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________________ अध्यात्मगीता २२३ मिल ॥३६॥ ढाल | पबियोगरूंधिथयोतेअटोगी॥ नावसैले सताब चलअंगी ॥ पंचलघुअदरेकार्यकारी ॥ नवोग्राहिकर्मसंततीविदारी॥ ॥ ३७ ॥ चाल ॥ समश्रेणीएकसमएपुहतातेलोकांत ॥ अफूसमाणग तिनिर्मलचेतननावमहांत || चर्मविनागविहिनप्रमाणेजसअवगाह ॥ आत्मप्रदेशअरूपीअखंमानंदअबाह ॥ ३८ ॥ ढाल ॥ जिहांएकसिधा त्मतिमतिहांडेअनंता ॥ अवन्नाअगंधानहिफासमंता || आत्मगणपूर्ण तावंतसंता ॥ निराबाधअत्यंतसुखाश्वादवंता ॥ ३५ ॥ चाल ॥ कर ताकारणकार्यनिजपरिणामिकभाव ॥ झाताझायकनोगनोगतासुचव भाव ॥ ग्राहकरदकव्यापकतन्मटाताएंलीन ॥ पूर्णात्मधर्मप्रकाशर सेल यलीन ॥ ४० ॥ ढाल ॥ व्यथा एकचैतनअलेसी || देवथीजे असंख्यषदेसी ॥ नत्पतिनासधुवकालधर्म ॥ सुचनपजोगगुण नावसर्म ॥ ४५ ॥ चाल | सादिअनंतअनासिअप्रयासोपरिणाम ॥ उपादान गुणतेहजकारणकार्यधाम॥ सुचनिदेपचतुष्टाययुतोरतोपूर्णानंद॥ केवल नाणिजाणतेहनागुणनोबंद ॥ ४२ ॥ ढाल ॥ एहविसिघताकर्णइहा ॥ इंशीयसुखथोजेनिरीहा ॥ पुजलानावनाजेशंगी ॥ तेमुनिसुझपरमा र्थरंगी ॥ ४३ ॥चाल ॥ स्याहादआतमसत्तारुचिसमकितनीतेह॥ आ त्मधर्मनोनासननिर्मल ज्ञानीजेह॥ आतमरमणीचरणीध्यानीआतमला न॥ आतमधर्मरमोतिणनव्यसदासुखपीन ॥ ४४ ॥ ढाल॥ अहोनव्य तुमेन लखोजैनधर्म ॥ जिणेपामिएसच्अध्यात्ममर्म ॥ अल्पकालेटले इष्टकर्म ॥ पामीएवीयआनंदसर्म ॥ ४५ ॥ चाल ॥ नटानिदेपषमा णेजाणोजीवयजीव ॥ स्वपरवीवेचनकरतांथाएलानसदीय ॥ निश्चेने व्यवहारेविचरेजे मुनिराज॥नवसागरनातारणनिर्नयतेहजहाज॥ ४६॥ ढाल || वस्तुतत्वेरम्यातेनिग्रंथातत्वअन्यासतासाधुपंथ॥तेणेकरिगीता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003991
Book TitleDevchandraji krut Chovishi Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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