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________________ अभिनंदन जिनस्तवन २७ पोतानी संपत्ति जे खक्षेत्र संख्यात्तस्त्र प्रदेशविषे व्यापकपणेरह्या जेा नंतज्ञानादिकगुए तेसंपदामयी सुधस्वरूपनोनाथ के तांबे माटे निष्पन्नपरमानंदनोगी सुधस्वरूपीते को इथ | मिले नही || इति चतुर्थ गाथार्थ परपरणामिकता बे ॥ जेतुकपुजलयो गहोमित्त ॥ जमचल जगनिएवनो ॥ नघटेतुऊने नोग होमित्त ॥ क्युं ॥ ५ ॥ अर्थ || हवेको पुल से जे सर्वव्यमांहें परथी मिलवानी सक्तिनथी तो साधकनोजीवज्व्यपण वस्तुधर्मेसुबे तेनेप्रनुथी मिलवो तेपलतेनी सत्तामांतोनी तोकेवीरीते मिले तेकहेबे जेानादीअतीतकाल एस सारीजीवनोच्यात्मीक सुख सर्व अवराणो अनेभोगधर्म कव्योपसम]बे ते कांईकभोगव्योजोइटों तेस्वरूपनेअपामधे पुजलनावर्ण गंध रस फर स तेच्नोग्यबे तेनेभागवतोथको परनोगीथयो परपरणामीथयो एप रपरामिकतानी चालते अनादिनीटेवबे एटले कर्तापरनो नोक्तापर नो मरने विषे ग्राहकपरनो एमसर्व परभावमईथयोबे इहां कोई पू बसे जेसुइज्व्यधर्मी तेपरपरणामी के मथाय ते नेकहेबे जे पुजन नायोगे पुलालंबी चेतनाथइ तेनादिनी असुकता बिजातियपणे परपरा मीता दोषरूपयात्माने सर्व घटित केमजेपुल तेजमबे तथा चलकहेतांविनासोबे जगत्रनवबे तेपुजलव्यबे तेऽव्येध्रुव नेप र्यायेवढे वर्णादिक खंधादिकपर्यासर्व पलटेबे ने सर्वसंसारी एकेकाजीवें एकेकोपुजलपरमाणु तेनसरीरपणे भाषापले मनपणे हा रपणे अनंतीवार लश्लइने क्योबे माटे पुल तेसर्व जीवोनी एम्बे नेजीवऽव्यते स्वरूपभोग]वे मा चेतनतुने ए पुजलनो नोगट तोनथी केमजेहंस किवारे कचरासाचांचघाले नही ॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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