Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 593
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत । (३७) मासान्स जीवति ॥४॥ पीवा कृशः कृशः पीवा योऽकस्मादेव जायते ॥ स्वभावाच परावृत्तः स जीवेदष्टमासिकम् ।। ॥५॥ स्वप्ने यस्य भवेद्गुल्फात्पादखण्डनमेव च ॥ पश्येत्तस्य भवेदायुवित्सप्तममासिकम् ॥ ६ ॥ कपोतगृध्रौ काकोल वायसावपि मूर्धनि ॥ व्यादो वा खलो लीनः पण्मासान्स च जीवति ॥ ७ ॥ हन्यते काकचण्डालैः पांशुवर्षेण वा नरः ॥ स्वां छायां चान्यथा दृष्ट्वा चतुर्मासान्स जीवति ॥ ८ ॥ सौदामिन्यभ्ररहितां दृष्ट्वा यामी दिशं तथा ॥ उत्तरां च धनुःश्लिष्टां जीवितं द्वित्रिमासि कम् ॥ ९ ॥ घृते तैलेऽथवाऽऽदशैं तोये वा स्वश रीरकम् ॥ यः पश्येदशिरस्कं स मासादू न जीवति॥१०॥ यस्य देहे छागसमो मृतदेहसमोऽपि वा॥ गन्धौ भवेत्पुमान्सोऽपि पक्षपूर्ति न जीवति ॥ ११ ॥ यस्य वै स्नातमात्रस्य हृत्पादमवशुष्यति ॥ स्वप्ने वा जागरे वापि स जीवेदशवासरम् ॥ १२॥ निम्नः सन्मारुतो यस्य मर्मस्थानानि कृन्तति ॥ न हृषत्यम्बुसंस्पर्शात्तस्य मृत्युरुपस्थितः ॥ १३ ॥शाखा मृगक्षयानस्थो गायांश्चदक्षिणां दिशम्।। स्वप्ने प्रयाति तस्यापि कर नौमहीने जीताहै ॥४॥स्थूल पुरुष अकस्मात् कृश होजाय और कृश पुरुष पुष्टहोजाय स्वभाव बदलजाय यह पुरुष आठ महीने जीताहै ॥ ५ ॥ स्वप्नमें जिस पुरुषको गांठसे पैरका खण्डन दोखे वह सातमहीने जिये ॥ ६ ॥ जिसके मस्तकपर कबूतर गिद्ध काक राक्षस दुष्ट लगेहुए दखेिं वह पुरुष छः महीने जीताहै ॥ ७ ॥ जो पुरुषकाक और चाण्डालोंसे अथवा धूलिके वर्षनेसे नाश को प्राप्त हो अथवा अपना छायाको और तरह देखै वह चार महीने जीताहै ।। ८॥ मेघसे रहित बिजलीको दक्षिणदिशामें देख कर और धनुषसे व्याप्त उत्तर दिशाको देखकर दो तीन महीने जीताहै ।। ९ ।। जो पुरुष स्वप्नमें घृतमें, अथवा तेलमें शीसेमें जलमें मस्तकरहित अपने शिरको देखे वह महीनेसे ऊपर नहीं जीता ॥ १० ॥ जिसके शरीरमें बकरीके वा मृतदेहके समान गन्ध होतीहै वह पुषरु पक्षके भीतर मरजाताहै ॥ ११ ॥ स्वप्नमें अथवा जागतेमें स्नानकरतेही जिसपुरुषका हृदय और पैर सूखतेहैं वह दश दिन जीताहै ॥ १२ ॥ तेज वायु जिस के मर्मस्थानको काटतीहै , जलके स्पर्शसे जिसे आनन्द नहीं होताहै, उसकी मृत्यु समीपमें है ॥ १३ ॥ जो चन्दर For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 591 592 593 594 595 596