Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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भाषाटीकासमेत। थापि वा ॥ स्वप्ने कुर्याद्यः पुमांश्च स राजा भवति ध्रुवम् ॥ ॥५३॥ स्वप्ने राजा भवेद्यश्च यश्च चौरो भवेत्पुनः ॥ पुनः स्वामी भवेद्यश्च स राजा स्यादसंशयः ॥५४॥ मूत्रैः पुरीपैलिप्ताङ्गः स्मशाननिलयो नरः ॥ खादेन्मूत्र पुरीषं च स भवेत्पृथिवी पतिः ॥५६॥ गौरानडत्समायुक्त यानमारुह्य यो नरः॥ उदीचीमथवा प्राची दिशं गच्छेत्स भूपतिः॥५६॥ स्वप्नमध्ये यस्य देहः केशविरहितो भवेत् ॥ तमथो नरशाVलं लक्ष्मीरायाति दासवत् ॥१७॥ स्वप्नमध्ये स्वस्य गेहं पातयित्वा पुनर्नवम् ॥ निबध्नाति पुमांस्तस्य व्यसनं लयमाप्नुयात्॥५८॥ स्वप्ने यो नीलवर्णी गां धनुर्वा पादरक्षणम् ॥ प्राप्नुयात्स प्रवासादै सत्वरं स्वगृहं विशेत् ॥ ५९॥ अपानद्वारतो यश्च जलपानं करोति वै ॥ स्वप्ने तस्य धनं धान्यं विपुलं जायते ध्रुवम् ॥६० ॥ आपादमस्तकं यश्च निगडर्ब ध्यते नरः॥ पुत्ररत्नं प्रपश्येत्स ध्रुवं तत्र न संशयः॥६॥ यो ग्राम नगरं वापि स्वप्ने यो वेष्टयेन्नरः॥ मंडलाधिपतिःस
स्याद्राममुख्योऽथवा भवेत् ॥६२॥ निम्नायामथ भूम्यां यः घा स्वप्नमें जलपान घोडेपर चढकर करै वह निश्चय राजा होताहै ॥ ५३ ॥ जो स्वप्नमें राजा होकर फिर चोर होजाय और फिर स्वामी होजाय तो वह निश्चय राजा होताहै ॥ ५४॥जिस पुरुषके अंगमें स्वप्नमें मूत्रपुरीष लगजाय, या मरघटमें घरहोता दीखे तथा मूत्रपुरीषका भक्षण करे यह राजा होताहै ।। ५५ ॥ सफेद बैलसेयुक्त यानपर चढ़कर जो पुरुष उत्तरदिशाको अथवा पूर्वदिशाको जाय वह राजा होताहै ॥ १६ ॥ स्वप्नमें जिसपुरुषका शरीर केशरहितहो सिंहकी समान उस पुरुषको लक्ष्मी दासीकीसमान प्राप्त होतीहै ॥ ५७ ॥ जो स्वप्नमें अपना घर गिराकर नयाघर वनाताहे उस पुरुषके व्यसनका नाश होताहे ॥५८ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें नीली गोको प्राप्तहो वा धनुषको वा पादरक्षा (जूते ) को प्राप्तहो वह परदेश जाकर शीघ्रही अपने घरमें आताहै || ५९ ॥ जो स्वप्नमें अपान मार्गसे जलपान करताहै. उसके निःसन्देह धनधान्यं बहुत होताहै ।। ६० ॥ जो पुरुष चरणसे मस्तकपर्यन्त बेडियोंसे बांधा जाय वह निःसन्देह पुत्ररूपी धनको प्राप्त होगा ।। ६१ ॥ जो स्वममें ग्राम पा नगरको घेरताहै वह मण्डलाधिपति होताहै अथवा ग्रामका मुखिया होताहै।। ६२॥ गहरी पृथ्वीमें जो गिरफर फिर उठे
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