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________________ २६४ दे चोम्बा भोग वीर्य अवर्ण अगंध अरस अस्पर्स परमा संगता अयोगीतारूप पोतानीअनुत्व विनुत्व कार्यत्व व्यापकत्व नित्यत्व अनित्यत्व अस्ति त्व नास्तित्व नेदत्व अनेदत्व कारकत्व परणामीकत्व प्रमेटाव व्यत्व ईश्वरत्व सिचव अखंमत्व अलिप्तत्वादि तेउत्सर्गआत्मसमाधीरूप स र्वशक्तिप्रगटकरी वलितेनिरावर्ण आत्मधर्म तेहनेआस्वाद्यो वरूपभोक्त त्वपणे निजनावके पातानानावपणे भोगव्यो इतिप्रथमगाथार्थ॥१॥ राजलनारीरेसारिमतिधरी॥ अवलंब्या अरिहंतोजी ।। नत्तमसंगेरेनत्तमतावधे॥ सधेआनंदअनंतोजी॥ ने ॥२॥ अर्थ॥वलिराजेमतिस्त्रियपण रुमीमतिअंगीकारकरी सर्वपरिग्रहना संगनोत्यागकरीने श्रीअरिहंतदेवकपर अरिहंतनोरागधरी उपगारीपणे अविलंब्या एटलेनतारपणानो असुघरागटाली देवतत्वनेरागेधाद रया एमविचारपुंजे उत्तमनेसंगे उत्तमतावधे वलिसधे के नीपजे श्रा नंदाआत्यंतिक एकांतिक निरमंद निरामयसुखथाटा तेमाटतेहिज कर बुंघटे इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥ धर्मअधर्मआकाशअचेतना ॥तेविजा तिअग्राह्योजी॥ पुजलग्रहवेरेकर्मकलंक ता॥ वाधेबाधकबायोजी॥ ने ॥३॥ अर्थ ॥ हवेराजेमतियेजेविचारयुतेक सर्वलोकमांपंचास्तिका यो अने काल तेबतिरूपव्यनथी श्रीनाष्यकार तथा अनुटोगधार सुत्रजोतां उपचारपव्य वलिपंचास्तिकायमां धर्मास्तिकाय अधर्मा स्तिकामा अनेआकासास्तिकाटा एत्रणव्य अचेतन तथाविजा तिले वलि जीवषव्यनीएजातीनही अग्रासने तेजीवाग्रहवायनही अ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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