Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 497
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वचेष्टिते शुभाशुभप्रकरणम् । ( ४६१ ). ऊर्द्धानना भास्करसंमुखीनाः श्वानो रुवतो महते भयाय ॥ एवं हि संध्यासमयेऽन्यदा तु निर्वासकाःस्युर्नगरस्य तस्य ॥ १२९ ग्रामं निशायां खरसारमेयाः शून्यं विधातुं सहिता भवंति ॥ ग्रामे भषित्वा भषणाः श्मशाने रुवंति नाशाय च मुख्यपुंसः १३० ग्रामस्य मध्ये बहवो मिलित्वा श्वानो मुहुः क्रूरवा रटतः ॥ मुख्यस्य पुंसः कथयंत्यसौख्यं वारण्यगःस्यात्सदृशो मृगेण १३१ भषंति दंडैरिव ताड्यमानाः खेखेति शब्देन मुहुर्मुहुर्ये ॥ ये वा प्रधावंति च मंडलीभिस्ते मृत्युदाः शून्यविधायिनो वा ॥ १३२ ॥ ॥ टीका ॥ स्यात् ॥ १२८ ॥ उद्धनिना इति ॥ भास्करसंमुखीनाः ऊर्द्धाननाः रुवंतः श्वानःमहते भयाय स्युः। हि निश्चितम्। संध्यासमयेऽपि एवमेवं स्वतः महते भयाय भवंति ! अन्यदा तु अन्यस्मिन्समये तु ऊर्ध्वानना रुवतः तस्य नगरस्य निर्वासकाः उदासकारकाः स्युः ॥ १२९ ॥ ग्राममिति ॥ निशायां खरसारमेयाः ग्रामं शून्यं विधातुं स हिताः भवति भषणाः ग्रामे भषित्वा श्मशाने मुख्यपुंसो नाशाय रुवंति ॥ १३० ॥ ग्रामस्येति ॥ ग्रामस्य मध्ये बहवो मिलित्वा श्वानः मुहुर्मुहुः क्रूरवाः रटंतः मुख्यस्य पुंसः असौख्यं कथयति । अरण्यगः श्वा मृगेण हरिणेन सदृशः स्यात् ! हरिणसदृशं फलं ददातीत्यर्थः ॥ १३१ ॥ भषंतीति । ये श्वानः दंडैस्ताड्यमाना ॥ भाषा ॥ जाननो. जो सूर्य के सम्मुख देखतो जाय विष्ठा करतो होय ऐसो श्वान दखे तो सिद्ध हुये कार्यमें उपद्रव होय ॥ १२८ ॥ ऊर्द्धानना इति ॥ सूर्यके सम्मुख होय ऊंचो मुख करे हुये श्वान भूसे तो महान् भय करै, संध्यासमयमें या प्रकार बोले तो निश्चय महान् भय करे और समयमैं सूर्य के सम्मुख ऊंचो मुखकर रोवे तो बा नगरकूं उजडवेके अर्थ जाननो ॥ १२९ ॥ ग्राममिति ॥ रात्रिमें श्वान बहुतसे मिलकरके बोलें तो ग्रामकूं शून्य करें, और ग्राम में भूसकरके फिर श्मशान में शब्द करें तो ग्राम में मुख्य पुरुष होय ताकी मृत्यु करें ॥ १३० ॥ ग्रामस्येति ॥ ग्रामके मध्य में बहुतसे श्वान मिलकर के बारवार क्रूरशब्द करें तो ग्राममें मुख्य पुरुष होय ताकूं असौख्य करें. और बनमें खान के फल मृगके समान करेहैं. जैसे मृगके शकुन तैसेही श्वानके शकुन जानने ॥ १३१ ॥ भवतीति ॥ जे खान दंडकरके ताडन किये होंय ताकसी नाई खें खें ये शब्द वारंवार For Private And Personal Use Only

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