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________________ श्रीशांतिजिनस्तवन ११७ बे सर्वसंगरहित असहायी नरदनुत्सर्गनीसक्तिसहित व्यक्तता प्रगट ता निरावलोपा || इतिनवमीगाथार्थ ॥५॥ तमुच्यात्मातुऊथ कीनीपजे ॥ माह संपदास कलमुऊसंपजे॥ तिरोमनमंदिरेधर्म प्रनुध्याइये ॥ परम देवचंऽनिज सिद्धसुखपाये ॥ १० ॥ अर्थ तथी देवश्री वीतराग तुमारेनिमित्तेमाहारो तत्वनीपजे बीजो कोइन पायदेखातानथी माहरीयात्मानो सि६पलो तेताहारास्वरूपने प वलंबेनीपजे माहरोच्यनंतगुणपर्यायरूप खकर्त्तापलो स्वरूपऐश्वर्यता सर्व कर्मावर्तले तेमाने संपजे एटले हुंमाहारीरूपी सत्तागत तत्वसंपदानोध लीतथानोगी च्यबिनासीपणेथाकं एप्रभुजीनोपरमन पगार जाएं तेकार पो मनमंदिरने विषेश्रीधर्मनाथप्रभुने ध्याइए पएबीजीवपाधिचित विएन अनुनागुण तथा पगारनोबहुमानेध्यानकरिये नवासाधकनेए हिज वाधारबे तेवारेपरमनुत्कृष्टदेव जे स्वरूप रमणीमुनी तेहमांचंद्रमासमान जे परमात्मपदरूप निजके पोताना सि६ निष्पन्नसुख अव्याबाधादिक पामिये ९हिजमोनो पालवे तेमाटे श्री रिहंतनोसेवन निरनुष्ठान पले करवो ॥ १० ॥ इतिश्रीधर्म जिन स्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ श्रीशांति जिनस्तवन लिख्यते ॥ माला कहांबरे अथवा घ्याखमीोंने आजसेतुंजो दीवारे प्रदेश | जगत दिवाकरजगत कृपानिधि | वाहालामारा समवसरणमांबेवारे ॥ चौमुखचौविदधर्मप्रका से || तेमेनयदीवारे ॥ नविक जिनदरषोरे ॥ नि रखीसांतिजिद || 70 || उपसमरसनोकंद ॥ नहीएणेसरखोरे ॥ १ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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