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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । भिहितत्वेन च प्रमाणतामुपगतस्यास्य समयप्रकाशकस्य प्राभृताह्वयस्याहत्प्रवचनावयवस्य खपरयोरनादिमोहप्रहाणाय भाववाचा द्रव्यवाचा च परिभाषणमुपक्रम्यते ॥१॥ केवलिभिः सर्वज्ञैर्भणितं श्रुतकेवलिभणितं । अथवा श्रुतकेवलिभणितं गणधरदेवकथितमिति । संबंधाभिधेयप्रयोजनानि कथ्यंते-व्याख्यानं वृत्तिग्रंथः व्याख्येयं व्याख्यानतत्प्रतिपादकसूत्रमिति तयोस्संबंधो व्याख्यानव्याख्येयसंबंधः। सूत्रमभिधानं सूत्रार्थोऽभिधेयः तयोः संबंधोऽभिधानाभिधेयसंबंधः । निर्विकारस्वसंवेदनज्ञानेन शुद्धात्मपरिज्ञानं प्राप्तिर्वा प्रयोजनमित्यभिप्रायः समयसार नामा प्राभृतको [वक्ष्यामि ] कहूंगा । टीका-यहां अथ शब्द मंगलके अर्थको सूचन करता है और प्रथमत एव अर्थात् ग्रंथकी आदिमें सब सिद्धोंको भावद्रव्यस्तुतिकर-अपने आत्मामें और परके आत्मामें स्थापनकर इस समयनामा प्राभृतका भाववचन और द्रव्यवचनकर परिभाषण आरंभ करते हैं। इसप्रकार श्रीकुंदकुंदाचार्य कहते हैं । वे सिद्धभगवान् सिद्धनामसे साध्य जो आत्मा उसके प्रतिच्छंदके स्थान हैं। जिनका स्वरूप संसारी भव्यजीव चिंतवनकर-उन समान अपने स्वरूपको ध्यायकर उन्हींके समान होजाते हैं। और चारों गतियोंसे विलक्षण जो पंचमगति मोक्ष उसे पाते हैं । जो पंचमगति स्वभावसे उत्पन्न हुई है इसलिये ध्रुवपनेका अवलंबन करती है । इस विशेषणकर चारों गतियां परनिमित्तसे होती हैं इसलिये ध्रुव नहीं हैं विनाशीक हैं इसलिये चारों गतिओंसे पृथक्पना सिद्ध हुआ। फिर वह गति कैसी है ? अनादिकालसे अन्य (पर) भावके निमित्तसे हुआ जो परमें भ्रमण उसकी विश्रांति ( अभाव ) के वश अचलपनेको प्राप्त हुई है। इस विशेषणसे चारों गतियोंमें परनिमित्तसे भ्रमण होनेका व्यवच्छेद हुआ। फिर वह कैसी है ? जगतमें समस्त जो उपमायोग्य पदार्थहैं उनसे विलक्षण है-अद्भुत माहात्म्यकर जिसमें किसीकी उपमा नहीं पासकते । इस विशेषणसे चारों गतियोंमें आपसमें कथंचित् समानपना भी पाया जाता है उसका निराकरण हुआ। फिर कैसी है ? जिसका नाम अपवर्ग है । इस विशेषणसे धर्म अर्थ काम इनको त्रिवर्ग कहा जाता है इसलिये वह मोक्षगति इस वर्गमें न होनेसे अपवर्ग कही गई है। ऐसी पंचमगतिको सिद्ध भगवान प्राप्त हुए हैं । कैसा है समय प्राभृत ? । अनादिनिधन परमागम शब्दब्रह्मकर प्रकाशितपना होनेसे तथा सब पदार्थोंके समूहके साक्षात् करनेवाले केवली भगवान सर्वज्ञकर प्रणीतपना होनेसे और केवलियोंके निकटवर्ती साक्षात् सुननेवाले आप अनुभव करनेवाले ऐसे श्रुतकेवली गणधर देवोंकर कहे जानेसे प्रमाणपनेको प्राप्त हुआ है । अन्यथा अन्यवादियोंके आगमकी तरह छद्मस्थ (अल्पज्ञानी) का ही कल्पना किया हुआ नहीं है जिससे कि अप्रमाण हो । तथा समय अर्थात् सर्व पदार्थ अथवा जीव पदार्थ उसका प्रकाशक है । और अरहंत भगवानके परमागमका अवयव (अंश) है । ऐसे समयप्राभृतका, अनादिकालसे उत्पन्न हुए अपने और परके मोह अज्ञान मि