Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 566
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) स्वमाध्याय। नि पापानीत्येवं हि जगतीतले ॥ ४॥ तन्मध्य आयं षटकं तु शिवं वाशिवमप्यथ ॥ अन्त्यं त्रिकं तथा नृणामचिरात्फलदर्शकम् ॥ ५॥ प्राज्ञेन पुरुषेणेहावश्यं ज्ञेयः स्वचेतसि ।। स्वनो विचार्यस्तस्यार्थस्तथा चैकाग्रचेतसा ॥६॥रतेहासाच शोकाच्च भयान्मूत्रपुरीषयोः ॥ प्रणष्टवस्तुचिन्तातो जातः स्वप्नो वृथा भवेत् ॥७॥ कफाप्लुतशरीरस्तु पश्येदहु जलाशयान् ॥ नद्यः प्रभूत सलिला नलिनानि सरांसि च ॥८॥ स्फटिकै रचितं सौधं तथा श्वेतं च गह्वरम् ॥ तारागणं च चन्द्रं च तोयदानां च मण्डलम्॥९॥रसांश्च मधुरान्दि व्यान्फलानि विविधानि च ॥ आज्यं यज्ञोपकरणं यज्ञमण्डपमुत्तमम् ॥ १०॥ शुभालंकारशालिन्यः पृथुलस्तनमण्ड लाः ॥ सुलोचनाः पीनसक्थिपरिशोभितमध्यमाः॥११॥ श्वेतवस्त्रैः श्वेतमाल्यैर्विकासन्त्यश्च योषितः॥ पित्तप्रकृतिको यश्च सोऽग्निमिदं प्रपश्यति ॥ १२ ॥ विद्युल्लतायाश्च तेजस्तथा पीतां वसुन्धराम् ॥ निशितानि च शस्त्राणि दिशो दावानलार्दिताः ॥ १३ ॥ फुल्लास्त्वशोकतरवो गांगेयं पापपुण्यसे इसप्रकारसे स्वप्न होतेहैं ॥ ४ ॥ उनमें पहले छः भला या बुरा फल देते हैं, शेष पिछले तीन शीघ्रही फल देते हैं ।। ५ ॥ बुद्धिमान् पुरुषको यह बात चित्तमें अवश्य जाननी चाहिये, स्वप्नमें देखी बातको एकाग्रचित्तसे अर्थपूर्वक विचार ॥ ६ ॥ रतिमें हाससे शोकसे भयसे मूत्रपुरूषके वेगसे तथा नष्ठवस्तुकी चिन्तासे देखाहुआ स्वप्न व्यर्थ होजाताहै ॥ ७ ॥ शरीरमें कफका वेग होनेसे बहुतसे जलाशय, नदियें तथा बडे जलोंवाले सरोवर दिखाई देतेहैं ॥ ८ ॥ स्फटिकमणियोंके रचित महल, श्वेत घने स्थान, गुफाऐं, तारासमूह चंद्रमा और मेघमंडल दिखाई देतहैं ॥ ९ ॥ मधुर और दिव्यरस अनेक प्रकारके दिव्यफल, घृत यज्ञकी सामग्री यज्ञका उत्तम मण्डप ॥ १० ॥ अच्छी गहनोंसे युक्त बड़े स्तनोंवाली सुन्दर नेत्रोंवाली पुष्टगलेकी अस्थिसे शोभित सुन्दर मध्यभागवाली ॥ ११ ॥ श्वेत वस्त्र तथा श्वेतमाला पहरे स्त्रिये दिखाई देतीहैं । और पित्त प्रकृतिवालेको जलतीहुई अग्नि दिखाई देतीहै ॥ १२ ॥ बिजलीतेज पीतवर्णवाली पृथिवी तीक्ष्ण शस्त्र, दावानलसे युक्त दिशायें दीखतीहैं ॥ १३ ॥ फूलेहुए अशोक वृक्ष निर्मल गंगाजल, क्रोधका होना तथा आघात और गिरना आदि तथा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596