SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ दे०चो०वा० सुध सितारूप ते सधे के० नीपने कारण ताजेहती तेहनो व्यय के० नासथा कार्यनी पूर्णतायें कार कार्टानीपने कारण धर्म रहे नही तिवारेसुंरहे ते जेसुची के० पवित्र भावकर्म sव्यकर्म नो कर्म रूप हेतु सद्भावरूप मलरहित जे आत्मानो परिणामिक नावबे जेपणेएनोंमूल लक्षण्बे खव्य स्वक्षेत्र खकाज खनाव रूप तेपणो रहे परमानंद विनासी अवस्थावरें ॥ इतिदसमीगाथार्थ ॥ १० ॥ परमगुणी सेवनतन्मयता || निश्चयध्या नेच्यावेजी ॥ सुधातमा नुनवच्या श्वा दि || देवचं रूपदपावेजी ॥ श्री० ॥ ११ ॥ अर्थ || एरीते परम के ० उत्कृष्टगुण जे श्रीअरिहंत सुचदेव तेहनी सेवा च्यतिदुर्लभबे तेपामीने तेहमांहे तन्मयथनीने जे जीव निश्वय के० निरधारे अथवा निश्चय के० पोतानेस्वरूपध्याने एकत्वतारूपे जे ध्यावे तेजीव सुखनिकलंकजे आत्माचिदानंदवन तेहनोजे अनुभव के० यथार्थज्ञान वेद्यसंवेद्यपद सहित तेहने असवादिने देवजे निबंध च्अथवाभवनपति प्रमुख चारनिकायना तेहमांचंद्रमासमान नावउद्यो त समता सितल तानाकारण जे अरिहंत रूप पदस्थानक ते प्रतेपामे एटले अहो नव्यजीवो जोतमेपोताना आत्मसुखना ईबकथयाबो अनेसुद्दा नंदनेविलसो एवीच्यनिलाषावे तो श्रीचंदनस्वामी सुदेव असरना सरण यगत्राधार यगत्रजीवनापरमोपगारी मोहतिमिरनो ध्वंसकरवाने नाव सुजेहवा कर्मरोगना परमवैद्य माहामाहए माहागोप माहानिय मक माहासार्थवाह सम्यक् षष्टी जीवनांप्राए देस विरतिने तो माहामंत्रनी परेयपवायोग्य साधुनिग्रंथ जेहनी आज्ञायें चालेबे उपाध्यानाक दय रूपसरोवरनाहंस आचार्यजीनानाथ गएधरना साक्षत् मोक्ष हेतु For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy