Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 567
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषाटीकासमेत। चापि निर्मलम् ॥ किंच प्ररूढकोपः संघातपातादिकाः क्रियाः ॥ १४ ॥ करोत्यात्मैवेति पश्येजलं चापि पिबेहु ॥ वातप्रकृतिको यश्च स पश्येत्तुंगरोहणम् ॥ १५॥ तुङ्गदुमांश्च विविधान्पवनेन प्रकम्पितान ॥ वेगगामितुरंगांश्च पक्षिभिर्गमनं स्वयम् ॥ १६॥ उच्चसौधान्विवादं च कलहं च तथात्मनः॥आरोहणंच डयनमिति प्रकृतितो भवेत् ॥१७॥ स्वप्नमिष्टं च दृष्ट्वा यः पुनः स्वपिति मानवः ॥ तदुत्पन्न शुभफलं सनाप्नोतीति निश्चितम् ॥ १८॥अतोदृष्ट्वाशुभस्वप्नं सुधिया मानवेम वै ॥ सूर्यसंस्तवन यावशिष्टा रजनी पुनः॥ १९॥ देवानां च गुरूणां च पूजनानि विधाय सः।। शंभोर्नमस्कियां कुर्यात्प्रार्थयेच्च शुभं प्रति ॥ २० ॥ ततस्तु स्थविराग्रे वै कथयेत्स्वप्नमुत्तमम् ॥ दृष्ट्वा पूर्वमनिष्टं तु पश्चाच शुभमेव चेत् ॥ २१ ॥ यः पश्येत्स पुमांस्तस्माच्छुभस्व प्रफलं भजेत् ॥ अनिष्टं प्रथमं दृष्ट्वा तत्पश्चात्स स्वपेत्पुमान।। ॥२२॥ रात्रौ वा कथयेदन्यं ततो नाप्नोति तत्फलम् ॥ अथवा प्रातरुत्थायनमस्कृत्य महेश्वरम् ॥२३॥ तुलस्या लडना मारना ॥ १४ ॥ देखै वा बहुत जलपियै यह सब पित्तप्रकृतिवालेके लक्षण है । वातप्रकृतिवाला ऊंचेपर अपनेको चढाहुआ देखताहै ॥ १५ ॥ वायुसे कंपायेहुए अनेकप्रकारके ऊंचे वृक्ष तेज चलनेवाले घोडे, पक्षी तथा स्वयं अपना गमनभी देखताहै ।। १६॥ ऊंचे महल अपना विवाद आरोहण विवाद यह सब, बातप्रकृतिसे होतेहैं ॥ १७ ॥ इष्टस्वप्नको देखकर जो मनुष्य फिर सोजाताहै, वह निश्चयही स्वप्नसे उत्पन्न हुए शुभफलको नहीं पाता ॥ १८ ॥ इसकारण शुभस्वप्नको अवलोकन कर बुद्धिमान् मनुष्यको शेषरात्री सूर्यकी स्तुतिसे बितानी चाहिये ।। १९ ॥ वह देवता और गुरुओंका पूजन करके शिवजीको नमस्कार कर शुभफलके लिये प्रार्थना करें ॥ २० ॥ फिर वृद्धजनोंके आगे शुभस्वप्नकोकथन करें यदि पहले अनिष्ट देखकर पछि शुभ देखे ॥ २१॥ तो वह पुरुष शुभस्वप्नके फलको पाताहै, अनिष्टस्वप्नको देखकर जो पुरुष सो जाय ॥ २२॥ वा रात्रिमें ही उसे दूसरेसे कहदे तो उसके फलको नहीं प्राप्त होता अथवा सवेरेही उठकर महेश्वरको नमस्कार करके ॥ २३॥ तुलसीके आगे उस For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596