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________________ कलशनोस्तवन २०१ सर्वशास्त्रनिपुण मारुस्थल विषे अनेक जिन चैत्य प्रतिष्ठाकारक आवस्य कोयार प्रमुखग्रंथोनाकर्त्ता महोपाध्याय श्रीराजसारजीथया तेहना शिष्य श्री ज्ञानधर्म उपाध्याय नैव्यायकादिग्रंथाध्यापक जिऐसाठवर्षप र्यंत जिव्हानारसतजी स्याकजातितजी नेसंवेगवृत्तिधरी तेमनाशिष्य रुमाजसनाधली सुखनादेवावाला एहवा इतिच्छष्टमगाथार्थ ॥ ८ ॥ दीपचंद्र पाठकतणो ॥ सिसस्तवेजिनराजोजी ॥ देवचंऽपदसंवतां ॥ पूर्णानंदसमाजोजी ॥चो० ॥ अर्थ | जिणेश्री शत्रुंजयतीर्थऊपर शिवासोमजी कृत्चोमुखनी नेक बिंबप्रतिष्ठाकर तथा पांचपांमवनाबिंब प्रतिष्ठाकर तथा समो सरणचैत्यतथाश्रीकुंथुनाथ चैत्यप्रतिष्ठाकरी श्रीराजनगरे सहस्त्रफला पार्श्वनुनी प्रतिष्ठाकरी एहवाउपाध्याय श्री दीपचंजी तेहना शिष्य पंमितदेवचंग लिए चोवीसप्रभुनी स्तवनानक्तिवसेकरी पोतानी भक्ति परतिमहानंदहेतुबे एहवा गुणनानाथ देवचंद्रपदसेवतां पूर्णानंद जे सिधाव्याबाध यानंदनो समाजके० समुदायतेपामे एजिननक्तितेमो कनो परमोपाय ॥९॥ एग्रंथ मोक्षसाधनना रसीज बोने भएवा तथा वाचवालायकजातीने मेमारीच्ल्पबुद्धिप्रमाणे सुचकरी बाप्यो बे पंमितोएमा नूलऊपर दोसनलाव अने क्षमाराखी सुधारी वांचबुं इतिश्री चोवीस जिनस्तुति नोबालाबोधसंपूर्णं ॥ kkk k k k k k kakak अथश्रीदेवचंदजी माहाराजकृत चोवीस जिनस्तुति नोबालाबोधसंपूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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