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________________ सुमतिजिनस्तवन ३ अर्थ || हवेज वनोजे मूलधर्म तेश्री सुमतिनाथ अरिहंतनेनीपनो बे हे जे जीवनवी पुल कहेतां जीवते किवारेपुलीनथी अनं तोकाल संसारावस्थायें पुजलथी एकठोरह्यो पए किवारे पुजल रूपथयो नही तथाजीवतेपुजलनो आधारनथी कारणजे क्षेत्रीव्यच्चाकास धर्म अधर्म जीव पुजल सर्वच्या कासव्य मध्येरलाबे पणजीवना प्रदेसें पुजलनोरहेवो ते जीवनी नावच्प्रसुताथी थयोबे के मजे सर्व सं सारीजीवोने नोग तथा पनोगगुणनो सदाकाल कयोपसम प्रामीयें प एभोगनीप्रगटतानथ तेथीपर नोगीथयोबे वीर्यांतरादानो कोपस म सदापामीयें तेवीर्यपणपरानुयायीथयो तथाकर्ता ग्राहकता व्यापक ता नोक्ता पण सदा निरावणबे अनेकार्य ग्राह्य व्याप्प नोग प्रवरणो वे तेथीला पुजलानुयायी प्रवृत्तितेकार्य पुजल नोगपले तेहना वर्णादिकमांव्यापकथयो पुल नेग्रहेबे पबेजेनेभोगव्यो तेनीज होंसन प जे एटले पुल नोरुची तेफरी पुजल नेग्रहे तथाभोगवे तेथी च्यात्मप्रदेसें पुरांबे आत्मप्रदेसते स्वगुणपर्यायनो खेत्रले पण परपुजल व्य नोखे नथी तथामूलवस्तुध में पुजलनोरंगीनथी स्वधर्मनाच्याखादन विना पुजल नोरंगथयोबे पणवस्तुरीते विचारतां एनेपुजलथी स्यो संबंधबे बलियात्मापरनावनो स्वामीनथी परनावेएनी ऐश्वर्यता केहेतां ठकुराइनथी एटले वस्तुधर्मे कदाकेहेतां कोश्वेला परवस्तुनो संगीन थी जीवव्यनोसत्ताधर्म एवोबे माटेमाहारो सुमतिनाथ परमेश्वर सु चदेवते पुजलनोच्याधार तथारागी के महोटये सर्वपुजलाती तबे ॥ इति ॥ ६ ॥ संग्रहेन हीच्यापे नदी पर नएगी || नविकरेच्यादरे नपरराखे || सुधस्याद्वादनिज नाव नोगी जि के || तेह पर नावनकेम चाखे ॥ ० ॥ ७ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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