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________________ अध्यात्मगीता ता ॥ उपदेस्योतेणेअध्यात्मगीता ॥ ३ ॥ चाल ॥ व्यसर्वनानावनो जाणंगपारगएह ॥ ज्ञाताकर्तामोक्तारमतापरणतिगेह ॥ ग्राहकरदक व्यापकधारकधर्मसमूह ॥ दानलानबलनोगन पनोगतणोजेव्युह ॥ ४॥ढाल॥सहएकआटावखाएयो॥नैगमेअंसथीजेप्रमाएयो || उविध व्यवहारनत्यवस्तुविहंचे॥ असुझवलि सुघनासनप्रपंचे ॥ ५ ॥ चाल॥ असुझपणेपणस टातेसानेदप्रमाण || नदटाविनेदेव्यनानेदअनंतकहा ॥सुक्षपणेचेतनताप्रगटेजीव विभिन्न॥दयोपसमीकअसंखदायकएक अनन्न ॥ ६ ॥ ढाल || नामथीजीवचेतनप्रबुछ ॥ देवथीअसंखप्रदे सीविसुछ ॥ व्यथावगुणपर्यायपिंग ॥ नित्यएकत्वसहजीवअखंम। ७॥ चाल || नजसुंएविकल्पपरिणामेजीवस्व नाव || वर्तमानपरणति मयव्यक्तिग्राहकनाव ॥ शब्दनये निजसत्ताजोतोएहतोधर्म ॥ सुचत्र रूपीचेतनणग्रहतोनवकर्म ॥ ॥ ढाल ॥ इणिपरेंसुझसिछात्मरूपी ॥ मुक्तपरशक्तिव्यक्तिअरूपी ॥ समकितिदेशबत्तिसर्व विरति ॥ घरेसाध्य रूपेसदातत्वप्रीति ॥ ए || चाल | समनिरुढनये निरावरणीज्ञानादिक गुणमुख्य ॥ दायकअनंतचतुष्टयनोगीमुगधअलख्य ॥ एवं भुतेनिर मल सकलस्वधर्मप्रकाश ॥ पूरणपर्याटागटेपूर्णशक्तिविलास ॥१०॥ ढाल ॥ एमनटानंगसंगेंसनूरो ॥ साधनासिछतारूपपूरो ॥ साधकनाव त्यांलगेंअधूरो ॥ साध्यसिधेन हिहेतुसूरो ॥ १५ ॥ चाल ॥ कालभ नादिअतितअनंतेजेपररक्त ॥ संगांगीपरिणांमेवरतमोहाशक्त ॥ पुज लनोगेरीज्योधारेपुजलखंध॥परकर्त्तापरिणामेबांधेकर्मनोबंध ॥१२॥ ढाल ॥ बंधकवीर्यकरणेन दिरे ॥ विपाकीप्रकृति नोगवेदल विखरे ॥ कर्मनदयागतास्वगुणरोंके। गूणविनाजीव नवनवेंढोंके ॥१३॥चाल ।। आत्मगुणावर्णेनग्रहात्मधर्म ॥ ग्राहकशक्तिप्रयोगेजोमेपुजल शर्म। परलानेपरनोगनेटोगेथायपरकरतार ॥ एहनेअनादिप्रवर्तिवाधिपरवि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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