Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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भाषाटीकासमेत।
(३५) यस्य तस्य भवेन्मृतिः।।१०६॥इन्धनंधूममुल्मूकं सधूमाग्नि च यः पुमान् ॥ स्वप्ने पश्यति तस्य स्याद्धनधान्यक्षयो भृशम् ॥ १०६॥ मन्थानदण्डं शूर्प च लागलं पाशदोरको ॥ पश्यति स्पृशति स्वप्ने यस्तस्य स्यादनक्षयः ॥ १०७॥ स्वप्ने वयोविकारं यो नरः पश्येद्यदि स्वतः ॥ मङ्गलानां विनाशः स्यात्तस्य नास्त्यत्र संशयः॥ १०८॥ प्रासादको टच्छत्राणां ध्वजस्य कलशस्यच ॥ भङ्गे दृष्टे राज्यनाशोऽथवा तस्य मृतिर्भवेत् ॥ १०९ ॥ देवमन्दिरभङ्गोऽथ ग्राम भङ्गोऽथवा यदि ॥ स्वप्नमध्ये दृष्टिपथमायातो नाशकृद्भवेत् ॥ ११० ॥ देहभङ्गे देहभङ्गश्चक्षुर्भङ्गेऽन्धता भवेत् ॥ कर्णभङ्गे च बाधिर्य भवेदत्र न संशयः ॥ १११ ॥ क्षेत्रे जलमयः पूरो भवेत्स्वप्ने यदीशितुः ॥ तस्मिन्वर्षे तस्य धनं धान्यं चापि क्षयं व्रजेत् ॥ ११२॥ स्थलभूमिमकस्माद्यः स्वप्ने पस्येजलाप्लुताम् ॥ तस्य व्याधिग्लानिधनहानिः स्या नात्र संशयः ॥ ११३॥ अंत्यजस्त्री यदि स्पृष्टा द्यूते वा
॥ १०५ ॥ जो पुरुष ईधन धुआं कोयला धुरसहित अग्निको स्वप्नमें देखताहै उसके अत्यन्त धनधान्यका क्षय होताहै ॥ १०६ ।। जो स्वप्नमें रईका डण्डा देखताहै छाज हल पाश डोरा देखता वा ठूताहै उसके धनका क्षय होताहै ॥ १०७ ॥ जो मनुष्य स्वप्नमें अपनी आयुका विकार दखि उसके मंगलोंका विनाश हो इसमें कुछ संदेह नहींहै ॥१०८॥ राजमहलका किलका छत्रका ध्वजाका कलशका टूटना देखनेसे राज्यका नाशहो, अथवा उस पुरुषकी मृत्युहो ॥ १०९ ॥ देवमन्दिरका टूटना ग्रामका नाश जो स्वप्नमें देखे उसका नाशहो ॥ ११० ॥ स्वप्नमें शरीरभंग होनेपर शरीरनाश होताहै, नेत्रके नाशहोनेसे नेत्र जाताहै अर्थात् अन्धा होताहे कानका नाश होनेपर बहरा होताहै इसमें कुछ संशप नहींहै ॥ १११ ॥ स्वप्नमें जिस स्वामीके खेतमें जलसेयुक्त झागहों वा समस्थलमें जल भरजाय उस वर्षमें उस पुरुषके धनधान्यका क्षय हो। ताहै ॥ ११२ ॥ जो स्वप्नमें अकस्मात् जलसे व्याप्त स्थलभूमिको देखे उसको व्याधिहो (रोगही)
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