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________________ श्रीचंप्रनजिनस्तवन अर्थ ॥ हवे श्रीचंधन भगवान नी स्तवनाकहे अने सेवनापण लखावे ते श्रीचंतननामा आठमांप्रनुनी पद के चरणनीसेवा अथवा अरिहंतपद नी सेवना तेहनीजे हेवा के चाल रीत तेहमां जे हिलिया के तेवोटेपमधा तेहने अनुसेवन विना कालजाटोनही जे हने असंख्यात प्रदेसे श्रीप्रनुपरमात्म परमपूज्य नो आराध्य पणोडे ते जीवात्मा चेतनालदण असंख्यात प्रदेसें खधर्मकर्ता स्वधर्मना नो क्ता पोताना गुण ग्यानदर्शनादिक तेहनो अनुभव के भोगववो तेहेथी मिल्या एटले आत्मगुणनोगीथया तेज जीवनव के० चारगति रूप संसार तेहनोजेनया जन्ममरण स्वरूपरोधक कर्माधीनतारूप ते हथीटल्याने एटले यथार्थरीते जे परमात्मानसेवे ते अवस्य असंसारी थाटा तेमाटे टलवा योगथटा तेटल्या एन्याटा हरषनोवचन जे कारणमिले तोकार्यनीपजे तेम उत्तमजीव अरिहंत सेवनपरणम्या अनु मिल्यानाहरषे संसारसमुष नेगोपदसमानमाने. इतिप्रथमगाथार्थ॥१॥ अव्यसेववंदननमनादिक ॥ अर्चनवलि गुणग्रामोजी॥ नावअनेदयावानीईहा॥ परनावेनिक्कामोजी॥ श्री० ॥२॥ अर्थ ॥ ते सेवना चारपकारना । नामसेवना २ थापनासेवना ३ व्यसेवना ४ नावसेवना तेमांनाम तथा थापना ए बे सेवना सुग मजे अनेषव्य निदेपाना बेनेदले तिहां जे सेवनापदनो अर्थविधि जाणे पणतेकाले तेअर्थनो उपटोगनथी तेयागमथी व्यनिदेपो क हिटो ॥ अणुवन गोदवं ॥ इतिअनुयोगधारवचनात् ॥ हवे बीजो नो आगमथी व्यनिदेपो तेहना वलि त्रण नेदरे । तिहां जेजे सेवना नावरूपे परणम्याहता पणप्राणमुक्तथटा तेहना सरीर ते ज्ञ सरीर ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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