Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
View full book text
________________
यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन
कोटि कोटि वन्दनारे...mpps/कीकि
जर वे कुशल संपादक थे काहानी
किसी भी विषय पर लिखित सामग्री का संपादन करना सरल कार्य नहीं होता । संपादन भी एक कला है । संपादन करते समय सम्पादक को अनेक बातों का ध्यान रखना होता है। जैसे लेखक के मौलिक विचारों का हनन न हो, जिस विषय की चर्चा की गई है उससे भिन्न विषय का समावेश न हो। वाक्य रचना सही हो, भाषा निर्दोष हो, वर्तनी की भूल न हो। इसके साथ ही अनावश्यक विस्तार न हो किन्तु विषय वस्तु का स्पष्टीकरण सटीक हो पाठक की रुचि बने रहे आदि।
इस दृष्टि से देखा जाए तो व्याख्यान वाचस्पति आचार्य देव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. एक कुशल संपादक थे। उनके संपादन में वैसे तो अनेक व्यंथों का प्रकाशन हुआ किन्तु सबसे उल्लेखनीय यंथराज श्री अभिधान राजेन्द्र कोष इसके संपादन में आपकी संपादन कला निखर कर समाज के सामने आई। जिस समय आपने श्री अभिधान राजेन्द्र कोष का संपादन किया उस समय आपकी आयु मात्र २४ वर्ष की थी। इसी से आपकी महान प्रतिभा का परिचय मिल जाता है। ऐसे महान संपादन और लेखन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि उसकी स्मृति में साहित्य का प्रकाशन ही हो सकती है। जब यह ज्ञात हुआ कि श्रद्धेय आचार्य भगवंत के परम पावन श्री चरणों में सश्रद्धा सभक्ति सादर वंदन करता हूं।
डीति-जति हिhिani
प्रति,
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ 'RENENENINENENENENENENENINBN8RENENENENIN2 (27) NUNERINENERUNNERBNBNANENERARUNINENENINM
कमलचंद ओटमलजी सेठ, आहोर
ट्रस्टी - मोहनखेड़ा तीर्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org