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________________ ६॥ श्रीसुबुद्धिजिनस्तवन स्याघादधर्मनान पदेशक एहवा श्री अरिहंतदेवनी सेवाकरो एहजया धार एश्रीचंघननीसेवा जिहांसुधि अनारीसंपूर्ण सिझता नथाटा ति हां सीमअखमरेहेजो एहिजसारखे ॥ ११ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ अथश्रीसबुद्धिनाथ जिनस्तवन थारामहेलाकपरमेहजरुखेवीजलाहोलान ॥ जरुखे० एदेशी ॥ दीगेसबुद्धिजिणंदसमाधीरसे नरयोहोलाल ॥ स० ॥ नास्योआत्मस्वरूपानादिनोवीसरयो होलाल ॥ ॥ सकलविनावनपाधीयकीमन नसस्योहोलाल ॥या सत्तासाधनमार्गनणीए संचरयोहोलाल ॥ न ॥१॥ अर्थ ॥ कोश्कनव्यजीव अनादिकाल नो मिथ्यात्व असंयम क पायटोगरूप व्यनाव हेतुपणे परणम्यो एकेंजीटा सुदमबादर तथा बेंजी तेजी चौरें िपचेंडी पणे अनंतानवसुधी भवचक्रमांफरतो अने क कुदेवने देवबुदिएमानतो अथवासुदेव श्रीवीतराग तेहने कर्तृत्वा पणो प्रमुखदोघेमानतोथको कोइकाले श्रीप्रनुनी अनुतादीनीनही ते किवारेक नवस्थतिनो परिपाककरी कोश्कपुण्यनाउ दये श्रीसुबुधिना थ परमेश्वरनी मुशादीती तेअरूपी अनंतगुणअनुतापणे प्रधान नासन गोचरथटी तश्रीअरिहंतनी अन्तादेखीने उलसीतचिते ते नव्यजीव श्रीवीतरागनी उपगारतापाम्या ते प्रीतेहरषाबोले जे दोनो के नास नपणे प्रतितसहित सुबुधिनाथअनुजीदीतो पणते केवोदीतो जे समा धी के आत्मगुणनो विपरीतप्रवर्त्तन ते उपाधी अथवा विषटा कषा य ने अनुयायीपवर्त्तन तेपण नपाधी तथाजे तप्तनत वक्रता परिणा मादिक सर्व विनाव तेनानिवृते सकलगुण वरूपपरिणामीथये जे आ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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