________________
१७४
पाचनावनानोस्तवन नपसंगेहोसहुकर्मनोनंग ॥ भवि० ॥ ७॥ जेऽविधउक्करतपतपे ॥ नव पासाशविरत्त॥धनसाधुमुनिढंढणसमा॥झषिखंधकहोतीसगकुरुदत्त॥ भवि० ॥ 5 ॥ निजात्माकंचननणी ॥ तपअग्निकरीसोधंत ॥ न वनवेल ब्धिबलेबते ॥ उपसर्गेहोतेसंतमहंत ॥ नवि० ॥ ए ॥ धनतेह जेधनग्रहतजी ॥ तननेहनोकरी ह ॥ निस्संगवनवासेवसे ॥ तपधारी होजेनिग्रहगेह ॥ नवि० ॥ १० ॥ धनतेहगगुफातजी ॥ जिन कल्पनावअफंद॥परिहारसुचितपतपे॥ तेवंदेहोदेवचंषमुनिंदानवि०॥११॥
॥ढाल ३ जी॥ हवेराणीपदमावती॥ एदेशी॥ रेजीवसाहसआदरो॥मतथावोदीन॥सुखदुखसंपदापदा॥पूर्वकर्म आधीन ॥ रेजी० ॥१॥ क्रोधादिकवसिरणसमे ॥सह्यांदुःखअनेक॥ तेजोसमतामांसहे ॥ तोखरोविवेक ॥ रेजी० ॥२॥ सर्वअनित्यअसा सतो ॥ जेदीसेएह ॥ धनतनसटाणसगासहू ॥ तिणसुंस्योनेह ॥रेजी० ॥ ३ ॥ जिमबालकवेलुतणा ॥ घरकरियरमंत॥ तेहलतेअथवाढहे!। निज निजगृहजंत ॥ रेजी० ॥४॥ पंथीजेमसराहमे ॥ नदीनावनीरी ति ॥ तिमएपरिजनतोमिल्यो | तिणथोशीपाति ॥ रेजी०॥ ५॥ ज्यां खारथत्यांएसगा | विणखारथदूर ॥ परकाजेपापेनले ॥ तुंकिमहोए सूर ॥ रेजी. ॥६॥ तजिबाहिरमेलावमो ॥ मिलि योबहुवार ॥ जे परवमिलियोनही ॥ तिणसुंधरिप्यार ॥ रेजी० ॥ ७॥ चक्रीहरिबल प्रतिहरि ॥ तसुविनवअमान ॥ तेपणकाले संहरया ॥ तुजधनसेझान॥ रेजी० ॥ ॥ हाहाहूतोतुंफिरे ॥ परिटाणनीचिंत ॥ नरकपमयांकहे ताहर। || कुंणकरसेचिंत ॥ रेजी. ए॥ रोगादिक उखऊपने ॥ म नअरतिमधेव ॥ पूरव निजकतकर्मनो ॥एअनुनबहेव॥रेजी ० ॥१०॥ एहशरीरशासतो || दणमेजिंत ॥ प्रीतिकशीतसकपरे ॥ जेवार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org