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________________ ५६ देचोम्बा तोविष नक्षण समांन आत्मस्वरूपना घातकजाणीने तेथीन नग्योथ को एक आत्मानंद किवारेप्रगटे पतेहना साधक जे मुनी राजना च रणसेवतां उदासीनथश्ने साधे के निपजावे आत्मिक अव्याबाध सुखप्रते एटले उत्तम जीव स्याछाद आगमश्रवणकरी पांचाश्र वथाविरमी सुषसंटामीथ देहनिस्पहिथको मोदनेसाधे यतःपंचासवे विरत्ता ॥ विसयविजुत्तासमाहिसंपत्ता॥ रागद्दोसविमुत्ता | मुणिणोसाहं तिपरमत्थं ॥१॥ आनस्सखीणमाएं ॥ सपाणविटोगेविजेसमाहिपटा। ॥ सावटाढ़गटाविहु ॥ मुणियोसाहंतिपरमवं ॥ २ ॥ एहवा मुनी राजत्रिकाल विषटाना अवांजक तत्वगवेषी तत्वरसिया तत्वानंदरुची पोतानो तत्व अनादिनो कर्मसंगे दबाणो ते प्रगट करवामाटे सकल पुन ल भावथा विरक्तथईने जे आत्मानिपजावेजे ते जीव निमित्तालंबनीथ खरूपालंबनकरतां स्वरूपमध्ये एकत्वपामीने दपक श्रेणी अरोहण करी घनघातिकर्म खपावीने सयोगी केवली थ पडे सैलेशीकरण करी निःकथिईन देवजेधर्मदेव मुनीराज तेमांहे चंदमासमान एहवो अरिहंतपद तेजीवपामे जेमां परमानंदनी समाधी अने सकर्मारूप अवस्था ते माहाव्याधि तथानिरावर्णनिः कर्मावस्था ते परमसमाधी रूप ते अवस्था श्रीसुपार्श्व परमात्माने अवलंबता जीवपामे माटे श्रीसुपार्श्व अनुनी सदासेवनाकरवी एहिज आधार त्राण सरणजे इति सुपार्श्वजिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ७॥ अयश्रीचंपनजिनस्तवन ॥ श्रीश्रेयांसजिनअंतरजामी एदेशी ॥ श्रीचंपनजिनपदसेवा ॥ देवायेजेहि लियाजी॥ आतमगुणअनुनवधीमलि या॥ तेनवनयधीटलियाजी॥श्री ॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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