Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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भाषाटीकासमेत।
(१९) ॥९१ । जलधीनां नदीनां च यानमापूपपाचनम् ॥ स्वप्ने यः कुरुते तस्य धनं वृद्धिमवाप्नुयात् ॥ ९२॥ स्वप्ने मृण्मयभाण्डानां धेनूनां वा चतुष्पदाम् ॥ भूमण्डले च साम्राज्यं प्राज्यं तस्य भवेदध्रुवम् ॥१३॥ स्वप्ने यस्य मुखे दोहो धेनोः स्याच्छत्रुनाशनम् ॥ वीणां च वादयेद्यो वै धनं तस्य समृभुयात् ॥ ९४ ॥ कृष्णागर च कर्पूरकस्तूरीचंदनांबुदाः॥ यस्य दृष्टिपथं यान्ति लिप्यन्ते वा स मानभाक् ॥ ९५ ॥ मित्राणामथ बन्धूनामलंकृतशरीरिणाम् ॥ वधूनां कमलानां चदर्शनं शुभदायकम्।।९६॥कलविकं नीलकण्ठं चापं सारसमेव च ॥ दृष्ट्वा स्वप्ने जागृयायः स भायों लभते ध्रुवम् ॥ ९७॥ धेनोोहनभाण्डे यः सफेनं क्षीरमुत्तमम् ।। स्थितं पिबति यः स्वप्ने सोमपस्तस्य मङ्गलम् ॥९८ ॥ गोधूमानां यस्य लाभो दर्शनं वा भवेद्यदि ॥ यवानां सर्षपाणां च तस्य विद्यागमो मवेत् ॥ ९९ ॥ राजानो ब्राह्मणा गावो देवाश्च पितरस्तथा ॥ स्वप्ने ब्रूयुर्यच यस्य तत्तत्स्यानैव संशयः
॥ १०॥ यो भुजायां ध्वजं पश्येन्नाभौ वल्ली तरुं तथा ॥ संदेह शुभ होताहै ॥ ९१ ॥ जो समुद्र वा नदी यानद्वारा तरताहै वा पुओंको खाताहै उसका धन वृद्धिको प्राप्त होताहै ॥९२ ॥ स्वप्नमें जो मट्टीके पात्रोंका गौओंका चतुष्पदोंका पाचन करताहै, उसका भूमण्डलमें बडा राज्य होताहै ॥ ९३ ॥ स्वप्नमें जिसको मुखमें गौका दोहन हो उसके शत्रुका नाश होताहै, और जो वीणा बजावे उसके धनकी वृद्धि होतीहै ॥ ९४ ॥ कालाअगर कपर कस्तुरी चंदन बादल ये जिसको दीखें अथवा जो इनको माथेपर लगावे वह मानका भागी होताहै अर्थात् संसारमें उसका मान होताहै ॥९५ ।। मित्रोंको बन्धुओंको गहने पहरे देखै वा सुन्दर देहवालोंका स्त्रियोंका कमलोंका दर्शन शुभदायक होताहै ॥ ९६ ॥ चिडा नीलकंठ सारस इनको स्वप्न देखकर जागे वह निश्चय स्त्रीको प्राप्त होताहै ॥ ९७ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें गौके दुहनेके वर्तनमें झाग सहित उत्तम दूध पीताहै उसका मंगल होताहै ॥ ९८ ॥ जिसको गेहूंके आटेका लाभ हो अथवा दर्शनहो अथवा जोके आटे सरसोंका लाभहो उसको विद्याकी प्राप्ति होतीहै ।।९९ ॥स्वप्नमें राजा ब्राह्मण गौएं देव पितर ये जिस्से स्वप्नमें जो जो कहैं निःसन्देह वह उस पुरुषको मिलताहै ॥ १० ॥ जो स्वप्नमें भुनामें ध्वजा देखे नाभिमें लता वृक्ष देखे निश्चय
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