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________________ देचोम्बा नावरोगनाविगमथी॥अचलअक्षयनिराबाधोजी॥ पूर्णानंददसालही।विलसेसीधसमाधोजी॥चो॥६॥ अर्थ। पीनावरोगजे परानुजायीपणो तेहनोविगमके०सर्वथा टलवे करीने अचल के० चपल तारहित अदयके० अवीनासीपण निरा बाधके अव्याबाधपदप्रगटे तेसर्वनोमूल कारणजिनराज श्रीवीतरागदे वनी सेवनानावरुचे व्यतथानावथी सेवनाकरवी हिजहित पूर्णनंद परमानंदअनंतगुणनो नोगरूपस्व सितादशाल ही पामीनेविल से के अ नुनवेसिघ निष्पन्नपरनिष्टतार्थआत्मीक समाधिज्ञानदर्शनसमाधि अव्या बाधानंदसमाधिनोगवेपामे एश्रीजिनेश्वरनोसेवननोफल हिजपरमनिर्वा एपदनीप्राप्ति तेणेसर्व विकल्प कल्पनानिवारीने सर्वज्ञसर्वदर्शीसुधतत्वी परमेश्वर निर्विकारी देवनोसेवनकरो हिज परमसुखनोपुष्टकारण॥६॥ श्रीजिनचंज्नीसेवना ॥प्रगटेपुन्यप्रधानोजी॥सुमती सागरअतिउनसे।साधुरंगपनुध्यानोजी ।।चो॥॥ अर्थ ॥ श्रीजिनचंचरिहंतदेवतेहनी सेवनाकरतांप्रगटे पुन्यथा नके श्रेष्टसुमति जे परमानंदसाधक मतितेउल्लासे के कल्लासपामे अने अनुनेध्याने साधुके नलोरंगथाये बीजोअर्थ श्रीजिनचंसूरी जट्टारकश्रीखरतर गबाधीवर तेहनाशिष्यश्रीपुन्यप्रधानोपाध्याट तेह ना शिष्यत्रीसुमतिसागरोपाध्याटा तेहना शिभ्यश्रीसाधुरंगवाचकएस्तु तिकर्तानी परंपरामां बहुश्रुतथयातेहनानाम कह्या इतिसप्तमगाथार्थ॥ सविहितखरतरगबवरू ॥राजसारनवकायोजी॥ज्ञान धर्मपाळकतणो॥सिष्यसुजससुखदायोज|चोगान॥ अर्थ ॥ सुविहितकहेतां पंचांगीप्रमाण रत्नत्रयीनाहेतुके. कारण एहवी जेहनीसमाचारी एहवोजेखरतरगन्छ तेमध्ये वरके० प्रधान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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