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दे०चो०वा०
अचलबे तेथीच्अक्रीटयो वलि हेप्रभुजी तुमेच्य स्थितिमीबो जे
ने श्री सिनगवंत तेतो सहे वलि निकलंक के ० सर्व क
खानपानी स्थितितेतो संयोगीनावनी जगुलीने तेथ] अविनासीस्थिति तुमारी र्मकलंकरहितो तथा निरावरणी अनंती याथ के ० संपदा तेना तुम || इतिपंचमगाथार्थ || ५ ||
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परणामिकसत्तातलो | आविर्भावविलास निवासरे || सहजातिमपराश्रयी ॥ निर्विकल्पने निप्रयासरे ॥ मु ॥७ ॥
अर्थ हवे कदाचित् कोईके हसेजेको गुच्अधुरोहसे नाटे ते पू ताकही देखावे परणामिकपणो तेसत्ताकहतांबति तेहनोच्या विर्भाव कहतां प्रगटपणो एटले प्रागभाव ते अनंतगुणपर्याय निरावरण सक
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पुलसंग रहितथवे संपूर्ण सत्ता तिरोभावीहती ते गटथइबे तेप्राग् नावीसत्ताना विलासना अनुभवनो हेप्रभुजीतूं निवास के घरो स्वगुनोगीबो वस्वनावना अनुभवीडो वलि हेप्रनु तुम सहज के० ख नावनो मूलधर्म तेना यऋतिम ते पापराश्रयी के परवस्तुना आधा रविना वलि निर्विकल्प के मनोचिंतनाविना वलिनिप्रयास के प्रया सन्द्यमबिना जे आत्मधर्म तेहनो अनुभव ते तुमेभोगवोबो || ६ || प्रनुप्रभुतासं भारतां ॥ गातांकरतांगु ग्रामरे || सेवकसाधनतावरे॥ संव ॥ रपरतिपामरे ॥ मु० ७ ॥
अर्थ | एह्वाप्रभुनी सेवनानोजे फलथाये ते कहे प्रभुजे श्री श्रेयांस नाथ निम्पन्नत्वी निरामयी निरावरणी तेहनी प्रभुता अनंतग्यान मयी सर्व संवरी अनंतानंदरूप परमेश्वरता सहायता सर्वशक्ति निरा
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