Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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(३३०) वसंतराजशाकुने-त्रयोदशी वर्गः। यादृक्स्वरज्ञानमिहोपयुक्तं तादृङ्न चेष्टाधुपयोगमेतियत्पिगलो रात्रिचरः पतत्री तेन स्वरांस्तावदुदाहरामः ॥२३॥ यः पार्थिवोऽसौ वडिमोय आप्यः स कौलिको यस्त्विह तैजसोऽसौ ॥ करंगुलीयोऽनिलजः स वीसो यस्त्वांतारक्षः किसरस्वरोऽसौ ॥२४॥ एकमात्र उदितश्चिलितीह स्याद्विमात्र इह यस्तु चिलीति ॥ स त्रिमात्र इह यश्चिलिलिं स्यान्मात्रिकैश्चिलिचिलीति चतुर्भिः॥२५॥
॥ टीका।। यागिति ॥ इहास्मिल्लोके यादृक् स्वरज्ञानमुपयुक्तं तादृक् चेष्टादिनोपयोगमेति । तेन कारणेन यः पिंगलाभिधानः पतत्री वर्तते तस्य तावत्स्वरानुदाहरामः ॥ २३ ॥ य इति ॥ इह शास्त्रे यः पार्थिवः स्वरः असौ वडिमः कथ्यते इति सर्वत्र संवध्यते । य आप्यास कौलिको यस्तैजसः असौ करंगुलीयः य अनिलः स वीसः यस्त्वांतरिक्षः असौ किसरस्वरः ॥ २४ ॥ एकेति ॥ इह शास्त्रे चिल् इति
॥ भाषा॥
यामें और विशेषभी जाननो एकशांतदृष्टि एक दीप्तदृष्टि जो सम्मुख सरल जेमनेमाऊंके देशमें सूर्यकू इनेदेखती होय तो शांतदृष्टि जाननी. याको शांतही फल जाननो.
और सुन्दर स्थानकू देखरही होय वा अशुभ स्थलकू देख रही होय नाचे मुख और दृष्टि होय तो दीप्तादृष्टि जाननी. और दोपक्षी न्यारे न्यारे स्थानमें होंय दीखते होय तो शांत और परस्पर अंगकू स्पर्श करत होय दीखे तो दीप्त जाननी. शांतको शांतफलं दीप्तको दीप्तफल है ॥
इति वसंतराजभाषाटीकायां पिंगलास्तेधिवासनप्रकरणं प्रथमम् ॥ १॥
यादृगिति ॥ या लोकमें जैसो स्वर ज्ञान है तैसो और कोईभी चेष्टा उपयोग नहीं है. ताकारणकर पिंगला नामपक्षीके स्वरनकू कहैं हैं ॥ २३ ॥ य इति ॥ या शास्त्रमें जो पाथिव स्वर है वाकू बडिम कहें हैं. और जो आप्यस्वर हैं वाकी कौलिक संज्ञा है. जो तेजसस्वर है वाकी करंगुलीय संज्ञा है. जो अनिलस्वरहै वायवीयस्वरहै वाकू सवीसं कहेहैं. जो आंतारक्ष है वाकी किसर स्वर संज्ञा है ।। २४ ।। एक इति ॥ या शास्त्रमें चिल ये एकमा
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