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________________ श्रीशीतलजिनस्तवन एमअनंतदानादिकनिजगुण ॥ वचनाती तपंडेरजी॥ वासननासननावेदुर्लन ॥ प्रापतितोअतिदूरजी ।। शी० ॥ ए । अर्थ ॥ एम अनंता दान लान नोग उपनोग वार्य सिघत्व प्रमुख गुणहे अनुजी ताहरेषगट तेवचनने गम्यन) पंडूर के मोटा एह वाआत्मगुणनीवासना श्रधा नासन के • जाणपणो ते पामवो उर्लन तोषगटपणे एहवी सितापामवी तेतो घणीज वेगली इति ॥ ए || सकलप्रत्यक्षपणेत्रिनुवनगुरु ॥ जाणतुऊ गुणग्रामजी ॥ बीजोकाईनमांगुस्वामी॥ एहिजडेमुकामजी ॥ शी० ॥१०॥ अर्थ ॥ हेत्रिभुवनगुरु ताहरीगुणसंपदाअनंति तेसर्वहुप्रत्यक्षपणे जाणु एहिजमागुडं एश्चाबे माहेरेएहिजकाम जेताहरीसंपदाते केव लिनेप्रत्यदाडे माटेकेवल ज्ञानमांगुबु इतिदसमीगाथार्थ ॥ १० ॥ एमअनंतप्रनुतासरदहता ॥अरचेजपनु रूपजी॥ देवचंप्रनुतातेपामे ॥ परमा नंदस्वरूपजी॥शी० ॥११॥ अर्थ ॥ एमअनंतिषनुनी परमात्मता सर्वप्रदेसनिरावर्णता अनंतप र्याय निरावरणता सकलज्ञानादिगुण निरावरणता तेनेसरदहतां सम कितगुणप्रगटे तेषभुनागुणनी बहुमानसहितप्रतीतकरतां जे जीव श्री सीतलनाथनागुणनेयोगे अनुनेअर्चे तेषनुनेअर्चवानो अधिकार श्री राठापसेणी सूत्रमध्ये कह्यो ॥ अथ्थेगश्या वंदणवत्तियाए पूटाणवत्तियाए सकारवत्तियाए सम्मा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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