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________________ दे०चो० बा० प्रतीतगोचरथइ तेजीवनेपलधन्यबे तो हे प्रभुजी तमारी सीवातकहुं त मेतो माहापूज्यढो मोहोटाबो इतिचतुर्थ गाथार्थ || ४ || १०४ ताहरासुद्दस्वनावनेजी || आदरेधरी बहुमान ॥ तेहनेते दिजनीपजेजी || एकोई अद्भुततान ॥ वि० ॥ ५ ॥ 0 ार्थ ॥ प्रभुजीताहरोजे सुधनिरदोषस्वभाव अनंतानंदादिरूप अक्रिय का तेहने जे आदरे के अंगीकारकरे वंदन सेवन स्म र ध्यानादिकपणेच्यादरे बलिबहुमान के अत्यादरपणे जे हे तेसा ध्यार्थी सेवकनो तेहवोज पोतानो स्वभावसुध्थाय निःकर्मतानीपजे अनुनाजेवो स्वभाव निर्मलथाय माटेहेप्रनो एकोई अद्भुततांन के० तंत जे रिहंत प्रभुनो सुखरूप चिंतवतां ध्यानकरतां पोतानो स्वरू पनीपजे एहिजा श्वर्यबे इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ तुमप्रभुतुमतारकविभूजी ॥ तुमसमा वरनकोय ॥ तुमदरसाथ की हुतरयोजी ॥ सुधआलंबन होय || वि० ॥ ६ ॥ अर्थ || माटे हे श्रीविमलनाथ माहरानु अधिपतितुमेजबो वलि मुजने संसारमांथी तारवावाला परम निर्यामक परमसामर्थ्यवंत तुमेवो देव नाथ हे पासिंधू हेज्ञाननानु तुंमसमानमाहरे बीजो कोईनथ | त्रीभुवनमांहेत मेज दयाल बगे हेजगतवत्बल ताहरोदर्शन के देखवो ध्यथवादर्शनते समकेतपामेथके हुंतरयो संसारसमुज्ने उलंगीपारथ यो हांकार पामेथके नक्किनाहरषे उपचारखचनको एमसुध निर्मल स्वरूपनोच्यालंबी थयाथका हेनाथ ताहरावरूपने अवलंबे मेमाहारो खरूपन लख्यो तेन लख्याथी खरूपरुचीन पनी पखरूपविश्रामी अनु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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