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________________ देचोबा नवदवहोपनु नवदवतापितजीव ॥ तेह नेहोप्रनुतेदनअमृतघनसमीजी ॥ मिथ्या विषहोपनुमिथ्याविषनीटेव ॥ दरवाहोप अहरवाजांगुलमनरमीजी ॥२॥ अर्थ ॥ वलिनवजे चारगतिरूपसंसार तेरूपदावानल नातापेकरी ने बलीरहेलाजीवोनेपरम सीतलताकरवाने ताहारीमूरती ते अमृतना मेहसमान एटले संसारनोताप तमारा दर्शनीमटेडे वलिमिथ्यात्वरू पविष तेहनी खीम के ० मुर्ग तेहनेहरवाने जांगुली के गारुमानामंत्र समान ताहरीमति ॥ इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ भावदोषनुनावचिंतामणीएद ॥ आतमहोपनुआ तमसंपतापवाजी॥ एहिजहोप्रनुएहिजसिवसुख गेह ॥ तत्वहोनुतत्वालंबनथापवाजी॥३॥ अर्थ ॥ वलिहेपनु तुमारी मुशा नाव चिंतामणिरत्नसमान एटले चिंतामणिरत्नते इंजियसुखनोहेतु अने श्रीवीतरागनीमुक्षते मोदसुख नोहेतु माटे आत्मानीअनंतज्ञानादिक संपतिापवाने चिंतामणीरत्न समान माटे एहिजसीवसुखनोघरचे तत्वजे वस्तुनोमूलधर्म तेआ लंबवाने तुमारीमूर्तिश्रेष्टकारणजे ॥ इतिबृतीयगाथार्थ ॥ ३॥ जाएदोषनुजाएआश्रवचाल॥दीदोपदीसं वरवधेजी ॥ रत्नदोषनरत्नत्रयीगुणमाल ॥ अ ध्यातमहोपनूअध्यातमसाधनसधेजी ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ चलि जाटा के नासपामे थानव के नवाकर्मलेवानी चाल एटले प्रनुजीनीमूर्तिदोवे संवरनरहिथा आत्मधर्मरमणरूपव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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