Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 577
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत । ॥ प्रपूर्यते ॥ ११० ॥ नन्द्यावर्तः स्वस्तिकश्च दूर्वामाङ्गल्यदोरकः ॥ स्वमे दृष्टिपथं यायाद्यस्य स स्यान्नृपायणीः ॥ १११ ॥ व्यजनां कुशवज्राणि भाजनध्वजतोरणान् ॥ स्वमे यः पश्यति पुमान्स्पृशेद्वा स प्रवर्धते ॥ ११२ ॥ विलासिनी कुचा भोगपरिमर्दनचाटुभिः ॥ क्रीडाभी रमते यश्च स स्त्रीधनमवामुयात् ॥ ११३ ॥ खगपट्टिशशाङ्गासिपुत्रीचक्रगदाः शिताः ॥ स्वप्रे पश्यति चेत्पाञ्चजनं स लभते महीम् ॥ ॥ ११४ ॥ शातकौम्भविदूरेजवज्रभूषितमेदिनीम् स्वप्रे यः पश्यति पुमान्स स्याच्छुभशतैर्युतः ॥ ११५ ॥ तुलाया तोलनं पश्येद्धान्यशस्त्रादिवस्तुनः ॥ शुभलाभो भवेत्तस्य दर्शनं वा करोति यः ॥ ११६ ॥ शालितन्दुलमुद्गानां कणान्पश्यत्यथ स्वयम्॥ आदत्ते करमध्ये वा भुङ्गे वा सभवेद्धनी ॥ ११७ ॥ वैकुण्ठपीठनिलयं चतुर्भुजधुरंधरम् ॥ श्री हरिं वीक्षये स्वप्ने स स्याद्योगिवरो नरः॥ ११८ ॥ लक्ष्मीं सरस्व तौं सूर्यबिम्बं गोत्रस्य देवताम् ॥ स्वप्ने दृष्ट्वा जागृयाद्यः स धन्यो मान्य एव च॥११९ ॥ सरोवरं सागरं च प्रपूरितजलैर्युतम् ॥ स्वप्नमें देखता है उसके धन पूर्ण होताहै ॥ ११० ॥ नदी भ्रमर मांगलिक पदार्थ दुर्वा माङ्गल्य दोरक स्वममें जिसको दीखते हैं वहभी राजों में अग्रणी होता है ॥ १११ ॥ जो पुरुष स्वप्नमें पंखा, अंकुश, वज्र, भाजन, ( पात्र ) ध्वजा ( पताका ) बन्दनवार देखता है, वा स्पर्श करता है वह वृद्धिको प्राप्त होता है ॥ ११२ ॥ स्त्रीके स्तनको भोगके समय मर्दन करके क्रीडाओंको करके जो रमण करता है वह चतुर स्त्रीरूपी धनको प्राप्तहोता है ॥ ११३ ॥ तेज तलवार पट्टिश धनुष छुरी चक्र गदा । जो स्त्रमें देखता है वह पृथिवीको पाता है ॥ ११४ ॥ जो ननुष्य स्वममें सुवर्णकी भूमिको हीरों से भूषित देखता है वह सैंकड़ों शुभे स युक्त होता है ॥ ११५ ॥ वान्य शस्त्रादि वस्तुओं को जो तराजू से तुलता देखे वा तोले उसको अच्छा लाभ होवे ॥ ११६ ॥ जो आप साठी चावल वा मूंग के कर्णे (किन्कीको ) देखता है, वा हाथमें लेता है अथवा खाता है वह धन For Private And Personal Use Only (२१) नू होता है ॥ ११७ ॥ स्वप्नमें जो वैकुण्ठपति चारभुजाको धारण करते हुये श्रीभगवान्को देखे बह पुरुष योगियों नें श्रेष्ठ हो ॥ ११८ ॥ लक्ष्मी, सरस्वती, सूर्यकी परछाईंको गोत्र के देवताको जो स्वप्नमें देखकर जागे वह मनुष्य धन्य और पूजने योग्य होता है ॥ ११९ ॥ पूर्णजय से युक्त ताला

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