी श्रीपूज्येकह्यो जे जे आत्मातत्वक पणेथयाविना सर्वसुनप्रवर्त्तनते बालकनीचा लो तेमाटे कारकचक बाधकताथीवारीने साधकतानेअवलंबीने ते कारकचकनेसमारखो स्वरूपानुजाटोकरवो छने पोतानीआत्माने ए मकबोजे हेचेतनतुं पर नावनोकी तथाभोक्ता अनेग्राहकतानही तूंतो संपूर्णानंदनो सुविलासीगे चनेतुंजेपर नावमारमीरखो तथापरभाव नोनोगी थरखोगे पुतुजनेनटेनही ताहरोकार्य अनंतगुण परिणागी करूप स्वरूपनोक्तापणाने तेमाटे हेचैतन्यहंस हवेतुंयथार्थ जिनवाणी रूप अमृतपानकरीने अनादिविनावविषवारीने पोतानोतत्वसं नारी व परविवेचनकारीथयाने पोतानोजेसहेजानंद तेहनेकर एहिजताहरोका For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन १४७ बे तुतेनोउपादान कारणसक्तिवंतचे ते हनोलेवावालोगे तुंताहरी गुए संपदा ताहरेप्रदेसें प्रगट करवारूपदाननो संप्रदानीको माटेहेचेतन एच्छ नादिच्छा सुधपरिणामने तुंहिजत्यागकरीस नेताहरीसत्तानो आधार पणतूं हिजबो माटे तूंहिताहरातत्वनेकर ताहरोतत्वतूंनी पजावीस एम पोते पोतानीयात्मानेकहिने साधकपणाच्यादरखो तेच्यादरताकारकस मरे कारकनेसंमरवेथी अनूकमेयात्मानो खकार्यनीपजे पबे एहिज घ्यात्मासिस्थाय माटेर हिजसाधननोमार्ग साधनकीधे कार्बनी सिधि थाय एक्रमबे इतितृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ सु६पणे पर्यायप्रवर्त्तनकार्य मेरे ॥ प्र० ॥ कर्त्तादिकपरणामतेच्छातमधर्ममेरे ॥ ते० ॥ चेतनचेतन नाव करेसमवेतमेरे ॥ क० ॥ सादिच्ानंतोकाल रहे निजषेत मेरे ॥ २० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ पहेलोसुदपणे निष्पन्न यात्मानाज्ञानादिक पर्यायनो जा वादेखवारूपकार्यनो प्रवर्त्तन उत्पादव्यव्यरूप परिणमनते कार्यनोक र्त्तायात्मांबे बीजोयात्मगुणनो परिणमनते कार्य त्रीजात्मगुएज्ञाना दिकतेकरण चोथोच्यात्मगुणनो लानतेसंप्रदान पांचमो परनावत्याग परिणतितेच्यपादान बवोच्यनंत गुणनोराखवातेच्याधार एबकारकनोच ऋते सिधावस्थानेविषे सदा स्वाधीनपणे फरिरह्मोवे तेहथीसुद्द निष्पनप जे पर्यायनो प्रवर्त्तन तेहने कर्त्तादिकनकारक तेहनोजेपरि मन तेच्यात्मधर्ममाहजबे एटले सिद्धपणे जे कर्त्तादिकब कारकते खरूपमध्येजे वे चेतन के आत्माते पोतानोचेतननाव के आत्मनावकरे समवे तमे के॰ समवाटयसंबंधांबे एटले आत्माच्यात्मनावनोकर्त्ता एसमवा दासंबंधे मूल पऐसा दिानंतोकालपर्यंत निजखेतमां के० पोतानाच्य O For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ दे०चोम्बा संख्यातापदेसरूप क्षेत्रमध्येआत्मधर्ममांनिष्पलसिधपणेरहे सिधनीया दिले परंतुअंतनथी माटे इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ परकर्तृत्वस्व नावकरेतालगेकरेरे ॥ क० ॥ सुचकार्यरुचिनासययेनविआदरेरे ॥ २० ॥ सुधातमनिजकार्यरुचेकारकफिरेरे॥ रु०॥ तेहिजमूलस्वनावग्रहेनिजपदवरेरे॥ ॥५॥ अर्थ ॥ पर के ० जेनावकर्म अव्यकर्म नोकर्म तहने कर्त्तापणाने खनावकरे तेहांसीमते हनेजकरे एटलेएपरकर्त्तापणे अनादिकालथी करे जिहांसुधी परनोरागी परनोनोगी तिहांसुधिपरकर्त्तापणो ए आ त्माकरे पणजेबारे सुझनिर्मल निरावर्ण स्वगुणप्रगटकरवारूप कार्यनी रुचीथाय तेबारे परकर्त्तापणो आदरेनही सुरात्मखरूपनो स्याछाद रोते परमानंदपणे भासनतथारुची तेहजकारकपलटाववानाबीज ते माटेसम्यक्दर्शन सम्यकदान ते मोदनो मूल सुधात्मअनंतग्यान द र्शन अव्याबाधसुखमयी अरूपी सहेजानंदरूप आत्मधर्मसत्तापागना व सकलपरनावव्यतिरेकी अरागी अध्वेसी असंगी अयोगी अलेसी अकषायी असहाटी एहवोसुधानंदरूप स्वकार्य तेहनीरुचीथटोथके कारकचक्रफिरे जिहांसीम परपुजलिकसुखनी रूची तिहांसीमपरनो कर्ता तेहथीसर्वकारकनोचक्रतरूपेजपरिणम अनेजे अवसरेनेद ग्यानधाराथी आत्मानोपरविनजनकरीने पोतानोआत्मखरूप एकन बरंगधर्मजाग्यो तेहनेजहितमान्यो तेवारतेआत्मिकधर्मनीजरुचीनपजे पजेहनीजेहनेरुचाउपजे तेतेहिजकार्यकरे तेवारेक धर्मखकाटने करे सर्वकारकचक खकार्याश्रीतथाय तेवारतेहिजपोतानो अचल अखम अविनासी निःप्रयासी स्वरूपपरिणमनरूपजे मलखनाव स्वधर्म For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमल्लिजिनस्तवन १४ तेहनेग्रहणकरे केमजेएकारकमूलधर्मनेग्रहजे तेहथी निजके पोतानो परमात्म पूर्णब्रह्म पूर्णनंदपदनेवरे पामे कृतकृत्य अक्रिय अकंप अनं तचित्सक्ति अरूपी अव्याबाधसुखी एहिजआत्माथाय इति ॥ ५ ॥ कारणकार्यरूपअकारकदसारे॥०॥ वस्तुप्रगटपर्यायएदमनवस्यारे॥ ए॥ पणसुधस्वरूपच्यानतेचेतनताग्रहरे॥चे। तवनिजसाधक नावसकलकारकलहरे ॥ स॥ ६॥ अर्थ ॥ एबकारकते कारणतथाका रूपडे कार्यनेनीपजाववार पजे माटे कारणनाजनेदरे सर्व कार्यकर्ताआधीनजेकार्यकरे तेकार णादिविनाथायनही माटे वस्तुके० आत्मापदार्थ तेहनाएब कारकते ५ गटनिरावर्णपर्याजे एम मनमावस्योजे कर्त्तापणानेआवर्णनथी कर्ता पणोविसेषवनावने तेविसेषगुणने पर्यायनेआवर्णले परंतु स्वभावनेा वर्णनथी खनावतेहना कारणभूतगुण चेतनातथावार्यनेयावरचे कर्त्ताप पानीप्रत्तिमंदपमे परंतु कर्त्तापणोमूल गोअवराटानही तेचेतनावीर्य वि परीतपरिणमवे परनावकर्तापणेप्रवयों तेहथा पोतानोस्वरूपावरा योजगयो तेअवराणो तेहथी स्वस्व नावनेकरीसकेनही अने अदरनो अनंतमोनाग चेतनाअने योगस्थानरूपवीर्य दयोपसमीरह्यो परंतु अनादिचालथी परनावानुजायीज तेहथी स्वरूपक पणोतोथ योनही तेवारे कर्त्तापणेपर नावनेकरयो आश्रवबंधरूप कार्यनोकर्ता थयो एटले असुनकार्यकरयो परंतुअवराणोनही तेहथोक पणो अ नाटतथके कारकपणवराणानही जो कारकनोचक्रवराये तोआ श्रवनावबंधपतिकमकरे तेहनोआदाता अभिनवपर्यायनोत्यागी पूर्व पर्यानोआधार असुधतानोकोणथाय माटे कारकनिरावर्णले परंतुवि For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० देचोबा कारीथया तेहथीमूलस्वरूपथीचुका एमथयो हवे एनोपलटणपणोा त्माकरे तोथाय तेकहे जे चेतनके० चेतना जेवारे साकार अना कारने यथार्थनासनकरीने पोतानासुस्वभानेरहे भासनषतीरुची ना आचरणपणोअंगीकारकरे तेवारे पुहिजसकल के ० एकारक निज के० पोतानो साधकनाव कर्मविदारण स्वरूपप्रगट करवा रूपनावने लहेके ० पामे एटले पहिजकारकते १ स्वधर्मका २ स्वधर्मपरिणम नकार्य ३ वधर्मानुजायी गुणपरिणति चेतनावीर्यसक्ति तेकरण ४सा धनगुणसक्तिनोप्रगटवो तेसंप्रदान ५ पूर्वपर्यायनोनिवर्त्तनतेअपादान ६वगुणनोआधारीपणो तेबाधार एमषटकारकसाधकपणोपामाने सिम ता परमोत्मतानु नबरंगसमाधि सकल निर्मल तानीपजाये इहांखधर्मअव लंबवानी नावनालि खेडे गाथा ॥ अहम्मिक्कोखलुसुघो॥निम्ममनना णदसणसमग्गो ॥ तम्मिविन तच्चितो ॥ सवेएएषयनेमि ॥ १ ॥ अहं आत्मा अनंतगुणपर्यायरूप अनंतखधर्ममया तथाषव्यपणे अखंमपणे समुदायपणे एकळू वलि निश्वयनयथीसुधबु यद्यपीअनादिपरनावमां जुब्ध खनावनष्टथको असुधथयो तोपणखजातिथीमूलधर्मे अनंतझा नादिगुणमय निष्कलंक निरामयनिःसंग निर्दोष सर्वममकार पर भावमाहारापणाथीरहितबुझानसकलनासन परिजेदनरूप दर्शनसामा न्योपयोगतेहिजमटी एहवानासन रमण परिणमनरूप एमात्मारह्योथ को सर्वपरोपाधीने दयकरी स्वसुधस्वरूपनेग्रही सर्वपरनावनेदकरी नि मलानंदनीपजावे ॥ इतिषष्ठ गाथार्थ ॥ ६ ॥ माहरूंपूर्णानंदप्रगटकरवानगीरे॥प्र० ॥ पुष्टालंबनरूपसेवअनुजीतणीरे॥से ॥ देवचंजिनचंनगतिमनमेंधरोरे॥ना अव्याबाधअनंतअदयपदआदरोरे। अ०॥ ७॥ For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ श्रीमुनीसुव्रतजिनस्तवन अर्थ ॥ एहवोबोधकता परिणम्यो माहरोक दिक कारकपरिणा मते श्रीअरिहंतपरमझाता स्वरूपरमणी वरूपविश्रामी स्वरूपानंदी तेह नोखरूपजोता गातां तेषसुधक पणोपलटे तेहथीकारकपलटे पडे कार्यसुचसिछत्तारूप अनंतस्त्रसंपदारूपनीपजे तेवारे भव्यजीवने पो तानोतत्वनीपजाववारूपसक्ति ते श्रीअरिहंतजीनीसेवनाथोथाये माटे जनिरधारकरयोजे हेअनुजी माहरोजेपूर्णानंद पूर्णअव्याबाधसुखते प्रगटकरवाने पुष्टालंबन पुष्टनियामकी आलंबन के आधार तेन व्यजीवनाआधार मुनीजननाप्राणाधार आचार्यन पाध्यायजीनापरम दयाल नावचिंतामण समान समकेतिजीवनाध्येयध्याताने प्रतिबंदरू प अनंतगुणाकर निर्मलझानानंदनापात्र एहवाश्रीजिनराज माहारा ज सुखसमाज तेहनीसेवना ते हेजपुष्टालंबन तेमाटेसर्वदेव इंसादि कतेमध्ये चंडमासमान एहवाजेजिनचंश्रीवीतराग अरिहातेहनीन क्ति सेवनाआझामानवारूप तदनुजायोपणो तेहिजत्राणसरणजे एह वीनक्तिमनमांधरो थारराखो अथस्तुतिकर्त्तानोसंबोधन हेदेवचंद श्री जिनचंबनिनक्ति चरणसेवनात मनमांधरोतो अव्याबाध जिहां पर नावनीपीमानही परमानंदरूप जेहनाअनंतगुणते गएयाजायनही अ दयके जेहनोहनही विनासनही एहवोजेपरमात्मरूपपद तेआदरो एटलेपामो माटे एआत्मबाधकतातजा साधकतामांरमे सिध्थिाये ए हिनअनुसेवनानोफल माटेहसिहरुचीनीवो तुमेश्रीमल्लिनाथ परमपू षोत्म परमेश्वर निःकारण जगत्वउल तेहने गावो स्तवो संनारो ध्यावो प्रथमथीसाधकजीवने हिजाधार एहिजजीवन ॥ ७ ॥ इति ॥अयश्रीमुनिसुव्रतजिनस्तबनलिख्यते॥ उलगमान लगमासुहेलाहोत्रीश्रेयांसनारे एदेशी ॥ For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ दे० चोबा नलंगमानलंगमीतोकोजेश्रीमुनीसुव्रतस्वामिनी रे॥जेहयीनिजपदसिक्षिा केवलज्ञानादिकगु एनलसेलिदिएंसहेजसमृधि ॥ नु० ॥१॥ अर्थ ॥ मुनिजे निग्रंथ तेहना सुव्रत के ० नलाव्रत एहवाश्रीमुनि सुव्रतषनु तेहनी नलंगके सेवागुणग्रामकरिये जेहथीनिजपदके पो तानोजेपरमानंदपद तेहनीसिधिथाये वलि केवलज्ञानादिकगुण उल्ल से के प्रगटे झानामृतरसनानोगीथाटा तथासहेजअक्रतिमखरूपसम धानेपामे एअनुसेवानोफल ॥ इतिपथमगाथार्थ ॥ १ ॥ नपादाननपादाननिजपरिणति पणकारणनिमित्ताधीन ॥ पुष्टअपुष्टदुवि धतेनपदेस्योरे॥ग्राहकविधिआधीन नशा अर्थ ॥ हवे आत्मसाधनकरवामध्ये उपादानते निज के० पोता नी परणति तेवस्तुनोमूलधर्म एटलेजे आत्मसत्ताबति तेनपादानका रणजे पणते निमितकारणनेआधीन निमित्तसेवनकर्तानपादानकार समरे तेनिमित्तकारणनाबेनेदबे एकपुष्टनिमित्त बीजोअपुष्टनिमित्त तेग्राहकजेकार्यनोकर्ता तेजे विधेकार्यथाटा तेविधेकार्ययहिप्रवर्त्तावे तोतेनिमित्तकारणकानोहेतुथाटपणअविधग्रहणकरे तोनिमित्तकारण कार्यकरेनही जेमकुनकारचकनेफेरवेतो माटीनामिनेघटपणेपमामे अनेनहीफेरवेतोनपमामे एटले श्रीअरिहंतमोदनानिमित्तकारणतो प रंतुजेरीतआगममध्येकलो ते विधे आसतनाटाली पुजलासंसारहीत केवलझानादिगुणनोन लखाणसहीत जोसेवेतोमोदनोनिमित्तकारणथा या पणअविधेसेवनातेकामनीनही माटेग्राहकनेविधिसहीत कारणग्रहवो तोकार्यनेकरे इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ For Personal & Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ श्रीमुनीमुव्रतजिनस्तवन साध्यसाध्यधर्मजेमांदेहोवेरे। तेनिमित्तल तिपुष्ट ॥ पुष्पपुष्पमांतिलवासकवासना रे॥ नविप्रध्वंसकदुष्ट ॥ न० ॥ ३ ॥ अर्थ ॥ हवेपुष्टनिमितनोस्वरूपकडे साध्य करवायोग्य कार्य धर्मते जेकारणमांहोये ते कारण कहीये तेपुष्टकारणविधियें कार्यकर वानेअर्थेग्रोथको कार्यनेकरे पणते कार्यनोध्वंसकनथी तेहनोदृष्टांत जेम तेल नेसुगंधवासना करवारूपकार्टा तेहनोकारणपुष्पबे परंतु वा सनाकरवीतेसाध्य तेवासनाफूलमध्ये अने तेफूल ते तेल तथा ते लनीवासनानाध्वंसकनथ। तेमाटेपुष्टनिमित्तले उक्तंचविसेषावस्यके का र्यस्यासननिमित्तंइति तदेवपुष्टं दूरतरंकारणनैमित्तकंतत्अपुष्टं इति तथाचश्रीसियसेनपुज्यैःपूष्ट हेतुर्जिनेय मोदसद्भावसाधनेति तेह थोश्रीअरिहंतदेवते मोदरूपकार्टानापुष्टनिमित्त जेमाटे साध्यजेनिरा वर्ण परमात्मपदते श्रीअरिहंतनेविषेले माटेजश्रीअरिहंत तेपुष्टनिमित्त जोविधियेसेवनथायतो मोदकार्यनीपजे ॥ इतितृतीयगाथार्थ ॥३॥ दंमदंमनिमित्तअपुष्टघमातणोरे॥ नवीघ टतातसमांह। साधकसाधकप्रध्वंसकता अरे ॥ तिणेनहीनियतप्रवाह ॥ न० ॥४॥ अर्थ ॥ हवेअपुष्टनिमित्तदेखामेजे दंमतवमानोअपुष्टनिमित्त का रणजेमफुलमांहेसुगंधवासनाने तेमघटताके घटपणोतेदममांहेनथी क "नेरवेकारणजे एदंमघटनोसाधकनीपजाववानोकारणपणजे नेबट नोषध्वंसकरवानोकारणपण माटेएनिटातप्रवाह के निश्वेथीएकचा जनोनथी जेनिश्चेघटकरे एधर्मएहमांनथी अनेश्रीअरिहंतपरमात्मनोसे वनते निश्चेसिछतानोकारण एहनेसिधिकार्यनीरुचेजे सेवेतहने निय मासिदिनीपजे इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ दे०चो वा षटकारकषटकारकतेकारणकार्यनोरे ॥ . जेकारणस्वाधीन।तेकर्त्तातेक सद्धका रकतेवसरे ॥ कर्मतकारणपीन ॥ ॥५॥ अर्थ ॥ हवेकारणनिपुष्टताकेहेवानिमित्ते कारककहे । कर्त्ता २ कर्म (कार्य) ३ कारण ४ संप्रदान ५ अपादानं ६ अधिकरण एक कारक तेहरेककार्य नीपजववानाकारण जिहांक क्रियाकरे ति हां एबकारकजाणवा आत्मा पोतानोसिछताकार्य करवारूप क्रिटा करे तेवारे एकारकसर्वहोये कर्त्ताजेआत्मा तेहनो सिधरूपकार्यअनेद बे अने निन्नकार्यनोकर्ताभिनहोटो तेवारे कारकपणनिलहोये एनीत बे परंतु निमित्तकारणते सर्वकार्योमांभिन्नजहोये अने सिधरूपका नोनिमित्तकारण श्रीअरिहंत तेहनेकारकन पादानपणे सर्वपहोचले एनीतिजे हवेबकारकमां प्रथमकर्त्तानामेकारकडे तेहनोलदणकहे जेकार्यनीपजवानो खाधानकारण एटले सर्वकारकतेहने आधीनहो टोते कर्त्ताकारककहीये स्वतंत्रक इतिवचनात् ॥ कारणमहवाहात स्थसंत तोत्तिकारणकत्ता श्रीनाष्यसुधांबधिवाक्यं सर्वकारकते कर्त्ताने आधीन हवेबीजोकर्मनामाकारकते जे कारणेपुष्टथाटो भनेकरयोथा या तेकर्मकारक नक्तंच कम्मकिरीयाकरणइतिवचनात् ॥ इति ॥ ५॥ कार्यकार्यसंकल्पकारकदशारे ॥ त्ति सत्तासद नाव ॥ अथवातुल्यधर्मनेजो यवरे ॥ साध्यारोपणदाव ॥ ॥६॥ अर्थ ॥ इहांकोई पुखसेजे कर्मतोकार्यने पणकारण नथी तेहनेत त्तरजेक"नेपहेलातोकार्य नोसंकल्पथायडे तेवखतेतेक पहेलासंक स्पेकार्यनेविचारे तेवारपकार्यकरे तेमाटेकारणकहिये उक्तंच विसेषा For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमुनीसुव्रतजिनस्तवन २५५ वस्यके सर्वोपिबुझोसंकल्पकार्यकरोतिव्यवहारस्ततो बुधाध्यवसितस्य कुंनस्यचीकिर्षितोमन्मयःकुंभःस्तंतबुध्यालंबन तया कारणंभवति॥ थवा स्थासादिकालते घटकार्यनोकारण अनेक"नेतो स्थासादिका र्य अथवाजे कार्यनीपजाववानो मृतिकादिकमलनपादान तेहमांजे कार्यनीतिसत्तायें योग्यतापणेरही तेकापणोसत्तागत् तेषागनाव) कार्टानोकारण वक्तंच अथवानव्योयोग्यः स्वरूपलानस्येति शक्य नुत्पादटातुमत्तः सुकरत्वात्कार्यमय्यात्मनकारणमिभ्यते अवस्यंचकर्मण कारणत्वमेष्टव्यं इतिः॥ सतनावनजीकपणेजे कारण पादान निमित्ततेस नजीककरे कार्टनेअर्थे तेकारणनो सतनावब तापणे तेकार्यबुधे मेलवे तेमाटेकार्यने कारणकहे अथवातुल्यधर्मनोजोवो जेमुजने एह वोकार्यनीपजाववो जेमकोईयात्मा मोदपूर्णानंदकरवाने उद्यमीथ यो तेसिधनपनिष्पलतत्वनेजोवे अनेविचारेजे महनेमाहारोएहवोतत्व नीपजाववोडे एमसंकल्पकरवो तेतुल्यधर्मजोटी कार्यनोवद्यमन्त्रणोथा य तेमाटेकार्यने पणकारणकहे नक्तंच श्रीपूज्यैः किंबहुनायथा टा थायुक्तितो घटतेतथासुधाटयाकर्मणः कारणत्ववाच्य मन्यथाकर्मणो कारणत्वेकरोति कारकमतिषणां कारकत्वातुपपत्तिरेवस्यादिति एरीतेक मनेविषे कारणपणोमानवो एमजकारकताबे साध्यनोधारोपणकरखो एहकर्मनेकारकपणोजाणवो ॥ इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ अतिसयअतिसयकारणकारककरणतेरे ॥ निमित्तअनेनुपादान ॥संप्रदानसंपदानकार पदनवनीरे ॥ कारणव्ययअपादान न ॥७॥ अर्थ || अतिसयनत्कृष्टपणेजेबत्तरण ते करणनामा त्रीजोकारककहि ये तेहनाबेनेद । निमित्तकारण २ नपादानकारण ते आत्मानास For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ देचो बा० त्ताधर्मनो निमित्तकारण श्रीअरिहंतादिक ने कारणपदनोनयनथवे एटले उपादान अधीकधीककारणतापामे ते कारणपर्यायनो लान ते संप्रदानजाणवो जे उपादानकारणमां नवानवाकारणपर्यायपामे ते संपदानकारककहिये अथवा कार्यनानवानवा पर्यायनोप्रगटथवो ते संप्रदानकहिये एटले कार्टापदनोनवनतेसंपदानकहिये अने पाला कारणपर्यायनो व्यटाके ० विनास तेअपादानकारककहिये जारणकार पर्यायनोनास नव्यकारण तानोनीपजवो ते रीतेकार्यनीनिष्पति । इतिसप्तमगाथार्थ ॥ ७॥ नवननवनव्ययविणुकारजनविहोवेरे॥जि मद्दषदेंनघटत्व ॥सुवाधारसुवाधारसुगुणनो व्यबेरे । सत्ताधारसुतत्व ।। न० ॥ ७ ॥ अर्थ | कोश्कहेसे संपदानतथाअपादानतेहने साकारणता तेह नेउत्तर जे भवन के नवापर्यायानोथवो व्यय के पूर्वपर्यायनाना स एथयाविनाकार्यनीपज़ेनही जेममाटीनोपिम तेपिमपर्यायनोव्यय स्थासपर्यायनोनवन तथास्थासपर्याटानोव्यटा कोसपर्यायनोनवन कोसपर्यायनोव्या कुसल पर्यायनोनवन कुसलपर्यायानोव्यय कपा लपर्याटानोनवन कपाल पर्यायनाव्यय वटपर्याटानोनवन एरीतेका र्यनीनत्पत्ति तेमसिछतानेविषे मिथ्यात्वपर्यायनोव्यय सम्यकपर्या यनोभवन तेहनासाधकपर्यायनोजीरणनोव्यटा नवानोनत्पाद एरीते कार्यनीनीष्पत्ति परंतुनवन तथाव्ययाविनाकार्यथायनही जेमदृषद नेविषेघटपणोनथाटा टाद्यपिक चकादिक व्यापारकरतोपणदृषदपाषा णनोघटनथाटा स्यामाटेजे दृषदपाषाणनेविषे स्थासादिघटपर्याटानो न वनव्ययपणोनयी तेमाटेनोपजेनही हवेतोबाधारकारककहेले खगु For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ श्रीमुनीमुव्रतजिनस्तवन झानादिकतेहनो सुधआधारपव्यपदार्थडे एटलेजीवषव्यज्ञान दर्शन चारित्र दान लान नोग उपनोग अव्याबाध अमूर्तता अगुरुलघु अखंमता निर्मलता कर्तता परिणामिकतादि मूल गुणसर्वनोआधार जीवषव्य एमधर्मास्तिकायादिसर्वव्य पोतपोतानागुणनाछाधार ते हथीधर्मास्तिकाटानेआधारकारककहो एमकोईपुजे तेहनेत्तरले ध मास्तिकायनेगुणाधारीपणोडे परंतु कर्तृत्वपणोनथी तेमाटेकारकपणोन गवेष्यो सुधतत्वनेसत्तानोआधार सत्तातेआत्मानो मूलधर्मजे निरा मय तेहनोआधार सुतत्वबे इतिअष्टमगाथार्थ ॥ ७ ॥ आतमआतमकर्ताकार्यसितारे ॥तस साधनजिनराज॥प्रदिपनदिठेकारज रुचिनपजेरे॥ प्रगटेआत्मसमाज। न० ॥ ए॥ अर्थ हवेतपनयकर आत्मास्वरूपरुची नवोग्नि मोदानिलाषी सम्यक्दर्शनगुणप्रगटेजे स्वरूपनोक पणो विरतिपणे तत्वध्यान त त्वतन्मयतादिकनेकरवे कर्त्ताने एटलेतत्वार्थीआत्मा कर्ता कार्यसिद्ध ता सकलगुण प्रगट तापणो निःकर्मावस्था तेहनोसाधन निमित्तकारण श्रीजिनराज सर्वझ जेकारणेअनुदीवेयथार्थनासनथाय कार्यनीलस त्तापाग नावनोगीपणानी रुचीनपजे तरुचीसंपूर्णसिघतानोमुख्यकारण बे तेरुचीवधतिसाधननाव ध्यानावस्थावलंब ने पूर्णानंदतानीपजावे आत्मानोसमाज के ० साम्राजगटे तेहथीमोद नोकर्ताआत्मा पाणमो दनीरुचीविनातो कापणोप्रगटे नही अनेतरुच श्री अरिहंतदेवनदीते नीपजे माटेश्रीअरिहंतनोदर्शन तेरुचीनाकारण अनेरुचीतमादनो कारण एवारीतेमोक्षरूपकार्यनोमूल कारणश्री अरिहंतज तेमाटेमा हरेमोदनीपजे एनपगारतत्वहितनाकरनार श्रीअरिहंतनोजाणुं इति । For Personal & Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ दे०चोबा वंदनवंदननमनसेवनवलिपुजनारे॥स्म रणस्तवनवलीध्यान ॥ देवचंदेवचं कीजेजगदीसनोरे॥प्रगटेपूर्णनिधान॥ ॥१०॥ अर्थ ॥ तमाटे वंदनाके० करजोमन नमनके ० सीसनमाववा रूप सेवनाते आज्ञामानवारुप बलिपूजनाते पुष्पादिकनी तथा स्मरणते वा रंवारगुणनोसंभारवो स्तवनते वचनेकरीगुणनोकथन हरषीकरवो तथाध्यानते अनुगुणेचितनीएकाग्रतानोकरवो एटलासर्वउपायजे तेसर्वहे देवचंवस्तुतिक ते पोतानेकहे जे बंदनादिककतव्यकोजे श्रीजगदीस नीत्रिलोक्यदयालनी तेकरतांसेवाप्रगटे के प्रकासपामे पूर्णनिधान नंतगुण आत्मसक्ति परमानंदरूपनिधानप्रगटे एटलेश्रीजिनराज परमां त्मानीसेवाकरतां पोतानीपूर्णपरमात्मतानीपजे अविनासीधनप्रकासपामे एश्रीमुनीसुव्रतदेवाधादेवनोपरमन पगार ॥ १० ॥ इतिश्रीमुनीसुव्रतजि नस्तवनंसंपूर्ण ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ॥ अयश्रीनमिनायजिनस्तवनलिख्यते पोगेलारीपालन नादोटाराजवीरे 7 ० एदेश) श्रीनमिजिनवरसेवघनाघनननम्योरे ॥१०॥ दिगंमिथ्यारोर नविकचितथीगम्योरे॥ न० ॥ सुचिआचरणारीततेअश्रवधेवझारे । अ० ॥ आतमपरणतिसुश्तेवीजऊबूकमारे ॥ ते ॥१॥ अर्थ ॥ हवेएकवीसमांजिनराज परमोपगारीतेहना गुणस्तवे उ पगारसंपदाएकरीने श्रीनमिनाथ जिनजे अकषायी तेमाहवरप्रधान वी तरागपरमग्यानी परमात्मासुखरूपनोगी चिदानंदघन निरविकारीदे For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनमिजिनस्तवन 20 वने लखवो तथातेनोयोग मल वोध लोज दुर्लनबे उक्तंच इदत्तं चक्कि त्तंसुरमणीक पडुंमस्सकोमी लानोसुल होडल हो दंसणोतिनाहस्स ॥१॥तेमाटेश्रीजिनेश्वरनोदर्शनः प्राप्पबे ते संसारचक्रमांमुजितजीव स्वतत्वथीरहित दीन रंकनूतने जिनसे वना केहांथीमले ते कोइक पुण्यानुबं धीपुरयनानदद्यार्थी जीवने जिन सेवनाप्रगट) तेजीवहरषथी कहे जे श्री नमिजिनवरनोसेवन तेहिजघनाघनके मेहननम्यो. ० जेममेहचारे दिसाथी चमीच्यावे तेम मनेवचने कायायें अध्यात्म परिणतियें श्रीनमिप्रनुनोबहुमान नमन गुणनीच्अद्भुतता एटले अनुयोग मल्यानी आश्चर्यता प्रगटी तेचारे दिसिनामेहरूपजावी. वलि मेहजिवारेचारे तरफथी घटाकरीवंचोच्यावे तेवारेलोकनाम नमां काल नोना होयेतेजाय तेमश्रीच्य रिहंत से वनारूपमेघजेवारेष गटे तेवारेच्अनादिकाल नोमिथ्यात्वरूपजे रौरव के० काल हतोते न विकजीवोनाचितथीगम्यो के० टलीगयो एलानथयो. मेहने विषेजेममोटाबादलावधे तेमएप्रनुनक्तिरूपमेाने विषे सुची के पवित्र अवधिरहित आसातनारहित पुल च्या संसारहित एवीन लीच्याचरण जीवनेथाये तेहिज पटल के बादलाना समुहवधे के० महोटाथाये एटलेरूपी वस्तु रूपमा घटे ० मेहमां विलीनाजबकाराबाहो अनेनुसेवनाकरतां आपली आत्मानी परिणति सुखथा गुणी सुछतत्वीनासेवननेच्ानुजावीथाय ते हिजवीजलीनाज बुका जालवा इति प्रथमगाथार्थं ॥ १ ॥ वाजेवायसुवायते पावन नाव नारे ॥ ते० ॥ इंधनुष त्रिकयोगते नक्ति एकमनारे ॥ ते० ॥ निर्मल प्रस्तवघोषकुंनिधनगर्जनारे ॥ कुं० ॥ वृश्नाग्रीष्मकालतापनीतर्जनारे ॥ ता० ॥ २ ॥ For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे०चोम्बा अर्थ ॥ मेहेमां वायुअनुकुल होयतेम जिननक्तिरूपमेहनेविषे जिनगुणना बहुमानसहित जेनावना तेहिजसुवायुवायजे. ___ वर्षादमांत्रणरेषायुक्त इंधनुष्यसोनाकारीहोये इहांमनवचन का यारूप त्रणयोगते नक्तिनेविषेएकमनाथटा ते इंधनुष्यसमान जाणवा निर्मल उज्वल अनुनागुणतेहनीजे स्तवनाध्वनी शब्दतेहिज घन के. मेहनीगर्जनाजाणवी ___ मेहथी ग्रीष्मनष्णकालना तापटले तेम अनुसेवनथी वृष्णा पुजल सुखनीपीपासानोजे अंतरगतापहोये तेटले एटले आत्माने वृष्णा रूप पीष्मकासनो माहातापमिटे इतिक्षितिगाथार्थ ॥ २ ॥ सनलेस्यानीआलितेबगपंक्तिबनीरे ॥ ब० ॥ श्रेणीसरोवरहंसवसेसचिगुणमुनीरे ॥ व० ॥ चौगतिमारगबंधनविकनिजघररत्यारे ।। न० ॥ चेतनसमतासंगरंगनुमत्यारे॥रं ॥३॥ अर्थ ॥ जेप्रसस्त सुनले स्याते पद्मसुक्ललेस्यानापरिणाम एहवीले स्यासुननी नज्वलताते बगलानीपंक्तिजाणवी. वर्षादमांसपंखीसरोवरेवसे तेमजिननक्तिनाटोगे हंसपदीजे हवा मुनीराजते ध्यानारुढथ नपसमतथापकरूपश्रेणीएं जश्वसे. वर्षादयोचारदिशिनामार्गबंधथाय इहांजिननक्तिनायोगे चारगतीनो मार्गबंधथायएटलसाचामनथीजेषनुसेवनकरतेचारगतीनाचमणनेटाले .. वर्षाकालेसर्वलोकपोतानघेरेरहे इहांपणअनादिनोन छत परनावा भिलाषीआत्माते अनेकविषटाविकाररूप नावमारतोहतोते श्रीनिःक मदेवनेनिमित्त स्वरूपनीप्राप्तिथयचेतनसमतानसंग रंगके रीळकरीने उमलोथको समतामांरमीरहे स्वात्मखनावमारंगेरमीरहे ॥ ति ॥३॥ For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवमीजिनस्तवन सम्यष्टिमोरतिहांहरषेघऍरे ॥ ति० ॥ देखीअदनुतरूपपरमजिनवरतण्रे ॥ १० ॥ अनुगुणनोनपदेसतेजलधारावहीरे ॥ ते ॥ धरमरुचिचितनमीमांनिश्चलरहीरे। मां ॥४॥ अर्थ ॥ जिननक्तिरूपमेहदेखीने सम्यक्षष्टी तत्वरुचीरूपमोर तेह ने अत्यंत हरषानंदन पजे श्रीतीर्थकरदेवनो रूपकेहवो जे अत्यंत परमोत्कृष्टरूप सर्वदेवतामलीनेवकुर्वे तोपणश्रीअरिहंतना पगनाअंगुता समान रूपकरीसकेनही एहवोपरमसीतल निरधिकारी परमेश्वरनो रूप देखाने सम्यष्टीवंतजीव वर्षाकालनामोरनीपरे हरषाआनंदपामे. अनुश्री तीर्थकरदेवतेनीनक्तिमांपरिणम्या तत्वरुचीजीव तेपोताना वचनेउञ्चारकरीने अनुनागुणयामकरेतेअनुगुणरूपजलधारा तेधर्मरुची जीवना चितरूपभूमीकामांहेनीश्चल रहे एटलेतत्वरुचीवंतजीवना चित मां अनुनागुणसमाहारहे इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ चातकश्रमणसमूहकरेतवपारणोरे ।। क० ॥ अनुनवरसंआस्वादसकलदुखवारणोरे ।। स० ॥ असुनाचारनिवारणत्रणअंकूरतारे॥व०॥ विरतीतणापरिणामतेबीजनीपरतारे॥ ते ॥५॥ अर्थ ॥ अनुसेवनरूप जलधरावरसतां श्रमणनिग्रंथतत्वरमण) मा हामुनी तदरूपजेचातक तेपारणोकरे एटलेसम्यकदर्शनकाले तत्व खरूपेपोताना अनुनवनीपापासाथीहती तपीपासाश्रीजिननक्तिकारण पामीने आत्मस्वरूपनोटयथार्थज्ञान तेरूपअनुभव तेहनारसनो आस्वा दन के भोगववापणो तेरूपपारणोकरे पणएपारणोकहेवोबेजे सकल सं सारीकविनाव अने कर्मनारकग्रता गुणावर्णतादिकनो वारणे के वारणहार एटले तदूपःखनोनिवारणकरे. ૨૧ For Personal & Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ दे चोबा. हवे वर्षाकाले नोलाणकगे. तेमजिननक्तिरूपमेहमांहेपण असुन आचारनो निवारणथयो एणनानीला अंकूरपगट्या. वर्षाकालेकर्षणीलोकधरती मांबीजवावे तेमश्हांपाश्रवथी विरम वारूप विरतिनापरिणामनपना तेहिजबीजनीपूर्णाताथय) इति ॥ ५ ॥ पंचमहाव्रतध्यानतणाकरसगवध्यारे॥ त॥ साध्य नावनिजथापीसाधनतायेंसध्यारे॥सा०॥ दायकदरसणग्यांनचरणगणनपनारे ॥ च० ॥ आदिकबहुगुणसस्यातमघरनीपनारे॥सा॥६॥ अर्थ ॥ वर्षाकाल मांजे बीजवाव्याहोयेते कगीनेवधे हांजवतथा भावथी पांचमाहाव्रत सबा पाणावायान विरमण इत्यादिकधानकगी ने उत्सर्गावलंबी माहाव्रतते निरतीचारथाय तेहिजध्याननाकर्षण र धिपाम्या पणसाध्य नावके० साध्यपणो निजके० पोतानो आत्मनाव ते साध्यपणेथापीने साधनकार्य नीपजाववानीशक्ति तेपणेसध्या एटले साधनरूपथया नावार्थजे आत्मानीसत्तासंपूर्ण प्रागनावकरवा एहवा साध्यधारीने माहाव्रतपरणतिरूप साधनाटपरणम्या दायकनिरावर ण संपूर्ण केवलज्ञान केवल दर्शन यथाख्यातचारित्रप्रमुख गुणकपना प्रगटथया इत्यादिकखगुणनी अनंततातेहिज . सस्य के ध्यान तेजे आत्माजिनसेवनमटीथयोहतो तेहनाघरेनीपना आत्मप्रदेससर्वग्यान दर्शन चारित्रनीपूर्णतापाम्या इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ अनुदरसणमहामेहतणेपरवेसमेरे॥ त । परमानंदसुनदघयामुळदेसमेरे ॥ थ० ॥ . देवचंजिनचंतणोअनुनवकरोरे ॥ त०॥ सादिअनंतोकालआतमसुखअनुसरोरे ॥आ॥७॥ For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथ जिनस्तवन १६३ अर्थ ॥ एहवाएकवीसमांजिनेवश्री नमिनाथ परमदयाल गुणस मुष जगत्रजीवनानावनास्कर कर्मरोगनामाहावैद्य तेहनोजेदर्शनके. मुखानोजोवो अथवासासन अथवादर्शनशब्देसमकित तेहिजमाहाव र्षाद तेहनेप्रवेसेके० पेसवेकरीने परमानंदयात्मिकथानंदरूप सुनद के सुगालथयो माहारादेशके असंख्यातपदेसरूपदेवनेविषे तेमाटे देवमांहेचंषमासमान अथवादेवचंबजे स्तुतिकर्ता तेहनोसंबोधन हेदेव चंधश्रीजिनचंद श्रीवीतरागसर्वज्ञ सर्वदर्शी तेहनाअनुनव गुणज्ञानादि नोआस्वादनकरो तेहनाजगुणबहुमानमांहे लीनरहोतो थोमाकालमां हे सादिके जेहनीयादिले परंतु अनंतके ० बेमोनथी अविनासी ए हवोजेात्मिकसुख तेहनेअनुसरोके. पामो एटले अहोनव्यजीवोतुमे श्रीनिर्मलानंदी संपूर्णवरूपनोगी तेहनीयाज्ञानोमानवो तेमध्येरहो तो संपूर्णसिपथविनासी अदयात्मिक अनंतसंपदापामो वसंपदापगट . करवानो एपुष्टन पाटाने ॥ ७ ॥ इतिश्रीनमिनाथ जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ॥अथश्रीनेमिनाथजिनस्तवनलिख्यते॥ श्रीपयनजिनअलगावस्याएदेशी नेमिजिनेसरनिजकारजकरयोगमयोस विनावोजी॥ आतमसक्तीसकलप्रग टीकरी॥ आस्वायोनिजनावोजी॥ ने ॥१॥ अर्थ ॥ जादवकुलमा तिलकसमान माहानपगारी एहवा श्रीने मिनाथ जिनेश्वरे निजके पोतानोकार्यकरयो आत्मानेखरमायवाद, धोनही गेमयोंके तज्यो सर्वके० सकलचारनिदेपे विनावते अंत रंग तथाबाह्य कारणथी सर्व विनावतज्यो आत्मानीशक्ति असंख्यात प्रदेसनेविषे अनंतझान दर्शन चारित्र सुख अगुरुलघु दान लान For Personal & Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ दे चोम्बा भोग वीर्य अवर्ण अगंध अरस अस्पर्स परमा संगता अयोगीतारूप पोतानीअनुत्व विनुत्व कार्यत्व व्यापकत्व नित्यत्व अनित्यत्व अस्ति त्व नास्तित्व नेदत्व अनेदत्व कारकत्व परणामीकत्व प्रमेटाव व्यत्व ईश्वरत्व सिचव अखंमत्व अलिप्तत्वादि तेउत्सर्गआत्मसमाधीरूप स र्वशक्तिप्रगटकरी वलितेनिरावर्ण आत्मधर्म तेहनेआस्वाद्यो वरूपभोक्त त्वपणे निजनावके पातानानावपणे भोगव्यो इतिप्रथमगाथार्थ॥१॥ राजलनारीरेसारिमतिधरी॥ अवलंब्या अरिहंतोजी ।। नत्तमसंगेरेनत्तमतावधे॥ सधेआनंदअनंतोजी॥ ने ॥२॥ अर्थ॥वलिराजेमतिस्त्रियपण रुमीमतिअंगीकारकरी सर्वपरिग्रहना संगनोत्यागकरीने श्रीअरिहंतदेवकपर अरिहंतनोरागधरी उपगारीपणे अविलंब्या एटलेनतारपणानो असुघरागटाली देवतत्वनेरागेधाद रया एमविचारपुंजे उत्तमनेसंगे उत्तमतावधे वलिसधे के नीपजे श्रा नंदाआत्यंतिक एकांतिक निरमंद निरामयसुखथाटा तेमाटतेहिज कर बुंघटे इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ धर्मअधर्मआकाशअचेतना ॥तेविजा तिअग्राह्योजी॥ पुजलग्रहवेरेकर्मकलंक ता॥ वाधेबाधकबायोजी॥ ने ॥३॥ अर्थ ॥ हवेराजेमतियेजेविचारयुतेक सर्वलोकमांपंचास्तिका यो अने काल तेबतिरूपव्यनथी श्रीनाष्यकार तथा अनुटोगधार सुत्रजोतां उपचारपव्य वलिपंचास्तिकायमां धर्मास्तिकाय अधर्मा स्तिकामा अनेआकासास्तिकाटा एत्रणव्य अचेतन तथाविजा तिले वलि जीवषव्यनीएजातीनही अग्रासने तेजीवाग्रहवायनही अ For Personal & Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथ जिनस्तवन १६५ परिणामीपणा तथा अचलपणामाठे एहथीपमाहरे कांमनही त था पुल व्यसाथे चिरंकाल नोपरिचटले तेहने जोग्रही येतो पुजलज मव्यनेग्रहवे आत्मानेनवाकर्मबंधाय ने आत्माकलंक सही तथा य अने बाधकभावता पर कर्तृत्वता खगुएरोधकता चेतनादिगुएनी विप्रयासताना पामे तेमाटेपुजल नेलेता अनंतोकालथमोपण छा त्महतथयोनही तेथी एंपुंजलनासंगथी बाह्मनीमधे माटे उत्तमजीव एहनेग्रहेन ही एमराजुले विचारयुं जे एनेग्रहवोन ही एनाग्राह | कतोच्अनंता जीव निगोदमध्येपमयाबे || इतितृतीयगाथार्थ ॥ ३ ॥ रागीसंगेरेरागदशावधे ॥ थाएतिसं सारोजी ॥ निरागी थी रेरागनोजोवो ॥ लदिएनवनोपारोजी ॥ ने० ॥ ४ ॥ अर्थ || हवेपाचमोजीवव्यते अनेक च्यात्माबे वलिखजातिपल नेहा रागकरी परंतु एकाव गुणएहम पलदीवो जे संसारीजीव तो रागदेषसंयुक्तबे तेहनोसंगकीघेतो छापने परागदसावधे अनेरा गदसातो अभिनवबंधनोहेतुबे अरिहंत देवनाच्यागमजोतां अनेष्यात्म धर्मजोतां रागतोतजवायोग्यबे रागथीचारगतिरूपसंसारवधे माटे एप यात्महितनही तेमाटे निरागी वीतरागपरमचारित्र सर्वपरभावत्यागी थी जोरागजोमीयें तो नवनोपारपामीये यद्यपीक्ष्यतोरागनोज करवोबे पण प्रथमरागपलटाववानो एउपायले जेनिरागीथीरागजोमीटों एट ले ते निरागीरागकरेनही तेथीच्अनुक्रमे एच्या पोरागपक्षपामे तेवा रे ए च्यात्मावीतराग नावनजे ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ अप्रसस्ततारेटाली प्रसस्तता ॥ करताच्या श्रवनासेजी ॥ संवरवाधेरेसाधे निर्जरा || तमनावप्रकासेजी ॥ ने० ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा अर्थ ॥ तेमाटेकामरूपजे अप्रसस्तरागहतोतेटाला अरिहंतपणा रूप प्रसस्तरागकरवो गुणीउपररागतेप्रसस्त ते साधनकालेकामनो के तेप्रसस्तरागकरतां अनुक्रमेाश्रवनासपामे नवाकर्मलेवारूप असु परपरणतिटले वलिप्रसस्तरागीजीवते गुणीनेअवलंब्योरहे तेहथीख गुणनीएकत्वतावधे ते परणामथीसंवरपरिणतिवधे धने पूर्वकतकर्मनीनि जरापरीसाटरूपते पणसधेके० नापजे तेसंवरनिर्जराने गटवे आत्मा नोभावधर्म अरूपीसक्तिप्रकासपामे निरावरणथाय ॥ इति एगाथार्थ। नेमिपन्ध्यानेरेएकत्वता ॥ निजतत्वए कतानोजी॥ सुकलव्यानेरेसाध्यसुसि चिता ॥ लहियेमुक्तिनिदानोजी ॥ ने०॥६॥ अर्थ राजमतीजीएमविचारीने श्रीनेमिपरमेश्वरने जेअवलंब्या तथा तेमनाजध्याने एकत्वता तन्मटाकरीने निजके पोतानातत्वे आत्मवरूपे एकतांनके एकत्वपणोनीपजे तेजेवारे वरूपेएकत्वप जोपामे तेवारेसुक्लध्यानपगटे ते ध्यानेकरीपोतानी साध्यतासाधीके. नीपजावीने तेहथीमुक्तिजे सकलकर्मरहीततापणो तेहनोंनिदान के. मूल कारणपामीये इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ अगमअरूपीरेअलखअगोचरु ॥ परमा तमपरमीसोजी॥ देवचंजिनवरनीसेव.. ना ॥ करतांवाधेजगीसोजी॥ ने ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ तेमाटेसर्वनव्य आत्मार्थी अध्यात्मसुखरुची एरोतत्वसे वैतेकहे अगम के. जेहनोगम्यनही अथवाजेमांहे अजाणजीव थीप्रवेसथायनही वलिजेहनोरूप वर्ण गंध रस संस्थान नही तेमाटे अरूपी तथाअलख के पुजलाभिलाषी एकांतवादी नैयाटाक वे For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्थ जिनस्तवन १६७ दांतीक सांख्य मीमांसक वैसेषीक बौध नास्तिक तथाजेएकांतव्य दयादिक पदयाही एवाजैन इत्यादिकालखाटोनही एटलेल खाय नही वलिअगोचर के ० इंस्टिागोचरनही अतिषिटपदार्थते अतिति यस्याहादझाने सापेदनपयोगे ध्याननीधारणायेंज गोचर वलिपर मोत्कृष्टसर्वविनावरहीत अनंत गुणपागनावरूपात्माले वलिपरमश्स के ० उत्कृष्टय विनासी सहेजअनंतगुणपर्यायधर्मनाइश्वरले वलिनरदे वतेचक्रवर्ति नावदेवतेनुवनपति व्यंतर जोतष। वैमानीक एचारनिका यनादेवता वलिधर्मदेवतेमुनीराज जिनकल्पी थीवरकल्पी पनिहार विसुधि पमीमां पमीवन सुहमसंपरायी उपसांतमोह दाणमोही उपा ध्याय श्रुतधर पूर्वधर आचार्यगणधरप्रमुखते धर्मदेव तेसर्वमध्येचं मासमांन नायक सासननापती मार्गदेसक एहवाजेजिनवर तेहनी से वना आज्ञामानवारूप करतांथकां वाधे के ० दृधिपामे साधकसंपदा तथासिघतारूपसंपदा तेहथीनीतीर्थकर तीर्थपतीनीसेवनाते परमप्रधान बे व्यथावंदननमनादिक अनेनावथा गुणनोबहुमान आत्मप्रमाणता रूप सेवाकरतांअनंतासिघथवा वलिअनंतासिपथसे एहिजमोद सुख नोन पायजे ॥ ७ ॥ इतिनेमिनाथ जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ॥अथश्रीपार्श्वनाथ जिनस्तवनलिख्यते॥ __ कमषानीदेसी. सहेजगुणागरोस्वामीसुखसागरो ॥झान वैरागरेपनुसवायो॥ सुधताएकता तीक्ष्णता नावथी।मोहरीपुजीतिजयपमहवायो॥म ॥१॥ अर्थ ॥ हवेत्रेवीसमां श्रीपार्श्वनाथ पुरषादानी परमेश्वरनी स्तुति करे कहेवाजे सहेजअकतिम वस्तुनामूलधर्म ग्यानानंदादिक तेह For Personal & Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ दे०चो०वा० नाच्यागरबे अनंतयात्मगुण उपजवानाधामले खसंपदानाच्छाधिपती बे सुखनासागरबे जे अतिंद्रिय स्वाधीन निरामय निःप्रयास विनासी सुखना समुबे निःसंगसुखनापात्रले केवलज्ञानरूप वयरके० वज्यते हीरो तेहनगर सदासर्वदा प्रभुतुमेसवाट्याबो एश्री पार्श्वनाथस्वा मीनीसुता ज्ञाननीयथार्थता विकलता वीर्यनीतीव्रता वीर्यनीतिक्षण तातेधाराबे च्ाने चारित्रनीएकताते पुवलथीप्रेरणाबे तथा ज्ञानतेप्रका स देखामल्हारबे तेमाटे एमले जमोडे को कहेसे सम्यक्दर्शनकां नको तेहने उत्तरजे ज्ञान दर्शनयुक्त नेजकहेबे ज्ञानमध्ये दर्शन नोए कपलो तथा तपतेवीर्यनीतिलताकहीले उक्तं चच्छावस्यकनीर्युक्तौ नाएपयास गंसोहगो उतवोसंयमोन गुत्तिकरो तिएहासमाऊगो मोरुखो जिनसासनी ॥ १ ॥ एटले सुछता एकता तिक्षणताथी मोहरि पुनेने एटले ज्ञानचारित्रतथातप नाबले मोहादिककर्महलीने ज टानोपमहोबजाव्यो इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १ ॥ वस्तुनिजनावत्र्य विनासनीकलंकता ॥ परपती' वृत्तिताकरीने दें ॥ नावतादात्मतासक्तिनुल्लास थी | संतती योग वेदे ॥ स० ॥ २ ॥ अर्थ ॥ हवे सुछतादिकनोख रूपक हेबे वस्तुजे जीवादिकव्यते हनाजेनिज के० पोतानानावते गुणपर्यायरूप उत्पादव्यय परिणति नो अविनासके० जावो तेपए निकलंक एटले एकांतताच्य यथार्थता उनता अधिकतारहीत सम्यक्ज्ञानते सुधताकहीजे तथा परिए तिजे जीवनो६मूल परिणामते खरूपनेविषे एकत्वपलो परनावमापे से नही एयात्मानीपरिति अने संसारीजीवने विभावरंगीने ते मूलपरिणतितो चारित्रमोहे वृत्त तेथीयत्तिजे प्रवृत्तितेरागी घेषी पुफलभोगी पो For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ भोपार्थजिनस्तवन पत्तिरही तेतजीने सुचवलपरमणीकरी तेषरत्ति तथापरिणतिबेहुनो एकजपवर्त्तनथटये जेपरिणतितेहिजपत्तिरही पणनपाधीकपरत्तिनो अंसपणरझोनथी तेमाटे परिणतितथाप्रवृत्तिबेहुएकपणे अनेदेकरीते ए कताकहाये वलिभाबतदात्मतासक्तिके. जेविनावते तम्मन्यताके. तउत्पतिसंबंधेजे ज्ञानावर्णादिपुजल कर्मते संयोगसंबंधे अने सुरक्षाय कवीर्यादिक खगुणते तदात्मसंबंधेजे तेतदात्मसंबंधनी जे यात्मिकस क्ति काटाकवीर्यना बासथी तेयात्माबलेसंततियोगमां संततिके परंपरानुजेसंयोगकर्मसंबंध तेहनेकदे एटले ज्ञानावर्णादिकर्मनी पक ति स्थिति रस प्रदेस नुबंध तेहनी स्थिति प्रमाणेरहवो एटले जे कर्मनेआत्मप्रदेससाथेसंबंधते असंख्यातो कालनकृष्टो सिंतेरकोमा कोमीसागरोपमनो परंतु एकबंधनोगवतां बीजास्थितिबंधपतिसमय बंधाय वलि तेनोगवतांबीजापतिसमटाअनेकबंधाटाबे एटले कर्मपु जलतेएकसमयबंध तेहनोसंयोगतो सादिसांत परंतु अभिनवबंधनीपरं परांटो अनादि जेमपीताथीपुत्र पुत्रीवलिपुत्र एटले तेमनुष्यना आ युषपरमाणेवरते परंतु संताननी परंपराअनंतिचाजे तेमतेहनातेहिजक मतो स्थितिपरमाणेरहे परंतुपर्वकर्मनेनोगववे नवानोबंधथाय तेहनेनो गबवे वलि बीजानवानोबंध एमसंताननीपरंपराए अनादिनो तेसंतति योग आत्मविरहरूप तिहणताबले हेपरमेश्वरतुं न देके० सर्वथान दकरे एटले ज्ञान दर्शन चारित्र वीसनाबले अनादिकर्मसंबंधनेतुमे वि नासकरथु एसक्तिप्रनुजीतुमारामाज बीजामांनही एकार्यतमेकरयो निरावरणथया ॥ इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ दोषगणवस्तुनीलषीययथार्थता ॥ लहीनदा सीनताअपरनावे ॥ध्वंसतज्जन्यतानावकर्ता पण ॥ परमप्रनतंरम्योनिजस्वनावे ॥स० ॥३॥ ૨૨ For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० दे० चोम्बा. . अर्थ ॥ हवे । एसुचता २ एकता ३ तिहणतानो अर्थातरकहे बे वस्तुजे वस्त्र धन वनिता सीताताप विषादिनादोष असुनवर्णदि क तथा सुनवर्णादिकगुण तेहनेलेखेके जाणे यथार्थपणे एटले असु भदोषसहितवस्तुने असुनदोषीजाणे सुनगुणवंतवस्तुने सुनजाणे जम वस्तुने जमपणेजाणे चेतनवस्तुने चेतनपणेजाणे तेयथार्थस्याघादपणे जाणेएसुचता अनेतेवस्तुने इष्टता अनीष्टता रहितपणेजाणे तेउदासीनता कहियो एहवोउदासीनतापणोजे पाम्यो तेथीएकपोतानोमात्मा असंख्या तपदेसी तेहने विषे व्यापव्यापकनावेरवाजे गुणपर्याय तेहथी अपरके. अन्यभावनेविषे एटलेबीजा अन्यके. जुदाजेअनंताजीव तथाअनं ता पुजलादिक अजीवपदार्थ तेसर्वथान दासपणे सर्वना अग्राहक अ भोगी असंगीथया एसर्वचारित्रपरिणतिते एकताकहिटोअने इंसीके. नदीने तज्जन्यतानावेके तत्पत्तिनावेजे विनावकर्त्तापणो तेहनदीने बेदके सक्तितेतिक्षणताएं कार्यकरवे हेअनुजीतूं निजके पोताने खनावरम्यो आत्मस्वनावरमणीथयो इतितृतीयगाथार्थ ॥३॥ सुनअसुननावअविनासतहकीकता ॥ सुना सुननावतिहांप्रनुनकीधुसुधपरिणामतावीर्य कर्ताय ॥ परमअक्रियताअमृतपीछु ।स।।४॥ अर्थ ॥ वजिएहिजत्रिभंगीनो अर्थातरकहे मुनके प्रसस्त अ सुनके अप्रसस्तनाव तहनोजे अविनासकेनलखाण तहकिक ताके तेहनेनिरधारे तेसुझतापणे सर्वतमेजाएया परंतु हेपरमेश्वर तुमे तिहां रागीषीपणे सुनअसुनपणोकरयोनही एहिजएकता चारित्रध मनी अरागी अध्वेषी परिणतितेएकता सुघनिरावरणपरिणामता तेप रिणामीकनावेजे वीर्यगुण तेहनाक थटीने एटले रागध्वषनेअनु For Personal & Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वनाथ जिनस्तवन जायीपणे वीर्यनोविकार तेरागध्वेषरहितपणेथये वीर्यसुच्चाटा तेवारे खवार्यबले परिणामिक थयाने एटले स्वपरिणामिकतानाकर्ताथटीने परमनत्कृष्टअक्रिटापणारूप अमृतनोपानकरयो एटले विनावकर्ता तथा साधकरूपकर्ततातजीने अकंप अचल वोपणे हेपरमेश्वरतुमे चक्रिटथया इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ सुचताअनुतणीआत्मनावरमे॥ परमपरमात्म तासच्याए ॥मिश्रनावअत्रिगुणनीनिन्न ता॥ त्रिगुणएकत्वतुजचरणआए ॥ स० ॥५॥ ___ अर्थ ॥ एहवीसुछता निरावरणता अनंतगुणभोगीपणो एहवीप्रनु ता तेआत्मनावे पोतानेयात्मपणेरमे एटलेषनुनीप्रभुतानो रंगीजेजीव तेहने परमनत्कृष्ट परमात्मापणोथाय मिश्रभावजेदयोपसमभावे त्रिगु जेसम्यकदर्शन झान चारित्र तेहनी भिन्नताके नेदरत्नत्रयो साधक जे परंतु सविकल्प तेत्रिगुणजेरत्नत्रयी तेहनोंजे एकसके . एकपको अनेदपोतेथाय तुजके ० ताहरेचरण यथाख्यात दायकचारित्रा वेषगटे एटले क्षिणमोहगुगणे एकत्व वितर्क अपवीचार सुक्लध्यान उपने जेदर्शन निरधाररूप चारित्रथिरतारूप तेबेधारा ज्ञानधाराथील नेदथयी एटलेषथम मिथ्यात्वकालेतो ज्ञान विषयासरूपेहतो तेसम्यक् दर्शनप्रगटे यथार्थज्ञानथयो तेज्ञानवरूप रमणीथयो थारनावनजे ए मध्यानारूढथयो विकल्पतजतो पोतानीआत्मानेतत्व परिणतिमध्ये त न्मयतापमामतो पडे छाननोजरमण झाननोजनिरधार एटले पर्यायाने देते मूल गुणेएकत्वपामे एअनेदरत्नत्रयीनोखरूप ध्यानीगम्य परंतु मू लनट आत्माज्ञानदर्शनबेगुणेसहित एहवीआम्नाटा सेषनिरधारथी रताएं सर्वचेतनागुणनीति तेमाटेएज्ञानमांहेज थिरत्वपरिणति तय For Personal & Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा भेदताकहेवी प्रथमश्योपसमी चलवीर्यताएं चतनापर्यायनी प्रवर्ति अ संख्यसमटीहती तेनासनप्रवर्ति परिक्रमकारणकार्यमांथीरतापरिणतिएं हती तेक्षिणमोहकाले रोधकनेदये समकाल असंख्यसमटी प्रवर्ति थमा तेकेवलज्ञानथयो मिरावरणतामें एकसमयेथयो एरीतेशनेदता रत्नत्रयीथाय एश्रीनाष्यथीसमजवी ॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ नपसमरसनरीसर्वजनसंकरी॥ मूर्तिजिनराज नीआजनेटी॥ कारणेकार्यनिष्पत्तिश्रधान॥ तेणेनवश्रमणनीनीममेटी॥ स०॥६॥ अर्थ॥ उपसमरसजे कपाटानोअनाव तेहथीनरीथने सर्वलोकने संकरीके कल्याणनीकरनारी एहवीप्रनुनी थापना के मूर्ति तेहनी सांत अचल अस्पृहमुषा तेाजनेटी के नमस्काररूपेसेवी हवेका रणेकार्यनीपजे एहवीप्रधापतित तेमोदनोनिमितकारण श्रीजिनमु कानोटोगथयो अनेउपादानकारण आत्मोपयोगप्रमुख अध्यवसाय जिनगुणभासन रागहर्षेपरिणम्या एहवाकारणनेमलवे जाणुबुंजेकार णतातेकार्यनोहेतु माटेकारणमलेकार्यनी निष्पत्तिथसे एहवोआगमी कभव्यताद्योग उपयोगथयो तेहथीजाण्युंजेएपरमपुरुर्षोतमदेव श्रीवा तरागनी इष्टतातोउपनी तोकोऽदीवसे एखात्मागुणीथनार एअनुमा नेजाण्योजेकारणमल्यो तोकार्यनीपजसे अनेभवत्रमणपणटल से एह रषनोवचन नवचमणनीनीममटी एकारणेकार्योपचारी वचन एना बनाकरवीजो अनुताश्टलागे तो आत्मासिघतावरसे इतिषष्ठ गाथार्थ६ नयरखं नायतेपार्श्वपनदरशने ॥ विकसतेहर्ष ऊगहवाध्यो॥ हेतुएकत्वतारमणपरणामथी। सिमसाधकपणोआजसाध्यो ॥ स०॥ ७॥ For Personal & Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपार्श्वनाथ जिनस्तवन १७३ अर्थ ॥ एहवामध्यवसाय श्रीखंभालततीर्थे श्रीसुखसागरपार्श्व जिननोवंदनकरतां कोश्कानुनीअनुताऊपर अपूर्वरागउपनो तेहरषेए वचननायो एखंनायतनगरनेविकसीतहरणे एटलेहरचनेविकसरथ वे बाहवाध्यो हेतुजेकारणश्रीअरिहंतदेव तेहथी एकत्वपणे अत्यंत रागेरम्यो जेपरिणाम एटलेअनुथायतिरागीपरिणामथवाथी सिघजेमो दतेहनोसाधकपणे एआत्मामाहे एहबोअनुमानसध्यो एटलेअनुरागे अनुष्ठानरहित आसंसारहितपरिणम्यो तोजोएजीवमोदनीपजावधानी योग्यतावतो तोएहवोअनुमानकाधोजे आज के जेदिवसेषनुनेने ट्यो तेहथीमाहरोसिधिसाधकपणोसध्यो इतिसप्तमगाथार्थ ॥ ७ ॥ आजकृतपुन्यधन्यदीहमाहरोथयो॥आजनर जन्ममसफल नाव्यो। देवचंऽस्वामित्रेवीसमो वंदीये ॥ नक्तिनरचित्ततुझगुणरमाव्यो स० ॥७॥ थर्थ ॥ बाजजेवेलाटो अनुष्टानादिकदोषरहित आत्माषनुनक्तेप रिणम्योते दिवसकत्यपुण्यके. पुण्योदयथयो पुदिनधन्यथटो जिन भक्तिरत्त अध्यवसायथवे एनरजन्मसफलपणेविचारयोजे माहरोएज न्मसफल जेमेनिरागी निस्पृहि परमगुणी सर्वदर्शीदेव श्रीपार्श्वनाथ खामीनेनेट्योबांद्यो स्तव्यो अनेतेहनीभक्तिभरनेविषे चितके० मनर मात्यो पुजलरमणतातजी श्रीअरिहंतगुणनीरमणाताएं मनरमाव्यो ते हिजदिनक्रतार्थ कृत्यपुण्य सफल मानवो लेखानोजाणवो सर्वदेवमांहें चंधमासमान अथवास्तुतिकर्ताजे देवचं तेएहवोलानपाम्यो ॥ ७॥ इतिश्रीपार्श्वजिनस्तनंबसंपूर्ण ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥ For Personal & Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ दे०चोम्बा ॥अथश्रीमाहावीरजिनस्तवनलिख्यते॥ ढाल कमखानीदेशीएचालेजे ॥ तारदोषनुतारमुझसेवकनणी॥जगतमाएटलु सुजसलीजे ॥ दासअवगुण नस्योजागीपोता तणो ॥ दयानिधिदीनपरदयाकीजे॥ता ॥१॥ अर्थ ॥ कोश्कअवसरे श्रीजिनागमना अभ्यासेकरीने संसारचम ण ज्ञानावर्णादि आवरणे आरत पोतानीअनंतआत्मसक्ति जाणीते अ नादिपरभावानुषंगतादोषने उखे नविनयात्माते पोतानीसाधकतास क्ति अणदेखतो परमनिर्यामकसमान चोवीसमांश्रीवीरनाथना चरण सरण निरधारीने श्रीवीरपनुने आगल प्रार्थनासहित वीनतिकरेजे जे हेनाथ हेदीनदयाल हेअनुजी मुजसरिखो तत्वसाधन तथा आगना निरवाहमांअसमर्थ मात्रनामथीसेवकजाणी तारतार एगुणरोधकरूप उखथी निस्तार तुजसरीखापनुविना बीजाकोनेकहुं जगत्रमा एटलो नलोसुजसलीजे टाद्यपीअनुतो जसनाकामीनथी परंतुउपचारे नक्तिा तुरताएंकहे जे मुजसरीखोदासतेटाद्यपि रागध्वेस असंयम अनुष्ठानासं सादिदोष एकतादोष अनादरादिदोषरूप अवगुणेकरीनस्योबे तोपण ताहरोकहेवाय तेमाटे हेदयानिधि नावकरुणानानिधान दीनजेहुंरंक असरण उषीत तत्वसुन्य ज्ञानादिसंपदारहित नावदाल मार्गनोविरा धक असयंमसचारी माहाविकारी तमारीआझाथी विमुख अनादिनोक छत एहवा मुजऊपरदटाकरीजे ताहरीकपातेहिज त्राणसरणथसे व्य द्यपि अरिहंततोक्रपावंतजले तोकपासीकरवाजे पण अर्थीविचारेनही माटेअर्थीनोएवचन जे दयावंतनेजएमकहेवाय जेहेदेवतुमेदयाना भंमारगे तुमनेज अवलंबेतरीस एसत्य ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १॥ For Personal & Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमाहावीरजिनस्तवन १७५ रागषेनरयोमोहवैरीनन्यो। लोकनीरीतमा घांएरातो॥ क्रोधवसधमधम्योसुगुणनवी रम्यो॥ नम्योनवमाहेंदंविषयमातो॥ ता० ॥२॥ 'अर्थ ॥ दासकहेवो रागध्वेसे नरयो जगतमांपमयो गुणीचार्षा करे मोहजे मुजितपणोते तत्वनीअजाणता विपर्यासता हेतुये मो हवेरीनमयो तेथी दबाणो तथा लोकनीजरीत के चाल तेमाघ णोज मातोडे लोकनीचालमांहेमग्न लोकरंजननो अर्थी क्रोधजे ताताचंमपरिणाम तेहनेविषे धमधमीरह्यो जेमधमणधमतां अमितपे तेमतपीरह्यो सुझगुणजे सम्यक्दर्शन सम्यक्झान सुपचारित्र क्षमा माईव आर्यवादि आत्मगुणनेविषेरम्योनही तन्मयीनथयो तेरूपनग्र यो वलिनम्यो चतुरगतिरूपनवचक्रमांहे अव्य देत्र काल नाव रूप संसारने विषे हुविषयाजे पाचेंचिनावाद तेमाहेमातोके. मग्नथयो वि षयग्रस्तथयोथको एमसंसारचक्रानुभव्यो तेहवे मुजने तारतारहेनाथ दीनबंधु निःकारण दयाल मुजने नवउःखथी उगार इतिगाथार्थ॥२॥ आदरयोआचरणलोकनपचारथी ।। सावअभ्या सपणकोश्कीधो ॥ शुद्धश्रदाननिजामअवलंब वितुं ॥ तेहवोकार्यतेणेकोनसिधो॥ ता० ॥ ३ ॥ अर्थ॥कदाचकोश्केसे जेआवस्यककरणादिक आचरणआदरयो अंगीकारकस्यो परलोकनाजपचारथी एटले विषतथागरल तथा अ न्योन्यानुष्ठानथानावनाधर्मविनाउपचारेतथाकोश्हकेसे कचगोत्रयस्या दिककर्मनाविपाके ज्ञानावरणी दटोपसमटोगे सास्त्रनोअन्यासपणकी धो नण्यासास्त्रनायथार्थ अर्थ पणजाएया तथाअध्यात्मभावनाएं स्पर्स झानानुनयविनाश्रुतान्यासकाधो पणसुक्ष्यथार्थस्याछादोपेतबिना जे For Personal & Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते भावधर्मनीरुचेजेषरतन दानदयादिककरीको कारणसमजवा परंतुमलधर्मनही धर्मतेवस्तुनीसत्ता यात्मानेविषे स्वरूपपसोपरिणामीक ताएरझो तेमांहे जेप्रगटयोतेधर्म एहवोसुषप्रधान सुधप्रतित तथा वलियात्मानाखरूप प्रगटकरवारूपरुची तथा आत्मखगुणनेवालंब नविना तेणेपाचरणे तथाश्रुतान्यासे तेहवोकार्य जेकार्यथाबत्मानो साफ्नधाय तेकोश्नीपनोनही आत्मगुण कोगटेतेथयोनही तेमाटे यहोपरमेश्वर ताहरीजकपापारकतारे निस्तारे इतिगाथार्थ ॥ ३ ॥ स्वामोदरशणसमोनिमित्तलहीनिरमलो ॥जोऊ पादानएसुचिनथासे ॥ दोषकोवस्तुनोअहवी नयमतणीस्वामीसेवाथकीनिकटलासेता अर्थ ॥ स्वामीश्रीवीतरागजे परकार्यनाअकर्ता परभावशनोक्ता श्वा लाला चपलतारहित जेश्चातेतो मतावंतने अनेजेपरमेश्वर तेतोपूर्णसुखीने तेमाटेरंबारहित वलिलीलापण सुखनी लाल चवालाने होये भने जाजचीपणोते सुखनीन बतायेथायजे तेमाटे लालचीपणो नथी एहवा खामीनादर्शनसमान निर्मल निमित्त नहीके पामीने जो एआत्मानोनपादान मूलपरिणतिते सुचीके० पवित्रनहीथासेतो जाणी येश्येजे वस्तुजेजीव तेहनोजदोषके. अवगुणने एटले रखेएजीव नोदल अयोग्यहोये एजीवनीसत्ताकेवारीतनी अथवा पोतानाज्य मनीखामीले जे आकरेपटानेन्द्यमकरी आत्मानेसमरवोजोश्ये ते ए जीवपोतानीनणासे आत्मानेसमरतोनथ) तेमाटे हवेसंकरवो जेबीजो पाटाकोश्नथी तोश्रीअरिहंतनीसेवाते निकटनेके० नजीकतापमामसे केम्पमामसे एटजे एखात्माऽष्ट परंतु श्रीजिनराजनीसेवनाथी दुष्टता तजसे ॥ इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमाहावीरजिनस्तवन स्वामिगुणनलखीस्वामीनेजेनजे ॥ दर्शनसुन तातेहपामे ॥झानचारित्रतपवीर्यनल्लासथी। कर्मजीपीवसेमुक्तिधाम ॥ ता० ॥५॥ अर्थ | स्वामीजेश्रीअरिहंत तेहनागुणने लखीने जेषाणी नजे के शेवेते दर्शनके समकेतरूपगुणपामे दर्शननीनिर्मलतापामे ज्ञानयथा र्थनासन चारित्रस्वरूपरमण तपतत्वएकाग्रता वीर्यात्मसामर्थ्य तेह ना नासकेनल सवेथी कर्मज्ञानावर्णदिनेजीपीने वसेके रहे मुक्ति के मोदनिरावरण संपूर्ण सिघतारूप धामेके थानकेवसे॥इति एगाथार्थ जगतवत्सलमहावीरजिनवरसुणी॥चित्तप्रनु चरणनेसरणवास्यो ॥ तारजोबापजीबिरुद निजराखवा ॥दासनीसेवनारखेजोसो।ता०॥६॥ अर्थ ॥ जगत्रवल जगवनाधर्महितकार) एहवामाहावीरश्रीचो वीसमांजिनवर तेहनेसुण के सानलिने चितके ० मनतेषनुने चरणनेसर णे वास्योके० वसाव्यो तेमाटे हेप्रनुपरमेश्वर माहरोआत्मातो पलटी ने सर्वसाधनकरे एहवीसक्ति देखातीनथी तेमाटेनकनक्तिएंकडंबु जेहेता त हेदीनबंधु मुजदासनेतुमेतारजो तमारोतारकतानो बीरुदराखवामा टे दासजे सेवकतेहनी सेवनानक्तिसांबोजोसोमा जेए आझाप्रमाणे भक्तिकरेतोतरे एवाततोखामी माहारामाथवीडालन पण तमारेसंयो गेतरीये एहिजनिटामाआधार ॥ इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ विनतीमानजोसक्तीएमआपजो ॥नावस्याा दतासुधनासे । साधिसाधकदसासिबताअनु नवी ॥ देवचं विमलप्रनताप्रकासे ॥ ता०॥७॥ अर्थ || माहरीएटलीवानतिमानजो एपणनवकपणाथी भक्तिनोव चन जेसक्तिसामर्थ्यएवीआपजोतेकहे जे नावके वस्तुधर्मतेस्या २३ For Personal & Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ दे०चो०वा० 0 ० बातें नित्य एक अनेक अस्ति नास्ति भेद नेदपणे श्व्यनाच्ानं ताधर्म सुधसंकादिकषणरहितनासे के जालपणामध्ये यावे साधि के० नीपजावीने साधकदसाते नेदरत्नत्रयी सिद्धता निष्पन्नता अनुभ वे के भोगवे सर्वदेवमांहे चंद्रमासमान सिद्धभगवान तेहन) विमल के निर्मल जे प्रभुता प्रकासे के० प्रगटकरे एटले स्याधादज्ञाने सा धकताप्रगटे साधकताथी सिताप्रगटे एहिजसारप६तिबे एटलेचोवी सस्तवनथया पोतानाजालपणाप्रमाणे परमेश्वरनागुलग्रामे स्तवनाक 1 तेमजे यथार्थते प्रमाण अच्छा यथार्थनो मिछमीक्कमं गीतार्थेगु एलेवो दोषतजवो मेनकता एरचनाकरीचे मोटापूरषेक माराखीगु एलेवा इतिमाहावीर जिनस्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ हवे सामान्यकलसरूपपचीसमोस्तव नकदेबे ॥ चोवीसे जिन गुरागाईयें ॥ ध्याईयतत्व स्वरूपोज || परमानंदपदपाईयें ॥ अक्षयज्ञान अनूपोजी ॥ चो० ॥ १ ॥ अर्थ || श्रीषनदेवीमांमाने माहावीरपर्यंत अवसर्पीकाले सासननानायक गुणरत्नाकर माहामाहा माहागोप माहावैद्य हवा चोवीसतीर्थंकरथयातेहने गाइये के० गुणग्रामकरीये अनेपोतानातत्व स्वरूपने ध्यायीये तेहनेध्यावे तत्वनी एकाग्रतापामीये तेहथीपरमानंद अविनासीपदपामीजे वलिअक्षय अविनासी ९हवो कायकज्ञानते अनूप के अद्भुतपामीजे ॥ १ ॥ चवदहसेंबावननला ॥गाधरगुणनं मारोजी ॥ समा तामइसाहुसा हुए||||सावयसावयोसारोजी॥चो० २ ॥ अर्थ || चोवीसेजिनराज नागणधर (१४५२ ) नलाग लग गुणनानंमार तथा समतामयी साधुसाधवी तथाश्रावक श्राविकासार प्र धानंधर्मनाधार सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रनापात्र एचारप्रकारनो संघ तेस हितगावो ॥ २ ॥ For Personal & Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलसनुस्तवन १७ वर्धमान जिनवरतणो ॥ सासनच्अतिसुखकारोजी ॥चौ वीहसंघविराजतो ॥ दूसमकालयाधारोज चो० ॥ ३ ॥ अर्थ ॥ तथाहमणांश्रीवर्धमान महावीरखामीनो सासनच्ात्यंत सुखनो कारकबे एसासनमांहेंजे पेठाते जीव संसारनोपारपामे तथा दूसमकालपां चमाच्छारामध्ये नव्यजीवने आधारभूत चतुर्विधसंघ बिराजे बे जेवर्त्तमा नकाले नवतत्वष्टव्यनो बलखाथाये मिथ्यात्वच्छासंयमनो जेत्रा सच्यावे ते पगारश्रीवीरप्रनुनासासननोबे तेहनाच्यागम आधारबे ॥ ३ ॥ जिनसेवनथीज्ञानता || लहेहिता हितबोधोजी ॥ दितत्यागहीत च्यादरे॥संयमतपनीसोधोजी॥चो०॥४॥ च्अर्थ॥एजिनसेवनानोफल श्री विशेषावश्यक नेच्अनुसारे कही ये बेजे श्रीवीतरागना उपदेस्यासूत्रतेसांनखवाथी जाणपणोवधे तेज्ञानथी हित अहितनोबोधथाये पबच्यहितनोत्यागकरे तथा हितच्यादरेतत्वसाधन च्यादरेतेहथी संयमतपनीसोधके० सुताथाये ॥ ४॥ अभिनव कर्मग्रहणता ॥ जीरकर्म नावोजी || निकर पीने बाधता ॥ वेदनानाकुल नावोजी ॥ चो० ॥५॥ अर्थ॥ संयमतपनी शुद्दताथी नवाकर्मनीच्यग्रहणाथाये एटले नवा कर्मनबांधे तेकमजे जीर्णके० जूनाकर्मनो नावधाये एटले पूर्वबंध सत्तागतकर्मनिर्जरेमाटे नवानोबंधनही तथामूलगा सत्तागतक्ष्यजा ये तिवारेच्यात्मानिःकर्मी सर्वकर्मरहितथाये अबाधताके० बाधारहि तथाये जेबाधाते आत्मप्रदे से पुजलनासंगनीबे पुजलसंगटले बाधामि टीगइतिबारे आत्माच्या नाकुल पलोपाम्योने याकुलतापरोपाधिनीही ते गइ ते सर्व प्रभुनक्तिनो उपगार जालवो तेमाटे चावीस जिननेस्तव ९ एहिजसारखे ॥ इतिपंचम गाथार्थ ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देचोम्बा नावरोगनाविगमथी॥अचलअक्षयनिराबाधोजी॥ पूर्णानंददसालही।विलसेसीधसमाधोजी॥चो॥६॥ अर्थ। पीनावरोगजे परानुजायीपणो तेहनोविगमके०सर्वथा टलवे करीने अचल के० चपल तारहित अदयके० अवीनासीपण निरा बाधके अव्याबाधपदप्रगटे तेसर्वनोमूल कारणजिनराज श्रीवीतरागदे वनी सेवनानावरुचे व्यतथानावथी सेवनाकरवी हिजहित पूर्णनंद परमानंदअनंतगुणनो नोगरूपस्व सितादशाल ही पामीनेविल से के अ नुनवेसिघ निष्पन्नपरनिष्टतार्थआत्मीक समाधिज्ञानदर्शनसमाधि अव्या बाधानंदसमाधिनोगवेपामे एश्रीजिनेश्वरनोसेवननोफल हिजपरमनिर्वा एपदनीप्राप्ति तेणेसर्व विकल्प कल्पनानिवारीने सर्वज्ञसर्वदर्शीसुधतत्वी परमेश्वर निर्विकारी देवनोसेवनकरो हिज परमसुखनोपुष्टकारण॥६॥ श्रीजिनचंज्नीसेवना ॥प्रगटेपुन्यप्रधानोजी॥सुमती सागरअतिउनसे।साधुरंगपनुध्यानोजी ।।चो॥॥ अर्थ ॥ श्रीजिनचंचरिहंतदेवतेहनी सेवनाकरतांप्रगटे पुन्यथा नके श्रेष्टसुमति जे परमानंदसाधक मतितेउल्लासे के कल्लासपामे अने अनुनेध्याने साधुके नलोरंगथाये बीजोअर्थ श्रीजिनचंसूरी जट्टारकश्रीखरतर गबाधीवर तेहनाशिष्यश्रीपुन्यप्रधानोपाध्याट तेह ना शिष्यत्रीसुमतिसागरोपाध्याटा तेहना शिभ्यश्रीसाधुरंगवाचकएस्तु तिकर्तानी परंपरामां बहुश्रुतथयातेहनानाम कह्या इतिसप्तमगाथार्थ॥ सविहितखरतरगबवरू ॥राजसारनवकायोजी॥ज्ञान धर्मपाळकतणो॥सिष्यसुजससुखदायोज|चोगान॥ अर्थ ॥ सुविहितकहेतां पंचांगीप्रमाण रत्नत्रयीनाहेतुके. कारण एहवी जेहनीसमाचारी एहवोजेखरतरगन्छ तेमध्ये वरके० प्रधान For Personal & Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलशनोस्तवन २०१ सर्वशास्त्रनिपुण मारुस्थल विषे अनेक जिन चैत्य प्रतिष्ठाकारक आवस्य कोयार प्रमुखग्रंथोनाकर्त्ता महोपाध्याय श्रीराजसारजीथया तेहना शिष्य श्री ज्ञानधर्म उपाध्याय नैव्यायकादिग्रंथाध्यापक जिऐसाठवर्षप र्यंत जिव्हानारसतजी स्याकजातितजी नेसंवेगवृत्तिधरी तेमनाशिष्य रुमाजसनाधली सुखनादेवावाला एहवा इतिच्छष्टमगाथार्थ ॥ ८ ॥ दीपचंद्र पाठकतणो ॥ सिसस्तवेजिनराजोजी ॥ देवचंऽपदसंवतां ॥ पूर्णानंदसमाजोजी ॥चो० ॥ अर्थ | जिणेश्री शत्रुंजयतीर्थऊपर शिवासोमजी कृत्चोमुखनी नेक बिंबप्रतिष्ठाकर तथा पांचपांमवनाबिंब प्रतिष्ठाकर तथा समो सरणचैत्यतथाश्रीकुंथुनाथ चैत्यप्रतिष्ठाकरी श्रीराजनगरे सहस्त्रफला पार्श्वनुनी प्रतिष्ठाकरी एहवाउपाध्याय श्री दीपचंजी तेहना शिष्य पंमितदेवचंग लिए चोवीसप्रभुनी स्तवनानक्तिवसेकरी पोतानी भक्ति परतिमहानंदहेतुबे एहवा गुणनानाथ देवचंद्रपदसेवतां पूर्णानंद जे सिधाव्याबाध यानंदनो समाजके० समुदायतेपामे एजिननक्तितेमो कनो परमोपाय ॥९॥ एग्रंथ मोक्षसाधनना रसीज बोने भएवा तथा वाचवालायकजातीने मेमारीच्ल्पबुद्धिप्रमाणे सुचकरी बाप्यो बे पंमितोएमा नूलऊपर दोसनलाव अने क्षमाराखी सुधारी वांचबुं इतिश्री चोवीस जिनस्तुति नोबालाबोधसंपूर्णं ॥ kkk k k k k k kakak अथश्रीदेवचंदजी माहाराजकृत चोवीस जिनस्तुति नोबालाबोधसंपूर्ण ॥ For Personal & Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ पाचभावनानोस्तवन ॥ अथश्रीदेवचंजीकृतसाधुनीपांच नावनालिख्यते॥ ॥दोहा ।। खस्तिश्री मंधरपरम ॥ धरमधामसुखाम ॥ स्याहादपारिणामधर ॥ प्रणमूचेतनराम ॥ १ ॥ महावीरजिनवरनमी ॥ नषबाहुसूरीश ॥ वंदीश्रीजिननजगणि ॥ श्रीदे मुनीश ॥ २ ॥ सदगुरुशासनदेवनमी। वृहत्कल्पअनुसार ॥ सुचनावनासाधनी ॥ नाविशपंचपकार ॥ ३ ॥ इंजीयोगकषायने ॥ जोपेमुनीनिसंग ॥ इणजीतेकुध्यानजय ॥ जाए चित्ततरंग ॥ ४ ॥ प्रथमभावनाश्रुततणी ॥ बीजीतपतियसत्व ॥ तुरि यएकतानावना पंचमनावसुतत्व ॥ ५ ॥ श्रुतनावनमनथिरकरे ॥ टा लेनवनोखेद || तपनावनकायादमे ॥ वमेवेदकमेद ॥ ६॥ सत्वनाव निर्नादशा ॥ निजलघुताएकनाव ॥ तत्वनावनाथात्मगुण ॥ सिघ साधनादार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल र ली। लोकसरूपविचारोअतमहितनगीरे ।। ॥एदेश।।। श्रुतअन्यासकरोमुनिवरसदारे ॥ अतिचारसहुटालि ॥ हिनअघि कादरमतनचरोरे ॥ शब्दअर्थसं नालि ॥ श्रु० ॥ ॥ सुदमअर्थ अगोचरष्टियारे । रूपीरूपविहीन ॥ जेहतातअनागतवरततारे॥ जाणेझानोलीन ॥ श्रु० ॥ २ ॥ नित्यनित्य एकअनेकतारे ॥ स दसदभावस्वरूप ॥ बएनावएकव्येपरणम्यारे ॥ एकसमेमेअनूप॥श्रु०॥ ॥३॥ नत्सर्गेअपवादपदेकरीरे ॥ जाणेस हुश्रुतचालि ॥ वचनविरोध निवारेयुक्तिथीरे ॥ थावेदूषणटालि ॥ श्रु० ॥ ४ ॥ ६व्यार्थिकपर्या यार्थिकधरेरे ॥ नयगमनंगअनेक ॥ नयसामान्य विशेषेतेनहेरे ॥ लो कअलोकविवेक ॥ श्रु० ॥ ५॥ नंदीसुत्रेनपगारीकझोरे ॥ वलीअसु For Personal & Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाचनावनानोस्तवन १७३ चाताम || अव्यश्रुतनेवांद्योगणधरेरे ॥ भगवईछंगेनाम ॥ श्रु० ॥६॥ श्रुतअन्यासेजिनपदपामिएरे ॥ तेषंगेसाख ॥ श्रुतनाणीकेवल नाणी समोरे ॥ पनिवणिज्जेनाप ॥श्रु० ॥ ॥ श्रुतधारीआराधकसर्वनोरे॥ जाणेअर्थखनाव ॥ निजबातमपरमातमसमयहेरे ॥ ध्यावेतेनयदाव ॥ श्रु० ॥ ७ ॥ संयमदर्शनतेझानेवधेरे ॥ ध्यानेशिवसाधत ॥ भवख रूपचौगतनोतेलखरे ॥ तिणेसंसारतजंत ॥ श्रु० ॥ए ॥ इंख्यिसुखचं चलजाणीतजेरे ॥ नवनवअर्थतरंग ॥ जिमजिमपामेतिममनकल से रे ॥ वसेनचित्तथनंग ॥ श्रु० ॥ १० ॥ कालघसंख्यातानानवल खेरे ॥ उपदेशकपणतेह ।। परनवसाथीअवलंबनखरोरे ॥ चरणवि नाशिवगेह ॥ श्रु० ॥ ११ ॥ पंचमकालेश्रुतबलपणघट्योरे ॥ तो पणएआधार। देवचंजिनमतनोतत्वारे॥श्रुतशंधरजोप्यार॥१०॥१२ ॥ढाल जी॥ कुंवरश्स्योमनचिंतवेरे॥ एदेशी॥ रयणावलोकनकावली ॥ मुक्तावलीगुणराण ॥ वज्जमध्यनेजवम ध्यए ॥ तपकरिनेहोजीपोरिपुमयण ॥ नविटाणतपगुणादरोरे॥६॥ तपोजेरेगजेसहुकर्म ॥ विषयविकारसहूटलेरे ॥ मनगंजेरेनंजेनवन में ॥ नवि० ॥२॥ जोगजाष्टिाजयतहा ॥ तवकर्मसूमणसार ॥ वहांणयोगऽहाकरी | सिमसाधेरेसुधाचणगार ॥ नवि०॥३॥ जि मजिमप्रतिज्ञापढथको ॥ वेरागीयोतपराय ॥ तिमतिमअंसुनदलबी जे ॥ रवितेजेरेजिमसीतविलाय ॥ नवि० ॥४॥ जेनिकुपमिमाआद रे ॥ आसणअकंपमुधीर || अतिलीनसमतानावमे तणनीपरेहोजा एतशरीर ॥ नवि० ॥ ५ ॥ जिणेसाधुतपतरवारथी ॥ सुमयोमोहगयं द ॥ तिणेसाधुनोहुंदास ॥ नितवं उरेतसपटाअरविंद ॥ नवि० ॥ ६॥ आयारसूगमाअंगमे ॥ तिमकह्योनगवैअंग॥ ऊत्तरायणगुणतोसम॥ For Personal & Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ पाचनावनानोस्तवन नपसंगेहोसहुकर्मनोनंग ॥ भवि० ॥ ७॥ जेऽविधउक्करतपतपे ॥ नव पासाशविरत्त॥धनसाधुमुनिढंढणसमा॥झषिखंधकहोतीसगकुरुदत्त॥ भवि० ॥ 5 ॥ निजात्माकंचननणी ॥ तपअग्निकरीसोधंत ॥ न वनवेल ब्धिबलेबते ॥ उपसर्गेहोतेसंतमहंत ॥ नवि० ॥ ए ॥ धनतेह जेधनग्रहतजी ॥ तननेहनोकरी ह ॥ निस्संगवनवासेवसे ॥ तपधारी होजेनिग्रहगेह ॥ नवि० ॥ १० ॥ धनतेहगगुफातजी ॥ जिन कल्पनावअफंद॥परिहारसुचितपतपे॥ तेवंदेहोदेवचंषमुनिंदानवि०॥११॥ ॥ढाल ३ जी॥ हवेराणीपदमावती॥ एदेशी॥ रेजीवसाहसआदरो॥मतथावोदीन॥सुखदुखसंपदापदा॥पूर्वकर्म आधीन ॥ रेजी० ॥१॥ क्रोधादिकवसिरणसमे ॥सह्यांदुःखअनेक॥ तेजोसमतामांसहे ॥ तोखरोविवेक ॥ रेजी० ॥२॥ सर्वअनित्यअसा सतो ॥ जेदीसेएह ॥ धनतनसटाणसगासहू ॥ तिणसुंस्योनेह ॥रेजी० ॥ ३ ॥ जिमबालकवेलुतणा ॥ घरकरियरमंत॥ तेहलतेअथवाढहे!। निज निजगृहजंत ॥ रेजी० ॥४॥ पंथीजेमसराहमे ॥ नदीनावनीरी ति ॥ तिमएपरिजनतोमिल्यो | तिणथोशीपाति ॥ रेजी०॥ ५॥ ज्यां खारथत्यांएसगा | विणखारथदूर ॥ परकाजेपापेनले ॥ तुंकिमहोए सूर ॥ रेजी. ॥६॥ तजिबाहिरमेलावमो ॥ मिलि योबहुवार ॥ जे परवमिलियोनही ॥ तिणसुंधरिप्यार ॥ रेजी० ॥ ७॥ चक्रीहरिबल प्रतिहरि ॥ तसुविनवअमान ॥ तेपणकाले संहरया ॥ तुजधनसेझान॥ रेजी० ॥ ॥ हाहाहूतोतुंफिरे ॥ परिटाणनीचिंत ॥ नरकपमयांकहे ताहर। || कुंणकरसेचिंत ॥ रेजी. ए॥ रोगादिक उखऊपने ॥ म नअरतिमधेव ॥ पूरव निजकतकर्मनो ॥एअनुनबहेव॥रेजी ० ॥१०॥ एहशरीरशासतो || दणमेजिंत ॥ प्रीतिकशीतसकपरे ॥ जेवार For Personal & Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांचभावनानोस्तवन १८५ थवंत || रेजी० ॥ १२ ॥ ज्यांलगे तुजइल देहथी || बेपूरवसंग | त्यांन गेकोमीन पायथ ॥ नविधानंग || रेजी० | १२ || आगल पाबल चिदिने || जेवएस जाय || रोगादिकथीनविरहे ॥ कीकोमीन पा य ॥ रेजी० ॥ १३ ॥ अंतेपणनेत ज्या || थारशिव सुख || तेजाबुटे घ्यापथी || तोतुजस्योदूःख ॥ रेजी० ॥ १४ ॥ एतनविसेताहरे || न विकाइहाए ॥ जोज्ञानादिकगुणतलो || तुजच्छावेजा ॥ रेजी० ॥ १५ ॥ 11 जरामर आत्मा || अविचल गुलाल || क्षणभंगुरयादेही || तुज कहां पिबा || रेजी० ॥ १६ ॥ बेदनभेदनतामना || वधबंधनदा ह || पुल ने पुल करे || तुंमरागाह || रेजी० ॥ १७ ॥ पूरवक रमउदयसही || जेवेदनथाय ॥ ध्यावेच्छातमतिसमे || तेध्यानीराय ॥ रेजी० ॥ १६ ॥ ग्यांनध्याननीवातमी || करणीच्यसान || अंतस मेच्छा पदपथा || विरला करेध्यान || रेजी० ॥ १० ॥ यारतिकरिङःखनो गवे ॥ परवशजिमकीर || तोतुज जालपणातलो || गुणकेोधीर ॥ रेजी० ॥ २० ॥ सु६निरंजन निरमलो || निजच्यातमभाव || तोविए सेकहे दुःख कस्यो || जेम लियोछाव | रेजी० ॥ ५१ ॥ देह गेहनामा तो || एच्छापोनाहिं | तुजगृहच्यातमज्ञानए || तिएमहिंसमाहिं | रेजी० ॥२२॥ मेतारजसुकोसलो || वलिगजसुकमाल || सनतकु मारचक्रीपरे ॥ तनममताटाल || रेजी० ॥ २३ ॥ कष्टपम्या समतार मे || निज आतमध्याय ॥ देवचंप्रति मुनिता || नितवंडुपाटा ॥ रेजीव० ॥ २४ ॥ ॥ ढाल ४ थी || रेप्राणीधरसंवेगविचार ॥ एदेशी ॥ ग्यानध्यानचारित्रनेरे || जोदृढकरवाचाल || तोएकाकी विहरतो रे ॥ जिनकल्पादिकसासरे || प्राली ० ॥ एकल नावननाव ॥ १ ॥ शिवमा र्गसाधनदावरेप्राए|| || ९० ॥ साधुनीगृहवासनारे || टीममता तेह || २४ For Personal & Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ पांचनावनानोस्तवन तोपाणगबवासीपणेरे ॥ गणगुरुपरे नेहरे ॥षा || २ ॥ वनमृगनीपरेते हथोरे ॥ बोमीसकल प्रतिबंध ॥ एकाकीअनादिनोरे ॥ किणी तुज संबंधरे ॥प्रा० ॥३ ॥ शत्रुमित्रतासर्वथोरे ॥ पामीवारअनंत॥ कुणस जनउस्मनकिस्युरे ॥ कालेसहुनोअंतरे ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ बांधकर्मएए कलारे । नोगवेपण एक ॥ कुणकपरकुणवातनीरे॥रागक्षेषनाटेकरे॥ पा० ॥ ५॥ जोनिजएकपणोगहेरे ॥ नोमीसकलपरभाव ॥ सुधातम झानादिसुंरे ॥ एकस्वरूपेनावरे ॥ पा० ॥ ६ ॥ आव्योपणतुंएकलो रे ॥ जाशपणतुंएक ॥ तोएस कल कुटुंबधीरे ॥ प्रीति किसीअविवे करे ॥ प्रा० ॥ ७ ॥ वनमांगजसिंहादिधीरे ॥ विहरतानटलेजह ॥ जिणासणरविबाथमेरे ॥तिपासणनिशीले हरे ॥प्रा० ॥ ७॥ तपपा रणआहारयहरे ॥ करमालेपविहीन | एकवारपाणीपीवनेरे ॥ वनचा रीचित्तअदानरे ॥प्रा० ॥॥ एहदोषस हुपरतणोरे ॥परसंगेगुणहांण॥ परधनग्राहीचोरतेरे ॥ एकपणेसुखखाणरे ॥ प्रां० ॥१०॥ परसंटोग थीबंधजेरे ॥ परवियोगथीमोख ॥ तिणतजिपरमेनावमोरे ॥ एकपणे निजपोषरे ॥ पा० ॥१६॥ जनमनपाम्योसाथकोरे॥ साथनमरशेको य ॥ उखवेहेचान कोनहीरे ॥ क्षणभंगुरसहुलाटारे ॥ प्रा० ॥१२॥ परिजनमरतोदेखोनेरे ॥ शोककरेजनमूढ ॥ अवसरवारेआपणोरे ॥ स हुजननाएढरे ॥ प्रा० ॥ १३ ॥ सुरपतिचक्कीहरिहलारे ॥ एकलाप रनवजाय ॥ तनधनपरिजनसहुवलारे ॥ कोईसखाश्नथायरे ॥ प्रा. ॥ १४ ॥ एकातमामाहरोरे ॥ नाणदर्सनगुणवंत॥ ब्राह्मयोगस हुआ वरजेरे ॥ पाम्यावारअनंतरे ॥ प्रा० ॥१५॥ करकंडूनमिनेगाश्येरे ॥ उमहप्रमुखऋषीराम ॥ मृगापूत्र हरिकेशिनारे॥ वंदृहुंनितपायरे॥षा ॥ १६ ॥ साधुचिलातीसुतनलोरे । वलीअनाथोतम ॥ श्मगुणमुनि अनुमोदतारे ॥ देवचंसुख दे मरे ॥ प्रां० ॥१७॥ For Personal & Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांच नावनानोस्तवन १७ ॥ ढाल ५ मी॥ इणिपरेचंचलाऊषोजीवजागोरे । ॥एदेशी॥ चेतनएतनकारमो ॥ तुमेध्यावोरे ॥ शुधनिरंजनदेव ॥ नविकतुमे ध्यावोरे। शुक्खरूपअनूप॥ नवि०॥१॥ नरनवश्रावककुल यो॥तुमे०॥ लाधोसमकितसार ॥नवि०॥ जिनागमरुचिशंसुस्या ॥तुमे॥ श्रा लसनीसवार ॥नवि०॥ २॥ समयांतरसहनावनो ॥तुमे ॥ दरसजा सअनंत ॥नवि०॥ आतमनावेथिरसदा ॥तुमे॥ अक्षयचरणमहंत । प्रवि०॥३॥ तीनलोकतिहुंकालना॥तुमे ॥परणतितीनप्रकार॥ नवि० एकसमेजाणेतिणे। तुमे ॥ नाणअनंतअपार ॥ नवि० ॥ ४॥ सकल दो षहरशासतो ॥तुमे ॥वीरजपरमअदीन॥ नवि० ॥ सुषमतनुबंधनविना॥ तुमे ॥ अवगाहनास्वाधीन॥ नवि०॥५॥पुजल सकल विवेकथा॥ तुमे ॥ शुष्अमूरतरूप ॥ नवि० ॥ इंडियसुखनिस्पृहथया ॥ तुमे ॥अकथ अवाहवरूप ॥ नवि० ॥ ६ ॥ व्यतणेपरिणामथी ॥ तुमे ॥ अ गुरुल घुत्वअनित्य ॥ नवि०॥ सत्यखनावमयीसदा ॥ तुमे ॥ गेमा भावअसत्य ॥ नवि० ॥ ७ || निजगुणरमतोरामए ॥ तुमे० ॥ सक लअकलगुणखाण ॥ नवि०॥ परमातमपरजोतिए ॥तुमे | अलख अलेपवखाण || नवि० ॥ ७ ॥ पंचपूज्यथीपूज्यए ॥ तुमे ॥ सर्व ध्येयथाध्येय ॥ नवि० ॥ ध्याताध्यानरुध्येयए ॥ तुमे० ॥ निश्चेएक अनेय ॥ नवि० ॥ ५॥ अनुनवकरताएहनो ॥ तुमे ॥ थाएपरम प्रमोद ॥ नवि०॥ एकस्वरूपअन्यास सुं ॥ तुमे । शिवसुखबतसुगो द ॥ नवि० ॥ १० ॥ बंधबंधएातमा ॥ तुमे ॥ कर्ताअकर्ताए ह ॥ नवि० ॥ एहनोगताअनोगता॥ तुमे ॥ स्यादवादगुणगेहा नविन ॥११॥ एकअनेकवरूपए ॥ तुमे ॥ नित्य अनित्यअनाद ॥ नवि० For Personal & Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 पांचभावनानोस्तवन सदासद्भावेपरणम्या ॥तुमे०॥मुक्तसकलनन्माद॥नवि०॥१२॥ तपजप किरियाखपथकी ॥ तुमे ॥ अष्टकरमनविलाटा ॥ नवि०॥ तेस हुआ तमध्यानी ॥ तुमे ॥ दिणमेखेरुथाय ॥ नवि० ॥१३॥ सुधातम अनुनकविना ॥ तुमे० ॥ बंधहेतुशुनचालि ॥ नवि०॥ आतमपरणामे रहा ॥ तुमे ॥ एहजाश्रवपालि ॥ नाव ० ॥ १४॥ एमजापानिज आतमा || तुमे० ॥ वरजीसकलनपाधि ॥ नवि० ॥ उपादेययविलं बने ॥ तुमे ॥ परममहोदयसाधि ॥ नवि० १५ ॥ भरतएलासुततेत लि. ॥ तुमे० ॥ इत्यादिकमुनिद ॥नवि !! आतमध्यानथाएतत्या। तुमे ॥ प्रणमतेदेवचंद ॥ नवि० ॥ १६ ॥ ॥ ढाल ॥६॥जी॥ सैलगसेत्रजेसिक्षा ॥ एदेशी। भावनामुक्ति निसाणीजाणी || नाबोआसतिआणीजी॥योगकषाय कपटनीहाणी ॥ थायनिर्मलजाणीजी ॥ भा० ॥१॥ पंचभावनएमुनी मननाणी॥ संवरखांणिवखाणीजी॥रहकल्पसुत्रनीवाणी ॥ दीवीतेमक हाणीजी । ना०॥ २॥ कर्मकतरणीशिवनिसरणी ॥जाणवाणअनुसरणी जी ॥ चेतनरामतणाबरण | नवसमुःखहरणीजी ॥ना ॥ ३ ॥ जव्यवंतापाठकगुणधारी॥राजसारसुविचारीजी ॥ निर्मल झानधर्मसंभा पाठकसहुहितकारीजी ॥ भा० ॥ ४ ॥ राजहंससुहगुरुमुपसाटो ॥ देवचंचमगावेजी॥ नविकजीवजेनावननावे॥ तेहयमितसुखपावेजी। मा० ॥ ५॥ जेसलमेरेसाहसनागी ॥ वर्धमानवमनागीजी ॥ पुत्रकल त्रसकलसोनागी ॥ साधुगुणनोरागीजी ॥ना ॥६॥ तसुआग्रहथीना वनानाइ ॥ ढालबंधमेगाइजी ॥ नणसे गणसेजेएगाता॥ ले शेते सुखशा ताजी ॥ ना० ॥ ७ ॥ मनसुधपांचेनावननावो ॥ पावननिजगुणपा वोजी ॥ मनमुनीवरगुण संगवसावो ॥ सुखसंपतिग्रहथावोजी ॥ ना ॥ ७ ॥ इतिश्रीसाधुनीपांचमाहानावनासंपूर्ण ॥ For Personal & Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रनंजना निसिज्जाय ॥अयश्रीप्रनंजनानिसिजायलिख्यते ॥ नाटकीयानीनंदनी एदेशी॥ गिरिवैताढ्यनेकपरे ॥ चक्रांकानयरीलो ॥ अहोचकांका ॥ च क्रायुधराजातिहां ॥ जीत्यास विवटारीलो ॥ अहोजीत्या ॥१॥ म दनल तातसुशुंदरी ॥ गुणशील अचंभालो ॥१०॥ पुत्रीतासपनंजना॥ रूपेरतिरंनालो ॥ अ० ॥ २ ॥ विद्याधरजूचरसुता ॥ बहुमिलिश्कपते लो॥ अ || राधावेधमंमाबीयो ॥ वरवरवाखंतेलो॥ १० ॥ ३ ॥ कन्याएकहजारथी ॥ प्रभंजनाचालीलो॥ ॥ आर्यखममांआव तां ॥ वनखमविचालिलो ॥ अ॥४॥ नियंथीसुप्रतिष्टता ॥बहुमुणणी संगेलो ॥१०॥ साधुविहारेविचरतां ॥ वंदिमनरंगलो ॥ १० ॥ ५ ॥ आ-पूजेएवमो॥ ऊमाहोस्यो लो॥ अ. ॥ विनयकन्यावीनवे ॥ वरवरवाडेलो ॥ ॥६॥ एस्योहितजाणोतुझे ॥ एथीनविसिचिलो। अ० ॥ विषयहलाहल विषतिहां ॥ सीअमृतबुधिलो॥ ॥ ७॥नोगसं गकारमांकह्या ॥ जिनराजसदाश्लो॥अ॥ रागषसंगेवधे ॥नवत्र मणसदाश्नो॥ ॥॥राजसुताकहसाचए॥जे भाषोवाएगीलो॥१०॥ पिणएभूल अनादिनी ॥ किमजाएमागीलो ॥॥॥ जेहतजेतेध न्य | सेवक जिनजीनालो ॥१०॥ अमेसतपुजलरसरम्या॥मोहेलय लीनालो ॥ अ॥१०॥ अध्यातमरसपानथा ॥ पानामुनिराटालो। अ० ॥ तेपरपरणतीरतीतजी ॥ निजतत्वेसमाटालो ॥ ॥ ३॥ अम्हने पिणकरवोबटे ॥ कारणसंटोगेलो ॥ १० ॥ पिणचेतनतापर णमे ॥ जमपुजलनोगेलो ॥ १० ॥ १२ ॥ अवरकन्यापणकचरे ॥ चिंतितहवेकी जेलो ॥ अ० ॥ पबिपरमपदसाधवा ॥ नद्यमसाधिजे लो ॥ ॥१३॥ प्रजनाकहेहेसखी ॥ एकाटारपाणलो ॥ धरमप्रथमकरवोसदा ॥ देवचंदनीवाणीलो ॥ १० ॥ १४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए. प्रनंजना निसिज्जाय ॥ ढाल ॥जी॥ ढुंवारीधनातुऊजाणनदेश॥ एदेशी॥ कहेसाहुणीसुणकन्यकारे ॥ धन्या ॥ एसंसारकलेश ॥ एहनेजेहि तकरीगणेरे॥ध ॥ ते मिथ्याआवेसरे। सुझानीकन्यासांनल हितनपदेश। जगहितकारीजिनेश ॥ कीजेतसुआदेशरे॥सु० ॥ सांभल ॥१॥ खरमोनेजोधोएबुरे ॥ क० ॥ तेहनशिष्टाचार ॥ रत्नत्रयीसाधनकरो रे ॥ क. || मोहाधीनताबाररे || सु० ॥ सां० ॥ २ ॥ जेपुरषवरवा तणारे ॥ क० ॥ श्बाबे तेजीव ॥ सेसंबंधपणेनकोरे ॥ क० ॥ धारी काल सदीव || सु० ॥ सां० ॥३। तवप्रभंजनाचिंतवेरे ॥ अप्पा० ॥ तुअनादिअनंत ॥ तेपणमुऊसत्तासमोरे ॥ अ० ॥ सहजअकृतसुम हंतरे || सु० ॥ सां० ॥ ४ ॥ भवनमतास विजीवधीरे ॥ १० ॥ पा म्यासविसंबंध ॥ मातापिताचातासुतारे ॥१०॥ पुत्रवधुप्रतिबंध ॥सु. सां० ॥ ५ ॥ स्योसंबंधकहुंहारे ॥ १० ॥ शत्रुमित्रपणथाटय ॥ मित्र शत्रुतावलील हेरे ॥१० ॥ श्मसंसरणखनाव ॥सु० ॥सां० ॥६॥ स त्तासमस विजीवबरे ॥ १० ॥ जोतांवस्तुस्वभाव ॥ एमाहरोएपारकोरे।। छ || सविआरोपितनावरे ॥ सु० ॥ सां॥७॥ गुरुणीआगल एह बुरे ॥ १० ॥ जूनूकेमकहेवाय || स्वपरविवेचनकीजतारे ॥१० ॥ माहरोकोश्नथाटारे || सु ॥ सां० | 5 || नोग्यपणोपणनूल थारे ।। १०॥ मानेपुजल खंध ॥ हुंनोगीनिजनावनोरे ॥ ॥ परथीनहिष तिबंधर ॥ सु० ॥ सां ॥ ए ॥ सम्यक्झानेवे हिचत्तारे ॥ अ० ॥ हूं छामहूर्तचिदूप ॥ कर्त्तानोक्तातत्वनारे ॥ १० ॥ यक्ष्यअकिटारूप ॥सु ॥ सां० ॥ १० ॥ सर्व विनावथकीजुदोरे ॥ १० ॥ निश्चयनिज अनुभूति ॥ पुर्णानंदीपरमपूरे ॥ अ० ॥ नहिपरपरण तोरी तिरे ॥ सु सां ॥ ११॥ सिघसमोएसंग्रहेरे ॥ अ॥ पररंगेपलटाय ॥ संगां For Personal & Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रनंजनानिसिज्जाटा गीनावेकरयोरे ॥ ॥ असुचविनावअपाय ॥ सु० ॥सां० ॥१२॥ सुनिश्चटानटाएकरेरे ॥१०॥ आतमनावअनंत ॥ तेहल सुघन टोक रेरे ॥०॥ इष्टविनावमहंतरे ॥सु ॥सां ॥१३॥ अय्यकरमकरताथ योरे ॥ अ० ॥ नयअसुरविवहार ॥ तेहनिवारोस्वपदेरे ॥ १० ॥ रमतासुचविवहाररे ॥सु० ॥ सां० ॥१४॥ विवहारसमरेथकेरे ॥ समरेनिश्चटाचार ॥ पत्तिसमारेविकल्पनेरे ॥ १० ॥ तेथीपरणतिसा ररे ॥सु० ॥सां० ॥ १५ ॥ पुजलनेपरजीवधीरे ॥ १० ॥ कीधोनेद विज्ञान ॥ बाधकतातेहारेटलारे ॥ ॥ हवेकुणरोकेध्यान ||सु॥ सां० ॥ १६। आलंबननावनबसेरे ॥ १० ॥ धरमध्यानप्रगटाय॥ देवचंचपदसाधवारे ॥ १०॥ एहिजसुघनपायरे ॥सु० ॥सां० ॥१७॥ ॥ ढाल ॥३॥जी॥ तुगेतुगेरेमुजसाहेबजगनोतुग॥ ॥ एदेशी॥ आयोआयोरेअनुभवातमचोआयो॥सुनिमित्तबालंबननजतां। यात्माल बनपाटोरे ॥ ॥१॥ आत्मदेत्रीगुणपरजयविधि ॥तिहां उपयोगरमायो ॥ परपरणतिपररीतेजाणी ॥ तासविकल्पसमायोरे॥ ब० ॥ २ ॥ पृथक्त्व वितर्कशुक्लशारोही ॥ गुणगुणी एकसमायो । परजटाव्य वितर्कएकता॥ ईरमोहखपाटोरे ॥ ॥३॥ अनंतानु बधीशु नटनेकाढी॥ दर्शनमोहगमाटोतिरिगति हेतुप्रकितिदयकीधी। थटोआत्मरसरायोरे ॥ १० ॥ ४ ॥ वितीयतृतिटाचोकमीखपाव।।। वेदयुगल क्यथायो। हास्यादिकसत्ताथीध्वंसी ॥उदटावेदमिटायोरे ॥ अ०॥ ५ ॥ थईवेदीने अविकारी ॥ हण्योसंजलनोकषायो ॥ मा रयोमोहचरणदायककर ॥ पूरणसमतासमायोरे ॥ ॥ ६ । घ नघातीत्रिकयोधालमोटा ॥ ध्यानएकत्वनेध्यायो ॥ ज्ञानावरणादि For Personal & Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए बुटकसिज्जाय कनटपमिया ॥ जीतनीसाणधुरायोरे ॥१०॥७॥ केवल ज्ञानदर्शनगु एप्रगट्या ॥ माहाराजपदपायो ॥ शेषशघातिकर्मविणदल ॥ उदय अबाधदिखायोरे ॥ १० ॥ ७ ॥ संयोगीकेवलीथयापनंजना ॥ लो कालोकजणायो ॥तीनकाल नीत्रिविधवर्त्तना॥ एकसमेल खायोरे॥ अ॥ ए ॥ सर्वसाधवीवंदनाकीधी ॥ गुणीवनयनपजायो ॥ देवदेवी तवस्तवेगुणस्तुति ॥ जगजयपमहबजायोरे ॥०॥ १० ॥ सहजक न्यकादिवालीधी ॥ आश्रवसर्वतजाटो ॥ जगन पगारीदेस विहारे ॥ सुधधरमदीपायोरे ॥ १० ॥ ११ ॥ कारणजोगेकार्यसाधे ॥ तेहच तुरगाश्जे ॥ आतमसाधननिर्मल माधे ॥ परमानंदपाईजेरे ॥ अ॥ ॥ १२ ॥ एअधिकारकहोगणरागे॥ वैरागेमननावी ॥ वसुदेवहींमत णेच नुसारे ॥ मुनीगुणनावनानावीरे ॥अ० ॥ १३ ॥ मुनीगुण सुणतां भाव विसुधे ॥ नवबिबेदनथावे॥ पुर्णानंदईहाथीउल्लसे ॥ साधनशक्ति जमावरे ॥ ॥ १४ ॥ मुनीगुणगावोनावोनावना ॥ ध्याबोसहज समाधी ॥रत्नत्रयीरकत्वेखेलो ॥ मिटिअनादिउपाधारे ॥ ॥१५॥ राजसारपाठ कनपगारी ॥झानधरमदातारी॥ दीपचंदपाकखरतरवर॥ देवचंसुखकारीरे ॥ १० ॥ १६॥ नयरलीबमीमांहेरहीने ॥ वाच समस्तुतिगाई ॥ आत्मरसिकश्रोताजनमनने ॥साधनरुचिसमजारे ॥ छ || १७ ॥ इमउत्तमगुणमालागावो ॥ पावोहरषवाई ॥ जैनध रममारगरुचिकरतो ॥ मंगललालसदारे ॥ १० ॥ १७ ॥ इतिश्रीष नंजनानीसकाटासंपूर्ण ॥ ॥७॥ ॥७॥ ॥ ७ ॥ ॥अथसिज्जायलिख्यते॥ चतुरतुंचाख मुझसीषहित सूखमी। बापमाकपटकांमुढममे॥ विषटालं पटपणेरातदिननविगणे ॥ क्रोधमदमानमायानबमे ॥ चतु० ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुटकस्तवनसज्जाटो १९३ सदनधनखजनजननिरखिनिजवशअरे ॥ माहरुमाहरुंमकरनोला ॥ ताहरूंतेहजेसुकृतसंचयकरे ॥ पिंपापेनरिकरीअरोला॥चतु ॥२॥ सकलसुनकाजनीआजवेलालही ॥ मोहेमुंज्योहजीसुविमासे ॥ स कलसुखतुझगमेदेहिउखनवीखमे ॥ करणी विणमुक्तिरतिकिमकरासे॥ ॥च० ॥ ३ ॥ कालबरयट्टससिसूरबषजोमयूँ ॥ दिवसनेनिशि अतीवमियमालं ॥ निरषीनिजआयुधूनीरकलेचतां ॥ कांनमेह जीमोहजालं ॥च ॥४॥ अथिरसंसारमांसारनवकारनु ॥ ध्यानध रतांसदाझदयराजे ॥ एहथीनवतरेमेरुमहिमाधरे ॥ इक्षिविजयादिसु खसकलसीके ॥ च ॥५॥ इतिसशाटासंपूर्ण ॥ ॥अथश्रीबीजनोस्तवनलिख्यते ॥ दिनसकलमनोहरबीजदिवसस विसेष ॥ रायराणाप्रणमेचंवतणीजि हारेष ॥ तेचंबविमानेसाखतजिनवरजेह ॥ हूंबीजतणेदिनप्रणमुं आणीनेह ॥५॥ अभिनंदनचंदनशीतलशीतलनाथ ॥ अरनाथसुम तिजिनवापुज्य सिवसाथ ॥ इत्यादिकजिनवरजन्मन्याननिरवाण ॥ एबीजतणेदिनपणमुहुंसुविहाण ॥ २ ॥ परकासिबीजेऽविधधर्मन गवंत ॥ जेमविमलाकमलाविपुलनटाणविकसंत ॥ आगमअतिम नोपमजिहांनिश्चयव्यवहार ॥ बीजेस विकीजेपातकनोपरिहार ॥ ३ ॥ गजगामिनीकामिनीकमल सकोमलधीर ॥ चक्केसरीकेसरीसरससुगंध सरीर ॥ करजोमीबीजदिवसेंतसपण मुंपाय | एमलब्धिविजयाकहप रमनोरथमाटा ॥ ४ ॥ इतिबीजनोस्तवनसंपूर्ण ॥ ॥ अयश्रीमंमोवरापार्श्वजिनस्तवन ।। तारमुकतारमुकतारत्रीनुवनधणी ॥ पारनतारसंसारसामी ॥ प्राण तुप्राण तुंसरणआधारतुं ॥ आतमासममुजतुंहिंसामी ॥तार ॥१॥ तुंह ૨૫ For Personal & Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ बुटकस्तवन सज्जायो चिंतामणी तुंहिंमुऊसुरतरू || कामघटकामधेनु विधाता || सकलसंपती करूबीकट संकटहरू || पासमंमोवरोमुगतीदाता || तार 11 2 11 पुन्यनरपूरच्छंकूरमुजजागी || नाग्यसोभाग्यमुखनूरवाध्यो || सफ लवंगी फल्योमाहरो दिनवल्यो || पासमंकोचरोदेवलाधो ॥ तार० ॥ ३॥ धन्यमरूदेसमंमोवरानवरी ॥ धन्यधनायोधानारीनौका || धन्यतेध न्यधन्यकृतपुण्यते ॥ पासपूजेस बाजेहजोका || तार० ॥ ४ ॥ पासमुक प्रीती तुसुंबी || विबुधवर काहानजीगुरुवखांणी || मुक्तिसुखच्या पजोच्यापपदथापजो ॥ कनक विजयच्या पलोनक्त जाली ॥ ता ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ पुण्यनिसिज्जायलिख्यते ॥ पुण्य कर पुण्य कर पुण्य करप्राणीयां ॥ पुष्य करतांसयल कचिदृषि ॥ क नकनी को मकरजोमिकाया कहे॥ ला बिलीलाल हे धर्मबुधि ॥ ० ॥ १ ॥ पहाट दोहटबोमिबोकरप || यतिणुमनतपापं ॥ तासंता पयालापपरिहरिपिन || पंचपरमेष्टिपदसमरजापं ॥ पु० २ ॥ तुमुऊकंत कामिनिता || || माहसीख सुलिकांनजागे || मुकमतिमांमता अशुभ गतिकता || धर्मकरतांकि सिलागलागे ॥ पु० ॥ ३ ॥ मुऊमतिवाह लाधैर्यधरनाहला ॥ थोमलावयच्यवधारमोरा || सुधगुरुदेवपयसे वकरताना || आप लिखांतिकारी मकर नोरा ॥ पु० ॥ ४ ॥ सेल मिसरससाकरसमावयसुलि || आपनोमन करोमुक्तिवरवा ॥ काय कामनित सीखनारतो || प्राणिनघसमस्योधर्मकरवा ॥ ० ॥ ५ ॥ उगतेना सुवखाणसह गुरुतली || वालिनिजकानहितलाश्चाखे ॥ जं घयाल सहरे प्रान नवतरे ॥ परमपदवीवरे प्रीतिनाषे ॥ ० ॥ ६ ॥ इति || श्री नाती लिख्यते ॥ श्रीमरुदेवातनुजन्मानं ॥ मानवरत्नमुदाररे || दारैः सहहरि निकृत से वं ॥ सेवकजनसुखकाररे || श्री || १ || कारण गंध मृते पिजनानां ॥ For Personal & Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुटकस्तवनसज्जायो नानासुखदातारंरे ॥ तारस्वरवररसपरिपुष्ट | पुष्टशमाकुपारंरे॥श्री ॥ ॥ २ ॥ पारंगतमिहजन्मपटोधे ॥ यो हितगुणधीररे ॥ धीरसमुहेःसं स्तुतचरणं ॥ चरणमहीरुहकीररे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ कीरनसंटात्साजि तचं ॥ चंचामल गुणवासरे ॥ वासवझदयकजाहिमपादं ॥ पादपमि वसबायरे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ सन्नाटाकबरपुरधरणी ॥ धरणीधवमितकां मरे ॥ कामनमतसुलक्षणनानि ॥ नानितनुजमुद्दामरे ॥ श्री० ॥ ५॥ स्वतीर्थपतिस्तुतःशतमखश्रेणीस्तुतश्रीनदी ॥ जीमतोद्नंतनाग्यसेवधिर विक्षिप्तसमग्रेर्गुणैः ॥ श्रीमन्ना निनरेंजवंशकमलाकेतुर्नवांनोनिधौ ॥ से तुःश्रीषनोददातुविनयस्वीयंसदावांनितम् ॥ १॥ इतिसंपूर्ण ॥ ॥अथजिनदासलटकपदलिख्यते ॥ ककरकुंसकरकरमाने ॥ ऐकुमतीकीबाताहे ॥ धाकधतुरावेलपा तसुं ॥ पूजत शिवरंगराताहे॥ आंगदानदेतासीवमत्तमे ॥ नरनारिका नाताहे ॥ क ॥ ५ ॥ चंमीजीवकागलाकटावे ॥ लोककहेएमाता हे ॥ ताकुपूजमगनमनमोहन ॥ सोनरनरकेजाताहे ॥क० ॥ २॥ कुगुरुसुपरनवजःखपामे॥ नही तिल भरएकसाताहे। कुदेवकुंचेतनयुसेव त ॥ हिंसाधर्मःखदाताहे ॥ क ॥३॥ कुगुरूत्यागसूगुरुनिजसेवे। नितनिग्रंथगुणगाताहे ॥ जिनवरगुणजिनदाशव खाणे।। एमुक्तिकाखाता हे ॥ क ॥ ४ ॥ इतिपदं ॥ ५ ॥ सरसनावसमकेतकोतजामो। कुगुरुसुमनराचारे॥पगसुबंधगमान घुघरा ॥ नर्कवीचमेनाचारे॥ जैनधर्मजगसाचारे॥१॥सुपवरूपिजी वनिजतेरा || लोनलगामालाचारे ॥ जपतपज्ञानध्यान नहीं दिलमे। खायखायतनमाचारे ॥ जै ॥ २ ॥ संजमसाटासीताईस सत्रे ॥ तुं कायरक्योंकाचारे || कहेजिनदासनावकरसुनजो ॥ सुधजिनवरकी वाचारे ॥ जै० ॥ ३ ॥ इतिपदं ॥२॥ For Personal & Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ बुटकस्तवन सज्जायो देख परारीत करावेहोसुरे ॥ जपीयानजाय जिनराज ॥ जीवमातों सुंरे || पूर्वपुयप सायन रतनलायोरे | आदेसरसरखादेव || दुर्लन पायारे ॥ तेत ज्यातिर्थंकरदेव || बीजानेजोवेरे ॥ ज्ञांनरतनकीगांठ ॥ समजविनखोवेरे ॥ जुवीजगतकी जोम ॥ जीवगेरिलेतोरे ॥ नर नवमेलागेखोम | चेतनचेतोरे || सुखदूखनाफल होए || करमकोंटा लोरे || समकितश्रवाकीरीत || रूमीपालोरे || युंसमजावेजिनदास || मनमोच्यापनोरे ॥ जिनराजनजनविनजाय ॥ जनमज्यं सुपनोरे ॥ तजुतजुभेन एकुगुरुकुं ॥ कनककांमनीधारी हे ॥ ज्ञांनध्यानकीवात नजाऐ || घ्यावकरमसुंनारी ॥ त ० ॥ १ ॥ करकोपीन ननूतन पेटी ॥ सीरपरजटावधारीह ॥ कांनफमामुद्रापेहरता || उनकेघरमेना हे || त० ॥ २ ॥ जागी होकरजीववणासे ॥ वेमदमांसाहारी ॥ कू मापंथी जगकुंकरता ॥ मुखस्तक हेयाचारी हे ॥ त० ॥ ३ ॥ केला गुलकुगुरुकाकंबल || साधन ही संसारी हे || आप डूबेन रकुडुबावे || 5 रगतकाच्यधिकारीहे ॥ त० ॥ ४ ॥ समकित श्रदाजैनधर्मकी || नही कु गुरुकुं प्यारी || जिनवर सुंजिनदास विनवे ॥ कुगुरु संगखवारी हे ॥ त ० ॥ || ५ || इतिपदं ॥ ४ ॥ नमुनमुमेगुरू निग्रंथकुं || वेजनमुदाधारिहे || पुल उपर प्रेमनकर ता || मनकीममतामारी || न० ॥ १ ॥ गरनगाल कर गुप तिगोपवे ॥ गतनिग्रंथकीन्यारीहे ॥ कनककांमनीकेनहीनोगी ॥ तेपुराब्रह्मचारी हे ॥ न० ॥ २ ॥ वेकाया केजीवनाथी ॥ उनकुंनिहितकारीहे ॥ करम काटकर केवलध्यावे || ज्ञानग्रंथ गुणनारीहे ॥ न० ॥ ३ ॥ सुधश्रधा सुंसुमतिसेवे ॥ निजच्यातमकुंतारी ॥ करजोमी जिनदास विनवे ॥ मे रीजिनचरसुंयारी | न० ॥ ४ ॥ इतिपदं ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए चेतन्यकर्मचरित्र अथपजुमणनोस्तवनलिख्यते सखीयाव्योनावमास ॥ धरमनोधारीरे || सकल परव सिरदार ॥ मुक्तिमगमोरीरे ॥१॥ इणदिनवधतेदान ॥ शीयल तपकीजेरे ॥ नाव भक्तिजिनपूज ॥ शिवफललाजेरे ॥ २॥ अगईदिनशान ॥ गुरुना मुखथीरे ॥ सुणी एकलपवखांण ॥ सोले सुस्वथीरे ॥ ३ ॥ प्रभावना बहुनांत ॥ संगनीनगतिरे ॥ कीजेचैत्यजुहार ॥ गुरुनीजुगतिरे ॥ ॥ ४ ॥ अमारघोष दिनआठ ॥ श्रावकपालरे ॥ पजुसण निराबाध॥ सुखसमालेरे ॥ ५ ॥ वलिखांमणामाहोमाहिं। संबसंकरिएरे ॥ सास यपर्वआराधी ॥ सासटासुखवरीएरे ॥ ६ ॥ धरिएंविवेकमनमांहि ॥ वीरजिनवाणारे ॥ सुणीटोत्रिकरणसुछ ॥ मलूकनावाणीरे ॥ ७ ॥ ॥अथश्रीचेतन्यअनेकर्मनोचरित्रलिख्यते ॥ ॥दोहा॥ श्रीजिनचरणप्रणामकरी ॥ नावनक्तिवरान ॥ चेतनअरुकबु कर्मको ॥ कहूंचरित्रबखान ॥१ ॥ सोवतमाहामिथ्यात्वमे ॥ चिहुंग तिसज्यापाय ॥ वित्योकाल अनादितिहां ॥ जग्योनचेतनराय ॥२॥ किटोकर्मपथमहिंतिहां ॥ जग्योपरमदटालाल बोसुघसम्यकदरश। तोमीमाहाअघजाल ॥३॥ देखेषष्टीपसारीके॥ निजपरनवकोआदि।। एमेरेसंगकौनहे ॥ जमसेल गेअनादि।। ४ ॥ तबसुबुधिबोलाचतुर॥सुनहो कंतसुजान ॥ एतेरेसंगअरीलगे ॥ माहासुनटबलबान ॥ ५ ॥ कहो सुबुधिक्याकीजीए ॥ एउसमनसबखेरी ॥ ऐसीकलाबतायतुं ॥ बहरन आवफेरी ॥६॥ कहेसबुझिएकसीखसुनि ॥ जोतुंमानेकंत ॥ केतूंध्या टास्वरूपनिज || केनजले नगवंत ॥ ७॥ सुनकेसीख सुबुछिकी ॥ चेत नपकरीमौन ॥ उनीकुबुद्धिरिसाटाके ॥ हुंकुल खंपनिकौन ॥७॥ मे For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्य कर्मचरित्र मोहक || व्याहीचेतनराय || कहोना यह कौन है || राखी किहूं ज़ुकाय || || तबचेतन हसीयों कहे ॥ अबतोसुनही नेह ॥ मनलागो यानारितुं || माहासुबुधिगुनगेह ॥ १० ॥ तबेकुबुधिरिसायके || गइपि ताकेपास ॥ याजपीयहमपर हरी ॥ तातेन श्नदास ॥ ११ ॥ ॥ चोपनी ढाल ॥ too तबेमोहनृपबोलैबैन ॥ सुनपूत्रि सिकाएकयेन ॥ तुमन मे मत है दिल गीर ॥ बांधीमगावतहूंतुमतीर ॥ १ ॥ तबभेज्यो एककामकुमार ॥ जोस बडतोमहेसीरदार ॥ कहोब चनतुममराजाय ॥ क्योंरेच्छं धा धर्मिथाय H ३ ॥ व्याहीतियं मे क्योंकूर ॥ कहांगयोतेरोबल सूर ॥ केतोपाय पमोतूमच्छाय ॥ केलरखेकी करहोसजाय || ३ || ऐसेबचनदूत अवधा रि ॥ आयो चेतन पास विचारि ॥ नृपकैवैनयेनसबकहे || सुनीकेचेत नरीसगहिरहे ॥ ४॥ अब हमलाकों पर सेनाहिं | निजबल राजकरेजग माहिं | जायकहो छापनेनृपपास ॥ बिनमेकरों तुम्हरोनास ॥ ५ ॥ तुम मनमेमत करोर्गुमान ॥ हमबहुहिंच्या विहसुजान ॥ करियावोच्य सवारी वेग ॥ मेंनीबांधीतुमपेतेग || ६ || ऐसेबचनसुनत विकराल ॥ दूतलखे यहकोप्योकाल ॥ उनसो तो जब व्हेहैरार ॥ तबलों मोहिनमारेमार ॥ ७ ॥ तवमनमेव्यहकियोविचार | अबके जोराखे किरतार || तो फिरइनकोना नंनलेनं ॥ चेतनकोपुरसबत जिदेनं ॥ ६ ॥ तबबोले चेतनराजांन ॥ जा होदुततमच्यपनेथांन ॥ फिरिमतच्याव होए हिपुरमाहिं ॥ देखच्ाबब चिहो फुनिनाहिं | ए || ॥ सोरठा ॥ पुतलयो प्रस्ताव ॥ मनमेतो आसीन हुती ॥ नलोबन्यो हदाव छायोराजामोहापैं ॥ १ ॥ कहेस बेसमुक्काय || बाताचेतनरायकी For Personal & Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र रए नमेनतुमकोंाय ॥ लरकोंहोंसानए ॥ २ ॥ सजिसजिसबहींसूर । अपनीअपनीफोजले ॥ आटोमोहहजूर।अबमोहचालिजीएं॥ ३ ॥ ॥चोपई॥ .. रागवेषवैवमेवजीर || महासुनटदलथंननवीर ॥ फोजमध्यडोकं सिरदार || इनकेपी सबपरिवार ॥ ५ ॥ ज्ञानावर्णबोलयोंबैन ॥ मोपेपं चजातिकेसैन || जिनेसबजीवकोटोजगजेरि ॥ राखेनवसागरमेघरि ॥ २ ॥ ग्यांननपरसबमेरेलोग ॥ तांहीतेनजगेन पटोग ॥ जानेनहीए . कअरुदोय ॥ सोमहीमांसबमेरीहोय ॥३॥ तवदरसणावरणयोंकहे ॥ जगकेजीवअंधव्हरहे॥सोसबहेमेरोपरसाद॥ नौरसवीरकरेतनमाद ॥४11 तबवेदनीबोलेधीर ॥ मोपेदोश्जातकवीर ॥ महासुनटजोधाबलसूरती यंकरकेरहेहजूर ॥ ५ ॥ नरजीवहेकेहीमात ॥ मेरीमहिमांजगविख्या त ॥ मोकुंचाहिंचिहूंगतीमाहिं ॥ मेनिनसुखद्यौबिनउखपाहिं ॥६॥थी कर्मबोलेबलवंत ॥ सिझविनासबमेरेजंत ॥ मेराखोत्यांलगेथिररहे । नहितोपंथगौनकीगहे॥७॥ मोपेंचारजातिकेसूर॥ तिनसोंजुधकरेकोन कूर ॥ चिहूंगतिमेंसबमेरेदास ॥ मेत्यागुंतबसिवपुरवास ॥॥ नामकर्म बोले गहिनार ॥ मोविनुकोनकरसंसार ॥ मैकरतापुदगल कोरूप ॥तां मेआयवसेचिदूप ॥ए॥ रतिवांनहोएमेरेसंग || रूपरसील हेबहरंग ॥ नसोंसरनरजोजिटाकरे ॥ तोननगंमेमरीअवतरे॥१०॥ गोत्रकर्मलेही असवार ॥ ऊंचनिचजिनकोपरिवार ॥ सुरवंसकोयहेसुनाव ॥.बिन मेरंककरेबिनुराव ॥ १५ ॥ अंतरायअपनोदल साज ॥ पंचसुनटदेखो महाराज ॥ सबके आगेएअसवार ॥ रणमयुधकौनिरधार ॥१२॥ क रहथीयारगहननहिदेहि ॥ चेतनकीसुधिसबहरीलेहि ॥ एसेसुनटएको वीस || तिनकेगुंणजाणेजगदीस ॥१३॥ इनके सुनट सातसिरदार ॥ पर दलगंजनवमेझार॥तवमोहरायअतीआणंदा।देखेसुनटजुरेसबवंद॥१४ For Personal & Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र अरिलबंद॥ . रागवेषः मित्रजियेतवबोलकें। तुमल्यावहूंमेरीफोजसर्वत्रैखोलके॥ घीसाठअसवारवमेसबसुरमा। अरोपैटोंचलेजाहेनदीयोपूरमां ॥१॥ रागषतिहांचले जिहांसबसूररहे। ल्याएतुरतबुलाएअनुएहहजुरहे ॥ त बबोले सुखबैनजीवकपरहमचढे।सुनिकेश्रवणनिशब्दसूरकेमनवढे॥२॥ फोजोंकिनीचारचढेविस्तारसों ॥निजसेवक सिरदारकियेनुजनारसों ॥ पहिलीफोजेसातसुनटआगेचले ॥उजीफोजेचारचारतेसबनले ॥३॥ वेदहांसातवसबचढेजिहांचेतनबसे॥ आएपूरकेपासनांगेकोधसे ॥चे तनकोगढजोरदेखीसबथरहरे ॥सातसुनटतबनिकसिंसबआगेअरे॥४॥ ॥दोहा॥ उदैजासुस सुधिमोहकी ॥ कहीजीवजाय ॥ कहारहेतुमबेटके ॥ फोजालागीआय ॥१॥ ॥सोरग ॥ लीनोझानबूलाय ॥ कहोमित्रक्याकिजीयें।। सुनिकेचेतनराट । चित्तचमक्योकीजेकहा ॥ १॥ तवबोल्योझान। इनसौतोल रियोंस हि। हरीयेश्नकोमांन ॥ अपनीफोजस जिकरि ॥ ॥ ॥चोपाई॥ - तवचेतनबोले मुखबीर ॥ तुमसें मेरेवमेवजीर ॥ तोमोकोंचिंत्ताकबु नाहिं । निश्चेराजकरंजगमांहिं ॥ १ ॥ इनफोजकरोतैयार ॥ स रखमेसंगलेहोउँकार ॥ तबेंज्ञांनसबसूरबूलाटा ॥ कहेहूंकमयोंचेतन राठा ॥ २ ॥ व्हैतैयारगहोहथियार ॥ कर्मसोंचबकरनीहेमार ॥ सुनी केसूरखूसीअतीनये | अंतरमुहूर्तमें सजीधये ॥ ३॥ ले हुंबुल्लाएझां नवजीर ॥कैसेसु नटबनेसबवीर ॥ तबेंझानदेखेसबसैन ॥ कौनकौन For Personal & Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र २०५ सूरातुमऐंन ॥ ४ ॥ प्रथमसुनावकहेमेंबीर ॥ मोनहिंलागेअरीकेतीर।। औरसुनोमोरीअरदास ॥ बिनमेकरोंगरिनकोंनास ॥ ५॥ तबसुनध्या नबोलेमुखबैन ॥ हूंकमतुमारेजीतोसैन ।। मोागेसबअरिनासजाहिं। सूरयदेखिज्योंतिमरपुलाहिं॥६॥ बोले चारित्रमाहाबलवंत।बिनमकरों अरिनकोअंत ॥ फूनिविवेकबोलेवलीसूर ॥ देखतमोहिंनसेमरिक्रूर ॥ ७ ॥ तबसंवेगबोलेकरिमांन ॥ अरीकुलअबकरोंघमसान ॥ तब उतमबोले समनान ॥ मेंजीतेवंकेगढरान ॥॥ तोअरीविपुरेहेकहिमा त ॥ तमसबचूरिकरोपरनात॥ बोलेवचनसंतोषरसाल ॥ मोआगेवेके हाकंगाल ॥ ए ॥ धीरजकदमोपैकासूर ॥ पल मेंकरोंअरिनचकचू र ॥ सत्तकहेसबनैमेजोर ॥ जीतोवैरीकरिनकठोर ॥ १० ॥ उपशम कहेअनेकप्रकार ॥ मैंजीतोवेरिसिरदार॥ दरसनकहेएकहीएवेरि ॥ जी' तोसकल अरिनकोंघेरि ॥११॥ आएदानशीलतपना ॥ नहचेविधि जाणेंजिनराज ॥ पारनपानाअपार॥हविधिसकलसजो सिरदार ॥ ॥ १२ ॥ तबेझानचेतनसुकही ॥ फोजतुंमारीयहबनिरही ॥ चैतनदे खेनैननिहार ॥ अबतोफौजनश्तैयार ॥१३॥ अबमेरेसबसूरअनंत॥ ल्यावहूंज्ञानहमारेमित्त ॥ सक्तिअनंतलसेनिजनैन ॥ देखोपनुतुमारि सैन ॥ १४॥ अनंतचतुष्टैचादिअपार ॥ सेन्यासवेनश्तैयार || जुरे सुनटसबअतिबलवंत ॥ गणतीपारनवेअंत ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ कहेझानचैतनसजो ॥ रोसकरेजिनरंच ॥ एकवातमुहिनपनी ॥ कहंविनापरपंच ॥ १ ॥ सुनीजीवकहेग्यानतुं । केसीनपजीवात ॥तु मतोमहासुबधिहो ॥ कहतेक्योसंकूचात ॥ २ ॥ तबवैज्ञाननिसंक व्है ॥ बोलेअनुसुबैन ॥ चाकरएकहनेजीयें। गहील्यावैसब सैन॥३॥ २६ For Personal & Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ चेतन्यकर्मचरित्र ॥सोरग॥ - कहाबिचारोमोह || जेहिन परतमचढतुहो॥नेजोसेवकसोह ॥ जी वतिलावेपकरिके ॥ १ ॥ कहेचेतनसुणझान ॥ उहिंघरयोपुराय के ॥ कहोयहकोनसयांन ॥ रहियेघरमेबैठके ॥ २ ॥ सूरहिंयहन हिरीत ॥ अरिआएघरमरहे ॥ कैहारेकैजीत ॥ जेसीव्हतैसीबने॥३॥ कहेझानसुनसूर ॥ तुंमजोंकझोसोसाचहै ॥ कहाबिचारोकूर ॥ जे हिंनपरतुमचढतुहै ॥ ४ ॥ ॥पक्षमीबंद ॥ तबजीवकहेटाहसुनहुंज्ञांन ॥ तुमलाटाकनाहीयहसयांन ॥ वह मिथ्यापूरकोहैनरेस ॥ जहिबेरेअपनोसकलदेस ॥१॥ जाकेसंगसूर हैअनेक ॥ अज्ञाननावसबगहेटेक ॥ रागरूक्षेषमंत्रीसरसेह ॥ क्षिण मेसबसेनाकरहिंजेह ॥ २ ॥ बसेसोगढजाकेअटुट ॥ विचमसीपाईहेज टाजुट ॥ विषयासीरानिजसुगेह ॥ सूतजाकेसूरकपाटाजेह ॥ ३ ॥ सेनापतिचारोहैअनंत ॥ जिहिंघरयोअवतपूरमहंत ॥ व्रतनामलीनेदे सच्चीन ॥ परमतहिंदोहाश्ायकीन ॥ ४ ॥ इहविधिघरेसबदेसजेह॥ चढिआयेफोजेल गीतेह ॥ तामेनृपआपअनंतजोर ॥ बलजासुनपारा बारबोर ॥५॥आयूधजाकेचमचक्रहाथ॥बहूधाराजासुंउपाधिसाथ॥ माहानागपास विद्याअनेक ॥ बंधसत्तरिकोमाकोमोटेक ॥ ६॥ बाणा दिकमहाकठोरभाव ॥ जेहिंलगेबचेनरिकराव ॥हविधिअनेकहथी यारधार ॥ कोहूनामकहतनहिलैपार ॥ ७॥ यहमोहमहाबलवंतनूप ॥ तुमग्याताजाणोसबसरूप ॥ कैसेकहोइनसोच्योजाटा ॥ तुमस्यानेहो यनचूकहूंदाय ॥ ७ ॥ ॥सोरग॥ तबबोलेंयोंज्ञान ॥ जीवतुमेसाचीकही ॥ मेरेमनग्नमांन ॥ तुम For Personal & Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र क्याजाणोवाईह ॥ १ ॥ कहेजीवसुनिमित्त ॥ मेवितकअपनोकहूं॥ तुंधर निश्वैचित्त ॥ सुनहोवातविस्तारसों ॥ २ ॥ ॥चोपाई॥ - एहीमोहनपमोहिनुलाय ॥ निजपुत्रीदिनीपरणाय ॥ ताकीयादिमो हिकबुनाहिं ॥ कालअनादिश्हविधिटाहिं ॥ १ ॥ मेरीसुधिबुधिसबह रिलई ॥ मोहिनसूरतिरंचकहनई ॥ एहिकीनोजीसेंनटकीस ॥ विवि घिस्वांगनाच्योनिसदीस ॥ २ ॥ चौरासीलदनामधराय ॥ दिनमेख गनर्कलेजाय ॥ दिनमेकरेमनुष्यतिरजंच ॥ लखेनजाहेजाकेपरपं च ॥ ३ ॥ जमपूरकोमुहिकीयोनरेस ॥ मेंजांस्योसबमारोदेस ॥ तब मेंपापकीटोएहसंग ॥ मानीमानीअपनेरसरंग ॥ ४ ॥ तबमेवस्योमोह केगेह ॥ तातेंसबविधिजान्योएह ॥ कहोकहालोबहूविस्तार ॥ थोमेमे ल खिले हुंविचार ॥ ५ ॥ ॥सोरग। तबबोले योंज्ञान ॥ यहपरमारथमेल ह्यो । अबतुमसुनहुँसुजांन।। एकहमारी विनती ॥ १ ॥ सेवकनेजोएक ॥ जेहजासोंबलवंतहे॥ तो रहेतुमारीटेक ॥ मेरेमनएसीवसे ॥ २ ॥ कहेजीवसुंणझान ॥ विना विचारेक्योंकहूं ॥ मोहमहाबलवान ॥ ताकीपछतकौनहै ॥ ३ ॥ ॥चोपाई॥ कहेझानसुनजीवनरेस ॥ तुमसमअवरनकोराजेस ॥ सुखसमाधि पुरदेस विशाल ॥अनयनामगढअतिहिरसाल || १ तासदावसोतु मनाथ ॥ निसदिनराजकरोहितसाथ ॥ सुमतीआदिपट्टरांणीसात ॥सु बुषिकरुणादमाविख्यात ॥ २ ॥ निजरदोधारणाएक ॥सातआदित्र रुसषिअनेक ॥ बंधवजीहांधरमसेंधार ॥अध्यातमसेंसुतवमवार॥३॥ For Personal & Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ चेतन्यकर्मचरित्र मित्रशांतरसबसेसुपास ॥ निजगुणमहेल सदासुखवास ॥ ऐसेराज करोतुमईस || सुखअनंतविल सोजगदीस ॥४॥ तुमपेंसूरसैनहैजोर ॥ तिनकोपारनहीकोहुनर || तुमअपनेपुरथिरव्हैरहो ।वचनहमारोसत्य सरदहो ॥ ५ ॥ आग्याकरहोंएकजनकोय ॥ सजिसेन्यावहयागेहो य ॥ कहेसोजीवसुनहोतुमझान ॥ तुमारेवचनहमहैपरमान ॥ ६ ॥ हमग्याटाहतुमकोंकरी ॥ लेहोमूहूरतअतिसुनघरी ॥चढहोकर्मस जिहथियार || सूरवमेसबतुमारीलार ॥७॥हमतुममेंकबुंअतंरनाहिं। तुमहममेंहमहैतुममांहि॥जैसेसूरतेजदूतिधरे। तेजसकल सूर्यतिकरे॥ ॥ ७ ॥ एहि विधिहमतुमपरमसनेह ॥ कहतनल हिएंगुणकोह ॥ ज्ञान कहेअनुसुनएकबैन ॥ सिष्यामोहदिजियैन ॥ ॥ तुमतोसबविध होगुननरे ॥ अरियनसोंकबहूनहिलरे ॥ तातेतुमहोन हुसियार ॥ जु एवमेयरिसों निरधार ॥ 10॥ ॥वेसरीबंद॥ ग्यानकहेविनतीसुनस्वामी ॥ तुमतोसबकेअतंरजामी ॥ कहानयो मेनकरीरार ॥ अबदेखोमेरीतरवार ॥ १ ॥ वैसबदुष्टमहाअपराधी ॥ उनकीकलासबमेलाधी ॥ मेरेमनअचरजयहझान पैमेजानोतुमबल वान ॥ २ ॥ ॥दोहा॥ झानकहेचेतनसुनो ॥ तुमहोमेरेनाथ ॥ कहाबिचारोकूरवह ॥ ग हिमारोएकहाथ ॥ तबचेतनऐसेकहे ॥ जीततुमारीहोय ॥ मारिनजा वोमोहको || राँगोषअरिदोटा ॥ २ ॥ ॥ कमखाबंद ॥ चम्योज्ञानगंनीरदलवीरहुँसंगलै ॥ एकतेएकसबसरससूरा ॥ को टिअरुसंखनपारकोकगने ॥ ज्ञानकेनेददलसबलपूरा ॥ १ ॥ सिपर For Personal & Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैतन्यकर्मचरित्र २०५ सीलार सिरदारभयांनेदनृप । अरिदल करीयहविरुदत्लीनो || हाथ हथियारगुणधार विस्तारमे || पहेरिढनावयहसिल हकीनो ॥ सि० ॥ || २ || चढतसबीरमनधीर सवार है || देखि रिटयनको माननंजे ॥ पेषिजैवंतजी नवं दसबही कहे || आजपरदलन कों सही गंजे ॥ सि० ॥ ३ ॥ च्यति हिच्यानंदनरवीरन मंगसब ॥ याजहमनिमनकोदावपायो || जु धएसोकरेदेखि थरहरे ॥ होयहमनाम दिनदिनसबायो ॥ सि० ॥ ४ ॥ ॥मरदवीबंद ॥ बज्जहिंर एतूरें दल बहुपुरे चेतनगुंलगावंत ॥ सूरतन जग्गेकोउन नग्गो अरिदलपैधावंत ॥ ऐसेस बसू रेज्ञान च्यं कूरे च्या एसनमुखजेह ॥ छापां बलमंमेच्ारिदल खंमे पुरुषतनके गेह ॥ १ ॥ ॥ दोहा ॥ विवेकनाम एक डुतकों ॥ लीनोग्यानबलाय || जायकहोवामोह सौं | नलोचहेतोजाय ॥ १ ॥ जोकबहूंटेढोबके ॥ तोतुमदेजो सूंस ॥ धिग् धिग्तोजन्मकों || जोकबुराखेहुंस ॥ २ ॥ तेरोबल जेतोच लै ॥ ततोकर जोर ॥ वेचाकरसबजीवके ॥ बिनमेकरहिंनोर ॥ ३ ॥ ग्या ननलाईजालिके ॥ मेपठयो तुम्हपास | चेतनको पूरबांमिदे || जोजी वनकी आस || ४ ॥ ॥ सोरठा ॥ चल्यो विवेक कुमार || छायोराजामोह || कोवचनविस्तार ॥ नलोच हेतौनाजियों ॥ १ ॥ सुनकैवचनहतास ॥ कोप्यो मोहमहाब ली ॥ बिनमैकरहूंना || मोागेतुमहो कहा ॥ २ ॥ ॥ दोहा ॥ एकही ग्यानावर्णिने ॥ तुमसबकीनेजेर ॥ इतनीलाजनच्यावहिं ॥ - मुखदेखावहाफेर ॥ १ ॥ कालानंतह कित रहे || सोतुमकर होवि For Personal & Private Use Only . Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ चेतन्य कर्मचरित्र चार || अब तुममे कुमत नई | लखेकुंतैयार ॥ २ ॥ चौरासीलप स्वांगमें ॥ क्यौनाचतहौनाच ॥ वादिनपुरषत्त कितगयो || मोहेकहो तुमसाच ॥ ३ ॥ एकें जियादिकच्यादिदे ॥ कौनकहावतपांच ॥ काके नावविकातिहो || मोहेकहोतुमसाच ॥ ४ ॥ इतनेदिनलौपाल के ॥ मैतुम किनोपुष्ट | तातेंल रेखेकों नये || गुल्लोपीमहादुष्ट || ५ || जा पास || चैतनकेगुएजेह || मोकोमुषनदिषावहो | बिनमे करुहोखेह ॥ ६ ॥ मोहवचन एसेंश्रवें ॥ सुनिकै चल्यो विवेक ॥ या योराजाज्ञानपें ॥ कही बात सबएक ॥ ७ ॥ वहक्योंही नाजेनही ॥ ग हिवेोयहटेक || लरियैफोजेजोरकै ॥ बोले त विवेक ॥ छ ॥ इतव चनसुनकेहस्यो || ग्यानवल]] रमाहिं ॥ देखो थितिपुरीनई ॥ क्योंहीमा नेनाहि || ५ || लेहोसुनटतुमवेगदे || व्रतपुरा निरांम ॥ रहोपूरव्ह बेरिकें ॥ मेटोवांकौनाम ॥ १० ॥ चढीसैनसबग्यानकी ॥ सुरवीरबल वंत || यागेंसेनानी नयो || महाविवेकमहंत ॥ १२ ॥ ॥ कमखाबंद ॥ ' छाट्यसनमुख नयेमोहकी फोजसों ॥ निमनकेमतेसब सूरगाढे ॥ देखि तमोहयतिको हमनमेंकीयो || असुनदल कारिरहे च्यापुवाढे ॥ २ ॥ सूर बलवंतमहामोहकेंनिकसिसब || सैनकोंसाजच्या ज्युच्याए || मारियम सांनमाहाजुधबहूरूधकरि || एकसएकसातोंसवाए ॥ सू० ॥ २ ॥ वीरवि वेकनेधनुषले ध्यानको || मारिके सुभटसातों गिराए ॥ कुमुखजोग्यान कीसेनसबसंगधसि ॥ मोहके सुनटमुर्खासमाए ॥ सू० ॥ ३ ॥ देखियह जुछतबमोहनाग्योतहां ॥ यत्रतपूरसबसूरजारे ॥ बांधिकरिमोरचेब हूरीसनमुखनयो || जरनकी होंसनकरेनिहारे ॥ सू० ॥ ४ ॥ ॥ चोपई ॥ एहिविधिमोहजोरसबसैन || देसनतपुरपठोऐन || करे माहानानाप्र For Personal & Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र कार ॥किहि विधिव्योंअव्रतपूरसार ॥१॥ सुनटसाततिनकोउखकरे ॥ तिनविनुंआजनिकसकोंबरे ॥ जोहोवेतेसूरषधांन॥तोलेतेअव्रतपूरथां न ॥ २ ॥ एसेंबचनमोहनृपकहे ॥ रागक्षेषतबअतितरचहे ॥ हाहाप नुएसेक्योंकहो॥ एकहमारीसिदालहो ॥३॥ सुनटतुम्हारेअरुबहुवीर। तिनमेजानहुंसाहसघार ॥ तिनकोंआग्यापनुजीदेहुं ॥ एहिविधिअब तपुरतुमलेहूं ॥४॥ तबेमोहनृपबीराधरे ॥ कौनसुनटआगव्हेल रे॥ त बबोलेअप्रत्याख्यान | मेजीयोअबकेंदल ग्यान ॥ ५ ॥ कहेमोहन पकिहिविधिवीर ॥ मोहिबतावोसाहसधीर ॥ बोले अपात्याख्यानप्रका स ॥ सुनहोषनुमेरीअरदास ॥६॥ मेंअव्रतपूरमेंबिपीजा ॥ चैतनन्या नवसेतिहांग ॥ संगलेसबअपनेलोग ॥ नानाविधिपरकासोनोग। उनकेउपसमवेदकनाव ॥ टोपसमवसुनेदल खाव ॥इनकथिरताबहू कबुनाहि ॥ बिनसमकितबिनमिथ्यामाहिं ॥ ७ ॥ ख्याएकएकमहाजे जोर ॥ पहिलोप्रगटेन हिनहितोर ॥ तोलौदेखोमेक्याकरोंव्रतके नाव सरवथाहरों ॥ ॥ अवतमेन पसमहटिजाटा ॥ जिवकरेपापपून्यमनला य॥ तबव्हमगनहोयटाहसंग ॥ जीतीले वहसरवंग ॥ ए ॥ इहविधि जीयोपरदल जाटा ॥ जोमुहिंाग्यादीजेराटा॥ तवमोहनृपचिंतेसही। यहतोवातनलाइनकही ॥१७॥ सिधिकरहुंतुमअपत्याख्यान ॥ लेहो सूरसंगजेबलवान॥ हिविधआटोपूरकेमाहिं ॥ न्यानीविनुजानेकोक नाहिं ॥१५॥ निजविद्यापरकासेसही ॥ नानाविधिकोधादिकल ही ॥ ताकेंनेदअनेकप्रकार ॥ कॉलोंकहीटोंबहुविस्तार ॥ १२॥ . ॥दोहा॥ एहविधिसबहिसनले ॥ आटोअप्रत्याखान ॥ अव्रतपूरमपविके॥ करेव्रतकीहांन ॥ १॥ ताकेपीजे मोहनर ॥ आदोसबदल जोर ॥ महा For Personal & Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ चेतन्यकर्मचरित्र सुनटसंगसूरले ॥ चढ्योमुमुबमरोल ॥२॥ कुमनजासुसबूलाटाके। कहेमोहनृपबात ॥ तुमसुधल्यावोवेगदे ॥ कहांसुनटवेसात ॥ ३ ॥ कुमनखवरपल मेदश् ॥ वेमुर्बितननपास || कबु विद्याकिजेश्हां॥ जोवे लहेप्रकास ॥ ४॥ मोहकरे विद्याविविध ॥ रागपिलसंग ॥ जनमेक जीयतिनयें ॥ कबुरहेमुरबितअंग ॥ ५॥ सुमनजासूससबग्यानपें ॥क हीमोहकीबात ॥ कहारहेतुमबेविके ॥ सुनटजीवावतसात ॥६॥ जोवे सातजियेकहुं ॥ तोतुमसुनिहोवात ॥ चेतनकेयेसुनटकों ॥ करिहेंपल मेघात ॥ ७ ॥ अरुमोहफोजेजोरिके ॥ आटोकरीधनीमान ॥ तुम होआपनेनाथकों ॥ खबरपदावोग्यान || 5 ॥ तवग्याननिजनाथपें ।। ज्योसम्यकवेग ॥ कहोवधाईजीतकी ॥ औरुयहबहुरिनदेग ॥ ५ ॥ बहुरि मिले वैऽष्टसब ॥ आएपूरकेमाहिं ॥ लरवेंकीमनसाकरे ॥ भागन कीबुधिनाहिं ॥ १० ॥ इहविधिसम्यकनावते॥ सबकहीजीवजाय ॥ सुनिकेप्रबलपचंमअति ॥ चढ्योज्युंचेतनराय॥११॥ महासुनटबल वंतअति ॥ चढ्योकटकदल जोर ॥ गुनअनंत सबसंगहुए ॥ कर्मद हनकीओर ॥१॥ आटामिलेसबग्यानकों ॥ किनोएक विचार ॥ अ बकेयूधएसोकरुं ॥ बहुरिनवंचेगमार ॥ १३ ॥ चढेसुनटसबजुधकों ॥ सुरवीरबलवंत ॥ आएअंतरभुमीमाहि ॥ चेतनदल सुंअनंत ॥१४॥ . ॥सोरग ॥ रोपिमहारणथं न ॥ चेतनधर्मसुध्यानकों ॥ देखतल गहिंगचंग ॥ मदनमोहकाफौजकों॥ १ ॥ ॥दोहा॥ दोकदल सनमुखनए ॥ मच्योमहासंग्राम ॥ इतचेतनजोधाबहु ॥ तनतेंमोहनृपनाम ॥ १ ॥ For Personal & Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र २०॥ ॥कमखाबंद॥ मोहकीफोजसोनाल गोलेंचले ॥ आयचेतनकेदलहिलागे ॥ आ उमददोषसम्यक्त केंजेकहें ॥ तेश्अबतमेंमोहदागे ॥मो॥१॥ जीवकी फोज सोंप्रबल गोलेचले ॥ मोहकेदलनकोंटामारे ॥ अवैरागता भावबहुनावता ।। ताहिंप्रतिनामऐसोविचारे ॥ मो० ॥२ ॥ बहुरीपुनि जारेकरीअतिहिंबनघोरकर। ॥ मोहनपचंबानेचलावे ॥दोषषटआ यतनअतिहिंनपजायचन॥जीवकीफौजसनमुखवगावे॥मो० ॥ ३॥ हंस कीफौजतेंबानघमसांनकें॥गाजतेवाजतेचलेंगाढे ॥मोहकीफोजकोंमा रिहल काकरे॥हेयन पादेनकेनावकाढे ॥जी० ॥ ४ ॥ अष्टमदगजनके हलकारिदेमोहकें। सुनट सहेबंधसबधस तसूरें ॥ एकतेएकजोधामहानिम तहे ॥ अतिहिंबलवंतमेंमतपूरें ॥ जी० ॥ ५ ॥ जीवकीफोजतेंसत्त परतीतकें ॥ गजनकेपूंजबहूधसतमातें ॥ मारकेमोहकीफोजकोंपल कमें ॥ करतबमसांनमेमंतातें || जी०॥६॥ मारगाढामसूनटको ननांबचें ॥ घान बितुखारबिंहुंदल नमाहि॥ एकतेएकजोधादोकदल न में ॥ कहतकबुन पमाबनतनाहिं ॥ जी० ॥ ७॥ सातजेसुनटपहिले मुरब तनए ॥ मोहनमंत्रकरसबजीवाए ॥ आयश्हजुधमें तिनहुँबहुरुप करि ॥ जीवोंजीतिपाहटाए ॥ मो० ॥ ७॥ मिश्रसास्वादानहिं फरसिमिथ्यातमहि ॥ न मंगकेबहूरिअवतहिंछाटो ॥ मारिघमसान वसानआयतुरत ॥ सातमेंकबुझएनपायो ॥ मो० ॥ ए ॥ ॥सारा॥ हविधचेतनराय ॥ जुधकरतुहेमोहसों || नरसूनहोअधिकाय ।। अबसुपरस्परनिम्तहे ॥ ५ ॥ ॥ मरहीबंद ॥ रणसिंगवऊहिंकोन न नऊहिंकिरहिंमहादोऊजुध ॥इतजीवहकारेंनि ૨૭ For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० चेतन्यकर्मचरित्र जपरीवारेंकरहोंअरीयनकोंरुध ॥ तमोहचलावेसबदलधावेचेतनप करोंआज॥हि विधिदोकदल मेंकल नहिंपल मेंकरहीअनेकश्लाज।।२।। ॥ चोपाई॥ मोहसरागनावकेबांन ॥ मारेंखोंचजीवकोंतांन ॥ जीव सुवीतराग नीजपाय ॥ मारेधनुषबांनइहन्याय ॥ १ ॥ तबमोहनृपषमगप्रहार॥ मारेपापपूण्य धार ॥ हंससुझवेदेनिजरूप ॥ वहीषमगमारेअरिनूप ।। २ ॥ मोहचकलैारतिध्यान || मारेचेतनकुंपहिचान ॥ जीवसुध्या नधर्मकोओट || आपबंचायकरेपरचोट ॥ ३ ॥ मोहरुबरजगही लेय ॥ चेतनसनमुखघानसुदेय ॥ हंसदयाल नावकाढाल || निज हिबंचायकरेपरकाल ॥ ४ ॥ मोहमविवेकगहेंजबमाढि ॥ घानकरे चैतनपरगाढि ॥ चैतनलेंजबधरिसुविवेक ॥ मारिहरेवैरीन किटेक ।। ॥ ५ ॥ चेतनदाटकचक्रप्रधान ॥ वैरिनेमारिकरेघमसान॥ अप्रत्या ख्यानमुर्बितनए ॥ मोहहारपीले हटगए॥ ६॥ जीत्याचैतननयोआनं द ॥ वाजें शुनवाजें सुखकंद ॥ आयमिले व्रतपूरकेलोग ॥ दंसणप्रति माआदिसंयोग ॥ ७॥ व्रतप्रतिझाउजोनाव ॥ त्रिजोमिल्योसामायक राव ॥ पोसहबतचोथोबलवंत ॥ त्यागसचितव्रतपंचमहंत॥ ॥ षष्ट मब्रह्मचर्यदिनराय || सप्तमनिसीदिनसील कहाय ॥ अष्टमपापारननि वार ॥ नोमों दिसिपरीगाहपरीहार ॥ ए॥ किंचितग्राहीपरमप्रधान ॥ महासुबुधागुनस्तनिधान ॥ दसमोपापरहिततपदेस | एकादसमनबन तजिनेस ॥१०॥ प्रामुकलें आहारसोंजैन ॥ नमविहारीकहीयेंऐन॥ एएकादस नूपअनुप ॥ आटामिले श्रावककेरूप ॥१६॥ चैतनसबसोंक रेजुहार ॥ परमधरमधनधारनहार॥ निजबल हंसकरेआनंद ॥ परमद यालमाहासुखकंद ॥ १२ ॥ For Personal & Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र ॥दोहा॥ हविधिचैतनजीतिकें ॥ आटोव्रतपुरमांहि ॥ आझाश्रीजिनदेव . की ॥ ताकुंविराधेनांहि ॥ ५ ॥ ज्युंज्युंथांनककाजके ॥ कोनेसबवि घिआय ॥ अब नावेवैराग्यता ॥ सूनहूंनवीकमनलाय ॥ २ ॥ ॥ढालमननमरानी॥ पंचमहाव्रतमनधरो ॥ सुनोप्राणारे॥गंमीग्रहस्थावास ॥ आजसुनो पानीरे। काल अनंतोसंसारमें।।सुपथैनम्योमोहनोदास। ० ॥१॥ ते मिथ्यातदसाविषे ॥ सु० ॥ कोनेपापअनंग ॥ ७॥ नवअनंतमेंजेकि ए ॥सु० ॥ रागवेषपरसंग ॥आ० ॥ २ ॥ग्याननेकुंतोकोंनहीं।। सु० ॥ तबकिनेबहुपाप आ० ॥ तेउःखतोकुंदेहें। सु० ॥ तेंचूकोअबआ प॥आ० ॥३॥ तेंअव्रतमेजोकीए । सु० ॥ व्रतविनाब हूपाटा ॥०॥ देसविरत्तमेंपांच में ॥ सु० ॥ थावरहिंसाताया था ॥ ४ ॥ कियेंकर्म तेंअतिघने ॥ सु० ॥ क्यूंनुगतेंविनुजाय ॥ आ० ॥ मोहमहांतहित ते किटों ॥ सु० ॥ तेतोकुंछःखदेय ॥ आ॥ ॥ ५॥जेहिजीवमोहनिवारी यो ।सु० ॥ तिहिपायोअनंद !षा० ॥ मनवचकायाजोगसों ॥सु०॥ तेकीएबहूविंद ॥ आ० ॥ ६ ॥ तेनुगतेविनुक्यूंमिटें || सु० ॥ जेबांधे ते आप ॥ आo || जोतुंसंयमादरें।सु० ॥ करेतपस्याजाप ॥आ॥ ॥ ७ ॥ तोसबक खपाटके ॥ सु० ॥ पांचेपरमसमाहिं ॥ ० ॥ पू र्वबांधेकर्मते || सु ० ॥ सबजिनमेंख पिजाहिं ॥आ. ॥ ७ ॥ एहविधि भावनानावतें ॥ सु० ॥ आटोअतीवैराग । आ० ॥ जीवचाहेंसंज मगहों ॥ सु० ॥ अबेंकोनविधिजाग ॥आ० ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ जायचाहेंसंयमगहों ॥ मोहलेननहोदेय ॥ बेटोआगेरोककें ॥ प रमतपूरमेंजेट ॥।॥ सुनटसौप्रत्याखांनकों ॥ करीकेआगेवान ॥ For Personal & Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ चेतन्यकर्मचरित्र बेटोघाटोरोककें ॥ मोहमहाअग्यान ॥ २ ॥ केश्चाकरजोरजे ॥ ने . जेव्रतहिं बिपाय॥ ते चैतनकेदलनमें ॥ निस दिनरहेंलुकाटा ॥३॥ कब हुंप्रगढहोहिकडं || कबहूंकबहूंबिपाहिं ॥ एहविधसैनामोहकी ॥ रहे सुंएहिदलमाहिं ॥ ४ ॥ ॥चोपाई॥ मोहस कल दल सोंपूरबार ॥ आयथावोसंगलें परिवार ॥ चैतनदेस विरतपूरमाहि ॥ आगेपानधरेंकडूंनाहि ॥१॥ मोहकीएपरपंचअनेक॥ अहोवेकोंगहीबेठोटेक ॥ जोचेतनापूरमांहें ॥ तोराखूगहिकेंनिज पाहें ॥ २ ॥ बहूरिननिकसनबिनएकदेवं ॥मारिमिथ्यात्ववैरनिजले । हिचेतनमोसुजुकरें ॥जोधावें अवकेंकरतरें ॥ ३॥ तोकिरियाकोंजेसें करों। सुधिबुघिसकतिसबेपरिहरी। उहविधिमोहदगाकीबात॥रचनाकरे अनेकविख्यात ॥ ४ ॥सुमनखबरसबजीवकोंदई। एकवात सुनहोपनुनई।। मोहरचेंफंदबहूजाल ॥ तुममतनुल होदीनदयाल ॥ ५ ॥ अबकेंजोपकरे गोतोंहि। तो फिरदोसनदेजोमोहि ॥मेसबखबरनाथतुमदई ॥ जैसीकबुह कीगतनई ॥ ६॥ तवहंसहपूरकोपंथ ॥चल्योउल्लंत्रिमहा निग्रंथ।। अ प्रमत्तपुरकीलाह ॥ जे हिमारगेपथिकबहूंसाह || ७ ॥ रोकेआयसु पत्याख्यान ॥ जुवकरेबिनुदेचनजान ॥ चैतनकहेजान सम्र ॥ बिनमेंमारिकरुंचकचूर ॥ ७ ॥ तबजोरनानाविधिकरे ॥ चैतनसनमु खव्हेनेलरे ॥ चैतनध्यानधनुष्यकरलेई ॥ मुर्बितकरिआगेपगर्देई ।। ए ॥ गैरयोप्रत्याख्यानकुमार ॥ चैतनपहुच्यौसत्तमहार ॥ मोहकहें देखोरेंजोर ॥ अहतोकियोटातु हेनोर ॥ १० ॥ पकरहुँसु नटदोरिय जाय ॥ ल्याबोपक रिवंगमुहिंपाटा ॥ चव्यासुधर्मरागबलबीर ॥ विक थावचन उसरोधार ॥ ११ ॥ निशविषटाक घाटामपंच ॥ पकरिहंस लेआएपंच ॥ चैतनदेखेटाहकहानई ॥ मोहिपकरले आई ॥१२॥ For Personal & Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र २१३ यहपरमत्तदेस हेंसही ॥ मोकुसुमनअगान कही ॥ अबकबुएसोंकिजें काज ॥ जासुंहोश्अप्रमत्तराज ॥ १३ ॥ सत्ताईसमूल गुनधरें ॥ बारहनेदतपस्या करें ॥ सहेपरीसवीसअरुदोय ॥न नटादयापालें मुनि सोय ॥ १४ ॥ इहविधिलेंअप्रमतराटा ॥ तबमोहनिजदासपगटा ॥ पकरिमंगावेकरिबहूमांन ॥ तव हंसचिंतेनिजग्यान ॥ १५ ॥ यहतामो हकरेबहूजोर ॥ मोरहननदेवं हिंदौर ॥ अबदाकोंमें निष्टित करों ॥ अप्रमत्तमेंतवपगधरों ॥ १६ ॥ तवहंसथिरताअन्यास ॥ किधिध्यान अगनिपरगास || जारीसकतिमोहकीकई ॥ महाजोरतेनिरबल नई ।। १७ ॥ हंसल मेंनिजबलपरगास ॥ कानोअप्रमत्तपुरवास ॥ सुभटती नमोहकाटरे॥ अरुपरमादसवेंअपहरें ॥१७॥तज्योआहार विहार विला स ॥ प्रथमकरण कीनोअन्यास ॥ सत्तमपूरके अतीअनूप | करेकर्ण चारित्रसरूप ॥ १७ ॥ आयसंगमोहदललेय ॥ वेकबुजोरचले नही जेय॥अवनिअष्टमपूरपगधरे॥मोहसंगगुप्तीअनुसरे ॥ २०॥ करेकरणचै तनहतानं ॥ उजोकझोअपूरवनावं ॥जेकबहूनहिनयेपरिणाम॥तेएहिप गटेअष्टमनाम ॥ २५ ॥ अबचैतननोंमेपूरआटा ॥ जामेथिरताबहूत कहाटा ॥ पूरवनावचलहिजेकही । तेइहथानकहाले नहीं ॥ २२ ॥ हविधिकरणतीसरोकरे ॥ तबमोहनृपचिताधरे ॥ इहतोजीतीसिवपूर जाय ॥ मेरोजोरनकबुवसाय ॥ २३ ॥ ॥दोहा॥ मोहसैनसबजोरिकें ॥ कीनोएकविचार॥ परगट नोबनेनही । य हमारेंनिरधार ॥ १ ॥ तातेसुनटलुकायतुम || रहोपूरनकेंमाहिं ॥जो कबहूंआवंदाव में || तोतुमत जीयोनाहिं॥ २ ॥ मेरहूंसकतिबिपायके । रहेंउरलोंजाय ॥ जोजीव तुमचहेंकहूं ॥ तोतुममिलिहाय॥ ३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ चेतन्यकर्मचरित्र नगरनामनपशांतपूर॥ तहांलोमेरोजोर ॥ जोआहेमादावमें ॥ तोमेक रहूंसोर ॥ ४ ॥ तुमहसबजनदौरिकें ॥ आटामिलोंगेधाय ॥ तबए हसहिपकरिके ॥ देहेंनलीसजाय ॥ ५ ॥ इहबिचारसबसें नसों ॥ की नोमोहनरेस ॥ रहोगुप्तदबिदबिसवें ॥ करीकरीनपसमनेस॥ ६ ॥ ॥चौपाई॥ चैतनचरचलायेबहूनर ॥ पकरे मूढमोहकेचोर ॥ जनबत्तीसग हतत काल ॥ मुर्जितिकरचल्योदिनदयाल ॥ १॥ सुदमसंपरायकेदेस।। आयकीयोचेतनपरवेस ॥ तेहथानकएकलोनकुमार ॥ जातिकियोमू बित तिनवार | २ || आगेपाननिसंकितधरें।अबवेरीमोसुकोलरे ॥ में जीतेसबकमकवोर ॥ हविधरयो निसंकितजोर ॥ ३ ॥ जोनपसांत मोहकेदेश ॥ हठमांहिकानोपरवेस ॥ तबेजुंमोहजोरनिजकरें ॥ चेतनप करिनल टइति गिरें ॥ ४ ॥ आएसुनटमोहकेदोरि ॥ मूर्चितलिपेरहेंजि हिंतोरि ॥ पकरिहंस मिथ्यापूरमाहिं ॥ ल्याटोकूरसबेंगहिबाहिं ॥ ५ ॥ इहानकबुनिहिचैरहवात ॥ उतकिष्टेक हिंटातविख्यात॥ औरोंथानिक हेंबहुज हां। चेतनाटावसतहेंतहां ॥६॥ उपसमसमकितजाकोंहोय॥ मिथ्यापूरलोंआवेसोय॥ ख्यायकसम्यक्वंतकदाच ॥उपसमश्रेणिचढे जोराच ॥ ७ ॥ तोवहचोथोपुरलोआटा । गिरतेरहेंइहांव्हराय ॥ औरथांनकन परगहें ।। दोनसम्यक्वंतजुरहें ॥ ७॥ अबमिथ्यापुरमें: खदेटा ॥ मोहबलीवेतनकोंजेटा ॥ नानावि विधसंकट अन्यानः। सहे परीसहयहगुनवान ॥॥ पंच मिथ्यात्वनेदविस्तार ॥ कहतन मूरगुरपा वहिंपार ॥ सादिमिथ्यातनांमजियल हें ॥ ताकेंनदैकौनपुःख स हें ॥ ॥ ५ ॥ सोंःखजांनचेतनराम ॥ केजानेकेवल गुणधाम ॥ कहतनल हिंयैपारावार || ःखसमुश्यतिअगमअपार ॥ ११ ॥ एहि विधिसही कर्मकीमार ||अबचेतननिजकरेसनाल॥ व्यक्षेत्र सुकाल नौ नाव ॥ For Personal & Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र २१५ पंचहूंमिलेबन्योसबदाव॥१२॥ ( दोहा ॥ ध्यानसुंथिरताराषिके ॥ नमसोंक झोविचार || संगतिउनकीत्यागीएं। जोतुंथिरव्हेयार ॥ १ ॥ ॥ ढालमननमरानी ॥ ___ माया मिथ्याअग्रसों ॥ मनभाईरे || तीन्योसल्लनिवार ॥ चेतनमन नाईरे ॥ कोधमानमाटातजो ॥ म ० ॥ लोनसबेपरिहार ॥ चे ॥१॥ कूतीयहसबसंपदा ॥ म ० ॥ कूठेसबपरिवार ॥ ॥ काटाकार मी ॥ म ० ॥ कूतोश्नसोंप्यार ॥चे ॥ २ ॥ एबिनौनपजे मिटे ॥म ० तुंअवनासिब्रह्म ॥ चे० ॥ काल अनंत हूंःखदयों ॥म ॥ एहीमोहम दब्रह्म ॥चे ॥३॥ सात नरकमेतुंबसें ॥म || वारअनंतीआय॥चे। ताकीवेदनकोंकहे ॥म ॥ जानेंश्रीजिनराठा ॥चे ॥ ४ ॥ जेतोकों सुमरनकहुं ॥म०॥ आवरंचकएव॥चें ॥ तोकबहूंनसंसारमे ॥म ॥ तुमविषयसुखसेव ॥चे॥५॥ कोंकहेकथानिगोदक।।म०॥ ताकेउख कोंपार ॥ ॥काल अनंतातेसहो॥म ॥ उःखअनंतीवार॥चे ॥६॥ देवापुनितेंधरयो ॥म | तामें उखबहुतोय ॥चे || लोनमहामु ख्यहेंजहां ॥म ॥ प्रगटविरहऽख होय ॥चे० ॥ ७॥ दुखमहाबहुमा नसी ॥म ॥ देखेअनविनूत ॥चे ॥ तिथंच गतीमेंतुफिरयो ।म संकट सहेबहूत ॥चे ॥ ७॥ अविवेकाकारिजकीयो ॥म ॥ बापा पविख्यात ॥चे०॥ नरदेपाश्कहूं।म ० ॥ सेवेपंचमिथ्यात॥चे॥ए॥ बहुकारज कौनौसरयो ।म ॥ जनमगमायोदुख॥चे ॥त्रमतवमतसं सारमे।म ० ॥ कहुंनपायोसुख ॥चे ॥१०॥ अबकेंजोतोकोनई॥म० कलुआतमपरतीत ॥चे०॥ धारलें हुं निजसंपदा ॥म० ॥ दरसनग्यानमुं वृत ॥चे ॥११॥ सकलबमजाल हे ॥म ० ॥ तत्वगहेनिजकाज॥ चे॥ सुखअनंतयामेवसे ॥म ॥ निजातमकराज ॥चे ॥१२॥ सिघसमानसुंछदहे । म ० ॥ निश्चेदृष्टिनिहारि ॥चे० ॥ इह विधभातमसं पदा ॥म ० ॥ ल हेतुमनअवधारि ॥चे ॥१३॥ For Personal & Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र ॥दोहा॥ शहविधिनावसुनावते ॥ पाटोपरमाणंद । सम्यकदर्शसुहावनो ॥ल सोसुआतमचंद ॥१॥ ख्याटाकनावपरगट नयें ॥ महासुनटबलवंत॥ कोनोज हिबिनएकमे ॥ सुनटसात कोअंत ॥ २ ॥ मोहत के निर्मल न यो । अबकेकबुविप्रित ॥ मेरे सुनटसिथल नये ॥ लागेननकीजीत ॥३॥ चेतनध्यानकबानले ॥ मारेख्याटाकबान ॥ मोहमूढविपतोफि रें । ग्यानकरेघमसान |॥ ४॥ देस विरतिपूरमेचढ्यो ॥ चेतनदलपचं म॥ आग्याश्रीजिनदेवकी ॥ पाले सदाब खंम ॥ ५ ॥ ॥सोरग॥ मोहनयोंबल हिन ॥ बिप्योबिप्योजित तितरहे॥चेतनमहाप्रवीन। सावधानहूश्चल तुहे ॥ १॥ अप्रमत्तपूरमाहिं ॥ चेतनआयोविधिसहि त ॥ तहांजोरवसाहिं ॥ मोहमाननिष्टितनयो ॥ २ ॥ चेतनकरत हेंध्या न॥ सुनटतिनौएरुहरे॥ फुनीचारित्रप्रवीन॥ करणकिएसत्तमपुरे ॥३॥ ॥दोहा॥ तजिआहार विहार विधि ॥ आसनदृढम्हराया ॥ बिनुबिनुसुखथिर तावढे ॥ योंबोलेजिनराठा ॥१॥ अबेअपूरबकरणमे ॥ आटोचेतन राय ॥ किटोकरणदुजोतिहां ॥ थिरताबहुअधिकाय ॥ २॥ नौमेपर मेायके ॥ तृतियकरणकरिले य॥ हरिकें सुनब तीस तिहां ॥ आगेकों पगदेवा ॥ ३॥ आटोदसमेपूर विषे ॥ चैतनमहासचेत ॥ सुनटएकश्त हूंहस्यो । तबेग्यानसुधिदेत ॥ ४॥ सावधानव्हेनाथजी ॥ रहीयोतुम इहांठोर ॥ इहांमोहकोजोरहे ॥ तुमजिनजानहुनर ॥ ५॥ पहिले खता जंतुमल ही ॥ सोथानिकटाहाहिं ॥ तातेंमे विनतीकरों ॥ नुनुलिजि नजाहिं ॥६॥ तबचेतनकहेज्ञानसुनि । अबटाहपंथनलेह ॥ चनहुँ For Personal & Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र उलंघीनतावले ॥आगेद्यौसाधेहि ॥ ७॥कहेबहुतसंखेपसों ॥हविधिएगु णथान || पूरखवरननिविधसबे ॥ सममिले हुंगुणग्यान॥ ७ ॥जोफेर वेवरणनकरे॥लगेपनर्मतदोष। तातेंथोरेमेंकहें।महागुननिकेकोष ॥ए॥ ॥पक्षमीबंद॥ जहांचेतनकरिसबकर्मदिन ॥ उपशांतमोहपुरलंवलिन ॥ आयो हादसमांहेंमहमहंत ॥ सबमोहकर्मदयकरीअनंत ॥१॥ जिहांयथार्थ प्रगट्योअनूप ॥ सुखमटासबवेदेनिजसरूप ॥ जिहांअवधिग्यानपूरन प्रकास ॥ केवलि फनिआयोनिकट नास ॥ २॥ सोबिनमोहपूरपगटना म ॥ तिहथानकविल से निजसुधाम || अबअंतराटासबकरेअंत॥ षोम सप्रकृतिषपायतंत ॥३॥ जिहांवातिटाचारोकर्मनास ॥ सबलोकालो कप्रत्यदनास ॥ प्रगट्योपनुकेवल अतिप्रकास॥ जिहांगुनअनंतकीनो निवास ॥ ४ ॥ प्रगटेनिजसंपतिसबप्रत्यद ॥ बिनसाकुल करमा ग्यानअद ॥ प्रगट्योजहांग्यानअनंतऐन ॥ प्रगट्याफुनिदरसअनंत नैन ॥ ५॥ प्रगट्योजहांवीर्यअनंतजोर ॥ प्रगट्योसुखशक्तिअनंतफो र॥ दहिदोषचढारहगएनाज ॥ अनुलागेकरणत्रिलोकराज ॥६॥ सब इंघाटावहित्रिकाल ॥ अनुजैजैजैजीवनदयाल ॥तहांकरतअष्टप्रति हारजदेव॥॥ विधिनावसहीत नितनविकसेव॥ अनुदेतमहान पदेसऐन॥ जिहसुनंतलहत नविपरमन ॥ तिहांजन्मजरादुखनासहोटा ॥ अनुवा याप्रनुताईससोटा ॥ ७ ॥ इहिविधिसंजोगपुरराजजोग ॥ अनुकरतअ नंत विलास नोग ॥ सोकर्मअरिनहितजिहिंसंग ॥ लगरहेपर्वथितिबंध अंग ॥।॥ अनुसुकलथ्यांनआरुढहोटा ॥ अंतरिद विराज हिंगगनसो य ॥तहासनजिढठहरायएक॥ पद्मासनको कान सग्गटेक ॥ १०॥ प्रनु गनहिनरहिकदाचिनूमि ॥ तोकरमकरतटाहिकोंनधूमि॥ लश्लइफिरत एहिलोकमाहें ॥ जिहिजिहिथानिकपुरवबंधआहे ॥ ११ ॥ कहूंराख २८. For Personal & Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ चेतन्यकर्मचरित्र हिंथिरकहूंले चलंत ॥ कहूंबाला खिरेकहुंमौनिहंत || कहुं समवसरणक त्रुटि होय ॥ कहुंचन दहराज प्रवांनलोय ॥ १२ ॥ इहिविधिएक मकरंतजार | नहिंजानिदेहि शिववधूच्ओर ॥ एतेपर निवलिक हेंव खांन ॥ मुजरीजवरीकेसमान ॥ १३ ॥ तनुं समयसमय में च्छायच्छाय | चेतन परदेसनथिततथाय ॥ यहुंएकसमटामहिकरतत्यागि || थिरहोनदेतन हिंदुतियलागि ॥ १४ ॥ तो सुनट पंच्यासी लगी रहंत ॥ निज निजथानिक नि जबल करंत ॥ चैतनपरदेसनघात होय ॥ तातेंज गपूज जिनेससोय ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ चेतन श्रीसंयोगपूर || एहविधिविलसेराज ॥ प्रबचिहूंकर्म नेहर कों ॥ ठाणेंएकइलाज ॥ १ ॥ श्री अयोगपूरदेस में || चैतनकरे प्रवेस ॥ लागोहरनसुकर्म्मकों ॥ तजिकेंजोगकलेस ॥ २ ॥ तवै सुवेदनकर्म्म नें ॥ दीनोरस निजाय || हुंहुंमेएकप्रगटन‍ || जांने श्री जिनराय || ॥ ३ ॥ हंसपयानोंजगतमें ॥ कीनोंलघुथितिमांहिं ॥ हरिकेचारोंक कों ॥ सुधें शिवपूजाहिं ॥ ४ ॥ तिहांच्अनंत सुख साखते ॥ विलसेंचेतनरा || निराकार निरमल नयो । त्रिभुवनमुकुटकहाय ॥ ५ ॥ चोपाई अविचल धांगव सेंसिवनूप ॥ ष्टगुणातमसि६ सरूप ॥ चरमदेहप रमित्त परदेस ॥ किंचित नोंथितिविनुंनेस ॥ १ ॥ पुरुषाकार निरंजन नाम ॥ कालच्यनंतहुंध्रुवविश्राम || नटाकदाचिहूंन विहोय ॥ सुखच्छ नंत विलसें नितसोटा || २ || लोकालोक प्रगटसबवेद || षटव्यगुणप रजामुनेद || गैयाकार सकल परभास ॥ सहजे सुखज्ञानजहिंपास || ॥ ३ ॥ षटगुनहांनिवृधिपरिमै || एकसमयमेच्छातमरमे ॥ उतपत व्यभ्रूवल कणजास ॥ एहिविधिथितेसबे सिवरास ॥ ४ ॥ जगतजातजिह For Personal & Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन्यकर्मचरित्र बिरुदवान॥पायोशीवगढरत्ननिधान ।। गुणअनंतकहिये कितनाम ।ए हविधितिष्टेंभातमराम ॥ ५ ॥ निश्चितपष्टिदेखिघटमाहिं ॥ सिकरूपतो हिफेरकबुनाहिं ॥ एसबकमहोहिंजमअंग ॥ तोनयोचेतनसरवंग ॥ ॥६॥ ज्ञानदरसनचारित्रमार || तुंशिवनायकतुंशिवसार ॥ तुमस रोषोनहीजगकोटा ॥ तुंसर्वकर्मजीतिशीबहोटा ॥ ७ ॥ दोहा गुनअनंतर्यहंसकें ॥ कहिविधिकहेवखांन ॥ थोरेमेकबकरनियें ॥ नविकलेहोपहिचान || || एहजिनबानिनदधीसम ॥ कविमतअंज लिमात्र ॥ तेतीहीकबुसंग्रही ॥ जेतोंहुनिजपात्र ॥ २॥ जिनवाणीजिहि जिटालखी ॥ आनीनिजघटमांहिं ॥ तिहिंप्राणीशिवसुखल ह्यो । या मेंधोखोनाहिं ॥ ३ ॥ चेतनराहारुकर्मकों ॥ करोचरित्रप्रकास ॥सु नतपरमसुखपाश्य ॥ कहेनगौतीदास ॥४॥ सवंतसत्तरबतीसके ॥ जे टसप्तमीआदि ॥ श्रीगुरुवारसुहावनो ॥ रचनाकहीअनादि ॥ ५ ॥ ॥ इतिचैतनचरित्रसंमाप्तः ॥ ॥अयश्रीअध्यात्मगीतालिख्यते ।। ढाल नमरगाथानी प्रणमाविश्वहितजैनवाणी | माहानंदतरूसिंचवाअमृतपाणी || माहा मोहपूरमेदवावजपाणी ॥ गहननवफंदबेदनकपाणी | ५ || चाल सुर तीमहिनानी ॥ व्यअनंतप्रकासकनासकतत्वखरूप ॥ आत्मतत्ववि बोधकसोधकसतचिदूप ॥ नयनिदेपप्रमाणेजाणेवस्तुसमस्त ॥ त्रिकर एटोगेषणमुजैनागमसुप्रसंस्त ॥ २ ॥ ढाल ॥ जेणेात्मासुधताएंपीग एयो ॥ तेणेलोकश्लोकनोनावजाएयो ॥ आत्मरमणीमुनीजगवदि For Personal & Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्मगीता ता ॥ उपदेस्योतेणेअध्यात्मगीता ॥ ३ ॥ चाल ॥ व्यसर्वनानावनो जाणंगपारगएह ॥ ज्ञाताकर्तामोक्तारमतापरणतिगेह ॥ ग्राहकरदक व्यापकधारकधर्मसमूह ॥ दानलानबलनोगन पनोगतणोजेव्युह ॥ ४॥ढाल॥सहएकआटावखाएयो॥नैगमेअंसथीजेप्रमाएयो || उविध व्यवहारनत्यवस्तुविहंचे॥ असुझवलि सुघनासनप्रपंचे ॥ ५ ॥ चाल॥ असुझपणेपणस टातेसानेदप्रमाण || नदटाविनेदेव्यनानेदअनंतकहा ॥सुक्षपणेचेतनताप्रगटेजीव विभिन्न॥दयोपसमीकअसंखदायकएक अनन्न ॥ ६ ॥ ढाल || नामथीजीवचेतनप्रबुछ ॥ देवथीअसंखप्रदे सीविसुछ ॥ व्यथावगुणपर्यायपिंग ॥ नित्यएकत्वसहजीवअखंम। ७॥ चाल || नजसुंएविकल्पपरिणामेजीवस्व नाव || वर्तमानपरणति मयव्यक्तिग्राहकनाव ॥ शब्दनये निजसत्ताजोतोएहतोधर्म ॥ सुचत्र रूपीचेतनणग्रहतोनवकर्म ॥ ॥ ढाल ॥ इणिपरेंसुझसिछात्मरूपी ॥ मुक्तपरशक्तिव्यक्तिअरूपी ॥ समकितिदेशबत्तिसर्व विरति ॥ घरेसाध्य रूपेसदातत्वप्रीति ॥ ए || चाल | समनिरुढनये निरावरणीज्ञानादिक गुणमुख्य ॥ दायकअनंतचतुष्टयनोगीमुगधअलख्य ॥ एवं भुतेनिर मल सकलस्वधर्मप्रकाश ॥ पूरणपर्याटागटेपूर्णशक्तिविलास ॥१०॥ ढाल ॥ एमनटानंगसंगेंसनूरो ॥ साधनासिछतारूपपूरो ॥ साधकनाव त्यांलगेंअधूरो ॥ साध्यसिधेन हिहेतुसूरो ॥ १५ ॥ चाल ॥ कालभ नादिअतितअनंतेजेपररक्त ॥ संगांगीपरिणांमेवरतमोहाशक्त ॥ पुज लनोगेरीज्योधारेपुजलखंध॥परकर्त्तापरिणामेबांधेकर्मनोबंध ॥१२॥ ढाल ॥ बंधकवीर्यकरणेन दिरे ॥ विपाकीप्रकृति नोगवेदल विखरे ॥ कर्मनदयागतास्वगुणरोंके। गूणविनाजीव नवनवेंढोंके ॥१३॥चाल ।। आत्मगुणावर्णेनग्रहात्मधर्म ॥ ग्राहकशक्तिप्रयोगेजोमेपुजल शर्म। परलानेपरनोगनेटोगेथायपरकरतार ॥ एहनेअनादिप्रवर्तिवाधिपरवि For Personal & Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्मगीता २२८ स्तार || १४ || ढाल || एमपजोगविर्यादिलब्धि ॥ परभावरंगीक रेकर्मवृद्धि || परदयादिकयदासुहवीकल्पे ॥ तदापुण्यकर्महतलोबंधक ल्पे || १५ || चाल || तेहजहिंस्यादिकव्याश्रवकरतोचंचल चित्त ॥ कटुकविपाकि चेतनमेले कर्मविचित्त | आत्मगुएल नेहल तो हिंसक नावे थाय || आत्मधर्मनारक्षक नावच्या हिंसक हाय ॥ १६ ॥ ढाल || आत्म गुणरक्षणातेहिजधर्म | स्वगुवि सताधर्म | नावच्प्रध्यात्मच्ानु गतप्रतिते ॥ तेहथिहोएसंसार बितिते ॥ १७ ॥ चाल ॥ एहप्रबोधनोकार तारणसङ्गुरूसंग ॥ श्रुतउपजोगी चरणानंदिकरिगुरुसंग ॥ छतमतत्व विलंबिरमताच्यातनराम || सुधखरूपनेभोगे योगेवस्तु विश्राम ॥ १८ ॥ ढाल || शु६गुरुयोगथीबहुल जीव || कोईवली सहज थिथईसजीव || आत्मशक्तिकरिगंवनेदी || नेदग्यानीथयोच्यात्मवेदी ॥ १९ ॥ चाल ॥ व्येगुणपर्यायानं तनीथईपरतित || जांस्योच्यतमकर्त्तानोक्तागईपर नित ॥ श्रधायोगे पनोनाशनसंनय सत्व || साध्यालंबीचेतनाव लगीच्यातमतत्व २० || ढाल || इंद्रचंयादिपदरोग जाएयो ॥ शु६निज सुछताधनपिबायो || आत्मधनअन्य च्यापेनचारे || कुंएजगदीनवली को जोरे ॥ २१ ॥ चाल ॥|| आत्मसर्वसमान निधांनमहासुखकंद ॥ सिङ्घतणासाधर्मिकसत्ताएंगुए वंद || जे हखजातितेहथिकोण करेवधबंध ॥ प्रगटयो नावच्या हिंसक जाऐशु६ प्रबंध ॥ २२ ॥ ढाल || ज्ञाननीतिल ताचरणतेह || ग्यानएकतत्वता ध्यानगेह || छात्मतादात्मतापूर्ण नावें ॥ तदा निर्मलानंदसंपूर्णपावे || || २३ ॥ चाल ॥ चेतनच्या स्तिव नाव मेजे हननासेनाव || तेहथि निन्नच्ा रोचक च्यात्मख नाव || समकित नावेंनावे आत्मशक्तिच्अनंत || कर्मनासनोचिंत्तननाते मतिमंत ॥ २४ ॥ ढाल ॥ स्वगुणचिंतनर सिबुधिघाले || आत्मसत्तान जेनिहाले ॥ शुधस्याद्वाद पदजेसंभाले ॥ परघरेतेहमति केवाले ॥ २५ ॥ चाल ॥ पुण्यपापबे For Personal & Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्मगीता हुपुजलदलनासेपरनाव || परनावेंपरसंगतिपामेऽष्ठ विभाव | तेमाटेनि जनोगायोगीश्वरेसुप्रसन्न॥ देवनरेंषत्रणमणिसमनासेजेहनेमन्न ॥२६॥ ढाल ॥ तेहसमतारसेतत्वसाधे ॥ निश्चलानंदानुनवआराधे ॥ तिव्र घनघातिनिजकर्मत्रोमे ॥ सिपिमिलहीनेतेविगमे ॥ २७ ॥ चाल॥ सम्यगरत्नत्रटारसराच्योचेतनराया।झानक्रीयाचक्रेचकचूरेसर्वअपाय। कारकचक्रवनाविसाधेपरणसाध्य ॥ करताकारणकार्येएकथयानिरा बाध ॥ ॥ ढाल | स्वगुणआयुधथकीकर्मचूरे ॥ असंख्यातगुण निर्यरातेहपूरे ॥ टलेआवर्णथीगुण विकासे ॥ साधनाशक्तितिमतिमष कासे ॥ ए || चाल ॥ प्रगट्याआत्मधर्मथयास विसाधनरीति ॥ बा धकनावग्रहण तानागोजागीनिति॥नदान दिरणतेपणपूर्वनिर्जराकाज ॥ अननिसंधिबंधकतानिरसयात्मवेराज ॥ ३०॥ ढाल ॥ देसपतिजबथ योनीतीरंग ॥ तदाकुंणथाटयेकुनचालेसंगी॥ यदायातमाशात्मना वेरमाव्यो । तदाबाधक नाव उरेगमाव्यो ॥ ३५ ॥ चाल || सहजद मागुणसक्तिथीयोक्रोधानलनट्ट|मार्दवनावषनावथीनेद्योमानमरट ॥ मायाार्यवयोगेलोनतेनिस्पृहनाव ॥ मोहमाहानटध्वंसध्वंस्योसर्ववि भाव ॥ ३२ ॥ ढाल ॥ एमवनावीथयोआत्मवीर ॥ भोगवेात्म संपदसुधीर || जेहन दयागतापक्रतिवलगी ॥ अव्यापकथकोखेरविते हअलगी ॥ ३३ ॥ चाल ॥ धर्मध्यानएकतानमध्यावेजरिहासिधि ॥ तेपरणतिथीतात्विकसहजसमृधि ॥ स्वस्वरूपएकत्वेतन्मयगुणपर्याय ॥ ध्यानध्यातांनिर्मोहिनेसर्वविकल्पतेजाय ॥ ३४ ॥ ढाल ॥ यदानिर्वि कल्पीथयोसुझब्रह्म ॥ तदाअनुनवेसुआनंदशर्म ॥ नेदरत्नत्रयोतिक्षण ताएं ॥ अनेदरत्नत्रयीमेसमाएं ॥ ३५ ॥ चाल ॥ दर्शनझानचरणगुण सम्यकएकएकनाहेत ॥ स्वस्वहेतुथयासमकाले तेअनेदत्ताखेत ॥ पूर्ण खजातिसमाधेघनघातिदल बिन ॥ दायिकनावेप्रगटेातमधर्मवि For Personal & Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्मगीता २२३ मिल ॥३६॥ ढाल | पबियोगरूंधिथयोतेअटोगी॥ नावसैले सताब चलअंगी ॥ पंचलघुअदरेकार्यकारी ॥ नवोग्राहिकर्मसंततीविदारी॥ ॥ ३७ ॥ चाल ॥ समश्रेणीएकसमएपुहतातेलोकांत ॥ अफूसमाणग तिनिर्मलचेतननावमहांत || चर्मविनागविहिनप्रमाणेजसअवगाह ॥ आत्मप्रदेशअरूपीअखंमानंदअबाह ॥ ३८ ॥ ढाल ॥ जिहांएकसिधा त्मतिमतिहांडेअनंता ॥ अवन्नाअगंधानहिफासमंता || आत्मगणपूर्ण तावंतसंता ॥ निराबाधअत्यंतसुखाश्वादवंता ॥ ३५ ॥ चाल ॥ कर ताकारणकार्यनिजपरिणामिकभाव ॥ झाताझायकनोगनोगतासुचव भाव ॥ ग्राहकरदकव्यापकतन्मटाताएंलीन ॥ पूर्णात्मधर्मप्रकाशर सेल यलीन ॥ ४० ॥ ढाल ॥ व्यथा एकचैतनअलेसी || देवथीजे असंख्यषदेसी ॥ नत्पतिनासधुवकालधर्म ॥ सुचनपजोगगुण नावसर्म ॥ ४५ ॥ चाल | सादिअनंतअनासिअप्रयासोपरिणाम ॥ उपादान गुणतेहजकारणकार्यधाम॥ सुचनिदेपचतुष्टाययुतोरतोपूर्णानंद॥ केवल नाणिजाणतेहनागुणनोबंद ॥ ४२ ॥ ढाल ॥ एहविसिघताकर्णइहा ॥ इंशीयसुखथोजेनिरीहा ॥ पुजलानावनाजेशंगी ॥ तेमुनिसुझपरमा र्थरंगी ॥ ४३ ॥चाल ॥ स्याहादआतमसत्तारुचिसमकितनीतेह॥ आ त्मधर्मनोनासननिर्मल ज्ञानीजेह॥ आतमरमणीचरणीध्यानीआतमला न॥ आतमधर्मरमोतिणनव्यसदासुखपीन ॥ ४४ ॥ ढाल॥ अहोनव्य तुमेन लखोजैनधर्म ॥ जिणेपामिएसच्अध्यात्ममर्म ॥ अल्पकालेटले इष्टकर्म ॥ पामीएवीयआनंदसर्म ॥ ४५ ॥ चाल ॥ नटानिदेपषमा णेजाणोजीवयजीव ॥ स्वपरवीवेचनकरतांथाएलानसदीय ॥ निश्चेने व्यवहारेविचरेजे मुनिराज॥नवसागरनातारणनिर्नयतेहजहाज॥ ४६॥ ढाल || वस्तुतत्वेरम्यातेनिग्रंथातत्वअन्यासतासाधुपंथ॥तेणेकरिगीता For Personal & Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 अध्यात्मगीता र्थचरणरहिजे // सुघसिद्धांतरसतोलहीजे // 47 // चाल // श्रुतम न्यासीचोमासीवासीलिबमीठाम || सासनरागीसोनागीश्रावकनाबहुधा म // खरतरगब पाठकश्रीदीपचंसुपसाय // देवचंनिज हर्षगायोआ तमराटा // 4 // ढाल // आत्मगुणरमण करवान्यासे // सुपसतारसि नेनल्लासे // देवचंधेरचिआत्मगीता // आत्मरंगीमुनिसुप्रतिता // 4 // // इतिश्रीअध्यात्मगीतादेवचंजीक्रतसंपर्ण // // अयश्रीपार्श्वजिनस्तोत्रलिख्यते // वरसंवरसंवरसंवरसं // नवदंनवदंनवदंनवदं // समसासमसासम सासमसा // गमनंगमनंगमनंगमनं // 1 // दरमंदरमंदरमंदरमं // ग तरंगतरंगतरंगतरं // गरसंगरसंगरसंगरसं // नवरंनवरंनवरंनवरं॥२॥ मुरदामुरदामुरदामुरदा // समिनसमितंस मितंस मिनं // विदितं विदितंवि दितविदितं // नमतेनमतेनमतेनमते // 3 // यतनायतनायतनायतना। नयनानयनानयनानयना // लक्षणलदणलक्षणलदण // दरदद रददरददरद // 4 // अमदाप्रमदापमदापमदा // नकरानकरानकरा नकरा // नवमानवमानवमानवमा // नसदानसदानसदानसदा // 5 // तरसातरसातरसातरसा // दयनोदयनोदयनोदटानो // कदमंकदमंक दमंकदमं // विनवाविनवा विनवा विनवा // 6 // इतिपार्श्वजिनेश्वरते स्तवनं // रचितंखचितंटामकैसुघन॥ परिरंजितरक्षतरप्रकरं // कुरुता शिवसुंदरसौख्य नरं // 7 // इतिश्रीपार्श्वजिनस्तोत्रसंपूर्ण // ॥इतिसर्वसंबंधसंपूर्ण // For Personal & Private Use Only