Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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(२)
स्वमाध्याय।
दयेत् ॥७॥ तमन्तरेण मन्त्रज्ञः स्वयं स्वप्नं विचारयेत् ॥ यानि कृत्यानि भावीनि ज्ञानगम्यानि तानि तु॥८॥ आत्मज्ञानाप्तये तस्माद्यतितव्यं नरोत्तमैः ॥ कर्मभिर्देवसेवाभिः कामाद्यरिगणक्षयात् ॥ ९॥ चिकीर्षुर्देवतोपास्तिमादौ भावि विचिन्तयेत् ॥ स्नानदानादिकं कृत्वा स्मृत्वा हरि पदाम्बुजम् ॥ १० ॥शयीत कुशशय्यायां प्रार्थयेवृषभध्व जम् ॥ तत्रादौ स्वप्नप्रदाशिवमन्त्रः ॥ (ॐ हिलि हिलि शलपाणये स्वाहा ॥ १॥) इमं मन्त्रम् १०८ अष्टोत्तरशतवारं जपित्वा कृताञ्जलिः संप्रार्थयेत् ॥ ॐ भगन्देवदेवेश शूलभू द वृषभध्वज ॥ इष्टानिष्टे समाचक्ष्व मम सुप्तस्य शाश्वत ॥ ११॥ नमोऽजाय त्रिणेत्राय पिङ्गलाय महात्मने ॥ वामाय विश्वरूपाय स्वप्नाधिपतये नमः ॥ १२॥ स्वप्ने कथय मे तथ्यं सर्वकार्येष्वशेषतः॥ क्रियासिद्धि विधास्यामि त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥ १३॥ ॐ नमः सकललोकाय
विष्णवे प्रभविष्णवे ॥ विश्वाय विश्वरूपाय स्वप्नाधिपतये कहै ।। ७ ॥ यदि गुरु नहों तो मंत्रका जाननेवाला स्वयंही स्वप्नको विचारै जो वातें होने वाली वह ज्ञानसे जानलीजातीहैं ॥ ८ ॥ इससे बुद्धिमानोंको आत्मज्ञानकेलिये यत्नकरना चाहिये, कर्म और देवसेवासे कामादि शत्रुनाश होतेहैं ॥ ९ ॥ स्नानदानकरके नारायणके चरणारविन्द स्मरणकर दैविक स्वप्नो भाविफलको विचारके निमित्त शंकरकी प्रतिमाके समीप ॥ ॥ १० ॥ कुशाकी शय्यापर शयन करके शंकरसे प्रार्थना करे कि मेरा अमुक कार्य करना सिद्ध होगा । वह स्वप्नका देनेवाला शिव मंत्र नीचे लिखाहै ( अहिलेहिलिशूलपाणयेस्वाहा ) यह मंत्र १०८ बार जपकर हाथ जोडकर शंकरकी प्रार्थना करै ।। ॐ हेभगवन् हे देवदेवेश हेशूलधारी, हेवृषभध्वज. मैं सोताहूं जो कुछ इस कार्यमें भला बुरा हो सो कहिये हेदेव ! मैं आपकी शरण हूं ॥ ११ ॥ आप अजन्मा तीन नेत्र पिङ्गल महात्माहो ऐसे काम विश्वरूप स्वप्नके अधिपति आपको नमस्कारहै ।। १२ ।। आप सबकार्यकी होने वाली वात स्वप्नमें सत्य सत्य मुझसे कहिये हेमहेश्वर आपकी कृपासे मैं क्रियासिद्धिको करूंगा ॥ १३ ॥ ॐ नमः इनि-सबलोकके पालक समर्थ विष्णु और विश्वरूप सर्वरूपस्वप्नके अधिपति आपको
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