Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 595
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत। (३९) पिधाय कौँ निर्घोषं न शृणोत्यात्मसम्भवम् ॥ नश्यते चक्षुषो ज्योतिर्यस्य सोऽपि न जीवति ॥ २५ ॥ पतितो यश्च वै गर्ते स्वप्ने निष्कास्यते नहि ॥ नचोत्तिष्ठति यस्तस्मात्तदन्तं तस्य जीवितम् ॥ २६ ॥ स्वप्नेऽग्नि प्रविशेषस्तु न च निष्कामते पुनः ।। जलप्रवेशादापि वा तदन्तं तस्य जीवितम् ।। २७॥ ऊर्ध्वा च दृष्टिन च संप्रविष्टा रक्ता पुनः संप्रति वर्तमाना ॥ मुखस्य चोष्मा विवरं च नाभेः शंसंति पुंसामपरं शरीरम् ॥ २८ ॥ यश्चापि हन्यते दुष्टेभूत रात्रावथो दिवा ॥ स मृत्यु सप्तरात्रे तु पुमानाप्नोत्यसंशयम् ॥२९॥ स्ववस्त्रममलं शुक् रक्तं पश्यत्यथासितम् ॥ यः पुमान्मृत्युरापन्नस्तस्येत्येवं विनिर्दिशेत् ॥३०॥ स्वभाववैपरीत्यं तु प्रकृतेस्तु विपर्ययः॥ कथयन्ति मनुष्याणां षण्मासं जीवितावधिः॥३१॥ लिङ्ग-पुराणे॥ अप्सु वा यदि वाऽऽदर्शयोह्यात्मानं न पश्यति ॥ अशिरस्कं तथात्मानंमासादूर्वन जीवति ॥३२॥ नारदः॥आत्मनस्तु शिरश्छायां नैव पश्येत कहिंचित् ॥ उत्पातमीदृशं दृष्ट्वा. मासमेकं स जीवति ॥ ३३॥ स्वरशास्त्रे ॥ हस्ते न्यस्ते सवारीमें दक्षिणदिशाको जाताहै, उसकी मृत्यु, शीघ्र जाननी चाहिये ॥ २४ ॥ कानोंको ढककर जो अपने शब्दको नहीं सुनताहै, जिसकी नेत्रकी ज्योति नष्ट होतीहै वह भी नहीं जीताहै ॥ २५ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें ग8में पतितहो निकला नहींजाय और न उठसकै वह भी नहीं जीताहै ॥ २६ ॥ स्वप्नमें जो अग्निमें प्रवेश कर फिर न निकले अथवा प्रवेश करे वहभी मृत्युको पाताहे ॥ २७ ॥ जिसकी दृष्टि ऊर्ध्वगामिनी होजाय पीछे न लौटै और फिर वर्तमान होकर लाल होजाय मुखमें गरमी नाभिमें विबर दीखे वहभी नहीं जीताहै ॥२८॥ जो पुरुष स्वप्नमें रात्रिमें दिनमें दुष्टप्राणियोंसे माराजाय वह पुरुष सातरातमें मरताहै, इसमें कुछ संशय नहींहै ॥ २९ ॥ जो पुरुष अपने निर्मल सकेद वस्त्रोंको लाल वा काले देखताहै वह. पुरुष मृत्युको पाताहै ॥ ३० ॥ स्वभावका विपरीत होजाना प्रकृतिका बदल जाना जिनके हो उन मनुष्योंकी छः महीनेकी आयु जानो ॥ ३१ ॥ यह लिङ्गपुराणमें लिखाहै जो पुरुष जलमें अथवा शीसेमें अपने शरीरको नहीं देखताहै, अथवा शिररहित आत्माको देखता है वह महीनेसे ऊपर नहीं जीताहै ।। ३२ ॥ नारद कहतेहैं जो कभी अपने शिरकी छायाको नहीं देखे तो इसप्रकारके उत्पातको देखकर एक महीने जीताहै ॥ ३३ ॥ स्वरशास्त्रका For Private And Personal Use Only

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