Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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(२६)
स्वमाध्याय। न संशयः॥ १६॥ अहिं च नकुलं कोलं जम्बुकं च तरक्षकम्॥ स्वप्ने वीक्ष्य नृणां द्वेषकारकाः प्रभवन्ति हि ॥ १७॥ चित्रकं च चमूरुंच गण्डकं योऽवलोकयेत ॥ स्वप्नमध्ये नरस्यास्य भवेत्सौभाग्यसंशयः ॥१८॥ कलविकं वायसं च कौशिकं खञ्जनं किरिम्।।दृष्ट्वा स्वप्ने जागृयायः स धनैर्वजितो भवेत् ॥ १९ ॥ जलकुक्कुटा दात्यूहकुररीकुक्कुटा यदि ॥ स्वप्ने दृष्टिपथंयाता विनाशं कुर्वते खलु।॥२०॥ पाकस्थाने सूतिगृहे प्रसूनविपिनेऽपि च॥प्रविशेषःस पुरुषोमृत्युमाप्नोत्यसंशयम्।। ॥२१॥ कूपे गर्ते कन्दरायां स्वप्ने यः प्रविशेत्पुमाः।। भापदामास्पदं स स्याद्विपदां च पतिर्भवेत् ॥२२॥ पक्कमांसं मक्षयेद्यः प्रेक्षयेद्वा लभेत वा॥क्रयविक्रयतस्तस्य द्रव्यनाशो भवेद्धवम् ॥२३॥शष्कुल्याः पौलिकायाश्चापूपस्य वरणस्य च ॥ भक्षणं कुरुते स्वप्ने शोकाद्यैः स प्रपीड्यते ॥२४॥ स्वप्नमध्ये सरोमध्ये कमलानि प्रपश्यति ॥ उद्भवन्ति नरो यश्च स रोगैर्नश्यति ध्रुवम् ॥ २५ ॥ स्वप्नमध्ये पिशाचायैः
सुरापानं करोति यः॥ दारुणैर्व्याधिभियाप्तो मरणं से स्वममें हानिकारक होताहै, इसमें कुछ संशय नहींहै ॥ १६॥ सांप नेवला, गीदड़, शूकर, इनको स्वप्नमें देखना मनुष्यों के द्वेषकारक होताहै ॥ १७ ॥ चीता और मृग गेंडा इनको जो स्वप्नमें देखे उस पुरुषके सौभाग्यका नाश होताहै ॥१८॥ चिडिया, काक, उल्लू, कोडीला,सांप, चैटीको स्वप्नमें देखकर जो जामे वह धनसे रहित होताहै ॥१९॥ जलमुर्गावी, कालाकाग, कररी नाम जीव मुरगा यदि ये स्वप्नमें दीखें तो निःसंदेह विनाश करते हैं ॥ २०॥ रसोईके स्थानमें प्रसूतीके घरमें पुष्पोंके बगीचेमें जोप्रवेश करे वह पुरुष मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २१ ॥ कूपमें गढ़ेमें गुफामें जो पुरुष प्रवेश करे उसपुरुषको आपत्तियें होती हैं, विपत्तियोंका मानो स्थानही होताहै ॥ २२ ।। जो पक्कमांसको खाय वा देख वा प्राप्त होय मोल ले या बेचे उसके द्रव्यकानाश निःसंदेह होता है ॥ २३ ॥ पुरीको अधपके भन्नको मालपुएको वरना ( वृक्षको ) जो स्वप्नमें खाताहै । वह शोकसे पीडित होताहै ॥ २४ ॥ स्वप्नके बीचमें तालाबमें कमलोंको देखताहै, वह पुरुष रोगोंसे निःसंदेह नाशको प्राप्त होताहै ॥ २५ ॥ जो स्वप्नमें पिशाचादिकोंके साथ मदिरापान
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