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________________ प्रनंजनानिसिज्जाटा गीनावेकरयोरे ॥ ॥ असुचविनावअपाय ॥ सु० ॥सां० ॥१२॥ सुनिश्चटानटाएकरेरे ॥१०॥ आतमनावअनंत ॥ तेहल सुघन टोक रेरे ॥०॥ इष्टविनावमहंतरे ॥सु ॥सां ॥१३॥ अय्यकरमकरताथ योरे ॥ अ० ॥ नयअसुरविवहार ॥ तेहनिवारोस्वपदेरे ॥ १० ॥ रमतासुचविवहाररे ॥सु० ॥ सां० ॥१४॥ विवहारसमरेथकेरे ॥ समरेनिश्चटाचार ॥ पत्तिसमारेविकल्पनेरे ॥ १० ॥ तेथीपरणतिसा ररे ॥सु० ॥सां० ॥ १५ ॥ पुजलनेपरजीवधीरे ॥ १० ॥ कीधोनेद विज्ञान ॥ बाधकतातेहारेटलारे ॥ ॥ हवेकुणरोकेध्यान ||सु॥ सां० ॥ १६। आलंबननावनबसेरे ॥ १० ॥ धरमध्यानप्रगटाय॥ देवचंचपदसाधवारे ॥ १०॥ एहिजसुघनपायरे ॥सु० ॥सां० ॥१७॥ ॥ ढाल ॥३॥जी॥ तुगेतुगेरेमुजसाहेबजगनोतुग॥ ॥ एदेशी॥ आयोआयोरेअनुभवातमचोआयो॥सुनिमित्तबालंबननजतां। यात्माल बनपाटोरे ॥ ॥१॥ आत्मदेत्रीगुणपरजयविधि ॥तिहां उपयोगरमायो ॥ परपरणतिपररीतेजाणी ॥ तासविकल्पसमायोरे॥ ब० ॥ २ ॥ पृथक्त्व वितर्कशुक्लशारोही ॥ गुणगुणी एकसमायो । परजटाव्य वितर्कएकता॥ ईरमोहखपाटोरे ॥ ॥३॥ अनंतानु बधीशु नटनेकाढी॥ दर्शनमोहगमाटोतिरिगति हेतुप्रकितिदयकीधी। थटोआत्मरसरायोरे ॥ १० ॥ ४ ॥ वितीयतृतिटाचोकमीखपाव।।। वेदयुगल क्यथायो। हास्यादिकसत्ताथीध्वंसी ॥उदटावेदमिटायोरे ॥ अ०॥ ५ ॥ थईवेदीने अविकारी ॥ हण्योसंजलनोकषायो ॥ मा रयोमोहचरणदायककर ॥ पूरणसमतासमायोरे ॥ ॥ ६ । घ नघातीत्रिकयोधालमोटा ॥ ध्यानएकत्वनेध्यायो ॥ ज्ञानावरणादि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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