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________________ श्रीअरजिनस्तवन १४१ नाचरणनेसेववे चिंतारहितथयो जेपरमोत्तम सर्वगुणभोगी निरा लंबी चिन्मयी अनंत दान लाभ भोग उपभोग वीर्यमयी श्री जिने श्वर निकर्म देवतत्व परभावनायकर्ता परभावाभोगी परानुयायीतार हित एहवोदेवजीच्यादरयोबे तोमोहनोस्योजोरवे संसारकोहने क नकोनेवे जोपरमोत्तमधीमे माहरेमाथेकरथोबे जेहनाध्यान थी माहारोमोनीपजे ते देवनोयोग मिल्योबे तेमाटे चिंतानथ। उक्तंच श्री जिनवल्लनपुज्यैः ॥ पसरेश्वीयोए || तावमोहंधयारनमश्जइ ॥ मसिन्नंतावमिवत ॥ सिन्नंफर फनफरतां || तनांंसपूरो पयममज यसंती कालसूरोनजाव ते जेमनरंगेबेठाने सिचिताबे तेमप्रनुचर एपसा ये सेवकथया तेपनिचितजावा ॥ इतिचतुर्दसगाथार्थ ॥ १४ ॥ च्अरप्रनुप्रनुतारंग ॥ अंतरशक्ति विकासी ॥ देवचंदनेच्खाणंद || अक्षयनोगविलासी ॥ १५॥ अर्थ || माटेश्रीअरनाथप्रभु अढारमांपरमेश्वर जे ऐतत्वरुचीथया ने तत्वाभिलाषी तत्वसाधक तत्वध्यानीथयीने तत्त्वप्रगट करयोतेनु नीप्रभुता सुखज्ञायकता सुधरमणता सुधानुभवता अपुलीकता अ संगता अयोगीता सकल प्रदेस निरावरणता प्रागभावी सुवसत्ताभोग्यता तेहने रंगेजेरंगणाबे ते साधक सम्यकदृष्टी देसविरति सर्वविरतिनी अंत रंगसक्ति तत्वप्राग् नावकरवानी साधककारकता साधककर्त्तापलो प रमसंवरपूर्वक परमसकामनिर्जरारूप सक्तिवकवरथवे प्रगटथवे तेस तिथी सर्वकर्मविगमथवे सर्वच्यात्मिकधर्मना प्रगटवेकरी परमात्मा देव मांहेचंऽमासमान श्रीनिष्पन्नपरमेश्वर तेहनजेच्छानंद अव्याबाध सी व अचल अरूज अविनासी तेहनोजे अवयवरूप तेहनानाग अनुनवनो विलासी आत्माथाये एटलेखसंपदा तत्वताआत्मसुखपरि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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