Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
'शिवारुते बलिविधानप्रकरणम्। (५११) शन्यालयं रुद्रगृहं श्मशानं चतुष्पथं मातृगृहं जलांतम् ॥ वंध्यावनिश्चत्वरमेवमाया बलिप्रदानाय मताः प्रदेशाः॥८२॥ तेषां च मध्यादुदितप्रदेशे विशोधिते मंडलकं विदध्यात् ॥ पौराणिकश्लोकपरीक्षितायाः संगृह्य गोर्गोमयमंतरिक्षात ८३॥ अत्यंतजीर्णदेहाया वंध्यायाश्च विशेषतः॥ रोगार्त्तनवमताया न गोर्गोमयमहरेत् ॥ ८४ ॥ तस्मिन्विचित्रं विततं विदध्यात्पिष्टातकेनाष्टदलं सरोजम् ॥ संपूजयेत्तत्र सुराधिपादीक्रमेण सर्वानपि लोकपालान् ॥ ८५॥
॥ टीका ॥
लिविधानं दिव्यमंत्रबलिबाधितदोष दिव्यमंत्रेण प्रतिष्ठितो यः बलिः पूजा तेन वाधिता दोषा येन तत्तथा । पुनः कीदृशं साधिताखिलसमुद्यतकार्य साधितमखिलं समुद्यतानां कार्य येन तत्तथेति॥८॥शून्येति॥एवमायाःइत्यादिका प्रदेशाः स्थानविशेषाः बलिप्रदानाय मता इष्टाः एतानेव दर्शयति । शून्याश्रयं शून्यं स्थलं क्वचिच्छन्यालयमित्यपिपाठः। रुद्रगृहं शंभुगृहं श्मशानं प्रेतगृहं चतुष्पथं यत्र चत्वारः पंथानो मिलंति वंध्यावनिः मुंडितभूमिः॥८२॥ तेषामिति ॥ तेषां स्थलानां मध्याद्विशोधित उदितप्रदेश पूर्वोदितं मंडलकं विदध्यात्। किं कृत्वांतरिक्षादाकाशादोर्गों मयं संगृह्या नोंतरिक्षं गगनमतं सुरवर्त्म खम्'इत्यमरः । कथंभूतायाः गोः पौराणिकश्लोकपरीक्षितायाः इदं तु पूर्वमेव व्याख्यातम् ॥८३॥ अत्यंतेति ॥ पूर्वमिदं व्याख्यातम् ॥८॥ तस्मिन्निति ॥ तस्मिन् मंडल के पिष्टातकेन विचित्र विविधवर्ण
॥ भाषा ॥ ये बलिविधान कैसो है जो दिव्य मंत्रन करके बलिपूजा करै तो सबले दोष दर होय और या करकेही जितने अपने कार्य उद्युक्त होय रहे होय वेभी होय ॥ ८१॥ शन्येति ॥ सूनो स्थल होय, शिवमंदिर होय, श्मशान होय, चौरायो होय, ऊखर पृथ्वी होय इनकं आदिलेके स्थान शिवाबलि देवेके योग्य हैं ॥ ८२ ॥ तेषामिति ॥ इनके मध्यमेंसे सोधो हुयो योग्य स्थान तामें पहले कह्यो जो मंडल ताय कर पहले गौको गोबर हाथके हाथमें लियो हुयो होय वाको मंडल बनानो ॥ ८३ ॥ अत्यंतति ॥ अत्यंतर्णि देह जाको होय वंध्या होय रोगली होय नवीन व्याई होय ऐसी गौको गोबर नहीं लेनो ॥८॥ तस्मिन्निति ॥ ता मंडलमें चूनको चित्रविचित्र लंबो चोडो भष्टदल कमल करे वा कम
For Private And Personal Use Only
Loading... Page Navigation 1 ... 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596