Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४१९)
पल्लीविचारप्रकरणम्।
॥ टीका ॥
श्रीरामो जयति ॥ पुनर्ग्रथांतरात्पल्लीविचारो यथा । प्रभाते दारमुद्घाटयता यापरि पल्ली दृश्यते तदा प्राघूर्णका आयाति १ द्वारशाखोपरि आरोहति तदाऽथ लाभं कथयति २ पादे आरोहति गमनं कथयति ३ बहिर्गच्छति राजभयं कथयति ४ धूमस्थाने यांती अमिभयं कथयति ५
॥ इति प्राभातिकचेष्टा ॥
पल्लयां शिरसि पतत्यां श्रीमतां लक्ष्मीनश्यति । दरिद्राणां तु दारिद्यं नश्यति १ कष्ट पतितानां मस्तके पतति कष्टं याति २ पृष्ठे पतति चात्र मृत्युवार्ता आयाति ३ अग्रे उत्तरति तदाऽभीष्टलाभ कथयति ४ दक्षिणांगे गलकोपरि पतंती तदा मित्रमेलनं स्यात् ५ हस्तोपरि पतंती अर्थलाभाय स्यात् ६ पिचंडिकोपरि पतिता गमनाय स्यात् पिचंडिकात उपरि पतंती गच्छन्ती शुभगमनं ब्रूते ८पिचंडिकातो नीचैरुत्तरंती अशुभगमनं ब्रूते ९ पुहंचकोपरिपती राजमुद्राला दिशति१०
॥ भाषा॥
अब और ग्रंथांतरनको पल्ली विचार कहे हैं. प्रभातकालमें द्वारो खोलते ही पल्ली ऊपर दाखे तो कोई अतिथि आवे ॥ १ ॥ द्वारेकी चौखटपै चढती दीखै तो शब्द करे तो अर्थका लाभ होय ॥ २ ॥ नीचे पाँवनमें शब्द करै वा चढजाय तो गमन करावे ॥ ३ ॥ द्वारके बाहर निकल जाय तो राजभय करावे ॥४॥ जो धूमके स्थानमें चली जाय तो अग्निको भय करे ॥ ५ ॥ प्रभातकालकी चेष्टा कही, अब देहकी चेष्टा कहैं हैं. जो पल्ली धनमानके मस्तक पडै तो वांकी लक्ष्मी नष्ट होय जाय । जो दरिद्रीके मस्तकरें पड़े तो वाको दरिद्र नाश करै ॥ १ ॥ कष्टमें पडे होय उनके मस्तकपै पडै तो उनको कष्ट मिले ॥ २ ॥ पीठप पडै तो मृत्युकी वार्ता आव. ॥ ३ ॥ अगाडी उतरे तो वांछित को लाभ होय ॥ ४ ॥ जेमने अंगमें गलेके ऊपर पडै तो मित्रको मिलाप होय ॥५॥ हाथके ऊपर पड़े तो अर्थको लाभ होय ॥ ६ ॥ उदरपै पड़े तो गमनके अर्थ जाननो ॥ ७॥ उदरसूं ऊंची पडै फिर चढजाय तो शुभ गमन करावे. ॥ ८ ॥ उदरसूं नाचे उतरे तो मशुभ गमन करावे ॥ ९ ॥ पहुँचेके ऊपर पडै तो राजमुद्राको लाभ होय ॥ १० ॥
For Private And Personal Use Only