Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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(८६) वसंतराजशाकुने-षष्ठी वर्गः। इति श्रीवसंतराजशाकुने नरेंगते तृतीयं क्षुतप्रकरणम् ॥३॥
॥ टीका॥ नैर्ऋत्यो प्रियसंगमः ॥१॥ पश्चिमे मिष्टमाहारं वायव्यां शुभसंपदः । उत्तरे कलहं विद्यादीशान्यां च धनागमम् ॥ २ ॥ आकाशे सर्वसंहारं पाताले सर्वसंपदः॥ दश क्षुतानि चैतानि आत्मक्षुत्तो महद्भयम् ॥ ३ ॥ नववस्त्राभरणभृतः क्षुतं तु तादृग्विधस्य लाभाय ॥ स्नानांते दीप्तायां दिशि दुष्टस्नानहेतुः स्यात्" ॥ ४ ॥ रोगिपृच्छायां वैद्यस्याकारणाय गच्छतां भुतं रोगिमृत्युदं भवति वैद्यस्य आगच्छतः क्षुतं रोगं क्षणात् हंति तदुक्तमन्यत्र "वैद्यस्याकारणाय गच्छतां रोगिमृत्युदम् ॥ वैद्यस्यागच्छतो रोगं क्षुतं हंति क्षणादपि ॥ १ ॥
इति वसंतराजशाकुने व्याख्यायां नरेंगिते तृतीयं क्षुतप्रकरणम् ॥ ३ ॥
॥ भाषा॥
वेवाली है, और जेमनीभी शुभकी देवेवारी नहीं है, और बाई पीठ पीछेकी शुभदेवेवारी है, और ग्रामप्रवेशमें तो वामा अशुभदे- ई० १ हर्ष पू० १ लाभ । १ लाभ आ० वेवारी, और दक्षिणा शुभ देवे- । २ नाश २ धनलाभ। २ मित्रलाभ वारी, और पीट पीछली ३ व्याधि ३ मित्रलाभ ३ शुभवाती पराजय करे, और सन्मुखको । ४ मित्रसंगम ४ अग्निभय ४ अग्निभय । छींक लाभ देवे, और घरमें वै- 1 १ शत्रुभय आठौ दिशानमे प्रहर १ लान ठो होय, और काम करिवेकी ०९ पर
उ०२ रिपुभय प्रहरके छिक्काको शु. २ मृत्युभव इ०
। ३ लाभ भअशुभको जिताय ३ नाश इच्छा जाकी होय ता पुरुषक
४ भोजन वे वारो चक्रम् ४ कलि दिशानको फल जाननो, पूर्वमें छी
| १ स्त्रीलाभ १ दूरगमन क होय तो निश्रय लाभ होय,
लाम हाय, वा०२ लाभ प० २ हर्ष २ मित्रभेट ने० और अग्निकोणमें हानि होय, | ३ मित्रलाभ ३ कलह | ३ शुभवार्ता और दक्षिणमें मरण होय, नै:- | ४ दूरगमन । ४ चोर
४ लान । त्यमें उद्वेगहोय, और पश्चिममें सर्व संपत् होय, वायव्यमें शुभवातसुने, और उत्तरमें होय तो धन लाभ होय; और ईशानमें छीकहोय तौ श्रीविजय होय, प्रस्थानसमयमेंभी दिशानको फल और ग्रंथमें कयौहै ॥ पूर्वदिशामें छींक होय तो मृत्युहोय, और अग्निकोणमें शोक होय, दक्षिणमें हानिहोय, नैत्यमें प्रियसंगम. होय, पश्चिममें मिष्ट आहार होय, वायव्यमें श्रियसंपदा होय, उत्तरमें कलह होय; ईशानमें धनको आगमन होय, आकाशनाम ऊपर छींक होय तो सर्व
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