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________________ ऋषभस्तवन मां को ईवचननुच्चानथ त्यारे प्रीतिकेमकराय ॥ इतिगाथार्थः ॥ १ ॥ ॥ कागलपए पहोचे नहीं || नवी पहोचेदो तिहांकोपरधान ॥ जेपहोचेतेतुमसमो॥ नविनाषेदोकोईनोविवधान ॥ ० ॥ २ ॥ ॥ प्रीत करते रागीया ॥ जिनवरजीहोतुमे तोवीतराग ॥ प्रीतडीजे रागयी || ने लवीतेहोलोकोत्तरमाग ॥ ० ॥ ३ ॥ अर्थ || तथाएकबीजोपण प्रीतिनोपायते जेकागलवमे श्रीतिथा पण सिनेविषेकागल पए पहोचे नहीं तथाकागल नहीं पहोचेतो को ईमाणसमुकी पएतिहांसि छावस्थाने विषे कोई प्रधानप एप होचे नहीं जेनीसाथेविनंती कहाविटों इहांको जीवने संसयउपजेके रत्नत्रयीच्या राजीव मोजाय तोकोईनपहोचे एमके मकहोबो : तेऊ परकवे तिहांसिधावस्थानेविषे पहोचेते तुमसमोतुमजेवो प्रभुतामयी वीतराग अयोगीप्रसंगी सकल ज्ञायक पण्वचनरहित एटले अर्थात् ते पण परमपूज्यते कोइनो व्यवधानकहेतां यांतरोनेदकहेनहीं माटेश्रीती नात्र पाय माहेला कोईउपायदीसतोनथी तेमाटे श्री जुगादिदेव साथे श्रीतिकेमकरियों ॥ इतिद्दितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ MY Jain Education International ३ अर्थ || हवेली कहने संसारीजीवमुकस रिखा तथासम्यक् ऽष्टि प्रमुखपण जे श्री सर्वत्रैलोक तिलकथी श्रीतिकरवाचाहे तोरागीरागसहितले नेहे जिनवरजी तुमेतोवीतरागबो रागरहित बोरागी ने ने कररीतेरीजवीयें पण जे पोतेरागी नहीं ते केमरीऊपामे इहांकोईजीवकहेसे जेतेवारेवीत रागथी प्रितिनकरवी तिहांकहेबे जेरागीरागरहित तेहथीजे जितिने लव तोलोकोत्तरमार्गबे एटलेइमजा एवं जेरागीथीरागीथाय ते मि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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