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________________ ११७ दे० चोबा. अर्थ॥हवे सोलमांजिनश्रीशांतिनाथअनुनी स्तवनाकहे तेअनुकेह वाडे जगत्रनेविषे दिवाकर के सूर्यनीपरे ज्ञानोद्योतना करनार तथा क्रपाना समुष एहवा मुझने परमवल्लन समोसरणमां बीराजमानथ का चारमुखे चारप्रकारनाधर्मनो प्रकासकरताथका श्रीतिर्थंकरदेव तेमेनटाणे के० आगमश्रवणरूपचकुएंदीता माटे हेनविकजीवो तुमे जिणंद के० सामान्यकेवलीमांईवसमान एहया शांतिपनुनेनिरखीने ह रषवंतथायो उपसमजे परमदमा तदरूपरसतेपण एनातुल्यमथी एवा सांतरसमयी इतिप्रथमगाथार्थ ॥१॥ प्रातिहार्यअतिसयसोना ॥ वा० तेताक हीनजावेरे॥ घुकबालकथीरविकर नरनो॥ वरणनकेणीपरेयावेरे । न० ॥२॥ अर्थ ॥ वलिपनुनी जे धावपातिहार्यनी तथा चोत्रीस अतिस यानी सोना ते मुऊसरिषाव्यामोहिजीवथा वरणविजाटनही षष्टांतजे म घूकबाल कथी के • घुवरनाबालकथी रवीकर के० सूर्यनाकिरण नोनर के ० समूह तेहनोवर्णव केवारीतेथाये अर्थातनहीजथाय तेम मुजसरखाथीपण पातिहार्यादिकनी सोनाकहीजायेनही इति ॥ २ ॥ वाणीगुणपत्रिीसअनोपम ॥ वा० अविसं वादस्वरूपेरे ॥ नवदुखवारणसीवसुखका रण ॥ सुधोधर्मपरूपेरे ॥ १० ॥ ३ ॥ - बलिप्रभुनीवाणी जेदेसना तेहनेविषे उपमा रहित पात्रीसगुणरमाने जेविसंवादपणाथी रहित अविसंवादस्वरूपमटीने तेवाणीयेकरीने न व्यजीवोना भवके. संसारना उखनीवारखाने अर्थे अने शिवकेमो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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