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________________ दे०ची०बा० ४६ ० भव्यजीवनीपण सु६ च्यात्मिकदसा यद्यपि सत्तारूपवे पणव्यक्त के प्रगट कर्मावर्ण रहित जे गुणी खरिहंत तेहना गुणग्रामकरतां स्मर ए करतां छापणे आत्मा गुणानुयायीथई संपूर्ण गुणी पोपामे इहां कोई उसे जे निमित्तविना सिपल केमनपामे तेनेत्तर जे आत्मा छानादिनो पुजलरूप परनिमितपामीने बंधपतिकरेबे तेजोपुजल रूप परनिमित्त मुके तो मुक्तथा तेपुजलरूप परनिमित्त ते अरिहंत रूप सुधनिमित्तने अवलंब्याविना टलेनही माटे वीतरागदेवरूप सुध निमित्त पामे आपण तत्वप्रगटे इतिषष्टगाथार्थ ॥ ६ ॥ आत्मसिद्धिकारज नीरेलाल || सहेजनिया मकहेतुरे ॥ वा० ॥ नामादिकजिनराजनारे लाल ॥ नवसागरमहेि सेतुरे ॥ वा०॥० ॥ ७ ॥ तेवास्ते च्यात्म सिद्दिरूपकार्य करवाने सहेज अकृतम नियामक के ० निरधार हेतु के कारण जे श्रीवीतरागदेव ते पामीने निश्चे नव्यजीवने मोहनी जे नामादि के अरिहंत एहवोनामते श्रवणे उच्चरणे स्मरणे करी पण अनेकजीव गुणावलंबी थइ समकित प्रमुख गुलामीने सि था तथाश्रीच्ारिहंतनी स्थापना जेमुवा समतानोसमुद्ध विषयवि काररहित प्रतिसयसंपन्न जिनथापनादेखी योगथं ने गुलीने अवलंबे स्वगुणावलंबीटी अनेकजीवसिक्षिपाम्या तथा श्री परमप्रभुनो व्यनि देपो तेविचरता सरीरधारी जिनराज तेहना विहार उपदेस समवस रणदेखी च्अद्भुतताने च्ावलंबी अनेकजीव गुणवलंबीथइ स्वधर्मसं पदावर सिधिपाम्या तथानावनिक्षेपोते अरिहंतऽव्यना केवलज्ञाना दिगुणतथा अगुरु लघुतादि पर्याय तेहनी अनंत परणतीनो नासन अधान तथा रमण के० पोताना तत्वने अवलंबता अनेकजीव मोह Jain Education International ס For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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