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त्मगुणनी वस्तुगतेथीरता तेसमाधी तेहनोरस तेणेकरी नरयो के ० संपु एटले परमसमाधीमा) श्री सुबुद्धिनाथदीवो दीवाथी एकमोटोला भथयो जे नास्यो के० जालपणामां आव्यो पोतानाच्यात्मानो स्वरू पते सु६चिदानंदल चल जाएयो जेानादिव्यतितकालनो वीसरयो मुली गयोहतो तेश्रो प्रदीगंनास्यो तेथी सकल के० सर्व विभावदोष आत्मिक सुतारूप जे उपाधी तेहथक) मन के ० चित उसरयो के ० पाबोहट्यो जे एविनावपरिणति हुंनही तथा विभाव परिणतिनो हुं कर्ता पणनही एमुने करवो नोगववो परणमवो घटेपनही ते जेटली क योपसम) आत्मपरिणति तेसर्व रागद्वेष असंयमथी निवृर्त्तबालागी अ ने सत्ता के जे अनंतगुणरूप च्यात्मानीसत्ता तेहनासाधननी रीतके ० चालमार्ग ते सम्यक्ज्ञान सम्यक्दर्शन सम्यक्चारित्र रूप जे खात्मि ककार्य तेनल एनव्यजीव परणम्यो जेथी सत्ताप्रगटथाये तेमार्गे ए आत्मासंचरयों के ० प्रवत्य ॥ १ ॥ इतिप्रथमगाथार्थ ॥
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तम प्रनुजा एांगरीत सर्वजगदेखता हो लाल || स ० ॥ निजसत्तायें सु६ सदुने लेखता हो लाज ॥ स ० ॥ प रपरतिच्छेषपणेन वेखता होलाल ॥ प० ॥ नो ग्यपणे निजसक्तित्र्अनंत गवेषता होलाल ॥ ० ॥ २ ॥ अर्थ || वलिप्रभुजीतुमे टागषटच्यात्मक ते केवलज्ञान तथा केवल दर्शक देखोबो पांगरीते एटले रागदेषरहीत जे एक आत्मानो जाएंगगुणवे तेथे सर्व नाव जालो तेमांसुनपरिणामी वस्तुनाया हकनथी अने असुनपरिणामी वस्तुनाध्वेषीनथी यथार्थरीते यगत्रनाजा बो कर्त्तापलो नोक्तापलो ग्राहकपणो स्वामीत्वपलो एटलावानाटाली बुधिरहित सर्व भावना जाएंंगबो वलिप्रभुजी तुमे केहवाबो जे सर्व
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