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________________ देचोम्बा भेदताकहेवी प्रथमश्योपसमी चलवीर्यताएं चतनापर्यायनी प्रवर्ति अ संख्यसमटीहती तेनासनप्रवर्ति परिक्रमकारणकार्यमांथीरतापरिणतिएं हती तेक्षिणमोहकाले रोधकनेदये समकाल असंख्यसमटी प्रवर्ति थमा तेकेवलज्ञानथयो मिरावरणतामें एकसमयेथयो एरीतेशनेदता रत्नत्रयीथाय एश्रीनाष्यथीसमजवी ॥ इतिपंचमगाथार्थ ॥ ५ ॥ नपसमरसनरीसर्वजनसंकरी॥ मूर्तिजिनराज नीआजनेटी॥ कारणेकार्यनिष्पत्तिश्रधान॥ तेणेनवश्रमणनीनीममेटी॥ स०॥६॥ अर्थ॥ उपसमरसजे कपाटानोअनाव तेहथीनरीथने सर्वलोकने संकरीके कल्याणनीकरनारी एहवीप्रनुनी थापना के मूर्ति तेहनी सांत अचल अस्पृहमुषा तेाजनेटी के नमस्काररूपेसेवी हवेका रणेकार्यनीपजे एहवीप्रधापतित तेमोदनोनिमितकारण श्रीजिनमु कानोटोगथयो अनेउपादानकारण आत्मोपयोगप्रमुख अध्यवसाय जिनगुणभासन रागहर्षेपरिणम्या एहवाकारणनेमलवे जाणुबुंजेकार णतातेकार्यनोहेतु माटेकारणमलेकार्यनी निष्पत्तिथसे एहवोआगमी कभव्यताद्योग उपयोगथयो तेहथीजाण्युंजेएपरमपुरुर्षोतमदेव श्रीवा तरागनी इष्टतातोउपनी तोकोऽदीवसे एखात्मागुणीथनार एअनुमा नेजाण्योजेकारणमल्यो तोकार्यनीपजसे अनेभवत्रमणपणटल से एह रषनोवचन नवचमणनीनीममटी एकारणेकार्योपचारी वचन एना बनाकरवीजो अनुताश्टलागे तो आत्मासिघतावरसे इतिषष्ठ गाथार्थ६ नयरखं नायतेपार्श्वपनदरशने ॥ विकसतेहर्ष ऊगहवाध्यो॥ हेतुएकत्वतारमणपरणामथी। सिमसाधकपणोआजसाध्यो ॥ स०॥ ७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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